भारत एक ऐसा देश है जिसमे अनेकों ऋषिओं और मुनियों का जन्म हुआ। इस कारण भारत को ऋषियों, मुनियों की धरती भी कहा जाता है। उन्हीं में से एक हैं कबीर साहेब। इतिहास के स्वर्ण काल यानी भक्तिकाल के महत्वपूर्ण सन्त। जी हाँ वही कबीर साहेब जो काशी में जुलाहे के रूप में काम करते थे। कबीर साहेब केवल सन्त मात्र नहीं बल्कि पूर्ण परमात्मा हैं। कबीर साहेब के दोहे तो आपने पढ़े ही होंगे, लेकिन आज हम आपको कबीर साहेब जी के जीवन और लीलाओं के बारे में बतायेंगे।
कबीर जी का जन्म कब और कहां हुआ था?
वैसे तो हमारे शास्त्रों में प्रमाण है कि कबीर साहेब चारों युगों में आते हैं। जैसे सतयुग में सतसुकृत नाम से, त्रेता युग में मुनीन्द्र नाम से, द्वापर युग में करुणामय नाम से और कलियुग में वास्तविक नाम कबीर (कविर्देव) से वे इस मृत मंडल में जीवों का उद्धार करने आते हैं। परमेश्वर कबीर (कविर्देव) वि.सं. 1455 (सन् 1398) ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को लहरतारा तालाब काशी (बनारस) में एक कमल के फूल पर ब्रह्ममहूर्त में एक नवजात शिशु के रूप में प्रकट हुए।
जिनको नीरू-नीमा नामक जुलाहा दम्पति उठाकर अपने घर ले गए। नीरू और नीमा वास्तव में अच्छे और ईश्वर से डरने वाले ब्राह्मण थे जिनकी अच्छाई नकली और आडम्बरी ब्राम्हणों से सहन नहीं हई और इसका फायदा मुस्लिमो ने उठाया और ज़बरदस्ती धर्म परिवर्तन कर दिया।
कबीर प्रकट दिवस 2020 में कब है?
हर वर्ष ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा को कबीर प्रकट दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष 5 जून को इसे मनायेंगे। यही नहीं इस दिन कबीर साहेब की लीलाओं को भी याद किया जाता है। उनकी शिक्षाओं पर चलना आज मानवजाति के लिए बहुत आवश्यक है।
कबीर साहेब जी के दोहे हिंदी में
वैसे तो हमें कबीर साहेब के दोहे कहीं न कहीं लिखे मिल ही जाते हैं, आपने देखा होगा स्कूल, कॉलेज आदि की दीवारों पर कबीर साहेब के दोहे लिखे होते हैं। इसकी एक वजह यह भी है कि कबीर साहेब के दोहों में ज़िंदगी के हर पहलू को बहुत खुबसूरती से पेश किया गया है। उनमे से कुछ दोहे:-
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,
कबीर परमेश्वर जी
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय |
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय ||
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय ||
अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप ,
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप ||
कबीर साहेब की लीलाएं
कबीर साहेब आज से तकरीबन 600 वर्ष पहले इस मृत लोक में आये थे। वैसे तो वह हर युग में आते हैं, लेकिन कलयुग में अपने वास्तविक नाम कबीर से आये थे। उस वक़्त न तो संचार के साधन थे, न कोई परिवहन होते थे आपको यह जानकर हैरानी होगी कि फिर भी उस वक़्त उनके 64 लाख शिष्य हुए थे । अब आप सोच रहे होंगे कैसे? तो चलिए हम आपको बताते हैं उन्होंने यह कैसे किया।
कबीर साहेब का कमल के फूल पर प्रकट होना

सबसे पहले तो उनका लहरतारा तालाब में कमल के फूल पर प्रकट होना ही अपने आप में एक हैरानी की बात है। कमल के पुष्प पर वेदों के अनुसार वे अपने वास्तविक प्रकाश को कम करके आए।
कवांरी गाय का दूध पीने की लीला

वेदों में लिखा है कि परमेश्वर जब अवतार लेता है तो कवांरी गाय का दूध पीता है। कबीर साहेब को पाकर नीरू नीमा बड़े ही खुश थे लेकिन जब लगभग 23 दिन तक बालक रूपी कबीर साहेब ने कोई आहार नहीं किया तो नीमा ने रोरो कर बुरा हाल कर लिया। ये दम्पत्ति शिवभक्त थे इन्होंने अपने इष्ट देव को याद किया। उधर शिव जी के भीतर कबीरसाहेब ने प्रेरणा की और वे साधु रूप में घर आये। नीरू नीमा को उन्होंने कुंवारी गाय लाने को कहा और फिर वह दूध कबीर साहेब ने पिया।
कबीर साहेब का नामकरण
सारा काशी कबीर साहेब सरीखे सुंदर सलोने बालक को देखने उमड़ आया। ऐसा बालक कहीं न देखा था। वह घड़ी आई जब कबीर साहेब का नामकरण होना था । काज़ी अपनी किताबें ले आये और अपने तरीके से नाम खोजने लगे। पुस्तक के सारे अक्षर कबीर कबीर हो गए और तब कबीर साहेब ने कहा कि “मैं ही अल्लाहु अकबर कबीर हूँ। मेरा नाम कबीर होगा।” और इस तरह से कबीर साहेब का नामकरण उन्होंने स्वयं किया।
सुन्नत संस्कार की लीला
जैसा कि हम बता चुके कि नीरू और नीमा का ज़बरदस्ती धर्म परिवर्तन मुस्लिम धर्म मे किया गया। वह घड़ी आई जब काज़ी कबीर साहेब के सुन्नत संस्कार के लिए आये। सुन्नत संस्कार के समय कबीर साहेब ने कई लिंग एकसाथ दिखा दिए। और उसी बालक रूप में कहा कि इस्लाम मे तो एक लिंग का सुन्नत होता है आप किसका करोगे? बस इतने में काज़ी डरकर भाग खड़े हुए।
काटी हुई गाय को जिंदा करना

सिकन्दर लोधी ने शेख तकी के कहने पर एक गर्भवती गाय काटी और कबीर साहेब को बुलाकर कहा कि आप इसे जिंदा कर दो तो हम मान लेंगे कि आप अल्लाह हैं। कबीर साहेब ने तुरंत ही वह गाय बछड़े सहित जिंदा कर दी और माता स्वरूप गाय न काटने के लिए कहा।
दिल्ली के राजा सिकन्दर लोधी के जलन का रोग ठीक करना
एक बार दिल्ली के राजा सिकन्दर लोधी को जलन का रोग हो गया, सभी काज़ी मुलाओं ने कोशिश की लेकिन ठीक नहीं हुआ। सिकन्दर लोधी काशी के नरेश वीर सिंह बघेल को साथ लेकर कबीर जी से मिलने पहुँच गए। रामानन्द जी ने उन्हें देखकर टिप्पणी की तो सिकन्दर लोधी ने तलवार से गुस्से में रामानंद जी की गर्दन काट डाली।
इतने में कबीर साहेब भी आ गए, कबीर साहेब को देखते ही वीर सिंह बघेल उनको दंडवत प्रणाम करने लगा तो उसको देखकर सिकंदर लोधी ने भी मुकुट समेत प्रणाम किया, जब कबीर साहेब ने दोनों के सिर पर आशीर्वाद के लिए हाथ रखा तो सिकन्दर लोधी का जलन रोग खत्म हो गया। सिकन्दर लोधी इस चमत्कार को देखकर फूट- फूट कर रो पढ़ा।
रामानंद जी को जीवित करना
कबीर साहेब कुटिया के अंदर गए, रामानंद जी का शव देखा तो सिर्फ इतना ही कहा था कि गुरुदेव उठिए आरती का समय हो गया। कबीर साहेब के इतना कहते ही रामानंद जी धड़ सर से जुड़ गया और रामानंद जी जीवित हो गए। इस चमत्कार को देखकर सभी हैरान हो गए, सिकंदर लोधी ने कबीर साहेब से नाम-दीक्षा ले ली।
कमाल को जीवित करना

जब सिकंदर लोधी दिल्ली पहुंचा तो उसने काशी में हुए चमत्कार के बारे में अपने धर्म गुरु शेखतकी को बताया तो वह ईर्ष्या की आग में जल उठा। उसने यह शर्त रख दी कि यदि वह सच में अल्लाह का रसूल है तो किसी मुर्दे को जिंदा करके दिखाये। जब यह बात कबीर साहेब को पता चली तो उन्होंने कहा उन्हें मंजूर है। सभी नदी किनारे पहुँच गए , अभी थोड़ा ही समय हुआ था कि सबने देखा किसी लड़के का मृतक शव पानी मे बहता हुआ आ रहा था। कबीर साहेब ने वहाँ किनारे पर खड़े होकर सिर्फ अपने वचन से ही उस लड़के को जीवित कर दिया। सबने कहा कबीर साहेब जी ने कमाल कर दिया तो लड़के का नाम भी कमाल रख दिया।
कमाली को जीवित करना
लेकिन इससे भी शेखतकी को संतुष्टि नहीं हुई, उसने दूसरी शर्त रख दी कि अगर कबीर सच में अल्लाह की जात है तो मेरी कब्र में दफन बेटी को जिंदा करके दिखाये। कबीर साहेब ने वो भी मान ली, सिकन्दर लोधी ने सभी तरफ मुनादी करवा दी कि कबीर साहेब शेखतकी की बेटी को जिंदा करेंगे। कबीर साहेब ने निर्धारित समय पर लड़की को अपनी वचन शक्ति से शेखतकी की बेटी को जिंदा कर दिया। सभी कबीर परमात्मा की जय जय कार करने लगे। उस लड़की ने अपने पिछले जन्मों के बारे में और कबीर साहेब के बारे में बताया। उसका नाम कमाली रख दिया गया। बहुत से लोगों ने कबीर की शरण ग्रहण की।
उबलते कड़ाहे में संत कबीर साहेब को डालना
कबीर जी की लोकप्रियता को देखकर शेखतकी ईर्ष्या की आग में जलने लगा। उसने फिर कहा कि कबीर साहेब को उबलते तेल के कढ़ाए में डाल दो, अगर बच गए तो में मान लूंगा कि यह अल्लाह है। जैसे-जैसे शेखतकी कहता गया सिकन्दर लोधी वैसे ही करता गया। कबीर साहेब उबलते तेल के कड़ाहे में बैठ गए। सबने देखा कबीर जी ऐसे बैठे थे जैसे तेल ठण्डा हो। तेल ठंडा है या गर्म ये देखने के लिए सिकंदर लोधी ने अपनी उंगली डाली तो वह पूरी तरह जल गई। सभी श्रोता बैठे यह सब देख रहे थे, सभी ने कबीर साहेब की जय जय कार की। उस वक़्त बहुत से लोगों ने कबीर भगवान से दीक्षा ग्रहण की।
परमेश्वर कबीर जी द्वारा काशी शहर में धर्मभण्डारा
एक बार शेख तकी ने काशी के अन्य नकली गुरुओं के साथ मिलकर कबीर जी के नाम से झूठी अफवाह फैला दी कि कबीर साहेब धर्मभण्डारे का आयोजन कर रहे हैं जिसमे सभी आमंत्रित है। हरेक को 10 ग्राम सोना और दोहर भेंट की जाएगी।
नियत तिथि पर वहाँ पर लगभग 18 लाख लोग इकठा हो गए। उस दिन कबीर साहेब ने दो रोल अदा किए एक स्वयं का और एक केशव रूपी सेठ का।
सभी को प्रत्येक भोजन के पश्चात् एक दोहर तथा एक मोहर (10 ग्राम) सोना (मोहर) दक्षिणा दी जा रही थी। कई संत तो दिन में चार-चार बार भोजन करके चारों बार दोहर तथा मोहर ले रहे थे। जब कबीर साहेब झोपड़ी से बाहर आये तो नजारा देखने वाला था, कबीर साहेब के सिर पर बहुत सुंदर हीरो से जड़ा हुआ मुकुट सज गया और ऊपर से फूल बरसने लगे। कई लाख सन्तों ने अपनी गलत भक्ति त्यागकर कबीर जी से दीक्षा ली, अपना कल्याण कराया। देखते ही देखते केशव बंजारे वाला रूप कबीर साहेब में समा गया और वहाँ पर अकेले कबीर जी रह गए।
यह भी पढें: कबीर साहेब (परमेश्वर) जी के चमत्कार
यह चमत्कार देखकर सिकंदर लोधी ने कहा आप सिर्फ संत नहीं आप खुद परमात्मा हो। जब शेखतकी ने यह सुना तो वह ईर्ष्या की आग में जल उठा और कहने लगा ऐसे-ऐसे तो हम कई भण्डारे कर दें, यह क्या भण्डारा किया है? ये तो महौछा सा कर दिया। इतना कहते ही वह गूंगा और बहरा हो गया।
संत गरीबदास जी ने कहा है कि :-
गरीब, कोई कह जग जौनार करी है, कोई कहे महौछा।
बड़े बड़ाई किया करें, गाली काढे़ औछा।।
भैंसे से वेद मन्त्र बुलवाना
सभी जानते हैं कि उस काल मे अंधविश्वास का बोलबाला था। एक बार तोताद्री नामक स्थान पर भण्डारे का आयोजन था। रामानंद जी ने सत्संग किया और रामचंद्र और शबरी की कथा सुनाकर समझाया कि साधु संतों का भाव सरल और समर्पित होना चाहिए। ब्राह्मणों के लिए विशेष भण्डारे का आयोजन था। वे कबीर साहेब को अपने साथ नहीं खाने देना चाहते थे। उन्होंने योजना बनाई कि जो भी चार वेद मन्त्र सुनाएगा वह भोजन करने का अधिकारी होगा।

कबीर साहेब को अनपढ़ समझ ब्राह्मणों ने शेखी बघारते हुए कहा कि जो वेद मन्त्र बोलेगा केवल वही यहां खाने का अधिकारी होगा। ऐसे अज्ञानी ब्राह्मणों की आज भी कोई कमी नहीं जो श्लोकों का अर्थ न जानकर बस रटकर स्वयं को ज्ञानी समझते हैं। कबीर साहेब ने वहां खड़े भैंसे के ऊपर अपना हाथ रखा और कहा वेद मन्त्र सुनाओ। भैंसे ने 6 वेद मन्त्र सुनाए कबीर साहेब ने कहा कि भैंसे जी आप ब्राह्मणों के भण्डारे में खाओ हम साधारण भण्डारे में खाएंगे तब नकली पण्डित बहुत लज्जित हुए। सभी ने क्षमा मांगी और कबीर साहेब से नाम दीक्षा भी ग्रहण की।
कबीर साहेब पूर्ण परमात्मा हैं और उन्होंने और भी बहुत सारे चमत्कार किये हैं। इतिहास की कई पुरानी पुस्तकों में इसका उल्लेख भी है। इस समय सिर्फ तत्वदर्शी संत रामपाल जी ही हैं जो सही भक्तिविधि बताते हैं। वे पूर्ण गुरु हैं और कबीर साहेब के अवतार हैं। आज हो रही आपदाओं से केवल वही हमारी रक्षा कर सकते हैं। ब्रह्मा विष्णु महेश के पिता है ज्योति निरजंन यानी क्षर ब्रह्म ये हमे मोक्ष नहीं दिलवा सकते। मोक्ष दाता परम् अक्षर ब्रह्म कबीर है ये सारे धर्मग्रन्थ गवाही देते हैं। आप अधिक जानकारी के लिए आप हमारी वेबसाइट पर जाएं और ज्ञान गंगा पुस्तक पढ़ें और असली सृष्टि रचना जानें और सही भक्तिविधि जाने।
About the author
SA News Channel is one of the most popular News channels on social media that provides Factual News updates. Tagline: Truth that you want to know
Kabirji is Supreme God. He lives in eternal place of Satlok.
हम सुल्तानी नानक तारे, दादू को उपदेश दिया।
जात जुलाहा भेद न पाया, वह काशी माहि कबीर हुआ।।