June 6, 2025

प्रकट हुए या गर्भ से पैदा हुए कबीर साहेब? जाने प्रकट होने और जन्म होने में भेद

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जब भी धरती पर अत्याचार बढ़ते हैं तब परमपुरुष पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी ही स्वयं प्रकट होकर भक्तों का उद्दार करते हैं। कबीर परमात्मा सर्व सृष्टि के रचनहार है उनके लिए कोई भी कार्य असम्भव नहीं है। वे सतलोक से हल्के तेजपुंज का शरीर धारण करके प्रकट होते हैं और अच्छी आत्माओं को मिलकर सतज्ञान और सतभक्ति देते हैं। अपना लक्ष्य पूरा कर सहशरीर सतलोक वापस चले जाते हैं। दूसरी ओर क्षरपुरुष काल ब्रह्म एवं देवी देवता ब्रह्मा-विष्णु-महेश आदि माता के गर्भ से जन्म लेकर पृथ्वी पर अवतरित होते हैं और उनकी मृत्यु भी होती है। कालब्रह्म पृथ्वी पर समय समय पर अपने अवतारों को भेजकर लीलाएँ करवाते हैं। सामान्य मानव गर्भ से जन्में अवतारों से प्रभावित होकर उन्हें ही सर्वेश्वर मान लेते हैं एवं पूर्ण परमात्मा तक नहीं पहुँच पाते हैं। पाठकगण विचार करें श्रीराम, श्रीकृष्ण  जैसे देवी-देवता माँ के गर्भ से जन्म लेकर लीला करते हैं। परमपुरुष प्रकट लेकिन देवी देवता जन्म लेते हैं। आगे हम प्रकट और जन्म के भेद को उजागर करेंगे।   

Table of Contents

पूर्णब्रह्म कबीर साहेब जी के प्राकट्य का वेदों में प्रमाण   

वेदों में परमेश्वर कबीर का नाम कविर्देव वर्णित है। यजुर्वेद अध्याय 29 मन्त्र 25 में स्पष्ट प्रमाण है कि जब साधक समाज को शास्त्र विरुद्ध मनमाना आचरण कराया जाता है, उस समय तत्वज्ञान के प्रचार के लिए कविर्देव (कबीर परमेश्वर) स्वयं पृथ्वी पर प्रकट होते हैं।

  • ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 96 मन्त्र 17 में उद्धृत है कि पूर्ण परमात्मा कविर्देव विलक्षण बालक के रूप में प्रकट होकर अपने वास्तविक ज्ञान को अपने अनुयायियों तक कवि रूप में अपनी कबीर वाणी द्वारा कविताओं, लोकोक्तियों के द्वारा सम्बोधन करके पहुचाते हैं।
  • ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 1 मंत्र 9 में कहा गया है कि पूर्ण परमात्मा बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है। उसे शरीर वृद्धि के लिए जो भी आवश्यक पदार्थ चाहिए उसकी पूर्ति कुंवारी गायों द्वारा दिए दूध से होती है। 

क्या एक जुलाहे और कवि की भूमिका करने वाले बालस्वरूप प्रकट परमात्मा कबीर जी हैं? 

वास्तव में एक जुलाहे एवं कवि की भूमिका करने वाला जो मानव सदृश पृथ्वी पर अवतरित हुआ और जिसने अपनी प्यारी आत्माओं को सही आध्यात्मिक ज्ञान का बोध कराया वह कोई और नहीं बल्कि पूर्ण ब्रह्म कविर्देव हैं। यह सभी धर्मग्रंथों पवित्र वेद, पवित्र कुरान शरीफ, पवित्र बाइबल, पवित्र गुरु ग्रंथ साहेब में प्रमाण है कि कबीर साहेब ही भगवान हैं। 600 वर्ष पहले इस मृत्युलोक में पूर्णब्रह्म कबीर साहेब अवतरित हुए और नीरू और नीमा को अपना माता-पिता चुना जो निसंतान दम्पति थे और जुलाहे का कार्य करते थे। आगे जानिए परमेश्वर कबीर की अलौकिक लीला। 

कबीर साहेब के प्रकट होने या जन्म लेने संबंधी भ्रांतियां और उनका समाधान  

मध्यकाल के प्रसिद्ध कवि कबीर साहेब जो साक्षात पूर्ण परमात्मा हैं उन्हे लेकर नाना प्रकार की भ्रांतियां तत्वज्ञान से अनभिज्ञ लोगों द्वारा फैलाई गईं। धरती पर परमात्मा के अवतार वर्तमान सतगुरु रामपाल जी महाराज ने पूरा सत्य खोलकर बताया है। इस लेख के माध्यम से पाठकों को कबीर साहेब जी के प्रकट होने से संबंधित सम्पूर्ण जानकारी देंगे। 

जनश्रुतियों के आधार पर अज्ञानी लोगों का कहना है कि उनका जन्म एक विधवा ब्राह्मणी से हुआ था, लेकिन उल्लेखित इतिहास में इस महिला का नाम या अन्य कोई भी विवरण नहीं है। इससे स्पष्ट है कि यह केवल लोगों में प्रचलित एक दंत कथा है।  सच्चाई यह है कि एक निःसंतान दंपति ने कबीर साहेब को कमल के फूल पर एक शिशु के रूप में पाया और उन्होंने उन्हें अपनी संतान के रूप में पाला। कलयुग की यह इकलौती घटना है इसी कारण तत्वज्ञान के अभाव में सत्य को सत्य मानना मुश्किल जान पड़ा। प्रमाण जानकार शिक्षित समाज को सत्य को स्वीकार करना आसान होगा। वास्तविक जानकारी इस प्रकार है :

काशी में परमेश्वर कबीर साहेब के शिशु रूप में प्रकट होने की सत्य घटना 

ज्येष्ठ मास की शुक्ल पूर्णमासी विक्रमी संवत् 1455 (सन् 1398) सोमवार को ब्रह्म मुहूर्त के समय (जो सूर्योदय से लगभग डेढ़ घंटा पहले होता है) प्रतिदिन की तरह नीरू-नीमा जुलाहा निःसंतान दंपत्ति काशी शहर से बाहर बने लहरतारा तालाब पर स्नान करने के लिए जा रहे थे। नीमा रास्ते में भगवान शंकर से प्रार्थना कर रही थी कि “हे दीनानाथ! आप अपने दासों को भी एक बच्चा दे दो, आप के घर में क्या कमी है प्रभु! हमारा भी जीवन सफल हो जाएगा। दुनिया के व्यंग्य सुन-सुनकर आत्मा दुःखी हो जाती है मुझ पापिन से ऐसी कौन सी गलती किस जन्म में हुई है जिस कारण मुझे बच्चे का मुख देखने को तरसना पड़ रहा है। हमारे पापों को क्षमा करो प्रभु! हमें भी एक बालक दे दो।”

■ यह भी पढ़ें: कबीर प्रकट दिवस: तिथि, उत्सव, घटनाएँ, इतिहास

यह कहकर नीमा फूट-फूटकर रोने लगी तब नीरू ने धैर्य दिलाते हुए कहा है “नीमा! हमारे भाग्य में संतान नहीं है यदि भाग्य में संतान होती तो प्रभु शिव अवश्य प्रदान कर देते। आप रो-रोकर आँखें खराब कर लोगी। बालक भाग्य में है नहीं जो वृद्ध अवस्था में ऊंगली पकड़ लेता। आप मत रोओ। आपका बार-बार रोना मेरे से देखा नहीं जाता।” यह कहकर नीरू की आँखें भी भर आई। 

जब नीमा की नजर कमल के फूल पर विराजित बच्चे पर पड़ी

इसी तरह प्रभु की चर्चा व बालक प्राप्ति की याचना करते हुए उसी लहरतारा तालाब पर पहुँच गए। प्रथम नीमा ने प्रवेश किया। उसके पश्चात् नीरू ने स्नान करने के लिए  तालाब में प्रवेश किया। सुबह का अंधेरा शीघ्र ही उजाले में बदल जाता है। जिस समय नीमा ने स्नान किया था, उस समय तक तो अंधेरा था। जब वह कपड़े बदल कर पुनः तालाब पर कपड़े धोने के लिए गई, उस समय नीरू तालाब में स्नान कर रहा था।

जब नीमा की नजर कमल के फूल पर विराजित बच्चे पर पड़ी

अचानक नीमा की दृष्टि एक कमल के फूल पर पड़ी जिस पर कोई वस्तु हिल रही थी। प्रथम नीमा ने जाना कोई सर्प है जो कमल के फूल पर बैठा अपने फन को उठाकर हिला रहा है। उसने सोचा कहीं यह सर्प मेरे पति को न डस ले। नीमा ने उसको ध्यानपूर्वक देखा तो पाया कि वह सर्प नहीं है, कोई बालक है। जिसने एक पैर अपने मुख में ले रखा है तथा दूसरे को हिला रहा है। नीमा ने अपने पति से ऊँची आवाज में कहा, “देखियो जी! एक छोटा बच्चा कमल के फूल पर लेटा है। वह जल में डूब न जाए।” नीरू स्नान करते-करते उसकी ओर न देखकर बोला “नीमा! बच्चों की चाह ने तुझे पागल बना दिया है। अब तुझे जल में भी बच्चे दिखाई देने लगे हैं।” नीमा ने अधिक तेज आवाज में कहा, “मैं सच कह रही हूँ, देखो! सचमुच एक बच्चा कमल के फूल पर, वह रहा देखो!” नीमा की आवाज में परिवर्तन व अधिक कसक देखकर नीरू ने उस ओर देखा जिस ओर नीमा हाथ से संकेत कर रही थी। कमल के फूल पर नवजात शिशु को देखकर नीरू ने आव देखा न ताव, झपटकर कमल के फूल सहित बच्चा उठाकर अपनी पत्नी को दे दिया।

परमेश्वर कबीर जी के शिशु रूप को नीमा द्वारा पुत्रवत् स्वीकार करना  

नीमा ने शिशु रूप परमेश्वर कबीर जी को सीने से लगाया, मुख चूमा, पुत्रवत् प्यार किया। जिस परमेश्वर की खोज में ऋषि-मुनियों ने जीवन भर शास्त्र विरुद्ध साधना की, उन्हें नहीं मिला। वही परमेश्वर भक्तमति नीमा की गोद में खेल रहा था।

भक्तमति नीमा शीतलता व आनंद का अनुभव कर रही थी। नीरू स्नान करके जल से बाहर आया। नीरू ने सोचा कि यदि हम इस बच्चे को ले जाएँ तो काशीवासी हम पर शक करेंगे। सोचेंगे कि ये किसी के बच्चे को चुरा कर लाए हैं। कहीं हमें नगर से बाहर निकाल दें। इस डर से नीरू ने अपनी पत्नी से कहा “नीमा इस बच्चे को यहीं छोड़ दे, इसी में अपना हित है।” नीमा बोली “हे पतिदेव! यह भगवान शंकर का दिया खिलौना है। मुझे पता नहीं इस बच्चे ने मुझ पर क्या जादू सा कर दिया है कि मेरा मन इस बच्चे के वश हो गया है। मैं इस बच्चे को छोड़ कर नहीं जा सकती।” नीरू ने नीमा को अपने मन में व्याप्त डर से अवगत करवाया। लेकिन नीमा ने कहा कि मैं इस बालक के साथ देश निकाला भी स्वीकार कर लूँगी। मैं अपनी मृत्यु को भी स्वीकार कर लूँगी परंतु इस बच्चे से अलग नहीं रह सकूँगी।

नीमा का हठ देखकर क्रोधित नीरू थप्पड़ मारने की स्थिति में आँखों में आँसू भरकर करूणाभरी आवाज में बोला, “नीमा! मैंने आज तक तेरी किसी भी बात को नहीं ठुकराया। तू मेरे नम्र स्वभाव का अनुचित लाभ उठा रही है। आज मेरी स्थिति को न समझकर अपने हठी स्वभाव से मुझे कष्ट दे रही है।”  नीरू ने नीमा को बच्चे को वहीं रख देने की चेतावनी दी। 

बालरूपी कबीर परमेश्वर बोले – सतलोक से चलकर तुम्हारे लिए आया हूँ

उसी समय नीमा के सीने से चिपके बालरूपी परमेश्वर बोले “हे नीरू! आप मुझे अपने घर ले चलो। आप पर कोई आपत्ति नहीं आएगी। मैं सतलोक से चलकर तुम्हारे हित के लिए यहाँ आया हूँ।” नवजात शिशु के मुख से उपरोक्त वचन सुनकर नीरू (नूर अली) डर गया कि कहीं यह कोई देव या पित्तर या कोई सिद्ध पुरूष न हो और मुझे श्राप न दे दे। इस डर से नीरू कुछ नहीं बोला। घर की ओर चल पड़ा। पीछे-पीछे उसकी पत्नी बालरूप परमेश्वर को प्यार करती हुई चल पड़ी। 

नीरू नीमा कौन थे?

नीरू और नीमा वास्तव में ब्राह्मण थे जिन्हें अन्य ब्राह्मणों की ईर्ष्या के परिणामस्वरूप, मुसलमानों द्वारा जबरन धर्म परिवर्तित कर दिया गया था। नीरू का नाम गौरीशंकर था तथा नीमा का नाम सरस्वती था। वे दोनों शिव जी के उपासक थे। मुस्लिमों ने उनका नाम क्रमशः नीरू और नीमा रख दिया। आजीविका का कोई साधन नहीं होने के कारण उन्होंने चरखा लेकर जुलाहे का कार्य प्रारंभ कर दिया। मात्र जीविका निर्वाह का धन रखकर वे अन्य बचे धन का भंडारा कर देते थे। अन्य ब्राह्मणों ने नीरू-नीमा का गंगा में स्नान करना बंद कर दिया था। काशी में गंगा नदी की लहरों से जुड़ा लहरतारा तालाब था जो सदा गंगा के पवित्र जल से भरा रहता था। इसलिए उन्होंने स्नान आदि के लिए गंगाजी के स्वच्छ जल से भरे लहरतारा तालाब में जाना शुरू कर दिया था। तालाब में कमल पुष्प उगते थे।

परमात्मा कबीर का सशरीर प्रकट होने के प्रत्यक्ष दृष्टा ऋषि अष्टानंद

ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को विक्रमी संवत 1455 (सन 1398 ई.) को सुबह ब्रह्म मुहूर्त में कबीर परमेश्वर सतलोक (ऋतधाम) से सशरीर आकर शिशु रूप में लहरतारा तालाब के ही कमल के पुष्प में विराजमान हुए। इस घटना के प्रत्यक्ष दृष्टा स्वामी रामानन्द जी के शिष्य ऋषि अष्टानांद जी थे जो प्रतिदिन सुबह वहाँ साधना के लिए जाते थे। उन्होंने तेज प्रकाश उतरता देखा, उस तीव्र प्रकाश से सारा लहरतारा तालाब जगमग हो उठा एवं स्वयं ऋषि अष्टानांद की आंखें चौंधिया गईं और उनकी चर्म दृष्टि उसे सहन नहीं कर सकी। जैसे सूर्य के तेज प्रकाश को देखकर आँखें बंद हो जाती है और बंद आँखों में सूर्य का आकार दिखाई देता है। इसी प्रकार परमेश्वर के प्रकाश पुंज को देखने से ऋषि जी की आँखें बंद हो गई और शिशु की आकृति को देख कर उन्होंने पुनः आँखें खोली। देखते ही देखते वह प्रकाश जलाशय के एक कोने में सिमट गया। 

अद्भुत दृश्य देखकर ऋषि अष्टानंद सोच में पड़ गए कि यह उनकी भक्ति का परिणाम है या दृष्टिदोष? उत्तर जानने की चेष्टा में साधना छोड़ अपने गुरुदेव स्वामी रामानंद के पास पहुँच गए। सारा घटनाक्रम जानकार स्वामी रामानंद जी ने कहा! हे अष्टानंद यह न तो तेरी भक्ति की उपलब्धि है, न दृष्टि दोष। ऊपर के लोकों से जब कोई देव पृथ्वी पर अवतार धारण करने के लिए आते हैं तब वह किसी स्त्री के गर्भ में निवास करते हैं। फिर बालक रूप धारण करके, नर लीला करके अपना अपेक्षित कार्य पूर्ण करते हैं। ऊपर के लोकों से कोई देव आया है जो काशी में जन्म लेकर अपना प्रारब्ध पूरा करेगा। ऋषियों की यही धारणा थी कि सर्व अवतारगण माता के गर्भ से ही जन्म लेते हैं।

कबीर साहेब का प्राकट्य हुआ जन्म नहीं जानिए प्रमाण कबीर सागर से 

पवित्र कबीर सागर के अध्याय अगम निगम बोध से कबीर साहेब जी की यह वाणी भी प्रमाणित करती है कि कबीर साहेब जी का प्राकट्य हुआ न कि माता के गर्भ से जन्म।

अवधू अविगत से चल आया, कोई मेरा भेद मर्म नहीं पाया। 

ना मेरा जन्म न गर्भ बसेरा, बालक हो दिखलाया ।। 

काशी नगर जल कमल पर डेरा, तहाँ जुलाहे ने पाया ।।

पवित्र कबीर सागर अध्याय “ज्ञान बोध” (बोध सागर) से भी जानिए प्रमाण

पृष्ठ 29:- 

नहीं बाप ना माता जाए, अविगत से हम चल आए। 

कलयुग में काशी चल आए, जब हमरे तुम दर्शन पाए ।

 पृष्ठ 36 :- 

भग की राह हम नहीं आए, जन्म-मरण में नहीं समाए। 

त्रिगुण पांच तत्व हमरे नाहीं, इच्छा रूपी देह हम आहीं।।

कबीर साहेब के धरती पर प्रकट होने के अन्य प्रत्यक्ष दृष्टा

जिस प्रकार ऋषि अष्टानंद जी ने पूर्ण परमेश्वर के धरती पर अवतरण का साक्षात अवलोकन किया उसी से थोड़ा भिन्न संत गरीबदास जी (गाँव-छुड़ानी जिला-झज्जर, हरियाणा), संत धर्मदास जी (बांधवगढ-छत्तीसगढ़, भारत), श्री नानक देव जी (सिख धर्म प्रवर्तक), संत मलूक दास जी, आचार्य स्वामी रामानंद जी (काशी) और संत दादू दास जी (अजमेर) ने परमात्मा द्वारा दी गई दिव्य दृष्टि से अवलोकन किया। यह दिव्य दृष्टि संतों को उनके पुण्यों के पुरस्कार स्वरूप मिलती है जैसे तुलसी दास जी और महर्षि बाल्मीकि को मिली थी रामायण लिखने के लिए।  

जानिए संत रामपाल जी महाराज से तत्वज्ञान 

परमेश्वर कबीर जी ही अनादि परम गुरु हैं। वे ही रूपान्तर करके शिशु रूप में, सन्त व ऋषि वेश में समय-समय पर (स्वयंभू) स्वयं प्रकट होते हैं। काल के दूतों (सन्तो) द्वारा बिगाड़े तत्वज्ञान को दोष-रहित करते हैं। पूर्णब्रह्म सत्पुरुष कबीर साहेब की गुरु शिष्य परंपरा के वर्तमान सतगुरु रामपाल जी महाराज ने शास्त्रों से सतज्ञान को खोजकर अपनी पवित्र पुस्तकों में लिपिबद्ध किया है। सत्य को खोज में लगे पाठकगण पवित्र पुस्तक ज्ञानगंगा को डाउनलोड कर पढें और सतज्ञान को जानने के पश्चात सतगुरु रामपाल जी से नाम दीक्षा लेकर सतभक्ति कर इस लोक में सुख और तत्पश्चात पूर्ण मोक्ष प्राप्त करें।       

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