HomeBlogsJamat-Ul-Vida 2023 : क्या रमजान में रोज़े रखने से जन्नत हासिल होगी?

Jamat-Ul-Vida 2023 [Hindi]: क्या रमजान में रोज़े रखने से जन्नत हासिल होगी?

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Last Updated on 22 April 2023, 4:24 PM IST | जमात उल विदा 2023 (Jamat Ul Vida in Hindi) | मुस्लिम परंपराओं के अनुसार, मुसलमानों में रमजान एक पवित्र महीना माना जाता है। रमजान महीने में मुस्लिम लोग (रोजा) उपवास, नमाज करते हैं। इस वर्ष रमजान महीने की आखिरी जुम्मे की नमाज 21 अप्रैल को पढ़ी जानी है। इसे जमात-उल-विदा (Jamat-Ul-Vida) के नाम से जाना जाता है। यह त्योहार रमजान के अंतिम शुक्रवार यानि जुम्मे के दिन मनाया जाता है। इस दिन लोग अल्लाह की विशेष इबादत करते हैं। इसके बाद ही ईद-उल-फितर (Eid-Ul-Fiter) मनाया जाता है।

Jamat-Ul-Vida (जमात उल विदा 2023) के मुख्य बिंदु

  • रमजान माह के अंतिम शुक्रवार को जमात-उल-विदा (Jamat Ul Vida in Hindi)) मनाया जाता है।
  • इस वर्ष जमात-उल-विदा भारत में (Jamat-Ul-Vida) 21 अप्रैल को मनाई जायेगी। यह तिथि देश विदेश में चांद को देखे जाने वाली तिथि की वजह से अलग अलग होती है।
  • पवित्र क़ुरान शरीफ के अनुसार वर्तमान समय में संत रामपाल जी महाराज ही एकमात्र बाख़बर संत हैं.
  • बाख़बर संत रामपाल जी महाराज जी ने बताया है अल्लाह कबीर की सच्ची इबादत का तरीका
  • वर्तमान समय में संत रामपाल जी महाराज जी हैं वह बाखबर जिसके बारे में कुरान शरीफ संकेत करती है।
  • अल्लाह कबीर की इबादत हमें करना चाहिए, वही हमारे गुनाहों को माफ़ करने वाला अल्लाह है।

जमात उल विदा का मतलब (Jamat Ul Vida Meaning in Hindi)

जमात उल विदा का मतलब यह होता है कि रमजान महीना खत्म होने वाला हैं इसलिए रमजान के पवित्र महीने की आखिरी विदाई के लिए विश्व के सभी मुस्लिम लोग मस्जिदों में एकत्रित होते हैं और अल्लाह से “जुमा” प्रार्थना करते हैं।

जमात उल विदा (Jamat-Ul-Vida) कब मनाते हैं?

मुस्लिम समुदाय के लोग प्रतिवर्ष जमात-उल-विदा (Jamat-Ul-Vida) रमजान माह के अंतिम शुक्रवार (जुम्मे) के दिन मनाते हैं। जोकि इस वर्ष अर्थात् 2023 में भारत में 21 अप्रैल की शाम से शुरू होकर 22 अप्रैल की शाम तक मनाया जाएगा। यह तिथि देश विदेश में चांद को देखे जाने वाली तिथि की वजह से अलग अलग हो सकती है।

जमात उल विदा का इतिहास

मुसलमानों का मानना है कि रमजान महीने के (आखिरी) अंतिम शुक्रवार को हजरत मोहम्मद जी ने सबसे ज्यादा अल्लाह की इबादत की थी। इसलिए रमजान महीने के अंतिम शुक्रवार को “जमात उल विदा” के दिन विश्व के सभी मुस्लिम लोग मस्जिदों में (एकत्रित) इकट्ठे होते हैं और एक साथ बैठ कर नमाज पढ़ते हैं। अल्लाह का दीदार करने के लिए, अल्लाह की इबादत करते हैं, अल्लाह से प्रार्थना करते हैं, अपने-अपने गुनाहों की माफ़ी मांगते हैं, जीवन सुख-शांति से बीते इसकी दुआ करते हैं, सभी मुस्लिम लोग एक-दूसरे को गले मिलते हैं। मुसलमानों का मानना है कि जमात उल विदा के दिन जरूरतमंद, गरीबों को दान करने से अल्लाह की विशेष रजा प्राप्त होती है। 

जमात उल विदा का महत्व (Jamat Ul Vida Importance in Hindi)

मुस्लिम लोगों का मानना है कि जमात उल विदा के दिन “जुमा” प्रार्थना करने से, दान करने से, नमाज पढ़ने से अल्लाह खुश होते हैं और अल्लाह की विशेष रज़ा प्राप्त होती है। ऐसा माना जाता है कि जमात उल विदा पर अल्लाह से सच्चे दिल से जो मांगो वह पूरा हो सकता है।

मुस्लिम समुदाय में यह मान्यता है कि इस पर्व पर इन सब क्रियाओं में शामिल होने से अल्लाह आपके गुनाहों को माफ़ कर देता है। जबकि ऐसा नहीं है क्योंकि पवित्र क़ुरान शरीफ़ की सूरत 42 की प्रथम आयत में मोक्ष प्राप्त करने व गुनाहों की माफ़ी के लिए बाखबर संत से लेने वाले 3 मंत्रो के जाप की तरफ संकेत है।

जमात उल विदा का उत्सव

यह दिन मुसलमानों के लिए बेहद शुभ दिन होता हैं और जमात उल विदा को लेकर सभी मुस्लिम लोग काफी उत्साहित होते हैं। इस दिन विश्व के सभी प्रसिद्ध मस्जिदों को काफी भव्य रूप से सजाया जाता है। इस दिन सभी मुसलमान अपने नजदीकी मस्जिदों पर (एकत्रित) इकट्ठे होते हैं एक-दूसरे के गले मिलते हैं। वे इस उत्सव पर सामानों की खरीदारी बहुत ज्यादा करते हैं और अपने-अपने घरों में विभिन्न प्रकार के लजीज पकवान बनाते हैं। नये-नये कपड़े पहनते हैं। एक दूसरे को दावत पर बुलाते हैं। इस प्रकार जमात उल विदा पर जश्न मनाते हैं।

क्या जमात उल विदा इस प्रकार मनाने से जन्नत हासिल हो सकती है?

केवल नमाज पढ़ने से जन्नत (मोक्ष), अल्लाह की प्राप्ति नहीं हो सकती। अगर इतना आसान होता जन्नत प्राप्त करना, अल्लाह को प्राप्त करना, तो हम सभी नमाज पढ़ कर अब तक जन्नत (मोक्ष) को प्राप्त हो गये होते। लेकिन ऐसा नहीं है। कुरान शरीफ का सही-सही ज्ञान अर्थ समझने के लिए कुरान शरीफ के बताए अनुसार बाखबर संत की शरण में जाना चाहिए और अल्लाह की सच्ची इबादत करनी चाहिए।वर्तमान समय में अविनाशी अल्लाह और अविनाशी जन्नत की पूरी जानकारी केवल बाखबर संत रामपाल जी महाराज जी के पास हैं और किसी के पास नहीं है। क्योंकि पूरी पृथ्वी पर एक ही बाखबर संत होता है और वह एक अविनाशी अल्लाह की जानकारी बताते हैं।

Also Read: रमज़ान पर जानिए कौन है अल्लाहु कबीर जो हजरत मोहम्मद को मिले? 

क्या जीव हिंसा, मांस खाना से अल्लाह खुश हो सकते हैं?

दिन में करें रोजा, रात को करें “खूना”। जानवरों को हलाल करना, मांस खाना अल्लाह का आदेश नहीं है और न ही नबी मोहम्मद जी ने कभी ऐसा कहा। नबी मोहम्मद जी तो इतने दयालु थे कि उन्होंने कभी भी जीव हिंसा नहीं की और न ही उन्होंने कभी मांस खाया। नबी मोहम्मद तो एक आदरणीय पुरुष हैं जो अल्लाह के संदेशवाहक कहलाते हैं। उनके 180,000 अनुयायी थे उन्होंने भी कभी जीव हिंसा नहीं की तथा मांस नहीं खाया। इसका प्रमाण बाखबर संत रामपाल जी महाराज ने कुरान शरीफ, नबी मोहम्मद जी की जीवनी और मुस्लिम पुस्तकों में से प्रमाणित करके बताया हैं।

अगर हजरत मोहम्मद जी ने सच्ची इबादत की तो उनकी मौत इतनी दर्दनाक क्यों? 

हज़रत मुहम्मद जी बहुत नेक दिल और रहम दिल इंसान थे। उन्होंने सच्चे दिल से अल्लाह पाक़ की इबादत की थी फिर भी उनका पूरा जीवन इतना कष्ट से भरा रहा। क्यों? हज़रत मुहम्मद जी किसको अल्लाह मान कर इबादत करते थे फिर भी उनको कभी सुख नहीं मिला? इस बात पर कभी किसी ने ग़ौर नहीं किया।

बाखबर संत रामपाल जी बताते हैं कि अल्लाह कबीर मौत को भी टाल देते हैं। उनकी इबादत से जीवन तो सुखमय होता ही है और मौत के बाद भी सुखमय लोक (अविनाशी जन्नत) प्राप्त होता है। अल्लाह की सच्ची इबादत को सिर्फ बाबर/इल्म वाला ही सही-सही बता सकता है जो कि वर्तमान में बाखबर संत रामपाल जी महाराज जी बता रहे हैं। सभी मुस्लिम भाइयों से निवेदन है कि बाखबर संत रामपाल जी की शरण में आकर उस कादर अल्लाह को पहचान कर उसकी सतभक्ति (सच्ची इबादत) करना चाहिए। जिससे जीते जी अविनाशी अल्लाह का दीदार हो सके और मृत्यु के उपरांत अविनाशी जन्नत में जा सके तथा वर्तमान में भी सुखी जीवन जी सकें। 

बाख़बर की क्या पहचान होती है?

जो संत सभी धर्मों के पवित्र धर्मग्रंथों का जानकार होता है और उस अमर लोक (अविनाशी जन्नत) की महिमा बताता हैं तथा पूर्ण परमात्मा (अविनाशी अल्लाहु अकबर) की जानकारी देता हैं वह बाखबर संत होता है। बाखबर संत का वर्णन पवित्र कुरान शरीफ सुरत फुर्कानि 25 आयत नंबर 52 से 59 में किया गया है, वह बाखबर संत रामपाल जी महाराज के रूप में भारत की पवित्र भूमि पर आ चुका है।

क़ुरान शरीफ सूरत फुर्कानि 25, आयत 59 भी यही संकेत है कि सृष्टि को बनाने वाले अल्लाह की जानकारी/खबर कोई बाखबर/इल्म वाला ही बतायेगा।  वह बाखबर कोई और नहीं, संत रामपाल जी महाराज जी हैं। संत रामपाल जी महाराज ही वर्तमान में पूरी पृथ्वी पर एकमात्र बाखबर संत हैं। अधिक जानकारी के लिए Satlok Ashram YouTube चैनल पर Visit करें। और पढ़ें निःशुल्क आध्यात्मिक पुस्तक “ज्ञान गंगा”

अविनाशी अल्लाहु अकबर कौन है?

कुरान ज्ञान दाता हज़रत मुहम्मद जी से कह रहा है कि वह अल्लाह कभी मरने वाला नहीं है तारीफ के साथ उसकी पवित्र महिमा का गुणगान किए जा, वह कबीर अल्लाह (कविर्देव) पूजा के योग्य है तथा अपने उपासकों के सर्व पापों का विनाश करने वाला अल्लाहु अकबर है। क़ुरान सूरत अल-फुरकान नं. 25 आयत नं. 58 और फजाईले जिक्र में आयत नं. 1, 2, 3, 6 तथा 7 में प्रमाण है कि अल्लाह कबीर साहेब जी हैं और भी अनेकों स्थानों पर प्रमाण है कि पूर्ण परमात्मा (अविनाशी अल्लाहु अकबर) कबीर जी ही हैं। वह पापों का विनाश करने वाला “ड़ा अल्लाह कबीर” है।

बाखबर संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा लेकर आज से ही कबीर अल्लाह की सच्ची इबादत करना प्रारंभ करें। जिससे जीवन में आने वाले संकटों से रक्षा हो सके। अधिक जानकारी के लिए गूगल प्लेस्टोर से Sant Rampal Ji Maharaj App डाउनलोड करें।

FAQ About Jamat-Ul-Vida

Q. जमात उल विदा का त्योहार किस माह में मनाया जाता है?

Ans. जमात उल विदा का त्योहार रमजान के महीने के अंतिम जुम्मे यानी शुक्रवार के दिन मनाया जाता है।

Q. इस वर्ष जमात-उल-विदा कब है?

Ans. इस वर्ष जमात उल विदा (Jamat-Ul-Vida 2023) 21 अप्रैल, शुक्रवार के दिन है।

Q. जमात-उल-विदा का क्या अर्थ है?

Ans.जमात उल विदा एक अरबी शब्द है, जिसका अर्थ है जुमे की विदाई।

Q. जमात-उल-विदा क्यों मनाया जाता है?

Ans. इस त्योहार को लेकर ऐसी मान्यता है कि इस दिन पैगम्बर मोहम्मद साहब ने अल्लाह की विशेष इबादत की थी। यही कारण है कि इस शुक्रवार को बाकी के जुमे के दिनों से ज्यादा महत्वपूर्ण बताया गया है। लेकिन यह अल्लाह की इबादत का सही तरीका नही हैं।

Q. जमात-उल-विदा को औऱ किस नाम से जाना जाता है?

Ans. जमात उल विदा को अल-जुमा अल-यतीमाह अर्थात अनाथ शुक्रवार भी कहा जाता है। प्राचीन भाषाओं में, इस दिन को अरुबा के नाम से भी जाना जाता है.

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