कबीर साहेब (परमेश्वर) जी के चमत्कार, तथा संत रामपाल जी द्वारा दी गयी सतभक्ति से लाभ

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Last Updated on 27 May 2023: 7:20 PM IST: आज हम आपको कबीर साहेब के चमत्कार के बारे में बताएँगे। कबीर साहेब लगभग आज से 600 वर्ष पहले इस धरती पर आये और बहुत सी लीलाएं करके चले गए। कबीर साहेब की लीलाओं का जिक्र कबीर सागर में भी मिलता है। कबीर साहेब के 64 लाख शिष्य थे, यह आपने आप में एक बहुत बड़ी बात है। तो चलिए आज हम आपको कबीर साहेब की कुछ लीलाओं के बारे में बताते हैं।

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कबीर साहेब के चमत्कार: सेऊ को जीवित करना

एक बार कबीर साहेब अपने दो सेवकों (कमाल और फरीद) के साथ अपने शिष्य सम्मन के घर गए। सम्मन वैसे तो बहुत निर्धन था, लेकिन उसकी आस्था कबीर साहेब में बहुत थी। सम्मन इतना निर्धन था कि बहुत बार तो उसके पास खाने के लिए खाना भी नहीं होता था, उस दिन भी कुछ ऐसा ही था। जब नेकी (सम्मन की पत्नी) ने देखा कि उधार मांगने पर भी कोई आटा उधार नहीं दे रहा तो उसने सेऊ और सम्मन को कहा कि तुम चोरी कर आओ, जब हमारे पास आटा होगा तो हम वापिस कर देंगे। जब सेऊ चोरी करने गया तो पकड़ा गया और सम्मन ने अपने गुरु की बदनामी के डर से सेऊ की गर्दन काट दी। सुबह होते ही नेकी ने भोजन तैयार किया और कबीर साहेब को एहसास तक नहीं होने दिया कि सेऊ मर चुका है। कबीर साहेब तो परमात्मा थे उन्होंने सिर्फ इतना कहा था

आओ सेऊ जीम लो, यह प्रसाद प्रेम।
शीश कटत हैं चोरों के, साधों के नित्य क्षेम।।

इतना कहते ही सेऊ भागा चला आया और खाना खाने लगा

स्वामी रामानंद को जीवित करना

दिल्ली के बादशाह सिकंदर लोदी ने स्वामी रामानंद जी की गर्दन तलवार से काट के हत्या कर दी थी। हत्या के बाद सिकन्दर लोदी बहुत पछताया और कबीर साहेब के आने का इंतजार करने लगा। ज्यों ही परमात्मा कबीर साहेब आए सिकन्दर लोधी उनके चरणों मे गिर पड़ा और क्षमा याचना करने लगा। साहेब कबीर जी ने सिकन्दर लोधी को आशीर्वाद दिया और इतने मात्र से ही सिकन्दर लोधी का सारा रोग दूर हो गया। वे और भी दुखी हुए यह सोचकर कि अब जब कबीर साहेब को पता चलेगा कि मैंने उनके गुरुदेव की हत्या कर दी है तो वे क्रोधित होकर फिर श्राप न दे दें। सिकन्दर लोधी ने जब उन्हें सारी बात बताई तो कबीर साहेब कुछ नहीं बोले। भीतर गए तो कबीर साहेब जी ने देखा कि रामानंद जी का धड़ कही और सिर कही पर पड़ा था। तब कबीर साहेब ने मृत शरीर को प्रणाम किया और कहा कि उठो गुरुदेव आरती का समय हो गया, यह कहते ही सिर अपने आप उठकर धड़ पर लग गया और रामानंद जी जीवित हो गए।

स्वामी रामानंद को जीवित करना

मृत लड़के को जीवित करना

इतना चमत्कार देखने के बाद स्वाभाविक रूप से सिकन्दर लोदी की आस्था कबीर साहेब में हो गई थी। इस बात का सिकन्दर लोदी के पीर शेख तकी को अफसोस था। शेख तकी का कहना था कि अगर कबीर जी अल्लाह हैं तो किसी मुर्दे को जीवित कर दें मैं उन्हें अल्लाह मान लूंगा। सुबह एक 10-12 वर्ष की आयु के लड़के का शव पानी मे तैरता हुआ आ रहा था। कबीर साहेब ने शेख तकी से पहले जीवित करने का प्रयास करने के लिए कहा। शेखतकी ने जंत्र-मन्त्र से प्रयत्न किया लेकिन लड़का जीवित नहीं हुआ। तब कबीर साहेब ने अपने आदेश से लड़के को जीवित कर दिया। आसपास के सभी लोगों ने कहा कमाल हो गया! कमाल हो गया और उस लड़के का नाम कमाल रखा गया।

मृत लड़के को जीवित करना

शेख तकी की बेटी को जीवित करना

मुस्लिम पीर शेख तकी ने कहा कि लड़का कमाल पहले से ही जीवित रहा होगा इसलिए जीवित हो गया। कबीर जी को तो तब अल्लाह मानेंगे जब वे मेरी कब्र में दफन बेटी को जीवित करेंगे। कबीर साहेब ने शेख तकी से पहले प्रयास करने के लिए कहा। इस बार उपस्थित लोगों ने कहा कि कबीर साहेब यदि शेख तकी अपनी बेटी जीवित कर सकता तो उसे मरने ही नहीं देता आप प्रयास करें। कबीर साहेब ने शर्त स्वीकार करते हुए सैकड़ों लोगों की उपस्थिति में उस पुत्री को भी जीवित कर दिया। उस लड़की का नाम कमाली रखा गया।  

कबीर साहेब के चमत्कार: कबीर साहेब द्वारा शिष्यों की परीक्षा लेना

कबीर साहेब के चमत्कार: कबीर साहेब से नाम दीक्षा लेने के बाद सभी को अद्भुत लाभ हुए, लेकिन कबीर साहेब यह देखना चाहते थे कि उनके शिष्यों ने उनको कितना समझा है। कबीर साहेब, रविदास जी और एक वैश्या जो अब उनकी शिष्य बन गई थी, को साथ लेकर बीच बाजार में से निकल गए, यह देखकर सभी कबीर साहेब की निंदा करने लगे। इस पर कबीर साहेब कहते हैं

कबीर, गुरू मानुष कर जानते, ते नर कहिए अंध। होवें दुःखी संसार में, आगे यम के फंद।।
कबीर, गुरू को मानुष जो गिनै, और चरणामृत को पान। ते नर नरक में जाएंगे, जुग जुग होवैं श्वान।।

कबीर साहेब तो सिर्फ लीला कर रहे थे, लेकिन सभी लोग यह भी भूल गए यह वही कबीर जी हैं, जिन्होंने उनको इतने सुख दिये हैं।

भैसें से वेद मंत्र बुलवाना

एक समय एक तोताद्रि नामक स्थान पर सत्संग था। सभी पंडित सत्संग में तो छुआछूत न करने के उपदेश दे रहे थे किन्तु व्यवहार में वही अज्ञान भरा था। कबीर साहेब स्वामी रामानन्द जी के साथ गए। सत्संग के पश्चात भण्डारा शुरू हुआ। वहाँ उपस्थित पंडितों ने कबीर साहेब को देखकर कहा कि चार वेद मंत्र सुनाने वाले ब्राह्मण एक भंडारे में बैठेंगे व बाकी अन्य भंडारे में बैठेंगे। प्रत्येक व्यक्ति को वेद के चार मन्त्र बोलने पर प्रवेश मिल रहा था। जब कबीर साहेब की बारी आई तब कबीर साहेब ने थोड़ी सी दूरी पर घास चरते हुए भैंसे को पास बुलाया तब कबीर जी ने भैंसें की कमर पर थपकी दी और कहा कि भैंसे इन पंडितों को वेद के चार मन्त्र सुना दे। भैंसे ने छः मन्त्र सुना दिए। इतना सुनकर पंडित परमेश्वर के चरणों पर गिर गए व नामदीक्षा ली।

दामोदर सेठ के जहाज को समुद्र में डूबने से बचाना

कबीर साहेब का दामोदर सेठ नाम का एक शिष्य था। वह समुद्री जहाज से व्यापार करता था। एक बार की यात्रा में दामोदर सेठ के जहाज के अन्य व्यापारी उनकी भक्ति साधना का मजाक उड़ाने लगे। तब बहुत तेज समुद्री तूफ़ान आया और जहाज डूबने लगा तो सभी ने अपने अपने इष्ट को याद किया और स्थिति संभलती न देख सबने दामोदर सेठ से प्रार्थना की कि आप भी अपने परमात्मा से प्रार्थना कीजिये। तब दामोदर सेठ ने अपने गुरु कबीर साहेब जी को याद किया। कबीर साहेब जी ने समुद्री तूफ़ान को रोककर अपने भक्त दामोदर सेठ के जहाज़ को समुद्र में डूबने से बचाया। और उस जहाज में उपस्थित वे सभी लोग जो दामोदर सेठ का मजाक उड़ाते थे उन्होंने भी परमेश्वर कबीर की शरण ली।

जगन्नाथ मंदिर की पुरी (उड़ीसा) में स्थापना

कबीर साहेब के चमत्कार: कहते हैं उड़ीसा के इन्द्रदमन राजा को कृष्ण जी ने दर्शन देकर मंदिर बनाने को कहा लेकिन उसको समुंदर किसी कारण से बनने नहीं दे रहा था l कृष्ण जी ने यह भी कहा था कि मंदिर में कोई मूर्ति स्थापित नहीं करनी केवल एक पंडित वहाँ रहेगा जो इसका इतिहास बतायेगा। कबीर जी ने वह जगन्नाथ पुरी मंदिर भी बनवाया और समुंदर की लहरों को मंदिर तक नहीं पहुँचने दिया, इससे पहले पांच बार समुंदर वो मंदिर गिरा चुका था।

जगन्नाथ पुरी के पंडे की रक्षा करना

एक दिन कबीर साहेब राजा सिकन्दर लोदी और वीर सिंह बघेल के सामने बैठे थे। अचानक अपने पैरों पर कमंडल से हिमजल डालने लगे। जब राजाओं ने पूछा तो कबीर साहेब ने बताया कि जगन्नाथपुरी में एक रामसहाय पंडा है उसके पैरों में गर्म खिचड़ी गिर गई है उसे ही बचा रह हूँ। राजा को विश्वास नहीं हुआ उन्होंने घटना की पुष्टि के लिए दो दूत भेजे बनारस से जगन्नाथ पुरी भेजे। दूतों ने न केवल रामसहाय पंडे से पूरी घटना की पुष्टि की बल्कि उपस्थित लोगों से लिखित प्रमाण भी लिया और वापस बनारस जाकर वह प्रमाण राजा को दिखाया। तब राजा ने कबीर साहेब के पास जाकर क्षमा याचना की और उन्हें सर्वशक्तिमान स्वीकारा।

सूखी टहनी हरी करना

गुजरात में जीवा-दत्ता नाम के परमात्मा में आस्थावान भक्त रहते थे जिन्हें तत्वदर्शी सन्त की तलाश थी। उन्होंने एक गमले में सूखी टहनी डाल दी और तय किया कि जिस सन्त के चरण धोने के पश्चात जल से गमले की टहनी हरी हो जाएगी वह सन्त पूर्ण तत्वदर्शी सन्त होगा। वे कई सन्तों को परखते रहे लेकिन न पूर्ण सन्त मिला और न तत्वज्ञान। एक दिन कबीर साहेब पहुंचे और उनके चरण धोए। जल से वह टहनी हरी हो गयी। इसका प्रमाण आज भी गुजरात के भरूच शहर में मौजूद है। वह पेड़ कबीरवट के नाम से जाना जाता है।

अठारह लाख लोगों का भंडारा करना

अठारह लाख लोगों का भंडारा करना

शेख तकी कबीर साहेब से ईर्ष्या करता था। वह परमात्मा को स्वीकार नहीं करना चाहता था साथ ही अलग अलग प्रकार से नीचा दिखाने की योजनाएं बनाता रहता था। इस बात का फायदा काशी के नकली पंडितों ने भी उठाना चाहा क्योंकि कबीर साहेब के सत्य ज्ञान से उनकी ढोंग की दुकान बंद हो रही थी। सबने मिलकर झूठे पत्र लिखे और सिकन्दर लोदी समेत अठारह लाख लोगों को भंडारे में आमंत्रित किया, चिट्ठी में यह भी लिखा कि प्रत्येक भोजन करने वाले को एक दोहर और एक स्वर्ण मोहर भी मिलेगी। ऐसा उन्होंने यह सोचकर किया कि एक जुलाहा इतने लोगों को कैसे भंडार कराएगा। किन्तु जुलाहे की भूमिका करते हुए पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी ने अठारह लाख साधु संतों लोगों को भोजन कराया। सारा भोजन भंडारा सतलोक से लाये तथा प्रत्येक भोजन करने वाले को एक दोहर और एक मोहर दी एवं सूखा सीधा भी दिया। वह अलौकिक भंडारा लगातार तीन दिनों तक चलता रहा।

कबीर साहेब के चमत्कार: मगहर में सूखी पड़ी आमी नदी में जल बहाया

 कबीर साहेब जब मगहर में सशरीर सतलोक जाने के लिए गये तब उनके साथ काशी के सभी लोग व उनके शिष्य भी साथ चले। वहाँ पहुँच कर मगहर रियासत के राजा बिजली खान पठान जो कि कबीर साहेब के शिष्य थे उनसे कबीर साहेब ने बहते जल में स्नान करने के लिए कहा तब बिजली खान पठान ने उस आमी नदी के विषय में बताया जो शिव जी के श्राप से सूखी पड़ी थी। उसी समय कबीर साहेब जी ने अपने आशीर्वाद से नदी में मानो जल को इशारा किया और नदी जल से पूर्ण होकर बहने लगी। आज भी प्रमाण है वह नदी बह रही है। यह कबीर परमेश्वर के सामर्थ्यवान होने का प्रमाण हैं।

कबीर साहेब के चमत्कार: मृत गाय को सभा में जीवित करना

शेख तकी की ईर्ष्यालु प्रवृत्ति के कारण उसने दिल्ली के बादशाह सिकंदर लोधी को प्रेरित किया और कबीर साहेब जी की परीक्षा लेने के लिए कहा। तब राजा ने एक गर्भवती गाय काटकर कहा कि यदि कबीर साहेब इस गाय को जीवित कर देंगे तो मान लिया जाएगा कि कबीर साहेब अल्लाह हैं। कबीर साहेब जी ने गाय और बछड़े को थपकी मारकर हजारों लोगों के सामने जीवित कर दिया था।

मृत गाय को सभा में जीवित करना

महर्षि सर्वानंद की माता को ठीक करना

एक सर्वानन्द नाम के महर्षि थे, उनकी माता शारदा देवी पाप कर्म फल से पीड़ित थीं जिसके कारण उन्हें बहुत शारीरिक कष्ट था। उन्होंने कई वैद्यों और संतों के पास जाकर देख लिया किन्तु उनका रोग ठीक नहीं हुआ। तब अंततः परमात्मा कबीर साहेब जी से नाम उपदेश प्राप्त किया और परमात्मा के आशीर्वाद से वह उसी दिन कष्ट मुक्त हो गई।

नल और नील को शरण में लेना

एक बार एक गाँव में नल और नील नाम के मौसी के पुत्र रहते थे और दोनों मानसिक रोग से ग्रस्त थे। उन्होंने बहुत वैद्य को दिखाया लेकिन कोई आराम नहीं मिला। एक दिन उन्होंने कबीर साहेब (जो कि त्रेता युग में मुनींद्र ऋषि के रूप में आये हुए थे ) का सत्संग सुना तो उन्होंने कबीर जी से दीक्षा ले ली जिससे उनका मानसिक रोग ठीक हो गया।

समुंदर पर पुल बनवाना

कबीर साहेब के चमत्कार: जब सीता जी का हरण हुआ तो श्री राम चंद्र जी समुंदर पर पुल बनवा रहे थे, लेकिन बन नहीं रहा था। इसपर श्री राम चंद्र जी ने परमात्मा से अर्ज की और परमात्मा कबीर साहेब ने उनकी मदद की। कबीर साहेब ने मुनींद्र रूप में अपनी सौटी से एक पहाड़ी के आस- पास रेखा खींचकर सभी पत्थर हल्के कर दिये। फिर बाद में उन पत्थरों को तराशकर समुंदर पर पुल बनाया गया। इस पर धर्मदास जी कहते हैं :-

रहे नल नील जतन कर हार, तब सतगुरू से करी पुकार।
जा सत रेखा लिखी अपार, सिन्धु पर शिला तिराने वाले।
धन-धन सतगुरु सत कबीर, भक्त की पीर मिटाने वाले।

कबीर साहेब के चमत्कार: रंका और बंका की कथा

परमेश्वर कबीर जी एक संत के रूप में पुण्डरपुर के पास एक आश्रम बनाकर सत्संग करते थे। एक परिवार ने भी दीक्षा उस संत से ले रखी थी। परिवार में तीन प्राणी थे। रंका तथा उसकी पत्नी बंका तथा बेटी अवंका। रंका बहुत निर्धन था। दोनों पति-पत्नी जंगल से लकड़ी तोड़कर लाते थे और शहर में बेचकर निर्वाह चला रहे थे। परमात्मा के विधान को गहराई से जाना था। रंका जी का पूरा परिवार कबीर जी (अन्य रूप में विद्यमान थे) का शिष्य था। जिस समय दोनों रंका तथा उसकी पत्नी बंका जंगल से लकड़ियों का गठ्ठा लिए आ रहे थे तो सतगुरू जी अपने शिष्य नामदेव जी को साथ लेकर उस मार्ग में गए। मार्ग में सोने के आभूषण, सोने की असरफी (10 ग्राम सोने की बनी हुई) तथा चांदी के आभूषण तथा सिक्के डालकर स्वयं दोनों गुरू-शिष्य किसी झाड़ के पीछे छिपकर खड़े हो गए और उनकी गतिविधि देखने लगे।

भक्त रंका लकडियां सिर पर लिए आगे-आगे चल रहा था। उनसे कुछ दूरी पर उनकी पत्नी आ रही थी। रंका जी ने उस आभूषण तथा अन्य सोने को देखकर विचार किया कि मेरी पत्नी आभूषण को देखकर दिल डगमग न कर ले क्योंकि आभूषण स्त्री को बहुत प्रिय होते हैं। यह विचार करके सर्व धन पर पैरों से मिट्टी डालने लगा। उसकी पत्नी बंका जी की दृष्टि अपने पति की क्रिया पर पड़ी तो समझते देर न लगी और बोली चलो भक्त जी! मिट्टी पर मिट्टी क्यों डाल रहे हो?

एक दिन रंका तथा बंका दोनों पति-पत्नी गुरू जी के सत्संग में गए हुए थे। अचानक झोंपड़ी में आग लग गई। सर्व सामान जलकर राख हो गया। अवंका दौड़ी-दौड़ी सत्संग में गई और कहा कि माँ! झोंपड़ी में आग लग गई। सब जलकर राख हो गया। माँ बंका जी ने पूछा कि क्या बचा है? अवंका ने बताया कि केवल एक खटिया बची है जो बाहर थी। माँ बंका ने कहा कि बेटी जा, उस खाट को भी उसी आग में डाल दे और आकर सत्संग सुन ले। कुछ जलने को रहेगा ही नहीं तो सत्संग में भंग ही नहीं पड़ेगा। लड़की वापिस गई और उस चारपाई को उठाया और उसी झोंपड़ी की आग में डालकर आ गई और सत्संग में बैठ गई। सुबह उस स्थान पर नई झोंपड़ी लगी थी। सर्व सामान रखा था। आकाशवाणी हुई कि भक्तो! आप परीक्षा में सफल हुए। तीनों सदस्य उठकर पहले आश्रम में गए और झोंपड़ी जलने तथा पुनः बनने की घटना बताई तथा कहा कि हे प्रभु! हम तो नामदेव की तरह ही आपको कष्ट दे रहे हैं। गुरू रूप में बैठे परमात्मा कबीर जी ने कहा कि आपकी आस्था परमात्मा में बनाए रखने के लिए अनहोनी की है। आग भी मैंने लगाई थी, आपका दृढ़ निश्चय देखकर झोंपड़ी भी मैंने बनाई है। आप उसे स्वीकार करें। परमात्मा की महिमा भक्त समाज में बनाए रखने के लिए ये परिचय (चमत्कार देकर परमात्मा की पहचान) देना अनिवार्य है।

कबीर साहेब के चमत्कार: सिकंदर लोधी का जलन का रोग ठीक करना

सिकंदर लोधी कबीर साहेब के समय दिल्ली का शासक था। सिकंदर लोदी को ज्वलन का असाध्य रोग था जिसके लिए वह अनेक वैद्यों व काजियों से परामर्श ले चुका था किन्तु रोग ज्यों का त्यों बना रहा। थक हार कर बादशाह सिकन्दर, राजा वीर सिंह बघेल जो कबीर साहेब के शिष्य थे के कहने पर कबीर साहेब के पास गया। कबीर परमात्मा के आशीर्वाद मात्र से वह ज्वलन का असाध्य रोग ठीक हो गया। यहाँ एक और घटना का उल्लेख करना आवश्यक है कि जब सिकन्दर लोधी कबीर साहेब से मिलने आश्रम गए तो स्वामी रामानंद जी जो मुसलमानों से घृणा करते थे, ने उनका अपमान किया। बादशाह सिकन्दर ने स्वामी जी का सिर तलवार से अलग कर दिया। किन्तु तुरन्त ही बहुत पछताये क्योंकि वह अपने रोग निवारण के लिए आये थे और स्वामी जी की हत्या के बाद कबीर साहेब भला कैसे आशीर्वाद देंगे यह सोचकर बादशाह दुखी हो गए और जैसे ही कबीर साहेब आए तो उन्हें दंडवत प्रणाम कर उनसे क्षमा याचना की। परमेश्वर ने उनके सिर पर हाथ रखा और हाथ रखते ही उनका जलन का रोग समाप्त हो गया।

कबीर साहेब की मगहर लीला

मगहर के बारे में उस वक़्त यह धारणा ततत्कालीन नकली ब्राह्मणों ने फैला रखी थी कि वहाँ मरने वाले की मुक्ति नहीं होती। परमात्मा कबीर जी ने कहा में वहाँ प्राण त्याग करूँगा एवं सभी ज्योतिषाचार्यों एवं पंडितों को कहा कि आप अपने पोथी पत्र ले चलना एवं देख लेना कि कबीर जी कहाँ गए हैं। बीर सिंह बघेल और बिजली खां पठान इस बात पर लड़ने लगे कि हम कबीर साहेब का संस्कार करेंगे जिस पर कबीर साहेब ने उन्हें झगड़ा न करने और चादर के नीचे जो कुछ मिले उसे आधा बाँट लेने की चेतावनी दी। लेकिन कबीर साहेब की मगहर लीला के दौरान शरीर नहीं मिला सिर्फ सफेद चादर के नीचे सुगंधित के फूल मिले थे। जब सभी ने यह देखा तो हैरान रह गए , बिजली खां पठान और बीर सिंह बघेल को अपनी गलती का एहसास हुआ। यह फूल दोनों धर्मों (मुस्लिम एवं हिन्दू) ने आधे – आधे बाँट लिए और अपनी-अपनी यादगार बना ली।

Maghar Story in Hindi कबीर साहेब प्राकट्य Kabir जी काशी से मगहर क्यों गए

आज संत रामपाल जी महाराज के रूप में कबीर साहिब ने अपना नुमाइंदा भेजा हुआ है आज उनके अनुयायियों को वही लाभ हो रहे हैं जो पहले कबीर साहेब अपने शिष्यों को दिया करते थे। आप भी संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा ले। संत रामपाल जी महाराज के बारे में अधिक जानने के लिए आप उनका सत्संग साधना TV पर रात 7:30 pm

सन्त रामपाल जी महाराज द्वारा किये चमत्कार

आज हमारे बीच कबीर साहेब के अवतार तत्वदर्शी सन्त रामपाल की महाराज आये हुए हैं जो वही चमत्कार करके सुख दे रहे हैं जैसे परमेश्वर कबीर देते थे। पूर्ण तत्वदर्शी सन्त से नामदीक्षा शारीरिक, मानसिक और आर्थिक लाभ तो देती ही है साथ ही पूर्ण मोक्ष भी देती है। अनेकों चमत्कार सन्त रामपाल जी की शरण में आये लोगो ने देखे और महसूस किए उनमें से कुछ बानगी के तौर पर प्रस्तुत करते हैं उन्हीं की जुबानी।

  • केशव मैनाली पुत्र श्री इन्द्र प्रसाद मैनाली गाँव विकास समिति हरिऔन, जिला सर्लाही, नेपाल का निवासी पिछले 20 वर्षो से खूनी बवासीर से पीड़ित था। मुझे शौच करते समय अत्यधिक पीड़ा सहन करनी पड़ती थी। साथ ही 8 वर्षों से क्रोनिक ब्रोंकाइटिस से पीड़ित थे।

जब 2 मई 2012 को संत रामपाल जी महाराज से उपदेश लिया और गुरू जी के दर्शन के लिए गये तब  “सब ठीक हो जाएगा” का आर्शीवाद मेरे सिर पर हाथ रखकर संत रामपाल जी ने दिया और मेरे साथ चमत्कार हो गया। सुबह शौच जाने पर पाखाने से खून गिरा और उसके साथ ही बवासीर मानो समाप्त ही हो गया। दो दिन आश्रम में रहने पर क्रोनिक ब्रोंकाइटिस करीब 80 प्रतिशत ठीक हो गया था जो अब पूरा ठीक हो चुका है।

  • मेरा नाम रेनू है और मैं दिल्ली से हूँ। मैने सतगुरु रामपाल जी महाराज जी से नाम दीक्षा लेने से पहले संतोषी माता की 10 साल तक भक्ति की। मुझे माइग्रेन था और पथरी भी थी, और मुझे एक जिन्न बहुत परेशान करता था पर संतोषी माता की भक्ति करने से मुझे किसी भी तरह का कोई लाभ नहीं मिला। संतोषी माता की भक्ति करते हुए हुए वह जिन्न मुझे कहने लगा कि मैं तो तुझे लेकर ही जाऊंगा, मैं तुझे मारूंगा तो मेरे कुछ समझ नहीं आया। हफ्ते-10 दिन हो गए मेरा खाना-पीना सब बंद हो गया। जब मैंने सन्त रामपाल जी महाराज जी से नाम नहीं ले रखा था उससे पहले ही मेरे पति सन्त रामपाल जी महाराज जी से 2012 में ही नाम ले चुके थे। लेकिन जैसे ही मेरे पति घर में आते थे तो वो जिन्न मेरे पास नहीं आ पाता था। पता नहीं कहाँ चला जाता था। मैंने इन घटनाओं के बारे में अपने पति को बताया तो उन्होंने मेरे को समझाया कि सतगुरु रामपाल जी महाराज जी ही है जो तुम्हें बचा सकते है।

तब भी मेरे कुछ समझ में नही आया, तब मेरी स्थिति बहुत खराब थी। मैं चौथे फ्लोर पर रहती हूँ तो फिर रात को उस जिन्न ने ऐसी प्रेरणा की कि मैं चौथे फ्लोर से कूद जाऊं तो मैं कूदने जा रही थी तो सतगुरु रामपाल जी महाराज एकदम से वहाँ प्रकट हो गए, उन्होंने मेरे सिर पर हाथ रखा और बोला कि बेटा कुछ नहीं है यहाँ पर, आप मेरी शरण में आ जाओ। उसके बाद मैं उस रात 15 दिन बाद सोई उसके बाद मेरी आत्मा को एक तरफ 2 यमदूत और दूसरी तरफ मेरे साथ कबीर साहेब और मेरी आत्मा मेरे शरीर से निकलकर जाने लगे तो मैं देखने लगी कि ये क्या हो गया, ये क्या है? मेरे तो कुछ समझ में नही आया और मैं ऊपर-ऊपर चलती चली गयी। ऊपर जाकर पता लगा कि मेरी मृत्यु हो गई है तभी धर्मराय ने बोला तुमको कौन लेकर आया। तो वो यम के दूत चुप खड़े रहे और मैंने एकदम से कबीर साहेब की तरफ देखा और मैंने कहा नहीं-नहीं ये नहीं लेकर आये, मुझे तो कबीर साहेब लेकर आये है। जैसे ही मैंने ये बोला मैं वहां दरबार से एकदम से ऊपर चली गयी। वहां पर सद्गुरु रामपाल जी महाराज जी ने मुझे बताया कि बेटी तुम्हारी उम्र बस इतनी ही थी, तुम्हे आज मैंने जीवनदान दिया है और अब अपनी भक्ति करो और इस संसार में कुछ नही रखा। इतना कहने के बाद फिर सतगुरु रामपाल जी महाराज जी ने उस जिन्न को बहुत मारा और जिन्न से कहा तू जहाँ से आया है वही जा। तो वह जिन्न 3002 नम्बर पुकारने लगा तो मैं उसी समय मेरे शरीर में आ गयी। उसके बाद मैंने सन्त रामपाल जी महाराज से नामदीक्षा 20 अक्टूबर 2013 में ले ली। 

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