Last Updated on 29 July 2024 IST : प्रेमचंद्र का जन्म (Munshi Premchand Jayanti in Hindi) 31 जुलाई 1880 के दिन वाराणसी के एक गांव के डाक मुंशी अजायब लाल के घर पर हुआ था। उनकी मां आनंदी देवी एक सुघढ़ और सुंदर शख्सियत वाली महिला थीं। उनके दादा जी मुंशी गुरुसहाय लाल पटवारी थे। इस साल उनकी जयंती पर 31 जुलाई को लमही में मुंशी प्रेमचंद को पुष्पांजलि के बाद प्रभातफेरी, विद्वानों का सम्मान और प्रेमचंद की रचनाओं का मंचन व लोकगायन होगा।
प्रेमचंद का पारिवारिक जीवन (Life of Munshi Premchand)
Munshi Premchand Jayanti 2024 [Hindi] | प्रेमचंद्र का मूल नाम धनपत राय श्रीवास्तव था। कायस्थ कुल के प्रेमचंद्र का बचपन खेत खलिहानों में बीता था। उन दिनों उनके पास मात्र छः बीघा जमीन थी। परिवार बड़ा होने के कारण उनके घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। जीवन के अंतिम दिनों में वह जलोदर रोग से बुरी तरह से ग्रस्त हो गये थे। दिनांक 8 अक्टूबर 1936 को उनका देहांत हो गया।
परिवारिक पृष्ठभूमि: संघर्षों की नींव पर खड़ा महल
हिंदी साहित्य के महान लेखक मुंशी प्रेमचंद का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ। उनके पिता अजायब राय एक मामूली डाकघर क्लर्क थे, जिन्होंने अनजाने में अपने बेटे में असाधारण प्रतिभा का बीज बोया। माता आनंदी देवी एक सामान्य गृहिणी थीं, जिनकी ममता प्रेमचंद के बचपन में महज सात वर्ष तक ही साथ दे पाई। प्रेमचंद अपने परिवार में चौथी संतान के रूप में पैदा हुए, लेकिन उनकी किस्मत में बड़े संघर्ष लिखे थे।
मात्र सात वर्ष की छोटी सी उम्र में प्रेमचंद ने अपनी माँ को खो दिया। इस गहरे आघात से उबरने की कोशिश में ही थे कि चौदह वर्ष की किशोरावस्था में पिता भी इस दुनिया से विदा हो गए। अचानक ही किशोर प्रेमचंद के कोमल कंधों पर सौतेली माँ और छोटे भाई-बहनों की देखभाल का भारी बोझ आ गिरा। ये आघात उनके बाल मन पर गहरी छाप छोड़ गए, जो बाद में उनके लेखन में झलकने लगे।
शिक्षा और आरंभिक संघर्ष: कठिनाइयों की पाठशाला
इन विपरीत परिस्थितियों के बावजूद, प्रेमचंद ने अपनी शिक्षा जारी रखी। लालपुर के एक मदरसे में उन्होंने उर्दू और फारसी की शिक्षा ग्रहण की। लेकिन आर्थिक तंगी ने उन्हें जल्द ही कमाई के लिए मजबूर कर दिया। गरीबी से जूझते हुए, मात्र पाँच रुपये मासिक वेतन पर ट्यूशन पढ़ाकर परिवार का भरण-पोषण करने लगे।
ये कष्ट और संघर्ष प्रेमचंद के लिए जीवन के कठोर पाठ बन गए। इन्हीं अनुभवों ने उन्हें समाज की वास्तविकताओं से रूबरू कराया, जो बाद में उनके लेखन का मूल आधार बनीं। गरीबी की आग में तपकर, प्रेमचंद का व्यक्तित्व सोने की तरह निखर गया।
सामाजिक और राजनीतिक संदर्भ: क्रांतिकारी विचारों का उदय
प्रेमचंद का जन्म और विकास ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौर में हुआ। इस काल में देश में स्वतंत्रता की लहर दौड़ रही थी, जिसने युवा प्रेमचंद को गहराई से प्रभावित किया। विशेष रूप से महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन ने उनके विचारों को एक नई क्रांतिकारी दिशा दी।
अपने लेखन के माध्यम से, प्रेमचंद ने समाज की कुरीतियों पर करारा प्रहार किया। जाति भेदभाव, लैंगिक असमानता, बाल विवाह, और दहेज प्रथा जैसी ज्वलंत समस्याओं को उन्होंने अपनी कहानियों और उपन्यासों का विषय बनाया। उनका प्रसिद्ध उपन्यास ‘गोदान’ जमींदारों और साहूकारों द्वारा किसानों के शोषण का जीवंत चित्रण करता है।
प्रेमचंद ने अपने लेखन में सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता को भी महत्वपूर्ण स्थान दिया। उन्होंने समुदायों के बीच एकता और सांप्रदायिक सद्भाव का संदेश दिया, जो आज भी उतना ही प्रासंगिक है। टॉल्स्टॉय और डिकेंस जैसे पश्चिमी लेखकों से प्रेरणा लेकर, उन्होंने साहित्य को सामाजिक परिवर्तन का एक सशक्त माध्यम बनाया।
पुरस्कार और सम्मान: प्रतिभा को श्रद्धांजलि
प्रेमचंद के अतुलनीय योगदान को कई सम्मानों से नवाजा गया। उन्हें मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मानों में से एक, पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। 1936 में, वे लखनऊ में आयोजित प्रगतिशील लेखक संघ के पहले अध्यक्ष चुने गए, जो उनके साहित्यिक प्रभाव का प्रमाण था।
2005 में साहित्य अकादमी ने उनकी स्मृति में प्रेमचंद फेलोशिप की स्थापना की, जो आज भी युवा लेखकों को प्रेरित कर रही है। सबसे बड़ा सम्मान यह है कि 31 जुलाई, उनकी जयंती, को भारत में राष्ट्रीय लेखक दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिवस न केवल प्रेमचंद को श्रद्धांजलि है, बल्कि समूचे भारतीय साहित्य के प्रति एक सम्मान का प्रतीक है।
साहित्य क्षेत्र में मुंशी प्रेमचंद का योगदान एवम स्थान
Munshi Premchand Jayanti 2024 [Hindi] | प्रेमचंद का वास्तविक नाम ‘धनपत राय श्रीवास्तव’ था। वे अपनी ज्यादातर रचनाएं उर्दू में ‘नबावराय’ के नाम से लिखते थे। 1909 में कानपुर के जमाना प्रेस में प्रकाशित उनकी पहली कहानी-संग्रह ‘सोजे वतन’ की सभी प्रतियां ब्रिटिश सरकार ने जब्त कर ली थी। भविष्य में ब्रिटिश सरकार की नाराजगी से बचने के लिए ‘जमाना’ के संपादक मुंशी दया नारायण ने उन्हें सलाह दी कि वे नवाब राय नाम छोड़कर नये उपनाम प्रेमचंद के नाम से लिखें, इससे अंग्रेज सरकार को भनक भी नहीं लग पायेगी। उन्हें यह नाम पसंद आया और रातों रात नवाब राय प्रेमचंद बन गये। यद्यपि उनके बहुत से मित्र उन्हें जीवन-पर्यन्त ‘नवाब राव’ के नाम से ही सम्बोधित करते रहे।
प्रेमचंद को कैसे मिली उपन्यास सम्राट की उपाधि?
वणिक प्रेस के मुद्रक महाबीर प्रसाद पोद्दार अकसर प्रेमचंद की रचनाएं बंगला के लोकप्रिय उपन्यासकार शरद बाबू को पढ़ने के लिए दे देते थे। एक दिन महाबीर प्रसाद पोद्दार शरद बाबू से मिलने उनके आवास पर गये। उस समय शरद बाबू प्रेमचंद का कोई उपन्यास पढ़ रहे थे। पोद्दार बाबू ने देखा कि प्रेमचंद के उस उपन्यास के एक पृष्ठ पर शरद बाबू ने प्रेमचंद्र नाम के आगे उपन्यास सम्राट लिख रखा था। बस उसी दिन से प्रेमचंद के नाम के आगे ‘उपन्यास सम्राट’ लिखना शुरू हो गया।
■ यह भी पढ़ें: Sant Kabir Das Biography (Hindi) | परमेश्वर कबीर साहेब जी संत कबीर दास नाम से क्यों विख्यात हैं? जानिए रहस्य
Munshi Premchand Jayanti in Hindi | प्रेमचंद जी की साहित्यक विशेषताये
प्रेमचंद ने अपनी अधिकांश रचनाओं में आम व्यक्ति की भावनाओं, हालातों, उनकी समस्याओं और उनकी संवेदनाओं का बड़ा मार्मिक शब्दांकन किया। वे बहुमुखी प्रतिभावान साहित्यकार थे। वे सफल लेखक, देशभक्त, कुशलवक्ता, जिम्मेदार संपादक और संवेदनशील रचनाकार थे। उन्होंने उपन्यास, कहानी, नाटक, समीक्षा, लेख, संपादकीय, संस्मरण और अनुवाद जैसी तमाम विधाओं में साहित्य की सेवा की, किन्तु मूलतः वे कथाकार थे।
मुंशी प्रेमचंद के बारे में रोचक तथ्य (Facts About Munshi Premchand)
- प्रेमचंद का उपन्यास गोदान, जिसे सबसे महान हिंदी उपन्यासों में से एक माना जाता है, जातिगत भेदभाव, गरीबों और महिलाओं के शोषण के विषयों से संबंधित है.
- साहित्य अकादमी ने 2005 में प्रेमचंद फैलोशिप की शुरुआत की। यह पुरस्कार सार्क देशों के संस्कृति के क्षेत्र में प्रतिष्ठित व्यक्तियों को दिया जाता है।
- प्रेमचंद ने कुछ समय के लिए एक किताबों की दुकान में सेल्स बॉय के रूप में भी कार्य किया था क्योंकि उन्हें लगा कि इससे उन्हें और किताबें पढ़ने का मौका मिलेगा। उन्होंने 300 से अधिक लघु कथाएँ, 14 उपन्यास, निबंध, पत्र, नाटक और अनुवाद लिखे।
- प्रेमचंद ने बच्चों को लेकर भी किताबें लिखी जिनमें“जंगल की कहानियां” और “राम चर्चा” उनकी प्रसिद्ध कृतियों में से हैं। प्रेमचंद की पहली साहित्यिक कृति गोरखपुर में कभी प्रकाशित नहीं हुई।
- मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) की याद में एक पट्टिका उस झोपड़ी में स्थापित की गई थी जिसमें वे 1916 से 1921 तक गोरखपुर में रहे थे। यह असाधारण व्यक्ति को ‘उपन्यासों के सम्राट’ के रूप में वर्णित करता है।
हिन्दी और उर्दू में सर्वाधिक लोकप्रिय लेखक
Munshi Premchand Jayanti 2024 [Hindi] | प्रेमचंद एक लोकप्रिय उपन्यासकार, कहानीकार एवं विचारक थे। उन्होंने सेवासदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, निर्मला, गबन, कर्मभूमि, गोदान आदि लगभग डेढ़ दर्जन उपन्यास तथा कफन, पूस की रात, पंच परमेश्वर, बड़े घर की बेटी, बूढ़ी काकी, दो बैलों की कथा आदि तीन सौ से अधिक कहानियाँ लिखीं। उनमें से अधिकांश हिन्दी तथा उर्दू दोनों भाषाओं में प्रकाशित हुईं। उन्होंने अपने दौर की सभी प्रमुख उर्दू और हिन्दी पत्रिकाओं जमाना, सरस्वती, माधुरी, मर्यादा, चाँद, सुधा आदि में लिखा। उन्होंने हिन्दी समाचार पत्र जागरण तथा साहित्यिक पत्रिका हंस का संपादन और प्रकाशन भी किया। इसके लिए उन्होंने सरस्वती प्रेस खरीदा जो बाद में घाटे में रहा और बन्द करना पड़ा।
प्रेमचंद की कुल रचनाये | (Books of Munshi Premchand)
उन्होंने कुल 15 उपन्यास, 300 से कुछ अधिक कहानियां, 3 नाटक, 10 अनुवाद, 7 बाल-पुस्तकें तथा हज़ारों पृष्ठों के लेख, सम्पादकीय, भाषण, भूमिका, पत्र आदि की रचना की।
मुंशी प्रेमचंद के कुछ अनमोल विचार
1. “कुल की प्रतिष्ठा भी विनम्रता और सदव्यवहार से होती है, हेकड़ी और रुआब दिखाने से नहीं।”
2. “अन्याय में सहयोग देना, अन्याय करने के ही समान है।”
3. “मन एक भीरु शत्रु है जो सदैव पीठ के पीछे से वार करता है।”
4. “सोने और खाने का नाम जिंदगी नहीं है, आगे बढ़ते रहने की लगन का नाम जिंदगी है।”
5. “अपनी भूल अपने ही हाथों से सुधर जाए, तो यह उससे कहीं अच्छा है कि कोई दूसरा उसे सुधारे।”
6. “जिस बंदे को दिन की पेट भर रोटी नहीं मिलती, उसके लिए इज्जत और मर्यादा सब ढोंग है।”
7. “विपत्ति से बढ़कर अनुभव सिखाने वाला कोई विद्यालय आज तक नहीं खुला।”
8. “जीवन का वास्तविक सुख, दूसरों को सुख देने में है; उनका सुख छीनने में नहीं।”
9. “न्याय और नीति लक्ष्मी के खिलौने हैं, वह जैसे चाहती है नचाती है।”
10. “आकाश में उड़ने वाले पंछी को भी अपने घर की याद आती है।”
प्रेमचंद के उपन्यास (Novels of Munshi Premchand)
प्रेमचंद जी के कुछ मशहूर उपन्यासों में गोदान, गबन, सेवासदन, रंगभूमि प्रेमाश्रय, कर्मभूमि, कायाकल्प, निर्मला, कफ़न, पूस की रात, मंगलसूत्र, पंच परमेश्वर, पंचलेट, बड़े घर की बहू, दो बैलो की कथा आदि हैं।
क्या है मनुष्य का मूल कर्त्तव्य?
प्रेमचंद जी ने आपने मानव जीवन में वह प्राप्त नही किया जिसके लिए उन्हें मानव जीवन मिला था। मनुष्य जीवन का मूल कर्त्तव्य पूर्ण परमेश्वर की भक्ति करना है। इस भक्ति के करने के साथ साथ व्यक्ति को अपना पेट पालने के लिए जो कर्म करना होता है, वह भी करना चाहिए। लेकिन परमात्मा को भूलकर यदि कोई सिर्फ अपने जीवन यापन को अपना लक्ष्य बना लेता है तो ये उसकी भूल है।
कबीर साहेब जी ने बताया कि
मानव जन्म पाय कर, जो नही रटे हरि नाम।
जैसे कुआं जल बिन, बनवाया किस काम।।
अर्थात मनुष्य जन्म बिना भक्ति के वैसे ही है जैसे एक कुआं बिना पानी के होता है। वह कुआं तो है लेकिन पानी नहीं होने से उसमें गुण कुएं के नहीं है अर्थात उसका कोई भी फायदा नहीं है। वर्तमान में पूर्ण परमात्मा की भक्ति की सही विधि संत रामपाल जी महाराज के द्वारा उजागर की गई है। उनसे नाम दीक्षा लेने पर संसार में रहते रहते तो सब सुख सुविधाएं उपलब्ध होती ही है साथ ही साथ यहां से जाने के बाद भी पूर्ण मोक्ष की प्राप्ति होती है। आप भी उनके ज्ञान को समझ कर जल्दी से जल्दी उनसे नाम दीक्षा ले।
FAQ about Munshi Premchand Jayanti 2024 [Hindi]
उत्तर- मुंशी प्रेमचंद जी का जन्म 31 जुलाई सन 1880 में लमही बनारस उत्तरप्रदेश में हुआ।
उत्तर- उन्हें यह उपाधि बंगाली लेखक शरत बाबू ने दी।
उत्तर- मुंशी प्रेमचंद जी के पिता जी का नाम मुंशी अजायब लाल व माता का नाम आनंदी देवी था ।
उत्तर- मुंशी प्रेमचंद जी ने 15 उपन्यास, 300 कहानी, 3 नाटक व हज़ारो पृष्ट लेख लिखे।
उत्तर – अंग्रेजी सरकार ने प्रेमचंद जी की सोजे बतन को जब्त किया था।
उत्तर – मुंशी प्रेमचंद जी की प्रथम फ़िल्म मिल मज़दूर थी।
उत्तर- मुंशी प्रेमचंद जी की मृत्यु 8 अक्टूबर 1936 को बनारस में, जलोदर बीमारी से हुई।