HomeHindi Newsलोकमान्य तिलक की पुण्यतिथि (Lokmanya Tilak Death Anniversary) पर सत्य सन्देश

लोकमान्य तिलक की पुण्यतिथि (Lokmanya Tilak Death Anniversary) पर सत्य सन्देश

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बाल गंगाधर तिलक की पुण्यतिथि (Lokmanya Tilak Death Anniversary) एक अगस्त को मनाई जाती है। जन सामान्य के साथ रहकर राष्ट्र के लिए अविस्मरणीय योगदान के लिये लोगों ने दी थी तिलक को लोकमान्य की उपाधि। इस लेख में जानेंगे तिलक का संदेश एवं सत्य साधना।

लोकमान्य तिलक (Lokmanya Tilak Death Anniversary): मुख्य बिंदु

  • लोकमान्य तिलक का जन्म 23 जुलाई 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरि में हुआ था
  • पेशे से वकील थे लोकमान्य तिलक
  • भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में निभाई अहम भूमिका
  • लोकमान्य तिलक की मृत्यु 1 अगस्त 1920 को हुई
  • उग्र दल लाल-बाल-पाल में से एक

Lokmanya Tilak Death Anniversary: महान शख़्सियत लोकमान्य तिलक

लोकमान्य तिलक (Lokmanya Bal Gangadhar Tilak) इतिहास के पन्नों में महापुरुष रहे हैं। इन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाई है। लोकमान्य का कार्य क्षेत्र महाराष्ट्र, मध्य प्रान्त, बरार और कर्नाटक था। मराठी भाषा का महत्वपूर्ण समाचार पत्र केसरी एवं अंग्रेजी का महत्वपूर्ण समाचार पत्र मराठा बाल गंगाधर तिलक द्वारा ही प्रकाशित किये गए थे। शिक्षा के लिए आगे आई दक्कन एजुकेशन सोसाइटी के संस्थापक बाल गंगाधर तिलक ही थे। 

वर्ष 1890 में तिलक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य हुए। तिलक ने स्वदेशी आंदोलन का बहुत प्रचार किया एवं लोगों को विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार के लिए प्रोत्साहित किया। 1896-97 में प्लेग माहमारी में लोकमान्य स्वयं कार्यकर्ता के रूप में आगे आए थे। 

गरम दल नेता तिलक कांग्रेस से निष्कासित और राजद्रोह में कारावास 

कांग्रेस नरम दल थी और तिलक गरम दल से। तिलक स्वराज्य की मांग करते थे और कांग्रेस छोटे छोटे सुधार करने में यकीन रखती थी। इस बात पर 1907 में सूरत अधिवेशन में इतना संघर्ष हुआ कि नरम दल के नेताओं ने तिलक और उनके सहयोगियों को पार्टी से बाहर कर दिया। राष्ट्रीय शक्तियों में पड़ी फूट का फायदा सरकार ने कुछ इस प्रकार उठाया कि तिलक को राजद्रोह और आतंकवाद फैलाने के आरोप में छह वर्ष के कारावास की सजा सुनाई गई।

Lokmanya Tilak Death Anniversary: जब भारतीय क्रांति के जनक ने ली अंतिम सांस   

Lokmanya Tilak Death Anniversary: 1 अगस्त सन 1920 को आम जनता के नेता ‘लोकमान्य’ ने अंतिम सांस लीं। लोकमान्य जैसे रत्न की मृत्यु पर शोक व्यक्त करते हुए गांधी जी ने उन्हें आधुनिक भारत का निर्माता कहा एवं नेहरू ने उन्हें भारतीय क्रांति के जनक की उपाधि दी।

गणेश चतुर्थी है तिलक (Lokmanya Tilak) जी की देन

1893 का समय जब भारत विदेशी शिकंजे में जकड़ा था तब अंग्रेजों द्वारा हर प्रकार से लोगों के विरोध करने एवं उनकी स्वतंत्रत अभिव्यक्ति पर रोक लगाई जाने लगी। लोगों का एक साथ किसी स्थान पर इकट्ठा होना भी अपराध की श्रेणी में आता था। प्रेस को स्वतंत्रता नहीं थी इसे वर्नाक्यूलर एक्ट के तहत अंग्रेजी शासन ने अपने अधीन रखा था। लेकिन क्रांति को दबाया नहीं जा सकता है। अधिक वर्षा में धरती पर कीचड़ निश्चित है वैसे ही जब लंबे समय तक शोषण होता है तब क्रांति भी निश्चित है। सभी क्रांतिकारी, स्वतंत्रता सेनानी, लेखक वर्ग अपने-अपने तरीके से भारत की जनता को जगाने का कार्य कर रहे थे।

इसके लिए लोगों के एकजुट होने की आवश्यकता तो महसूस की गई लेकिन लोगों का एकजुट होना मुश्किल था। तब आज से इतने वर्ष पहले बाल गंगाधर ने गणेश चतुर्थी का त्योहार बड़े स्तर पर 10 दिनों तक पंडालों में आयोजित करने की घोषणा की। धार्मिक स्तर के कार्य समझकर सरकार की नज़र नहीं पड़ी और तिलक ने गणेश जी को साध्य बनाकर भारतीय जनता में अलख लगाने का प्रयास किया और यहीं से आरम्भ हुआ गणेश चतुर्थी का, जिसे आज भी प्रतिवर्ष पूरे भारत में और विशेषकर महाराष्ट्र में धूमधाम से मनाया जाता है। 

वेदों पर लिखी पुस्तक गीता रहस्य और आर्कटिक होम

लोकमान्य तिलक ने धर्म और धर्मग्रंथों पर ज़ोर दिया था। उन्होंने अध्ययन का पर्याप्त प्रयत्न किया। गीता रहस्य और आर्कटिक होम तिलक की ही रचनाएं हैं जो उनकी धार्मिक परायणता की परिचायक हैं। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि इतना बड़ा लोकनायक भी तत्वदर्शी सन्त के न होने से मोक्ष से वंचित रह गया? आज मामूली लोगों के समक्ष भी सन्त रामपाल जी महाराज पूरे विश्व मे एकमात्र तत्वदर्शी सन्त के रूप में विद्यमान हैं। सन्त रामपाल जी महाराज ने वेदों से एवं अन्य सभी धर्म ग्रन्थों से निचोड़ कर तत्वज्ञान बताया है। गुरु के बिना तो शास्त्रों के गूढ़ रहस्य समझ पाना उसी प्रकार असंभव है जैसे भूसे से अन्न निकालना। कबीर साहेब कहते हैं-

गुरु बिनु काहु न पाया ज्ञाना, ज्यों थोथा भुस छड़े मूढ़ किसाना |

संसार मे अमर होना है आसान 

संसार मे सद्भावना, सद्कर्म एवं लोकहित के बल पर इतिहास में अमर होना आसान है। किन्तु मोक्ष करवाकर स्वयं को चौरासी लाख योनियों के बंधन से मुक्त करवाना अत्यंत कठिन है। क्यों? क्योंकि या तो साधक को सही तत्वज्ञान बताने वाला तत्वदर्शी सन्त (गीता अध्याय 4, श्लोक 34) नहीं मिलता या फिर व्यक्ति तत्वदर्शी सन्त के होते हुए भी अपने बहुमुल्य मानव जीवन की सांसें यों ही लुटाकर चल देता है। 

कबीर साहेब ने कहा है-

ऊंची कोठी सुंदर नारी, सतनाम बिना बाजी हारी |

कहे कबीर अन्त की बारी, जैसे हाथ झाड़कर चला जुआरी ||

इसलिए समय रहते चेतना, तत्वदर्शी सन्त की पहचान करना और अपने शास्त्रों का अध्ययन करना बहुत महत्वपूर्ण है। मनुष्य का जन्म केवल मोक्ष प्राप्ति के लिए हुआ है और यदि इसे व्यर्थ किया तो हारे हुए जुआरी की सी स्थिति आएगी। तत्वदर्शी सन्त का आज हमारे सामने होना परमात्मा की दया है जिसका हमें लाभ उठाना है। कबीर साहेब ने कहा है शीश दिए जो गुरु मिले तो भी सस्ता जान।

सन्त रामपाल जी महाराज हैं पूर्ण तत्वदर्शी सन्त

जो एक समय में पूरी पृथ्वी पर एक होता है, जिसके लिए अनेकों ऋषि मुनि घर द्वार छोड़कर जंगलों में भटकते रहे, जो राम और कृष्ण जैसे अवतारों को भी नहीं मिला, जो अनेकों मोक्ष प्राप्ति की इच्छा रखने वालों को भी नहीं मिला वो हमें आज मिला है- वो है तत्वदर्शी सन्त। केवल तत्वदर्शी सन्त द्वारा बताए गए मन्त्रों के विधिवत जाप से हमारे पुराने कर्म बंधन छूटते हैं तथा हम सदैव के लिए सतलोक (शाश्वत स्थान) के वासी होते हैं।

सतलोक स्वर्ग एवं महास्वर्ग से भी अच्छा, ऊँचा और अमर स्थान है जहां जाने के बाद जरा, मरण, जन्म, बुढ़ापा, दुख, बीमारी, चिंता, शोक, संताप, राग, द्वेष, शंका, हाहाकार से सदैव के लिए पीछा छूटता है एवं व्यक्ति चौरासी लाख योनियों में जन्म नहीं लेता है। वर्तमान में सत्य साधना बताने वाले, सर्व धर्मों के धर्मग्रंथों से प्रमाणित ज्ञान देने वाले सन्त केवल सन्त रामपाल जी महाराज हैं। सन्त रामपाल जी महाराज वही विश्व विजेता सन्त हैं जिनके विषय मे सैकड़ों वर्षों से विभिन्न देशों के भविष्यवक्ताओं ने भविष्यवाणियां की हैं। ज्ञान समझिए और समय रहते सन्त रामपाल जी महाराज जी से नामदीक्षा लेकर कल्याण करवाइए। 

सात शुन्य दशलोक प्रमाना, अंश जो लोक लोक को शाना ||

नौ स्थान (मुकाम) हैं दशवां घर साच्चा, तेहि चढ़ि जीव सब बाचा ||

सोरा (16) शंख पर लागी तारी, तेहि चढ़ि हंस भए लोक दरबारी ||

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