Jitiya Jivitputrika Vrat 2021: जीवित्पुत्रिका व्रत हिंदू पंचांग के अनुसार, प्रतिवर्ष आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है। इस वर्ष यह व्रत 29 सितंबर दिन बुधवार को रखा गया है। इस दिन माताएं अपनी संतान की दीर्घायु होने, संतान की सुरक्षा और उनके सुखी जीवन के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। परन्तु पवित्र सद्ग्रन्थों में इसका कोई उल्लेख नहीं है। प्रिय पाठकजनों का यह जानना भी अत्यंत आवश्यक है कि वह सर्वशक्तिमान पूर्ण परमात्मा कौन है, जिसकी साधना का वर्णन पवित्र सद्ग्रन्थों में है जिस साधना से सर्व लाभ व पूर्ण मोक्ष सम्भव है।
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Jitiya Jivitputrika Vrat 2021 के मुख्य बिंदु
- जीवित्पुत्रिका व्रत प्रतिवर्ष हिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रखा जाता है
- जीवित्पुत्रिका व्रत को जितिया व्रत, जिउतिया व्रत इत्यादि नामों से जाना जाता है
- लोकमान्यताओं के अनुसार संतान की दीर्घायु के लिए रखा जाता है यह जीवित्पुत्रिका व्रत
- व्रत रखना शास्त्रविरुद्ध साधना है
- पूर्ण परमेश्वर कविर्देव अपने साधक के सर्व कष्टों का हरण करके शत वर्ष की सुखमय आयु प्रदान करते हैं
- तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज से जानें शास्त्र प्रमाणित सतभक्ति विधि जिससे संतान की दीर्घायु से लेकर सर्व लाभ व पूर्ण मोक्ष सम्भव है
क्या है जीवित्पुत्रिका व्रत या जितिया व्रत (Jitiya Jivitputrika Vrat)
लोकमान्यताओं के अनुसार हिंदू धर्म में व्रत-त्योहारों की अपनी एक अलग मान्यता व महत्व है। इनमें से जीवित्पुत्रिका व्रत भी बेहद ही खास है। इसे जीवित्पुत्रिका के अलावा जितिया और जिउतिया व्रत के नाम से भी जाना जाता है। यह व्रत अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन रखा जाता है। ऐसी मान्यता है कि जितिया व्रत को माताएं अपनी संतान की दीर्घायु और सुखमय जीवन के लिए रखती हैं।
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विचारणीय विषय यह है कि शास्त्रों में इस प्रकार की साधना का कोई वर्णन नहीं है साधक समाज को चाहिए कि पूर्ण संत के मार्गदर्शन में पवित्र शास्त्रों का अध्ययन कर जाने की शास्त्र किस साधना की ओर संकेत कर रहे हैं तथा साधक समाज लाभार्थ हेतु किस साधना को कर रहा है।
जानिए कब है जीवित्पुत्रिका व्रत 2021 (Jitiya Jivitputrika Vrat 2021 Date)
हिन्दू पंचांग के अनुसार यह व्रत साधना, प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जो कि 28 सितंबर 2021 दिन मंगलवार को शाम 6:16 पर शुरू होकर और 29 सितंबर दिन बुधवार को रात 08:29 पर समाप्त हुई को रखा जाने वाला है। धार्मिक मान्यता के अनुसार व्रत प्रारंभ उदयातिथि को शुरू किया जाता है इसलिए जीवित्पुत्रिका इस वर्ष व्रत 29 सितंबर को रखा गया है।
राहु केतु रोकै नहीं घाटा, सतगुरु खोले बजर कपाटा।
नौ ग्रह नमन करे निर्बाना, अविगत नाम निरालंभ जाना
नौ ग्रह नाद समोये नासा, सहंस कमल दल कीन्हा बासा।।
संत गरीबदास जी महाराज ने बताया है कि सत्यनाम साधक के शुभ कर्म में राहु केतु राक्षस घाट अर्थात मार्ग नहीं रोक सकते सतगुरु तुरंत उस बाधाओं को समाप्त कर देते हैं। भावार्थ है कि सत्यनाम साधक पर किसी भी ग्रह तथा राहु केतु का कोई प्रभाव नहीं पड़ता तथा दसों दिशाओं की सर्व बाधाएं समाप्त हो जाती है।
विशेष रूप से कहाँ रखा जाता है जीवित्पुत्रिका व्रत (Jitiya Jivitputrika Vrat)
जीवित्पुत्रिका व्रत संतान की सुख-समृद्धि के लिए रखा जाने वाला यह निर्जला यानी कि (बिना जल ग्रहण किए) उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और नेपाल के मिथिला और थरुहट में यानी मुख्य रूप से उत्तर भारत की महिलाओं द्वारा आश्विन माह में कृष्ण-पक्ष के सप्तमी से नौवें चंद्र दिवस तक तीन दिनों तक रखा जाता है।
क्या है जीवित्पुत्रिका व्रत या जितिया व्रत कथा (Jitiya Jivitputrika Vrat, Story)
जीवित्पुत्रिका व्रत सम्बन्धी यूं तो हिन्दू धर्म में कई दंतकथाएं प्रचलित हैं जिनका शास्त्रों में कोई उल्लेख नहीं है सिर्फ साधक समाज मनमाने ढंग से इन कथाओं को आधार मानकर इस व्रत साधना को करता आ रहा है आइये अब जानते हैं इस व्रत की कथाओं के बारे में
महाभारत काल सम्बंधित जीवित्पुत्रिका व्रत की पौराणिक कथा
जीवित्पुत्रिका व्रत का संबंध महाभारत काल से भी बताया जाता है। युद्ध में पिता की मौत के बाद अश्वत्थामा बहुत नाराज था। सीने में बदले की भावना लिए वह पांडवों के शिविर में घुस गया। शिविर के अंदर पांच लोग सो रहे थे। अश्वत्थामा ने उन्हें पांडव समझकर मार डाला। कहा जाता है कि वो सभी द्रौपदी की पांच संतानें थीं। अर्जुन ने अश्वत्थामा को बंदी बनाकर उसकी दिव्य मणि छीन ली।
क्रोध में आकर अश्वत्थामा ने अभिमन्यु की पत्नी के गर्भ में पल रहे बच्चे को मार डाला। ऐसे में भगवान कृष्ण अर्थात श्री विष्णु जी ने अपने सभी पुण्यों का फल उत्तरा की अजन्मी संतान को देकर उसके गर्भ में पल रहे बच्चे को पुन: जीवित कर दिया। भगवान श्रीकृष्ण की कृपा से जीवित होने वाले इस बच्चे को जीवित्पुत्रिका नाम दिया गया। तभी से संतान की लंबी उम्र और मंगल कामना के लिए हर साल जीवित्पुत्रिका व्रत रखने की परंपरा है।
दंत कथाओं के आधार पर व्रत साधना श्रेष्ठकर नहीं है
पाठक गण विचार करें कथाएं सिर्फ लोक प्रचलित हैं पवित्र शास्त्रों में इन कथाओं का कहीं भी कोई उल्लेख नहीं है। इसलिए इन कथाओं के आधार पर ही साधक समाज इस व्रत साधना को करने का विचार न करे, अपितु पूर्ण संत रामपाल जी महाराज के मार्गदर्शन में अध्ययन कर जानें कि पवित्र सद्ग्रन्थ किस साधना को करने का प्रमाण दे रहे हैं जिससे संतान की दीर्घायु तो होगी ही साथ ही साथ सर्व लाभ यथा समय प्राप्त होंगे।
क्या व्रत साधना विधि से मनवांछित फल प्राप्त होते हैं?
व्रत करना गीता में वर्जित है। गीता अध्याय 6 के श्लोक 16 में बताया है कि बहुत खाने वाले का और बिल्कुल न खाने वाले का, बहुत शयन करने वाले का और बिल्कुल न सोने वाले का उद्देश्य कभी सफल नहीं होता है। अतः ये शास्त्र विरुद्ध क्रियाएं होने से व्रत आदि क्रियाएं कभी लाभ नहीं दे सकती हैं। गीता अध्याय 6 श्लोक 16
न, अति, अश्नतः, तु, योगः, अस्ति, न, च, एकान्तम्, अनश्नतः,
न, च, अति, स्वप्नशीलस्य, जाग्रतः, न, एव, च, अर्जुन।।
पवित्र सद्ग्रन्थ किस परमेश्वर की साधना की ओर संकेत कर रहे हैं?
■ संख्या न. 359 सामवेद अध्याय न. 4 के खण्ड न. 25 का श्लोक न. 8
पुरां भिन्दुर्युवा कविरमितौजा अजायत। इन्द्रो विश्वस्य कर्मणो धर्ता वज्री पुरुष्टुतः ।।
पुराम्-भिन्दुः-युवा-कविर्-अमित-औजा-अजायत-इन्द्रः-विश्वस्य-कर्मणः-धर्ता-वज्री- पुरूष्टुतः।
भावार्थ है कि जो कविर्देव (कबीर परमेश्वर) तत्वज्ञान लेकर संसार में आता है। वह सर्वशक्तिमान है तथा काल (ब्रह्म) के कर्म रूपी किले को तोड़ने वाला है वह सर्व सुखदाता है तथा सर्व के पूजा करने योग्य है।
पूर्ण परमेश्वर कविर्देव जी अपने साधकों के सर्व कष्टों का हरण कर सुखमय दीर्घायु प्रदान करते हैं
पूर्ण परमेश्वर कविर्देव जी हैं, संतान सुख, संतान को दीर्घायु जैसे सर्व लाभ व पूर्ण मोक्ष प्रदान करने वाले पूर्ण परमेश्वर कविर्देव जी के लिए कुछ भी असम्भव नहीं है, क्योंकि वेद इस बात की गवाही देते हैं कि सर्वशक्तिमान परमात्मा अपने साधक के सर्व दुःखों का हरण करने वाले हैं व अपने साधक को मृत्यु से बचाकर शत (100) वर्ष की सुखमय आयु प्रदान करते हैं, तो फिर ये संतान सुख या संतान को दीर्घायु प्रदान करना तो पूर्ण परमात्मा के लिए एक छोटी सी बात है। जैसे एक पिता अपनी संतान को सर्व कष्टों से दूर रखने का हर प्रयत्न करता है ठीक उसी प्रकार हम सर्व जीव, चाहे वह मनुष्य हों या अन्य योनियो के जीव-जंतु उस पूर्ण परमात्मा कविर्देव जी की ही संतानें हैं वह परमात्मा भी हम सबकी रक्षा एक पिता तुल्य ही करता है।
सतभक्ति करने वाले की पूर्ण परमात्मा आयु बढ़ा देते हैं
ऋग्वेद मण्डल 10 सुक्त 161 मंत्र 2, 5, सुक्त 162 मंत्र 5, सुक्त 163 मंत्र 1 – 3 सतभक्ति करने वाले की अकाल मृत्यु नहीं होती जो मर्यादा में रहकर साधना करता है। वेद में लिखा है कि पूर्ण परमात्मा मृत हुए साधक को भी जीवित करके 100 वर्ष तक की सुखमय आयु प्रदान करता है।
परमात्मा प्राप्ति के लिए अविलंब शास्त्रानुकूल साधना शुरू करें
सम्पूर्ण विश्व में संत रामपाल जी महाराज एकमात्र ऐसे तत्वदर्शी संत हैं जो सर्व शास्त्रों से प्रमाणित सत्य साधना की भक्ति विधि बताते हैं जिससे साधकों को सर्व लाभ होते हैं तथा पूर्ण मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसलिए सत्य को पहचानें व शास्त्र विरुद्ध साधना का आज ही परित्याग कर संत रामपाल जी महाराज से शास्त्रानुकूल साधना प्राप्त करें। उनके द्वारा लिखित पवित्र पुस्तक अंधश्रद्धा भक्ति-खतरा-ये-जान का अध्ययन कर जानें शास्त्रानुकूल साधना का सार।
जानें शास्त्रानुकूल साधना प्राप्त करने की सरल विधि
शास्त्र प्रमाणित भक्ति विधि प्राप्त करने के लिए संत रामपाल जी महाराज से निःशुल्क नाम दीक्षा प्राप्त करें। शास्त्रानुकूल साधना व शास्त्र विरुद्ध साधना में भिन्नता विस्तार से जानने के लिए सतलोक आश्रम यूट्यूब चैनल पर सत्संग श्रवण करें।