Last Updated on 27 January 2024 IST: मीरा बाई (Meera Bai) सिर्फ़ एक नाम नहीं है मीरा बाई भक्ति की तरंग, आस्था की लहर और श्रद्धा की गरिमा है। मीरा बाई श्री कृष्ण जी की अनन्य भक्त थीं। बचपन में ही वह कृष्ण जी के प्रति आसक्त हो गईं थीं। मीरा बाई को लोग कृष्ण भक्त मानते हैं परंतु मीरा बाई के गुरु कबीर साहेब जी थे यह लोग नहीं जानते। आज हम इस लेख के माध्यम से आपको मीरा बाई के जीवन से जुड़ी कई सच्ची जानकारियां देंगे कि कैसे मीरा बाई ने तीन लोक के स्वामी विष्णु जी उर्फ श्री कृष्ण जी की त्रिगुणमयी भक्ति त्याग कर कौनसी सतभक्ति करनी आरंभ की थी। इसके बारे में संक्षेप में बताएंगे जिसे जानने के बाद आप यह निर्णय खुद कर सकेंगे कि मनुष्य जीवन में सतभक्ति करनी कितनी ज़रूरी है।
मीरा राठौर का रुझान बचपन से लोकवेद आधारित भक्ति में था
मीरा बाई का जन्म राजपूत जाति में हुआ था। उस समय महिलाओं को घर से बाहर जाने पर प्रतिबंध था। मीरा राठौर बचपन से ही लोकवेद के आधार पर कृष्ण भक्ति में रुचि लेने लगी थीं तथा श्रीकृष्ण को अपना दुल्हा मानती थीं। वह श्रीकृष्ण की मूर्ति को नहलाती, नए वस्त्र पहनाती, भोजन का भोग लगाती, बिस्तर पर सुलाती, गीत गाती और नाचा करती थी।
मीरा का विवाह राणा भोज राज से हुआ जो धार्मिक था
जब मीरा विवाह योग्य हुई तो उसका विवाह राणा भोज राज से हुआ। राणा जी धार्मिक विचारों के थे। उसने मीरा को मंदिरों में जाने से नहीं रोका, अपितु लोक चर्चा से बचने के लिए मीरा जी के साथ तीन-चार महिला नौकरानी भेजने लगा। जिस कारण से सब ठीक चलता रहा। कुछ वर्ष पश्चात् मीरा के पति की मृत्यु हो गई। सभी विपत्तियों के बावजूद मीरा की भक्ति दिनोंदिन बढ़ती ही चली गई।
मीरा के पति की मृत्यु के बाद उसके देवर ने कई षड्यंत्र रचे
मीरा के पति की मृत्यु के बाद उसका देवर राजगद्दी पर बैठ गया। उसने कुल के लोगों के कहने से, मीरा को मंदिर में जाने से मना किया, परंतु मीरा बाई नहीं मानी। जिस कारण से राजा ने मीरा को मारने का षड़यंत्र रचा। विचार किया कि ऐसी युक्ति बनाई जाए कि यह मर भी जाए और कुल की बदनामी भी न हो। राजा ने विचार किया कि इसे कैसे मारूं? राजा ने एक सपेरे को बुलाया और उससे कहा कि सपेरे मुझे एक ऐसा सर्प ला दे कि, ‘डिब्बे को खोलते ही सर्प, खोलने वाले को डंक मार दे और वह व्यक्ति उसी क्षण मर जाए’। ऐसा ही किया गया।
मीरा को मारने के लिए भेजा सर्प भी मोतियों का हार बन गया था
एक बार मीरा बाई के देवर राणा विक्रमजीत सिंह ने अपने लड़के का जन्मदिन मनाया। उसमें रिश्तेदार तथा अन्य गणमान्य व्यक्ति आमंत्रित किये गए। राजा ने मीरा जी की बांदी (नौकरानी) से कहा कि ले यह बेशकीमती हार है। मेरे बेटे का जन्मदिन है। दूर-दूर से रिश्तेदार आये हैं। मीरा को कह दे कि सुंदर कपड़े पहनकर इस हार को गले में पहन ले, नहीं तो रिश्तेदार कहेंगे कि अपनी भाभी जी को अच्छी तरह नहीं रखता। मेरी इज्ज़त का सवाल है।
बांदी ने उस आभूषण के डिब्बे को मीराबाई को दे दिया और राजा का आदेश सुना दिया। उस आभूषण के डिब्बे में विषैला काले-सफेद रंग का सर्प था। मीरा ने बांदी के सामने ही उस डिब्बे को खोला तो उसमें हीरे-मोतियों से बना हार था। मीराबाई ने विचार किया कि यदि मैं हार नहीं पहनूंगी तो व्यर्थ का झगड़ा होगा। मेरे लिए तो यह मिट्टी है। यह विचार करके मीरा जी ने वह हार गले में डाल लिया।
मीरा को जीवित देखकर राजा भौंचक्का रह गया
राजा का उद्देश्य था कि आज सर्प डंक से मीरा की मृत्यु हो जाएगी तो सबको विश्वास हो जाएगा कि राजा का कोई हाथ नहीं है। हमारे सामने सर्प डसने से मीरा की मृत्यु हुई है। कुछ समय उपरांत राजा मंत्रियों सहित तथा कुछ रिश्तेदारों सहित मीरा के महल में गया तो मीरा बाई जी के गले में सुंदर मंहगा हार देखकर राणा बौखला गया और बोला, बदचलन! यह हार किस यार से लाई है? मीरा बाई जी के आँखों में आँसू थे। बोली कि आपने ही तो बांदी के द्वारा भिजवाया था, वही तो है।
मीरा को दिया गया विष भी अमृत बन गया
जब मीरा बाई ज़हरीले सांप से नहीं मरी तों राजा ने सोचा कि अब की बार इसको विष मैं अपने सामने पिलाऊँगा, नहीं पीएगी तो सिर काट दूँगा। एक सपेरे से कहा कि भयंकर विष ला दे जिसे जीभ पर रखते ही व्यक्ति मर जाए। ऐसा ही विष लाया गया। राजा ने मीरा से कहा कि यह विष पी ले अन्यथा तेरी गर्दन काट दी जाएगी। मीरा ने सोचा कि गर्दन काटने में तो पीड़ा होगी, विष पी लेती हूँ। मीरा ने विष का प्याला परमात्मा को याद करके पी लिया। लेकिन उन्हें कुछ नहीं हुआ। सपेरा बुलाया और उससे कहा कि यह नकली विष लाया है। सपेरे ने कहा कि वह प्याला कहाँ है? उसे प्याला दिया गया। सपेरे ने उस प्याले में से दूध डालकर एक कुत्ते को वहीं पिला दिया। कुत्ता दूसरी बार जीभ भी नहीं लगा पाया था, मर गया। जब मीरा बाई को जान से मारने के सारे प्रयास करके देख लिए तो राणा समझ गया कि मीरा मरने वाली नहीं है। इसकी रक्षा करने वाली शक्ति मामूली नहीं है। तब उसको मंदिर में जाने से नहीं रोका। उसके साथ कई नौकरानी तथा पुरूष रक्षक भी भेजने लगा कि लोग यह नहीं कहेंगे कि आवारागर्दी में जाती है।
जब मीरा बाई ने पहली बार कबीर परमेश्वर का सत्संग सुना
जिस श्री कृष्ण जी के मंदिर में मीराबाई पूजा करने जाती थी, उसके मार्ग में एक छोटा बगीचा था। उस बगीचे में परमेश्वर कबीर जी तथा संत रविदास जी सत्संग कर रहे थे। सुबह के लगभग 10 बजे का समय था। मीरा जी ने देखा कि यहाँ परमात्मा की कथा चल रही है। कुछ देर सुनकर चलते हैं। परमेश्वर कबीर जी ने सत्संग में संक्षिप्त सृष्टि रचना का ज्ञान सुनाया। कहा कि श्री कृष्ण जी यानि श्री विष्णु जी से ऊपर अन्य सर्वशक्तिमान परमात्मा है। जन्म-मरण समाप्त नहीं हुआ तो भक्ति करना या न करना एक समान है। जन्म-मरण तो श्री कृष्ण जी (श्री विष्णु) का भी समाप्त नहीं है। उसके पुजारियों का कैसे होगा? जैसे हिन्दू संतजन कहते हैं कि गीता का ज्ञान श्री कृष्ण अर्थात् श्री विष्णु जी ने अर्जुन को बताया।
गीता ज्ञानदाता गीता अध्याय 2 श्लोक 12, अध्याय 4 श्लोक 5, अध्याय 10 श्लोक 2 में स्पष्ट कर रहा है कि हे अर्जुन! तेरे और मेरे बहुत जन्म हो चुके हैं। तू नहीं जानता, मैं जानता हूँ। इससे स्वसिद्ध है कि श्री कृष्ण जी का भी जन्म-मरण समाप्त नहीं है। वो अविनाशी नहीं है। इसीलिए गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में गीता बोलने वाले ने कहा है कि हे भारत! तू सर्वभाव से उस परमेश्वर की शरण में जा। उस परमेश्वर की कृपा से ही तू सनातन परम धाम को तथा परम शांति को प्राप्त होगा। परमेश्वर कबीर जी के मुख कमल से ये वचन सुनकर परमात्मा के लिए भटक रही आत्मा को नई रोशनी मिली। सत्संग के उपरांत मीराबाई जी ने प्रश्न किया कि हे महात्मा जी! आपकी आज्ञा हो तो शंका का समाधान करवाऊँ। कबीर परमात्मा जी ने कहा कि प्रश्न करो बहन जी!
मीरा बाई ने पहली बार यह सुना कि श्रीकृष्ण से भी ऊपर कोई और है परमात्मा
प्रश्न:- हे महात्मा जी! आज तक मैंने किसी से नहीं सुना कि श्री कृष्ण जी से ऊपर भी कोई परमात्मा है। आज आपके मुख से सुनकर मैं दोराहे पर खड़ी हो गई हूँ। मैं मानती हूँ कि संत झूठ नहीं बोलते। परमेश्वर कबीर जी ने कहा कि आपके धार्मिक अज्ञानी गुरूओं का दोष है जिन्हें स्वयं ज्ञान नहीं कि आपके सद्ग्रंथ क्या ज्ञान बताते हैं? देवी पुराण के तीसरे स्कंद में श्री विष्णु जी स्वयं स्वीकारते हैं कि मैं (विष्णु), ब्रह्मा तथा शंकर नाशवान हैं। हमारा आविर्भाव (जन्म) तथा तिरोभाव (मृत्यु) होता रहता है।
मीरा बाई ने श्रीकृष्ण जी से साक्षात पूछे परमेश्वर के विषय में प्रश्न
मीरा बाई बोली कि हे महाराज जी! भगवान श्री कृष्ण मुझे साक्षात दर्शन देते हैं। मैं उनसे संवाद करती हूँ। कबीर जी ने कहा कि हे मीराबाई जी! आप एक काम करो। भगवान श्री कृष्ण जी से ही पूछ लेना कि क्या आपसे ऊपर भी कोई मालिक है। वे देवता हैं, कभी झूठ नहीं बोलेंगे। मीरा बाई को लगा कि वह पागल हो जाएगी यदि श्री कृष्ण जी से भी ऊपर कोई परमात्मा है तो? रात्रि में मीरा जी ने भगवान श्री कृष्ण जी का आह्वान किया। त्रिलोकी नाथ प्रकट हुए। मीरा ने अपनी शंका के समाधान के लिए निवेदन किया कि हे प्रभु! क्या आपसे ऊपर भी कोई परमात्मा है। एक संत ने सत्संग में बताया है। श्री कृष्ण जी ने कहा कि मीरा! परमात्मा तो है, परंतु वह किसी को दर्शन नहीं देता। हमने बहुत समाधि व साधना करके देख ली हैं।
मीरा बाई जी ने सत्संग में परमात्मा कबीर जी से यह भी सुना था कि उस पूर्ण परमात्मा को मैं प्रत्यक्ष दिखाऊँगा। सत्य साधना करके उसके पास सतलोक में भेज दूँगा। मीरा बाई ने श्री कृष्ण जी से फिर प्रश्न किया कि क्या आप जीव का जन्म-मरण समाप्त कर सकते हो? श्री कृष्ण जी ने कहा कि यह संभव नहीं। जबकि कबीर परमात्मा जी ने कहा था कि मेरे पास ऐसा भक्ति मंत्र है जिससे जन्म-मरण सदा के लिए समाप्त हो जाता है।
वह परमधाम प्राप्त होता है जिसके विषय में गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में कहा है कि तत्वज्ञान तथा तत्वदर्शी संत की प्राप्ति के पश्चात् परमात्मा के उस परमधाम की खोज करनी चाहिए जहाँ जाने के पश्चात् साधक फिर लौटकर संसार में कभी नहीं आते। उसी एक परमात्मा की भक्ति करो। मीरा बाई ने कहा कि हे भगवान श्री कृष्ण जी! संत जी कह रहे थे कि मैं जन्म-मरण समाप्त कर देता हूँ। अब मैं क्या करूं। मुझे तो पूर्ण मोक्ष की चाह है। श्री कृष्ण जी बोले कि मीरा! आप उस संत की शरण ग्रहण करो, अपना कल्याण कराओ। मुझे जितना ज्ञान था, वह बता दिया।
मीरा ने कबीर जी को श्री कृष्ण से हुई वार्ता के बारे में बताया
मीरा अगले दिन मंदिर नहीं गई। सीधी संत जी के पास अपनी नौकरानियों के साथ गई तथा दीक्षा लेने की इच्छा व्यक्त की तथा श्री कृष्ण जी से हुई वार्ता भी कबीर परमात्मा जी से साझा की। उस समय छूआछात चरम पर थी। ठाकुर लोग अपने को सर्वोत्तम मानते थे। परमात्मा मान-बड़ाई वाले प्राणी को कभी नहीं मिलता। मीराबाई की परीक्षा के लिए कबीर परमात्मा जी ने संत रविदास जी से कहा कि आप मीरा को प्रथम मंत्र दे दो। यह मेरा आपको आदेश है। संत रविदास जी ने आज्ञा का पालन किया। संत कबीर परमात्मा जी ने मीरा से कहा कि बहन जी! वो बैठे संत जी, उनके पास जाकर दीक्षा ले लें।
मीरा बाई ने कबीर जी के आदेश पर संत रविदास जी से नाम दीक्षा ली
बहन मीरा जी तुरंत रविदास जी के पास गई और बोली, संत जी! दीक्षा देकर कल्याण करो। संत रविदास जी ने बताया कि बहन जी! मैं चमार जाति से हूँ। आप ठाकुरों की बेटी हो। आपके समाज के लोग आपको बुरा-भला कहेंगे। जाति से बाहर कर देंगे। आप विचार कर लें। मीराबाई अधिकारी आत्मा थी। परमात्मा के लिए मर-मिटने के लिए सदा तत्पर रहती थी। बोली, संत जी! आप मेरे पिता, मैं आपकी बेटी। मुझे दीक्षा दे दो। भाड़ में पड़ो समाज। सत्संग में बड़े गुरू जी (कबीर जी) ने बताया है कि भक्ति बिना वह कल को कुतिया बनेगी, तब यह ठाकुर समाज मेरा क्या बचाव करेगा?
कबीर, कुल करनी के कारणे, हंसा गया बिगोय।
तब कुल क्या कर लेगा, जब चार पाओं का होय।।
संत रविदास जी उठकर संत कबीर जी के पास गए और सब बात बताई। परमात्मा बोले कि देर ना कर, ले आत्मा को अपने पाले में।
संत रविदास जी ने कबीर जी की आज्ञा से मीरा को प्रथम नाम दीक्षा दी
उसी समय संत रविदास जी ने बहन मीरा को प्रथम मंत्र के केवल पाँच नाम दिए। मीराबाई को बताया कि यह इनकी पूजा नहीं है, इनकी साधना है। इनके लोक में रहने के लिए, खाने-पीने के लिए जो भक्ति धन चाहिए है, वह इन मंत्रों से ही मिलता है। यहाँ का ऋण उतर जाता है। फिर मोक्ष के अधिकारी होते हैं। परमात्मा कबीर जी तथा संत रविदास जी वहाँ एक महीना रूके।
अब मीरा रात्रि में भी सत्संग सुनने जाने लगी
मीराबाई पहले तो दिन में घर से बाहर जाती थी, फिर रात्रि में भी सत्संग में जाने लगी क्योंकि सत्संग दिन में कम तथा रात्रि में अधिक होता था। कोई दिन में समय निकाल लेता, कोई रात्रि में। मीरा के देवर राणा जी मीरा को रात्रि में घर से बाहर जाता देखकर जल-भुन गए, परंतु मीरा को रोकना तूफान को रोकने के समान था। इसलिए राणा जी ने अपनी मौसी यानि मीरा की माता जी को बुलाया और मीरा को समझाने के लिए कहा। कहा कि इसने हमारी इज्जत का नाश कर दिया। बेटी माता की बात मान लेती है।
मीरा बाई की मां ने मीरा को समझाया कि सत्संग में जाना छोड़ दे
मीरा की माता ने मीरा को समझाया जिसका मीरा ने तुरंत उत्तर दिया :
सत्संग में जाना मीरां छोड़ दे ए, आए म्हारी लोग करैं तकरार।
सत्संग में जाना मेरा ना छूटै री चाहे जलकै मरो संसार।।टेक।।
थारे सत्संग के राहे मैं ऐ आहे वहाँ पै रहते हैं काले नाग कोए-कोए नाग तनै डस लेवै।
जब गुरु म्हारे मेहर करैं री आरी वै तो सर्पों के गंडेवे बन जावैं।।1।।
थारे सत्संग के राहे में ऐ आहे वहाँ पै रहते हैं बबरी शेरए कोए-कोए शेर तनै खा लेवै।
जब गुरुआं की मेहर फिरै री आरी वे तो शेरां के गीदड़ बन जावैं।।2।।
थारे सत्संग के बीच में ऐ आहे वहां पै रहते हैं साधु संत कोए-कोए संत तनै ले रमै ए।
तेरे री मन में माता पाप है री संत मेरे मां बाप हैं री आ री ये तो कर देगें बेड़ा पार।।3।।
वो तो जात चमार है ए इसमैं म्हारी हार है ए। तेरे री लेखै माता चमार है री मेरा सिरजनहार है री आरी वै तो मीरां के गुरु रविदास।।4।।
शब्दार्थ: मीरा बाई की माता ने कहा कि हे मीरा! तू सत्संग में जाना बंद कर दे। संसार के व्यक्ति हमारे विषय में गलत बातें करते हैं। मीरा ने कहा कि हे माता! मैं सत्संग में जाना बंद नहीं करूँगी। संसार भले ही ईर्ष्या की आग में जलकर मर जाए। माता ने मीरा को भय कराने के लिए बताया कि जिस रास्ते से तू रात्रि में सत्संग सुनने के लिए जाती है उस रास्ते में सर्प तथा सिंह रहते हैं। वे तुझे मार देंगे। मीरा ने उत्तर दिया कि मेरे गुरू जी इतने समर्थ हैं कि वे कृपा करेंगे तो सिंह तो गीदड़ की तरह व्यवहार करेंगे और सर्प ऐसे निष्क्रिय हो जाएँगे जैसे गंडेवे प्राणी होते हैं जो सर्प जैसे आकार के होते हैं परंतु छः या आठ इंच के लंबे और आधा इंच गोलाई के मोटे होते हैं वे डसते नहीं।
मीरा की माता ने फिर कहा कि सत्संग सुनने वाले स्थान पर कुछ युवा भक्त पुरूष भी रहते हैं। कोई तेरे को कहीं ले जाएगा और गलत कार्य करेगा। मीरा ने उत्तर दिया कि हे माता! आपके मन में दोष है इसीलिए आपके मन में ऐसे विचार आए हैं। हे माता! वे संत व भक्त तो मेरे माता पिता के समान हैं। वे ऐसा गलत कार्य नहीं करते। मीरा की माता ने छूआछात के कारण मीरा को रोकना चाहा कहा कि हे मीरा! तेरा गुरू रविदास तो अनुसूचित जाति का चमार है। इससे हम राजपूतों की बेइज्जती हो रही है। सत्संग में जाना बंद कर दे। मीरा ने कहा कि हे माता! आपके विचार से मेरे गुरू जी अनुसूचित जाति के चमार हैं। मेरे लिए तो वे मेरे परमात्मा हैं। मैं उनकी बेटी वे मेरे पिता हैं। सत्संग में जाना बंद नहीं होगा।
मीरा जब घर त्याग कर वृंदावन चली गईं
कुछ वर्ष के बाद अपने देवर के अत्याचारों से परेशान होकर मीरा घर त्यागकर वृंदावन में चली गई। वहाँ कबीर परमात्मा जी एक साधु के वेश में गए। ज्ञान चर्चा हुई। तब मीरा को ज्ञान हुआ कि अभी आगे की पढ़ाई शेष है यानि केवल प्रथम मंत्र का जाप संत रविदास जी ने दे रखा है। परमात्मा कबीर जी ने सतनाम की दीक्षा दी। कबीर जी ने मीरा जी को वही रूप दिखाया जिस रूप में संत रविदास जी के साथ सत्संग में मिले थे। मीरा जी का फिर मानव जन्म अब वतर्मान के भक्ति युग में होगा। तीनों नाम की दीक्षा मिलेगी। मोक्ष उसकी मर्यादा पर निर्भर करेगा। यदि आजीवन विश्वास के साथ मर्यादा में रहकर तीनों नामों का जाप करती रही तो मोक्ष निश्चित है। वृंदावन में भी मीरा की आस्था श्री कृष्ण में कुछ कुछ थी। इसलिए उसने वृंदावन में जाने का विचार किया था।
मीरा बाई के नगर छोड़ने के बाद वहां पड़ा था अकाल और महामारी का कहर
जब मीरा बाई राणा के अत्याचारों से तंग आकर घर त्याग गई थी तो उस क्षेत्र में अकाल मृत्यु, महामारी, अकाल ;(दुभिर्क्ष) की मार शुरू हो गई थी। ज्योतिषियों ने बताया कि आपके नगर से संत रूष्ट होकर चला गया है। जिस कारण से यह उपद्रव हो रहा है। समाधान बताया कि यदि वह संत जीवित मिल जाए और वापिस मनाकर प्रसन्न करके लाया जाए तो वह आशीर्वाद देकर सब ठीक कर सकता है। राणा ने अपने सभापतियों से प्रश्न किया कि ऐसा कौन संत था जो रूष्ट होकर चला गया।
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राणा का चाचा, मीरा का पितसरा यानि चाचा सुसर भवन सिंह, राणा का महामंत्री था तथा परमात्मा का भक्त था। मीरा बाई के साथ भौम ने भी संत रविदास जी से नाम लिया था। भौम को एक नौकर राजा ने दे रखा था। उस नौकर ने भी उस समय संत रविदास जी से नाम लिया था। वे पहले मीरा के साथ बैठकर परमात्मा की चर्चा घंटों किया करते थे। भवन मीरा को बेटी की तरह तथा साध्वी की तरह सम्मान देता था। परंतु अत्याचारी भतीजे राजा से डरता था। मीरा को सांत्वना देता था कि भक्तों का भगवान रक्षक है।
मीरा के चले जाने के पश्चात् भवन तथा नौकर बहुत रोते थे। याद करते थे। भौम ने राजा को बताया कि मीरा संत थी। वह चली गई। इस कारण से यह सब अनिष्ट हो रहा है। राणा ने कहा कि उसे कौन ला सकता है? मैं कभी उसे कष्ट नहीं दूँगा। प्रतिज्ञा करता हूँ। दो सिपाही जो मीरा की निगरानी के लिए छोड़ रखे थे और जिनको मीरा के साथ छाया की तरह साथ रहने का आदेश राणा ने दे रखा था। मीरा की प्रत्येक गतिविधि पर नज़र रखने को उन्हे कहा गया था। दोनों मीरा बाई से ज्ञान चर्चा सुना करते। उसके कष्ट में रोया करते थे। कहते थे कि बहन विश्वास रखो। परमात्मा सब देख रहा है। मीरा के अचानक चले जाने से उनकी दशा भी खराब थी। घंटों रोते थे। उन दोनों ने खड़ा होकर सभा में कहा कि हम मीरा को लौटा ला सकते हैं यदि जिंदा मिल गई तो। राजा ने कहा कि यदि नहीं आई तो क्या करोगे? वे बोले कि हम भी लौटकर नहीं आएँगे।
आत्म ज्ञान बिना नर भटकै
जब बहन मीरा जी घर त्यागकर जा रही थी तो रास्ते में कुछ व्यक्ति एक गुफा के द्वार के सामने बैठे थे। मीरा बाई ने उनसे वहाँ इकट्ठे होने का कारण जाना तो बताया कि इस गुफा के अंदर एक महात्मा रहता है। वह कभी-कभी बाहर आता है। जिसको दशर्न हो जाते हैं उसका कल्याण हो जाता है। परंतु महिलाओं को दशर्न नहीं देते। मीरा बाई ने कहा कि मैंने तो सुना है कि पुरूष तो एक परमात्मा ही है। अन्य तो शरीर बदलकर स्त्री पुरूष बनते रहते हैं। यदि कोई दूसरा पुरूष पृथ्वी पर है तो मैं उसके दशर्न करके ही जाऊँगी।
महात्मा का एक विशेष सेवक था। केवल वह गुफा में जा सकता था। सेवक से महात्मा पता कर लेता था कि कोई स्त्री तो बाहर नहीं बैठी है? सेवक ने बताया कि एक साध्वी आई है। वह कहती है कि मैं तो दशर्न करके ही जाऊँगी। महात्मा बाहर आया। मीरा बाई ने कहा कि महाराज! मैं जानना चाहती हूँ कि इस पाँच तत्त्व के बने मानव शरीर में स्त्री तथा पुरूष के तत्त्व में अंतर है क्या? केवल एक पुरूष है परमात्मा। आप अन्य पुरूष कैसे हो आत्मा शरीर धारण करती है। नर मादा का अभिनय करती है। महात्मा को अपनी गलती का अहसास हुआ। गुफा छोड़कर मीरा बाई के साथ जाकर संत रविदास जी से दीक्षा ली। आत्मा स्त्री-पुरूष की एक है। जैसे स्वांगी स्वांग करते हैं। स्त्री पुरूष बनकर अभिनय करते हैं। ऐसे आत्मा कर्मों के अनुसार नर मादा का अभिनय करती है।
मीराबाई की मृत्यु कैसे हुई? | मीरा जब श्रीकृष्ण की मूर्ति में समा गई
दोनों नौकर राजा के कहने पर मीरा बाई की खोज में निकले। पता लगा कि बहुत सारे संत, (स्त्री-पुरूष) वृंदावन में रहते हैं। वहाँ मीरा बाई मिल गईं। उन्होंने मीरा से लौट चलने की प्रार्थना की। बताया कि राजा के राज में उपद्रव हो रहे हैं। ब्राह्मणों ने बताया है कि मीरा वापिस आएगी तो सब ठीक होगा। राणा ने कहा है कि आगे से मीरा को कोई कष्ट नहीं दूँगा। आप हमारे साथ वापस चलो।
मीरा ने कहा कि भाई अब मैं नहीं जाऊँगी। उन्होंने कहा कि यदि आप नहीं चलोगी तो हम प्रतिज्ञा करके आए हैं कि यदि मीरा जीवित मिल गई तो हमारी बात को मान लेगी। राणा ने कहा था कि यदि नहीं आई तो क्या करोगे। हमने कहा है कि हम भी नहीं आएँगे। बहन जी हमारे परिवार की ओर देखकर चलो। मीरा बाई बोली कि यदि मैं संसार छोड़ गई होती तो भी तो लौट जाते। सिपाहियों ने कहा कि फिर लौटना ही था। उसी समय मीरा जी ने एकतार वाला यंत्र, एक तारा उठाया। परमात्मा की स्तुति करने लगी। आँखों से प्रेम के आँसू बहने लगे। उसी समय श्री कृष्ण जी की मूर्ति में समा गई।
गरीब, मीरां बाई पद मिली सतगुरु पीर कबीर।
देह छतां ल्यौ लीन है पाया नहीं शरीर।।
देवर राणा ने मीरा बाई के लिए कहे थे अपशब्द
दोनों नौकरों ने लौटकर राणा को सभा में पूरा घटनाक्रम बताया। उस समय राजा अपने महामंत्री भवन के साथ शिकार खेलने जाने वाले थे। भौम तलवार, तीर लेकर तैयार था। उसके घोड़े को भक्त नौकर पकड़कर खड़ा था। भवन मंत्री सभा में बैठा था। नौकरों से राजा ने प्रश्न किया कि मिली मीरा? नौकरों ने कहा कि मिली थी। उसने आने से मना कर दिया और भगवान की मूर्ति में समा गई। राजा अहंकारी था। उसने कहा कि बाहर जाकर चरित्रहीन हो गई होगी। मुसलमान खसम कर लिया होगा। इसलिए धरती में गढ़ गई। जब जानता वह संत थी तो ऊपर आकाश में स्वर्ग में जाती।
मंत्री भवन, घोड़े और नौकरों सहित स्वर्ग गया
उस समय भवन भक्त खड़ा हुआ और बोला हे अपराधी! उस देवी के लिए ऐसे कटे जले शब्द ना बोल यदि वह ऊपर चली जाती तो भी तूने नहीं मानना था। तेरा पाप नहीं मानने देता। मैं जा रहा हूँ। स्वर्ग में देख ले। भौम सबके सामने घोड़े पर सवार हो गया। तलवार भी हाथ में थी। घोड़ा ऊपर को उठने लगा तो नौकर रोने लगा कि मालिक मैं कैसे अकेला इस अन्यायी के राज्य में रह सकूँगा। मुझे भी साथ ले चलो। यूं कहते कहते नौकर भक्त ने घोड़े की पूँछ पकड़ ली। वह भी घोड़े से लटका ऊपर चल दिया और इस तरह घोड़े, जूतों व गुलाम, नौकर सहित भवन स्वर्ग गया।
मथुरा वृंदावन जाने से मोक्ष संभव नहीं
जो कहते हैं कि मथुरा वृंदावन में जाने से मुक्ति होती है। वे सुनो! उसी मथुरा में जहाँ श्रीकृष्ण लीला किया करते थे। आप उस स्थान पर जाने मात्र से मोक्ष मानते हो। उसी मथुरा में कंस, केसी, राक्षस तथा चाणूर पहलवान भी रहते थे जो श्री कृष्ण ने ही मारे थे। इसलिए सत्य साधना करो और जीव कल्याण कराओ जो यथार्थ मार्ग है। कोई जगन्नाथ के दशर्न करके और एकादशी का व्रत करके मोक्ष मानता है यह गलत है। शास्त्र विरूद्ध है। कोई काशी नगर में, कोई गया नगर में जाने से मोक्ष कहते हैं। वे भूल में हैं।
यदि पूर्ण सतगुरू की शरण नहीं मिली तो मोक्ष बिल्कुल नहीं होगा। जब तक तत्त्वदर्शी सतगुरू नहीं मिलेगा, शंका समाप्त नहीं होगी। सब अपने स्वभाववश भक्ति मार्ग पर चल रहे हैं जो व्यर्थ है। एक जंवासे का पौधा होता है। वह बारिश के दिनों में यानि जल से सूख जाता है। सब पौधे जल से हरे भरे होते हैं परंतु जंवासे का पौधा जल से नष्ट हो जाता है। इसी प्रकार कर्महीन व्यक्ति सत्यज्ञान सुनकर जल मरते हैं। झगड़ा करते हैं। बिल्कुल नहीं मानते। अन्य पुण्यात्माएँ सत्य ज्ञान सुनकर गदगद होते हैं। कल्याण करवा लेते हैं।
मीरा बाई को प्रथम और द्वितीय मंत्र तक की साधना कबीर साहेब जी ने करने को दी थी। वर्तमान में कलयुग की बीचली पीढ़ी का समय चल रहा है, इसे भक्ति युग भी कहते हैं जब सभी मनुष्य केवल कबीर साहेब जी के द्वारा बताई गई सतभक्ति करेंगे और पूर्ण मोक्ष प्राप्त करके सतलोक जाएंगे। कबीर साहेब जी के अवतार संत रामपाल जी महाराज जी पूर्ण मोक्षदायिनी सतभक्ति व तीन चरणों में नाम दीक्षा प्रदान कर रहे हैं। आप सभी उनके द्वारा लिखित आध्यात्मिक पुस्तक ज्ञान गंगा अवश्य पढ़ें जिससे आपको वर्तमान, भूत, भविष्य, अध्यात्म और सभी भगवानों की स्थिति का ज्ञान हो सके। हमारा आप सभी से अनुरोध है कि संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा लेकर अपना मनुष्य जन्म सफल बनाएं।