Last Updated on 05 June 2022, 10:56 PM IST: हिंदू-मुस्लिम और अन्य धर्म की प्रभु प्रेमी आत्माएं विभिन्न प्रकार की मान्यताओं और धार्मिक परंपराओं का पालन करती हैं। हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्म के अनुसार वह जिस भगवान, अल्लाह की पूजा करते हैं वह ही श्रेष्ठ, सर्वोच्च और सर्वशक्तिमान है। कबीर जी (Kabir Ke Dohe in Hindi) कहते हैं कि मैंने यह शरीर आत्माओं को परमात्मा के बारे में जानने और मुक्त करने के लिए प्राप्त किया है। कबीर जी वास्तव में सर्वोच्च ईश्वर हैं जो एक संत के रूप में प्रकट हुए, वे धर्म और जाति की बेड़ियों से ऊपर थे। कबीर साहिब जी हिंदू और मुसलमान दोनों को कहते थे कि तुम ‘सब मेरी संतान हो’, कबीर साहिब वाणी में कहते हैं कि
कहाँ से आया कहाँ जाओगे, खबर करो अपने तन की।
कोई सदगुरु मिले तो भेद बतावें, खुल जावे अंतर खिड़की।।
भावार्थ: जीव कहाँ से आया है और कहाँ जाएगा? पंडित और मौलवी इसका जबाब धर्मग्रंथों से देते हैं। कबीर साहब कहते हैं कि इस प्रश्न का सही जवाब चाहिए तो किसी सद्गुरु की मदद लो। जब तक अंतर आत्मा से परमात्मा को पाने की कसक नहीं उठेगी तब तक जीव को इस सवाल का सही जवाब नहीं मिलेगा कि इस दुनिया में वो कहाँ से आया है और एक दिन शरीर छोड़ने के बाद कहाँ जाएगा।
कबीर साहेब के हिंदुओं के लिए दोहे (Kabir Ke Dohe Hinduo ke liye)
माला मुद्रा तिलक छापा, तीरथ बरत में रिया भटकी।
गावे बजावे लोक रिझावे, खबर नहीं अपने तन की।।
भावार्थ: कबीर साहेब जी कहते हैं माला पहनने, तिलक लगाने, व्रत रखने और तीर्थ करने से जीव का आध्यात्मिक कल्याण नहीं होगा। इसी तरह से जो लोग धार्मिक कथाएं सुनाते हैं, भजन गाकर, नाच कर लोगों को रिझाते हैं, वो भी आम जनता को आत्म कल्याण का उचित सन्मार्ग नहीं दिखाते हैं। कबीर साहब कहते हैं कि ज्ञानी और सच्चे साधू वे हैं, जो शरीर को ही मंदिर-मस्जिद मानते हैं और अपने शरीर के भीतर ही परमात्मा को ढूंढने की कोशिश करते हैं। जो अपनी देह के भीतर ईश्वर का दर्शन कर लेता है, उसका जीवन सफल हो जाता है।
बिना विवेक से गीता बांचे, चेतन को लगी नहीं चटकी।
कहें कबीर सुनो भाई साधो, आवागमन में रिया भटकी।।
kabir Ke dohe
भावार्थ: कबीर साहब कहते हैं कि यदि हृदय में विवेक और वैराग्य का उदय नहीं हुआ है तो गीता पढ़ने से भी उसका क्या भला होगा? जब तक मन को सत्य का झटका नहीं लगेगा और हमारी चेतना पूरी तरह से जागृत नहीं होगी, तब तक आत्मा-परमात्मा की अनुभूति नहीं होगी। कबीर साहब फरमाते हैं कि मन ही बंधन और मोक्ष का मूल कारण है। जब तक मन को नियंत्रित नहीं करोगे और आत्मा की अनुभूति नहीं प्राप्त करोगे, तब तक संसार में आने-जाने का चक्र नहीं रुकेगा। आत्मा के द्वारा ही परमात्मा की भी अनुभूति प्राप्त होती है।
कुष्टी हो संत बंदगी कीजिए। जे हो वैश्या को प्रभु विश्वास, चरण चित दीजिए।।
भावार्थ:- यदि किसी भक्त को कुष्ट रोग है और वह भक्ति करने लगा है तो भक्त समाज को चाहिए कि उससे घृणा न करे। उसको प्रणाम करे जैसे अन्य भक्तों को करते हैं। उसका सम्मान करना चाहिए। उसका हौंसला बढ़ाना चाहिए। भक्ति करने से उसका जीवन सफल होगा, रोग भी ठीक हो जाएगा। इसी प्रकार किसी वैश्या बेटी-बहन को प्रेरणा बनी है भक्ति करने की, सत्संग में आने की तो उसको परमात्मा पर विश्वास हुआ है। वह सत्संग विचार सुनेगी तो बुराई भी छूट जाएगी। उसका कल्याण हो जाएगा। समाज से बुराई निकल जाएगी। यदि वह सत्संग में आएगी ही नहीं तो उसको अपने पाप कर्मों का अहसास कैसे होगा?
कबीर, मानुष जन्म दुलर्भ है, मिले न बारं-बार।
तरवर से पत्ता टूट गिरे, बहुर ना लागे डार।।
भावार्थ:- कबीर परमात्मा जी ने समझाया है कि हे मानव शरीरधारी प्राणी! यह मानव जन्म (स्त्री/पुरूष) बहुत कठिनता से युगों पयर्न्त प्राप्त होता है। यह बार-बार नहीं मिलता। इस शरीर के रहते-रहते शुभ कर्म तथा परमात्मा की भक्ति कर, अन्यथा यह शरीर समाप्त हो गया तो आप पुनः इसी स्थिति यानि मानव शरीर को प्राप्त नहीं कर पाओगे। जैसे वृक्ष से पत्ता टूटने के पश्चात् उसी डाल पर पुनः नहीं लगता। इसलिए इस मानव शरीर के अवसर को व्यर्थ न गँवा।
कबीर, मानुष जन्म पाय कर, नहीं रटैं हरि नाम।
जैसे कुंआ जल बिना, बनवाया क्या काम।।
भावार्थ:- मानव जीवन में यदि भक्ति नहीं करता तो वह जीवन ऐसा है जैसे सुंदर कुंआ बना रखा है। यदि उसमें जल नहीं है या जल है तो खारा (पीने योग्य नहीं) है, उसका भी नाम भले ही कुंआ है, परंतु गुण कुंए वाले नहीं हैं। इसी प्रकार मनुष्य भक्ति नहीं करता तो उसको भी मानव कहते हैं, परंतु मनुष्य वाले गुण नहीं हैं।
कबीर, काया तेरी है नहीं, माया कहाँ से होय।
भक्ति कर दिल पाक से, जीवन है दिन दोय।।
बिन उपदेश अचम्भ है, क्यों जिवत हैं प्राण।
भक्ति बिना कहाँ ठौर है, ये नर नाहीं पाषाण।।
भावार्थ:- परमात्मा कबीर जी कह रहे हैं कि हे भोले मानव! मुझे आश्चर्य है कि बिना गुरू से दीक्षा लिए किस आशा को लेकर जीवित है। न तो शरीर तेरा है, यह भी त्यागकर जाएगा। फिर सम्पत्ति आपकी कैसे है? जिनको यह विवेक नहीं कि भक्ति बिना जीव का कहीं भी ठिकाना नहीं है तो वे नर यानि मानव नहीं हैं, वे तो पत्थर हैं। उनकी बुद्धि पर पत्थर गिरे हैं।
कबीर, नौ मन सूत उलझिया, ऋषि रहे झख मार।
सतगुरू ऐसा सुलझा दे, उलझे न दूजी बार।।
भावार्थ:- परमेश्वर कबीर जी ने कहा है कि अध्यात्म ज्ञान रूपी नौ मन सूत उलझा हुआ है। एक कि.ग्रा. उलझे हुए सूत को सीधा करने में एक दिन से भी अधिक जुलाहों का लग जाता था। यदि सुलझाते समय धागा टूट जाता तो कपड़े में गाँठ लग जाती। गाँठ-गठीले कपड़े को कोई मोल नहीं लेता था। इसलिए परमेश्वर कबीर जुलाहे ने जुलाहों का सटीक उदाहरण बताकर समझाया है कि अधिक उलझे हुए सूत को कोई नहीं सुलझाता था। अध्यात्म ज्ञान उसी नौ मन यानि 360 किलो उलझे हुए सूत के समान है जिसको सतगुरू अथार्त् तत्वदशीर् संत ऐसा सुलझा देगा जो पुनः नहीं उलझेगा।
एक राम दशरथ का बेटा , एक राम घट घट में बैठा ।
एक राम का सकल पसारा , एक राम त्रिभुवन से न्यारा ||
एक राम इन सबसे न्यारा, चौथा छोड़ पांचवा को धावै , कहै कबीर सो हम पर आवै ।।
भावार्थ: कबीर साहेब कहते है कि पहला राम दशरथ का बेटा है, दूसरा राम जो हमारे घट-घट में बैठा है और वो है हमारा मन, तीसरा राम काल निरंजन नाशवान 21 ब्रह्मांड का मालिक है, चौथा राम परब्रह्म/ अक्षर पुरुष (नाशवान 7 शंख ब्रह्मांड का मालिक ), परन्तु सबसे न्यारा है पांचवा और असली राम (अनंत ब्रह्माण्ड, अमरलोक का मालिक कबीर परमपिता परमेश्वर ) जो सबसे ऊंचा है, सबसे बड़ी ताकत है, वह इस सृष्टि का कर्ता-धर्ता है। कबीर साहब ने उस सृजनहार या राम को याद करने के लिए कहा है।
क्या मांगुँ कुछ थिर ना रहाई, देखत नैन चला जग जाई।
एक लख पूत सवा लख नाती, उस रावण कै दीवा न बाती।।
भावार्थ :- यदि एक मनुष्य एक पुत्र से वंश बेल को सदा बनाए रखना चाहता है तो यह उसकी भूल है। जैसे श्रीलंका के राजा रावण के एक लाख पुत्र थे तथा सवा लाख पौत्र थे। वर्तमान में उसके कुल (वंश) में कोई घर में दीप जलाने वाला भी नहीं है। सब नष्ट हो गए। इसलिए हे मानव! परमात्मा से यह क्या माँगता है जो स्थाई ही नहीं है। यह अध्यात्म ज्ञान के अभाव के कारण प्रेरणा बनी है। परमात्मा आप जी को आपका संस्कार देता है। आपका किया कुछ नहीं हो रहा है।
कबीर, नौ मन सूत उलझिया, ऋषि रहे झख मार।
सतगुरू ऐसा सुलझा दे, उलझे न दूजी बार।।
भावार्थ :- परमेश्वर कबीर जी ने कहा है कि अध्यात्म ज्ञान रूपी नौ मन सूत उलझा हुआ है। एक कि.ग्रा. उलझे हुए सूत को सीधा करने में एक दिन से भी अधिक जुलाहों का लग जाता था। यदि सुलझाते समय धागा टूट जाता तो कपड़े में गाँठ लग जाती। गाँठ-गठीले कपड़े को कोई मोल नहीं लेता था। इसलिए परमेश्वर कबीर जुलाहे ने जुलाहों का सटीक उदाहरण बताकर समझाया है कि अधिक उलझे हुए सूत को कोई नहीं सुलझाता था। अध्यात्म ज्ञान उसी नौ मन उलझे हुए सूत के समान है जिसको सतगुरू अर्थात् तत्वदर्शी संत ऐसा सुलझा देगा जो पुनः नहीं उलझेगा।
कबीर, माया दासी संत की, उभय दे आशीष।
विलसी और लातों छड़ी, सुमर-सुमर जगदीश।।
भावार्थ :- सर्व सुख-सुविधाऐं धन से होती हैं। वह धन शास्त्राविधि अनुसार भक्ति करने वाले संत-भक्त की भक्ति का स्वतः होने वाला, जिसको प्राप्त करना उद्देश्य नहीं, वह फिर भी अवश्य प्राप्त होता है, By Product होता है। जैसे जिसने
गेहूँ की फसल बोई तो उसका उद्देश्य गेहूँ का अन्न प्राप्त करना है। परंतु भुष अर्थात् चारा भी अवश्य प्राप्त होता है। चारा, तूड़ा गेहूँ के अन्न का By Product है। इसी प्रकार सत्य साधना करने वाले को अपने आप धन माया मिलती है। साधक उसको भोगता है, वह चरणों में पड़ी रहती है अर्थात् धन का अभाव नहीं रहता अपितु आवश्यकता से अधिक प्राप्त रहती है। परमेश्वर की भक्ति करके माया का भी आनन्द भक्त, संत प्राप्त करते हैं तथा पूर्ण मोक्ष भी प्राप्त करते हैं।
सतयुग में सतसुकृत कह टेरा, त्रेता नाम मुनिन्द्र मेरा।
द्वापर में करुणामय कहलाया, कलयुग में नाम कबीर धराया।।
भावार्थ: कबीर परमेश्वर चारों युगों में आते हैं। कबीर साहिब जी ने बताया है कि जब मैं सतयुग में आया था तब मेरा नाम सत सुकृत था। त्रेता युग में मेरा नाम मुनिंदर था द्वापर युग में मेरा नाम करुणामय था और कलयुग में मेरा नाम कबीर है।
चारों युगों में मेरे संत पुकारें, और कूक कहा हम हेल रे।
हीरे मानिक मोती बरसें ये जग चुगता ढ़ेल रे ||
भावार्थ: हम सत साधना और तत्वज्ञान रुपी हीरे मोतियों की वर्षा कर रहे हैं कि बच्चों ये भक्ति करो इससे बहुत लाभ होगा। हमारी बात को न सुनकर इन नकली संतों गुरुओं आचार्यों शंकराचार्यो की बातों पर आरुढ़ हो चुके हो तुम और ये कंकर पत्थर इकट्ठे कर रहे हो जिनका कोई मूल्य नहीं है भगवान के दरबार में।
कबीर, पत्थर पूजें हरि मिले तो मैं पूजूँ पहार।
तातें तो चक्की भली, पीस खाये संसार।।
भावार्थ: कबीर साहेब जी (kabir Ke dohe in Hindi) हिंदुओं को समझाते हुए कहते हैं कि किसी भी देवी-देवता की आप पत्थर की मूर्ति बनाकर उसकी पूजा करते हैं जो कि शास्त्र विरुद्ध है। जो कि हमें कुछ नही दे सकती। इनकी पूजा से अच्छा चक्की की पूजा करना है जिससे हमें खाने के लिए आटा मिलता है।

वेद पढ़ें पर भेद ना जानें, बांचें पुराण अठारा।
पत्थर की पूजा करें, भूले सिरजनहारा।।
भावार्थ: वेदों व पुराणों का यथार्थ ज्ञान न होने के कारण हिन्दू धर्म के धर्मगुरुओं को सृजनहार अर्थात परम अक्षर ब्रह्म का ज्ञान भी नहीं हैं इसलिए वे पत्थर पूजा में लगे हुए है। सतगुरु के अभाव में वे वेदों को पढ़ने के बाद भी उनके सही ज्ञान से परिचित नहीं हो सके।
कबीर, पाहन ही का देहरा, पाहन ही का देव।
पूजनहारा आंधरा, क्यों करि माने सेव।।
भावार्थ: कबीर साहेब कहते है कि पत्थर के बने मंदिर में भगवान भी पत्थर के ही हैं। पुजारी भी अंधे की तरह विवेकहीन हैं तो ईश्वर उनकी पूजा से कैसे प्रसन्न होंगे।
कबीर, कागद केरी नाव री, पानी केरी गंग।
कहे कबीर कैसे तिरे, पांच कुसंगी संग।।
भावार्थ: यह शरीर कागज की तरह नाशवान है जो संसार रुपी नदी की इच्छाओं-वासनाओं में डूबा हुआ है। जब तक पांच विकार (काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार) पर नियंत्रण नहीं कर लिया जाता है तब तक संसार से मुक्ति नहीं मिल सकती।
जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान।
मोल करो तलवार का, पड़ी रहन दो म्यान ।।
भावार्थ: परमात्मा कबीर जी हिंदुओं में फैले जातिवाद पर कटाक्ष करते हुए कहते थे कि किसी व्यक्ति से उसकी जाति नहीं पूछनी चाहिए बल्कि ज्ञान की बात करनी चाहिए। असली मोल तो तलवार का होता है, म्यान का नहीं।
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय ।।
भावार्थ: परमात्मा कबीर जी कहते हैं कि किताबें पढ़ पढ़ कर लोग शिक्षा तो हासिल कर लेते हैं लेकिन कोई ज्ञानी नहीं हो पाता। जो व्यक्ति प्रेम वाला ढाई अक्षर पढ़ ले, वही सबसे बड़ा ज्ञानी है और सबसे बड़ा पंडित है।
माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर।
कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।।
भावार्थ: कबीर जी अपनी उपरोक्त वाणी के माध्यम से उन लोगों पर कटाक्ष कर रहे हैं जो लम्बे समय तक हाथ में माला तो घुमाते है, पर उनके मन का भाव नहीं बदलता, उनके मन की हलचल शांत नहीं होती। कबीर जी ऐसे व्यक्ति को कहते हैं कि हाथ की इस माला को फेरना छोड़ कर मन को सांसारिक आडंबरों से हटाकर भक्ति में लगाओ।
मानुष जन्म दुर्लभ है, मिले न बारम्बार ।
तरवर से पत्ता टूट गिरे, बहुरि न लागे डारि ।।
भावार्थ: परमात्मा कबीर जी हिन्दू और मुस्लिम दोनों को मनुष्य जीवन की महत्ता समझाते हुए कहते हैं कि मानव जन्म पाना कठिन है। यह शरीर बार-बार नहीं मिलता। जो फल वृक्ष से नीचे गिर पड़ता है वह पुन: उसकी डाल पर नहीं लगता। इसी तरह मानव शरीर छूट जाने पर दोबारा मनुष्य जन्म आसानी से नही मिलता है, और पछताने के अलावा कोई चारा नहीं रह जाता।
ज्यों तिल माहि तेल है ,ज्यों चकमक में आग।
तेरा साईं तुझ ही में है ,जाग सके तो जाग।।
भावार्थ: कबीर जी हिंदू और मुसलमान दोनों को समझाते हुए कहते हैं कि जैसे तिल के अंदर तेल होता है और आग के अंदर रोशनी होती है ठीक वैसे ही हमारा ईश्वर, अल्लाह हमारे अंदर ही विद्यमान है, अगर ढूंढ सको तो ढूंढ लो।
पानी केरा बुदबुदा, अस मानस की जात ।
एक दिना छिप जाएगा, ज्यों तारा परभात ।।
भावार्थ: कबीर जी लोगों को नेकी करने की सलाह देते हुए इस क्षणभंगुर मानव शरीर की सच्चाई लोगों को बता रहे हैं कि पानी के बुलबुले की तरह मनुष्य का शरीर क्षणभंगुर है। जैसे प्रभात होते ही तारे छिप जाते हैं, वैसे ही ये देह भी एक दिन नष्ट हो जाएगी।
कबीर, सुमिरण से सुख होत है, सुमिरण से दुःख जाए।
कहैं कबीर सुमिरण किए, सांई माहिं समाय।।
Kabir ke Dohe in Hindi
भावार्थ: नाम (उपदेश) को केवल दु:ख निवारण की दृष्टि कोण से नहीं लेना चाहिए बल्कि आत्म कल्याण के लिए लेना चाहिए। फिर सुमिरण से सर्व सुख अपने आप आ जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति भी होती है।
लाडू लावन लापसी, पूजा चढ़े अपार। पूजी पुजारी ले गया, मूरत के मुह छार।।
भावार्थ: कबीर साहेब ने सदियों पहले दुनिया के इस सबसे बड़े घोटाले के बारे में बताया था कि आपका यह सारा माल ब्राह्मण-पुजारी ले जाता है और भगवान को कुछ नहीं मिलता, इसलिए मंदिरों में ब्राह्मणों को दान करना बंद करो ।
जो मम संत सत उपदेश दृढ़ावै (बतावै), वाके संग सभि राड़ बढ़ावै।
कबीर साहेब के दोहे
या सब संत महंतन की करणी, धमर्दास मैं तो से वर्णी।।
भावार्थ: कबीर साहेब अपने प्रिय शिष्य धमर्दास को इस वाणी में ये समझा रहे हैं कि जो मेरा संत सत भक्ति मार्ग को बताएगा उसके साथ सभी संत व महंत झगड़ा करेंगे। ये उसकी पहचान होगी।
राम कहै मेरे साध को, दुःख ना दीजो कोए।
साध दुखाय मैं दुःखी, मेरा आपा भी दुःखी होय।।
हिरण्यक शिपु उदर (पेट) विदारिया, मैं ही मार्या कंश।
जो मेरे साधु को सतावै, वाका खो-दूं वंश।।
Kabir ke Dohe in Hindi
साध सतावन कोटि पाप है, अनगिन हत्या अपराधं।
दुर्वासा की कल्प काल से, प्रलय हो गए यादव।।
भावार्थ: उपरोक्त वाणी में सतगुरु गरीबदास जी साहेब प्रमाण दे रहे हैं कि परमेश्वर कहते हैं कि मेरे संत को दुःखी मत कर देना। जो मेरे संत को दुःखी करता है समझो मुझे दुःखी करता है। जब मेरे भक्त प्रहलाद को दुःखी किया तब मैंने हिरणयकशिपु का पेट फाड़ा और मैंने ही कंश को मारा और जो मेरे साधु को दुःखी करेगा मैं उसका वंश मिटा दूंगा। इसलिए संत को सताने के करोड़ों पाप लगते हैं। जैसे अनगिन (अनंत) हत्याएं कर दी हों।
कबीर, और ज्ञान सब ज्ञानड़ी, कबीर ज्ञान सो ज्ञान।
जैसे गोला तोब का, करता चले मैदान।।
भावार्थ है कि यह तत्वज्ञान इतना प्रबल है कि इसके समक्ष अन्य संतों व ऋषियों का ज्ञान टिक नहीं पाएगा। जैसे तोब यंत्र का गोला जहां भी गिरता है वहां पर सर्व किलों तक को ढहा कर साफ मैदान बना देता है।
आच्छे दिन पाछै गए, सतगुरु से किया ना हेत।
kabir Ke Dohe [Hindi]
अब पछतावा क्या करे, जब चिड़िया चुग गई खेत।।
भावार्थ: प्रमाण मिलने के पश्चात् भी सतसाधना पूर्ण संत के बताए अनुसार नहीं करोगे तो यह अनमोल मानव शरीर तथा बिचली पीढ़ी का भक्ति युग हाथ से निकल जाएगा फिर इस समय को याद करके रोवोगे, बहुत पश्चाताप करोगे। फिर कुछ नहीं बनेगा।
मुस्लिमों को अल्लाह की जानकारी (Kabir ke Dohe Muslmano ke liye)
गरीब, हम ही अलख अल्लाह हैं, कुतुब गोस और पीर।
गरीबदास खालिक धनी हमरा नाम कबीर।।
भावार्थ: कबीर परमात्मा ने बताया कि मैं अल्लाह हूं! मैं (खालिक) संसार का मालिक (धनी) हूँ। मैं कबीर सर्वव्यापक हूँ। अनंत ब्रह्मांडों की रचना मैंने ही की है।

हिन्दू कहूं तो हूँ नहीं, मुसलमान भी नाही
गैबी दोनों बीच में, खेलूं दोनों माही ।।
भावार्थ: कबीर साहब कहते हैं कि मैं न तो हिन्दू हूँ और न ही मुसलमान। मैं तो दोनों के बीच में छिपा हुआ हूँ। इसलिए हिन्दू-मुस्लिम दोनों को ही अपने धर्म में सुधार करने का संदेश दिया। कबीर साहब ने मंदिर और मस्जिद दोनों ही बनाने का विरोध किया क्योंकि उनके अनुसार मानव तन ही असली मंदिर-मस्जिद है, जिसमें परमात्मा का साक्षात निवास है।
हिन्दू मुस्लिम दोनों भुलाने, खटपट मांय रिया अटकी |
जोगी जंगम शेख सेवड़ा, लालच मांय रिया भटकी।।
भावार्थ: हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही आज ईश्वर-पथ से भटक गए हैं, क्योंकि इन्हें कोई सही रास्ता बताने वाला नहीं है। पंडित, मौलवी, योगी और फ़क़ीर सब सांसारिक मोहमाया और धन के लालच में फंसे हुए हैं। वास्तविक ईश्वर-पथ का ज्ञान जब उन्हें खुद ही नहीं है तो वो आम लोंगो को क्या कराएंगे?
उदर बीज कहा था कलमा, कहा सुन्नत एक ताना।
बाप तुर्क मां हिंदवानी, सो क्यों कर मुस्लामाना।।
Kabir Saheb Ji Dohe in Hindi
परमात्मा कबीर साहिब कहते है कि मां के पेट में कलमा कहां था जब आप मां के पेट से आए तो आपकी सुन्नत भी नहीं थी अर्थात बाद में सब क्रियाएं कर दी गईं। आप जी ने पुरुष की तो सुन्नत कर उसे तो मुसलमान बना दिया परंतु मां तो जैसी थी वैसी ही रही अर्थात हिंदू ही रही।
अरस कुरस पर अल्लह तख्त है, खालिक बिन नहीं खाली।
वे पैगम्बर पाख पुरुष थे, साहिब के अब्दाली।।
भावार्थ: गरीब दास जी महाराज कहते है कि मोहम्मद, हजरत मूसा, हजरत ईसा आदि पैगम्बर तो पवित्र व्यक्ति थे तथा ये काल के कृपा पात्र थे, परन्तु जो आसमान के अंतिम छोर (सतलोक) में पूर्ण परमात्मा अल्लाहू अकबर अर्थात कबीर परमेश्वर विराजमान है वह साकार है मनुष्य के समान दिखाई देता है यही अल्लाह है।
हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमाना।
आपस में दोउ लड़ी-लड़ी मुए, मरम न कोउ जाना ।।
भावार्थ: परमेश्वर कबीर जी कहते हैं कि हिन्दू राम के भक्त हैं और तुर्क (मुस्लिम) को रहमान प्यारा है। इसी बात पर दोनों लड़-लड़ कर मौत के मुंह में जा पहुंचे, तब भी दोनों में से कोई सच को न जान पाया।
कलमा रोजा बंग नमाज, कद नबी मोहम्मद कीन्हया,
कद मोहम्मद ने मुर्गी मारी, कर्द गले कद दीन्हया॥
भावार्थ: परमात्मा कबीर कह रहे हैं कि कब मोहम्मद जी ने कलमा, रोजा, बंग पढ़ा और कब मोहम्मद जी ने मुर्गी मारी। जब नबी मोहम्मद जी ने कभी भी ऐसा जुल्म करने की सलाह नहीं दी फिर क्यों तुम निर्दोष जीवो की हत्या कर रहे हो?
गला काटि कलमा भरे, किया कहै हलाल।
साहेब लेखा मांगसी, तब होसी कौन हवाल।।
भावार्थ: जो लोग बेजुबान जानवरों का गला काटकर कहते हैं कि हलाल किया है पर कभी यह नहीं सोचते कि जब वह साहेब (अल्लाहु अकबर) मृत्यु के बाद लेखा जोखा करेगा तब वहां क्या कहेंगे।
जो गल काटै और का, अपना रहै कटाय।
साईं के दरबार में, बदला कहीं न जाय॥
भावार्थ: जो व्यक्ति किसी जीव का गला काटता है उसे आगे चलकर अपना गला कटवाना पड़ेगा। परमात्मा के दरबार में करनी का फल अवश्य मिलता है। आज यदि हम किसी को मारकर खाते हैं तो अगले जन्म में वह प्राणी हमें मारकर खाएगा।
कहता हूं कहि जात हूं, कहा जू मान हमार।
जाका गला तुम काटि हो, सो फिर काटि तुम्हार।।
भावार्थ: मांस भक्षण का विरोध करते हुए कबीर साहेब जी कहते हैं कि मेरी बात मान लो जिसका गला तुम काटते हो वह भी समय आने पर अगले जन्म में तुम्हारा गला काटेगा।
हिंदू-मुस्लिम, सिक्ख-ईसाई, आपस में सब भाई-भाई।
आर्य-जैनी और बिश्नोई, एक प्रभू के बच्चे सोई।।
भावार्थ: कबीर परमेश्वर ने कहा है कि, आप हिंदू-मुस्लिम, सिख-ईसाई, आर्य- बिश्नोई, जैनी आदि आदि धर्मों में बंटे हुए हो। लेकिन सच तो यह है कि आप सब एक ही परमात्मा के बच्चे हो।
वेद कतेब झूठे नहीं भाई, झूठे हैं जो समझे नाहीं ||
भावार्थ है कि चारों वेद, चारों कतेब ( कुरान शरीफ-जबूर-इंजील-तौरेत) गलत नहीं हैं। परंतु जो उनको नहीं समझ सके वे नादान हैं।
कबीर सोई पीर है जो जाने पर पीर,
जो पर पीर न जाने सो काफिर बेपीर।|
भावार्थ: कबीर जी ने कहा था कि सच्चा संत वही है जो सहानुभूति रखने वाला और दूसरों का दर्द समझने वाला हो, जो दूसरों का दर्द नहीं समझता वह पीर यानी संत नहीं हो सकता वह तो काफिर है।
काज़ी बैठा कुरान बांचे, ज़मीन बो रहो करकट की।
हर दम साहेब नहीं पहचाना, पकड़ा मुर्गी ले पटकी ||
kabir Ke dohe in Hindi
भावार्थ: कबीर साहब कहते हैं कि मौलवी और काजी कुरान पढ़ते हैं, लेकिन उस पर पूरी तरह से अमल नहीं करते हैं, या यों कह लीजिये कि उसके अनुसार कर्म नहीं करते हैं। वो हर जीव में परमात्मा को नहीं देख पाते हैं, यही वजह है कि वो मुर्गी-मुर्गा, बकरा-बकरी सहित अन्य कई जीवों को पकड़ते हैं और उन्हें मार के खा जाते हैं। कबीर साहब हर जीव पर दया का भाव रखते हैं और हर जीव के अंदर परमात्मा का निवास मानते हैं, इसलिए उन्होंने जीव हत्या का पुरजोर विरोध किया।
नारी के सम्मान में कबीर साहेब जी के विचार (Kabir Saheb Dohe Nari ke Samman Mai)
कबीर साहेब जी का उद्देश्य समाज को नारी के प्रति सजग और सकारात्मक दृष्टिकोण रखने के लिए प्रेरित करना है। कबीर साहेब जी के लिए प्रत्येक आत्मा महत्वपूर्ण है। कबीर जी ने ही नर-नारी की उत्पत्ति की है। ईश्वर ने इंसानों को अपने जैसा बनाया। उन्होंने उन्हें पुरुष और महिला बनाया। ईश्वर के लिए नर और नारी में कोई भेद नहीं है। परंतु फिर भी पुरुष प्रधान समाज ने नारी को सदा ही दबाया है, नारियों को तिरस्कृत करते हैं।

kabir Ke dohe in Hindi: आज से करीब ढ़ाई सौ वर्ष पहले कबीर साहेब जी गांव छुड़ानी में रहने वाले दस वर्ष के बालक गरीबदास जी से आकर मिले थे उन्हें अपना तत्वज्ञान समझाया और सतलोक दिखाकर वापस शरीर में छोड़ा। उसके बाद गरीबदास जी ने कबीर साहेब जी की कलमतोड़ महिमा (प्रशंसा) लिखी। आपको बता दें कि यही गरीबदास जी परमेश्वर कबीर साहेब जी के ही अवतार थे। यहाँ हम गरीबदास जी महाराज के दोहों के माध्यम से आपको उन नारियों/ माताओं के बारे में बता रहे हैं जिनसे संत और भक्त आत्माएं उत्पन्न हुईं।
गरीब, नारी नरक ना जानिये, सब संतो की खान।
जामे हरीजन उपजै, सोयी रतन की खान ||
भावार्थ: नारी को नरक मत समझो। वह सभी संतों की खान है। नारी के कोख़ से ही सभी महान पुरुषों की उत्पत्ति होती है वो रत्नों की खान है।
गरीब, नारी नारी भेद है, एक मैली एक पाख।
गरीब,जा उदर ध्रुव ऊपजे, जाकी भरियो साख ।।
भावार्थ: गरीब दास जी महाराज कबीर साहेब से प्राप्त ज्ञान के आधार पर कहते हैं कि भक्त ध्रुव को जन्म देने वाली भी एक नारी ही थी। ऐसी माता का हमें बार-बार सम्मान करना चाहिए।
गरीब, कामिनी कामिनी भेद है, एक मैली एक पाख ।
जा उदर प्रहलाद थे जा को जोड़ो हाथ ।।
भावार्थ: भक्त प्रहलाद को भी जन्म देने वाली एक नारी ही थी और ऐसी माताओं को हमें हाथ जोड़कर प्रणाम करना चाहिए ।
गरीब कामिनी कामिनी भेद है एक उज्ज्वल एक गंध ।
जा माता परणाम है, जहां भरतरी गोपीचंद ||
भावार्थ: अपने गुरु वचनों पर मर मिटने वाले गोपीचंद और भरतरी को भी जन्म देने वाली माताएं ही थी ऐसी माताओं को बारंबार प्रणाम ।
गरीब,कामिनी कामिनी भेद है एक हीरा एक लाल ।
दत्त गुसाईं अवतरे, अनुसुइया के नाल ।।
भावार्थ: माता अनुसुइया को हम सती अनुसुइया के नाम से भी जानते हैं ऐसी माता को बारंबार प्रणाम जिनकी कोख से दत्तात्रेय जैसे संत पैदा हुए ।
गरीब कामिनी कामिनी भेद है, एक रोझं एक हंस ।
जनक विदेही अवतरे, धन माता कुल वंश।।
भावार्थ: कबीर परमेश्वर जी (kabir Ke dohe) कहते हैं ऐसी माता के कुल और वंश को बार-बार धन्यवाद जिनकी पुत्री की कोख से जनक जैसे संत, का जन्म हुआ ।
गरीब नारी नारी क्या करै, नारी बहु गुण भेव।
जा माता कुर्बान है जहां ऊपजे सुखदेव।।
भावार्थ: कबीर परमेश्वर जी कहते हैं उस माता की बाल बाल बलिहारी जाऊं जिन्होंने सुखदेव जैसे संत को पैदा किया।
गरीब नारी नारी क्या करें नारी कंचन कूप।
नारी से ऊपजै नामदेव से भूप ।।
भावार्थ: संत नामदेव का बहुत नाम है। उस माता को बार-बार प्रणाम जिससे नामदेव जैसे संत का उदय हुआ अर्थात जन्म हुआ।
गरीब नारी नारी क्या करें नारी भक्त विलास ।
नारी शेती ऊपजे धना भक्त रविदास ।।
भावार्थ: मीराबाई के गुरु संत रविदास जी का जन्म जिस माता से हुआ उस माता को बारंबार प्रणाम कि उस माता ने ऐसे संत को जन्म दिया ।
गरीब, नारी नारी क्या करें नारी कंचन सींध।
नारी से ऊपजे वाजिद और फरीद।।
भावार्थ: पवित्र मुस्लिम धर्म में जन्म लेने वाले दो परम संत राजा वाजिद और बाबा फरीद हुए हैं। वाजिद जी ने परमात्मा प्राप्ति के लिए अपना सारा राज त्याग दिया था और बाबा फरीद ने परमात्मा की प्राप्ति के लिए कड़ा संघर्ष किया, इन दोनों संतों की माताओं को बार-बार प्रणाम।
गरीब,नारी नारी क्या करें नारी में बहु भांत। नारी शेती ऊपजे, शीतलपुरी सुनाथ ।।
गरीब, नारी नारी क्या करें नारी को निरताय । नारी शेती ऊपजे, रामानंद पंथ चलाएं ।।
भावार्थ: आजीवन ब्रह्मचारी रहने वाले रामानंद जी तथा ऐसी महान आत्मा को जन्म देने वाली भी एक नारी ही थी उस माता को बार-बार प्रणाम ।
गरीब, नारी नारी क्या करें नारी नर की खान।
नारी शेती उपजे नानक पद निरबान ।।
भावार्थ: सिख धर्म के प्रवर्तक गुरु नानक देव जी जिन्होंने कबीर परमेश्वर से ज्ञान प्राप्ति के बाद कई आत्माओं का उद्धार किया ऐसे महान संत को जन्म देने वाली एक माता ही थी उसको भी बार-बार प्रणाम।
गरीब,नारी नारी क्या करें,नारी सरगुण बेल।
नारी सेेती ऊपजे, दादू भक्त हमेल।।
भावार्थ: दादू दास जी जिन्होंने कबीर परमेश्वर जी की महिमा का वर्णन किया, का जन्म भी एक माता से हुआ था उनकी माता को बार-बार प्रणाम ।
गरीब,नारी नारी क्या करें नारी का प्रकाश।
नारी सेती ऊपजे, नारद मुनि से दास।।
भावार्थ: प्रसिद्ध मुनि नारद जी जो हमेशा भ्रमण करते रहते हैं उनको भी जन्म देने वाली एक माता ही थी ऐसी नारी को बार-बार प्रणाम।
गरीब, नारी नारी क्या करें नारी निर्गुण नेश।
नारी सेती ऊपजे, ब्रह्मा विष्णु महेश।।
तीन लोक के स्वामी भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश इन भगवानों को भी जन्म देने वाली एक माता ही है इनकी माता दुर्गा को भी बार-बार प्रणाम।
गरीब,नारी नारी क्या करे, नारी मूला माय ।
ब्रह्म जोगनी आदि है, चरण कमल ल्यौ लाए ।।
गरीब, नारी नारी क्या करें नारी बिन के होए।
आदिमाया ओंकार है, देखो सुरति समोय।।
गरीब शब्द सरूपी उतरे, सतगुरु सत्य कबीर।
दास गरीब दयाल हैं, डिगे बधावैं धीर।।
भावार्थ: कबीर साहेब जी ने उन सभी महापुरुषों की माताओं को हाथ जोड़कर प्रणाम किया है जिन की कोख से ऐसे संत और भगत आत्मा उत्पन्न हुए ।
kabir Ke dohe: वर्तमान में सभी माताओं और बहनों से प्रार्थना है कि अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दें। माता द्वारा पोषित बालक ही आगे चलकर वयस्क बनता है। अपने बच्चों को बचपन से ही अच्छे संस्कार व तत्वज्ञान से परिचित करवा कर सतभक्ति के मार्ग पर लगाएं ऐसा करने से आपका नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा साथ ही सब का उद्धार भी होगा। बुराइयों से बचे शांतिपूर्वक निर्मल जीवन जीएं । परमेश्वर कबीर साहेब जी की भक्ति करें। अपने पूर्वजों की तरह बाँट कर खाएं। दूसरे की माँ, बहन, बेटी अपनी ही मानें। परमात्मा कबीर जी कहते हैं:-
पर नारी को देखिए, बहन बेटी के भाव।
यही काम नाश का सहज उपाय।।
भावार्थ: परमात्मा बताते हैं कि पुरुष को अपनी स्त्री (पत्नी) के अतिरिक्त अन्य स्त्रियों में पति पत्नी वाला भावना नहीं रखना चाहिए। परस्त्री को आयु अनुसार माता, बहन या बेटी के भाव से देखें। भक्ति करके काम को सहजता से नाश किया जा सकता है।
निष्कर्ष
अतः सभी मनुष्यों को जाति, धर्म, लिंग से ऊपर उठकर अपने मोक्ष के लिए प्रयास करना चाहिए साथ ही साथ आपस में कोई मतभेद नहीं रखना चाहिए। वर्तमान में कबीर साहेब की शिक्षाओं का प्रचार संत रामपाल जी महाराज कर रहे है। उनसे नामदीक्षा लेकर कबीर साहेब की शिक्षाओं को जीवन में ढाला जा सकता है। नाम दीक्षा लेने के लिए फार्म भरें।
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कबीर जी के ज्ञान को देखकर लगता है कि वो कोई साधारण व्यक्ति नहीं होंगे, साक्षात ईश्वर होंगे क्योंकि ऐसा आज तक जितने भी धर्म गुरू हुए हैं, सभी ने ब्रह्मा, विष्णु, और महेश जी से बड़ा भगवान किसी को नहीं माना लेकिन कबीर जी एक ऐसे संत थे जिन्होंने इन सब से हटकर ज्ञान दिया, ऐसा ज्ञान जो आज तक किसी ने नहीं दिया इससे साफ साफ पता चलता हैं कि कबीर जी ही पूर्ण परमात्मा है क्योंकि ऐसा अनमोल ज्ञान भगवान के अतिरिक्त और कोई नहीं दे सकता।
कबीर-राम रहीमा एक है, नाम धराया दोय।
कहै कबीर दो नाम सुनि, भरम परो मति कोय।।
अनमोल ज्ञान
कबीर गुरु मानुष कर जानतें,ते नर कहिये अन्ध।
होये दुखी संसार में, आगे यम के फंद ।।
कबीर जी कहते हैं जो गुरु की शरण छोड़कर जाता है उस अपराधी आत्मा को तीन लोक में कहीं भी ठिकाना नहीं रहता ।
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Every doha has the conclusion of whole life. I personally feel that if anyone follow the single doha as a guide for their life. It will moves them in right direction all over the life.
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कबीर जी ने बहुत ही गहरा ज्ञान दिया है ऐसी अनमोल वाणी की रचना परमेश्वर ही कर सकते हैं।।
कबीर परमेश्वर हमें समझाते हुए कहते हैं –
“कबीर, काया तेरी है नहीं, माया कहां से होय ।
भक्ति कर दिल पाक से, जीवन है दिन दोय ॥”
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ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 17 में कहा गया है कि कविर्देव शिशु रूप धारण कर लेता है। लीला करता हुआ बड़ा होता है। कविताओं द्वारा तत्वज्ञान वर्णन करने के कारण कवि की पदवी प्राप्त करता है अर्थात् उसे ऋषि, सन्त व कवि कहने लग जाते हैं, वास्तव में वह पूर्ण परमात्मा कविर् (कबीर साहेब) ही है।
पूर्ण ब्रह्म कबीर अविनाशी God’s Place Satlok
पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबीर परमेश्वर) तीसरे मुक्ति धाम अर्थात् सतलोक में रहता है। – ऋग्वेद
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18
कबीर, ये तन विष की बेलड़ी, गुरु अमृत की खान।
शीश दिए जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान।।
यह मानव शरीर विषय-विकारों रुपी विष का घर है। गुरु तत्वज्ञान रुपी अमृत की खान है। ऐसा गुरु शीश दान करने से मिल जाए तो सस्ता जानें। शीश दान अर्थात गुरु दीक्षा किसी भी मूल्य में मिल जाए।
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Kabir is god
कबीर साहेब की अद्भुत अद्वितीय अनमोल बाणी से आत्म ज्ञान का अहसास होता है
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Kabir Saheb ji ke dohe ka yatharth gyan yanhi ha
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जीवन को बेहतर(सादगीपूर्ण) तरीके से जीने के लिए कबीर जी के दोहे बहुत काम आता है।
कबीर साहेब जी इन तमाम दोहों के माध्यम से हमे रहस्यमयी ज्ञान से अवगत करा रहे हैं।
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कबीर साहेब जी के दोहों के द्वारा अनमोल ज्ञान …
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Manushy janm paay kar, nahi ratea hari naam
Jaise kunwa jal bina, banwaya kya kaam
सभी से आग्रह है की सत भक्ति किजीये
सत भक्ति से अनेको लाभ है जानिए अपने ही सद्गृथो मे विदित है चाहे कोई ही धर्म से हो सभी एक ही वाणी प्रकट करते हैं सबका प्रभू मलिक सर्व पापो रोगो दुखो का नाश करने वालाकेवल एक परमपिता पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब की तरफ इशारा कर रहे है ।
सन्त रामपाल जी महाराज उनकी ही सत साधना बताते है ।
इन्ही सन्त से नाम दीक्षा लेकर अपना कल्याण कराओ।
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बहुत ही खूब जानकारी मिली है,मेरे को आज तक पता नहीं था की मनुष्य जन्म किसलिए मिला है।
बहुत अच्छा ज्ञान ।।
पहले तो मैं यही जानता था कि ब्रह्मा, विष्णु, महेश के आगे और कोई भगवान ही नहीं हैं, और धर्मों के विषय में ये नहीं जानता था कि इनके भगवान/अल्लाह/ईशु कौन हैं।सभी को यही कहते हुए सुना कि सबका मालिक एक है लेकिन वो एक मालिक कौन है उसे कोई बता नहीं सका।
जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी ही ऐसे सद्गुरु जी हैं जिन्होंने बताया कि सबका मालिक एक कबीर परमात्मा ही हैं।
कोटि कोटि नमन।
कबीर, मानुष जन्म दुर्लभ है, मिले न बारं-बार।
तरवर से पत्ता टूट गिरे, बहुर ना लागे डार।।
कबीर परमात्मा जी ने समझाया है कि हे मानव शरीरधारी प्राणी! यह मानव जन्म बार-बार नहीं मिलता। इस शरीर के रहते-रहते शुभ कर्म तथा परमात्मा की भक्ति कर, अन्यथा यह शरीर समाप्त हो गया तो आप पुनः मानव शरीर को प्राप्त नहीं कर पाओगे।
कबीर साहेब जी द्वारा इन दोहों के माध्यम से अनमोल ज्ञान…..🙏
कबीर जी के दोहे पढ़ने के बाद लगता है कि सभी को समाज की भलाई के लिए अपने जीवन में उतारने चाहिए ताकि समाज ऊंचाइयों को छुए।
ज्यों तिल माहि तेल है ,ज्यों चकमक में आग।
तेरा साईं तुझ ही में है ,जाग सके तो जाग।।
भावार्थ: कबीर जी हिंदू और मुसलमान दोनों को समझाते हुए कहते हैं कि जैसे तिल के अंदर तेल होता है और आग के अंदर रोशनी होती है ठीक वैसे ही हमारा ईश्वर, अल्लाह हमारे अंदर ही विद्यमान है, अगर ढूंढ सको तो ढूंढ लो।
बहुत अच्छा ज्ञान है संत रामपाल जी महाराज का
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इस ब्लॉग में कबीर परमात्मा के वह सारे दोहे हैं जो आज तक गुप्त छुपे हुए थे हम तो केवल साधारण ही दोहे जानते थे और आज यहां पर हमें अनमोल दोहे मिले हैं जिसमें बहुत गहरा ज्ञान छुपा हुआ है
कोटि-कोटि धन्यवाद
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निश्चित ही यदि सभी वर्तमान का मानव समाज अपने अन्दर के अहंकार को त्याग कर, जाति, धर्म, लिंग से ऊपर उठकर, भेदभाव त्याग कर मोक्ष प्राप्त कर सकता है। वर्तमान में कबीर साहेब की शिक्षाओं का प्रचार साक्षात कबीर साहेब के ही अवतार संत रामपाल जी महाराज कर रहें हैं। उनसे नामदीक्षा लेकर मनुष्य जीवन में सभी प्रकार से दैविक, दैहिक एवं भौतिक आनन्द प्राप्त कर मोक्ष प्राप्त कर सकतें हैं |
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परमेश्वर कबीर साहेब जी का अद्भुद ज्ञान
वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए पूरे विश्व को कबीर परमेश्वर जी का आध्यात्मिक ज्ञान जो संतरामपालजी महाराज के द्वारा बताया जा रहा है उसकी जरूरत है समस्त विश्व को।
#कबीरजी_के_रहस्यमयीदोहे
कबीर साहेब अपने बनी मे कहते है:-
कबीर – राम कृष्ण से कौन बड़ा, उन्हों भी गुरु कीन ।। तीन लोक के वे धनी, गुरु आगे आधीन ||
कबीर परमेश्वर जी हमें समझाना चाहते हैं कि आप राम तथा कृष्ण जी से तो किसी को बड़ा अर्थात समर्थ नहीं मानते तीन लोक के मालिक थे उन्होंने भी गुरु बना कर भक्ति की और मानव जीवन सार्थक किया। इससे सहज में ज्ञान हो जाना चाहिए कि अन्य व्यक्ति अगर गुरु के बिना भक्ति करता है तो जीवन व्यर्थ करता है ।।।
आप जी श्री राम तथा श्री कृष्ण जी से तो किसी को बड़ा नहीं मानते। ये तीन लोक के मालिक (धनी) होकर भी अपने गुरु जी के आगे नतमस्तक होते थे। इसलिए सर्व मानव को गुरु बनाना अनिवार्य है।
#KabirPrakatDiwas 24 June 2021
केवल संतरामपालजी महाराज के आध्यात्मिक ज्ञान वह ताकत है जो पूरे विश्व में एकता स्थापित कर सकते हैं ये धर्म के झगड़ों को खत्म कर सकते हैं।
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कबीर साहिब जी के दोहे मानव समाज के लिए मार्गदर्शन है। सर्वग्रन्थों का सार है ,जीवन का आधार है। मानवजीवन के चर्मोत्कर्ष की प्राप्ति का सूचक है।
ऐसी वाणियां एक अमूल्य धरोहर है जिसे नैतिक शिक्षा में सम्मिलित किया जाना चाहिए।।
बहुत ही अच्छा explain किया है
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दोहे के साथ वास्तविक ओर गूढ़ अर्थ पढ़ने को मिला। बहुत अच्छा लगा।
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अनमोल ज्ञान है, दोहा के माध्यम से पूर्ण परमात्मा दुःखो का महासागर इकीस ब्रह्मांड में से सुडाकर सतलोक लेजाने का मार्ग बताया है।
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कबीर साहेब की वाणियों का अद्भुत संकलन व निर्णायक पंक्ति।
बहुत बहुत धन्यवाद।
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परमेश्वर कबीर जी साधक के पाप कर्म दंड काटकर आयु भी बढ़ा देते हैं प्रमाण के लिए देखिए यजुर्वेद।
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कबीर, काया तेरी है नहीं, माया कहाँ से होय।
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कबीर जी के ज्ञान को देखकर लगता है कि वो कोई साधारण व्यक्ति नहीं होंगे, साक्षात ईश्वर होंगे क्योंकि आज तक जितने भी धर्म गुरू हुए हैं, सभी ने ब्रह्मा, विष्णु, और महेश जी से बड़ा भगवान किसी को नहीं माना लेकिन कबीर जी एक ऐसे संत थे जिन्होंने इन सब से हटकर ज्ञान दिया, ऐसा ज्ञान जो आज तक किसी ने नहीं दिया इससे साफ साफ पता चलता हैं कि कबीर जी ही पूर्ण परमात्मा है क्योंकि ऐसा अनमोल ज्ञान भगवान के अतिरिक्त और कोई नहीं दे सकता।
गुण तीनों की भक्ति में यह भूल पढ़ो संसार।
कहें कबीर निज नाम बिना, कैसे उतरे पार।।
कबीर कुआ एक है, पानी भरे अनेक। बर्तन में ही भेद है, पानी सब में एक
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कबीर कुआ एक है, पानी भरे अनेक। बर्तन में ही भेद है, पानी सब में एक
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कबीर साहेब जी ही पूर्ण परमात्मा है जिनका प्रमाण प्रतेक धर्मो के ग्रंथो में मिलता है
बहुत ही अच्छा वर्णन कबीर साहेब जी के दोहों का।
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और बेटा बेटी एक समान जो संत जी ने समझाया बहुत ही लाजवाब।
सारे समाज को संत रामपाल जी महाराज जी के विचार सुनना व उसपर विचार करना चाहिए।
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कबीर,, और ज्ञान सब ज्ञानडी,, कबीर ज्ञान सो ज्ञान,, जैसे गोला तोब का,, करता चले मैदान।
कबीर जी तो समाज सुधारक और कुप्रथाओं का विरोध करने वाले महापुरस
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ऊपर लिखे दोहो से स्पष्ट है कि कबीर जी ही परमात्मा है,जिन्होंने लोगो को समझाने के लिए कवि के रूप म अपनी वाणियो को गा गा के तत्वज्ञान समझाया।नमन।।
कबीर साहेब द्वारा दिए हुए ज्ञान के आधार पर यह प्रतीत होता है कि सृष्टि की रचना करने वाला परमेश्वर कबीर ही है
कबीर-मुसलमान मारै करदसो, हिंदू मारे तरवार।
कहै कबीर दोनूं मिलि, जैहैं यमके द्वार।।
Real dohe of Kabir saheb ji
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अनमोल ज्ञान
🌿कबीर परमेश्वर ने कहा है 🌿
दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोए। जो सुख में सुमिरन करे ,तो दुख काहे को होय।।
👉हम दुख में परमात्मा को याद करते हैं ,सुख में नहीं करते।। यदि हम सुख में परमात्मा याद करते तो दुःख आएगा ही नहीं
अदभुत ज्ञान का भंडार है, जो, कबीर साहेबजी के ग्रंथो मे है, जो आजतक नहीं जान पाए गहराई से,.. पर मालिक ने समझ ने का मौका अब दिया जब समझा तो.. आँखों से अश्रुओं की धारा बह निकली,, कहा छुपा हुआ था ये ज्ञान … अदभुत,… है
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय ।
जो मन देखा आपना, मुझ से बुरा न कोय ।
कबीर परमात्मा के धरती पर अवतार सन्त रामपाल जी महाराज हैं।जिनको कबीर साहेब जी ने पूरा अधिकार देकर मानव जाति के कल्याण हेतु भेजा गया🙏🙏
बहुत ही अच्छा लगा दोहा पढ़ कर
संत रामपाल जी महाराज जी द्वारा बताए तत्व ज्ञान से पूरे विश्व में सतयुग जैसा माहौल होगा,,,आज भी उनके द्वारा बताए तत्व ज्ञान की रोशनी से समाज से दहेज प्रथा,कन्या भ्रूण हत्या,नशा,चोरी,ठगी,जारी,रिश्वत खोरी आदि अन्य बहुत सी बुराइयां समाज में जड़ से ख़तम हो रही है,,,
बुद्धिमान को चाहिए कि सोच-विचार कर भक्ति मार्ग अपनांए क्योंकि मनुष्य जन्म अनमोल है, यह बार-बार नहीं मिलता।
कबीर साहेब कहते हैं कि :-
कबीर मानुष जन्म दुर्लभ है, मिले न बारम्बार। तरूवर से पत्ता टूट गिरे, बहुर न लगता डारि।
सारे दोहे समझाने के बाद में मुझे यकीन हो गया हैं की पूर्ण परमेश्वर केवल कबीर साहेब जी ही हैं
24
कबीर, परनारी को देखिये,
बहन-बेटी के भाव।
कह कबीर काम नाश का,
यही सहज उपाय॥
अर्थ – परस्त्रीला आपली आई, मुलगी किंवा बहिण, या भावनेने बघितल्याने आपल्या मनातील विकार नष्ट होतील व हाच काम नष्ट करण्याचा सहज उपाय आहे.
जीव हमारी जाति है, मानव धर्म हमारा ।
हिन्दु मुसलिम सिक्ख ईसाई, धर्म नहीं कोई न्यारा ।।
वेदों में प्रमाण है कबीर साहेब भगवान है
Everything is right.
Sant Rampal Ji Maharaj is the only real Guru in the world.
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कबीर साहेब द्वारा बताए गए ज्ञान को संत रामपाल जी महाराज ने हमें सही सही बताया है और पूर्ण परमात्मा की सही जानकारी हमें शास्त्रों से प्रमाणित करके बताई है,
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Very nice dohe