November 17, 2024

ईद मिलाद उन नबी 2024: ईद ए मिलाद पर जानें अल्लाह बेचून है या जिस्मानी?

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Last Updated on 16 September 2024 IST | Eid Milad-un-Nabi 2024 (Eid e Milad in Hindi): प्रत्येक मजहब और धर्म में अलग-अलग तरह से अल्लाह की इबादत और पूजा की जाती है। उसकी इबादत और पूजा को शुरू करने वाले अवतार, पैगंबर, पीर, फकीर, मौलवी, काज़ी और पंडित होते हैं। प्रत्येक धर्म में उन अवतारों, पैगंबरों, फकीरों, फरिश्तों व संतों के जन्मदिन को उस धर्म के लोग त्योहार के रूप में मनाते हैं। उन महापुरुषों से जुड़ी हुई कुछ घटनाएं याद रूप में स्थापित हो जाती हैं जो समय के साथ एक त्योहार का रूप ले लेती हैं।

इसी प्रकार मुस्लिम समुदाय जिसे इस्लाम मजहब भी कहा जाता है, उनका एक महत्वपूर्ण त्योहार है ईद-ए- मिलाद। यह मुसलमानों का दूसरा सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है। विश्व के विभिन्न इस्लामिक देशों में इसे बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। ईद मिलाद उन नबी इस्लाम धर्म के मानने वालों के लिए एक प्रमुख त्योहार है। इस शब्द का मूल मौलिद (mawlid) है जिसका अर्थ अरबी भाषा मे “जन्म” होता है। अरबी भाषा में ‘मौलिद-उन-नबी’ का मतलब है हज़रत मुहम्मद का जन्मदिन। जबकि इस्लामी मान्यताओं के अनुसार, इसी दिन पैगंबर हजरत मोहम्मद (Prophet Hazrat Muhammad) का जन्म भी हुआ था और मृत्यु भी। दोनों ही कारणों से ये दिन मुस्लिमों के लिए बहुत खास है।

ईद मिलाद उन नबी से जुड़े मुख्य बिंदु

  • पैगंबर मोहम्मद इस्लाम धर्म के संस्थापक हैं।
  • ईद उल मिलाद पैगंबर मोहम्मद के जन्मदिन और मृत्यु के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।
  • शिया मुस्लिम समुदाय के लोग इस त्योहार को खुशी के रूप में मनाते हैं।
  • सुन्नी समुदाय ईद ए मिलाद को अपने अंतिम नबी की मृत्यु की याद में मनाता है।
  • इस दिन औरतें घर पर ही नमाज अदा करती हैं।
  • पैगंबर मोहम्मद के सम्मान में इस दिन जगह जगह जुलूस निकाले जाते हैं। 
  • मुस्लिम इस दिन अपना समय इबादत में बिताते हैं और अल्लाह से दुआ और पैगंबर मोहम्मद साहब को सलाम भेजते हैं।
  • अल्लाह की प्राप्ति के लिए अवश्य पढ़ें पुस्तक ‘मुसलमान नहीं समझे ज्ञान कुरान’।

ईद ए मिलाद (Eid e Milad India) कब है?

ईद मिलाद उन नबी का त्योहार इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार रबी-उल-अव्वल के तीसरे महीने की 12वीं तारीख को मनाया जाता है। इस दिन दुनिया भर के मुसलमान हजरत मुहम्मद जी के जन्म का जश्न मनाते है। ईद ए मिलाद के दिन सभी मुस्लिम धर्म के लोग अपने घर और मस्जिद में अल्लाह की इबादत करते हैं। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार 2024 में सितंबर महीने की तारीख 15 की शाम से तारीख 16 की शाम तक यह त्योहार मनाया जाएगा। 

ईद ए मिलाद या ईद मिलाद उन नबी का अर्थ हजरत मुहम्मद का जन्म दिन भी है और इस अवसर पर संकीर्तन पठन या गायन को भी “मौलिद” कहा जाता है, जिसमें सीरत और नात भी पढ़ी जाती हैं। 

इस्लाम धर्म के अनुसार ईद उल मिलाद क्यों मनाई जाती है?

इतिहासकारों के अनुसार हज़रत मुहम्मद जी के जन्म की सही तारीख अज्ञात है, पर मुस्लिमों का मानना है कि उनका जन्म वर्ष 570 ईस्वी में हुआ था। मुस्लिम समुदायों शिया ओर सुन्नी में हमेशा ईद मिलाद उन नबी त्योहार को मनाने में अपना अलग अलग मतभेद है जो आज भी कायम है। शिया मुस्लिम समुदाय के लोग इस त्योहार को इसलिए मनाते हैं क्योंकि इस दिन पैगंबर मुहम्मद ने हज़रत अली को अपने उत्तराधिकारी के रूप में चुना था। जिसके कारण उनका ज्ञान पीड़ियों से चलता हुआ आया है।

Eid e Milad in Hindi (Eid-e-Milad-un-nabi): परन्तु दूसरी ओर सुन्नी समुदाय इसको एक मातम के रूप में मनाते हैं क्योंकि उनका मानना था कि इस्लाम धर्म के नबी हजरत मोहम्मद खुदा के रसूल थे। जिन्होंने तरह-तरह की मनमुखी साधना अर्थात इबादत को बंद कराकर एक खुदा की बंदगी करने के लिए सभी को प्रेरित किया। उन्होंने अपने अनुयायियों को कलमा, रोज़ा और बंग, अज़ान आदि बंदगी के लिए प्रेरित किया। पैगंबर मोहम्मद मुस्लिम धर्म के एक आखिरी अध्यात्मिक गुरु भी थे तथा उनकी इसी दिन मृत्यु हुई थी। जिस कारण से सुन्नी समुदाय ईद उल मिलाद को अपने अंतिम नबी की मृत्यु की याद में मनाता है। ऐसा मुस्लिम धर्म गुरुओं का मानना है।

ईद ए मिलाद का इतिहास (Eid e Milad History in Hindi)

सऊदी अरब के मक्का में जन्मे पैगंबर हजरत मोहम्मद जी को आज पूरी दुनिया हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के नाम से जानती है। मोहम्मद साहब के पिताजी का नाम अब्दुल्लाह और माताजी का नाम अमीना बीबी था। माना जाता है कि मोहम्मद जी को अल्लाह (कालब्रह्म) ने कुरान का ज्ञान दिया था। इसके बाद ही उन्होंने पवित्र कुरान शरीफ/मजीद के संदेश का प्रचार प्रसार किया। 11वीं शताब्दी में इजिप्ट के शासक कबीले द्वारा मौलिद (mawlid) को मनाया गया था जिसके बारे में ऊपर बताया गया है।

■ Read in English: Eid ul-Milad: Know on Eid Milad-un-Nabi who is the last Prophet at 

इस पूरे दिन अल्लाह की इबादत और प्रार्थना की जाती है। कबीले के नेता भाषण देते हैं और पवित्र कुरान की आयतें पढ़ते हैं। इस दिन के पालन का सबसे हालिया रूप 12वीं शताब्दी में शुरू हुआ, जब सीरिया, तुर्की, मोरक्को और स्पेन जैसे देशों ने इसका पालन करना शुरू किया। इस्लाम के दो प्रमुख संप्रदाय सुन्नी और शिया एक ही महीने में अलग-अलग दिनों में इस अवसर को मनाते हैं। सुन्नी महीने की 12 तारीख के दिन मनाते हैं, जबकि शिया इसे 17 तारीख को मनाते हैं। 

Eid e Milad in Hindi | क्या कुरान शरीफ में ईद उल मिलाद मानने का ज़िक्र किया गया है?

पैगंबर हजरत मोहम्मद जी, खुदा के सच्चे ज्ञान को अपने अनुयायियों तक पहुंचाने वाले एक पाक नबी थे। जिन्होंने इस्लाम धर्म को एक नया आयाम दिया। उन्होंने खुदा की इबादत करने के लिए लोगों को प्रेरित किया। क्योंकि खुदा ने अपना आध्यात्मिक ज्ञान हजरत मोहम्मद के जरिए कुरान के माध्यम से दिया। कुरान में अल्लाह की बंदगी के लिए एक ऐसा इशारा किया गया है जिसे समझे बिना आप कुरान शरीफ में बताए गए अल्लाह की प्राप्ति नहीं कर सकते हैं।

गौर करने वाली बात यह है कि आज हम कुरान शरीफ को सर्वोपरी मानते हैं लेकिन क्या हम हजरत मोहम्मद के आदेशों का पालन कर रहे हैं?

  • क्या हम सभी हज़रत मुहम्मद जी द्वारा दिये इस्लाम धर्म का पालन कर रहे है ?
  • वर्तमान में हम जो इबादत कर रहे हैं क्या उससे अल्लाह की प्राप्ति हो सकती है?

ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिसके जवाब देने से हम हमेशा से बचते रहे हैं क्योंकि कुरान शरीफ में कही ईद उल मिलाद मनाने का अल्लाह का आदेश नहीं है। तो फिर अल्लाह के आदेश को न मानकर हम उसके नुमाइंदों का कहा क्यों मान रहे हैं जिससे हमें कोई लाभ नहीं मिल रहा है केवल हानि ही हो रही है। कुरान शरीफ की आयतों में ईद उल मिलाद मनाने का प्रमाण नहीं मिलता है। यहां हमें रुढ़ीवादी नहीं, अपितु विचारवान होना चाहिये। हज़रत मुहम्मद जी स्वयं बोल रहे है कि जिस अल्लाह की तुम भक्ति कर रहे हो वह वास्तव में अल्लाह हु अकबर है या नहीं, यह जरूर पता करो। पवित्र कुरान शरीफ सूरत इखलास में स्पष्ट है कि उस अल्लाह का न तो जन्म होता है और ना ही उसकी मृत्यु होती है वो तो अमर है। फिर हम सभी किस आधार से ईद उल मिलाद मनाते हैं और अल्लाह को बैचून क्यों मानते हैं।

अल्लाह कबीर जी ही खुदा है

पूर्ण परमात्मा यानि अल्लाह हु अकबर आज से लगभग 600 वर्ष पूर्व काशी में 120 वर्ष तक लीला करने सशरीर आये थे और फिर सशरीर गये थे। वह अविनाशी अल्लाह हु अकबर और कोई नहीं बल्कि कबीर परमात्मा हैं। उन्होंने किसी भी माता के गर्भ से जन्म नहीं लिया। इसी का प्रमाण हिन्दू धर्म के सभी पवित्र चारों वेदों और पुराणों में वर्णित है।

■ यह भी पढ़ें: Bakrid [Hindi]-बकरीद (ईद-उल-अजहा): कुरान में कुर्बानी देने का आदेश अल्लाह का नहीं है 

Eid e Milad in Hindi (Eid-e-Milad-un-nabi) Special info: अल्लाह ने अपना अध्यात्मिक ज्ञान हजरत मोहम्मद साहब के जरिए कुरान के माध्यम से दिया है। कुरान शरीफ सूरत फुरकान 25 आयत 52 से 59 में कहा है कि खुदा की इबादत की सही विधि किसी बाखबर अर्थात इल्मवाले जो खुदा की जानकारी रखता हो तथा सभी धर्मों के पवित्र सदग्रंथों के आधार से ज्ञान प्रदान करता हो उससे पूछो।

हजरत मुहम्मद जी को मिले कबीर परमेश्वर जी

हजरत मुहम्मद जी को भी जिंदा वेश धारण करके मक्का शहर में खुदा कबीर मिले थे। कबीर साहेब ने संत गरीबदास को बताया है कि

मुहमंद बोध सुनो ब्रह्म ज्ञानी, शंकर दीप से आये प्राणी।।

लोक दीप कूं हम लेगैऊ, इच्छा रूपी वहाँ न रहेऊ।।

उलट मुहमंद महल पठाया, गुझ बीरज एक कलमा धाया।।

रोजा बंग, निवाज दई रे, बिसमल की नहीं बात कही रे।।

अर्थात् कबीर जी ने बताया है कि नबी मुहम्मद की आत्मा शिव (तमगुण) देवता के (शंकर द्वीप) लोक से आयी थी। उनको काल के भेजे फरिस्ते जबरील ने काल ब्रह्म वाला ज्ञान डरा-धमकाकर बताया जो हजरत मुहम्मद ने जनता तक पहुँचाया जो अधूरा तथा काल जाल में फँसाए रखने वाला ज्ञान है। जब मैंने (कबीर खुदा ने) देखा कि नेक आत्मा मुहम्मद काल के जाल में फँस गए हैं, तब उसे मिला। यथार्थ ज्ञान समझाया। उनके आग्रह पर उनको ऊपर अपने लोक में जहाँ मेरा (तख्त) सिंहासन है, लेकर गया। उसका शंकर द्वीप भी दिखाया जहाँ से वह पृथ्वी पर आया था। परंतु मुहम्मद ने सतलोक में रहने की इच्छा व्यक्त नहीं की। इसलिए वापिस शरीर में छोड़ दिया। फिर भी मुहम्मद की समय-समय पर गुप्त मदद करता रहा। वाणी (मुहम्मद बोध से):-

ऐसा ज्ञान मुहम्मद पीरं, मारी गऊ शब्द के तीरं।

शब्दै फिर जिवाई, जिन गोसत नहीं भख्या।

हंसा राख्या ऐसे पीर मुहम्मद भाई।।

अर्थात् परमेश्वर कबीर जी ने एक कलमा ’’अल्लाह अकबर‘‘ मुहम्मद जी को जाप करने को कहा। उससे मुहम्मद जी में सिद्धियाँ प्रकट हो गई। एक दिन मुहम्मद जी ने एक गाय को वचन सिद्धि से मारकर सैंकड़ों मुसलमानों के सामने जीवित कर दिया। पीर मुहम्मद ऐसे महान थे। उन्होंने जीव (गाय) की रक्षा की। उसका माँस नहीं खाया।

खुदा की इसी वास्तविकता को संत गरीबदास जी महाराज ने अपनी अमृत वाणी में कहा है:

अर्श कुर्स पर अलह तखत है, खालिक बिन नहीं खाली।

वह पैगंबर पाक पुरुष थे, साहिब के अब्दाली।।

हम ही अलख अल्लाह हैं, कुतुब गौस और पीर।

गरीबदास खालिक धनी, हमारा नाम कबीर।।

जिसको हिन्दू धर्म में तत्वदर्शी संत कहा है, जिसका प्रमाण गीता ज्ञान दाता ने अध्याय 4 के श्लोक 34 में दिया है जिसका अर्थ यह है कि उस ज्ञान को तू तत्वदर्शी संत (बाखबर) के पास जाकर समझ, उसको दण्डवत प्रणाम करने से कपट छोड़ कर सरलतापूर्वक प्रसन्न करने से वह संत तुझे परमात्म ज्ञान का उपदेश करेंगे। इसका तात्पर्य यह है कि तत्वदर्शी संत और बाख़बर एक ही है, जो ख़ुदा के पाने का सही रास्ता प्रमाण सहित बताता है।

वर्तमान समय में कौन है अंतिम पैगंबर व बाखबर?

वर्तमान समय में वेदों तथा सभी शास्त्रों के अनुसार वो बाख़बर व अंतिम पैगंबर जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज हैं। जिनकी गवाही बहुत से भविष्यवक्ताओं ने अपनी भविष्यवाणियों तथा कुछ महान संतों ने अपनी वाणियों में दी है। विश्व के सभी भविष्यवक्ताओं, इतिहास के प्रसिद्ध महान संतों और सभी धर्मों के पवित्र सदग्रंथों आदि का ज्ञान उजागर करने का काम संत रामपाल जी महाराज जी ने ही सटीकता और प्रमाणिकता से किया है।

Eid Milad-un-Nabi 2024 [Hindi]: पवित्र कुरान में बाखबर की जानकारी

पवित्र कुरान शरीफ आयात 25:52 से 59 में कहा गया है कि उस अल्लाह की जानकारी उस बाख़बर से पूछो जो ब्रह्मांड के रहस्य और विस्तार की जानकारी पूरी तरह से जानता हो। वह ऐसा महापुरुष होगा जो अल्लाह की स्थिति से पूर्णरूप से अवगत होगा। इसकी जानकारी संत रामपाल जी महाराज जी ने अपने तत्वज्ञान द्वारा तथा अपने द्वारा लिखी पुस्तकों में मानव कल्याण हेतु विस्तार से बताई है। वे एक मात्र संत है जो परमात्मा प्राप्ति का सच्चा उपाय बताते हैं।

उन्होंने सभी धर्म गुरुओं से भिन्न और सच्चा ज्ञान हमारे सभी धर्म ग्रंथों में से दिखा कर बताया है जो आज तक किसी भी धर्म गुरु तथा मुल्ला काज़ी के मुख से नहीं सुना। उन्होंने आध्यात्मिक ज्ञान के आधार से बताया है कि हम एक पिता/ अल्लाह की संतान हैं। हम सभी जीव एक बहुत भयंकर गलती के कारण अपने भगवान अर्थात कबीर परमात्मा से दूर हो गए हैं। हम एक ऐसे स्थान से आए हैं जहाँ की वस्तुएं कभी भी समाप्त नहीं होती। वहाँ की सभी चीज़ें अमर हैं। जिसे सतलोक कहा जाता है जो हमारा मूल स्थान है।

संत रामपाल जी महाराज जी ने बताई सच्चे अल्लाह की सच्ची इबादत

संत रामपाल जी महाराज कहते हैं कि सभी धर्मों के ग्रंथ एक ही परमात्मा अर्थात अल्लाह की ओर संकेत कर रहे हैं जो हम सब का पिता है। वह केवल एक अविनाशी भगवान कबीर परमात्मा है। जिसका प्रमाण इस्लाम धर्म की पवित्र पुस्तक फजाइले आमाल  की आयातों 1ए, 2ए, 3ए, 6, और 7 में भी मिलता है। हम सभी विभिन्न धर्मों में होने के कारण आपस मे विभाजित हैं। परंतु संत रामपाल जी महाराज जी के आध्यात्मिक ज्ञान से हम सभी पुनः एक होंगे और कबीर जी की सतभक्ति करेंगे। 

आज कबीर अल्लाह के भेजे बाखबर संत रामपाल जी महाराज जी हर धर्म के पवित्र शास्त्रों के आधार पर सतभक्ति बता रहे हैं। पूरे विश्व में संत रामपाल जी महाराज जी ही एकमात्र बाखबर हैं। आप एक बार अवश्य पढ़ें पुस्तक ‘ मुसलमान नहीं समझे ज्ञान कुरान’ इस पुस्तक को प्राप्त करने के लिए आपको अपने मोबाइल के पलेस्टोर से संतरामपाल जी महाराज एप डाऊनलोड करनी होगी जहां से आप यह पुस्तक मुफ्त में डाउनलोड करके पढ़ सकते हैं और अल्लाह को, उनके भेजे पैगंबरों और बाखबर की पहचान स्वयं कर सकते हैं।

FAQ about Eid e Milad in Hindi

1. हजरत मुहम्मद जी की कुल कितनी संतान थीं?

हजरत मुहम्मद जी को संतान रूप में पत्नी खदीजा जी से तीन पुत्र तथा चार बेटियाँ प्राप्त हुई। तीनों पुत्र कासिम, तय्यब, ताहिर हजरत मुहम्मद जी की आँखों के सामने मृत्यु को प्राप्त हुए। केवल चार लड़कियां शेष रहीं। 

2.इस्लाम धर्म में मुसलमान के लिए क्या नियम निभाना ज़रूरी हैं?

हजरत मुहम्मद जी के अनुसार मुसलमान वह पवित्र आत्मा है जो किसी को दुखी न करे, तम्बाखू, शराब व मांस को पीना व खाना तो दूर छुए भी नहीं, ब्याज भी न ले। 

3.हजरत मुहम्मद जी की मृत्यु कैसे हुई?

पुस्तक- जीवनी हजरत मुहम्मद (सल्लाहु अलैहि वसल्लम के पृष्ठ 46, 51-52, 64, 307-315) में प्रमाण है कि- हजरत मुहम्मद जी ने बचपन में यतीमी का दुःख देखा। उनके तीनों पुत्रों की मृत्यु उनके सामने हुई तथा स्वयं हजरत मुहम्मद जी की भी 63 वर्ष की उम्र में बीमारी से तड़फ तड़फ कर मृत्यु हुई।

4.हजरत मुहम्मद जी का मुसलमान धर्म को मानने वालों के लिए क्या आदेश था?

हजरत मुहम्मद तथा उनके एक लाख अस्सी हजार अनुयाईयों ने कभी मांस-शराब, तम्बाखू सेवन नहीं किया और न ही ऐसा करने का आदेश किसी अन्य को दिया.

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