मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोक्षदा एकादशी (Mokshada Ekadashi 2021) या वैकुंठ एकादशी (Vaikuntha Ekadashi 2021) के नाम से भी जाना जाता है। हिंदू धर्म में लोकवेद पर आधरित मान्यताओं के अनुसार मोक्षदा एकादशी का विशेष महत्व होता है, कहते हैं कि इस दिन व्रत और पूजा आदि करने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। आपको अवगत करा दें कि शास्त्रों में ऐसा कोई वर्णन नहीं है। आइये जानते हैं विस्तार से कि शास्त्रों के अनुसार पूर्ण मोक्ष की परिभाषा क्या है?
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Mokshada Ekadashi 2021: मुख्य बिंदु
- मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोक्षदा एकादशी के रूप में मनाया जाता है जो कि इस वर्ष 14 दिसम्बर 2021, मंगलवार को मनाई गई।
- मोक्षदा एकादशी को वैकुंठ एकदशी के नाम से भी जाना जाता है।
- व्रत इत्यादि कर्मकांड करना शास्त्र विरुद्ध है।
- शास्त्रविरुद्ध साधना से पूर्ण मोक्ष तो कदापि प्राप्त नहीं होगा अपितु मूल्यवान समय व मनुष्य देह जरूर व्यर्थ हो जाएगी।
- संत रामपाल जी महाराज द्वारा दी गयी शास्त्रानुकूल साधना से ही पूर्ण मोक्ष तथा सर्व लाभ सम्भव हैं।
मोक्षदा एकादशी तिथि (Mokshada Ekadashi 2021, Date)
इस वर्ष मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि का प्रारंभ 13 दिसंबर दिन सोमवार को रात 09 बजकर 32 मिनट से था.
मोक्षदा एकादशी पर व्रत करने से नही होता कोई लाभ
न, अति, अश्नतः, तु, योगः, अस्ति, न, च, एकान्तम्, अनश्नतः, न, च, अति, स्वप्नशीलस्य, जाग्रतः, न, एव, च, अर्जुन।।
गीता अध्याय 6 श्लोक 16 के अनुसार व्रत नहीं करना चाहिए। गीता ज्ञान दाता कह रहा है कि हे अर्जुन! यह योग (भक्ति) न तो अधिक खाने वाले का और न ही बिल्कुल न खाने वाले का अर्थात् यह भक्ति न ही व्रत रखने वाले, न अधिक सोने वाले की तथा न अधिक जागने वाले की सफल होती है।
मोक्षदा एकादशी (Mokshada Ekadashi 2021) पर जानें क्या है पूर्ण मोक्ष की परिभाषा
गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में वर्णन है कि तत्वदर्शी संत की प्राप्ति के पश्चात् तत्वज्ञान रूपी शस्त्र से अज्ञान को काटकर अर्थात् अच्छी तरह ज्ञान समझकर उसके पश्चात् परमेश्वर के उस परमपद की (सत्यलोक की) खोज करनी चाहिए। जहाँ जाने के पश्चात् साधक फिर लौटकर संसार में कभी नहीं आते अर्थात् उनका जन्म कभी नहीं होता। पूर्ण मोक्ष उसी को कहते हैं जिसकी प्राप्ति के पश्चात् पुनः जन्म न हो। जन्म-मरण का चक्र सदा के लिए समाप्त हो जाए। साधक समाज को पूर्ण मोक्ष का परिचय मिलने यानी पूर्ण मोक्ष की परिभाषा जानने के बाद उनके सामने एक प्रश्न और खड़ा हो जाता है कि तत्वदर्शी संत की क्या पहचान है तथा वर्तमान में तत्वदर्शी संत कौन है?
तत्वदर्शी संत की क्या पहचान है?
ऊर्धव मूलम् अधः शाखम् अश्वत्थम् प्राहुः अव्ययम्।
छन्दासि यस्य प्रणानि, यः तम् वेद सः वेदवित् ।।
श्रीमद्भागवत गीता अध्याय 15 के श्लोक 1 में स्पष्ट बताया गया है कि ऊपर को मूल (जड़) वाला, नीचे को तीनों गुण रुपी शाखा वाला उल्टा लटका हुआ संसार रुपी पीपल का वृक्ष जानो, इसे अविनाशी कहते हैं क्योंकि उत्पत्ति-प्रलय चक्र सदा चलता रहता है जिस कारण से इसे अविनाशी कहा है। इस संसार रुपी वृक्ष के पत्ते आदि छन्द हैं अर्थात् भाग हैं। (य तम् वेद) जो इस संसार रुपी वृक्ष के सर्वभागों को तत्व से जानता है, (सः) वह (वेदवित्) वेद के तात्पर्य को जानने वाला है अर्थात् वह तत्वदर्शी संत है।
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वर्तमान समय में कौन है वह तत्वदर्शी संत?
जगतगुरु रामपाल जी महाराज ही एक मात्र तत्वदर्शी संत हैं, जिनका अनमोल ज्ञान, वेद और शास्त्रों से मेल खाता है तथा जिनको पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति भी हुई है। वर्तमान समय में सम्पूर्ण विश्व में एकमात्र तत्वदर्शी संत, पूर्ण गुरु केवल संत रामपाल जी महाराज हैं जो वेद और शास्त्रों के अनुसार यथार्थ भक्ति मार्ग बता रहे हैं और जिनकी बताई भक्ति शास्त्र अनुकूल और मोक्षदायिनी भी है। परमेश्वर पूर्ण ब्रह्म कबीर साहेब जी हैं जो तत्वदर्शी संत की भूमिका में संत रामपाल जी के रूप में धरती पर अवतरित हैं जो कि ब्रह्मा, विष्णु, शिव के दादा, काल और दुर्गा के पिता और हम सब के जनक हैं। तो सत्य को जाने और पहचान कर तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी से मंत्र नामदीक्षा लेकर अपना जीवन कल्याण करवाएं।
लोकवेद पर आधारित शास्त्र विरुद्ध साधना को त्यागे
यह समय व्यर्थ गंवाने का नहीं शीघ्रातिशीघ्र सही निर्णय लेने का है, परंपरागत और लोकवेद आधारित शास्त्र विरुद्ध साधना को त्याग कर संत रामपाल जी महाराज की शरण में जाने का है। आपको शास्त्रानुकूल भक्ति से ही सर्व सुख व पूर्ण मोक्ष प्राप्त हो सकता है अन्यथा मानव जीवन पशु तुल्य ही जानें। ज्ञान समझने के लिए संत रामपाल जी महाराज द्वारा लिखित ज्ञान गंगा पुस्तक निःशुल्क उपलब्ध है। संत रामपाल जी महाराज के अनमोल सत्संग श्रवण करने हेतु सतलोक आश्रम यूट्यूब चैनल पर सत्संग सुने।
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