अजामेल (अजामिल) की कथा: काशी शहर में एक अजामेल (अजामिल) नामक व्यक्ति रहता था। वह ब्राह्मण कुल में जन्म था फिर भी शराब पीता था। वैश्या के पास जाता था। वैश्या का नाम मैनका था, वह बहुत सुंदर थी। परिवार तथा समाज के समझाने पर भी अजामेल नहीं माना तो उन दोनों को नगर से निकाल दिया गया। वे उसी शहर से एक मील (1.7 किमी.) दूर वन में कुटिया बनाकर रहने लगे। दोनों ने विवाह कर लिया। अजामेल स्वयं शराब तैयार करता था। जंगल से जानवर मारकर लाता और मौज-मस्ती करता था। गरीब दास जी महाराजजी हमे बताते है कि
ज्यूं बच्छा गऊ की नज़र में, यूं सांई कू संत।
भक्तों के पछि फिरै, भक्त वच्छल भगवन्त।।
जैसे गाय अपने बच्चे पर अपनी दृष्टि रखती है। बच्चा भागता है तो उसके पीछे भागती है तथा अन्य पशुओं से उसकी रक्षा करती है। इसी प्रकार परमेश्वर कबीर जी अपने भक्त के साथ रहते है। यदि वर्तमान जन्म में उस पूर्व जन्म के भक्त ने दीक्षा नहीं ले रखी तो भी परमेश्वर जी उसके पूर्व जन्म के भक्ति कर्मों के पुण्य से उनके लिए चमत्कार करके रक्षा करते हैं।
अजामेल (अजामिल) बनाम श्याम सुंदर और मेनका बनाम राम बाई के पूर्व जन्म की कथा
अजामेल पूर्व जन्म में विष्णु जी का परम भक्त था। ब्रह्मचर्य का पूर्ण पालन करता था। उसकी साधक समाज में पूरी इज्जत थी। बचपन से ही घर त्यागकर साधुओं में रहता था। वैश्या भी पूर्व जन्म में विष्णु जी की परम भक्त थी। ब्रह्मचर्य का पूर्ण पालन करती थी। पर पुरूष की ओर कभी दोष दृष्टि से नहीं देखती थी। इस लक्षण से साधक समाज में उनका विशेष सम्मान था।
साधकों में ध्यान समाधि लगाने का विशेष प्रचलन है जो केवल काल प्रेरणा है। यह एक प्रकार का हठ योग है, जो गीता तथा वेदों में मना किया है। एक दिन श्याम सुंदर (अजामेल का पूर्व जन्म का नाम) लेटकर समाधि लगाए हुए था। शरीर पर केवल एक कोपीन (लंगोट जो एक छः इंच चौड़ा तथा दो फुट लंबा कपड़े का टुकड़ा होता है जो केवल गुप्तांग को ढ़कता है। तागड़ी में लपेटा जाता है। तागड़ी=बैल्ट की तरह एक मोटा धागा बाँधा जाता है, उसे तागड़ी कहते हैं।) पहने हुए था।
अजामेल की कथा (Ajamil Story): सर्दी का मौसम था। दिन के समय धूप थी। उस समय श्याम सुंदर वैष्णव ने समाधि लगाई थी। रात्रि तक समाधि नहीं खुली। उस समय एक तीर्थ पर मेला लगा था। रामबाई (मैनका का पूर्व जन्म का नाम) ने देखा, यह साधु इतनी सर्दी में निःवस्त्र सोया है, नींद में ठण्ड न लग जाए। यह मर न जाए। यह विचार करके उसके ऊपर लेट गई और अपने कम्बल से अपने ऊपर से उस साधु को भी ढ़क लिया।
अजामेल की कथा: श्याम सुंदर और राम बाई ने दिया एक दूसरे को श्राप!
अन्य व्यक्तियों को लगा कि कोई अकेला व्यक्ति सो रहा है। भोर भऐ (सूर्य उदय होते-होते) श्याम सुंदर की समाधि खुली। उसने उठने की कोशिश की, तब रामबाई उठ खड़ी हुई। उस समय एक कम्बल से स्त्री-पुरूष निकले देखकर अन्य साधक भी उस ओर ध्यान से देखने लगे। श्याम सुंदर ने साधक समाज में अपने मान-सम्मान पर ठेस जानकर अपने को पाक-साफ सिद्ध करने के लिए रामबाई से कहा कि हे रंडी (वैश्या)! तूने मेरा धर्म नष्ट किया है। मैं तो अचेत था, तूने उसका लाभ उठा लिया। तू वैश्या बनेगी। अन्य साधु भी निकट आकर उनकी बातें सुनने लगे।
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रामबाई ने कहा कि हे भाई जी! श्राप देने से पहले सच्चाई तो जान लेते। आप निःवस्त्र सर्दी में ठिठुर रहे थे। आप अचेत थे। आपके जीवन की रक्षा के लिए तथा आपको ताप (गर्मी) देने के लिए मैं आपके ऊपर लेटी थी। कम्बल बहुत पतला है, चद्दर से भी पतला है। इसलिए मुझे इस पर विश्वास नहीं हुआ। एक बहन ने भाई की रक्षा के लिए यह बदनामी मोल ली है। आपने इसके फल में मुझे बद्दुआ (श्राप) दी है। रामबाई गुस्से में श्याम सुंदर से बोली सुन ले तू ! अगले जन्म में तू भडु़वा बनेगा। वैश्याओं के पास जाया करेगा। दोनों ने एक-दूसरे को श्राप देकर अपनी भक्ति का नाश कर लिया।
श्राप के बाद हुआ दोनो को अपनी गलती का अहसास
अजामेल की कथा: जब श्याम सुंदर को सच्चाई पता चली और अपना अंग देखा, सुरक्षित था तो रामबाई से बहुत हमदर्दी हो गई। अपनी गलती की क्षमा याचना की। विशेष प्रेम करने लगा। अधिक मोह हो गया। रामबाई भी श्यामसुंदर से विशेष प्यार करने लगी। वह प्यार एक मित्रवत था, परंतु मोह भी एक जंजीर (बंधन) है। मृत्यु उपरांत दोनों का जन्म काशी नगर में हुआ। श्याम सुंदर का नाम अजामेल था। ब्राह्मण कुल में जन्म हुआ। रामबाई का जन्म भी ब्राह्मण कुल में हुआ। उसका नाम मैनका था। श्राप संस्कारवश से चरित्रहीन हो गई। वैश्या बन गई और श्राप संस्कारवश अजामेल शराब का आदी हो गया।
श्रापवश अजामेल वैश्या के पास जाने लगा
अजामेल, वैश्या मैनका के पास जाने लगा। दोनों को नगर से निकाल दिया गया। दोनों लगभग 40- 45 वर्ष की आयु के हो गए थे। संतान कोई नहीं थी।
गरीबदास जी ने बताया है कि :-
गोता मारूं स्वर्ग में, जा पैठूं पाताल। गरीबदास ढूंढ़त फिरूं, हीरे मानिक लाल।
कबीर, भक्ति बीज विनशै नहीं, आय पड़ो सो झोल। जे कंचन बिष्टा पड़े, घटै न ताका मोल।।
भावार्थ :- कबीर परमेश्वर जी ने संत गरीबदास जी को बताया कि, मैं अपनी अच्छी आत्माओं को खोजता फिरता हूँ। स्वर्ग, पृथ्वी तथा पाताल लोक में वो कहीं भी हों, मैं वहीं पहुँच जाता हूँ। उनको पुनः भक्ति की प्रेरणा करता हूँ। मनुष्य जन्म के भूले उद्देश्य की याद दिलाकर भक्ति करने को कहता हूँ। वे अच्छी आत्माएँ पूर्व के किसी जन्म में मेरी शरण में आई होती हैं, परंतु पुनः जन्म में कोई संत न मिलने के कारण वे भक्ति न करके या तो धन संग्रह करने में व्यस्त हो जाती हैं या बुराईयों में फँसकर शराब, माँस खाने-पीने में जीवन नष्ट कर देती हैं या फिर अपराधी बनकर जनता के लिए दुःखदाई बनकर बेमौत मारी जाती हैं। उनको उस दलदल से निकालने के लिए मैं कोई न कोई कारण बनाता हूँ।
कबीर साहेब से दीक्षा प्राप्त भगत सोने जैसा मूल्यवान हो जाता है।
कुछ आत्माएँ तत्त्वज्ञान के अभाव से बुराईयों रूपी कीचड़ में गिर जाती हैं, परंतु जैसे कंचन / स्वर्ण यानी टट्टी में गिर जाए तो भी उसका मूल्य कम नहीं होता। टट्टी (बिष्टा) से निकालकर साफ कर लेने पर उसी मोल बिकता है। इसी प्रकार जो जीव मानव शरीर में एक बार कबीर परमेश्वर जी की शरण में किसी जन्म में आ जाता है, प्रथम, द्वितीय या तीनों मंत्रों में से कोई भी प्राप्त कर लेता है। किसी कारण से नाम खंडित हो जाता है, मृत्यु हो जाती है तो उसको वे नहीं छोड़ते। कलयुग में सब जीवो को पार करते हैं। यदि कलयुग में भी कोई उपदेशी रह जाता है तो सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग में उन्हीं की भक्ति से कबीर साहेब उन्हे बिना नाम लिए, बिना धर्म-कर्म किए आपत्ति आने पर अनोखी लीला करके रक्षा करते है। उसको फिर भक्ति पर लगाते है। उनमें परमात्मा के प्रति आस्था बनाए रखते है।
अजामेल की कथा: अजामेल के घर नारद जी अतिथि रूप में आए
एक दिन नारद जी काशी में आए तथा किसी से पूछा कि मुझे अच्छे भक्त का घर बताओ। मैंने रात्रि में रूकना है। मेरा भजन बने, उसको सेवा का लाभ मिले। उस व्यक्ति को मज़ाक सूझा और कहा कि आप सामने कच्चे रास्ते जंगल की ओर जाओ। वहाँ एक बहुत अच्छा भक्त रहता है। भक्त तो एकान्त में ही रहते हैं ना। आप कृपया जाओ। लगभग एक मील (आधा कोस) दूर उसकी कुटी है। गर्मी का मौसम था। सूर्य अस्त होने में एक घंटा शेष था।
मैनका नारद जी को अतिथि रूप में देख अति प्रसन्न हुई
अजामेल की कथा (Ajamil Story): नारद जी को द्वार पर देखकर मैनका अति प्रसन्न हुई क्योंकि प्रथम बार कोई मनुष्य उनके घर आया था, वह भी ऋषि। पूर्व जन्म के भक्ति-संस्कार अंदर जमा थे, उन पर जैसे बारिश का जल गिर गया हो, ऐसे एकदम अंकुरित हो गए। मैनका ने ऋषि जी का अत्यधिक सत्कार किया। कहा कि न जाने कौन-से जन्म के शुभ कर्म आगे आए हैं जो हम पापियों के घर भगवान स्वरूप ऋषि जी आए हैं। ऋषि जी के बैठने के लिए एक वृक्ष के नीचे चटाई बिछा दी। उसके ऊपर मृगछाला बिछाकर बैठने को कहा। नारद जी को पूर्ण विश्वास हो गया कि वास्तव में ये पक्के भक्त हैं। बहुत अच्छा समय बीतेगा।
अजामेल जंगल से तीतर मारकर लाया
कुछ देर में अजामेल आया और जो तीतर-खरगोश मारकर लाया था, वह लाठी में टाँगकर आँगन में प्रवेश हुआ। अपनी पत्नी मैनका से कहा कि ले रसोई तैयार कर। सामने ऋषि जी को बैठे देखकर दण्डवत् प्रणाम किया और अपने भाग्य को सराहने लगा। कहा कि ऋषि जी! मैं स्नान करके आता हूँ, तब आपके चरण चम्पी करूँगा। यह कहकर अजामेल निकट के तालाब पर चला गया। नारद जी ने मैनका से पूछा कि देवी! यह कौन है? उत्तर मिला कि यह मेरा पति अजामेल है।
नारद जी को समझ नही आया कि आखिर ये हो क्या रहा है।
नारद जी को विश्वास नहीं हो रहा था कि यह क्या चक्रव्यूह है? विचार तो भक्तों से भी ऊपर, परंतु कर्म कैसे? नारद जी ने कहा कि देवी! सच-सच बता, माजरा क्या है? शहर में मैंने पूछा था कि किसी अच्छे भक्त का घर बताओ तो आपका एकांत स्थान वाला घर बताया था। आपके व्यवहार से मुझे पूर्ण संतोष हुआ कि सच में भक्तों के घर आ गया हूँ। यह माँसाहारी आपका पति है तो आप भी माँसाहारी हैं। मेरे साथ मज़ाक हुआ है। ऋषि नारद उठकर चलने लगा। मैनका ने चरण पकड़ लिये। तब तक अजामेल भी आ गया। अजामेल भी समझ गया कि ऋषि जी गलती से आये हैं। अब जा रहे हैं।
अजामेल और मैनका ने नारद जी के चरण पकड़ लिए
पूर्व के भक्ति संस्कार के कारण ऋषि जी के दोनों ने चरण पकड़ लिए और कहा कि हमारे घर से ऋषि भूखा जाएगा तो हमारा नरक में वास होगा। ऋषि जी! आपको हमें मारकर हमारे शव के ऊपर पैर रखकर जाना होगा। नारद जी ने कहा कि आप तो अपराधी हैं। तुम्हारा दर्शन भी अशुभ है। अजामेल ने कहा कि हे स्वामी जी! आप तो पतितों का उद्धार करने वाले हो। हम पतितों का उद्धार करें। हमें कुछ ज्ञान सुनाओ। हम आपको कुछ खाए बिना नहीं जाने देंगे। नारद जी ने सोचा कि कहीं ये मलेच्छ यहीं काम-तमाम न कर दें यानि मार न दें, ये तो बेरहम होते हैं, बड़ी संकट में जान आई।
नारद जी ने दोनों से वचन दिलवाया कि जीव हत्या नहीं करोगे
कुछ विचार करके नारद जी ने कहा कि यदि कुछ खिलाना चाहते हो तो प्रतिज्ञा लो कि कभी जीव हिंसा नहीं करोगे। माँस-शराब का सेवन नहीं करेंगे। दोनों ने एक सुर में हाँ कर दी। सौगंद है गुरूदेव! कभी जीव हिंसा नहीं करेंगे, कभी शराब-माँस का सेवन नहीं करेंगे। नारद जी ने कहा कि पहले यह माँस दूर डालकर आओ और शाकाहारी भोजन पकाओ। तुरंत अजामेल वह माँस दूर जंगल में डाल आया। मैनका ने कुटी की सफाई की। फिर पानी छिड़का। चूल्हा लीपा। अजामेल बोला कि मैं शहर से आटा लाता हूँ। मैनका, तुम तब तक सब्जी बनाओ। नारद जी की जान में जान आई। भोजन खाया।
अजामेल और मैनका ने नारद जी की खूब सेवा की
अजामेल (अजामेल की कथा (Ajamil Story): गर्मी का मौसम था। एक वृक्ष के नीचे नारद जी की चटाई बिछा दी। स्वयं दोनों बारी-बारी सारी रात पंखे से हवा चलाते रहे। नारद जी बैठकर भजन करने लगे। फिर कुछ समय पश्चात् आँखें खोली तो देखा कि दोनों अडिग सेवा कर रहे हैं। नारद जी ने कहा कि आप दोनों भक्ति करो। राम का नाम जाप करो। दोनों ने कहा कि ऋषि जी! भक्ति नहीं कर सकते। रूचि ही नहीं बनती और सेवा बताओ।
परमेश्वर कबीर जी ने कहा है कि :-
कबीर, पिछले पाप से, हरि चर्चा ना सुहावै।
कै ऊँघै कै उठ चलै, कै औरे बात चलावै।।
तुलसी, पिछले पाप से, हरि चर्चा ना भावै।
जैसे ज्वर के वेग से, भूख विदा हो जावै।।
भावार्थ :- जैसे ज्वर यानि बुखार के कारण रोगी को भूख नहीं लगती। वैसे ही पापों के प्रभाव से व्यक्ति को परमात्मा की चर्चा में रूचि नहीं होती। या तो सत्संग में ऊँघने लगेगा या कोई अन्य चर्चा करने लगेगा। उसको श्रोता बोलने से मना करेगा तो उठकर चला जाएगा। यही दशा अजामेल तथा मैनका की थी।
नारद जी के आशीर्वाद से उन्हें पुत्र प्राप्त हुआ
नारद जी ने कहा कि हे अजामेल! एक आज्ञा का पालन अवश्य करना। आपकी पत्नी को दसवें महीने एक लड़का उत्पन्न होगा। उसका नाम ‘नारायण’ रखना। ऋषि जी का उद्देश्य था कि यह कर्महीन दंपति इसी बहाने परमात्मा को याद कर लेगा तो कल्याण हो जाएगा। ऐसा कहकर ऋषि जी चले गए। अजामेल को पुत्र प्राप्त हुआ। उसका नाम नारायण रखा। अजामेल को पुत्र में अत्यधिक मोह हो गया, पुत्र ज़रा भी इधर-उधर हो जाता तो अजामेल उसे पुकारने लगता। अरे नारायण आजा बेटा, करने लग जाता।
एक दिन अजामेल की अचानक मृत्यु हो जाना
नारद जी ने जाने से पहले कहा था कि अंत समय में यदि यम के दूत जीव को लेने आ जाएँ तो नारायण कहने से छोड़कर चले जाते हैं। भगवान के दूत आकर ले जाते हैं। एक दिन अचानक अजामेल की मृत्यु हो गई। यम के दूत आ गए। उनको देखकर कहा कि कहाँ गया नारायण बेटा, आजा।
क्या नारायण के जाप करने से अजामेल की रक्षा हुई?
अजामेल की कथा (Ajamil Story): पौराणिक लोग कहते हैं कि अजामेल के नारायण कहते ही भगवान विष्णु के दूत आए और यमदूतों से कहा कि इसकी आत्मा को हम लेकर जाएँगे। इसने नारायण को पुकारा है। यमदूतों ने कहा कि धर्मराज का हमारे को आदेश है इसे पेश करने का। इसी बात पर दोनों का युद्ध हुआ। भगवान के दूत अजामेल को ले गए। वास्तव में यमदूत धर्मराज के पास लेकर गए। धर्मराज ने अजामेल का खाता खोला तो उसकी चार वर्ष की आयु शेष थी। फिर देखा कि इसी काशी शहर में दूसरा अजामेल है। उसके पिता का अन्य नाम है। उसको लाना था। उसे लाओ। इसको तुरंत छोड़कर आओ।
अजामेल की मृत्यु के पश्चात् मैनका विलाप करने लगी
अजामेल की मृत्यु के पश्चात् उसकी पत्नी रो-रोकर विलाप कर रही थी। विचार कर रही थी कि अब इस जंगल में कैसे रह पाऊँगी। बच्चे का पालन कैसे करूंगी? यह क्या बनी भगवान? वह रोती-रोती उसकी चिता के लिए लकड़ियां इकट्ठी कर रही थी। कुटी के पास में शव को खींचकर ले गई। इतने में अजामेल उठकर बैठ गया। कुछ देर तो शरीर ने कार्य ही नहीं किया। कुछ समय के बाद अपनी पत्नी से कहा कि यह क्या कर रही हो? पत्नी की खुशी का ठिकाना नहीं था। कहा कि आपकी मृत्यु हो गई थी। अजामेल ने बताया कि यम के दूत मुझे धर्मराज के पास लेकर गए। मेरा खाता देखा तो मेरी चार वर्ष की आयु शेष थी। मुझे छोड़ दिया और काशी शहर से एक अन्य अजामेल को लेकर जाएँगे, उसकी मृत्यु होगी।
अजामेल को समझ आया कि सतभक्ति करना ज़रूरी है
अगले दिन अजामेल शहर गया तो दूसरे अजामेल के शव को शमशान घाट ले जा रहे थे, तुरंत वापिस आया। अपनी पत्नी से बताया कि वह अजामेल मर गया है, उसका अंतिम संस्कार करने जा रहे हैं। अब अजामेल को भय हुआ कि भक्ति नहीं की तो ऊपर बुरी तरह पिटाई हो रही थी, नरक में हाहाकार मचा था। नारद जी आए तो अजामेल ने अपनी पूरी कथा गुरू जी को कह सुनाई! मेरे साथ ऐसा हुआ।
मेरी आयु चार वर्ष की बताई थी। एक वर्ष कम हो चुका है। बच्चा छोटा है, मेरी आयु बढ़ा दो। नारद जी ने कहा कि नारायण-नारायण जपने से किसी की आयु नहीं बढ़ती। जो समय धर्मराज ने लिखा है, उससे एक श्वांस भी घट-बढ़ नहीं सकता।
अजामेल का मोक्ष भी तब हुआ, जब वह पूर्ण परमात्मा के प्रति समर्पित हुआ
धन सतगुरु दाता धनी, दई बंदगी दान।
अजामेल से उधरे,भगति बंदगी पेस।।
नारद जी ने कहा कि इस बचे हुए समय में खूब नारायण-नारायण करले। नारद जी चले गए। अजामेल की चिंता और बढ़ गई कि भक्ति का लाभ क्या हुआ? दो वर्ष जीवन शेष था। परमेश्वर कबीर जी एक ऋषि वेश में अजामेल के घर प्रकट हुए। अजामेल ने श्रद्धा से ऋषि का सम्मान किया। अपनी समस्या बताई। ऋषि रूप में सतपुरूष जी ने कहा कि आप मेरे से दीक्षा लो। आपकी आयु मैं बढ़ा दूँगा। लेकिन अजामेल ने नारद जी से कथा सुनी थी कि जो आयु लिखी है, वह बढ़-घट नहीं सकती।
नारायण नाम त्यागकर किया कबीर साहेब द्वारा दिए सतमंत्रो का जाप
अजामेल (अजामेल की कथा (Ajamil Story): ने वार्ता सुनकर विचार किया कि दीक्षा लेकर देख लेते हैं। दोनों पति-पत्नी ने दीक्षा ले ली। नारायण नाम का जाप त्याग दिया। नए गुरू जी द्वारा दिया नाम जाप किया। मृत्यु वाले वर्ष का अंतिम महीना आया तो खाना कम हो गया, परंतु मंत्र का जाप निरंतर किया। अंतिम दिन भोजन भी नहीं खाया, मंत्र जाप दृढ़ता से करता रहा। वर्ष पूरा हो गया। एक महीना ऊपर हो गया, परंतु भय फिर भी बरकरार था। ऋषि वेश में परमेश्वर आए। दोनों पति-पत्नी देखते ही दौड़े-दौड़े आए। चरणों में गिर गए। गुरूदेव आपकी कृपा से जीवन मिला है। आप तो स्वयं परमेश्वर हैं।
परमेश्वर कबीर जी ने कहा कि :-
मासा घटे ना तिल बढ़े, विधना लिखे जो लेख।
साच्चा सतगुरू मेट कर, ऊपर मारे मेख।।
अब आपकी आयु के लेख मिटाकर कील गाड़ दी है। जब मैं चाहूँगा, तब तेरी मृत्यु होगी। दोनों मिलकर भक्ति करो। अपने पुत्र को भी उपदेश दिलाओ। पुत्र को उपदेश दिलाया। भक्ति करके मोक्ष के अधिकारी हुए।
हमारे शास्त्रों ने भी दी है कबीर साहेब के ज्ञान की गवाही
गरीब, गगन मंडल में रहत है, अविनाशी आप अलेख। जुगन जुगन सत्संग है, धरि धरि खेले भेख।।
भावार्थ :- जैसा कि ऋग्वेद मण्डल नं. 9 सूक्त 86 मंत्र 26 और 27, मण्डल नं. 9 सूक्त 82 मंत्र 1 और 2, मण्डल नं. 9 सूक्त 54 मंत्र 3, मण्डल नं. 9 सूक्त 96 मंत्र 16 और 20, मण्डल नं. 9 सूक्त 94 मंत्र 2, मण्डल नं. 9 सूक्त 95 मंत्र 1, मण्डल नं. 9 सूक्त 20 मंत्र 1 में कहा है कि परमेश्वर आकाश में सर्व भुवनों (लोकों) के ऊपर के लोक में तीसरे भाग में विराजमान है। वहाँ से चलकर पृथ्वी पर आता है। अपने रूप को सरल करके यानि अन्य वेश में हल्के तेजयुक्त शरीर में पृथ्वी पर प्रकट होता है। अच्छी आत्माओं को यथार्थ आध्यात्म ज्ञान देने के लिए आता है। अपनी वाक (वाणी) द्वारा ज्ञान बताकर भक्ति करने की प्रेरणा करता है।
कवियों की तरह आचरण करता हुआ विचरण करता है। अपनी महिमा के ज्ञान को कवित्व से यानि दोहों, शब्दों, चौपाईयों के माध्यम से बोलता है। जिस कारण से प्रसिद्ध कवि की उपाधि भी प्राप्त करता है। यही प्रमाण संत गरीबदास जी ने इस अमृतवाणी में दिया है कि परमेश्वर गगन मण्डल यानि आकाश खण्ड (सच्चखण्ड) में रहता है। वह अविनाशी है, अलेख जिसको सामान्य दृष्टि से नहीं देखा जा सकता। सामान्य व्यक्ति उनकी महिमा का उल्लेख नहीं कर सकता। वह वहाँ से चलकर आता है। प्रत्येक युग में प्रकट होता है। भिन्न-भिन्न वेश बनाकर सत्संग करता है यानि तत्त्वज्ञान के प्रवचन सुनाता है।
कबीर साहेब ही है मोक्षदाता
सतयुग में सत सुकृत कह टेरा, त्रेता नाम मुनीन्द्र मेरा।
द्वापर में करूणामय कहाया, कलयुग नाम कबीर धराया।।
गरीब, सतगुरू पुरूष कबीर हैं, चारों युग प्रवान।
झूठे गुरूवा मर गए, हो गए भूत मसान।।
गरीब, काया माया खंड है, खंड राज और पाठ।
अमर नाम निज बंदगी, सतगुरु सें भइ साट।।
सरलार्थ :- संत गरीबदास जी ने बताया है कि काया यानि शरीर तथा माया यानि धन, राजपाट यानि राज्य सब खण्ड (नाश) हो जाता है। केवल निज नाम (वास्तविक भक्ति मंत्र) के नाम की साधना सतगुरू से लेकर की गई कमाई (भक्ति धन) अमर है।
गरीब, अमर अनाहद नाम है, निरभय अपरंपार।
रहता रमता राम है, सतगुरु चरण जुहार।।
सरलार्थ :- परमात्मा रमता यानि विचरण करता हुआ चलता-फिरता है। वह सतगुरू रूप में मिलता है। उसके चरणों में प्रणाम करके भक्ति की भीख प्राप्त करें। उनके द्वारा दिया गया नाम अनाहद (सीमा रहित) अमर (अविनाशी) मोक्ष देने वाला है। वह नाम प्राप्त कर जो निर्भय बनाता है। उसकी महिमा का कोई वार-पार नहीं है अर्थात् वास्तविक मंत्र की महिमा असीम है।
कौन है वर्तमान में मोक्ष दाता?
सभी पाठकजनों से प्रार्थना है कि इस सत्य लेख से प्रेरणा लेते हुए शीघ्र अति शीघ्र कबीर परमात्मा की शरण ग्रहण करें और जैसा की ऊपर बताया गया है कि वो पूर्ण परमात्मा कलयुग में कबीर नाम से धरती पर आते हैं और भक्ति की चाह रखने वाली अच्छी आत्माओं को मिलते हैं और सतभक्ति दान देकर मोक्ष प्रदान करते हैं। इस वर्तमान समय में कबीर परमेश्वर संत रामपाल जी महाराज जी रूप में धरती पर अवतरित हैं। आप सभी उनके सत्संगों के माध्यम से सतज्ञान को समझकर परमात्मा की पहचान कर सकते है। संत रामपाल जी महाराज जी से निशुल्क नामदीक्षा ले और अपना कल्याण करवाए।