November 25, 2024

केवल पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब जी ही कर सकते हैं अपने भगतों के लिए अनहोनी 

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सन्त कबीर, कबीर दास के नाम से जाने जाने वाले प्रसिद्ध कवि के दोहे व साखी हर व्यक्ति ने कभी न कभी अपने जीवन में अवश्य पढ़ी होंगी। कवि कबीर, एक मामूली सा धानक/जुलाहा विश्व के मानव समाज को रहस्यमयी दोहों के माध्यम से ऐसा ज्ञान दे गया जिसका हमारे धर्म ग्रंथ पवित्र चारों वेद, क़ुरान, बाइबिल व गुरु ग्रंथ साहिब भी समर्थन करते हैं। ऐसा अनमोल ज्ञान देने वाला कोई मामूली सन्त या कवि नहीं हो सकता। वेदों की माने तो पूर्ण परमात्मा हर युग में कवि की लीला करते हुए पूरे संसार को कविताओं, दोहे व साखियों द्वारा ज्ञान प्रदान करते है। पूर्ण परमात्मा कविर्देव ने अपने जीवन काल में बहुत सी लीलाएं की। उनकी लीलाओं में बहुत सी ऐसी अनहोनी भी शामिल हैं जिन पर विश्वास करना मुश्किल हो सकता है परन्तु ये सब प्रमाणित हैं। परमेश्वर कबीर साहेब जी ने क्या क्या अनहोनी की हैं, आगे उसके विषय में आगे बता रहें हैं।

Table of Contents

क्या है अनहोनी?

श्री रामचरित्र मानस के रचियता गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा था –

तुलसी भरोसे राम के, निर्भय हो के सोए। 

अनहोनी होनी नहीं, होनी हो सो होए।।

सामान्यतया ऐसा मानते हैं कि काल ब्रह्म और अष्टंगी दुर्गा द्वारा ही सभी कुछ किया जाता है। इसे ही विधि का विधान भी माना जाता है। विधि के विधान से जो भी होता है वह सब होनी है। लेकिन इस होनी को पलट देने की शक्ति पूर्ण परमेश्वर कविर्देव (कबीर साहेब) में है। होनी को उलट देना ही अनहोनी है। परमपिता परमात्मा कबीर साहेब ने जो अनहोनी की हैं उनके कुछ दृष्टांत यहाँ आज पाठकों के लिए प्रस्तुत किए जा रहे हैं –      

कबीर परमेश्वर द्वारा क्षण भर में तेरह गाड़ी कागजों पर तत्वज्ञान लिखना

एक समय की बात है, दिल्ली के बादशाह सिकंदर लोदी ने कबीर साहेब जी से कहा कि यदि वे (कबीर साहेब) कागजों से लदी हुई तेरह गाड़ियों के सभी कागजों पर मात्र ढ़ाई दिन में (60 घण्टे में) तत्वज्ञान लिख कर दिखा दे तो वह उनको परमात्मा मान लेगा। तब परमेश्वर कबीर जी ने एक डण्डी उठाकर उन तेरह गाड़ियों में रखे कागजों पर घुमा दिया। क्षण भर में सभी कागजों में सम्पूर्ण अध्यात्मिक ज्ञान अमृतवाणी को लिख दिया। यह देखकर सिकंदर लोदी अचंभे में आ गया और उसे पूरा विश्वास हो गया कि कबीर साहेब ही अल्लाहु अकबर (पूर्ण परमात्मा) है। लेकिन अपने धर्म के अनुयायियों (मुसलमानों) के दबाव में आने के कारण उसने उन सभी ग्रन्थों को दिल्ली में ज़मीन के अंदर गढ़वा दिया।

काशी में बैठकर हजारों किलोमीटर दूर जगन्नाथ पुरी के पांडे की जीवन रक्षा की

एक दिन शाम के समय परमेश्वर कबीर जी अपने साथ रविदास जी को लेकर राजा बीरदेव सिंह जी बघेल के दरबार मे गए। उस दिन दिल्ली के सम्राट सिकंदर लोदी भी वहां आए हुए थे। दोनों संतों को आसन दिया गया। कुछ देर चर्चा के पश्चात अचानक कबीर परमेश्वर जी खड़े हो गए और अपने लोटे का जल अपने पैर पर डालना प्रारंभ कर दिया। अचंभित सिकंदर ने पूछा प्रभु! आपने अपने पैर पर पानी क्यों डाला? कबीर जी ने बताया कि पुरी में जगन्नाथ के मंदिर में रामसहाय नाम का पांडा पुजारी भगवान का खिचड़ी प्रसाद बना रहा था। उसको उतारते समय अति गर्म खिचड़ी उसके पैर के ऊपर गिर गई और वह चिल्लाकर अचेत हो गया। यह बर्फ जैसा शीतल जल उसके जले हुए पैर पर डालकर उसके जीवन की रक्षा की है अन्यथा वह मर जाता।

जगन्नाथ जी का मंदिर उड़ीसा प्रांत में पुरी शहर में है जो बनारस से लगभग कई सौ किलोमीटर दूर है। अतः यह बात सम्राट सिकंदर तथा नरेश बीरदेव सिंह बघेल के गले नहीं उतरी। कबीर जी को बताए बिना उसकी जांच करने के आदेश दे दिए। दो सैनिक ऊंटों पर सवार होकर पुरी गए। 10 दिन जाने में लगे। पुरी में जाकर पूछा रामसहाय पांडा कौन है? उसको बुलाया गया। सिपाहियों ने पूछा क्या आपका पैर खिचड़ी से जला था? उत्तर मिला हां। प्रश्न किया कि किसने ठीक किया? उत्तर मिला कबीर जी यहां पास ही खड़े थे, उन्होंने करमंडल से हिमजल डाला था। उससे मेरी जलन बंद हो गई। यदि वे जल नहीं डालते तो मेरी मृत्यु हो सकती थी, मैं अचेत हो गया था। प्रश्न क्या समय था? शाम के समय सूर्य अस्त के ठीक एक घंटा पहले। अन्य उपस्थित व्यक्तियों ने भी साक्ष्य दिया। 

सिपाहियों ने सब लिखकर दस्तखत अंगूठे लगावाए। रामसहाय पांडे ने और अन्य पुजारियों ने बताया कि कबीर जी तो नित्य प्रति दिन मंदिर में आते हैं। सर्व प्रमाण लेकर सुनकर दोनों सिपाही वापिस आए और दरबार में सच्चाई बताई। दोनों लज्जित राजा कबीर जी की कुटिया पर गए। उन्हें दंडवत प्रणाम किया तथा उन पर अविश्वास करने के अपराध की क्षमा मांगते हुए कहा कि हमे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि आप हजारों किलोमीटर दूर से जगन्नाथ मंदिर के रामसहाय पांडे के पैर को जलने से बचा सकते हैं। हमने अपनी तसल्ली के लिए दो सैनिक भेजकर पता कराया है। आप स्वयं वह खुदा हो जो सातवें आसमान पर बैठा है। आप नर रूप धारण करके पृथ्वी पर लीला करने आए हो। परमेश्वर कबीर जी ने कहा महाराज! आपको यहां भी गलती लगी है। मैं तो अल्लाहु अकबर हूं। मैं करोड़ों आसमानों के पार सत्यलोक (सतलोक) में विराजमान हूं। यहां मैं आपके सामने खड़ा हूं। मैं पैगंबर मुहम्मद को भी मिला था। उन्होंने भी मुझे पहचानने में भूल की थी।

कबीर परमेश्वर जी द्वारा 18 लाख लोगों को 3 दिन तक भंडारा देना

अठारह लाख लोगों का भंडारा करना

शेखतकी सब मुसलमानों का मुख्य पीर (गुरू) था जो परमात्मा कबीर जी से ईर्ष्या करता था। ब्राह्मणों तथा मुल्ला-काजियों के साथ मिलकर शेखतकी ने षड़यंत्र के तहत एक योजना बनाई। उसने एक निमंत्रण पत्र भेजा काशी सेठ कबीर जी के नाम से जिनका पूरा पता लिखा कबीर पुत्र नूरअली अंसारी, जुलाहों वाली बस्ती, काशी शहर और लिखा कि कबीर जी तीन दिन का धर्म भोजन-भण्डारा कर रहे हैं। सर्व साधु संत आमंत्रित हैं। भोजन के साथ एक दोहर और एक मोहर (10 ग्राम स्वर्ण से बनी गोलाकार मोहर) दक्षिणा में दी जाएगी। भोजन में लड्डू, जलेबी, हलवा, खीर, दही बड़े, माल पूडे़, रसगुल्ले आदि मिष्ठान परोसे जाएंगे। पत्र में लिखा कि भंडारे में सूखा सीधा (आटा, चावल, दाल आदि सूखे जो बिना पकाए हुए, घी-बूरा) भी दिया जाएगा। एक पत्र शेखतकी ने अपने नाम तथा दिल्ली के बादशाह सिकंदर लोदी के नाम भी भिजवाया।

निश्चित दिन से पहले वाली रात्रि को ही साधु-संत भक्त एकत्रित होने लगे। अगले दिन भण्डारा (लंगर) प्रारम्भ होना था। परमेश्वर कबीर जी को संत रविदास दास जी ने बताया कि आपके नाम के पत्र लेकर लगभग 18 लाख साधु-संत व भक्त काशी शहर में आए हैं जो कि भण्डारे के लिए आमंत्रित हैं। उन्होंने कहा कि कबीर जी अब तो अपने को काशी त्यागकर कहीं और जाना पड़ेगा। कबीर जी तो सर्वज्ञ थे। फिर भी अभिनय कर रहे थे, बोले रविदास जी झोंपड़ी के अंदर बैठकर सांकल लगा लेते हैं। हम बाहर नहीं निकलेंगे तो लोग स्वयं चले जाएंगे।

कबीर साहेब ने बनाया केशव बंजारे का रूप

परमेश्वर कबीर जी दूसरे रूप में अपनी राजधानी सत्यलोक से नौ लाख बैलों के ऊपर पका-पकाया सामान तथा सूखा सामान (चावल, आटा, खाण्ड, बूरा, दाल, घी आदि) भरकर पृथ्वी पर लाए। सत्यलोक से ही सेवादार आए। परमेश्वर कबीर जी ने स्वयं बनजारे का रूप बनाया और अपना नाम केशव बताया। दिल्ली के सम्राट सिकंदर तथा उसका धार्मिक पीर शेखतकी भी आया। काशी में भोजन-भण्डारा चल रहा था। सबको प्रत्येक भोजन के पश्चात् एक दोहर तथा एक मोहर (10 ग्राम सोना) दक्षिणा दी जा रही थी। कुछ सूखा सीधा भी ले रहे थे।

■ यह भी पढ़ें | कबीर साहेब (परमेश्वर) जी के चमत्कार, तथा संत रामपाल जी द्वारा दी गयी सतभक्ति से लाभ

यह सब देखकर अचंभित शेखतकी तो रोने जैसा हो गया। सिकंदर लोदी उस टैंट में गया जिसमें केशव नाम से स्वयं कबीर जी वेश बदलकर बनजारे (व्यापारी) के रूप में बैठे थे। सिकंदर लोदी राजा ने पूछा आप कौन हैं? क्या नाम है? आप जी का कबीर जी से क्या संबंध है? केशव रूप में बैठे परमात्मा जी ने कहा कि मेरा नाम केशव है, मैं बनजारा हूँ। कबीर जी मेरे पगड़ी बदल मित्र हैं। मेरे पास उनका पत्र गया था कि एक छोटा-सा भण्डारा यानि लंगर करना है, कुछ सामान लेते आइएगा। उनके आदेश का पालन करते हुए सेवक हाजिर है। भण्डारा चल रहा है।

शेख तकी इतना बड़ा चमत्कार देखकर भी नही समझा!

शेखतकी तो कलेजा पकड़कर ईर्ष्या की अग्नि में जलता हुआ विश्राम गृह में चला गया जहाँ पर राजा ठहरा हुआ था। सिकंदर लोदी ने केशव से पूछा कबीर जी क्यों नहीं आए? केशव ने उत्तर दिया कि उनका गुलाम जो बैठा है, उनको तकलीफ उठाने की क्या आवश्यकता? जब इच्छा होगी, आ जाएंगे। यह भण्डारा तो तीन दिन चलना है।

सिकंदर लोदी हाथी पर बैठकर अंगरक्षकों के साथ कबीर जी की झोंपड़ी पर गए। दंडवत प्रणाम करके उन्हें रविदास जी के साथ भण्डारा स्थल पर लेकर आए। सबसे केशव बनजारा और कबीर साहेब जी का परिचय कराया। कबीर साहेब ने वहाँ उपस्थित संतों-भक्तों को सत्संग सुनाया जो 24 घण्टे तक चला। कई लाख सन्तों ने अपनी गलत भक्ति त्यागकर कबीर जी से दीक्षा ली, अपना कल्याण कराया।

भण्डारे के समापन के बाद जब बचा हुआ सब सामान तथा टैंट बैलों पर लादकर चलने लगे, उस समय सिकंदर लोदी, शेखतकी, केशव तथा कबीर जी एक स्थान पर खड़े थे। सब बैल तथा सेवक जो बनजारों की वेशभूषा में थे, गंगा पार करके चले गए। कुछ ही देर के बाद सिकंदर लोदी ने केशव से कहा आप जाइये आपके बैल तथा साथी जा रहे हैं। जिस ओर बैल तथा बनजारे गए थे, उधर सिकंदर ने देखा तो कोई भी नहीं था। आश्चर्यचकित होकर उसने पूछा कबीर जी! वे बैल तथा बनजारे इतनी शीघ्र कहाँ चले गए? उसी समय देखते-देखते केशव भी परमेश्वर कबीर जी के शरीर में समा गए। अकेले कबीर जी खड़े थे। सब माजरा (रहस्य) समझकर सिकंदर लोदी राजा ने कहा कि कबीर जी! यह सब लीला आपकी ही थी। आप स्वयं परमात्मा हो।

जगन्नाथ मंदिर की पुरी (उड़ीसा) में स्थापना

उड़ीसा के इन्द्रदमन राजा को कृष्ण जी ने दर्शन देकर मंदिर बनाने को कहा  और कृष्ण जी ने यह भी कहा था कि मंदिर में कोई मूर्ति स्थापित नहीं करनी केवल एक पंडित वहाँ रहेगा जो इसका इतिहास बतायेगा। लेकिन मंदिर को समुद्र किसी कारण से बनने नहीं दे रहा था। कबीर जी ने वह जगन्नाथ पुरी मंदिर भी बनवाया और समुंदर की लहरों को मंदिर तक नहीं पहुँचने दिया, इससे पहले पांच बार समुद्र वो मंदिर गिरा चुका था।

मृत कमाल, कमाली, सेऊ, रामानंद जी और गाय को जीवित करना

कबीर परमेश्वर द्वारा मृत लड़के कमाल को जीवित करना

लगभग 12 वर्ष के एक बालक का शव नदी में बहता हुआ आ रहा था। सिकंदर लोदी के धार्मिक गुरु (पीर) शेखतकी ने कहा कि मैं तो कबीर साहेब को तब खुदा मानूं जब मेरे सामने इस मुर्दे को जीवित कर दे। साहेब ने सोचा कि यदि यह शेखतकी मेरी बात को मान लेगा और पूर्ण परमात्मा को जान लेगा तो हो सकता है सर्व मुसलमानों को सतमार्ग पर लगा कर काल के जाल से मुक्त करवा दे। सिकंदर लोदी तथा सैकड़ों सैनिक उस दरिया पर विद्यमान थे। तब साहेब कबीर ने कहा कि शेख जी – पहले आप प्रयत्न करें, कहीं बाद में कहो कि यह तो मैं भी कर सकता था। इस पर शेखतकी ने कहा कि ये कबीर तो सोचता है कि कुछ समय पश्चात यह मुर्दा बह कर आगे निकल जाएगा और मुसीबत टल जाएगी। साहेब कबीर ने उसी समय कहा कि –

हे जीवात्मा! जहाँ भी है कबीर हुक्म से इस शव में प्रवेश कर और बाहर आजा। तुरंत ही वह बालक जीवित होकर बाहर आया और उसने साहेब के चरणों में दण्डवत् प्रणाम किया। सब उपस्थित व्यक्तियों ने कहा कि साहेब ने कमाल कर दिया। उस लड़के का नाम ‘कमाल‘ रख दिया तथा कबीर साहेब ने उसे अपने बच्चे के रूप में अपने साथ रखा। शेखतकी अपनी बेईज्जती मान कर साहेब कबीर से और ईर्ष्या रखने लगा।

इस घटना की चर्चा दूर-दूर तक होने लगी। कबीर साहेब की महिमा बहुत हो गई। लाखों बुद्धिमान भक्त आत्मा एक परमात्मा (साहेब कबीर) की शरण में आ कर अपना आत्म कल्याण करवाने लगे।

शेख तकी की बेटी को जीवित करना

मुस्लिम पीर शेख तकी ने कहा कि लड़का कमाल पहले से ही जीवित रहा होगा इसलिए जीवित हो गया। कबीर जी को तो तब अल्लाह मानेंगे जब वे मेरी कब्र में दफन बेटी को जीवित करेंगे। कबीर साहेब ने शेख तकी से पहले प्रयास करने के लिए कहा। इस बार उपस्थित लोगों ने कहा कि कबीर साहेब यदि शेख तकी अपनी बेटी जीवित कर सकता तो उसे मरने ही नहीं देता आप प्रयास करें। कबीर साहेब ने शर्त स्वीकार करते हुए सैकड़ों लोगों की उपस्थिति में उस पुत्री को भी जीवित कर दिया। उस लड़की का नाम कमाली रखा गया। सच्चाई जानकर यह लड़की कबीर साहेब के पास रहने लगी।

कबीर परमेश्वर द्वारा सेऊ को जीवित करना

एक बार कबीर साहेब अपने दो सेवकों (कमाल और फरीद) के साथ अपने शिष्य सम्मन के घर गए। सम्मन वैसे तो बहुत निर्धन था, लेकिन उसकी आस्था कबीर साहेब में बहुत थी। सम्मन इतना निर्धन था कि बहुत बार तो उसके पास खाने के लिए खाना भी नहीं होता था, उस दिन भी कुछ ऐसा ही था। जब नेकी (सम्मन की पत्नी) ने देखा कि उधार मांगने पर भी कोई आटा उधार नहीं दे रहा तो उसने सेऊ और सम्मन को कहा कि तुम चोरी कर आओ, जब हमारे पास आटा होगा तो हम वापिस कर देंगे। जब सेऊ चोरी करने गया तो पकड़ा गया और सम्मन ने बदनामी के डर से सेऊ की गर्दन काट दी। सुबह होते ही नेकी ने भोजन तैयार किया और कबीर साहेब को एहसास तक नहीं होने दिया कि सेऊ मर चुका है। कबीर साहेब तो परमात्मा थे उन्होंने सिर्फ इतना कहा था

आओ सेऊ जीम लो, यह प्रसाद प्रेम।

शीश कटत हैं चोरों के, साधों के नित्य क्षेम।।

साहेब कबीर ने कहा कि सेऊ आओ भोजन पाओ। सिर तो चोरों के कटते हैं। संतों (भक्तों) के नहीं। उनको तो क्षमा होती है। साहेब कबीर ने इतना कहा था उसी समय सेऊ के धड़ पर सिर लग गया। कटे हुए का कोई निशान सेऊ की गर्दन पर नहीं था तथा वह पंगत (पंक्ति) में बैठ कर भोजन करने लगा।

गरीब, सेऊ धड़ पर शीश चढ़ा, बैठा पंगत मांही। 

नहीं घरैरा गर्दन पर, औह सेऊ अक नांही।।

स्वामी रामानंद को जीवित करना

दिल्ली के बादशाह सिकंदर लोदी ने स्वामी रामानंद जी की गर्दन तलवार से काट के हत्या कर दी थी। हत्या के बाद सिकन्दर लोदी बहुत पछताया और कबीर साहेब के आने का इंतजार करने लगा। ज्यों ही परमात्मा कबीर साहेब आए सिकन्दर लोदी उनके चरणों मे गिर पड़ा और क्षमा याचना करने लगा। साहेब कबीर जी ने सिकन्दर लोदी को आशीर्वाद दिया और इतने मात्र से ही सिकन्दर लोदी का सारा रोग दूर हो गया। लेकिन वह यह सोचकर दुखी हुआ कि जब कबीर साहेब को पता चलेगा कि मैंने उनके गुरुदेव की हत्या कर दी है तो वे क्रोधित होकर श्राप न देदें। सिकन्दर लोदी ने जब उन्हें सारी बात बताई तो कबीर साहेब कुछ नहीं बोले। भीतर गए तो कबीर साहेब जी ने देखा कि रामानंद जी का धड़ कही और सिर कही पर पड़ा था। तब कबीर साहेब ने मृत शरीर को प्रणाम किया और कहा कि उठो गुरुदेव आरती का समय हो गया, यह कहते ही सिर अपने आप उठकर धड़ पर लग गया और रामानंद जी जीवित हो गए।

कबीर साहेब के चमत्कार: मृत गाय को सभा में जीवित करना

मृत गाय को सभा में जीवित करना

शेख तकी की ईर्ष्यालु प्रवृत्ति के कारण उसने दिल्ली के बादशाह सिकंदर लोदी को प्रेरित किया और कबीर साहेब जी की परीक्षा लेने के लिए कहा। तब राजा ने एक गर्भवती गाय काटकर कहा कि यदि कबीर साहेब इस गाय को जीवित कर देंगे तो मान लिया जाएगा कि कबीर साहेब अल्लाह हैं। कबीर साहेब जी ने गाय और बछड़े को थपकी मारकर हजारों लोगों के सामने जीवित कर दिया था।

भैसें से वेद मंत्र बुलवाना

एक समय एक तोताद्रि नामक स्थान पर कबीर साहेब स्वामी रामानन्द जी के साथ ब्राह्मणों के सत्संग को सुन रहे थे। सत्संग के पश्चात भण्डारा शुरू हुआ। वहाँ उपस्थित पंडितों ने कबीर साहेब को देखकर उन्हें छोटी जाति वाला जानकर कहा कि चार वेद मंत्र सुनाने वाले ब्राह्मण एक भंडारे में बैठेंगे व बाकी अन्य भंडारे में बैठेंगे। कबीर साहेब ने थोड़ी सी दूरी पर घास चरते हुए भैंसे को पास बुलाया तब कबीर जी ने भैंसें की कमर पर थपकी दी और कहा कि भैंसे इन पंडितों को वेद के चार मन्त्र सुना दे। भैंसे ने छः मन्त्र सुना दिए। ऐसी अनहोनी देखकर स्तब्ध ब्राह्मण परमेश्वर कबीर के चरणों पर गिर गए और नामदीक्षा ली।

कबीर साहेब की मगहर लीला

मगहर के बारे में उस वक़्त पंडितो ने यह धारणा फैला रखी थी कि वहाँ मरने वाले की मुक्ति नही होती। परमात्मा कबीर जी ने इस भ्रांति को खत्म करने के लिए कहा कि मैं वहाँ प्राण त्याग करूँगा। बीर सिंह बघेल और बिजली खां पठान इस बात पर लड़ने लगे कि हम कबीर साहेब का संस्कार करेंगे। लेकिन कबीर साहेब जी की मगहर लीला के दौरान शरीर नही मिला सिर्फ सफेद चादर के नीचे गुलाब के फूल मिले थे। जब सभी ने यह देखा तो हैरान रह गए , बिजली खां पठान और बीर सिंह बघेल को अपनी गलती का एहसास हुआ। वह फूल दोनों ने आधे – आधे बाँट लिए।

निष्कर्ष और सन्देश

  • कबीर परमेश्वर जी पूर्ण परमात्मा है ।
  • पवित्र वेदों के अनुसार वह परमेश्वर इस धरती पर सहशरीर शरीर आते हैं और अपना ज्ञान दोहे व लोकोक्तियों के माध्यम से पूरी दुनिया को बताते हैं।
  • कबीर परमेश्वर जी हम सभी जीवात्माओं के जनक है।
  • पूर्ण परमात्मा कबीर परमेश्वर जी है जो काशी में कमल के फूल पर प्रकट हुए और 120 वर्ष तक वास्तविक तेजोमय शरीर के ऊपर मानव सदृश्य शरीर हल्के तेज का बना कर रहे।
  • श्रीमद भगवत गीता अध्याय 16 के श्लोक 23, 24 में यही प्रमाण है कि जो शास्त्र विधि त्याग कर मनमाना आचरण व पूजा करते हैं उन्हें कोई लाभ नहीं होता। पूर्ण परमात्मा कबीर जी ने 5 वर्ष की लीलामय आयु में सन् 1403 से ही सर्व शास्त्रों युक्त ज्ञान अपनी अमृतवाणी में बताया था।
  • वेदो अनुसार पूर्ण परमात्मा कविर्देव अर्थात कबीर साहेब जी कवि की लीला करते हुए अपना तत्वज्ञान जगत को प्रदान करते है।
  • परमेश्वर कबीर साहेब ने बहुत सी अनहोनी लीलाएं की।
  • उनको पहचानकर बहुत से साधक परमेश्वर कबीर जी की शरण मे आये और भक्ति की। जिससे उन्हें उनके जीवन में बहुत से लाभ भी मिले और उनका मोक्ष निश्चित हुआ। परमेश्वर कबीर साहेब जी हमें बार बार सन्देश देते हैं-

कबीर, मानुष जन्म दुर्लभ है, मिले न बारम्बार।

जैसे तरुवर से पत्ता टूट गिरे, बहुर न लगता डारि।।

परमेश्वर कबीर साहेब जी बताते हैं कि मनुष्य जन्म का मूल उद्देश्य सतभक्ति करके मोक्ष प्राप्त करना है। माता पिता तो हमे हर योनि में मिल जाएंगे पर सतगुरु, सेवा और बन्दगी अब मिल रही है पर फिर कब मिलेगी इसका कुछ पता नहीं। यह मनुष्य जन्म बहुत अनमोल है, ये बार बार नहीं मिलता इसलिए इस अनमोल जन्म को व्यर्थ न करें। सतगुरु की शरण मे आकर पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी की भक्ति करके अपना कल्याण करवाएं।

कौन हैं वर्तमान में सतगुरु? 

पूर्ण परमेश्वर कबीर साहिब ने संत रामपाल जी महाराज के रूप में अपना प्रतिनिधि भेजा हुआ है। संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा लेकर मर्यादा में रहकर उनके अनुयायियों को वही लाभ हो रहे हैं जो पहले कबीर साहेब अपने शिष्यों को दिया करते थे। आप भी संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा ले। संत रामपाल जी महाराज के बारे में अधिक जानने के लिए आप उनका सत्संग साधना TV पर रात 7:30 pm प्रतिदिन श्रवण करें।  

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