January 15, 2025

Vat Savitri Vrat 2022: वट सावित्री व्रत | किसी व्रत से नहीं बल्कि सत साधना से होगी रक्षा!

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Last Updated on 28 May 2022, 2:53 PM IST: Vat Savitri Vrat 2022: हिन्दूधर्म की मान्यताओं के साथ हिन्दू कैलेंडर के अनुसार ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को विवाहित औरतें वट वृक्ष की पूजा कर वट सावित्री व्रत रखती हैं। इस वर्ष वट सावित्री व्रत 30 मई को है। पाठक गण जानेंगे कि क्या व्रत करने से पूर्ण मोक्ष सम्भव है तथा जिनकी उपासना साधक समाज कर रहा है जो देवी देवता स्वयं जन्म मरण में है, वे दूसरों को पूर्ण मोक्ष कैसे देंगे? वट सावित्री का व्रत तथा करवा चौथ का व्रत दोनों पति की लंबी उम्र के लिए रखे जाते हैं। महिलाओं का मानना है कि इस व्रत को करने से उनका दांपत्य जीवन सदा सुखमय रहेगा और वे सदा सुहागन रहेंगी।

Table of Contents

Vat Savitri Vrat 2022 के मुख्य बिंदु

  • वट सावित्री व्रत (Vat Savitri Vrat 2022) इस वर्ष 30 मई को है।
  • वट सावित्री व्रत सुहागन स्त्रियां अपने पति की लंबी उम्र के लिए वट वृक्ष की पूजा करके करती हैं
  • वट सावित्री व्रत रखने से मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती है क्योंकि यह शास्त्रविरुद्ध है
  • द्वापर युग में रानी इन्द्रमति और राजा को पूर्ण परमात्मा प्रदत्त सतभक्ति से मिला पूर्ण मोक्ष
  • तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज ही हमें शास्त्रों का पूर्ण ज्ञान करा कर सद्भक्ति विधि बताते हैं

क्यों रखा जाता है वट सावित्री व्रत (Vat Savitri Vrat 2022)? 

मान्यताओं के अनुसार वटवृक्ष (बरगद का पेड़) के मूल में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु तथा अग्रभाग में शिव का वास माना गया है। हिंदूधर्म में वट वृक्ष को देव वृक्ष माना जाता है। ऐसा भी कहा जाता है कि देवी सावित्री भी इस वृक्ष में निवास करती हैं। पौराणिक कथा अनुसार, वटवृक्ष के नीचे ही सावित्री ने अपने पति को पुन: जीवित किया था। तब से ये व्रत ‘वट सावित्री’ के नाम से जाना जाता है। इस दिन विवाहित स्त्रियां अपने पति की लंबी आयु हेतु इस व्रत को रखती हैं। हलाकि व्रत रखना हमारे शास्त्रों में वर्जित है, प्रणाम के लिए देखें गीता अध्याय 6 श्लोक 16। 

संक्षेप में जानिए वट सावित्री व्रत कथा (Vat Savitri Vrat Story in Hindi)

आपने यह कथा सुनी ही होगी कि एक पतिव्रता सावित्री ने अपने पति सत्यवान को यमराज से छुड़वाया था। सावित्री अपने पति को यमराज द्वारा ले जाने पर उनके पीछे -पीछे चल दी। यमराज ने उसको आने से मना किया परंतु वह अपने पति को छुड़ाने के लिए अड़ी रही।  यमराज ने वरदान मांगकर सावित्री को लोटने को कहा। सावित्री ने यमराज से अंधे सास-ससुर के नेत्र माँगे तथा उनका छीना हुआ राज्य वापिस मंगा लिया फिर भी यमराज के पीछे – पीछे चलती रही। यमराज ने एक और वरदान माँगने को कहा तो सावित्री ने कहा मुझे मेरे पति के पुत्रों की माँ बनने का वरदान दें। यह सुनते ही यमराज उसके पति को छोड़कर अंतर्ध्यान हो गए। सावित्री के पति की आत्मा वट वृक्ष के नीचे पड़े मृत शरीर में पुनः आ गई।

सावित्री ने सांसारिक सुखों को तो मांग लिया लेकिन अपने लिए और परिवार के लिए पूर्ण मोक्ष तो प्राप्त नहीं कर पाई जो मनुष्य जीवन का वास्तविक उद्देश्य है। पाठक आगे जानेंगे कि पूर्ण मोक्ष केवल पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी द्वारा दी गई सतभक्ति करने से प्राप्त होता है शेष पूजाएं निरर्थक हैं। वास्तव में यमराज तो दूर खुद ब्रह्मा, विष्णु और महेश भी किसी की उम्र नही बढ़ा सकते। ये नामुमकिन कार्य सिर्फ पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब ही कर सकते है।

जानिए वट सावित्री व्रत (Vat Savitri Vrat 2022) शुभ मुहूर्त कब है?

वट सावित्री व्रत हेतु मुहूर्त का कोई मतलब नही रह जाता क्योंकि शास्त्र विरुद्ध साधना किसी भी समय करे, वह कभी भी फल नही दे सकती है। पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब ने बताया है कि व्रत करना या देवी देवताओं वृक्षों इत्यादि की पूजा निरर्थक है-

व्रत करे से मुक्ति हो तो, अकाल पड़े क्यों मरते हैं ।

शिवलिंग पूजा और शालीग सेवा अनजाने में करते हैं ।|

Vat Savitri Vrat 2022 पर जाने किस साधना से अखंड सौभग्यवती रहना संभव?

ये देखने में आता है कि महिलाएं करवाचौथ के व्रत के दिन या वट सावित्रि व्रत के दिन भी विधवा हो जाती हैं। जबकि वे भगवान प्राप्ति या अन्य सुखों की कामना हेतु या संतान प्राप्ती के लिए दुनिया भर की साधना में लगी हुई हैं। पवित्र ग्रंथ श्रीमद्भागवत गीता जी में मनमानी साधन करने वालों के लिए स्पष्ट किया है कि उनको कोई सुख प्राप्त नहीं होगा।

गीता अध्याय नं. 16 का श्लोक नं. 23

यः, शास्त्राविधिम्, उत्सृज्य, वतर्ते, कामकारतः, न, सः,

सिद्धिम्, अवाप्नोति, न, सुखम्, न, पराम्, गतिम्।।

अर्थात जो पुरुष शास्त्रविधि को त्यागकर अपनी इच्छा से मनमाना आचरण करता है, वह न सिद्धि को प्राप्त होता है, न परम गति को और न सुख को ही।

व्रत रखना क्या सद्ग्रन्थों में मान्य है?

Vat Savitri Vrat 2022 [Hindi] | जिस प्रकार माता पिता अपने बच्चों को भूखे नहीं देख सकते उसी प्रकार भूखे रहने से कभी परमात्मा खुश नहीं होते, जो हमारे पिता, सर्व सृष्टि के रचियता हैं।

इसका प्रमाण भी गीता जी में है।

गीता अध्याय नं. 6 का श्लोक नं. 16

न, अति, अश्र्नतः, तु, योगः, अस्ति, न, च, एकान्तम्,

अनश्र्नतः, न, च, अति, स्वप्नशीलस्य, जाग्रतः, न, एव, च, अजुर्न।।

अर्थात यह योग अथार्त् भक्ति न तो बहुत खाने वाले का और न बिल्कुल न खाने वाले का, न एकान्त स्थान पर आसन लगाकर साधना करने वाले का तथा न बहुत शयन करने के स्वभाव वाले का और न सदा जागने वाले का ही सिद्ध होता है।

किस पूजा विधि से सदा सुहागन रहने का वरदान संभव?

Vat Savitri Vrat 2022 [Hindi] | किसी व्रत को रखने से या तीर्थों पर जाने से सुहागन रहने का वरदान नहीं मिलता क्योंकि ये व्यर्थ तथा सद्ग्रन्थों के विपरीत मनमाना आचरण है जो कहीं किसी ग्रंथ में वर्णित नहीं है। अखंड सौभाग्यवती का वरदान केवल वेदों में वर्णित साधना से ही मिलता है। गीता जी में उल्लेख है कि जो संत उल्टे लटके संसार रूपी वृक्ष के बारे में बतायेगा वह पूर्ण संत है उससे नामदीक्षा लेकर विधिवत साधना करने से सब संकट टल जाएंगे।

गीता अध्याय नं. 15 का श्लोक नं. 1

ऊध्वर्मूलम्, अधःशाखम्, अश्वत्थम्, प्राहुः, अव्ययम्,

छन्दांसि, यस्य, पणार्नि, यः, तम्, वेद, सः, वेदवित्।।1।।

अर्थात ऊपर को जड़ वाला, नीचे को शाखा वाला अविनाशी विस्तृत संसार रूपी पीपल का वृक्ष है जिसके छोटे-छोटे हिस्से या टहनियाँ, पत्ते कहे हैं। उस संसार रूप वृक्ष को जो इस प्रकार जानता है, वह पूर्ण ज्ञानी अथार्त् तत्त्वदर्शी संत है जिसके पास जाकर नाम दीक्षा लेने से ही मोक्ष सम्भव है।

रानी इन्द्रमति व उसके पति को मिला सतभक्ति द्वारा पूर्ण मोक्ष

द्वापरयुग में चन्द्रविजय नाम का एक राजा और इन्द्रमति नाम की रानी थी। रानी बहुत ही धार्मिक प्रवृति की थी और उसने एक गुरु भी बना रखा था। साधु-संतों का बहुत आदर करती थी। गुरु के बताए अनुसार साधु-संतों को भोजन करवाना बहुत पुण्य का कार्य होता है। रानी ने मन में विचार किया कि एक साधु को रोज भोजन कराया करूंगी फिर उसके बाद में भोजन ग्रहण किया करूंगी और ऐसा नित्य करने लगी।  

Also Read | द्वापर युग में इन्द्रमति को शरण में लेना

परमेश्वर कबीर देव द्वापर युग में करुणामय नाम से आए थे। अपने पूर्व भक्तों को शरण में लेने के लिए परमात्मा अनेकों लीलाएं करते हैं। एक समय हरिद्वार में कुंभ मेले का संयोग बना और सभी साधु-संत कुंभ मेले में चले गए। रानी को भोजन कराने के लिए कोई साधु नहीं मिला। ऐसे समय में करुणामय जी एक साधु का रूप बना कर इन्द्रमति के राज्य में से होते हुए निकल पड़े। महल के ऊपर से रानी की बांदी ने देखा कि एक साधु आ रहा है। उसने रानी को बताया और फिर रानी ने साधु रूप में आए करुणामय जी को भोजन के लिए बुलवाया। करुणामय जी ने बांदी से कहा तुम्हारी रानी को बुलाना है तो वह खुद आए। इन्द्रमति के स्वयं विनती करने से करुणामय जी आ गए। रानी के भोजन के आमंत्रण पर साधु करुणामय ने कहा “मैं भोजन नहीं करता हूँ”।  रानी ने कहा मैं भी भोजन नहीं करूंगी यदि आप नहीं करेंगे तो ऐसा कहने पर दयालु करुणामय जी ने भोजन किया।

करुणामय जी द्वारा इन्द्रमति को ज्ञान समझाना

करुणामय जी ने रानी को समझाया कि आप जो साधना करती हो वह शास्त्रविरुद्ध है। आपने जो गुरु बना रखे  हैं उन्हें शास्त्रों का ज्ञान नहीं है। आप जो भक्ति साधना करती हो इससे मोक्ष प्राप्त नहीं होता है। ऐसा सुनते ही रानी ने कहा मेरे गुरु की निंदा न करें, मैं जो करती हूं वह मेरे गुरु द्वारा बताई भक्ति विधि है जो मेरे लिए मोक्षदायिनी है। करुणामय जी ने कहा आप मानो या न मानो मैं जो कह रहा वह पूर्ण सत्य है। आपको मैं जो भक्ति विधि बताऊंगा केवल उससे ही मोक्ष प्राप्त होगा।

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रानी नहीं मानी फिर करुणामय जी ने कहा आज से तीसरे दिन तेरी मृत्यु हो जाएगी,  ध्यान रखना न तेरा गुरु बचा सकेगा और न तेरी साधना। रानी ने सोचा साधु – संत  झूठ नहीं बोलते हैं। पूछने लगी कि क्या मैं बच सकती हूं। करुणामय जी ने कहा यदि मेरे से उपदेश ले लेगी तो बच सकती है। रानी ने उपदेश लिया और श्रद्धा से मंत्र सुमरण करने लगी। करुणामय जी ने कहा तीसरे दिन मेरे रूप में काल आएगा तुझे जो मंत्र दिए है उनका सुमरण करना तो वह उसके वास्तविक रूप में आ जाएगा।

तीसरे दिन ऐसा ही हुआ रानी ने सुमरण किया तो काल का रूप बदल गया, वह बोला आज तो तू बच गई परंतु अब नहीं छोडूंगा। रानी बहुत खुश हुई और सबको बताने लगी मेरे करुणामय जी ( गुरुदेव ) की कृपा से मैं बच गई। 

राजा बहुत अच्छा था उसे भक्ति-साधना करने से नहीं रोकता था।  कुछ देर बाद काल सर्प रूप में आया और रानी को डस लिया, रानी चक्कर खाकर गिर गई और अपने गुरुदेव को पुकार कर कहने लगी मुझे बचाओ। परमात्मा आए और सबको दिखाने के लिए मंत्र बोलने लगे (करुणामय बिना मंत्र के भी जीवित कर देते परंतु सबको दिखाने के लिए मंत्र बोले ) रानी ठीक हो गई।  उसकी भक्ति में श्रद्धा और अधिक बढ़ गई। 

रानी ने अपने पति चन्द्रविजय को भी कहा कि उपदेश (नाम दीक्षा) ले लो  परंतु वह नहीं माना। रानी ने करुणामय जी से कहा हे दयालु भगवान मेरे पति को भी समझाओ वह नहीं मानता है। रानी के आग्रह पर परमेश्वर ने राजा को बहुत समझाया लेकिन वह उपदेश लेने को राजी नहीं हुआ। रानी की भक्ति पूर्ण होने पर परमेश्वर उसे सतलोक ले जाने लगे। परमात्मा ने रानी को कहा तेरी मोह -ममता तो नहीं तेरे बच्चों में और महल अटारी में, रानी ने कहा नहीं मालिक मेरे किसी भी वस्तु या बच्चों में मोह नहीं है, ले चलिए मुझे सतलोक। सतलोक वह स्थान है जहाँ जाने के बाद साधक फिर इस नाशवान लोक में जन्म लेकर नहीं आता है। वह जन्म – मरण से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त कर लेता है।

मानसरोवर पर इन्द्रमती का इच्छा जाहीर करना

सतलोक ले जाने से पहले एक मानसरोवर पड़ता है जिसमें परमात्मा भक्तों को स्नान करवाते हैं। करुणामय जी ने स्नान करवा कर फिर कहा अभी भी बता दे इन्द्रमति तेरी कोई इच्छा तो नहीं रह गई। रानी ने कहा मालिक आप तो अंतर्यामी हो सब जानते हो।  मेरी एक ही इच्छा है मेरे पति को शरण में लेकर उन्हें भी मोक्ष दिला दो।  मेरा पति बहुत नेक है, उसने मुझे भक्ति करने से कभी नहीं रोका। मालिक तो जानते थे इसलिए बार बार पूछ रहे थे।

मालिक ने कहा अब तू दो वर्ष इस मानसरोवर पर ही रुकेगी क्योंकि बिन इच्छा मोह के ही साधक सतलोक जा सकता है। उधर चन्द्रविजय पलंग पर पड़ा – पड़ा तड़प रहा था।  यमदूत छाती ठोक ठोक कर प्राण हर रहे थे।  तभी करुणामय जी प्रकट हुए उन्हें देखते ही यमदूत भाग लिए। चन्द्रविजय ने मालिक को देखा और कहने लगा भगवान बचा लो। करुणामय जी ने कहा बात आज भी वही है उपदेश लेना पड़ेगा। राजा ने कहा मालिक ले लूँगा उपदेश बचा लो। राजा ने उपदेश लिया और दो वर्ष में ही भक्ति पूर्ण कर मोक्ष प्राप्त किया। इन्द्रमति और चन्द्रविजय दोनों का मोक्षदायिनी भक्ति से मोक्ष हुआ।  

विचार करने योग्य बात:

सावित्री और इन्द्रमति दोनों ही पतिव्रता स्त्रियाँ थी। उम्र दोनों के पतियों की बढ़ी परंतु जन्म-मरण से मुक्ति केवल इन्द्रमति के पति को ही मिली। शास्त्रों के अनुसार पूजा-अर्चना ही पूर्ण मोक्ष दे सकती है व जन्म-मरण से छुटकारा दिला सकती है।

कौन हैं परम पूज्य भगवान जिनकी भक्ति साधना करनी चाहिए?  

ध्यान दें और  स्वयं निर्णय करें कि पूरी सृष्टि के रचनहार, परम पूज्य भगवान, जिनकी भक्ति साधना करनी चाहिए, जो हमें सर्व सुख देकर पूर्ण मुक्त कर सकता है वह पूर्ण ब्रह्म है जिनका नाम हमारे वेदों पुराणों, श्रीमद्भागवत गीता जी में कविर्देव है।  वेद पुराण साक्षी है जिनमें सर्व प्रमाण विद्यमान हैं। कबीर साहेब जी कहते है:-

कलयुग में जीवन थोड़ा है, कीजे बेग सम्भार।

योग साधना बने नहीं, केवल नाम आधार। 

वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज पूर्ण परमात्मा की भक्ति साधना विधि और मर्यादा बताते हैं 

वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज जी ही वह तत्व ज्ञानी है जो हमें पूर्ण परमात्मा की भक्ति साधना की विधि और मर्यादा बता सकते है। जन्म मरण के रोग से छुटकारा पाना है तो तत्वदर्शी संत रामपाल जी की शरण में जाकर नाम दीक्षा लेकर मर्यादा में रहना होगा। सूक्ष्म वेद में सतगुरु की महिमा वर्णन किया गया है –

गुरु बिन वेद पढ़े जो प्राणी, समझे न सार रहे अज्ञानी।
वेद-कतेव झूठे न भाई, झूठे वो है जो इनको समझे नाही।

वर्तमान में तत्त्वदर्शी संत कौन हैं?

जगतगुरू तत्वदर्शी सन्त रामपाल जी महाराज वर्तमान में केवल एकमात्र संत हैं जो विधिवत साधन बताते हैं। गीता जी अध्याय 8 मन्त्र 16 में  व अध्याय 9 मन्त्र 7 में कहा गया है कि ब्रह्म लोक पर्यन्त भी सभी लोक पुनरावर्ती( नाशवान) में हैं और ब्रह्मा विष्णु महेश  अविनाशी नहीं हैं, फिर इनकी भक्ति करने वाले भी मुक्त नहीं होंगे। गीता जी अध्याय 15 श्लोक 4 में बताया है कि पूर्ण परमात्मा कबीर साहिब की भगति करने से ही मोक्ष संभव है।

ततः पदं तत्परिमागिर्तव्यं यस्मिन्गता न निवतर्न्ति भूयः।

तमेव चाद्यं पुरुषं प्रपद्ये यतः प्रतृत्ति प्रसृता पुराणी।।4।।

अर्थात उस परम पद परमात्मा की खोज करनी चाहिये जिसको प्राप्त हुए मनुष्य फिर लौटकर संसार में नहीं आते और जिससे अनादि काल से चली आने वाली यह सृष्टि विस्तार को प्राप्त हुई है। उस आदि पुरुष परमात्मा के ही मैं शरण हूँ। इससे ये स्पष्ट होता है कि विधिवत साधना केवल संत रामपाल जी महाराज बताते हैं तथा उन्हीं से ज्ञान उपदेश लेकर जीवन के लक्ष्य मोक्ष प्राप्ति को पाया जा सकता है। अधिक जानकारी के लिए visit करें Satlok Ashram YouTube Channel

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