July 27, 2024

Devshayani Ekadashi 2024 : देवशयनी एकादशी पर जानिए पूर्ण परमात्मा की सही पूजा विधि

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Last Updated on 12 July 2024 IST: आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष एकादशी यानी देवशयनी एकादशी इस वर्ष (Devshayani Ekadashi 2024) 17 जुलाई, बुधवार को है। लोकवेद के अनुसार ऐसी मान्यता है कि इस दिन से 4 महीने तक भगवान विष्णु आराम करते हैं। जानिए देवशयनी एकादशी से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य, भगवान विष्णु की सही पूजा एवं सुख प्राप्ति विधि। जानिए क्या है गीता में जागरण को लेकर सन्देश, तत्वदर्शी सन्त मोक्षदाता, सुखदाता हैं एवं भाग्य में न लिखा हो तो भी साधक को सभी सुख, आयु एवं समृद्धि उपलब्धि प्रदान कराते हैं।

  • इस वर्ष देवशयनी एकादशी 17 जुलाई, बुधवार को है।
  • लोकवेद के अनुसार ऐसी मान्यता है कि देवशयनी एकादशी से अगले 4 महीने तक भगवान विष्णु करते हैं विश्राम
  • जानें भगवान विष्णु को प्रसन्न करने का उपाय
  • श्रीमद्भगवद्गीता में जानें व्रत के विषय में अति महत्वपूर्ण सन्देश
  • भाग्य में न लिखा हो तो भी तत्वदर्शी सन्त सभी सुख, आयु एवं समृद्धि उपलब्ध कराते हैं

वैसे तो वर्ष में कुल चौबीस एकादशियाँ होती हैं किंतु हिन्दू धर्म में आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि देवशयनी एकादशी से आगे के चार महीनों तक भगवान विष्णु विश्राम करने चले जाते हैं। इसके पश्चात भगवान विष्णु को उठाया जाता है जिसे देवउठनी एकादशी कहते हैं। आज के दिन व्रतादि कर्मकांड एवं पूजन लोकवेदानुसार किया जाता है।

इसके पीछे कथा यह बताई जा रही है कि भगवान विष्णु इस तिथि से चार महीने तक पाताल के राजा बलि के द्वार पर निवास करते हैं एवं कार्तिक शुक्ल एकादशी को वापस लौटते हैं। इस दौरान लोग शुभ कार्य प्रारम्भ करना वर्जित समझते हैं किंतु वास्तविक कथा कुछ और ही है जो आगे वर्णित है।

भक्त प्रह्लाद का पुत्र बैलोचन हुआ और बैलोचन का पुत्र राजा बली हुआ। जानकारी के लिए याद रखें कि एक इंद्र का शासनकाल 72 चतुर्युग का होता है। इसके पश्चात इंद्र की मृत्यु हो जाती है। किन्तु इसी बीच यदि पृथ्वी पर किसी ने भी 100 अश्वमेघ यज्ञ निर्बाध पूरे कर लिए तो उसे इंद्र का शासन मिल जाता है। राजा बली ने 99 यज्ञ निर्बाध पूरे कर लिए थे। राजा इंद्र कुछ नहीं कर सके। 100वीं यज्ञ के समय राजा इंद्र का शासन डोल गया और वह चिंतित होकर भगवान विष्णु के पास पहुँचे। विष्णु जी ने इंद्र को निर्भय होकर राज्य करने का वचन दिया किन्तु उपाय सोचने लगे एवं पूर्ण परमेश्वर से प्रार्थना करने लगे। इतने में सर्व सृष्टिकर्ता एवं पालनकर्ता पूर्णब्रह्म कबीर साहेब बामन रूप में राजा बली के सामने आए। राजा बली ने सम्मानपूर्वक उन्हे बिठाया और तब बामन रूप में परमात्मा ने राजा से दक्षिणा का वचन लिया कि वे जो मांगेंगे उन्हें मिलेगा।

■ Also Read: Yogini Ekadashi: योगिनी एकादशी पर जाने क्या करें और क्या नहीं?

राजा बली के गुरु शुक्राचार्य ने राजा से प्रतिज्ञा भंग करने के लिए कहा। लेकिन राजा ने कहा जब स्वयं परमात्मा दान लेने द्वार पर आए हो तो मना नहीं करना चाहिए। बामन अवतार में परमात्मा ने राजा से दान में तीन डग (तीन कदम) जमीन के मांगे। जब राजा बली ने हामी भरी तब परमात्मा अपने विशाल रूप में आये तथा एक डग में पूरी धरती, दूसरे डग में सारा आकाश नाप लिया तीसरे डग के लिए स्थान मांगा। तब राजा बली ने कहा भगवन सन्तों ने शरीर को पिंड एवं ब्रह्मण्ड की संज्ञा दी है आप अपना तीसरा कदम मेरे ऊपर रख लें। इतना कहकर राजा बली लेट गए और परमात्मा ने उनके शरीर पर तीसरा पैर रखकर दान लिया।

राजा बली द्वारा दिए दान से प्रसन्न होकर परमात्मा ने उसे सत्संग में तत्वज्ञान सुनाया और बताया कि 72 चतुर्युग की आयु के बाद राजा इंद्र गधे की योनि प्राप्त करते हैं। परमात्मा ने राजा बलि को पाताल लोक का राज्य दिया एवं इंद्र का शासन पूरे होने के बाद उसे इंद्र का राज्य देने का भी वचन दिया। इधर तत्कालीन इंद्र पद पर विराजमान राजा की प्रसन्नता की कोई सीमा नही रही और वे भगवान विष्णु को धन्यवाद करने चल पड़े। भगवान विष्णु तब भी सोच विचार ही कर रहे थे कि क्या किया जाए इतने में इंद्र ने आकर उनकी जयजयकार की एवं धन्यवाद किया जिसे भगवान विष्णु ने परमात्मा की महिमा समझा। आजतक हम बामन रूप का श्रेय भगवान श्री विष्णु को देते आये हैं जबकि सच्चाई इसके बिल्कुल उलट है। अब आप स्वयं सोचिए जब भगवान विष्णु गए ही नहीं बामन अवतार में तो देवशयनी एकादशी किस बात की? और भगवान विष्णु जब 4 माह विश्राम करेंगे तो सृष्टि कौन चलाएगा?

वेदों का सार कही जाने वाली गीता में व्रत के विषय में महत्वपूर्ण सन्देश अध्याय 6 के श्लोक 16 में दिया है। इस श्लोक के अनुसार भक्ति न तो अत्यधिक खाने वाले की सफल होगी और न ही व्रत रखने वालों की, न अधिक सोने वालों की सफल होगी न ही बिल्कुल न सोने वालों की सफल होगी। अतएव याद रहे कि अध्याय 16 श्लोक 23 के अनुसार हमें शास्त्रानुसार कर्म ही करने चाहिए अन्यथा न सुख की प्राप्ति होगी न सिद्धि की और न ही परमगति की। व्रत करें या नहीं इस दुविधा का समाधान गीता अध्याय 16 का श्लोक 24 करता है जिसमें कहा गया है कि कर्तव्य एवं अकर्तव्य की अवस्था में शास्त्र ही प्रमाण हैं।

अब यह हमारे समक्ष स्पष्ट है कि हठयोग, व्रत, जागरण गीता के ज्ञान के विरुद्ध है। व्रत शास्त्र विरुद्ध ही है तथा याद रखें कि सृष्टि का धारण पोषण करने वाला कोई और ही है जिसकी शरण में गीता अध्याय 18 श्लोक 66 में जाने के लिए कहा है। अतः कोई शयन करे या गहन निद्रा, सृष्टि का पोषण तो कबीर परमात्मा के हाथों में है।

भगवान विष्णु त्रिगुणमयी शक्ति में से एक हैं। भगवत गीता में केवल त्रिगुण उपासना करने वाले मनुष्यों में नीच, मूढ़ और दूषित कर्म करने वाले कहे गए हैं (अध्याय 7 श्लोक 14-15)। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि भगवान विष्णु की उपासना ही नहीं करनी है। वे आदरणीय हैं एवं तीन लोकों के स्वामी हैं। इनकी उपासना की क्या विधि है यह तत्वज्ञान जानने से पता होगा और तत्वज्ञान तत्वदर्शी सन्त बताएँगे। इसलिए ही गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में तत्वदर्शी सन्तों की शरण में जाने के लिए कहा है। पूरे विश्व में एकमात्र तत्वदर्शी सन्त रामपाल जी महाराज हैं जो गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में वर्णित ओम् तत् सत् सांकेतिक अक्षरों के वास्तविक मन्त्र को बताते हैं। 

यह भी जानें – क्या सर्वोच्च भगवान कृष्ण हैं?

अति महत्वपूर्ण- सन्तों ने शरीर को पिंड की संज्ञा दी है। इसी पिंड में सभी देवता विभिन्न कमलों में निवास करते हैं। इन देवताओं के मनमाने मन्त्र (भगवते वासुदेवाय नमः, राधे राधे, राम राम, सीताराम) वेदों और गीता में वर्णित नही होंने के कारण शास्त्रविरुद्ध हैं और लाभ नहीं दे सकते। तत्वदर्शी सन्त सही मन्त्र विधि बताते हैं जिससे ये न केवल सभी देवताओं के स्तरों का लाभ साधक को देते हैं बल्कि साधक के लिए मोक्ष का मार्ग भी सुगम कर देते हैं।

वर्तमान में एकमात्र तत्वदर्शी सन्त रामपाल जी महाराज हैं। सन्त रामपाल जी ने सभी धर्मों के शास्त्रों के गूढ़ अर्थ सरल करके समझाए हैं। आज हम शिक्षित हैं हमें अपने शास्त्रों के अनुसार तत्वदर्शी सन्त की पहचान स्वयं करनी चाहिए तथा बिना विलंब किये तत्वदर्शी सन्त की शरण में जाना चाहिए। मनुष्य का जन्म अति दुर्लभ है और उससे भी अधिक दुर्लभ है पूर्ण सन्त की शरण। अभी मनुष्य जन्म भी है और तत्वदर्शी सन्त भी हैं अतः अवसर न गंवाते हुए अपना जन्म सफल करें। तत्वदर्शी सन्त मोक्षदाता हैं, सुखदाता हैं एवं भाग्य में न लिखा हो तो भी साधक को सभी सुख, आयु एवं समृद्धि उपलब्धि प्रदान करने की विधि बताते हैं। पूर्ण सन्त परमेश्वर के प्रतिनिधि होते हैं। 

Devshayani Ekadashi Special

लख बर सूरा झूझही, लख बर सावंत देह |

लख बर यति जिहान में, तब सतगुरु शरणा लेह ||

अर्थात लाखों बार शूरवीर, लाखों बार सावंत देह (घुटनो के नीचे हाथ वाला पुण्यात्मा होता है ऐसा व्यक्ति सावंत देह वाला कहा जाता है), लाखों बार जति (केवल अपनी पत्नी तक या ब्रह्मचारी) बनने के बाद एक बार सतगुरु यानी पूर्ण तत्वदर्शी सन्त की शरण मिलती है। समय न गंवाएं, समय के महत्व को पहचानें एवं नामदीक्षा लें। अधिक जानकारी के लिए सतलोक आश्रम यूट्यूब चैनल पर सत्संग सुने। 

Q.1 इस साल देवशयनी एकादशी कब है?

Ans. इस साल देवशयनी एकादशी 17 जुलाई, दिन बुधवार को है।

Q.2 देवशयनी एकादशी किसे समर्पित है?

Ans. लोकवेद के अनुसार देवशयनी एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित है।

Q.3 देवशयनी एकादशी को अन्य किन-किन नामों से जाना जाता है?

Ans. आषाढ़ी एकादशी, पद्मा एकादशी, हरिशयनी एकादशी।

Q.4 देवशयनी एकादशी हिन्दू पंचांग के अनुसार किस माह में पड़ती है?

Ans. हिन्दू पंचांग के अनुसार देवशयनी एकादशी आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है।

Q.5 किस एकादशी को भगवान विष्णु सोने जाते हैं?

Ans. लोकवेद के अनुसार देवशयनी एकादशी को भगवान सोने जाते हैं।

Q.6 देवशयनी एकादशी क्यों मनाई जाती है?

Ans. लोकवेद अनुसार ऐसा माना जाता है कि देवशयनी एकादशी पर व्रत करने से सुख, शान्ति और समृद्धि प्राप्त होती है, परन्तु वास्तिविकता इससे भिन्न है। सुख-समृद्धि तथा पूर्ण मोक्ष की प्राप्ति सिर्फ शास्त्रानुकूल साधना से सम्भव है जो कि वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज द्वारा साधक समाज को दी जा रही है।

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