Who were the Seu & Samman: Motivational & Moral Story in Hindi

spot_img

सेऊ, सम्मन और नेकी की कथा [कहानी]

एक समय की बात है। एक सम्मन नाम का मनियार था। उसकी पत्नी का नाम नेकी था। दोनों पति-पत्नी बहुत निर्धन थे। वह कबीर साहेब के ज्ञान से परिचित होकर उनके शिष्य बन चुके थे। उनका एक 10-12 वर्ष का लड़का था। जिसका नाम सेऊ था। वैसे तो उसका नाम शिव था परंतु सब प्यार से सेऊ कहा करते थे। सेऊ, सम्मन तथा नेकी परमात्मा के ज्ञान में इतने रंग गए थे कि जहां भी दोनों पति पत्नी नगर-गाँव में चूड़ियां पहनाने जाते तो वहाँ कबीर साहेब की चर्चा किया करते थे कि  हमारे गुरु जी इतने सक्षम हैं कि सिकंदर लौधी की जलन का रोग ठीक कर दिया। एक गाय काट दी थी सिकंदर लोधी ने वह जीवित कर दी। सब औरतें सुनती तो थीं लेकिन मन में  दोष  रखती थी की यह गरीब आदमी इनके गुरु ने बहका रखे हैं। ऐसा कभी हो सकता है ! अगर ऐसा होता तो ये इतने गरीब क्यों हैं? आदि- आदि सब विचार करती थीं मगर बोलती नहीं थी।

कबीर साहेब जी द्वारा सेऊ, सम्मन और नेकी की परीक्षा लेना।

एक दिन सेऊ घर में अपने माता-पिता से चर्चा कर रहा था कि एक बार गुरु जी अपने घर आ जाएं तो जो गाँव के बच्चे यूं कहते हैं कि तुम्हारे गुरु जी तो राजाओं के जाते हैं, शेठ-शाहूकारों के जाते हैं, तुम्हारे घर क्यों नहीं आते? तुम्हारे घर आये हैं कभी? जब तुम्हारे घर आयें तब मानेंगे तुम्हारे गुरु जी कोई भेद- भाव नहीं करते। इस प्रकार बच्चे सेऊ को चिढ़ाते जिस कारण सेऊ बहुत दुखी था। उस दिन चर्चा ही चल रही थी कि इतने में बीर साहेब अपने दो शिष्यों (कमाल तथा शेख फ़रीद) के साथ उनके घर अचानक पहुंच गए। आवाज लगाई, कोई है घर पे! तीनों ने आवाज सुनी तो विचार किया कि आवाज तो गुरु जी की लगती है फिर सोचा गुरु जी यहाँ कैसे आ सकते हैं।

इतने में कबीर साहेब ने दुबारा आवाज लगाई तो तीनों के तीनों पीछे वाली कुटिया से आगे गेट की तरफ दौड़ पड़े। तीनों कबीर साहेब को द्वार पर खड़ा देख कर स्तब्ध रह गए कि यह हकीकत देख रहे हैं या कोई स्वपन। कहीं आशा भी नहीं  थी उनको कि उनके द्वार पर स्वयं परमात्मा आएंगे। तब कमाल ने कहा कि गुरु जी को बैठने के लिए भी कहोगे या खड़े रखोगे! तब उनका स्वपन सा टूटा चरणों में  गिर गए। दण्डवत प्रणाम किया फिर सब बैठ गए। काफी समय तक परमात्मा की चर्चा चलती रही। फिर सम्मन ने कहा कि परमात्मा खाने का विचार बताएँ, खाना कब खाओगे? कबीर साहेब ने कहा कि भाई भूख तो लगी है, सभी पैदल चलकर आये हैं । आप भोजन की तैयारी करो।

सम्मन इतना गरीब था कि कई बार घर में  अन्न का एक दाना भी नहीं  होता था। सारा परिवार भूखे पेट सो जाता था। आज वही दिन था। सम्मन अन्दर घर में जा कर अपनी पत्नी नेकी से बोला कि भोजन बनाओ गुरु जी को भूख लगी है सब भोजन करेंगे। तब नेकी ने कहा कि घर पर अन्न का एक दाना भी नहीं है। सम्मन ने कहा पड़ोस वालों से उधार मांग लाओ। नेकी ने कहा कि मैं मांगने गई थी लेकिन किसी ने भी उधार आटा नहीं दिया। उन्होंने आटा होते हुए भी जान बूझ कर नहीं दिया और कह रहे हैं कि आज तुम्हारे घर तुम्हारे गुरु जी आए हैं। तुम कहा करते थे कि हमारे गुरु जी भगवान हैं। आपके गुरु जी भगवान हैं तो तुम्हें माँगने की आवश्यकता क्यों पड़ी ? ये ही भर देगें तुम्हारे घर को। तुम्हारे गुरु जी तो बहुत चमत्कार करते हैं आदि-2 कह कर मजाक करने लगे, नहीं  तो उधार आटा तो कोई भी दे ही देता है गांव में परंतु ये पैसे वाले होने के कारण आज हमारी गरीबी का मजाक उड़ा रहे हैं। सम्मन ने कहा लाओ आपका चीर गिरवी रख कर तीन सेर आटा ले आता हूँ। विचार करने की बात है कि द्रोपदी का चीर उतारने पर महाभारत हो गई थी। इज्जत और बेइज्जती का सवाल था और दूसरी तरफ सम्मन अपने गुरुदेव की सेवा के लिए, उन्हें भोजन कराने के लिए, अपनी पत्नी का चीर गिरवी रखने को तैयार था। तब नेकी ने कहा मैं लेकर गई थी इस चीर को लेकिन यह चीर फटा हुआ है। इसे कोई गिरवी भी नहीं रखता। सम्मन सोच में पड़ जाता है। कलेजा पकड़ कर जमीन और बैठ जाता है और अपने दुर्भाग्य को कोसते हुए कहता है कि मैं कितना अभागा हूँ।

आज मेरे घर भगवान आए और मैं उनको भोजन भी नहीं करवा सकता। हे परमात्मा! ऐसे पापी प्राणी को पृथ्वी पर क्यों भेजा। मैं इतना नीच रहा हूँगा कि  पिछले जन्म में कोई पुण्य नहीं किया। अब सतगुरु को क्या मुंह दिखाऊँ? यह कह कर अन्दर कोठे में जा कर फूट-2 कर रोने लगा। बहुत चिंतित हो गया। तब उसकी पत्नी नेकी कहने लगी कि चिंता मत करो, कुछ यत्न करो। रो मत, परमात्मा आये हैं। इन्हें ठेस पहुँचेगी सोचेंगे हमारे आने से तंग आकर रो रहे हैं। सम्मन ने कहा बताओ क्या यत्न करूँ ? नेकी ने कहा अभी गुरुदेव जी को हाथ जोड़ कर कह दो कि परमात्मा भोजन सुबह कराएंगे वो तो अंतर्यामी हैं सब समझ जाएंगे तो सम्मन ने कहा कि फिर सुबह कहाँ से लाएंगे ? मैं भोजन तो करवा नहीं  पा रहा गुरुदेव को झूठा ओर बनूँगा ।

भगवान को प्रसन्न करने के लिए सेऊ व सम्मन का सेठ के घर चोरी करने जाना।

तब नेकी ने कहा की आप आज रात्रि में दोनों पिता पुत्र जा कर कहीं से तीन सेर (पुराना बाट किलो ग्राम के लगभग) आटा चुरा कर लाना। केवल संतो व भक्तों के लिए। फिर इनको भोजन करवा कर विदा कर देंगे। तब लड़का सेऊ बोला माँ- गुरु जी सत्संग में कहते हैं की चोरी करना पाप है। फिर आप भी मुझे शिक्षा दिया करती कि बेटा कभी चोरी नहीं  करनी चाहिए। जो चोरी करते हैं उनका सर्वनाश होता है। आज आप यह क्या कह रही हो माँ ? क्या हम पाप करेंगे माँ ? अपना भजन नष्ट हो जाएगा। माँ हम चौरासी लाख योनियों में कष्ट पाएंगे। ऐसा मत कहो माँ, माँ आपको मेरी कसम तब नेकी ने कहा पुत्र तुम ठीक कह रहे हो। चोरी करना पाप है|

परंतु पुत्र हम अपने लिए नहीं बल्कि संतों के लिए करेंगे। जिस नगर में निर्वाह किया है। इसकी रक्षा के लिए चोरी करेंगे। नेकी ने कहा बेटा- इस नगर में माया अधिक है। ये नगर के लोग अपने से बहुत चिढ़ते हैं। हमने इनको कहा था कि हमारे गुरुदेव कबीर साहेब (पूर्ण परमात्मा) पृथ्वी पर आए हुए हैं। इन्होंने एक मृतक गऊ तथा उसके बच्चे को जीवित कर  दिया था जिसके टुकड़े सिकंदर लोधी ने करवाए थे। एक लड़के तथा एक लड़की को जीवित कर दिया। सिकंदर  लोधी  राजा का जलन का रोग समाप्त  कर दिया तथा श्री स्वामी रामानन्द जी (कबीर साहेब के गुरुदेव) को सिकंदर लौधी ने तलवार से कत्ल कर दिया था वे भी कबीर साहेब ने जीवित कर दिए थे।

इस बात का ये नगर वाले मजाक कर रहे हैं और कहते हैं कि आपके गुरु कबीर तो भगवान हैं तुम्हारे घर को भी अन्न से भर देंगे। फिर क्यों अन्न (आटे) के लिए घर घर डोलती फिरती हो? बेटा ये नादान प्राणी हैं यदि आज साहेब कबीर इस नगरी का अन्न खाए बिना चले गए तो इसका दोष इस नगर को लगेगा। काल भगवान भी इतना नाराज हो जाएगा कि कहीं इस नगरी को समाप्त न कर दे। हे पुत्र! इस अनर्थ को बचाने के लिए अन्न की चोरी करनी है। अगर तुम इस नगर के हितकारी हो तो आज यह चोरी करनी पड़ेगी| इसे हम नहीं खाएंगे।

केवल अपने सतगुरु तथा आए भक्तों को प्रसाद बना कर खिलाएँगे। यह कह कर नेकी की आँखों में आँसू भर आए और कहा पुत्र! नाटियो मत अर्थात् मना नहीं करना। तब अपनी माँ की आँखों के आँसू पोंछता हुआ लड़का सेऊ कहने लगा – माँ रो मत, आपका पुत्र आपके आदेश का पालन करेगा। माँ आप तो बहुत अच्छी हो न। अर्ध रात्रि के समय दोनों पिता (सम्मन) पुत्र (सेऊ) चोरी करने के लिए चल दिए। एक सेठ की दुकान की दीवार में छिद्र किया। सम्मन ने कहा कि पुत्र में अन्दर जाता हूँ। यदि कोई व्यक्ति आए तो धीरे से कह देना मैं आपको आटा पकड़ा दूंगा और ले कर भाग जाना। तब सेऊ ने कहा नहीं पिता जी, मैं अन्दर जाऊँगा।

यदि मैं पकड़ा भी गया तो बच्चा समझ कर माफ कर दिया जाऊँगा। सम्मन ने कहा पुत्र! यदि आपको पकड़ कर मार दिया तो मैं और तेरी माँ कैसे जीवित रहेंगे? सेऊ प्रार्थना करता हुआ छिद्र द्वार से अन्दर दुकान में प्रवेश कर गया। तब सम्मन ने कहा पुत्र केवल तीन सेर आटा लाना, अधिक नहीं। लड़का सेऊ लगभग तीन सेर आटा अपनी फटी पुरानी चद्दर  में बाँध कर चलने लगा तो अंधेरे में तराजू के पलड़े पर पैर रखा गया। जोर दार आवाज हुई जिससे दुकानदार जाग गया वो  वहीं दुकान में सो रहा था और सेऊ जो बाहर निकलने की कोशिश कर रहा था उसे चोर-चोर करके पीछे से पैरों से पकड़ लिया और वापिस घसीट कर रस्से से बाँध दिया।

Read Also: Krishna Janmashtami: What does our Holy Geeta Ji say?

इससे पहले सेऊ ने वह चद्दर में बंधा हुआ आटा उस छिद्र से बाहर फेंक दिया और कहा पिता जी मुझे सेठ ने पकड़ लिया है। आप आटा ले जाओ और सतगुरु व भक्तों को भोजन करवाना। मेरी चिंता मत करना। उधर सेठ कहने लगा अच्छा तुम चोर भी हो वैसे तो भगत बने फिरते थे। आज तुम्हारी पोल खुल गई तब सेऊ ने कहा लाला जी हम चोर नहीं  है| हमारे घर हमारे गुरु जी आए हैं और हमारे घर भोजन कराने को आटा नहीं  था। कोई नगर का व्यक्ति  उधार भी नहीं  दे रहा था। हमने सिर्फ तीन सेर आटा लिया है वो भी संतो के लिए। हम नही खाएंगे। हम आपका फिर दे देंगे कमा कर के। तब सेठ कहने लगा कि अच्छा अब पता चला कि चोरी तो तुम्हारे गुरु करवाते हैं तुमसे। अब चोर को क्या पीटें, चोर की माँ को सजा देंगे। सुबह होने दो। राजा को शिकायत कर तुम्हारे गुरु जी को सजा कराएंगे।

सेऊ और चिंतित हो गया कि यह तो जुल्म हो गया। कल को यह लोग गुरु जी की बेज्जती करेंगे। उनको कितना दुख पहुँचेगा। उधर आटा ले कर सम्मन घर पर गया तो सेऊ को न पा कर नेकी ने पूछा लड़का कहाँ है? सम्मन ने कहा उसे सेठ जी ने पकड़ कर थम्ब से बांध दिया। तब नेकी ने कहा कि आप वापस जाओ और लड़के सेऊ का सिर काट लाओ क्योंकि लड़के को पहचान कर अपने घर पर लाएंगे। फिर सतगुरु को देख कर नगर वाले कहेंगे कि ये हैं जो चोरी करवाते हैं। हो सकता है सतगुरु देव जी को परेशान करें। हम पापी अपने दाता को भोजन के स्थान पर कैद न करवा दें। आप बच्चे की गर्दन काट लाओ ताकि लाला डर के मारे कुछ कर न सके। इस उद्देश्य से अपने गुरुदेव की इज्जत बचाने के लिए, एक माँ अपने बेटे का सिर काटने के लिए अपने पति से कह रही है।

पिता सम्मन का पुत्र सेऊ का सिर काटना।

सम्मन ने हाथ में कर्द (लंबा छुरा) लिया तथा दुकान पर जाकर धीमी आवाज में  कहा सेऊ बेटा, एक बार गर्दन बाहर निकाल। कुछ जरूरी बातें करनी है। कल तो हम नहीं मिल पाएंगे हो सकता है यह आपको मरवा दें! तब सेऊ उस सेठ (बनिए) से कहता है कि सेठ जी बाहर मेरा बाप खड़ा है। कोई जरूरी बात करना चाहता है। तब सेठ ने कहा नहीं  तुम भाग जाओगे। तब सेऊ ने कहा कृपया करके आप बस मेरे रस्से को इतना ढीला कर दो कि मेरी गर्दन छिद्र से बाहर निकल जाए। तब सेठ ने उसकी बात को स्वीकार करके रस्सा इतना ढीला कर दिया कि गर्दन आसानी से बाहर निकल गई। जब सेऊ ने गर्दन बाहर निकाली तो पिता का हाथ नहीं  उठा अपने बेटे की गर्दन काटने के लिए। कर्द पीछे छुपा ली तब सेऊ ने कहा पिता जी आप मेरी गर्दन काट दो। यदि आप मेरी गर्दन नहीं काटोगे तो आप मेरे पिता नहीं हो। मुझे पहचानकर घर तक सेठ पहुंचेगा। राजा तक इसकी पहुँच है। यह अपने गुरुदेव को मरवा देगा। पिताजी हम क्या मुख दिखाएंगे ?

सम्मन ने एकदम करद मारी और सिर काट कर घर ले गया। सेठ ने लड़के को कत्ल हुआ देख कर सोचा अब 302 का मुकदमा मुझपर लगेगा तो उसने सेऊ के शव को घसीट कर साथ ही एक पजावा (ईंटें पकाने का भट्ठा) था उस खण्डहर में डाल गया और अपनी उस दीवार को लीप-लाप कर, रेता मार कर ऐसा कर दिया जैसे मानो कुछ हुआ ही नही। जब सम्मन शीश लेकर घर पहुंच तो नेकी ने कहा कि आप अब फिर वापिस जाओ और लड़के के धड़ को शेठ कहीं जंगल में डालकर आएगा। आप उसे भी उठा लाओ क्योंकि हो सकता है दिन में शव मिलने पर छान बिन हो कि किसका शव है, बात खुलेगी।

आप उसे भी घर ले आओ। तब सम्मन दुकान पर पहुँचा और शव की घसीट (चिन्हों) को देखते हुए शव के पास पहुँच कर उसे कंधे पर उठा लाया। ला कर अन्दर कोठे में रख कर ऊपर पुराने कपड़े (गुदड़) डाल दिए और सिर को अलमारी के ताख (एक हिस्से) में रख कर खिड़की बंद कर दी।

कुछ समय के बाद सूर्य उदय हुआ। लड़के का कत्ल हुआ पड़ा है। सम्मन ने नेकी से कहा कि रोना मत।अगर आप रो पड़े तो गुरु जी को पता चल जाएगा फिर वो भोजन नहीं  खाएंगे। तब फिर नेकी ने स्नान किया। सतगुरु व भक्तों का खाना बनाया। तथा कहा कि गुरुदेव जी से भोजन की प्रार्थना करो। उनको शाम से भूख लगी होगी। इस लिए वक्त से बना दिया है और उन्होंने सुबह जल्दी जाने के लिए भी कहा था तो वक्त से खा कर फिर चले जाएंगे। इनको पता नहीं  लगेगा पता चल गया   तो यह रोटी नहीं  खाएंगे। तब सम्मन ने सतगुरु कबीर साहेब जी से भोजन करने की प्रार्थना की। कहा आओ महाराज ! भोजन तैयार है। नेकी ने साहेब कबीर व दोनों भक्त (कमाल तथा शेख फरीद), तीनों के सामने आदर के साथ भोजन परोस दिया। जितना भी भोजन बना था सारा तीन पात्रों में डाल दिया।

तब साहेब कबीर ने कहा ऐसे नही इसे छ: दोन्हों (वर्तन ) में डाल कर आप तीनों भी साथ बैठो तथा यह प्रेम प्रसाद पाओ। आप भी तो मेरे बच्चे हो। अब नेकी और सम्मन ने पाँच दोन्हों में डाल दिया तब कबीर साहेब ने कहा इसे छ: में डालो। तब वो कहने लगे कि बच्चा बाहर खेलने गया है देर से आएगा। तब कबीर साहेब ने कहा कि जब आएगा तो खा लेगा आप उसके लिए भी डालो बहुत  प्रार्थना करने पर भी साहेब कबीर नहीं माने तो छः दोन्हों  में प्रसाद परोसा गया। पाँचों प्रसाद के लिए बैठ गए।

तब साहेब कबीर जी ने कहा:-

आओ सेऊ जीम लो, यह प्रसाद प्रेम।

शीश कटत हैं चोरों के, साधों के नित्य क्षेम।।

सेऊ धड़ पर शीश चढ़ा, बैठ्या पंगत माही

नहीं  निशानी गर्दन के, ये वो सेऊ है नाही।।

साहेब कबीर ने कहा कि सेऊ आओ भोजन पाओ। सिर तो चोरों के कटते हैं। संतो (भक्तों) के नहीं। उनकी तो रक्षा होती है साहेब कबीर ने इतना कहा था की उसी समय सेऊ के धड़ पर सिर लग गया। कटे हुए का कोई निशान भी गर्दन पर नहीं था तथा पंगत (पंक्ति) में बैठ कर भोजन करने लगा। बोलो कबीर साहेब (कविरमितौजा) की जय। (कविर = कविर्देव =कबीर परमेश्वर, अमित + औजा = जिसकी शक्ति का कोई वार-पार न हो।) सम्मन तथा नेकी ने देखा कि गर्दन पर कोई चिन्ह भी नहीं है। लड़का जीवित कैसे हुआ ? अन्दर जा कर देखा तो वहाँ शव तथा शीश नहीं था। केवल रक्त के छीटें लगे थे जो इस पापी मन के संशय को समाप्त करने के लिए प्रमाण बकाया था।

समर्थ का शरणा गहो रंग होरी हो। कबहु ना हो ए-काज राम रंग होरी हो।।

इस पूरी घटना के बाद सम्मन लगातार चिन्तित रहने लगा कि यदि मेरे पास धन होता तो मुझे अपने बच्चे की गर्दन नहीं काटनी पड़ती सम्मन की इस इच्छा को पूरी करने के लिए कबीर साहिब जी ने उसे बहुत बड़ा खजाना दे दिया, सम्मन नगर का सब से बड़ा सेठ बन गया लेकिन इच्छा रहने से मोक्ष नहीं हो पाया |

उधर नेकी ओर सेऊ  ने डट कर भक्ति की इससे कबीर साहिब जी ने दोनों को पार किया |

 तो पाठको यह थी सेऊ, सम्मन और नेकी की कथा (Motivational & Moral Story in Hindi) हम आशा करते हैं  की आप को यह कहानी पसंद आयी होगी।

Spiritual Leader

 

Latest articles

Maharashtra Day (महाराष्ट्र दिवस 2024): एक अलग राज्य के रूप में मराठी गरिमा का प्रतीक

महाराष्ट्र दिवस (Maharashtra Day) भारतीय राज्य महाराष्ट्र में हर साल 1 मई को धूमधाम...

Kotak Mahindra Bank: आरबीआई का एक्शन कोटक बैंक की बढ़ी टेंशन, नए ऑनलाइन ग्राहक जोड़ने और नए क्रेडिट कार्ड पर रोक

हाल ही में बीते बुधवार अर्थात 24 अप्रैल को रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI)...

On World Intellectual Property Rights Day Know What Defines Real Intellect of a Human

Last Updated on 24 April 2024 IST: Every April 26, World Intellectual Property Day...

Iranian President Ebrahim Raisi’s Pakistan Visit: Strengthening Ties

Iranian President Ebrahim Raisi is on a 3 day visit to the South Asian...
spot_img

More like this

Maharashtra Day (महाराष्ट्र दिवस 2024): एक अलग राज्य के रूप में मराठी गरिमा का प्रतीक

महाराष्ट्र दिवस (Maharashtra Day) भारतीय राज्य महाराष्ट्र में हर साल 1 मई को धूमधाम...

Kotak Mahindra Bank: आरबीआई का एक्शन कोटक बैंक की बढ़ी टेंशन, नए ऑनलाइन ग्राहक जोड़ने और नए क्रेडिट कार्ड पर रोक

हाल ही में बीते बुधवार अर्थात 24 अप्रैल को रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI)...

On World Intellectual Property Rights Day Know What Defines Real Intellect of a Human

Last Updated on 24 April 2024 IST: Every April 26, World Intellectual Property Day...