Sant Kabir Das Biography (Hindi) | परमेश्वर कबीर साहेब जी संत कबीर दास नाम से क्यों विख्यात हैं? जानिए रहस्य

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Sant Kabir Das Biography (Hindi) | संत कबीर दास (कबीर परमात्मा) का प्राकट्य (गर्भ से जन्म नहीं) लगभग छह शताब्दियों पूर्व हुआ था। 120 वर्ष की आयु में उन्होंने रहस्यमय तरीके से सशरीर यह संसार छोड़ा। 600 वर्ष के बाद आज भी रहस्यवादी कवि संत कबीर प्रासंगिक बने हुए हैं। विभिन्न आयु, वर्ग (शिक्षित – अशिक्षित, अमीर – गरीब), धर्मों के लोगों के जीवन के हर आयाम को इस महान व्यक्तित्व और समाज सुधारक ने प्रभावित किया है। विरोध करने वाले भी सदैव असमंजस में रहे कि कैसे एक अनपढ़, दलित, गरीब हर विषय पर अधिकार पूर्वक बोल सकता है।     

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Sant Kabir Das Biography (Hindi): संत कबीर दास (कबीर परमात्मा) का अनूठा मानवतावाद

संत कबीर दास (कबीर परमात्मा) का मानवतावाद अनूठा था जो किसी धर्म विशेष तक सीमित नहीं था। जब अविभाजित भारतवर्ष की जनसंख्या 4 करोड़ के आसपास रही होगी उस समय कबीर दास के भक्तों की संख्या 64 लाख थी। आज भी भारत, नेपाल, पाकिस्तान समेत पूरे विश्व में उनके अनुयायियों की बड़ी संख्या है।  हिंदू धर्म के भक्ति आंदोलन को प्रभावित करने वाले संत कबीर की ज्ञान गंगा से ही सिख पंथ की शाखा भी निकली। प्रमाण के तौर पर गुरुग्रंथसाहिब में भी उनकी कृतियां बड़ी मात्रा में हैं। जब हिन्दू मुस्लिम पूरी तरह विभाजित थे। उन्होंने दोनों की एकता के लिए कार्य किया। अपना प्रारंभिक जीवन एक ब्राह्मण से मुस्लिम बने परिवार में बिताया। दुनिया के लिए रामानंद उनके गुरू थे पर वास्तविकता में रामानंद ने उन्हें अपना सतगुरू मानकर उनसे सतज्ञान की शिक्षा और दीक्षा ली थी। आज भी समाज का प्रबुद्ध वर्ग विशेषकर शिक्षित – बुद्धिजीवी वर्ग उनकी दृढ़ता से प्रभावित है और व्यापक रूप से कबीर दास के ज्ञान को समय समय पर सुविधा के अनुसार प्रयोग करता है।

आज इस लेख के माध्यम से महान रहस्यवादी कवि कबीर दास के बारे में विशेष तथ्य दिए जा रहे हैं।

संत कबीर दास (कबीर परमात्मा) का प्रकाटय (Birth of Sant Kabir Das)

वर्ष 1398 (विक्रम संवत 1455) को ज्येष्ठ की पूर्णिमा के दिन कबीर दास (कबीर परमात्मा) काशी शहर के लहरतारा नामक तालाब में कमल के पुष्प पर अवतरित हुए। इस घटना के साक्षी ऋषि अष्टानंद हुए जो स्वामी रामानन्द जी के शिष्य थे।  गौरीशंकर और सरस्वती नाम के ब्राह्मण ब्राह्मणी जो जबरन मुस्लिम बनकर नीरू और नीमा जुलाहे के रूप में जीवन निर्वाह कर रहे थे उस लहरतारा तालाब पर प्रतिदिन स्नान करने आते थे। संतानहीन नीरू नीमा कमल पुष्प पर विराजित बालक को घर ले आये। अनुपम सूरत वाले इस बालक को पूरी काशी देखने के लिए उमड़ पड़ी। किसी ने भी इतना सुंदर बालक पहले कभी नहीं देखा था।

25 दिनों तक कबीर दास जी (कबीर परमात्मा) ने कुछ भी ग्रहण नहीं किया। इस बात से नीरू और नीमा अत्यंत दुखी हुए। दुखी होकर नीरू-नीमा ने भगवान शिव से प्रार्थना की। तब साधु वेश में भगवान शिव ने वहाँ आकर बालक को गोद में लिया। बालक के कहने पर साधु ने नीरू को कुंवारी गाय लाने का आदेश दिया। कुंवारी गाय पर हाथ रखते ही गाय ने दूध देना प्रारंभ कर दिया और वह दूध कबीर साहेब ने पिया। पाठकों को जानना चाहिये कि परमात्मा अवतरण की इस लीला का वर्णन वेदों में भी है। (ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9)

Sant Kabir Das Biography (Hindi): कबीर दास (कबीर परमात्मा) का असली नाम क्या है? 

“कबीर” नाम अरबी भाषा में “अल-कबीर” से आया है जिसका अर्थ है “महान“। इस्लाम में भगवान के नाम से इसका संबंध है। इतिहास साक्षी है जब काजी मुल्ला कबीर साहेब के नामकरण के लिए आये तब उन्होंने कुरान खोली लेकिन पुस्तक के सभी अक्षर कबीर-कबीर हो गए। उन्होंने पुनः प्रयत्न किया लेकिन तब भी सभी अक्षर कबीर में तब्दील हो गए। बालक के बुदबुदाने पर वे उनका नाम कबीर रखकर ही चल पड़े। इस तरह कबीर ने अपना नाम स्वयं रखा। कुछ समय बाद कुछ काजी कबीर साहेब की सुन्नत करने के उद्देश्य से आये तथा कबीर साहेब ने उन्हें एक लिंग के स्थान पर कई लिंग दिखाए जिससे डर कर वे वापस लौट गए। इस लीला का वर्णन पवित्र कबीर सागर में भी है।

Sant Kabir Das Biography (Hindi): क्या कबीर दास (कबीर परमात्मा) हिंदू हैं या मुसलमान?

हिंदू उन्हें कबीर दास कहते थे, लेकिन यह कहना असंभव है कि कबीर ब्राह्मण थे या सूफी, वेदांतवादी या वैष्णव। कबीर दास धार्मिक बहिष्कार से घृणा करते थे। कबीर अपने समकालीन सभी ब्राह्मणों और मुल्लाओं के साथ धार्मिक और दार्शनिक तर्कों में शामिल हुआ करते थे। उनकी जीवन कहानी हिंदू और इस्लामी दोनों से विरोधाभासी किंवदंतियों से भरी हुई है। आज तक एक ओर हिंदू उन्हें हिंदू संत और वहीं मुस्लिम उन्हें सूफी बताते हैं। निस्संदेह उनका नाम वेदों, कुरान और बाइबल तीनों में है फिर भी उनका लालन पालन वाराणसी के एक मुस्लिम बुनकर परिवार में हुआ जिनका गुरू स्वामी रामानन्द को बताया जाता है। वास्तविकता है कि कबीर साहेब न तो हिन्दू है और न ही मुसलमान। वे तो एक सच्चे समाज सुधारक हैं जो अपने भक्तों को सत्य मार्ग दिखाने के लिए प्रकट हुए हैं। वे स्वयं कहते हैं –   

कबीर, कबिरा तेई पीर हैं, जो जानै पर पीर। 

जो पर पीर न जानि है, सो काफिर बेपीर।।

कबीर, मुसलमान मारैं करदसो, हिंदू मारैं तरवार। 

कहै कबीर दोनूं मिलि, जैहैं यमके द्वार।।

कबीर दास (कबीर परमात्मा) की मृत्यु एक रहस्य – क्या संत कबीर सशरीर अमरलोक गए?

छद्म ब्राह्मणों ने अफवाह फैला रखी थी कि मगहर में मरने वाले की मुक्ति नहीं होती और काशी में शरीर छोड़ने से स्वर्ग मिलता है। कबीर दास जी (कबीर परमात्मा) लंबे समय काशी में रहे लेकिन अंत समय में मगहर प्रस्थान किया। मगहर में एक चादर के ऊपर लेटकर एक चादर ऊपर से ओढ़ ली।  थोड़ी देर बाद आकाश में एक रोशनी सी दिखाई दी और कबीर दास (कबीर परमात्मा) के शरीर की जगह सफेद चादर के नीचे सिर्फ सुगंधित फूल मिले। सभी हैरान रह गए, शरीर के लिए झगड़ रहे बिजली खां पठान और बीर सिंह बघेल को अपनी गलती का एहसास हुआ। मुस्लिम एवं हिन्दू दोनों धर्मों के लोगों ने आधे – आधे फूल बाँट लिए और उनकी याद में अलग अलग समाधि बना ली।

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अक्सर यह पूछा जाता है कि कबीर दास (कबीर परमात्मा) की मृत्यु कब और कैसे हुई? असल में कबीर साहेब नहीं मरे। जैसा कि वेदों में वर्णित है कि कबीर परमेश्वर कबीर कभी नहीं मरते है वह अमर और अविनाशी परमात्मा है। पूर्व निर्धारित समय अनुसार जब परमात्मा की लीला का समय समाप्त हुआ और वे सतलोक जाने लगे तो उन्होंने एक और लीला की। कबीर परमेश्वर काशी से चलकर मगहर आये, इस भ्रांति को तोड़ने के लिए कि जो मगहर में मरता है वह नरक जाता है व जो काशी में मरता है वह स्वर्ग जाता है। स्थान का महत्व नहीं बल्कि व्यक्ति के किये हुए कर्मों का महत्व होता है।

कबीर दास (कबीर परमात्मा) की पत्नी (Kabir Das Wife)

किदवन्तियों के अनुसार संत कबीर दास (कबीर परमात्मा) का विवाह लोई नाम की कन्या से हुआ था। विवाह के बाद कबीर और लोई को दो संतानें हुई, जिसमें एक लड़का व दूसरी लड़की। कबीर के लड़के का नाम कमाल तथा लड़की का नाम कमाली था। लेकिन वास्तविकता इसके विपरीत है। उनकी कोई पत्नी नही थी। उन्होंने खुद इसके बारे में कहा है। उनके अनुसार –

मात-पिता मेरे कुछ नाहीं, ना मेरे घर दासी (पत्नी)।

जुलहा का सुत आन कहाया, जगत करें मेरी हाँसी।।

कबीर दास (कबीर परमात्मा) की आयु (Kabir Das Age)

भारतीय इतिहास के अनुसार माना जाता है कि कबीर दास (कबीर परमात्मा) सन् 1398 से सन् 1518 तक 120 वर्षों तक इस पृथ्वी पर रहे। संत रैदास, गुरु नानक, स्वामी रामानंद और सिकंदर लोदी इत्यादि प्रसिद्ध ऐतिहासिक हस्तियां उनके समकालीन हैं। कुछ विदेशी और स्वदेशी लेखकों ने संत कबीर दास जी (कबीर परमात्मा) के जन्म की तारीख को अलग अलग बताया है। ऐसा लगता है कि उन्हें कबीर साहेब के हिन्दी शक संवत कैलंडर 1445 को सन् समझ लेने के कारण याा अन्य कारणों से सन् 1440 को जन्म वर्ष मान लिया है जो उनके इतने लंबे कार्य के साथ कदाचित उपयुक्त नहीं है। उनके समकालीन लोगों के साथ उनके कार्यों को लेकर भी उपयुक्त नहीं ठहरता।  

कबीर साहेब जी अपनी वाणी में अपनों आयु बताते हुए कहते है:

अरबों तो ब्रह्मा गए, 49 कोटि कन्हैया। 

सात कोटि शंभु गए, मोर एक नहीं पलैया।

Sant Kabir Das Biography (Hindi): कबीर दास (कबीर परमात्मा) की भाषा

कबीर दास (कबीर परमात्मा) की भाषा सधुक्कड़ी और पंचमेल खिचड़ी है। इनकी भाषा में हिंदी भाषा की सभी बोलियों के शब्द समाहित हैं। अवधी, ब्रजभाषा, भोजपुरी, खड़ी बोली, गुजराती, छतीसगढ़ी, राजस्थानी, हरयाणवी, और पंजाबी के शब्दों की बहुलता है। अरबी, फारसी के शब्द भी कबीर साहेब की कृतियों में पाए जाते हैं।  

कबीर दास (कबीर परमात्मा) की रचनाएं/ भजन (Kabir Das Poems/Songs)

संत कबीर दास ने असंख्य पदों का निर्माण किया है। उनके दोहे, भजन, अंगिका रचनाएँ और उलटबाँसियां बहुत प्रसिद्ध हैं। संत कबीर दास की काव्य रचनाएं गागर में सागर के समान हैं। हिन्दी साहित्य के ज्ञानाश्रयी भक्ति काल के प्रणेता, काव्यधारा के प्रवर्तक, 15वीं सदी के रहस्यवादी कवि एवं संत कबीर दास जी हर काल में प्रासंगिक हैं। उनके काव्य के गूढ़ अर्थ को समझ कर मर्यादा में रहकर जो अपने जीवन में उतारता है तो उसे निश्चय ही सुख शांति के साथ-साथ पूर्ण परमेश्वर की प्राप्ति होती है। उनकी कविताएँ सदियों से उनकी काव्य महानता का प्रमाण है। उनके दो पंक्तियों के दोहे और लंबे पद (गीत) संगीतबद्ध करने योग्य थे। सरल भाषा में लिखे होने के बावजूद उनके दोहों की सही व्याख्या करना मुश्किल है क्योंकि वे जटिल विषय को उजागर कर रहे होते हैं।

कबीर दास (कबीर परमात्मा) के ग्रंथ/ संकलन (Kabir Das Books)

संत कबीर दास जी (कबीर परमात्मा) के असंख्य पद हैं जो श्रुति में प्रसिद्ध थे। श्रुति में प्रचलित होने के बावजूद, कबीर दास जी का काव्य आज तक स्पष्ट दृष्टिकोण, जन साधारण से जुड़ी भाषा और आध्यात्मिक गहराई के कारण जाना जाता है। उनके सतलोक गमन के कई वर्षों बाद भी उनके काव्य को लिखित रूप से सम्मान मिला। उनकी अनेकों रचनाओं, पदों, दोहों को बाद में संकलित किया गया है। उनके पदों के प्रमुख संकलन हैं – कबीर ग्रंथावली, कबीर दोहावली, कबीर रचनावली, कबीर बीजक, कबीर साखी संग्रह और कबीर सागर। सिख धर्म के श्री गुरू ग्रंथ साहिब (आंशिक), संत गरीब दास जी की अमृत वाणी (आंशिक) में भी कबीर साहेब के पद संकलित हैं। संत रामपाल जी महाराज द्वारा रचित अनेक पवित्र पुस्तकों जैसे ज्ञान गंगा, जीने की राह, कबीर परमेश्वर, सृष्टि रचना, सचखंड का संदेश, भक्ति और भगवान, यथार्थ कबीर पंथ का परिचय, अध्यात्म ज्ञान का गोला, कबीर सागर का सरलार्थ, मुक्ति बोध कबीर साहेब के ज्ञान से भरी हुई हैं।           

Sant Kabir Das Biography (Hindi): “संत कबीर दास (कबीर परमात्मा) कौन हैं और उनकी जाति क्या है?”

मेरी जाति जगतगुरू हूँ और मेरा पंथ है परमेश्वर: संत कबीर दास (कबीर परमात्मा)

एक दिन स्वामी रामानंद जी के एक शिष्य कहीं कथा कर रहे थे। कबीर साहेब भी वहाँ गए। ऋषि जी विष्णु पुराण के आधार पर विष्णु जी को सारे ब्रह्मांड का मालिक और रचनाकार, अजर अमर और माता पिता से नहीं जन्मे बता रहे थे। सत्संग पूरा होने के उपरांत कबीर दास जी ने प्रति – प्रश्न किया कि शिव पुराण के अनुसार विष्णु जी और ब्रह्मा जी का जन्म सदाशिव जी से हुआ है। देवी भागवत के तीसरे स्कंद में यह वर्णन है कि माता दुर्गा, ब्रह्मा-विष्णु-शिव की माता हैं। तथा ये तीनों देव जन्म-मरण में आते हैं तथा अमर नहीं बल्कि नाशवान हैं। निरुत्तर ऋषि जी क्रोधित हो गए और पूछा कि “कौन हो तुम? किसके पुत्र हो?” इसके पहले कबीर परमेश्वर कोई उत्तर देते उपस्थित लोगों ने कहना शुरू किया कि यह नीरु जुलाहे का बेटा है। तब ऋषि जी ने पूछा कि तुमने कंठी माला कैसे धारण की? (तुलसी की कंठी माला वैष्णव साधु पहनते थे जो इस बात की परिचायक थी कि उन्होंने वैष्णव गुरु धारण किया है।) तब कबीर जी ने कहा कि मेरे गुरुदेव भी वही हैं जो आपके गुरु हैं। 

Read in English | Why God Kabir is Also Known as Kabir Das? [Facts Revealed]

आग बबूला ऋषि ने कहा “अरे मूर्ख! निम्न जाति के जुलाहे का पुत्र होकर मेरे गुरुदेव को अपना बता रहा है। वे तुम जैसे शूद्रों को अपने पास भी नहीं आने देते और तुम कहते हो तुमने उनसे नाम दीक्षा ली है। देखो लोगों! यह झूठा है! धोखेबाज है! मैं अभी अपने गुरुदेव के पास जाकर तुम्हारी कहानी बताऊँगा।“

अगली सुबह कबीर साहेब को पकड़कर रामानन्द जी के समक्ष ले गए। रामानंद जी ने एक पर्दा डलवा दिया यह दिखाने के लिए कि दीक्षा देना तो दूर वे शूद्रों के दर्शन भी नहीं करते हैं। रामानन्द जी पर्दे के पीछे से ही पूछ रहे थे, “तुम कौन हो व तुम्हारी क्या जाति है?”

कबीर ने उत्तर दिया “मैं जगतगुरू हूँ और मेरा पंथ परमेश्वर का है। मैं सबको पूर्ण परमेश्वर का रास्ता बताने आया हूँ। मैं वह परमेश्वर हू जो करोड़ों ब्रह्मांडों का रचनहार है, पालनहार है, जो कबीर, कविरग्नि आदि नामों से वेदों में वर्णित है।”

जाति हमारी जगतगुरु, परमेशवर है पंथ। 

दास गरीब लिखत पढ़ें, मेरा नाम निरंजन कंत ।।

संत कबीर दास (कबीर परमात्मा) ने रामानन्द के मन की बात जानकर समाधान किया: 

रामानन्द जी ने सोचा इससे बाद में निपटूंगा पहले अपनी नित्य साधना पूरी कर लूं। स्वामी जी अपनी आंखें बंद करके मन ही मन साधना करते थे जिसमें भगवान की मूर्ति को नहलाते, सुसज्जित करते और भोग लगाते। उन्होंने भगवान को मुकुट पहना दिया किन्तु माला पहनाना भूल गए। स्वामी जी को बड़ा पछतावा हुआ। स्वामी जी सोच रहे थे कि अब मुकुट तो उतारा नहीं जा सकता और बिना मुकुट उतारे माला कैसे पहनाएँ और दोनों ही स्थिति में उनकी पूजा खंडित थी। तभी पर्दे के पीछे खड़े कबीर परमात्मा स्वामी जी के मन की बात जानकर बोल उठे कि “स्वामी जी माला की घुंडी खोलकर माला पहना दो।” तब रामानन्द जी ने सोचा कि यह बच्चा मेरी मानसिक पूजा के बारे कैसे जाना। उन्होंने पूजा छोड़कर पर्दा हटाया और सबके समक्ष कबीर परमेश्वर को हृदय से लगा लिया।

रामानंद जी के आश्रम में संत कबीर दास (कबीर परमात्मा) के दो रूप बनाना: 

रामानन्द जी ने पूछा कि “आपने झूठ क्यों कहा?” तब कबीर साहेब बोले “क्या झूठ स्वामी जी?” तब स्वामी जी बोले “यही कि आपने मुझसे नामदीक्षा ली है।” उत्तर में परमेश्वर कबीर बोले कि ” स्वामी जी याद कीजिये आप पंचगंगा घाट पर स्नानार्थ गए हुए थे और आपकी खड़ाऊँ मेरे सिर पर लगी थी और मैं रोने लगा था। तब आपने कहा कि बेटा राम राम बोलो।” रामानन्द जी ने कहा कि ” मुझे याद है लेकिन वह बालक बहुत छोटा था (उस समय पांच वर्ष के बालक काफी बड़े हो जाया करते थे और 5 वर्ष और ढाई वर्ष के बालक में पर्याप्त अंतर होता था)” तब कबीर साहेब ने कहा “देखो स्वामी जी मैं ऐसे ही दिख रहा था न?” और उन्होंने अपने दो रूप बना लिए एक ढाई वर्ष का और पांच वर्ष के वे स्वयं खड़े थे।

अब स्वामी रामानन्द जी छह बार इधर देखते और छह बार उधर कि कहीं आंखें धोखा न खा रही हों। और इस तरह उनके देखते देखते कबीर साहेब के ढाई वर्ष वाला रूप परमेश्वर के पांच वर्ष वाले रूप में समा गया। तब रामानन्द जी बोले “मेरा संशय दूर हुआ हे परमेश्वर आपको कैसे जाना जा सकता है। आप ऐसी जाति धारण करके खड़े हैं। हम अनजान तुच्छ बुद्धि जीवों को क्षमा करें। पूर्ण परमेश्वर कविर्देव मैं आपका नादान बच्चा हूँ।”

Sant Kabir Das Biography (Hindi): कबीर दास जी का दर्शन क्या था? (What Was The Kabir’s Philosophy?)

कबीर साहेब और स्वामी रामानंद जी के आगे के वार्तालाप से कबीर साहेब का दर्शन जानने को मिलता है। कबीर परमेश्वर ने पूछा कि “स्वामी जी आप क्या साधना करते हो?” रामानन्द जी ने कहा कि ” मैं वेदों और गीता पर आधारित साधना करता हूँ।” कबीर साहेब ने प्रश्न किया कि “गीता और वेदों के आधार पर आप कहाँ जायेंगे?” स्वामी रामानन्द ने उत्तर दिया कि स्वर्ग में। तब परमेश्वर कबीर साहेब ने कहा कि “आप स्वर्ग में क्या करेंगे?” तब स्वामी रामानंद जी बोले “मैं वहां रहूँगा, वहाँ दूध की नदियां बहती हैं, श्वेत स्थान है, कोई दुख और चिंता नहीं है।” कबीर परमात्मा ने पूछा “स्वामी जी आप कितने समय तक रहेंगे वहां?” (स्वामी जी ज्ञानी पुरुष थे उन्हें समझते देर नहीं लगी।) स्वामी जी बोले “अपनी भक्ति की कमाई अनुसार वहाँ रहूँगा।” तब कबीर साहेब ने समझाया कि “स्वामी आप यह साधना जाने कब से करते आ रहे हैं इससे मुक्ति संभव ही नहीं है।”

“आप विष्णु जी की साधना करके विष्णु लोक जाना चाहते हैं। ब्रह्म साधना से ब्रह्मलोक जाते है किंतु मुक्ति तब भी संभव नहीं है, क्योंकि एक दिन महास्वर्ग जो ब्रह्मलोक में है वह भी नष्ट होगा ऐसा गीता अध्याय 8 श्लोक 16 में लिखा है।” स्वामी जी को सभी श्लोक उंगलियों पर याद थे उन्होंने कहा “हां यही लिखा है।” तब कबीर साहेब ने कहा “बताओ गुरुदेव तब आप कहाँ जाओगे?” अब रामानन्द जी सोचने पर विवश हुए। परमात्मा कबीर ने पूछा-” स्वामी जी गीता का ज्ञान किसने दिया है?” तब स्वामी जी ने उत्तर दिया कि श्री कृष्ण ने दिया है गीता ज्ञान। परमात्मा कबीर ने प्रश्न किया कि “स्वामी जी संस्कृत महाभारत कांड 2 (पृष्ठ 1531 पुरानी पुस्तक में वे पृष्ठ 667 नई पुस्तक) में लिखा है कि “हे अर्जुन अब मुझे वो गीता का ज्ञान याद नहीं रहा और उसे मैं पुनः नहीं सुना सकता।” इस तरह कबीर परमात्मा ने सभी प्रमाण सामने रख दिये।

कबीर दास (कबीर परमात्मा) जी द्वारा स्वामी रामानन्द को अमरलोक सतलोक दर्शन कराना: 

कबीर दास (कबीर परमात्मा) ने स्वामी जी को तत्वज्ञान समझाया और उन्हें सतलोक लेकर गए। ब्रह्मा, विष्णु, महेश की वास्तविक स्थिति से परीचित करवाया। कबीर साहेब ने स्वामी रामानन्द जी से पूछा कि आप क्या साधना करते हो? रामानन्द जी ने उत्तर दिया कि मैं योग विधि से अपने शरीर के कमलों को खोलकर सीधा त्रिकुटी तक पहुंच जाता हूँ। कबीर दास (कबीर परमात्मा) ने उन्हें एक बार त्रिवेणी पर पहुंचने को कहा। स्वामी रामानन्द जी समाधि लगाकर पहुंच गए। वहां उन्हें कबीर परमेश्वर मिले। ब्रह्मलोक में पहुंचते ही तीन रास्ते हो गए। बीस ब्रह्मांड पार करने के पश्चात इक्कीसवें ब्रह्मांड में भी वैसा ही रास्ता है। तीन में से एक रास्ता उस स्थान को जाता है जहां ज्योति निरजंन तीन रूपों में रहता है। परमात्मा ने रामानन्द जी को आगे बताया कि ब्रह्मरंध्र उस नाम से नहीं खुलेगा जिसका रामानन्द जी जाप करते हैं बल्कि केवल सतनाम से खुलेगा। 

कबीर साहेब ने श्वासों से सतनाम का सिमरन किया और दरवाजा खुल गया। फिर कबीर साहेब ने बताया कि “अब मैं तुम्हें उस काल का रूप बताता हूँ जिसे आप सब निराकार कहते हैं, जिसने गीता में कहा है कि मैं सबको खाने के लिए आया हूँ, जिसने कहा कि अर्जुन मैं कभी किसी को दर्शन नहीं देता।” तब कबीर परमेश्वर ने काल ब्रह्म के सभी गुप्त स्थानों को दिखाया जहाँ वह ब्रह्मलोक में ब्रह्मा, विष्णु और शिव के रूपों में था। तब ब्रह्मलोक से आगे इक्कीसवें ब्रह्मांड में गए। काल भगवान की नज़र ब्रह्मलोक से आने वाले रास्ते पर हमेशा रहती है जोकि जटा कुंडली सरोवर के ऊपर है ताकि कोई बाहर न निकल पाए। 21 वे ब्रह्माण्ड का आखिरी लोक काल ब्रह्म का निजी स्थान है, वहाँ वह अपने वास्तविक रूप में रहता है।

कबीर परमात्मा ने काल ब्रह्म को दिखाया कि देखो वह तुम्हारे निराकार भगवान का वास्तविक स्वरूप। (क्योंकि सभी योगी व ऋषिजन ओम नाम के जाप से साधना करते हैं। लेकिन परमात्मा हासिल नहीं होता। योगीजन, ऋषिजन सिद्धियां पा जाते हैं, स्वर्ग-महास्वर्ग तक जाते हैं और अंततः 84 लाख योनियों में जाते हैं। काल के दर्शन न हो पाने के कारण सभी परमात्मा को निराकार बताते हैं। जबकि शास्त्र प्रमाण हैं कि परमात्मा साकार है।) कालब्रह्म के निकट आकर परमेश्वर ने सतनाम का उच्चारण किया (गीता अध्याय 17 श्लोक 23 ओम, तत,सत)। उसी क्षण काल का सिर झुक गया। काल के सिर के ऊपर एक दरवाज़ा है जिसके माध्यम से सतलोक और परब्रह्म के लोको में जाया जाता है। उसके बाद भंवर गुफा की शुरुआत होती है। (काल के लोक में भी एक भंवर गुफा है) कबीर साहेब के हंस कालब्रह्म के सिर को सीढ़ी बनाकर ऊपर जाते हैं। काल का सिर सीढ़ी की तरह कार्य करता है।

Sant Kabir Das Biography (Hindi): कबीर दास (कबीर परमात्मा) के भगवान कौन हैं? (Who Is The God Of Kabir Das?)

कबीर साहेब ब्रह्मांडों के निर्माता हैं और वह हमें मोक्ष का मार्ग दिखाने के लिए यहां आए थे। वह स्वयं एक शिष्य, सतगुरु और भक्त के रूप में श्रद्धालुओं को यह दिखाने का कार्य करते हैं कि परमात्मा को पाने के लिए सही पूजा कैसे करें। कबीर पंथी संत में से एक गरीब दास, जिन्हें कबीर साहब का अवतार माना जाता है, कहते हैं

तुम साहेब तुम संत हो, तुम सतगुरु तुम हंस।

गरीब दास तुम रूप बिन, और ना दूजा अंश।।

जिसका अर्थ है कि कबीर साहब आप सच्चे भगवान हैं, आप सच्चे संत हैं, आप सतगुरु हैं और स्वयं एक छात्र की भूमिका निभाते हैं। तुम्हारे सिवाय और कोई नहीं है।

अब मन में शंका आती है कि कबीर दास (कबीर परमात्मा) का राम कौन है। कबीर दास (कबीर परमात्मा)  का ‘राम’ निश्चित रूप से दशरथ का पुत्र नहीं है। यहां के राम का अर्थ ब्रह्मांडों के निर्माता से है। निस्संदेह वे स्वयं कबीर हैं। कबीर साहब अपने ज्ञान का प्रचार इस तरह से करते थे कि कोई भी उनकी असली पहचान की पहचान नहीं कर सकता। अब उन्होंने अपने संत को संत रामपालजी महाराज के रूप में मोक्ष का पूरा मार्ग दिखाने के लिए भेजा है।

Sant Kabir Das Biography (Hindi): संत कबीर से मिलकर किन महापुरुषों ने जाना कि कबीर पूर्ण परमात्मा हैं

आदरणीय धर्मदास जी, आदरणीय गरीबदास जी महाराज, आदरणीय नानकदेव जी, आदरणीय सन्त दादूदयाल जी, आदरणीय घीसादास जी, आदरणीय सन्त मलूक दास जी, आदरणीय स्वामी रामानंद जी को कबीर दास (कबीर परमात्मा) मिले और उन्हें समझाया कि धर्मग्रंथों में परमेश्वर की वास्तविक स्थिति से परिचित करवाया और तत्वज्ञान से परिचित करवाया। कबीर साहेब इन आत्माओं को वास्तविक स्थान सचखंड लेकर गए और वहाँ उन्हें अपनी वास्तविकता से परिचित करवाया। इन महापुरुषों ने यह सत्य अपनी आंखों से देखा कि कबीर जी स्वयं पूर्ण परमात्मा हैं जो पृथ्वी पर आते हैं और अपनी प्यारी आत्माओं को तत्वज्ञान बताते हैं।  

  1. सत्य जानने के बाद आदरणीय धर्मदास कबीर साहेब के बारे में कहते हैं –  

आज मोहे दर्शन दियो जी कबीर।

सत्यलोक से चल कर आए, काटन जम की जंजीर।।

  1. गरीबदास जी महाराज सत्य से परिचित होने के पश्चात अपनी पवित्र वाणी में सतलोक और परम् अक्षर ब्रह्म कबीर साहेब के विषय में कहते हैं  –

हम सुल्तानी नानक तारे, दादू कूं उपदेश दिया |

जाति जुलाहा भेद नहीं पाया, काशी माहे कबीर हुआ ||

गैबी ख्याल विशाल सतगुरु, अचल दिगम्बर थीर है |

भक्ति हेत काया धर आये, अविगत सत् कबीर हैं ||

  1. आदरणीय गुरुनानक जी ने सत्य ज्ञान अर्जित करने के बाद अपनी पवित्र वाणी में कबीर साहेब को करतार, परवरदीगार (पूर्ण परमात्मा) कहकर बखान किया है

फाही सुरत मलूकी वेस, उह ठगवाड़ा ठगी देस |

खरा सिआणां बहुता भार, धाणक रूप रहा करतार ||

– गुरु ग्रन्थ साहेब, राग सिरी, महला 1

हक्का कबीर करीम तू बेएब परवरदीगार |

नानक बुगोयद जनु तुरा तेरे चाकरा पाखाक ||

-गुरु ग्रन्थ साहेब, राग तिलंग, महला 1

  1. आदरणीय दादू जी ने अपने मुख कमल से कबीर परमेश्वर का गुणगान किया –

जिन मोकू निज नाम दिया, सोई सतगुरु हमार |

दादू दूसरा कोई नहीं, कबीर सृजन हार ||

  1. आदरणीय मलूक दास जी ने सचखंड और पूर्ण परमेश्वर को देखने के बाद निम्न वाणियां उच्चारित की।

जपो रे मन सतगुरु नाम कबीर|

जपो रे मन परमेश्वर नाम कबीर ||

Sant Kabir Das Biography (Hindi): कबीर दास जी (कबीर साहेब) का शास्त्रों में प्रमाण 

परमात्मा स्वयं तत्वदर्शी संत के रूप में पृथ्वी पर आते हैं और तत्वज्ञान का प्रचार करते हैं। परमेश्वर कबीर तत्वज्ञान को दोहों, चौपाइयों, शब्द इत्यादि के माध्यम से अपनी प्यारी आत्माओं तक पहुंचाते हैं किंतु परमेश्वर से अनजान आत्माएं उन्हें नहीं समझ पाती। परमेश्वर कबीर साहेब ने ढेरों चमत्कार भी हजारों लोगों की उपस्थिति में किए जो भी कबीर सागर में वर्णित हैं।

वेद, कुरान बाइबल भी कबीर नाम को लेकर परमात्मा के धरती पर प्रकट होने का प्रमाण देती है –

  1. पवित्र कुरान शरीफ, सूरत फुरकान 25, आयत 52 से 59 में कहा गया है कि “तुम काफिरों का कहा न मानना क्योंकि वे कबीर को अल्लाह नहीं मानते। कुरान में विश्वास रखो और अल्लाह के लिए संघर्ष करो, अल्लाह की बड़ाई करो।”
  2. वेदों में प्रमाण है कि कबीर साहेब प्रत्येक युग में आते हैं। कबीर दास जी (कबीर परमात्मा) का धरती पर अवतरण माता के गर्भ से जन्म नहीं होता है तथा उनका पोषण कुंवारी गायों के दूध से होता है। अपने तत्वज्ञान को अपनी प्यारी आत्माओं तक वाणियों के माध्यम से कहने के कारण वे एक कवि की उपाधि भी धारण करते हैं। यजुर्वेद अध्याय 29 मन्त्र 25, ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 96 मन्त्र 17, ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 96 मन्त्र 18 और ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9 में कबीर का नाम कविर्देव वर्णित है।   
  3. पवित्र बाइबल में भी प्रमाण है कबीर परमेश्वर साकार है। पवित्र बाइबल के उत्पत्ति ग्रन्थ के अध्याय 1:26 और 1:27 में प्रमाण है कि परमेश्वर ने 6 दिनों में सृष्टि रचना की। बाइबल के अध्याय 3 के 3:8, 3:9, 3:10 में प्रमाण है कि परमात्मा सशरीर है। ऑर्थोडॉक्स यहूदी बाइबल के अय्यूब 36:5 में प्रमाण है कि “परमेश्वर कबीर (शक्तिशाली) है, किन्तु वह लोगों से घृणा नहीं करता है। परमेश्वर कबीर (सामर्थी) है और विवेकपूर्ण है।”
  4. गुरु ग्रन्थ साहेब में प्रमाण है कि कबीर साहेब ही व ईह परमात्मा हैं जिसने सर्व ब्रह्मांडों की रचना की। वह साकार है और उसी परमेश्वर कबीर ने काशी, उत्तर प्रदेश में जुलाहे की भूमिका भी निभाई। (गुरु ग्रन्थ साहेब के पृष्ठ 24 राग सिरी, महला 1, शब्द संख्या 9; गुरु ग्रंथ साहेब पृष्ठ 721 महला 1 तथा गुरु ग्रंथ साहेब, राग असावरी, महला 1 के अन्य भाग)

Sant Kabir Das Biography (Hindi): स्वयं संत कबीर (कविर्देव) जी ने बताया अपना भेद 

स्वयं संत कबीर दास जी (कविर्देव)  ने अपनी अमृतवाणी में कहा है –

अविगत से चल आए, कोई मेरा भेद मर्म नहीं पाया। (टेक)

न मेरा जन्म न गर्भ बसेरा, बालक हो दिखलाया।

काशी नगर जल कमल पर डेरा, वहाँ जुलाहे ने पाया।।

मात-पिता मेरे कुछ नाहीं, ना मेरे घर दासी (पत्नी)।

जुलहा का सुत आन कहाया, जगत करें मेरी हाँसी।।

पाँच तत्व का धड़ नहीं मेरा, जानुं ज्ञान अपारा।

सत्य स्वरूपी (वास्तविक) नाम साहेब (पूर्ण प्रभु) का सोई नाम हमारा।।

अधर द्वीप (ऊपर सत्यलोक में) गगन गुफा में तहां निज वस्तु सारा।

ज्योत स्वरूपी अलख निरंजन (ब्रह्म) भी धरता ध्यान हमारा।।

हाड़ चाम लहु ना मेरे कोई जाने सत्यनाम उपासी।

तारन तरन अभय पद दाता, मैं हूँ कबीर अविनाशी।।

Sant Kabir Das Biography (Hindi): वर्तमान में कैसे करें कबीर दास जी (कबीर परमात्मा) के दर्शन 

हर काल में परमात्मा स्वयं अपने भक्तों की पुकार पर धरती पर अवतरित होते हैं। शिशु रूप में कमल पुष्प पर, जिंदा बाबा के रूप में या अपने द्वारा किसी विशिष्ट आत्मा को सतगुरु रूप में नियुक्त करके।  सत-भक्ति करके सांसारिक सुख और मोक्ष की प्राप्ति के लिए संत कबीर साहब समकालीन सतगुरु के पास जाने की सलाह देते हैं। वर्तमान में एकमात्र तत्वदर्शी संत सतगुरु रामपाल जी महाराज हैं। उनकी शरण में जाकर नाम दीक्षा (Name Initiation) लेकर मर्यादा में रहकर सत-भक्ति का अभ्यास करने से सभी सांसारिक सुखों की प्राप्ति होगी और अंततः कालचक्र में आवागमन से पूर्ण मोक्ष मिलेगा।

कबीर दास जी (कबीर परमात्मा) से सम्बंधित FAQ 

Q. कबीर दास जी कौन थे?

Ans. कबीर दास जी ज्ञानमार्गी शाखा के एक महान समाज सुधारक संत होने के साथ साथ पूर्ण परमेश्वर भी है।

Q. कबीर दास जी का जन्म कब तथा कहाँ हुआ था?

Ans. कबीर दास जी (कबीर परमात्मा) का जन्म ना होकर प्राकट्य विक्रम संवत 1455 अर्थात सन 1398 ईस्वी में काशी के लहरतारा नामक स्थान पर हुआ था। 

Q. कबीर दास जी के माता-पिता कौन थे?

Ans. कबीर दास जी (कबीर साहेब जी) के वास्तविक माता-पिता कोई नहीं है क्योंकि ये पूर्ण परमात्मा है, परंतु इनकी काशी लीला के समय इनका पालन-पोषण नीरू-नीमा नामक जुलाहे दम्पत्ति ने किया था।

Q. कबीर दास जी की पत्नी का नाम क्या था?

Ans. कबीर दास जी (कबीर परमात्मा) की पत्नी के नाम के सम्बंध में कई किंवदंती प्रचलित है लेकिन उनकी कोई पत्नी नही थी। उन्होंने खुद इसके बारे में कहा है।

मात-पिता मेरे कुछ नाहीं, ना मेरे घर दासी (पत्नी)।
जुलहा का सुत आन कहाया, जगत करें मेरी हाँसी।।

Q. कबीर दास जी के कितने बच्चे थे व उनके क्या नाम थे?

Ans. कबीर दास जी (कबीर परमात्मा) के कोई बच्चे नहीं थे। हालाकि उन्होंने अपनी समर्थता का प्रमाण देने के लिए 2 बच्चो को जीवित किया था जिनका नाम कमाल तथा कमाली रखा गया था।

Q. कबीर दास जी के इष्ट (आराध्य) कौन थे?

Ans. कबीर साहेब जी खुद पूर्ण परमेश्वर हैं जो अविनाशी है, सबके रचनहार हैं। उन्होंने खुद को छिपाकर एक इष्ट भगवान की भक्ति का मार्ग समझाया था जिसे वे राम कहकर संबोधित करते थे।

Q. कबीर साहेब जी के गुरु का नाम क्या था?

Ans. कबीर साहेब जी के गुरु का अभिनय स्वामी रामानंद जी ने उनके कहने पर किया था ताकि गुरु शिष्य परंपरा का निर्वहन हो सके। वास्तव में स्वामी रामानंद जी ने भी कबीर परमात्मा को ही गुरु बनाया था।

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