Last Updated on 9 April 2024 IST | ईद–उल–फितर 2024 (Eid-al-Fitr in Hindi) | भारत एक ऐसा देश है,जहां साल भर त्योहार चलते ही रहते हैं चाहे वह किसी भी धर्म या संप्रदाय का हो। इसी कड़ी में हम आपको ले चलते हैं मुस्लिम धर्म में मनाए जाने वाले त्योहार ईद-उल-फितर की ओर। तो चलिए जानते हैं ईद-उल-फितर और अल्लाह ताला की सही जानकारी।
इस्लाम में ईद क्या है? (What is Eid in Islam)
- “ईद” का शाब्दिक अर्थ होता है ‘त्योहार’ या ‘खुशी’। इस्लाम के दो प्रमुख त्योहारों को सामान्यतः ईद कहते हैं। एक प्रमुख त्योहार है “ईद-उल-फितर” और दूसरा है “ईद-उल-अजहा”।
- ईद-उल-फितर: यह प्रसन्नता और आभार व्यक्त करने का त्योहार है जो कि रमजान महीने के अंत में रोजा तोड़ने के अवसर पर मनाया जाता है। इसे मीठी ईद या छोटी ईद भी कहा जाता है।
- ईद-उल-अजहा: यह कुर्बानी और समर्पण का त्योहार है जो कि हज यात्रा के समापन के बाद मनाया जाता है। इसे बड़ी ईद भी कहा जाता है।
इस लेख में हम जानेंगे “ईद-उल-फितर” के बारे में और उस अल्लाह ताला के बारे में जो अपने बंदों के गुनाहों को माफ करने वाला है।
ईद-उल-फितर का अर्थ क्या है? (Meaning of Eid–ul-Fitr in Hindi)
आइए अब जानते हैं इस्लाम धर्म में मनाए जाने वाले त्योहार ईद-उल-फितर के बारे में कि आखिर क्या है इसका अर्थ। ईद-उल-फितर अरबी के शब्दों से मिलकर बना है। जिसमें ईद का अर्थ होता है ‘खुशी’ तथा फितर का अर्थ होता है ‘उपवास तोड़ना’ या ‘ दान करना’। इस प्रकार यह जो त्योहार है, रमजान के पवित्र महीने में धारण किए गए रोजे के समापन की खुशी और आभार का त्योहार है जिसमें मुस्लिम समुदाय के लोग जकात(दान) देकर और मिठाइयां बांट कर अपनी खुशी मनाते हैं।
बाखबर संत रामपाल जी दान के विषय में बताते हैं कि दान करना निश्चय ही एक पुण्यमय कार्य है। किंतु वे अल्लाह कबीर जी की वाणी से बताते हैं कि –
कबीर, गुरु बिन माला फेरते, गुरु बिन देते दान।
गुरु बिन दोनों निष्फल है, चाहे पूछो वेद, पुराण।।
यानी एक सच्चे गुरु के बिना किया गया दान व्यर्थ है।
ईद-उल-फितर क्या है?
यह इस्लामिक त्योहार ईद उल फितर (Eid al-Fitr in Hindi) मीठी ईद के नाम से भी जाना जाता है। रोजे़ पूरे होने पर ईद का त्योहार मनाया जाता है। इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक, रमजान के बाद 10वें शव्वाल की पहली तारीख को ईद-उल-फितर मनाई जाती है। एक महीने के रोजे़ पूरे होने की खुशी में लोग एक दूसरे से गले मिलते हैं और ईद मनाते हैं। ईद एक महत्वपूर्ण त्योहार है इसलिए इसकी छुट्टी होती है।
ईद-उल-फितर 2024 (Eid al-Fitr Date in India) कब और कैसे मनाया जाता है?
ईद-उल-फितर रमजान के पवित्र महीने में धारण किए गए रोजे के समापन बाद, हिजरी कैलेंडर के 10वें महीने शव्वाल की पहली तारीख को मनाई जाती है। चूंकि हिजरी कैलेंडर चंद्रमा पर आधारित होता है, इसलिए तारीख हर साल बदलती रहती है। 2024 में, भारत में ईद-उल-फितर 10 अप्रैल को मनाई जाने की संभावना है। चांद दिखाई देने की पुष्टि के बाद ही तारीख निश्चित होती है।
ईद-उल-फितर के दिन पूरा मुसलमान समुदाय सुबह-सुबह ईद की नमाज पढ़ते हैं। नमाज अदा करने के बाद सभी आपस में गले मिलकर मुबारकबाद देते हैं, मिठाइयां बांटी जाती है, लोग नए कपड़े पहनते हैं, जकात(दान)देते हैं, बच्चों को ईदी देते हैं यानी बच्चों को उपहार भेंट करते हैं। इस दिन मुख्य मिष्ठान के रूप में सेवईया जिसे ‘शीर खोरमा’ कहा जाता है बनाई जाती है क्योंकि पैगम्बर मोहम्मद जी ने भी सर्वप्रथम इस त्योहार की शुरुआत में शीर खोरमा ही बांटे थे।
ईद-उल-फितर का इतिहास (History of Eid Ul-Fitr in Hindi)
जैसा कि आप सभी जानते हैं कि हर किसी न किसी वस्तु का अपना एक इतिहास होता है। जिस प्रकार रामायण का इतिहास श्री रामचंद्र जी से जुड़ा हुआ है और महाभारत का इतिहास पांडवों से जुड़ा हुआ है इसी प्रकार ईद-उल-फितर का भी एक अपना इतिहास है और यह इतिहास “जंग-ए-बदर” से जुड़ा है।
मुस्लिम राष्ट्र सऊदी अरब में मदीना शहर से लगभग 200 किमी दूर स्थित एक कुआं था। जिसका नाम बदर था। उस कुएं वाली जगह पर ही सन 624 ईस्वी मे एक जंग हुई थी। इसलिए इस जंग को इतिहास में “जंग-ए-बदर” के नाम से जाना जाता है। यह जंग पैगम्बर मोहम्मद और अबु जहल के बीच हुई थी। इस जंग में पैगम्बर हजरत मुहम्मद के साथ मात्र 313 सैनिक ही थे और अबु जहल के साथ 1300 से भी ज्यादा सैनिक थे। लेकिन फिर भी जीत पैगम्बर हजरत मोहम्मद ने हासिल की थी।
“जंग-ए-बदर” जीतने की खुशी में उन्होंने एक दूसरे को गले मिलकर खुशी के आँसू बहाते हुए खुशियां मनाई और गरीबों में मिठाइयां, सेवइयां, कपड़े एवं उपहार आदि फितरा (दान) अदा किया। इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार हिजरी संवत 2 यानी 624 ईस्वी में पहली बार (करीब 1400 साल पहले) यह मीठी ईद मनाई गई थी। उसके बाद से प्रति वर्ष इस दिन को “ईद-उल-फितर” के रूप में मनाया जाने लगा।
किसने करी बदर के युद्ध में हज़रत मुहम्मद की मदद?
बदर का युद्ध जो हज़रत मुहम्मद और विरोधियों के बीच हुआ था उसमें हज़रत मुहम्मद का साथ अली नामक युवक ने भी दिया था। वास्तव में अली को कबीर परमात्मा अल खिद्र के रूप में मिले थे और उन्होंने अली को 1 मंत्र दिया था तथा कहा था कि इस मंत्र के जाप से पाप कर्म नाश होते है। अली ने अल खिद्र जी से युद्ध के लिए आशीर्वाद मांगा था। तब कबीर साहेब ने अल खिद्र के रूप में अली को एक शब्द बताया। उसका जाप करके अली ने युद्ध जीता जो मुहम्मद और विरोधियों के बीच हुआ था।
बाद में जब अली ने हजरत मोहम्मद को बताया कि उसे अल खिद्र ने एक मंत्र दिया है तब हजरत मोहम्मद ने अली से कहा कि आपको अल्लाह ने बहुत बड़ा नाम सिखाया है अली ने कहा कि मैं युद्ध के समय में भी उस नाम का जाप कर रहा था।
गरीब अली अलहका शेर है, सीना स्वाफ शरीर।
कृष्ण अली एकै कली, न्यारी कला कबीर।।
संत गरीबदास जी महाराज ने बताया है कि अली अल्लाह का शेर है वह सदा हजरत मोहम्मद का साथ देने के लिए तैयार रहा। जब अली तलवार ऊंची करता था तो उसकी तलवार तारों के पार निकल जाती थी। वास्तव में यह शक्ति अल खिद्र यानी अल्लाह कबीर की थी जिसके माध्यम से वे धार्मिक आत्माओं की मदद करते हैं। पृथ्वी पर मौजूद सभी जीव परमात्मा कबीर की संताने हैं।
ईद-उल-फितर पर जानिए ,आख़िर कौन हैं अल्लाह ताला?
आपने परमात्मा के अनेकों नाम सुने होंगे जैसे कि राम, रब, खुदा, गॉड आदि। मुसलमानों में उसी को अल्लाह कबीर, अल्लाह हु अकबर के नाम से जाना जाता है, जिसका प्रमाण पवित्र कुरान शरीफ में भी है। तो चलिए अब आपको कुरान शरीफ से रूबरू कराते हैं और जानते हैं आख़िर कौन हैं अल्लाह।
पवित्र “कुरान शरीफ” सुरत फुर्कानि 25, आयत 52, 58, 59 में कबीर नामक अल्लाह की महिमा का गुणगान किया है वह पूर्ण परमात्मा है जिसे अल्लाहु अकबर (कबीर) कहते हैं। उस अल्लाह का वास्तविक नाम कविर्देव हैं।
- पवित्र “कुरान शरीफ” सूरत फुर्कानी 25 आयत 52:-
आयत 52:- फला तुतिअल् – काफिरन् व जहिद्हुम बिही जिहादन् कबीरा (कबीरन्)।।
भावार्थ:- “कुरान शरीफ़ की सूरत फुर्कानी 25 आयत 52 में हज़रत मोहम्मद का खुदा स्वयं कह रहा है कि हे पैगम्बर! आप उन काफिरों (एक प्रभु की भक्ति त्याग अन्य की पूजा करने वाले।) का कहा न मानना क्योंकि वे लोग कबीर को पूर्ण परमात्मा नहीं मानते। इसलिए आप कुरान के ज्ञान आधार पर दृढ़ रहना और यह विश्वास रखना कि कबीर ही अल्लाहु अकबर है।
- पवित्र “कुरान शरीफ” सूरत फुर्कानी 25 आयत 58:
आयत 58:- व तवक्कल् अलल् – हरिूल्लजी ला यमूतु व सब्बिह् बिहम्दिही व कफा बिही बिजुनूबि अिबादिही खबीरा (कबीरा)।।
भावार्थ:- कुरान शरीफ़ की सूरत फुर्कानी 25 आयत 58 में हज़रत मोहम्मद का खुदा (प्रभु) अपने से अन्य किसी अल्लाह की ओर इशारा कर रहा है कि तू उस जिंदा पर भरोसा रख जो तुझे जिंदा महात्मा के रूप में मिला था। वह वास्तव में अविनाशी है यानी वह कभी मरने वाला नहीं है। उसकी पवित्र महिमा का गुणगान किए जा। वह पूजा (इबादत) करने योग्य है। पापनाशक है यानी अपने बन्दों के सर्व गुनाहों को माफ़ करने वाला है।
- पवित्र “कुरान शरीफ” , सूरत फुर्कानी 25 आयत 59
आयत 59:- अल्ल्जी खलकस्समावाति वल्अर्ज व मा बैनहुमा फी सित्तति अय्यामिन् सुम्मस्तवा अलल्अर्शि अर्रह्मानु फस्अल् बिही खबीरन्(कबीरन्)।।
भावार्थ:- कुरान शरीफ़ की सूरत फुर्कानी 25 आयत 59 में कुरान शरीफ़ का ज्ञान देने वाला अल्लाह (प्रभु) कह रहा है कि यह कबीर वहीं अल्लाह है जिसमें ज़मीं (जमीन) से लेकर अर्श (आसमान) तक जो भी विद्यमान है सब की छः दिन में सृष्टि रची और सातवें दिन सतलोक में सिंहासन पर विराजमान हुए। उस अल्लाह की ख़बर (जानकारी) तो कोई बाखबर (इल्मवाले) ही दे सकता है कि अल्लाह की प्राप्ति कैसे होगी। कुरान शरीफ़ ज्ञान दाता कह रहा है कि मैंं उस अल्लाह के बारे में नही जानता जो अविनाशी है सत्यलोक में विराजमान हैं उसकी वास्तविक जानकारी तत्वदर्शी (बाखबर) संत से पूछो। मैं नहीं जानता।
“ईद-उल-फितर” पर जानिए हज़रत मोहम्मद को मिले कबीर परमात्मा
पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबीर साहिब) चारों युगों में आते हैं और अच्छी आत्माओं को मिलते हैं उन्हें तत्वज्ञान समझाते हैं। उन्हीं अच्छी आत्माओं में से हज़रत मोहम्मद भी एक है जिन्हें कबीर साहिब (अल्लाहु अकबर) मिले उन्हें तत्वज्ञान समझाया और सतलोक दिखाया।
कबीर परमात्मा ने कहा –
हम मुहम्मद को सतलोक ले गयो। इच्छा रूपी वहाँ नहीं रहयो।।
उल्ट मुहम्मद महल पठाया। गुज बीरज एक कलमा लाया।।
भावार्थ:- कबीर परमात्मा मुस्लिम समुदाय के नबी मुहम्मद को सतलोक ले गए थे लेकिन हज़रत मुहम्मद के 1 लाख 80 हज़ार शिष्य होने के कारण उनका बहुत सम्मान हो रहा था। उनकी प्रभुता नही छूटी इस वजह से सतलोक में रहने की इच्छा प्रकट नहीं की, तो परमात्मा ने हज़रत मोहम्मद को वापिस नीचे शरीर में भेज दिया था।
फिर नबी मोहम्मद ने अपने एक लाख अस्सी हजार शिष्यों को शिष्यों को समझाया कि परमात्मा ने उसे सतलोक से आदेश देकर भेजा है। नबी मोहम्मद जब सतलोक से आ गए उसके बाद जो परमात्मा कबीर जी ने उन्हे सतलोक में आदेश दिया था। वहीं आदेश उन्होंने अपने शिष्यों को समझाया।
नबी मुहम्मद जी को रोजा(व्रत), बंग (ऊँची आवाज में प्रभु स्तुति करना) तथा पांच समय की नमाज करने का तो आदेश कहा था परन्तु गाय काटने मुर्गे को काटने का आदेश नहीं दिया था। मुस्लिम समुदाय में मांस को प्रसाद रूप में खाते हैं जबकि मांस खाना मांस हराम है इसे खाने का आदेश उस अल्लाह का नहीं है वह तो बहुत दयालु है, नेक है। वह मांस खाने का ऐसा आदेश नहीं दे सकता।
वर्तमान में अल्लाह का संदेशवाहक
हमारे शास्त्रों में प्रमाण है कि केवल पूर्ण संत ही पूर्ण परमात्मा से मिला सकता है और विश्व में इस वक्त पूर्ण संत अगर कोई है तो वह है संत रामपाल जी महाराज जो सभी शास्त्रों से पूर्ण ज्ञान देते हैं। संत रामपाल जी महाराज सिर्फ ज्ञान ही नहीं समझाते बल्कि उन मंत्रों की नाम दीक्षा भी देते हैं जिनकी साधना महापुरुषों ने की उनमें से आदरणीय नानक साहेब जी, आदरणीय गरीब दास जी, आदरणीय घीसा दास जी, आदरणीय नबी मोहम्मद जी आदि है। वर्तमान में संत रामपाल जी के अलावा उन मंत्रों के बारे में कोई नहीं जानता। सतज्ञान जानने के लिए Satlok Ashram Youtube Channel पर सत्संग सुने।