धरती पर अवतार: 5 दिन शेष: 8 सितम्बर अवतार दिवस पर क्या करें?

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धरती पर अवतार: मात्र 5 दिन शेष। 8 सितम्बर को अवतार दिवस है। एक बहुत पुण्य दिवस आने वाला है जब तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज धरती पर अवतरित हुए। अपने कल्याण की कामना करने वाले सभी लोग बिना समय गँवाए तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज की शरण में आकर नाम दीक्षा लेकर गुरु मर्यादा में रहकर साधना करें। 8 सितम्बर को अवतार दिवस पर साधना टीवी चैनल पर प्रातः 9 बजे से 12 बजे तक विशेष आध्यात्मिक सत्संग श्रवण करें और इस अवसर का पूरा लाभ उठायें।

“धरती पर अवतार” से क्या तात्पर्य है?

अवतार” से तात्पर्य है ऊँचे स्थान से नीचे स्थान पर उतरना। यह शुभ शब्द विशेषकर उन उत्तम आत्माओं के लिए प्रयोग किया जाता है, जो किसी विशिष्ट कार्य को करने के लिए “धरती” पर आते हैं। परमात्मा स्वयं अथवा उनके प्रतिनिधि “धरती पर अवतार” लेकर आगमन करते हैं। विशिष्ट कार्य पूरा हो जाने के बाद वे अपने धाम सतलोक वापस चले जाते हैं।

“धरती पर अवतार” किस प्रकार अवतरित होते हैं?

पूर्ण परमात्मा परम अक्षर ब्रह्म स्वयं पृथ्वी पर प्रकट होते हैं। वे सशरीर आते हैं। सशरीर लौट जाते हैं। धरती पर लीला करने के लिए परमेश्वर दो प्रकार से प्रकट होते हैं।

पूर्ण परमात्मा का शिशु रूप में सरोवर में कमल के फूल पर प्रकट होना

प्रत्येक युग में पूर्ण परमात्मा शिशु रूप में वन में स्थित एक सरोवर में कमल के फूल पर प्रकट होते हैं। वहां से एक निःसन्तान दम्पति उन्हें वात्सल्य स्वरूप अपने साथ ले जाते हैं। बाल्यकाल से ही ज्ञान सर्जन की विशिष्ट लीला करते हुए बड़े होते हैं और समाज में आध्यात्मिक ज्ञान प्रचार करके अधर्म का नाश करते हैं। सरोवर के जल में कमल के फूल पर अवतरित होने के कारण परमेश्वर नारायण कहलाते हैं। नार का अर्थ जल और आयण का अर्थ आने वाला अर्थात् जल पर निवास करने वाला नारायण कहलाता है।

काशी नगर में एक जुलाहे दंपति के घर परवरिश होने के कारण बड़े होकर परमेश्वर कबीर जी भी जुलाहे का कार्य करने लगे तथा अच्छी आत्माओं को मिले, उनको तत्वज्ञान समझाया तथा स्वयं भी तत्वज्ञान प्रचार करके अधर्म का नाश किया। पूर्ण परमात्मा स्वयं अपने बारे में बताते हुए कहते हैं

अवधु अविगत से चल आया, कोई मेरा भेद मर्म नहीं पाया।।
ना मेरा जन्म न गर्भ बसेरा, बालक ह्नै दिखलाया।
काशी नगर जल कमल पर डेरा, तहाँ जुलाहे ने पाया।।
माता-पिता मेरे कछु नहीं, ना मेरे घर दासी।
जुलहा को सुत आन कहाया, जगत करे मेरी हांसी।।
पांच तत्व का धड़ नहीं मेरा, जानूं ज्ञान अपारा।
सत्य स्वरूपी नाम साहिब का, सो है नाम हमारा।।
अधर दीप (सतलोक) गगन गुफा में, तहां निज वस्तु सारा।
ज्योति स्वरूपी अलख निरंजन (ब्रह्म) भी, धरता ध्यान हमारा।।
हाड चाम लोहू नहीं मोरे, जाने सत्यनाम उपासी।
तारन तरन अभै पद दाता, मैं हूं कबीर अविनासी।।

पूर्ण परमात्मा का जिन्दा महात्मा या संत रूप में प्रकट होना

पूर्ण परमात्मा जब चाहे साधु, सन्त या जिन्दा महात्मा के रूप में अपने परम धाम सत्यलोक से चलकर धरती पर प्रकट होते हैं। धरती पर आने के बाद पुण्य आत्माओं को सत ज्ञान देते हैं। ऐसी पुण्यात्माएं जिन्होंने परमात्मा से साक्षात ज्ञान लिया है वे भी ज्ञान प्रचार करके अधर्म का नाश करते हैं। ऐसी पुण्यात्माएं परमेश्वर द्वारा विशेष कार्यों को पूरा करने के लिए नियुक्त “धरती पर अवतार” होते हैं।

■ यह भी पढें: अवतरण दिवस (Avatar Diwas) : 8 सितम्बर (September) को क्या है?

परमेश्वर कबीर जिन्दा महात्मा के रूप में कुछ पुण्यात्माओं को मिले, उन्हें सच्चखण्ड (सत्यलोक) ले गए, उनको आध्यात्मिक ज्ञान दिया तथा अपने वास्तविक स्वरूप से परिचित कराकर धरती पर वापिस छोड़ा। ये सभी महापुरुष पूर्ण परमात्मा परम अक्षर ब्रह्म सत्य पुरूष के अवतार थे। इन्होंने परमेश्वर कबीर साहेब से प्राप्त ज्ञान के आधार से अधर्म का नाश किया। “धरती पर अवतार” आदरणीय धर्मदास जी, आदरणीय मलुकदास जी, आदरणीय नानक देव साहेब जी (सिख धर्म के प्रवर्तक), आदरणीय दादू साहेब जी, आदरणीय गरीबदास साहेब जी गांव छुड़ानी जि. झज्जर (हरियाणा) वाले तथा आदरणीय घीसा दास साहेब जी गांव खेखड़ा जिला बागपत (उत्तर प्रदेश) वाले हुए हैं।

आदरणीय धर्मदास साहेब जी जिनको पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जिंदा महात्मा के रूप में मथुरा में मिले जानिए उनकी वाणी से:-

धर्मदास, आज मोहे दर्शन दियो जी कबीर।
सत्यलोक से चल कर आए, काटन जम की जंजीर।
थारे दर्शन से म्हारे पाप कटत हैं, निर्मल होवै जी शरीर।
अमृत भोजन म्हारे सतगुरु जीमैं, शब्द अमृत दूध की खीर।

ये उपरोक्त सर्व अवतार परम अक्षर ब्रह्म (सत्य पुरूष) के थे। अपना कार्य करके चले गए। अधर्म का नाश किया, जिस कारण से जनता के एक बड़े वर्ग में बुराइयां नही पनपी।

क्या वर्तमान में “धरती पर अवतार” नहीं हैं?

वर्तमान में संतों की कमी नहीं है परन्तु आत्मिक गुणों की कमी है। इसका एकमात्र कारण है इन संतों द्वारा प्रदत्त साधना का शास्त्रों के विरूद्ध होना। जिस कारण से समाज में अधर्म बढ़ता जा रहा है। इन पंथों और संतों को हजारों वर्ष हो गए ज्ञान प्रचार करते हुए परन्तु अधर्म बढ़ता ही जा रहा है।

जानिए आज कौन हैं “धरती पर अवतार”

पूर्ण परमात्मा के “धरती पर अवतार” संत सत्य साधना तथा तत्व ज्ञान का प्रचार किया करते थे। इसी ज्ञान को पाकर जनता के एक बड़े वर्ग में आपसी प्रेम था और एक दूसरे से सुख दुख बाटते थे। असहाय लोगों की सहायता के लिए तत्पर रहते थे।

वर्तमान में वही शास्त्र विधि अनुसार यथार्थ आध्यात्मिक सत ज्ञान परमेश्वर कबीर साहेब जी ने संत रामपाल दास जी महाराज को प्रदान किया है। मार्च 1997 को फाल्गुन मास की शुक्ल प्रथमा के दिन दस बजे जिंदा महात्मा के रूप में सत्य लोक से आकर पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब ने संत रामपाल दास जी महाराज को सतनाम तथा सारनाम दान करने का आदेश दिया तत्पश्चात अंतर्ध्यान हो गए।

संत रामपाल दास जी महाराज परम अक्षर ब्रह्म सत्पुरुष के अवतारों में से एक हैं जो आध्यात्मिक ज्ञान के द्वारा अधर्म का नाश करते हैं। इसी यथार्थ ज्ञान द्वारा अब विश्व में पुनः शांति स्थापित होगी। सर्वधर्मों और सर्वपंथो के लोग पुनः एक होकर आपस में प्रेम से रहा करेंगे। राजनेता भी निर्भिमानी, न्यायकारी तथा परमात्मा से डर कर कार्य करने वाले होंगे। जनता के सेवक बन कर निष्पक्ष कार्य किया करेंगे और धरती पर पुन: सतयुग जैसी स्थिति निर्माण होगी।

अवतरण दिवस के मात्र 5 दिन शेष हैं, करें कुछ विशेष

एक बहुत पुण्य पल आने वाला है 8 सितंबर को जिस दिन पूर्ण परमात्मा के “धरती पर अवतार” तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज ने अवतरण किया । मात्र 5 दिन शेष हैं अवतरण दिवस 8 सितंबर के, अपने कल्याण की कामना करने वाले सभी लोग बिना समय गँवाए तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज की शरण में आकर नाम दीक्षा लेकर गुरु मर्यादा में रहकर साधना करें। इस सतभक्ति साधना के करने से इस संसार में रहते हुए सर्वसुख प्राप्त होंगे, पाप कर्म काटेंगे और अंत समय में पूर्ण मोक्ष भी प्राप्त होगा। “सतलोक आश्रम यूट्यूब चैनल” पर परम संत के सत्संग श्रवण करें और “धरती पर अवतार” पुस्तक पढ़ें। पूर्ण परमात्मा के “धरती पर अवतार” तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के अवतरण दिवस 8 सितंबर को साधना टीवी चैनल पर प्रातः 9 बजे से 12 बजे तक विशेष आध्यात्मिक सत्संग श्रवण करें और आत्मिक लाभ उठायें।

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