Last Updated on 17 October 2022, 5:40PM IST | Ahoi Ashtami Vrat Katha 2022 [Hindi]: कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन महिलाएं अपनी संतान की लंबी आयु के लिए माता पार्वती के अहोई स्वरूप की पूजा-अर्चना करती हैं। पार्वती माता के साथ साथ गणेश जी की पूजा भी की जाती है। इस वर्ष यह पूजा 17 अक्टूबर 2022 को है। श्रद्धालु माताएं सूर्योदय के बाद से तारे दिखने तक निर्जला व्रत रखती हैं। अहोई माता के व्रत रखकर महिलाएं संतान के अच्छे स्वास्थ्य, सुखी जीवन और उज्ज्वल भविष्य की कामना करती हैं। भोले भक्त यह भी नहीं जानते कि पवित्र शास्त्रों में ऐसी कथाओं और पूजाओं का कोई वर्णन तक नहीं है, फिर जिस लाभ की आशा में व्रत रख रही हैं वह कैसे होगा।
Ahoi Ashtami Vrat Katha [Hindi]: मुख्य बिंदु
- कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को अहोई का व्रत रखते हैं
- इस वर्ष 17 अक्टूबर 2022 के दिन अहोई अष्टमी पूजा है
- महिलाएं अपनी संतान की लंबी आयु के लिए माता पार्वती के अहोई स्वरूप की पूजा-अर्चना करती हैं।
- स्वयं जन्म मृत्यु के चक्र में घूमने वाली माता पार्वती कैसे लाभ देंगी अपने श्रद्धालुओं को
- फल प्राप्त करने के लिए गीता तत्वदर्शी संत की शरण में जाने का सुझाव देती है
माता पार्वती के अहोई स्वरूप का व्रत कितना सफल?
अपनी संतान की लंबी आयु के लिए माता पार्वती के अहोई स्वरूप की पूजा-अर्चना करने वाली भोली महिलाओं को जानना चाहिए पार्वती मां के बारे में जिनके लिए इतना कठोर व्रत रखा जाता है वे काल ब्रह्म और देवी दुर्गा के तीसरे पुत्र की पत्नी हैं। वे स्वयं माँ के गर्भ से पैदा होती हैं और निश्चित समय के उपरांत उनकी मृत्यु भी होती है। जो स्वयं जन्म मृत्यु के चक्र में है वे किसी के पुत्र को लंबी आयु कैसे दे सकती हैं। इसलिए पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब जी पाखंड से दूर रहकर सतगुरु से सतनाम लेकर भव सागर से पार उतारने का सुझाव दे रहे हैं।
पीपल पूजै जाँडी पूजे, सिर तुलसाँ के अहोइयाँ ।
दूध-पूत में खैर राखियो, न्यूं पूजूं सूं तोहियाँ ।।
आपै लीपै आपै पोतै, आपै बनावै होईयाँ ।
उससे भौंदू पोते माँगे, अकल मूल से खोईयाँ ।।
पति शराबी घर पर नित ही करत बहुत लड़ईयाँ ।
पत्नी षोडष शुक्र व्रत करत है, देहि नित तुड़ईयाँ।।
तज पाखण्ड सत नाम लौ लावै, सोई भवसागर से तरियाँ ।
कह कबीर मिले गुरू पूरा, स्यों परिवार उधरियाँ ।।
व्रत करने के बारे में क्या है श्रीमद्भगवद गीता का मत?
श्रीमद्भगवद गीता के मतानुसार व्रत करना वर्जित है। गीता अध्याय 6 के श्लोक 16 के अनुसार बहुत खाने वाले का और बिल्कुल न खाने वाले का, बहुत सोने वाले का और बिल्कुल न सोने वाले का उद्देश्य कभी सफल नहीं होता है। अतः ये शास्त्र विरुद्ध क्रियाएं कभी लाभ नहीं दे सकती हैं।
न, अति, अश्नतः, तु, योगः, अस्ति, न, च, एकान्तम्, अनश्नतः,
न, च, अति, स्वप्नशीलस्य, जाग्रतः, न, एव, च, अर्जुन।। (गीता 6:16)
सर्व लाभ देने वाली सद भक्ति विधि किससे जाने?
तत्वज्ञान को सही से जानने के लिए श्रीमद्भगवद गीता 4:34 में गीता ज्ञानदाता ने तत्वदर्शी संत की शरण में जाने को कहा है। गीता तत्वदर्शी संत कि पहचान बताती है, ऊपर को पूर्ण परमात्मा रूपी जड़ वाला नीचे को तीनों गुण अर्थात् रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु व तमगुण शिव रूपी शाखा वाला अविनाशी विस्तारित पीपल का वृक्ष है, जिसके जैसे वेद में छन्द है। ऐसे संसार रूपी वृक्ष के विभाग छोटे-छोटे हिस्से टहनियाँ व पत्ते कहे हैं। उस संसाररूप वृक्ष को जो विस्तार से जानता है वह पूर्ण ज्ञानी तत्वदर्शी संत है।
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ऊर्ध्वमूलम्, अधःशाखम्, अश्वत्थम्, प्राहुः, अव्ययम्, छन्दांसि,
यस्य, पर्णानि, यः, तम्, वेद, सः, वेदवित्।। (गीता 15:1)
पूरे ब्रह्मांड में वर्तमान में एकमात्र तत्वदर्शी सन्त रामपाल जी महाराज हैं उनकी शरण में जाकर शास्त्र सम्मत पूजा विधि जान सकते हैं जिससे सभी सुख और पूर्ण मोक्ष प्राप्त होते हैं। अधिक जानकारी के लिए देखें सतलोक आश्रम यूट्यूब चैनल और पढें तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज द्वारा लिखित पवित्र पुस्तक “अंध श्रद्धा भक्ति – खतरा-ए-जान“।
Ahoi Ashtami Vrat Katha 2022 [Hindi] पर जानिए शास्त्र अनुकूल भक्ति विधि
तत्वदर्शी सन्त रामपाल जी महाराज गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में लिखे तीन सांकेतिक मन्त्रों “ओम-तत-सत” के अनुसार नामदीक्षा देते है। साधक जो पूर्ण मोक्ष प्राप्त करना चाहते हैं उन्हें तत्वदर्शी संत की शरण में जाना चाहिए और तीनों मंत्रों को सतज्ञान विधि के अनुरूप ग्रहण करना चाहिए। तत्वदर्शी संत स्वयं परमात्मा का स्वरूप होते हैं और धरती पर परमेश्वर के अवतार होते हैं। ऐसे तत्वदर्शी संत को सतगुरु बनाकर उनके द्वारा बताई गई सत्य साधना को मर्यादा में रहकर करने से इस लोक में सर्व सुख प्राप्त होते ही हैं साथ ही पूर्ण मोक्ष प्राप्त होता है और साधक सनातन परम धाम सतलोक को प्राप्त होता है जहां जाकर पुनः जन्म मृत्यु के चक्र में नहीं आना पड़ता।
ॐ, तत्, सत्, इति, निर्देशः, ब्रह्मणः, त्रिविधः, स्मृतः,
ब्राह्मणाः, तेन, वेदाः, च, यज्ञाः, च, विहिताः, पुरा।।(श्रीमद्भगवाद गीता 17:23)
अर्थात, ॐ मन्त्र ब्रह्म का, तत् यह सांकेतिक मंत्र परब्रह्म का, सत् यह सांकेतिक मन्त्र पूर्णब्रह्म का है, ऐसे यह तीन प्रकार के पूर्ण परमात्मा के नाम सुमरण का आदेश कहा है और सृष्टि के आदिकाल में विद्वानों ने उसी तत्वज्ञान के आधार से वेद तथा यज्ञादि रचे। उसी आधार से साधना करते थे। पूर्ण मोक्ष की इच्छा रखने वाले मुमुक्षु अविलंब सतगुरु रामपाल जी महाराज की शरण में जाकर नाम दीक्षा ग्रहण करें और मर्यादा में रहकर भक्ति करते हुए पूर्ण मोक्ष को प्राप्त करें।