प्रसिद्ध मूर्तिकार एवं राज्यसभा सांसद रघुनाथ महापात्र (Raghunath Mohapatra) का निधन कोरोना महामारी के चलते हो गया है। उनके तीनों पुत्रों का निधन भी हो चुका है। जानें सत्यभक्ति की कमी किस प्रकार बनती है विनाश का कारण।
Table of Contents
Raghunath Mohapatra Death News के मुख्य बिंदु
- उड़ीसा के प्रसिद्ध मूर्तिकार एवं राज्यसभा सांसद रघुनाथ महापात्र का 9 मई को हुआ कोरोना से निधन
- रघुनाथ महापात्र के दोनो पुत्र क्रिकेटर प्रशांत महापात्र एवं जषोवंत महापात्र का भी कोरोना महामारी से निधन
- रघुनाथ महापात्र पद्मश्री एवं पद्मविभूषण पुरस्कार से सम्मानित थे
- सत्यभक्ति से वंचित रह गया पूरा परिवार
कैसे हुआ काल का हमला राज्यसभा सांसद Raghunath Mohapatra पर?
राज्यसभा सांसद रघुनाथ महापात्र का कोरोना महामारी के कारण 9 मई को निधन हो गया था। पुरी में जन्मे रघुनाथ जी उड़ीसा के प्रसिद्ध मूर्तिकार थे एवं उन्होंने अपने जीवनकाल में अनेकों मूर्तियों व मंदिरों का निर्माण किया। इस महामारी के चलते उनके दोनों बेटों के निधन भी हो गया। उनके एक बेटे की मृत्यु पहले ही हो चुकी है। रघुनाथ जी का पूरा जीवन भगवान को समर्पित रहा किन्तु सत्यभक्ति का पूर्णतया अभाव रहा। रघुनाथ जी पत्थर के दूसरे कोणार्क मंदिर का निर्माण करना चाहते थे। रघुनाथ जी की मृत्यु पर कई राजनेताओं सहित प्रधानमंत्री मोदी जी ने भी शोक व्यक्त किया है।
रघुनाथ महापात्रा (Raghunath Mohapatra) के दोनों पुत्रों का भी निधन
रघुनाथ महापात्र के सबसे बड़े पुत्र जषोवंत महापात्र (उम्र 52 वर्ष) का निधन कल 20 मई 2021 को हो गया एवं दूसरे बेटे क्रिकेटर प्रशांत महापात्र (उम्र 47 वर्ष) का निधन 19 मई 2021 को भुवनेश्वर में कोरोना से हो गया। क्रिकेट प्रशांत महापात्र उड़ीसा की रणजी टीम के कप्तान व बीसीसीआई के रेफरी भी रह चुके हैं। रघुनाथ महापात्र के सबसे छोटे बेटे चार वर्ष पूर्व ही एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु को प्राप्त हुए थे।
सत्य भक्ति के अभाव में होते हैं विनाश
सत्य भक्ति वही है जो शास्त्रों में अनुसार तत्वदर्शी संत के सानिध्य में उसके बताए अनुसार की जाती है। वास्तव में हम काल लोक में हैं। काल लोक यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश के पिता कालब्रह्म का लोक। हमारा अपना लोक सतलोक है, जहाँ कोई दुख, बुढ़ापा, मरण, रोग नहीं है। इस लोक में हम आसक्त होकर चले तो आये किन्तु अब पुनः भक्तियुक्त होकर ही वापस जा सकेंगे। काल ब्रह्म को प्रतिदिन एक लाख मानवशरीर धारी प्राणियों को खाने का श्राप है। अपने इस श्राप के कारण वह इस पृथ्वी पर उपस्थित जीवों की दुर्गति करता है। कर्मों के बन्धनों में बांधकर रखता है एवं जीव कर्मानुसार दुख पाता है। जीवन में सुख से अधिक दुख के क्षण हैं उसके बाद भी मानव मूर्ति पूजा और व्रत-उपवास जैसी गलत साधनाओं में लगा रहता है।
मूर्तिपूजा नहीं है पूर्ण परमात्मा तक पहुँचने का रास्ता
मूर्ति पूजा से परमेश्वर तक कतई नहीं पहुँचा जा सकता है। परमात्मा तक पहुंचने का रास्ता एक ही है जो तत्वदर्शी संत बता सकता है। परमेश्वर की भक्ति शास्त्रों के अनुसार करें तथा गीता अध्याय 16 के श्लोक 23 के अनुसार शास्त्र विरुद्ध साधना से न तो सुख प्राप्त होता है और न ही कोई गति अर्थात मोक्ष होता है। गीता अध्याय 4 के श्लोक 34 में भी तत्वदर्शी संत खोजकर तत्वज्ञान समझने और साधना करने के लिए कहा है। मूर्ति पूजा व्यर्थ का आडंबर है जिससे परमात्मा प्राप्ति नहीं हो सकती तथा घंटियाँ बजाने न कर्मबन्धन कट सकते हैं, न सुख प्राप्त होता है, न जन्म-मरण का रोग समाप्त होता है और न ही रोग नाश होते हैं।
कबीर पत्थर पूजे हरि मिले, तो मैं पूजू पहाड़।
ताते तो चक्की भली, पीस खाए संसार।।
यदि कोई साधक अपने जीवन पर्यंत कोई साधना करता है और फिर भी उसके दुखों का नाश नहीं होता तो फिर ऐसी भक्ति को त्यागने में ही भलाई है। क्योंकि भक्ति मनुष्य सुख पाने के लिए करता है, भक्ति वह इसलिए करता है ताकि बीमारियों से और कष्टों से उसको राहत हो सके। आज तक जिस साधना को मनुष्य करता आया था उससे उसको कोई लाभ नहीं था उसे जो भी लाभ हो रहे थे वह तो उसके पुराने जन्मों के शुभ कर्मों के कारण हो रहे थे।
अब वर्तमान कलयुग में आकर वह सारे के सारे शुभ कर्म समाप्त हो चुके हैं इसलिए आज मनुष्य पर दुखों का पहाड़ टूट गया है। आज हमें फिर से हमारे शुभ कर्मों की गिनती बढ़ानी होगी और शुभ कर्मों की गिनती को सिर्फ सच्ची साधना के द्वारा ही बढ़ाया जा सकता है। आज वर्तमान में सच्ची साधना सिर्फ संत रामपाल जी महाराज ही बता रहे हैं।
Also Read: Dr. KK Aggarwal Death: Vaccine की दो dose भी नहीं बचा सकीं उनकी जिंदगी ; सत भक्ति ही कारगर उपाय
कबीर साहेब कहते है कि
तुम कौन राम का जपते जापम।
ताते कटे ना तीनो तापम।।
सत्य भक्ति क्या है?
गीता अध्याय 15 श्लोक 1 से 2 के अनुसार संसार रूपी वृक्ष की जड़ रूपी पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब की साधना करना सत्यभक्ति है। जिसे बड़े बड़े महामंडलेश्वर और आचार्यगण नहीं जान पाए क्योंकि वे न तो स्वयं तत्वदर्शी सन्त थे और न उन्हें तत्वदर्शी सन्त की शरण प्राप्त हुई। यह साधना व्यक्ति अपने मन से या किसी भी वर्णित विधि से नहीं कर सकता। साधना के लिए परम आवश्यक है मानव जन्म और तत्वदर्शी संत। मानव जन्म में तत्वदर्शी संत के अभाव में लोग अपना जन्म शास्त्र विरुद्ध साधनाओं में गंवा देते हैं। तत्वदर्शी सन्त गीता अध्याय 17 के श्लोक 23 के अनुसार तीन बार में नामदीक्षा की प्रक्रिया पूरी करता है।
सन्त रामपाल जी महाराज हैं एकमात्र तत्वदर्शी सन्त
तत्वदर्शी संत पूरे विश्व में एक ही होता है और इस समय संत रामपाल जी महाराज पूर्ण तत्वदर्शी संत के रूप में आये हुए हैं। अविलंब तत्वज्ञान समझकर उनकी शरण मे आए और अपने इस जन्म को भी सुखी बनाएं और 84 लाख योनियों से छुटकारा पाएं। अधिक जानकारी के लिए देखें सतलोक आश्रम यूट्यूब चैनल।
About the author
SA News Channel is one of the most popular News channels on social media that provides Factual News updates. Tagline: Truth that you want to know