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Ashram Web Series: आश्रम वेब सीरीज के निर्देशक प्रकाश झा पर हमला, हिन्दू संस्कृति को आहत करने का आरोप

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Ashram Web Series News: जानी मानी वेब सीरीज ‘आश्रम’, जो संस्कृति एवं धर्म को बदनाम करने के लिए कुख्यात है, के निर्देशक प्रकाश झा पर हमला हुआ है। प्रकाश झा पर हमला क्यों हुआ? ‘आश्रम’ वेब सीरीज में ऐसा क्या है जिससे लोगों की संवेदनाओं को ठेस पहुँची? आइए विस्तार से जानते हैं।

आश्रम’ वेब सीरीज (Ashram Web Series News): मुख्य बिंदु

  • ‘आश्रम’ वेब सीरीज के निर्देशक प्रकाश झा पर हुआ हमला
  • फ़िल्म जगत में इस बात से नाराजगी
  • आश्रम वेब सीरीज से क्यों पहुंची लोगों की संवेदनाओं को ठेस
  • भारत के अश्लीलता सम्बंधी कानून 
  • समाज की आवश्यकता एवं नई पीढ़ी को बॉलीवुड की देन

‘आश्रम’ वेब सीरीज (Ashram Web Series) बनाम बदनाम संस्कृति

वेब सीरीज आश्रम एक फ़िल्म न होकर नाटक श्रृंखला है। आश्रम की पटकथा के अनुसार एक नकली धर्मगुरु पर अंधभक्तों को विश्वास करते हुए दिखाया गया है। नकली धर्मगुरु अपने अनुयायियों से न केवल उनकी संपत्ति लूटता है बल्कि उन्हें जीवन भर आश्रम में रहने के लिए उकसाता है। इस फ़िल्म श्रृंखला में अश्लीलता चरम सीमा पर है। नाटकीय दृश्यों को वास्तविकता में बदल कर उच्छृंखलता का नग्न चित्रण किया है। फ़िल्म श्रृंखला के दो पार्ट रिलीज़ हो चुके हैं एवं तीसरा पार्ट आने की तैयारी में है। इस फ़िल्म के निर्देशक है प्रकाश झा एवं इसका लेखन किया है हबीब फैज़ल ने।

जाने माने अभिनेता बॉबी देओल नकली धर्मगुरु की मुख्य भूमिका में हैं तथा अन्य कलाकारों में अनुप्रिया गोयनका, चन्दन रॉय, अनुरिता झा, सचिन श्रॉफ, दर्शन कुमार, तुषार पांडे, त्रिधा चौधरी, अनिल रस्तोगी, अदिति पोहनकर आदि सम्मिलित हैं। फ़िल्म में न केवल आपत्तिजनक दृश्य हैं बल्कि हिन्दू धर्म की शिष्य गुरु परम्परा का खुलकर मज़ाक बनाया गया है और लोगों की आस्था के साथ खिलवाड़ किया है। राजनीति और धर्म के दांवपेंच दर्शाने के चक्कर मे फ़िल्म वास्तविकता से कोसों दूर है।

आश्रम वेब सीरीज (Ashram Web Series): नाराज फ़िल्म जगत की सरकार से गुहार 

धार्मिक एवं सांस्कृतिक भावनाओं को आहत करने वाली इस फ़िल्म के तीसरे पार्ट की शूटिंग के दौरान प्रकाश झा पर समिति विशेष द्वारा हिंदुओं की छवि खराब करने के आरोप में रविवार को स्याही फेंकी गई एवं सेट पर तोड़ फोड़ के साथ हमला भी किया गया। अभिनेताओं एवं निर्देशकों द्वारा सोशल मीडिया पर नाराजगी जाहिर की गई। प्रोड्यूसर्स गिल्ड ऑफ इंडिया एवं फेडरेशन ऑफ वेस्टर्न इंडिया सिने एम्पलाइज ने इस घटना की निंदा करते हुए सरकार से कार्यवाही की गुहार लगाई है। केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर को टैग कर इंसाफ की मांग फिल्मकार प्रतीश नन्दी द्वारा की गई।

आश्रम’ वेब सीरीज (Ashram Web Series): बॉलीवुड की समाज को देन

Ashram Web Series News: आज न केवल युवावर्ग बल्कि समाज का हर तबका एवं हर आयु वर्ग फिल्मों से प्रभावित है। बॉलीवुड ने समाज मे सुधार कार्य नहीं किए बल्कि सबसे अधिक रंगभेद, यौन शोषण, बाल यौन शोषण, अपराध, अश्लीलता समाज को प्रदान की है और समाज ने ये ना समझते हुए खुले हाथों से बॉलीवुड को अपनाया है। फ़िल्म जगत मनोरंजन से हटकर अब घर बाहर तक ही नहीं बल्कि निजी जीवन मे भी सम्मिलित हो चुका है जिसका बुरा असर अब आती नई नस्ल में स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है। ना केवल पटकथाओं बल्कि विभिन्न आपत्तिजनक दृश्यों एवं नग्नता और अश्लीलता का बोलबाला अब संवादों एवं धड़ल्ले से हर गली और नुक्कड़ पर बज रहे गानों में है। अब बॉलीवुड ही नहीं बल्कि अनेकों ऐसी वेब सीरीज हैं जो अब भी समाज में अपराध को जन्म देने में अव्वल हैं।

■ यह भी पढ़ें: बॉलीवुड के दुष्प्रभावों ने समाज को बना दिया है अपराधों का अड्डा

केवल आश्रम ही नहीं बल्कि अनेकों वेब सीरीज़ हैं जिनमें नग्नता, अश्लीलता अपनी चरम सीमा पर है। हैरत की बात यह है कि जिस कानून के तहत देश में अश्लील फिल्मों की वेबसाइट पर प्रतिबंध लगाया गया था अब उसी स्तर की फ़िल्में बिना रोक टोक विभिन्न प्लेटफार्म पर प्रसारित की जा रही हैं। इन पर न सेंसर बोर्ड की लगाम है और न ही किसी कानून की।

भारत में अश्लीलता (पाॅर्नोग्राफी) सम्बंधी कानून

मुख्य रूप से भारत के तीन अधिनियम सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000, भारतीय दंड संहिता 1860, यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (PCOS अधिनियम) 2012, पाॅर्नोग्राफी अंकुश रखते हैं। यहाँ उल्लेख करना अनिवार्य जान पड़ता है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 292 एवं 293 के तहत अश्लील वस्तुओं का बेचना, वितरण, प्रदर्शन या प्रसारण अवैध है। इसके बाद भी धड़ल्ले से जो वेब सीरीज बनकर अब सामने आ रही हैं एवं समाज के अधिकांश वर्ग द्वारा देखी जा रही हैं वे भारत मे कानूनी रूप से बंद पाॅर्न वेबसाइट्स की कमी पूरी कर रही हैं। गौरतलब है कि इन फिल्मों तक पहुंच बच्चा, युवा या बुजुर्ग कोई भी बड़े ही आराम से पहुंच कर सकता है। जिसके दुष्परिणाम बाल यौन अपराधों, महिलाओं से जुड़े यौन अपराधों एवं अन्य अपराधों के रूप में हमारे सामने आते हैं।

समाज को क्या चाहिए?

फ़िल्म जगत ने जिस हद तक समाज की आस्था, अस्मिता और विश्वास को आरम्भ से ठेस पहुंचाई है, अपराधों के नए तरीके दिए हैं, अश्लीलता, रंगभेद और बेशर्मी को बढ़ावा दिया है उस तरह से इसके द्वारा समाज को की गई हानि की भरपाई नहीं हो सकती। इसका पूर्णतः बैन यानी पूर्ण रूप से अंकुश लगाना समाज के लिए एवं हमारी संस्कृति के लिए श्रेयस्कर है। एक बड़े पर्दे पर प्रसारित होती चीजें एक विशाल जनसमुदाय को आकृष्ट करने एवं उसमें परिवर्तन लाने का सामर्थ्य रखती हैं। यदि यह परिवर्तन इतना हानिकारक है तो इसे यथाशीघ्र बंद करना उचित है। क्योंकि फिल्मी जगत ने न केवल अपराधों को बढ़ावा दिया बल्कि हमारी संस्कृति, धर्म, आस्था और अस्मिता को ठेस पहुंचाई है।

नई नस्ल में करें सुधार

आज छोटे छोटे बच्चे बेहूदे गाने गाते मिल जाएंगे जिन्हें उनके अर्थ भी नहीं पता हैं। वास्तव में युवा वर्ग जिसे ‘चिल’ नाम देकर अपना समय व्यतीत करता है वह केवल चिल नहीं है बल्कि उनका बहुमूल्य समय खा रहा है। अचंभे की बात यह है कि शिक्षित वर्ग भी इस तरह के प्रसारित बेहूदे अश्लील सामग्री को अपना समर्थन देता है। जिसे खुलापन और विकसित मानसिकता कहा जा रहा है वह दूसरे दरवाजे से संकीर्ण दायरों में कब घसीट ले जाती है पता भी नहीं चलता है। 

खुली मानसिकता थी मीरा की जिसने सामंतवाद पर तमाचा मारा और चल पड़ी थी भक्ति की राह में। खुली मानसिकता थी इतिहास की उन नायिकाओं की जिन्होंने अन्याय के विरोध में हाथों में हथियार उठाए। खुली मानसिकता है उन महिलाओं की जिन्होंने अशिक्षित होने के बावजूद कुटीर उद्योगों में मेहनत के बल पर सफलता हासिल की। खुली मानसिकता है उन माताओं और पिताओं की जिन्होंने बेटों की तरह बेटियों को शिक्षा की आज़ादी दी है। 

युवावर्ग को आवश्यकता है इस धन की

आज समाज का हर तीसरा युवा अवसाद से पीड़ित है। मानसिक स्वास्थ्य को तवज्जो देते हुए भी उससे उबर पाना मुश्किल हो रहा है। तनाव, बेरोजगारी, टूटन, संत्रास, असफलताएं इन्हें अपराध, अकर्मण्यता और मृत्यु की दुनिया मे धकेलती हैं। वास्तव में मनुष्य जीवन का उद्देश्य मोक्ष है। वर्तमान पीढ़ी का झुकाव इस ओर बेहद कम मिलता है जिसका खामियाजा वे अपना जीवन खोकर भुगत रहे हैं। ‘आश्रम’ वेब सीरीज जैसी फिल्मों ने उन्हें और नास्तिक बनाया है और भगवान की सत्ता पर अविश्वास कराया है। 

आज आवश्यक है कि उनकी शिक्षा और तर्कबुद्धि को धर्म की ओर मोड़ा जाए। यह आसान कभी नहीं था इसलिए गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में तत्वदर्शी सन्त की खोज करने और उसकी शरण में जाने के लिए कहा है। वर्तमान में पूरे विश्व में एकमात्र तत्वदर्शी सन्त हैं जगतगुरु सन्त रामपाल जी महाराज जिन्होंने पूरे तर्कों को सामने रखकर, धमग्रन्थों के आधार पर पूर्ण वैज्ञानिक तत्वज्ञान पहली बार हमारे समक्ष रखा है। अधिक जानकारी के लिए निःशुल्क पढ़ें पवित्र पुस्तक जीने की राह और बचे इन सब बुराइयों से।।

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