October 13, 2024

इन महापुरुषों को मिले कबीर भगवान

Published on

spot_img

Last Updated on 23 May 2024 IST | वेदों में प्रमाण है कि परमेश्वर प्रत्येक युग में हल्के तेजपुंज का शरीर धारण करके अपने निजलोक से गति करके आता है एवं अच्छी आत्माओं को मिलता है। उन्हें तत्वज्ञान सुनाता है एवं यथार्थ भक्ति बताता है। आज हम जानेंगे कि पूर्ण परमेश्वर कविर्देव किस किस आत्मा को मिले। कबीर परमात्मा चारों युगों में इस पृथ्वी पर सशरीर प्रकट होते हैं। अपनी जानकारी स्वयं ही देते हैं। प्रत्येक युग में आने वाले परमात्मा सतयुग में ‘सत सुकृत’ नाम से, त्रेतायुग में ‘मुनींद्र’ नाम से, द्वापरयुग में ‘करुणामय’ नाम से तथा कलयुग में कबीर नाम से प्रकट होते हैं। कबीर साहेब ने अपनी वाणी में बताया है-

सतयुग में सत सुकृत कह टेरा, त्रेता नाम मुनींद्र मेरा |
द्वापर में करुणामय कहाया, कलयुग नाम कबीर धराया ||

आदरणीय सन्त गरीबदासजी महाराज जी की वाणी है:

गरीब, सतगुरु पुरुष कबीर हैं, चारों युग प्रवान ।
झूठे गुरुवा मर गए, हो गए भूत मसान ।।

आइए जानते हैं किस किसको मिले परमात्मा

“यहां केवल कलयुग में परमात्मा कबीर जी की लीलाओं का वर्णन करेंगे जिसमें कलयुग की पुण्य आत्माओं को आकर कबीर परमेश्वर मिले”

आदरणीय धर्मदास साहेब जी को मिले परमेश्वर कबीर

श्री धर्मदास जी बनिया जाति से थे। वे बांधवगढ़, मध्य प्रदेश के रहने वाले बहुत धनी व्यक्ति थे। उनको भक्ति की प्रेरणा बचपन से ही थी जिस कारण से एक रूपदास नाम के वैष्णव संत को गुरु धारण किया था। हिंदू धर्म में जन्म होने के कारण संत रूपदास जी श्री धर्मदास जी को ब्रह्मा जी, विष्णु जी तथा शिव जी की भक्ति करने के लिए कहते थे। गुरु रूपदास जी द्वारा बताई भक्ति साधना श्री धर्मदास जी पूरी आस्था के साथ किया करते थे। एक समय गुरु रूपदास जी की आज्ञा लेकर धर्मदास जी मथुरा नगरी में तीर्थ दर्शन तथा स्नान करने तथा गिरिराज गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने के लिए गए थे। परम अक्षर ब्रह्म पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब स्वयं मथुरा में प्रकट हुए। एक जिंदा महात्मा की वेशभूषा में धर्मदास जी से मिले।

जब श्री धर्मदास जी ने उस तीर्थ तालाब में स्नान किया जिसमें श्री कृष्ण जी बाल्यकाल में स्नान किया करते थे तब फिर उसी जल से एक लोटा भरकर लाए व भगवान श्री कृष्ण जी की पीतल की मूर्ति के चरणों पर डालकर दूसरे बर्तन में डालकर चरणामृत बनाकर पिया। जिंदा पीर के रूप में परमात्मा थोड़ी दूरी पर बैठे यह देख रहे थे। धर्मदास जी को ज्ञात था कि एक मुसलमान संत मेरी भक्ति क्रियाओं को बहुत ध्यान पूर्वक देख रहा है लगता है इसको हम हिंदुओं की साधना मन भा गई है। धर्मदास जी श्रीमद्भागवत गीता का पाठ कुछ ऊंचे स्वर में करने लगे तथा हिंदी का अनुवाद भी पढ़ने लगे।

परमात्मा उठकर धर्मदास जी के निकट आकर बैठ गए तब धर्मदास जी को अपना अनुमान सत्य लगा कि वास्तव में इस जिंदा भेष धारी बाबा को हमारे धर्म का भक्ति मार्ग अच्छा लग रहा है। इसलिए उस दिन उन्होंने गीता के कई अध्याय पढ़े तथा उनका अर्थ भी सुनाया। जब धर्मदास जी अपना दैनिक भक्ति कर्म कर चुके तब परमात्मा ने कहा कि महात्मा जी आपका शुभ नाम क्या है? कौन सी जाति से हैं? तथा आप जी कहां के निवासी हैं? व किस धर्म से जुड़े हैं? कृपया बताने का कष्ट करें मुझे आपका ज्ञान बहुत अच्छा लगा मुझे भी कुछ भक्ति ज्ञान सुनाइए आपकी अति कृपा होगी।

धर्मदास जी ने उत्तर में अपनी सारी जानकारी दी और कहा मैं विष्णुपंथ से दीक्षित हूं, हिंदू धर्म में जन्मा हूं। मैंने पूरे निश्चय के साथ अच्छी तरह ज्ञान समझ कर वैष्णव पंथ से दीक्षा ली है मेरे गुरुदेव श्री रूप दास जी हैं एवं अध्यापन ज्ञान से परिपूर्ण मैं अन्य किसी की बातों में आने वाला नहीं। दोनों के बीच प्रश्नोत्तरी होती है, परमात्मा प्रश्न करते हैं धर्मदास जी उत्तर देते हैं। परमात्मा कहते हैं कि गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि उस ज्ञान को तू उन तत्वदर्शी संतो के पास जाकर समझ। उनको दंडवत प्रणाम करने से कपट छोड़कर नम्रता पूर्वक प्रश्न करने से तत्वदर्शी संत तुझे तत्व ज्ञान का उपदेश करेंगे।

परमात्मा कबीर साहेब ने धर्मदास जी से प्रश्नोत्तरी में शास्त्रों से कई प्रश्न पूछे। रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी, तमगुण शिव जी के आदि-अंत के बारे में बताया व इनकी वास्तविक स्थिति से शास्त्रों के ही प्रमाणों से परिचित कराया। धर्मदास जी ने मानने से इंकार कर दिया और तब जिंदा महात्मा रूप में परमात्मा अंतर्ध्यान हो गए। कुछ समय पश्चात धर्मदास जी को लगा कि जिंदा महात्मा ने तो शास्त्रों से उदाहरण दिए थे। वे मन ही मन अपने को कोसने लगे व पुनः उस महात्मा का दर्शन पाने की अर्जी करने लगे। तीसरे दिन पुनः परमात्मा ने उन्हें दर्शन दिए एवं धर्मदास जी को तत्वज्ञान समझाया। धर्मदास जी ने सोचा कि पहले मैं मण्डलेश्वरों से पूछ लूँ। जिंदा बाबा धर्मदास जी के मन की बात जानकर पुनः अंतर्ध्यान हो गए।

तब धर्मदास सभी सन्तों, आचार्यों, मण्डलेश्वरों के पास जाकर थक गए किन्तु तत्वज्ञान नहीं मिला, वे बुरी तरह रोने लगे और सोचने लगे हे जिंदा वेशधारी परमात्मा आप एक बार और दर्शन दे दो। बड़ी भूल हो गई है। किसी के समक्ष तत्वज्ञान नहीं है। किन्तु इस बार भी धर्मदास सत्संग सुनते हुए अंत में बोल पड़े कि हे जिंदा आपको बोलने की सभ्यता नहीं है। आपकी जली-भुनी बातें अच्छी नहीं लगतीं। परमात्मा अंतर्ध्यान हो गए।

अब जब चौथी बार परमेश्वर कबीर अंतर्ध्यान हो गए तो धर्मदास को भारी भूल का अहसास हुआ। वे रोते रोते अपने घर बांधवगढ़ की ओर वापस चल पड़े। उस दिन फिर वृंदावन में धर्मदास जी से परमात्मा की वार्ता हुई थी। इस प्रकार कुल छः बार कबीर परमेश्वर जी अंतर्ध्यान हुए तब जाकर धर्मदास जी को अक्ल आई।

गरीबदास जी ने अपनी अमृतवाणी में कहा है-

तहां वहां रोवत है धर्मनी नागर, कहां गए मेरे सुख के सागर |
अति वियोग हुआ हम सेती, जैसे निर्धन की लुट जाय खेती |
हम तो जाने तुम देह स्वरूपा, हमारी बुद्धि अंध गहर कूपा |
कल्प मारे और मन में रोवै, दशों दिशा कूं वो मगह जोहै |
बेग मिलो करहूं अपघाता, मैं ना जीवूं सुनो विधाता |

तो इस प्रकार धर्मदास जी दुखी हो गए। सदा रोते रहते और खाना पानी नाममात्र रह गया। धर्मदास जी ने परमेश्वर के मुंह से सुन रखा था कि वे धर्म-भन्डारे में अवश्य जाते हैं। धर्मदास जी ने तीन दिन का भंडारा किया। सबसे ज्ञान चर्चा होती रही किन्तु साधुओं से मिले उत्तरों से धर्मदास समझ जाते कि ये परमेश्वर नहीं हैं। जब तीसरे दिन दोपहर तक परमात्मा नहीं आये तब धर्मदास जी ने आत्महत्या की ठानी। तब परमेश्वर जिंदा वेशभूषा में कदम्ब के वृक्ष के नीचे धर्मदास जी को दिखाई दिए। उन्हें देखकर धर्मदास जी दौड़कर गए और उनसे लिपट गए। अपनी गलती की क्षमा मांगी और कभी गलती न करने का वचन दिया। जिंदा रूप में परमेश्वर कबीर ने उन्हें अपनी शरण में लिया एवं नामदीक्षा दी।

■ यह भी पढ़ें: कलयुग में किस किस को मिले कबीर परमेश्वर? 

आदरणीय धर्मदास साहेब जी, बांधवगढ़ मध्य प्रदेश वाले, जिनको पूर्ण परमात्मा सतलोक लेकर गए और अपनी वास्तविक स्थिति से परिचित कराया। तत्वज्ञान समझाया। वहाँ सतलोक में दो रूप दिखा कर जिंदा वाले रूप वाले परमात्मा, पूर्ण परमात्मा वाले सिंहासन पर विराजमान हो गए तथा आदरणीय धर्मदास साहेब जी को कहा कि मैं ही काशी (बनारस) में नीरू-नीमा के घर गया हुआ हूँ। आदरणीय धर्मदास साहेब जी ने पवित्र कबीर सागर, कबीर साखी, कबीर बीजक नामक सद्ग्रन्थों से आँखों देखे तथा पूर्ण परमात्मा के पवित्र मुख कमल से निकले अमृत वचन रूपी विवरण की रचना की।

आदरणीय दादू साहेब जी को मिले पूर्ण परमात्मा

दादू साहेब जी (1544-1603 ई.) हिन्दी के भक्तिकाल में ज्ञानाश्रयी शाखा के प्रमुख सन्त कवि थे। इनके 52 पट्टशिष्य थे। दादू के नाम से ‘दादू पंथ’ चल पड़ा। ये अत्यधिक दयालु थे। दादू जी हिन्दी, गुजराती, राजस्थानी आदि कई भाषाओं के ज्ञाता थे। दादू जी का जन्म फाल्गुनी सुदी 8 गुरुवार 1601 वि.( 1544 ईस्वी ) में भारतवर्ष के गुजरात राज्य के अहमदाबाद नगर में हुआ था। कहा जाता है कि लोदी राम नामक ब्राह्मण को साबरमती नदी में बहता हुआ एक बालक मिला। अधेड़ आयु के उपरांत भी लोदीराम के कोई पुत्र नहीं था जिसकी उन्हें सदा लालसा रहती थी। लोदीराम ब्राह्मण ने दादू का पालन-पोषण किया।

आदरणीय दादू साहेब जी जब सात वर्ष के बालक थे तब पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी जिंदा महात्मा के रूप में मिले तथा सत्यलोक लेकर गए। वहाँ सर्व लोकों व अपनी स्थिति से परिचित करवाया एवं पुनः पृथ्वी पर वापस छोड़ा। तीन दिन तक दादू जी बेहोश रहे। होश में आने के पश्चात् परमेश्वर की महिमा की आँखों देखी बहुत-सी अमृतवाणी उच्चारण की।

जिन मोकूं निज नाम दिया, सोई सतगुरु हमार। 

दादू दूसरा कोई नहीं, कबीर सिरजनहार।।

दादू नाम कबीर की, जे कोई लेवे ओट।

ताको कबहूं लागै नहीं, काल वज्र की चोट।।

केहरी नाम कबीर है, विषम काल गजराज।

दादू भजन प्रताप से, भागै सुनत आवाज।।

अब हो तेरी सब मिटे, जन्म-मरण की पीर।

श्वांस-उश्वांस सुरमले दादू नाम कबीर।।

मलूकदास जी (अरोड़ा) वाले को मिले कबीर परमात्मा

42 साल की उम्र में मलूक दास जी को भी कबीर परमात्मा जिंदा महात्मा के रूप में मिले व सत्यलोक लेकर गए। अपनी वास्तविक स्थिति से परिचय कराया एवं अपनी शरण में लिया। मलूक दास जी ने अपनी वाणी में इसका वर्णन किया है।

जपो रे मन सतगुरु नाम कबीर ।
जपो रे मन परमेश्वर नाम कबीर ।
एक समय गुरु बंसी बजाई कालंद्री के तीर ।
सुर-नर मुनि थक गए रुक गया बहता नीर।

आदरणीय सन्त गरीब दास जी (गांव छुड़ानी, झज्जर वाले)

गरीब दास महाराज का जन्म बैशाख पूर्णिमा के दिन संवत 1774 (सन 1717) को चौधरी बलराम धनखड़ के यहाँ हुआ था। इनकी माता का नाम रानी था। इनके पिता बलराम धनखड़ अपनी ससुराल छुड़ानी (रोहतक) में अपना गाँव करौंथा छोड़कर आ बसे थे। आपके नानाजी का नाम चौधरी शिवलाल था वे अथाह सम्पति के मालिक थे। उनके घर कोई लड़का नहीं हुआ था। केवल एक लड़की रानी थी जिसका विवाह करौथा निवासी चौधरी हरदेव सिंह धनखड़ के पुत्र बलराम से कर दिया। श्री बलराम अपने ससुर शिवलाल के कहने पर अपना गाँव करौंथा छोड़कर गाँव छुडानी में घर जमाई बन कर रहने लगे। तब रानी से एक रत्न पैदा हुए। जिसका नाम गरीबदास रखा गया।

आदरणीय गरीबदास साहेब जी को भी परमात्मा कबीर साहेब जी सशरीर जिंदा रूप में मिले। आदरणीय गरीबदास साहेब जी अपने नला नामक खेतों में अन्य साथी ग्वालों के साथ गाय चरा रहे थे। जो खेत कबलाना गाँव की सीमा से सटा है। वहां कबीर साहेब आये और उन्हें मिले। ग्वालों ने जिन्दा महात्मा के रूप में प्रकट कबीर परमेश्वर से आग्रह किया कि आप खाना नहीं खाते हो तो दूध ग्रहण करो क्योंकि परमात्मा ने कहा था कि मैं अपने गाँव से खाना खाकर आया हूँ। परन्तु ग्वालों के अधिक आग्रह पर परमेश्वर कबीर जी ने कहा कि मैं कुँआरी गाय का दूध पीता हूँ। बालक गरीबदास जी ने एक कुँआरी गाय को परमेश्वर कबीर जी के पास लाकर कहा कि बाबा जी यह बिना ब्याई (कुँआरी) गाय कैसे दूध दे सकती है? तब कविर्देव (कबीर परमेश्वर) ने कुँआरी गाय अर्थात् बच्छिया की कमर पर हाथ रखा, अपने आप कुँआरी गाय के थनों से दूध निकलने लगा। पात्र भरने पर रूक गया।

कबीर साहेब ने वह दूध ग्रहण किया किन्तु अन्य ग्वालों ने मना कर दिया कि यह दूध हम नहीं पी सकते यह आपका जूठा दूध है। किन्तु गरीबदास जी महाराज राजी हुए और बोले कि महाराज यह तो प्रसाद है। परमेश्वर ने वह प्रसाद रूप में कुछ दूध अपने बच्चे गरीब दास जी को पिलाया तथा तत्वज्ञान समझाया। उसके बाद सन्त गरीबदास जी को सतलोक के दर्शन कराये। सतलोक में अपने दो रूप दिखाकर फिर जिंदा वाले रूप में कुल मालिक रूप में सिंहासन पर विराजमान हो गए तथा कहा कि मैं ही 120 वर्ष तक काशी में धाणक (जुलाहा) रूप में रहकर आया हूँ। ततपश्चात सन्त गरीबदासजी महाराज वापस शरीर में आकर आंखों देखा हाल वर्णन करने लगे

गरीब, हम सुल्तानी नानक तारे, दादू कूं उपदेश दिया ।
जाति जुलाहा भेद न पाया, काशी माहें कबीर हुआ ।।

गरीब, सब पदवी के मूल हैं, सकल सिद्धि तीर ।
दास गरीब सत्पुरुष भजो, अविगत कला कबीर ।।

गरीब, अजब नगर में ले गए, हमको सतगुरु आन ।
झिलके बिम्ब अबाध गति, सुते चादर तान ।।

गरीब जम जौरा जासे डरें, मिटें कर्म के लेख ।
अदली असल कबीर हैं, कुल के सतगुरु एक ।।

रामानंद जी को मिले कबीर परमेश्वर

स्वामी रामानन्द जी अपने समय के सुप्रसिद्ध विद्वान कहे जाते थे। वे द्राविड़ से काशी नगर में वेद व गीता ज्ञान के प्रचार हेतु आए थे। स्वामी रामानन्द जी का बोल बाला आस-पास के क्षेत्र में भी था। सर्व जनता कहती थी कि वर्तमान में महर्षि रामानन्द स्वामी तुल्य विद्वान वेदों व गीता जी तथा पुराणों का सार ज्ञाता पृथ्वी पर नहीं है। परमेश्वर कबीर जी ने अपने स्वभाव अनुसार अर्थात् नियमानुसार रामानन्द स्वामी को शरण में लेना था। पूर्व जन्म के सन्त सेवा के पुण्य अनुसार परमेश्वर कबीर जी ने उन पुण्यात्माओं को शरण में लेने के लिए लीला की। स्वामी रामानंद जी को पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब जी मिले तथा उन्हें अपनी शरण में लिया इसका प्रमाणित वर्णन आदरणीय संत गरीब दास जी महाराज जी ने अपनी वाणी के माध्यम से किया है -: 

तहां वहां चित चक्रित भया, देखि फजल दरबार।

गरीबदास सिजदा किया, हम पाये दीदार।।

बोलत रामानन्द जी सुन, कबिर करतार।

गरीब दास सब रूप में, तुमही बोलनहार।।

दोहु ठोर है एक तू, भया एक से दोय।

गरीबदास हम कारणें, उतरे हो मग जोय।।

तुम साहेब तुम सन्त हो, तुम सतगुरु तुम हंस।

गरीबदास तुम रूप बिन, और न दूजा अंस।।

तुम स्वामी मैं बाल बुद्धि, भर्म कर्म किये नाश।

गरीबदास निज ब्रह्म तुम, हमरै दृढ़ विश्वास।।

सुन बे सुन से तुम परे, ऊरै से हमरे तीर।

गरीबदास सरबंग में, अविगत पुरुष कबीर।।

कोटि-कोटि सिजदा किए, कोटि-कोटि प्रणाम।

गरीबदास अनहद अधर, हम परसे तुम धाम।।

बोले रामानन्द जी, सुनों कबीर सुभान।

गरीबदास मुक्ता भये, उधरे पिण्ड अरु प्राण।।

नानक देव जी को मिले पूर्ण परमात्मा

नानक जी का जन्म कालूराम मेहता के घर पर कार्तिक शुक्ल की पूर्णिमा को तलवंडी (वर्तमान पाकिस्तान) में हुआ था। याद दिला दें कि नानक जी वाली आत्मा ही त्रेतायुग में राजा जनक की आत्मा थी। नानक जी मे पूर्व भक्ति संस्कार के कारण परमात्मा प्राप्ति की चाह थी। नानक जी अपनी बहन के घर पर रहते थे एवं मोदीखाने में नौकरी करते थे। नियमानुसार नानक जी प्रतिदिन बेई नदी में स्नान करने जाते थे। ऐसे ही एक दिन वे स्नान हेतु गए और वहाँ उन्हें परमात्मा के दर्शन हुए। नानक जी ने डुबकी लगाई और परमेश्वर कबीर जी उनके शरीर को सुरक्षित रख कर, सतलोक लेकर गए।

अपनी वास्तविक स्थिति से परिचित करवाया एवं काशी में अपने कबीर साहेब रूप से दीक्षा लेने का आदेश देकर उन्हें पृथ्वी पर छोड़ा। नानक जी को लोगों ने डुबकी से वापस न आया देखकर मृत मान लिया था। नानक जी वपास आये और आकर उन्होंने परमात्मा की खोज प्रारंभ कर दी। जब वे खोजते खोजते काशी में कबीर परमात्मा के समक्ष पहुँचे तब उन्होंने पाया कि ये तो वही मोहिनी सूरत है जिसे सतलोक में देखा था। नानक जी ने कहा-

एक सुआन दुई सुआनी नाल,भलके भौंकही सदा बिआल ।
कुड़ छुरा मुठा मुरदार, धाणक रूप रहा करतार ।।
मै पति की पंदि न करनी की कार, उह बिगड़ै रूप रहा बिकराल ।
तेरा एक नाम तारे संसार, मैं ऐहो आस एहो आधार ।
मुख निंदा आखा दिन रात,पर घर जोही नीच मनाति ।।
काम क्रोध तन वसह चंडाल,धाणक रूप रहा करतार ।
फाही सुरत मलूकी वेस, यह ठगवाड़ा ठगी देस ।
खरा सिआणां बहता भार, धाणक रूप रहा करतार ।।
मैं कीता न जाता हरामखोर, उह किआ मुह देसा दुष्ट चोर ।
नानक नीच कह बिचार, धाणक रूप रहा करतार ।।

नानक जी की वाणियों में स्पष्ट प्रमाण है कि उनके गुरु धाणक रूपी कबीर परमात्मा थे। वही मोहिनी सूरत में उन्हें सतलोक में मिले जो उन्हें धाणक रूप में काशी में मिले थे। परमेश्वर कबीर अपना अस्तित्व छुपा कर एक सेवक बन कर आते हैं। काल या आम व्यक्ति उन्हें पहचान नहीं सकता इसलिए नानक जी ने उन्हें प्रेम से ठगवाड़ा कहा है। श्री गुरु नानक देव जी के पूर्व जन्म – सतयुग में राजा अम्ब्रीष, त्रेतायुग में राजा जनक हुए थे और फिर नानक जी हुए तथा अन्य योनियों के जन्मों की तो गिनती ही नहीं है।

हज़रत मुहम्मद जी को मिले पूर्ण परमात्मा

बन्दीछोड़ कबीर परमेश्वर ने हजरत मुहम्मद जी को भी दर्शन दिए थे। कबीर साहेब हजरत मुहम्मद जी को भी सतलोक लेकर गए, सर्व लोकों की वास्तविक स्थिति से परिचय करवाया। किन्तु हज़रत मुहम्मद जी के अनुयायियों की संख्या अधिक हो चुकी थी इस कारण वे तत्वज्ञान को नहीं समझ सके एवं मान-बड़ाई के कारण वापस यहीं पृथ्वी लोक में आकर गलत साधना/ काल ब्रह्म वाली साधना करने लगे।

कबीर साहेब ने कहा है-

हम मुहम्मद को सतलोक ले गया । इच्छा रूप वहाँ नहीं रहयो।।
उलट मुहम्मद महल पठाया, गुज बीरज एक कलमा लाया ।।
रोजा, बंग, नमाज दई रे । बिसमिल की नहीं बात कही रे ।।

उपरोक्त विवरण से यह स्पष्ट हो गया है कि कबीर परमेश्वर ही सबका मालिक है। वेदों, गीता जी आदि पवित्र सद्ग्रंथों में प्रमाण मिलता है कि जब-जब धर्म की हानि होती है व अधर्म की वृद्धि होती है तथा वर्तमान के नकली संत, महंत व गुरुओं द्वारा भक्ति मार्ग के स्वरूप को बिगाड़ दिया गया होता है तब कबीर परमेश्वर स्वयं तत्वदर्शी सन्त का रूप धरकर अपने प्रिय आत्माओं को तत्वज्ञान समझाने आते हैं। फिर परमेश्वर स्वयं तत्वदर्शी संत के रूप में आकर सच्चे ज्ञान के द्वारा धर्म की पुनः स्थापना करता है। वह भक्ति मार्ग को शास्त्रों के अनुसार समझाता है। उसकी पहचान होती है कि वर्तमान के धर्म गुरु उसके विरोध में खड़े होकर राजा व प्रजा को गुमराह करके उसके ऊपर अत्याचार करवाते हैं।

वर्तमान में कैसे हो सकती है परमात्मा की प्राप्ति?

परमात्मा प्रत्येक युग में आकर अच्छी आत्माओं को मिलते हैं। वेद इसकी गवाही देते हैं। साथ ही परमात्मा तत्वदर्शी सन्त रूप में आकर मिलते हैं। परमात्मा कबीर साहेब ने कहा था कि पुनः

चौथा युग जब कलियुग आई, तब हम अपना अंश पठाई ।
कलियुग बीते पांच सौ पाँचा, तब ये वचन मेरा होगा साँचा ।

अब कलियुग के इतना समय बीत चुका है और आज वर्तमान में पूरे विश्व में एकमात्र तत्वदर्शी सन्त रामपाल जी महाराज हैं। बन्दीछोड़ सन्त रामपाल जी महाराज ही परमेश्वर कबीर के अवतार हैं। एकमात्र उनकी शरण मे जाने से ही अब मोक्ष सम्भव है। विश्व की सभी धार्मिक पुस्तकों से नौ मन सूत सुलझा दिया है। एकमात्र तत्वज्ञान की स्थापना की है एवं अकाट्य तर्कों की सतह से अज्ञान का खंडन किया है। विभिन्न देशीय व अंतर्देशीय चैनलों पर सन्त रामपाल जी महाराज के मंगल प्रवचन प्रसारित हो रहे हैं। अधिक जानकारी के लिए देखें सतलोक आश्रम यूट्यूब चैनल एवं सन्त रामपाल जी महाराज जी से दीक्षा लेकर अपना कल्याण करवाएं।

Latest articles

International Day of Rural Women 2024: Understand the Role of Rural Women to Attain Gender Equality

International Day of Rural Women recognizes the significant role and involvement of rural women. Know its theme and history.

Dussehra in Hindi | दशहरा (विजयादशमी) 2024: हमारे अंदर  की रावण जैसी बुराई का अंत कैसे होगा?

दशहरा हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। भगवान श्रीराम द्वारा रावण का वध किए जाने के उपलक्ष्य में दशहरा मनाया जाता है। दशहरा का त्योहार दीपावली से कुछ दिन पूर्व मनाया जाता है। इस बार 26 सितंबर को नवरात्रि शुरु हुई वहीं विजया दशमी (दशहरा 2023) का पर्व 24 अक्टूबर, 2023 के दिन मनाया जाएगा।

Dussehra 2024 (Vijayadashami): Did Lord Rama Kill Ravana? [Reality Revealed]

Dussehra (Vijayadashami): Dussehra, also popularly known as Vijayadashami & Dashain, is one of the major Hindu festivals celebrated at the end of Navratri. This year, Dussehra festival will be celebrated on October 24, 2023 Wednesday. The day witnesses  'Shami puja', 'Aparajita puja', and 'Seema avalanghan' rituals. The readers will know if the rituals are conforming to holy scriptures and what is the correct way of worship that fulfills the purpose of human birth. 

International Day of Girl Child 2024: Girls’ Vision for the Future Empowered By Equality & Spiritual Enlightenment

The International Day of the Girl Child celebrated on October 11, is an attempt to raise awareness about the issues that girls face. This year's events range from seminars to the launch of a campaign to end child marriage. To commemorate the occasion, the United Nations stated that this year they will advocate for equal access to the Internet and digital devices for girls, as well as targeted investments to provide them with meaningful opportunities to use, access, and lead technology.
spot_img

More like this

International Day of Rural Women 2024: Understand the Role of Rural Women to Attain Gender Equality

International Day of Rural Women recognizes the significant role and involvement of rural women. Know its theme and history.

Dussehra in Hindi | दशहरा (विजयादशमी) 2024: हमारे अंदर  की रावण जैसी बुराई का अंत कैसे होगा?

दशहरा हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। भगवान श्रीराम द्वारा रावण का वध किए जाने के उपलक्ष्य में दशहरा मनाया जाता है। दशहरा का त्योहार दीपावली से कुछ दिन पूर्व मनाया जाता है। इस बार 26 सितंबर को नवरात्रि शुरु हुई वहीं विजया दशमी (दशहरा 2023) का पर्व 24 अक्टूबर, 2023 के दिन मनाया जाएगा।

Dussehra 2024 (Vijayadashami): Did Lord Rama Kill Ravana? [Reality Revealed]

Dussehra (Vijayadashami): Dussehra, also popularly known as Vijayadashami & Dashain, is one of the major Hindu festivals celebrated at the end of Navratri. This year, Dussehra festival will be celebrated on October 24, 2023 Wednesday. The day witnesses  'Shami puja', 'Aparajita puja', and 'Seema avalanghan' rituals. The readers will know if the rituals are conforming to holy scriptures and what is the correct way of worship that fulfills the purpose of human birth.