HomeBlogsरामायण: Ramayana में राम जी की समस्या ऋषि मुनीन्द्र जी ने कैसे...

रामायण: Ramayana में राम जी की समस्या ऋषि मुनीन्द्र जी ने कैसे की थी हल?

Date:

आज हम आप को रामायण के बारे में Ramayana Full True Story in Hindi के माध्यम से विस्तार से बताएंगे, जैसे रामायण में कितने कांड हैं?, सीता अपहरण, रामायण कथा, शांता कौन थी?, रामसेतु किसने बनवाना, लव-कुश के जन्म की कथा, आदि.

दशरथ पुत्र राम के जीवन चरित्र को संस्कृत भाषा में महर्षि वाल्मीकि द्वारा महाकाव्य रूप में लिखा गया जिसे रामायण कहते हैं। रामायण राम के जीवन चरित्र और घटनाओं पर आधारित काव्य है। जिसमें राम के आरंभिक जीवन से लेकर सरयू नदी में जलसमाधि लेने तक सभी घटनाएं लिखी हुई हैं। भारत में श्री राम अत्यंत पूज्यनीय हैं तथा विश्व के कई देशों में भी आदर्श पुरुष के रूप में पूजे जाते हैं।

Ramayana Full Story in Hindi: रामायण का समाज को देन

रामायण संकलन है राम के जीवनकाल से जुड़ी घटनाओं का जिसमें गुरू शिक्षा, विवाह, वनवास, मित्रता, युद्ध, अग्नि परीक्षा, विछोह, परित्याग, अविश्वास, मान-अपमान, जीत, दुख, दीवाली और जलसमाधि तक का जीवंत चित्रण पढ़ने को मिलता है। राम एक ऐसा चरित्र है जिसका जीवन मर्यादा, मूल्यों, सीख, और मानवीय एहसासों से भरा रहा।

राम के लिए पिता के शब्द पत्थर की लकीर थे। गुरु के वचन अमल करने योग्य , माताओं का दुलार बांटने योग्य , भाईयों के प्रति दुलार था, हनुमान के लिए मित्रता और सीता के प्रति अथाह प्रेम था। राम में वह सभी गुण थे जो किसी भी अच्छे चरित्रवान व्यक्ति /मनुष्य में हो सकते हैं। राम का चरित्र हमें जीवन को मर्यादाओं में रह कर जीने की सीख भी देता है।

वाल्मीकि रामायण के बाद राम के जीवन पर रामचरितमानस 16 वीं शताब्दी के भारतीय भक्ति कवि गोस्वामी तुलसीदास (1532-1623) द्वारा रचित अवधी भाषा में एक महाकाव्य कविता है। रामचरितमानस शब्द का शाब्दिक अर्थ है “राम के कर्मों की झील”। वर्तमान में इसे हिंदी साहित्य की सबसे बड़ी कृतियों में से एक माना जाता है।

रामायण में कितने कांड हैं?

24 हजार श्लोक, 500 उपखंड, तथा 7 कांड हैं जो निम्नलिखित हैं:-

  1. बालकाण्ड
  2. अयोध्या काण्ड
  3. अरण्य काण्ड
  4. किष्किंधा कांड
  5. सुंदर काण्ड
  6. लंका कांड,
  7. उत्तरकाण्ड उपरोक्त्त सभी कांड वाल्मीकि जी द्वारा लिखित रामायण में हैं।

इसी प्रकार तुलसी जी कृत रामचरितमानस में भी सात कांड हैं, परंतु इसमें दोहे, चौपाइयां तथा छंद हैं और युद्ध कांड की जगह लंका कांड है। इसमें 9,388 चौपाइयां, 1,172 दोहे, 87 सोरठे, 47 श्लोक और 208 छंद हैं। यहां हम जानेंगे दशरथ पुत्र राम से पहले भी कौन राम था जो‌ अजन्मा और अविनाशी है और साथ ही में अवलोकन करेंगे कि दशरथ के पुत्र राम को संसार भगवान क्यों मानता है?

शांता कौन थी?

अयोध्या पति राजा राम की सबसे बड़ी बहन शांता थी , दशरथ और कौशल्या शांता के माता-पिता थे। शांता श्रृंगी ऋषि के साथ प्रेम प्रसंग करके चली गई थी। शांता का विवाह श्रृंगी ऋषि के साथ करना राजा दशरथ की मजबूरी थी। अंगदेश के राजा रोमपाद और वर्शिनी (कौशल्या की बड़ी बहन) ने शांता को गोद लिया। कुल की लाज रह जाए इसलिए ही राजा दशरथ ने रोमपाद को शांता को गोद लेकर उसका कन्या दान करने को कहा था।

ओउम राम निरंजन राया , निरालम्ब राम सो न्यारा ।
सगुन राम विष्णु जग आया, दसरथ के पुत्र कहाया ॥

शांता के जाने के बाद राजा दशरथ की कोई औलाद नहीं थी। राजा दशरथ की तीन पत्नियाँ (कौशल्या, सुमित्रा तथा कैकेयी) थीं । बेटी शांता के जाने के बाद से राजा दशरथ बहुत परेशान रहते थे। इसी कारण उन्होंने पुत्र प्राप्ति के लिए पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाया था। इस यज्ञ को मुख्य रूप से ऋषि ऋष्यश्रृंग (संस्कृत में नाम) ने संपन्न किया था।

Ramayana Full Story in Hindi

यज्ञ समाप्ति के बाद ऋषि ने दशरथ की तीनों पत्नियों को एक-एक कटोरी खीर खाने को दी। खीर खाने के कुछ महीनों बाद ही तीनों रानियाँ गर्भवती हो गयीं। ठीक 9 महीनों बाद राजा दशरथ की सबसे बड़ी रानी कौशल्या ने राम को ( राम भगवान विष्णु के सातवें अवतार थे), कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने जुड़वा बच्चों लक्ष्मण और शत्रुघ्न को जन्म दिया।

जिस प्रकार किसी फिल्म में हीरो, हीरोइन अपना किरदार निभाते हैं उसी प्रकार हर युग (सतयुग, त्रेता, द्वापर तथा कलयुग) में जीव अपने कर्म आधार पर अपना किरदार निभाने हेतु पृथ्वी पर जन्म लेते हैं चाहे वह स्वर्ग का राजा ही क्यों न हो। पिछले कर्मों के फलस्वरूप सबको अपने कर्मों का फल भोगना ही पड़ता है तथा चाहकर भी इस काल रूपी ब्रह्म के जाल से बच नहीं सकते।

ये अरहट का कुंआ लोई, या गल बंध्या है सब कोई।
कीड़ी कुंजर और अवतारा, अरहट डोर बंधे कई बारा।।

चतुर्भुजी भगवान कहावें, हरहट डोर बंधे सब आवें।
यो है खोखापुर का कुंआ, या में पड़ा सो निश्चय मुवा।।

माया (दुर्गा) और काल के संभोग से उत्पन्न होकर करोड़ों गोविंद (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) जन्म और मृत्यु के फेरे लगा चुके हैं। विष्णु भगवान राम का अवतार लेकर पृथ्वी पर आए थे। फिर कर्म बंधन में फंसे होने के कारण अपने कर्मों को भोगकर 84 लाख योनियों में चले गए।

■ परमात्मा कबीर साहिब की वाणी है:-

“इक लेवा एक देवा दूतम, कोई किसी का पिता ना पूतम। ऋण संबंध जुड़े सब ठाठा, अंत समय सब बारां बाठा”।।

राम ,सीता तथा लक्ष्मण का वनवास गमन

राम जी भगवान विष्णु जी के सातवें अवतार माने जाते हैं। ब्रह्मा, विष्णु, महेश, इनका भी आविर्भाव तथा तिरोभाव होता है। भगवान होने के बावजूद कर्म आधार पर विष्णु जी ने मनुष्य जन्म प्राप्त किया तथा करोड़ों कष्ट झेले।

ram-lakshma-sita-ka-banvash

नारद जी के श्राप वश ही विष्णु जी को त्रेतायुग में राम बनकर जन्म लेना पड़ा और विवाह होते ही वनवास गमन, फिर रावण द्वारा सीता अपहरण कर लेना , सीता को रावण की कैद से वापिस लाना और फिर धोबी के कहने पर सीता का परित्याग कर देना। राम जी का पूरा जीवन स्त्री वियोग में बीता। अंत में राम जी ने जल में समाधि ली।

Ramayana Full Story in Hindi: सीता को रावण की कैद से बचाने के लिए राम जी को हनुमान जी की वानर सेना की मदद लेनी पड़ी थी। भगवान होते हुए भी वह अकेले सीता को वापस लाने में समर्थ नहीं थे? राम जी अधिक शक्तिशाली नहीं थे इसलिए उन्होंने धोखे से सुग्रीव के भाई बाली का पेड़ की ओट लेकर वध किया था (क्योंकि बाली बहुत शक्तिशाली था उसके सामने जो भी योद्धा युद्ध के लिए आता तो उसका आधा बल बाली के शरीर में चला जाता था)।

बाली ने अंतिम समय में राम जी से पूछा की आपने धोखे से मेरी हत्या क्यों की? तब राम जी ने उत्तर दिया, जब मैं द्वापरयुग में कृष्ण रूप में आऊंगा तो तुम्हारा बदला चुकाऊंगा।

कबीर साहेब जी कहते हैं: हे भोले मानव न तो तू आशीर्वाद देने का अधिकारी है न श्राप देने का, थोड़ी सी सिद्धि- शक्ति पाकर तू फूला नहीं समाता। आशीर्वाद, श्राप और बद्दुआ देकर तू स्वयं पर भार चढ़ाता है।

बाली की हत्या करने का कर्म दण्ड भोगने के लिए ही विष्णु जी वाली आत्मा का श्री कृष्ण जी के रूप में जन्म हुआ। फिर बाली वाली आत्मा शिकारी बना तथा अपना प्रतिशोध लिया। बाली ने शिकार समझ कर निशाना साधा और कृष्ण जी के पैर में विषाक्त तीर मारकर वध किया।

अनन्त कोटि अवतार हैं, माया के गोविन्द।
कर्ता हो हो अवतरे, बहुर पड़े जग फंद।।

विष्णु जी जब राम रूप में मृतलोक में आए थे तो पूरा जीवन कष्टमय रहा। भगवान होकर भी अपने प्रारब्ध के कर्म नहीं काट सके। सीता, लक्ष्मी जी का अवतार थी। विवाह होते ही वनवास मिला , रावण उठा कर ले गया (तमोगुण शिव का भक्त था) , सीता को बारह वर्ष तक न ठीक से आहार मिला और रावण की वासना से स्वयं को बचाती रहीं। इस लोक में तो स्वर्ग से आए भगवान भी सुरक्षित नहीं हैं। जो भगवान अवतार रूप में आने पर भी अपनी रक्षा स्वयं नहीं कर सकते हैं वह साधक की पुकार पर कैसे पहुंचेंगे?

पूर्ण परमात्मा (कबीर साहेब जी) की भगति से ही पूर्ण लाभ मिल सकता है । बिना पूर्ण गुरू के कोई भी भक्ति करना निष्फल है ।

गुरु बिन माला फेरते, गुरु बिन देते दान।
गुरु बिन दोनों निष्फल हैं, चाहे पूछो वेद पुराण।

■ आध्यात्मिक गुरु के बिना भक्ति विफल हो जाती है परमात्मा का विधान है जो सूक्ष्म वेद में लिखा है :

कबीर – गुरु बिन माला फेरते, गुरु बिन देते दान l
गुरु बिन दोनों निष्फल है, पूछो वेद पुराण ll
कबीर – राम कृष्ण से कौन बड़ा, उन्हों भी गुरु कीन l l
तीन लोक के वे धनी, गुरु आगे आधीन ll

पुराणों मे प्रमाण है कि रामचंद्र जी ने ऋषि वशिष्ठ जी से नाम दीक्षा ली थी । अपने घर और राज काज में गुरु वशिष्ठ जी का आदेश लेकर कार्य करते थे । कृष्ण जी ने संदीपनि जी से अक्षर ज्ञान प्राप्त किया था तथा कृष्ण जी के आध्यात्मिक गुरु दुर्वासा ऋषि थे।

कबीर परमेश्वर जी हमें समझाना चाहते हैं कि आप राम तथा कृष्ण जी से तो किसी को बड़ा अर्थात समर्थ नहीं मानते हो वे तीन लोक के मालिक थे उन्होंने भी गुरु बना कर भक्ति की और मानव जीवन सार्थक किया। इससे सहज में ज्ञान हो जाना चाहिए कि अन्य व्यक्ति अगर गुरु के बिना भक्ति करता है तो जीवन व्यर्थ करता है।

■ परमात्मा कबीर साहेब की वाणी है:-

झूठे सुख को सुख कहे, ये मान रहा मन मोद।
ये सकल चबीना काल का, कुछ मुख में कुछ गोद।

लोक आधारित ज्ञान पर आसक्त हो कर व सतभक्ति न मिलने के कारण मनुष्य अपने कर्म आधार पर भक्ति करते हुए सोचता है वह सब कुछ अच्छा कर‌ रहा है। वह माया के अधीन रहता है । वह कर्म जाल में जकड़ा रहता है। वह परिवार, बंधु, रिश्तेदार, पड़ोसी, कार, कोठी और धन से चिपका रहता है। परंतु यह सब माया का धोखा है।

Ramayana Full Story in Hindi: सीता अपहरण का वृतांत

जब राम कुटिया पर‌ लौटे और‌ सीता को नहीं पाया तो अत्यधिक व्याकुल हो विलाप करने लगे। उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था कि सीता कहां चली गई! राम सीता को ढूंढ़ने के लिए जानवरों, पेड़ पौधों से‌ लिपट लिपट कर रो-रो कर पूछ रहे थे कि क्या किसी ने सीता को देखा है? इस घटना से यह भी सिद्ध होता है कि राम भगवान अन्तर्यामी तो नहीं थे अन्यथा उन्हें अन्यों से सीता की खोजबीन नहीं करनी पड़ती।

sita-haran-ki-story-in-hindi

वह तो अंतर्ध्यान होकर सीता के समक्ष प्रकट हो सकते थे और रावण को उसी समय मारकर या समझा कर सीता को वापस घर ला सकते थे। सनद रहे राम और रावण के युद्ध के दौरान करोड़ों वानरों और राक्षसों की हत्या हुई। जिसका पाप राम को भी भोगना पड़ेगा।

पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी कहते है: प्रारब्ध से जुड़े पाप कर्म केवल पूर्ण परमात्मा की सतभक्ति से ही कट सके हैंक्योंकि साधक वर्तमान में पाप कर्म करता नहीं और‌ पुराने संत की शरण में आने से कट जाते हैं।

Ramayana Full Story in Hindi: वचन में बहुत शक्ति होती है

नारद जी तो साधक थे। नारद जी ने विष्णु जी को श्राप दे दिया था कि आप त्रेतायुग में राम रूप में अपनी पत्नी के वियोग में तड़पोगे । विचार करें जो भगवान खुद पत्नी प्रेम में व्याकुल हो, उसकी साधना करने से किस प्रकार मन को शांति तथा मोक्ष प्राप्ति हो सकती है?
पूर्ण परमात्मा केवल कबीर साहेब हैं जो इन सभी विकारों से परे हैं। पूर्ण परमात्मा तो सभी प्रकार के विकारों जैसे लोभ, मोह, अहंकार, स्त्री प्रेम, द्वेष आदि से परे होता है।

Ramayana Full Story in Hindi: रामसेतु पुल का बनवाना

रामायण में वर्णित अधूरे ज्ञान के आधार पर ये माना जाता है कि रामजी का नाम लिखने की वजह से पत्थर पानी पर तैरने लगे तथा पुल आसानी से बन गया। जबकि इसमें तनिक भी सच्चाई नहीं है। रामसेतु पुल बनवाने हेतु तीन दिन राम जी घुटनों पानी तक समुद्र में खड़े रहे फिर खुद समुद्र देव प्रकट हुए और श्री राम को सुझाव दिया कि आपकी सेना में नल नील दो कारीगर भी हैं उन की मदद लीजिये परन्तु नल नील के अभिमान वश वे भी असफल रहे और उनके अपने गुरुदेव ऋषि मुनीन्द्र उर्फ कबीर साहेब ने ही पत्थरों को तैरने योग्य बनाकर पुल बनाने में सहायता की।

पूर्ण परमात्मा (कबीर साहेब) प्रत्येक युग में आते हैं जिसका प्रमाण हमारे धर्म ग्रंथो में भी है:-

सतयुग में सत सुकृत कह टेरया, त्रेता नाम मुनिंदर मेरा, द्वापर में करुणामय कहाऐ, कलयुग नाम कबीर धराए। हनुमान सेवक हुए, लिया था तब पान, मुनीन्द्र ने तब शिष्य किये, दिया समर्थ का ज्ञान॥

कबीर सागर के अध्याय “बोध सागर” में ‘श्री हनुमानबोध’ में हनुमान जी और मुनीन्द्र ऋषि (कबीर परमेश्वर जी) की चर्चा का वर्णन है। कबीर साहिब जी ने धर्मदास जी को कहा कि मैं त्रेतायुग में हनुमान जी से आकर मिला, उन्हें तत्वज्ञान समझाया फिर सतलोक दिखाया तब हनुमान जी को पूर्ण विश्वास हुआ उसने मुझसे नाम उपदेश लेकर अपना कल्याण करवाया। धर्मदास जी ने मुनीन्द्र ऋषि (परमेश्वर कबीर साहिब जी) और हनुमानजी की चर्चा को कबीर सागर में लिपिबद्ध किया।

हनुमान जी कहते हैं;

हे स्वामी ! मैंने सब जानी, तुम ही समर्थ तुम ही ज्ञानी,
कैसे विनती तुम्हारी गायैं, अमृत वचन में हम तो नहायै,
मेरा सब सन्देह मिटाया, जन्मों का झकझोर झुड़ाया,
सुखसागर घर मैंने पाया, सतगुरु मुझको दर्श कराया।।

राम, लक्ष्मण को भी स्वस्थ न कर सके

युद्ध के दौरान लक्ष्मण मूर्छित हो गए थे और राम उसे ठीक न कर पाए। कहने लगे , “यदि भाई लक्ष्मण को कुछ हो गया तो मैं माता पिता को क्या मुंह दिखाऊंगा?” फिर हनुमान जी आकाश मार्ग से जाकर संजीवनी बूटी लाए और उसके उपयोग से लक्ष्मण स्वस्थ हुए। पूर्ण परमात्मा के गुणों में है वह मरे हुए साधक को सौ वर्ष का जीवन तक दे सकता है। जो पूर्ण परमात्मा का भजन करता है वह काल जाल से बाहर है।

Ramayana-Sanjivani-Buti-story-image-hanuman-lakshan-dronagiri-parvat

■ पूर्ण परमात्मा आयु बढ़ा सकता है और कोई भी रोग को नष्ट कर सकता है। ऋग्वेद मण्डल 10 सुक्त 161 मंत्र 2, 5, सुक्त 162 मंत्र 5, सुक्त 163 मंत्र 1 – 3

Ramayana Full Story in Hindi: लंकापति रावण का वध किसने किया?

लंकापति रावण दशानन के नाम से भी जाना जाता है। वह तमोगुणी शिव जी का परम भक्त था। रावण को चारों वेदों का ज्ञान था। वह एक कुशल राजनीतिज्ञ, सेनापति और वास्तुकला का मर्मज्ञ होने के साथ ज्ञानी तथा बहु-विद्याओं का जानकार था। वह मायावी के नाम से भी कुख्यात था क्योंंकि वह इंद्रजाल, तंत्र, सम्मोहन और कई तरह के जादू जंतर करने में माहिर था।

उसने सारी लंका सोने की बना रखी थी जिसमें इटें, पत्थर, यहां तक गारा भी सोने का था। परंतु शिव की इतनी भक्ति करने के बावजूद उसमें कामवासना तथा अभिमान चरम सीमा पर थे जिसके परिणामस्वरूप उसका वंश ही समाप्त हो गया।

जबकि कबीर परमेश्वर की भक्ति करने वाले साधक नम्रता और अधीनी से भक्ति करते हैं।

परमात्मा बताते हैं :-

आधीनि के पास है, पूर्ण ब्रह्म दयाल |
मान बड़ाई मारियो,बेअदबी सिर काल ||

सर्वविदित है रावण कैसी मौत मारा गया। वह तमस, अंहकार और असुर स्वभाव का व्यक्ति था। कबीर साहेब ने मुनिन्दर ऋषि रूप में आकर रावण को समझाया था कि यह सीता लक्ष्मी का अवतार है । जिस शिव की तू भक्ति करता है यह उसकी भाभी है तेरी मां समान हुई। परंतु मूर्ख न माना और सत्तर बार अपनी तलवार से ऋषि मुनिंदर रूप में आए परमात्मा पर‌ वार किया परंतु परमात्मा का बाल भी बांका न कर सका।

“एक लाख पुत्र सवा लाख नाती
आज उस रावण के दीवा न बाती”।।

रावण के राज्य में चंद्रविजय भाट के परिवार के सोलह सदस्यों, रावण की पत्नी मंदोदरी और विभीषण ने (परम संत कबीर जी) मुनिंदर ऋषि रूप में आए परमात्मा से नाम दीक्षा ली थी थे और रावण के एक लाख पुत्र ,सवा लाख रिश्तेदार जिनका रावण बहुत अंहकार करता था राम के साथ युद्ध करते हुए मारे गए थे।

Ramayana Full Story in Hindi: जब राम थक चुके थे

दशरथ पुत्र राम तो एक निमित मात्र थे, वह तो रावण के साथ युद्ध में हार मान चुके थे। रामचरितमानस में इसका उल्लेख है कि श्रीराम जितनी बार भी अपने बाण से रावण का सिर काट देते थे उस जगह पुन: ही दूसरा सिर उभर आता था।

रावण का वध श्री रामजी ने नहीं बल्कि पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी ने किया था। उसी प्रकार सीता जी भी रावण की कैद में होते हुए कैसे बची रहीं, इसके पीछे भी कबीर साहेब जी की ही शक्ति थी। इसका वर्णन भी कबीर साहेब ने अपनी वाणी में स्पष्ट कर दिया जो इस प्रकार है:-

बोले जिंद अबंद सकल घट साहिब सोई।
निर्वाणी निजरूप सकल से न्यारा होई।
हम ही राम रहीम करीम पूर्ण करतारा।
हम ही बांधे सेतु चढ़े संग पदम अठारह।
हम ही रावण मारया लंक पर करी चढ़ाई।
हम ही दस सिर फोड़ देवताओं की बंद छुटाई।
हमारी शक्ति से सीता सती जति लक्ष्मण हनुमाना।
हम ही कल्प उठाए हम ही छ: माना।

उपरोक्त्त वाणी से स्पष्ट है कि पूर्ण परमात्मा जिसने रावण का वध किया, जिनकी शक्ति से सीता जी सती रहीं और रावण इतना बलशाली होने के बावजूद उनको छू तक नहीं पाया, वह और कोई नहीं कबीर साहेब जी ही हैं।

समुद्र पार करने के पश्चात 18 दिन तक युद्ध हुआ। रावण इतना मायावी था कि उसे मारना कोई आसान कार्य नहीं था और श्री राम भी हार मानने लगे थे। विभीषण ने जब बताया कि इसकी नाभि में निशाना लगाओ, जहां अमृत है। परन्तु उसको भी श्री राम निशाना नहीं लगा पा रहे थे और अत्यंत दुखी होकर उन्होंने भी अन्य भगवानों को याद किया तो स्वयं परमात्मा ने सूक्ष्म रूप में आकर रावण की नाभि में तीर लगाया।

राम ने रावण के वध के पश्चात पूर्ण परमात्मा को नतमस्तक हो प्रणाम किया। उसके पश्चात सभी को ज्ञात है कि सीता की अग्नि परीक्षा हुई और वह परीक्षा में सफल हुई। तीनों की अयोध्या वापसी हुई और भरत द्वारा राज श्री राम को सौंपा गया।

राम जी का अपने राज्य में भ्रमण करना

श्री राम अपने राज्य की खबर लेने हेतु वेश बदल कर रात्रि में घूमा करते थे और उसी दौरान उन्होंने धोबी का धोबिन को दिया गया व्यंग्य सुना कि मैं राजा राम जैसा नहीं हूं जो गैर पुरूष के यहां सीता के बारह वर्ष रहने के बाद भी उसे घर में रख लूं। धोबी से अपने लिए यह व्यंग्य सुनने के बाद उन्होंने सीता जी को राज्य से बाहर निकाल दिया जबकि सीता जी अपनी पवित्रता अग्नि परीक्षा द्वारा दे चुकी थीं।

जिस समय सीता को निष्कासित किया गया उस समय वह गर्भवती थीं। राम ने अपने मान सम्मान को ऊपर रखा। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि, राम की मर्यादा यही थी कि अग्निपरीक्षा लेने के बाद भी उन्हें अपनी पत्नी की पवित्रता पर‌ विश्वास नहीं था। अयोध्या में सीता के जाने के पश्चात कभी दीवाली नहीं मनाई गई।

Ramayana Full Story in Hindi: लव-कुश के जन्म की कथा

वाल्मीकि जी ने सीता को पुत्री तुल्य माना। लव-कुश का जन्म वाल्मीकि जी के आश्रम में हुआ। लव-कुश ने श्री राम का घोड़ा पकड़ लिया था। उसके पश्चात उनके बीच युद्ध हुआ और लव कुश ने राम के छक्के छुड़ा दिए। युद्ध के अंत मे ज्ञात हुआ कि श्री राम उनके पिता हैं, लव-कुश ने सारी परिस्थितियों से परिचित होने के पश्चात राज्य में जाने से इंकार कर दिया और राम ने सीता से जब राज्य में चलने हेतु फिर से अग्नि परीक्षा देने के लिए कहा तो सीता ने इन्कार कर दिया और दुखी होकर धरती की गोद में समा गई और राम जी‌ ने परिवार विछोह के दुःख के कारण सरयू नदी में जलसमाधि ली।

■ Ramayana Full Story in Hindi: राम का नाम तो अनंतकाल से विद्यमान है। पूर्ण परमात्मा कबीर ही असली राम हैं जो जग पालनकर्ता भी हैं। बहरे हो गए थे हम आज तक राम के आधे अधूरे व्यक्तित्व को सुन सुनकर। अब धरती पर एक बार फिर परम संत आया है जिसने सभी धर्म ग्रंथों में छिपे रहस्य को समझाने का पराक्रम दिखाया। वरना नकली गुरूओं और पंडितों ने देवी-देवताओं को भी परमात्मा तुल्य बता कर मानव समाज का बेड़ा गरक कर दिया था।

राम अजन्मा है ,सर्वव्यापी, अविनाशी, अकालमूर्त है। जब कुछ नहीं था तब भी वह था और जब कुछ नहीं रहेगा तब भी वह रहेगा।
पूर्णब्रह्म जिसे अन्य उपमात्मक नामों से भी जाना जाता है, जैसे सतपुरुष, अकालपुरुष, शब्द स्वरूपी राम, परम अक्षर ब्रह्म/पुरुष आदि। यह पूर्णब्रह्म असंख्य ब्रह्माण्डों का स्वामी है तथा वास्तव में अविनाशी है।

राम राम सब जगत बखाने। आदि राम कोइ बिरला जाने।। ज्ञानी सुने सो हिरदै लगाई। मूर्ख सुने सो गम्य ना पाई।।
माँ अष्टंगी पिता निरंजन। वे जम दारुण वंशन अंजन।।

पहिले कीन्ह निरंजन राई। पीछे से माया उपजाई।।
माया रूप देख अति शोभा। देव निरंजन तन मन लोभा।। कामदेव धर्मराय सत्ताये। देवी को तुरतही धर खाये।।
पेट से देवी करी पुकारा। साहब मेरा करो उबारा।।

टेर सुनी तब हम तहाँ आये। अष्टंगी को बंद छुड़ाये।। सतलोक में कीन्हा दुराचारि, काल निरंजन दिन्हा निकारि।। माया समेत दिया भगाई, सोलह संख कोस दूरी पर आई।। अष्टंगी और काल अब दोई, मंद कर्म से गए बिगोई।।

धर्मराय को हिकमत कीन्हा। नख रेखा से भगकर लीन्हा।। धर्मराय किन्हाँ भोग विलासा। मायाको रही तब आसा।। तीन पुत्र अष्टंगी जाये। ब्रह्मा विष्णु शिव नाम धराये।। तीन देव विस्त्तार चलाये। इनमें यह जग धोखा खाये।।

उपरोक्त अमृतवाणी में परमेश्वर कबीर साहेब जी अपने निजी सेवक श्री धर्मदास साहेब जी को कह रहे हैं कि धर्मदास यह सर्व संसार तत्वज्ञान के अभाव से विचलित है। किसी को पूर्ण मोक्ष मार्ग तथा पूर्ण सृष्टी रचना का ज्ञान नहीं है। इसलिए मैं आपको मेरे द्वारा रची सृष्टी की कथा सुनाता हूँ।

बुद्धिमान व्यक्ति तो तुरंत समझ जायेंगे। परन्तु जो सर्व प्रमाणों को देखकर भी नहीं मानेंगे तो वे नादान प्राणी काल प्रभाव से प्रभावित हैं, वे भक्ति योग्य नहीं। अब मैं बताता हूँ तीनों भगवानों (ब्रह्मा जी, विष्णु जी तथा शिव जी) की उत्पत्ति कैसे हुई? इनकी माता जी तो अष्टंगी (दुर्गा) है तथा पिता ज्योति निरंजन (ब्रह्म, काल) है। पहले ब्रह्म की उत्पत्ति अण्डे से हुई। फिर दुर्गा की उत्पत्ति हुई। दुर्गा के रूप पर आसक्त होकर काल (ब्रह्म) ने गलती (छेड़-छाड़) की, तब दुर्गा (प्रकंति) ने इसके पेट में शरणली।

मैं वहाँ गया जहाँ ज्योति निरंजन काल था। तब भवानी को ब्रह्म के उदर से निकाल कर इक्कीस ब्रह्मण्ड समेत 16 संख कोस की दूरी पर भेज दिया। ज्योति निरंजन (धर्मराय) ने प्रकृति देवी (दुर्गा) के साथ भोग-विलास किया। इन दोनों के संयोग से तीनों गुणों (श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी) की उत्पत्ति हुई। इन्हीं तीनों गुणों (रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी, तमगुण शिव जी) की ही साधना करके सर्व प्राणी काल जाल में फंसे हैं।

जब तक वास्तविक मंत्र नहीं मिलेगा, पूर्ण मोक्ष कैसे होगा? (सृष्टि रचना विस्तार से पढ़ने के लिए अवश्य पढ़ें पुस्तक ज्ञान गंगा) वर्तमान समय में केवल संत रामपाल जी महाराज ही हैं जो शास्त्रों में वर्णित कबीर साहेब की साधना बताते हैं जिससे मोक्ष प्राप्ति संभव है। तो बिना समय व्यर्थ गवांए संत रामपाल जी महाराज की शरण ग्रहण करें

SA NEWS
SA NEWShttps://news.jagatgururampalji.org
SA News Channel is one of the most popular News channels on social media that provides Factual News updates. Tagline: Truth that you want to know

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

spot_imgspot_img

Popular

More like this
Related

World Heart Day 2023: Know How to Keep Heart Healthy

Last Updated on 29 September 2023 IST | World...

Eid Milad-un-Nabi 2023: Know on Eid ul Milad Why Prophet Muhammad Had to Suffer in his life?

Eid Milad-un-Nabi 2021 Festival: On this Eid ul-Milad or (Eid-e-Milad) know why Muslims celebrate this day, and according to the Holy Quran, should we really celebrate this day.

Eid e Milad India 2023 [Hindi]: ईद उल मिलाद पर बाखबर से जानिए अल्लाह बैचून नहीं है

Eid Milad-un-Nabi 2021 (Eid e Milad in Hindi): प्रत्येक मजहब और धर्म में अलग-अलग तरह से अल्लाह की इबादत और पूजा की जाती है । उसकी इबादत और पूजा को शुरू करने वाले अवतार पैगंबर पीर फकीर होते हैं। प्रत्येक धर्म में उन अवतारों, पैगंबरों, फकीरों, फरिश्तों, व संतो के जन्मदिन को उस धर्म के त्योहार के रूप में मनाया जाता है। उन महापुरुषों से जुड़ी हुई कुछ घटनाएं एक याद के स्वरूप में स्थापित हो जाती है जो एक त्योहार का स्वरूप ले लेती है।