2001 Parliament Attack: 2023 साल बाद भी आतंकवाद क्यों है मानवता पर भारी

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Last Updated on 12 December 2023 | 2001 Parliament Attack [Hindi]: आज से बीस साल पहले आज ही के दिन यानी 13 दिसंबर को लोकतंत्र के मंदिर कहे जाने वाले संसद पर आतंकी हमला हुआ था। 13 दिसंबर 2001 को जैश-ए-महम्मद और लश्कर-ए-तैयबा के 5 आतंकी संसद भवन के परिसर तक पहुंचने में कामयाब रहे थे। उस दौरान संसद में शीतकालीन सत्र चल रहा था।

Table of Contents

आतंकी अफजल गुरु कैसे पकड़ा गया?

15 दिसंबर 2001 को दिल्ली पुलिस ने हमले के संबंध में आतंकी अफजल गुरु को श्रीनगर से गिरफ्तार किया। अफ़ज़ल के चचेरे भाई, शौकत; शौकत की पत्नी, आतंकी अफजल गुरु; और S.A.R. गिलानी को भी गिरफ्तार कर लिया गया। उन पर भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने, षड्यंत्र रचने, हत्या करने और हत्या के प्रयास जैसे अपराधों के आरोप लगाए गए थे।

2001 Parliament Attack की आतंकी घटना के बारे में जानते हैं विस्तारपूर्वक

विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का मंदिर आज से 20 साल पहले आतंकी हमले का शिकार हुआ। बात सालों पुरानी जरुर हो गई है, लेकिन उसकी यादें अभी भी लोगों के जहन में जिंदा है। इस हमले में भारत के 5 जवानों के साथ सीआरपीएफ की एक महिला कॉस्टेबल और दो सुरक्षाकर्मी शहीद हो गए थे। इसके अलावा हमला करने आए सभी 5 आतंकियों को मौत के घाट उतार दिया गया था। संसद भवन में शीतकालीन सत्र चल रहा था। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी सत्ता के सिंहासन पर मौजूद थे। विपक्ष में सोनिया गांधी की मौजूदगी में संसद भवन में खूब हंगामा हुआ।

जिसके बाद 40 मिनट के लिए संसद भवन को स्थगित कर दिया गया था। अटल बिहारी बाजपेयी पीएम आवास के लिए निकल चुके थे। हालांकि तत्कालीन गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी संसद भवन में ही करीब 200 सांसदों के साथ रुके हुए थे। इसके अलावा मीडिया का भी जमावड़ा लगा हुआ था।

2001 Parliament Attack [Hindi]: आतंकी सफेद एम्बेसडर की कार में आए थे

  • संसद से सांसदों को ले जाने के लिए गेट के बाहर सरकारी गाड़ियों का तांता लगना शुरू हो चुका था।
  • देश के उपराष्ट्रपति कृष्ण कांत का काफ़िला भी संसद के गेट नंबर 12 से निकलने के लिए तैयार था।
  • गाड़ी को गेट पर लगाने के बाद सुरक्षाकर्मी उपराष्ट्रपति के बाहर आने का इंतज़ार कर रहे थे।
  • सदन से बाहर निकल रहे नेताओं और पत्रकारों के बीच तत्कालीन राजनीति से जुड़ी अनौपचारिक बातचीत का दौर जारी था।
  • 11 बजकर तीस मिनट से ठीक पहले उपराष्ट्रपति की सुरक्षा में तैनात सुरक्षाकर्मी उनकी सफेद एम्बेसडर कार के पास खड़े उनके आने का इंतज़ार कर रहे थे।
  • तभी DL-3CJ-1527 नंबर की एक सफ़ेद एम्बेसडर कार तेजी से गेट नंबर 12 की ओर बढ़ती है। कार की रफ़्तार संसद में चलने वाली सरकारी गाड़ियों से कुछ ज़्यादा तेज थी।
  • कार की अनियमित रफ़्तार देखकर संसद के वॉच एंड वॉर्ड ड्यूटी में तैनात जगदीश प्रसाद यादव आनन-फानन में निहत्थे इस कार की और दौड़ पड़े।
  • इसी बीच ये सफेद एम्बेसडर कार उपराष्ट्रपति कृष्ण कांत की कार से टकरा गई।

कार के टकराने के बाद शुरू हुई फायरिंग

  • उपराष्ट्रपति कृष्ण कांत की कार से टकराने के बाद चरमपंथियों ने अंधाधुंध फ़ायरिंग शुरू कर दी। चरमपंथियों के हाथों में एके-47 और हैंडग्रेनेड जैसे उन्नत हथियार थे।
  • संसद परिसर के अलग-अलग हिस्सों में मौज़ूद लोगों ने गोली की आवाज़ सुनते ही तरह-तरह के कयास लगाने शुरू कर दिए। कुछ लोगों ने सोचा कि शायद नज़दीकी गुरुद्वारे में किसी ने गोली चलाई है या कहीं आसपास पटाखा फोड़ा गया है।
  • लेकिन गोली की आवाज़ सुनते ही कैमरामैन से लेकर वॉच एंड वॉर्ड टीम के सदस्य आवाज़ की दिशा की ओर जाने लगे। ये जानना चाहते थे आख़िर माज़रा क्या है।
  • संसद परिसर में चरमपंथियों के हाथों में मौजूद ऑटोमैटिक एके-47 बंदूकों से निकली गोलियों की तड़तड़ाहट सुनते ही नेताओं समेत वहां मौज़ूद लोगों के चेहरे सन्न रह गए।
  • सदन के अंदर से लेकर बाहर एक अफ़रातफ़री का माहौल था। किसी को भी ठीक-ठीक नहीं पता था कि बाहर क्या हो रहा है। सभी अपने-अपने स्तर से घटना को समझने की कोशिश कर रहे थे।
  • इस समय सदन में देश के गृह मंत्री लाल कृष्ण आडवाणी और प्रमोद महाजन समेत कई दिग्गज नेता मौजूद थे लेकिन किसी को भी नहीं पता था कि आख़िर हो क्या रहा था।

संसद में हथियारबंद सुरक्षाकर्मियों की तैनाती उस समय नही होती थी

  • संसद में हथियारबंद सुरक्षाकर्मियों की तैनाती का चलन उस दौर तक नहीं था। संसद में सीआरपीएफ़ की एक बटालियन रहती है जिसे घटनास्थल तक पहुंचने के लिए लगभग आधा किलोमीटर की दूरी तय करनी थी। ऐसे में जब गोलियां चलने लगीं तो वे लोग भागकर गए।
  • उपराष्ट्रपति की सुरक्षा में लगे सुरक्षाकर्मियों और चरमपंथियों के बीच संघर्ष के दौरान सुरक्षाकर्मी निहत्थे मातबर सिंह ने अपनी जान पर खेलकर गेट नंबर 11 को बंद किया।
  • चरमपंथियों ने जैसे ही मातबर सिंह को हरकत में आते देखा, उन्होंने मातबर पर गोलियां बरसाना शुरू कर दीं।
  • लेकिन इसके बावजूद सिंह ने अपने वॉकी-टॉकी पर अलर्ट जारी कर दिया जिसके बाद संसद के सभी दरवाजों को तत्काल बंद कर दिया गया।
  • इसके बाद चरमपंथियों ने संसद में घुसने के लिए गेट नंबर-1 का रुख किया।
  • गोलियां चलने के बाद सुरक्षाकर्मियों ने गेट नंबर 1 के पास मौज़ूद लोगों को नज़दीकी कमरे में छिपा दिया और चरमपंथियों का सामना करने लगे।
  • लाल कृष्ण आडवाणी कहीं जाते हुए दिखाई दिए। उनके चेहरे की गंभीर मुद्रा और माथे पर चिंता की लकीरें साफ़ थीं। जवाबी कार्रवाई आडवाणी जी के निरीक्षण में हो रही थी।

2001 Parliament Attack [Hindi]: हमले की खबर देश में आग की तरह फैल गई

इस वक्त तक देश भर में टीवी के माध्यम से ये ख़बर फ़ैल चुकी थी कि देश की संसद पर हमला हो चुका है। लेकिन देश के नेताओं के सकुशल होने की ख़बर किसी के पास नहीं थी क्योंकि जो पत्रकार सदन परिसर के अंदर मौजूद थे उन्हें सांसदों और केंद्रीय मंत्रियों से जुड़ी किसी तरह की जानकारी नहीं दी जा रही थी।

  • इस सबके बीच चरमपंथियों ने संसद भवन के गेट नंबर वन से सदन में घुसने की कोशिश की। लेकिन सुरक्षाबलों ने एक चरमपंथी को वहीं मार गिराया।
  • इस प्रक्रिया में चरमपंथी के शरीर में बंधी हुई विस्फोटक की बेल्ट में धमाका हो गया।
  • ढाई घंटे के बाद जोर के धमाके की आवाज़ आई। ये आवाज़ इतनी तेज थी कि ऐसा लगा कि संसद का एक हिस्सा गिरा दिया गया है। बाद में पता चला कि गेट नंबर वन पर ही एक फिदाइन ने खुद को ब्लास्ट कर लिया।
  • इसके बाद चारों चरमपंथियों ने गेट नंबर 9 की ओर रुख किया। इस दौरान तीन चरमपंथियों को मार दिया गया। पांचवें चरमपंथी ने गेट नंबर 5 की ओर दौड़ कर संसद में घुसने की कोशिश की लेकिन सुरक्षाबलों ने उसे भी मार दिया।

आतंकियों को खत्म करने का ऑपरेशन कई घंटे चला

देश की संसद की सुरक्षा में लगे सुरक्षाकर्मियों और चरमपंथियों के बीच तकरीबन साढ़े 11 बजे सुबह से शुरू हुआ ये ऑपरेशन तकरीबन शाम चार बजे तक चलता रहा।

  • इसके बाद शाम चार से पांच बजे के आसपास सुरक्षाबल भारी संख्या में संसद पहुंचे और पूरे क्षेत्र की छानबीन करनी शुरू कर दी।
  • इस हमले में दिल्ली पुलिस के पाँच सुरक्षाकर्मी, केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल की एक महिला सुरक्षाकर्मी, राज्य सभा सचिवालय के दो कर्मचारी और एक माली की मौत हुई।
  • सुरक्षा बलों ने कैमरामैन तथा मीडिया कर्मियों पर भी बरसाईं गोलियां।
  • इनमें से एक गोली न्यूज़ एजेंसी एएनआई के कैमरा पर्सन विक्रम बिष्ट की गर्दन में लगी। दूसरी गोली कैमरे में लगी, एक ग्रेनेड भी गिरा लेकिन वो ग्रेनेड फटा नहीं और शाम के चार बजे सुरक्षाबलों ने इसे डिटोनेट किया।
  • एएनआई के कैमरापर्सन को घायल हालत में एम्स में भर्ती कराया गया जिसके कुछ समय बाद उनकी मौत हो गई।

2001 Parliament Attack [Hindi]: भारत की शीर्ष अदालत का यह आया था फैसला

भारतीय संसद पर हमले के मामले में चार चरमपंथियों को गिरफ़्तार किया गया था। बाद में दिल्ली की पोटा अदालत ने 16 दिसंबर 2002 को चार लोगों, मोहम्मद अफज़ल, शौकत हुसैन, अफ़सान और प्रोफ़ेसर सैयद अब्दुल रहमान गिलानी को दोषी करार दिया था।

■ Also Read: 26/11 Mumbai Terror Attack: The Heart Wrenching Story of 26/11

सुप्रीम कोर्ट ने प्रोफ़ेसर सैयद अब्दुल रहमान गिलानी और नवजोत संधू उर्फ़ अफ़साँ गुरु को बरी कर दिया था, लेकिन मोहम्मद अफ़ज़ल की मौत की सज़ा बरकरार रखी थी और शौकत हुसैन की मौत की सज़ा को घटाकर 10 साल की सज़ा कर दिया था। इसके बाद 9 फरवरी, 2013 को अफ़ज़ल गुरु को दिल्ली की तिहाड़ जेल में सुबह 8 बजे फांसी पर लटका दिया गया।

अफजल गुरु को फांसी क्यों दी गई?

मोहम्मद अफज़ल गुरु ‘कुख्यात आतंकी’ 2001 में भारतीय संसद पर हुए आतंकवादी हमले का दोषी था। 2001 में संसद पर हुए आतंकी हमलों के मुख्य आरोपी मोहम्मद अफज़ल गुरु को 9 फ़रवरी 2013 को सुबह दिल्ली के तिहाड़ जेल में फांसी पर लटका दिया गया।

पार्लियामेंट पर हमला करने के लिए आतंकवादियों ने 13 दिसंबर को ही क्यों चुना था?

सुरक्षा मामलों के जानकारों के मुताबिक पाकिस्तान प्रेरित आतंकवादी हमेशा भारत को ज्यादा से ज्यादा नुकसान पहुंचाना चाहते हैं। वहीं देश में भारी दहशत फैलाने की मंशा भी रखते हैं। हमले से पहले रेकी और अपने रिसर्च और स्लीपर सेल की मदद से उन्हें पता था कि संसद का शीतकालीन सत्र चल रहा था। दोनों सदनों की कार्यवाही जारी थी।

रक्षा मंत्रालय से जुड़े एक अहम मुद्दे ताबूत घोटाले और महिला आरक्षण पर बहस तय होने से गहमागहमी के चलते अधिकतम सांसदों और उनके स्टाफ के संसद भवन परिसर में होने की पूरी उम्मीद थी। देश और दुनिया की सभी मीडिया हाउसेस की निगाहें भी संसद की गतिविधियों पर थी। इनसे आतंकी न सिर्फ भारत को ज्यादा नुकसान पहुंचाने बल्कि भारी दहशत फैलाने के साथ ही दुनिया भर में प्रचार पाने की भी नापाक मंशे को अंजाम देना चाहते थे।

2001 Parliament Attack [Hindi]: इसी दिन कश्मीर के नेता की बेटी अगवा हुई थी

13 दिसंबर का दिन आतंकवाद से जुड़ी एक और बड़ी घटना का भी गवाह है। साल 1989 में आतंकवादियों ने जेल में बंद अपने कुछ साथियों को रिहा कराने के लिए देश के तत्कालीन गृह मंत्री और कश्मीर के बड़े नेता मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रूबिया सईद का अपहरण कर लिया था। केंद्र सरकार ने उसे बचाने के लिए 13 दिसंबर को आतंकवादियों की मांग को स्वीकार करते हुए उनके पांच साथियों को रिहा कर दिया था। इसे आतंकवादी अपनी बड़ी जीत के तौर पर देखते हैं। उनके लिए यह दिन बड़ी अहमियत रखता है।

इसी दिन गुरु तेग बहादुर को मारा गया था!

2001 Parliament Attack [Hindi]: ग्रेगोरीयन कैलंडर के अनुसार साल 1675 में 13 दिसंबर को ही सिख पंथ के नौवें गुरू तेग बहादुर जी का चांदनी चौक दिल्ली में औरंगजेब ने इस्लाम न कबूल करने की वजह से सिर कलम करवाया था। हालांकि नानकशाही कैलेंडर के अनुसार, हर साल 24 नंवबर को गुरु तेग बहादुर जी के शहीदी दिवस के रूप में याद किया जाता है। वहीं, अधिकतर इतिहासकारों के मुताबिक, यहां तक कि विकिपीडिया पर गुरु तेग बहादुर के बारे में दर्ज है कि 11 नवंबर 1675 उन्होंने धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया था।

वे प्रेम, त्याग और बलिदान के सर्वोच्च प्रतीक हैं। औरंगजेब को महान शख्सियत बताकर उससे खुद को जोड़ने वाले आतंकवादी इस तारीख को भी अपनी ऐतिहासिक जीत के तौर पर मानते रहे हैं खासकर लश्कर ए तैयबा और जैश ए मोहम्मद के कुख्यात आतंकवादी। इसलिए एक वर्ग की ओर से दिल्ली में संसद भवन के हमले के पीछे इसको भी एक वजह बताने की दलीलें दी जाती हैं।

इसी दिन इल्तुतमिश ने ग्वालियर रियासत पर कब्जा किया

साल 1232 में 13 दिसबंर को ही गुलाम वंश के शासक इल्तुतमिश ने ग्वालियर रियासत पर कब्जा किया था। मध्य पूर्वी में अपनी जड़ें तलाशने वाले आतंकवादी इसलिए भी इस तारीख को खुद से जोड़ते और फख्र करते हैं। कुछ लोगों का मानना है कि संसद हमले पर तारीख चुनने के पीछे आतंकवादी सरगनाओं के मन में शायद एक ये वजह भी रही हो सकती है।

भारत के विभाजन से भी जुड़ा है दिन

इन सबसे ज्यादा और सबसे बड़ी वजह बताने वाले इतिहासकार इसे देश के विभाजन और पाकिस्तान की तारीख और उद्देश्य संकल्प या क़रारदाद ए मक़ासद ( Objectives Resolution) से जोड़ते हैं। इस संकल्प को पाकिस्तान की संविधान सभा ने 12 मार्च सन 1949 को पारित किया था। 7 मार्च 1949 को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली खान ने इसे क़ौमी असेंबली में पेश किया था। इसे पाकिस्तानी रियासत और हुकूमत के नीति निर्देशक के रूप में पारित किया गया था। उसके अनुसार भविष्य में पाकिस्तान संविधान संरचना यूरोपीय शैली का कतई नहीं होगा, लेकिन इसके आधार इस्लामी लोकतंत्र और सिद्धांतों पर होगी। कहा जाता है कि इस बारे में पाकिस्तानियों ने भारतीयों की पैरवी की थी।

भारत की संविधान सभा में इसी दिन रखा गया था संकल्प

2001 Parliament Attack [Hindi]: पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भारत की संविधान सभा में 13 दिसंबर 1946 में संकल्प लक्ष्य रखा था, जिसे सर्वसम्मति के साथ 22 जनवरी 1947 में स्वीकार कर लिया गया। इसमें दिये गए संकल्प पाकिस्तान को “कुरान और सुन्नत में दिये गए लोकतांत्रिक के आदर्शों” पर विकसित व खड़ा करने का संकल्प लेते हैं। साथ ही इसमें पाकिस्तान में मुसलमानों को कुरान और सुन्नत में दिये गए नियमों के अनुसार जीवन व्यतीत करने का अवसर देने की एवं अल्पसंख्यकों के धार्मिक, सामाजिक व अन्य वैध अधिकारों की रक्षा की भी बात की गई है। इसे कई माएनों में पाकिस्तान के सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज़ में माना जाता है। साथ ही इसकी इस्लाम-प्रोत्साहक चरित्र के लिये, यह हमेशा से ही विवादास्पद भी रहा है और कई बार, गैर-मुसलमानोंऔर कई बुद्धिजीवियों की ओर से इसका विरोध होता रहा है।

2001 Parliament Attack [Hindi]: पाकिस्तान क्यों करवाता है भारत पर आतंकवादी हमले?

हिंदुस्तान ने पाकिस्तान के दो टुकड़े किए थे। इसी कारण से पाकिस्तान चिढ़ा बैठा है और वह चाहता है कि हिंदुस्तान के भी टुकड़े हों, उसकी मंशा कश्मीर तथा पंजाब को भारत से अलग करने की है, पाकिस्तान को पता है कि सीधे तौर पर युद्ध करने से पाकिस्तान को हार का मुंह देखना पड़ेगा इस कारण पाकिस्तान कश्मीर और पंजाब में अपने समर्थित आतंकवादी तथा अपनी खुफिया एजेंसी की सहायता से हिंदुस्तान के लोगों को भड़का कर अराजकता का माहौल तथा गृह युद्ध करवाना चाहता है। निसंदेह इस कार्य में वह धार्मिक भाईचारे का भी सहारा लेता है क्योंकि राजनीतिक लोगों के लिए धर्म मायने नहीं रखता और धार्मिक लोगों को राजनीति से कोई मतलब नहीं होता। धार्मिक लोग जानते हैं यह सब काल का जाल है काल ही पाप कर्म करवाता है, काल की बातों में आने पर जीवात्मा को कष्ट पर कष्ट उठाना पड़ता है।

सबसे बड़ा आतंकी संगठन कौन सा है?

ISIS आतंकवादी संगठन को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दुनिया का सबसे बड़ा खतरा माना जाता है। आजकल यह संगठन काफी सक्रिय और धनी है। ISIS संगठन का मुख्य उद्देश्य विश्व के सभी देशों में इस्लामीकरण को बढ़ावा देना और इस्लामी कानून लागू करना है, और जो इस्लामी मान्यताओं को नहीं मानेगा उसे नेस्तनाबूद करना है।

लोग आतंकवादी क्यों बनते हैं?

2001 Parliament Attack [Hindi]: आतंकवाद सिर्फ भारत देश तक ही सीमित नहीं है बल्कि ये पूरे विश्व की समस्या बन चुकी है। विभिन्न देशों तथा भारत में आतंकवादी समूहों के गठन के कारण भिन्न-भिन्न हो सकते हैं पर इन कारणों में मुख्य रूप से धार्मिक उग्रवाद शामिल है साथ ही सामाजिक-आर्थिक असमानता, भेदभाव/अलगाव, सत्तारूढ़ दल, जातीय राष्ट्रवाद, भी कारण हो सकते हैं। किंतु मुख्य रूप से इसमें धार्मिक उग्रवाद ही शामिल है।

धार्मिकता, आतंकवाद का मुख्य कारण क्यों है? 

दरअसल स्पष्ट शब्दों में कहा जाए, तो यह नकली धर्म गुरुओं का किया हुआ विनाश ही है जिसकी वजह से ईश्वर अल्लाह के नाम पर लोग आपस में लड़ रहे हैं। जब सभी धर्मग्रंथ श्रीमद्भगवद्गीता, चारों वेद, गुरु ग्रंथ साहिब, बाइबल कहते हैं कि ईश्वर, अल्लाह, रब, गॉड दयालु है, वह क्षमाशील है किंतु फिर भी नकली धर्मगुरु हमें ईश्वर के नाम पर लड़ाते हैं। नकली और पाखंडी धर्म गुरुओं को समाज के कल्याण से कोई लेना देना नहीं है इन्हें तो बस अपनी रोजी-रोटी चलानी है। संसार और समाज का यह अगर भला चाहते, तो यह समाज को यह बताते कि हम सब एक परमात्मा के बंदे हैं हम सबको प्यार से रहना चाहिए परंतु यह समाज को जोड़ने की बजाय लोगों को एक दूसरे से लड़ाने का प्रयत्न करते हैं इसका मुख्य कारण यही है कि यह लोग स्वार्थी हैं। किंतु ऐसा भी नहीं है कि सभी धर्मगुरु एक समान कपटी और नकली होते हैं कुछेक महान और परोपकारीे धर्मगुरु भी हैं जो समाज को जोड़ने का कार्य कर रहे हैं।

कबीर साहेब (अल्लाह हू कबीर) ने टाल दिया था हिंदू मुसलमान का गृह युद्ध

काशी बनारस में जब तक कबीर परमेश्वर जी रहे उनके अनमोल अलौकिक, अद्भुत, शास्त्रों के प्रमाणित ज्ञान से उन्होंने कभी हिंदू मुस्लिम का झगड़ा नहीं होने दिया बल्कि ऐसे समाज का निर्माण किया था जिसमें जातिवाद, धर्मवाद, ऊंच-नीच, पाखंड, छुआछूत, का कोई स्थान नहीं था। उस समय सबसे बड़ी समस्या अशिक्षा थी जिसके कारण कभी-कभी लोग भ्रमित हो जाया करते थे। जब कबीर परमेश्वर जी मगहर से सतलोक गमन करने लगे तब हिंदू तथा मुस्लिम धर्मगुरुओं ने सोचा कि यह सही मौका है हिंदू मुसलमानों को आपस में लड़ाने का, वहां भी कबीर परमात्मा ने अपने सामर्थ्य का परिचय दिया और हिंदू मुसलमानों को समझाया कि तुम एक परमात्मा के बच्चे हो, मैं तुम्हारा पिता हूं खबरदार, जो आपस में लड़े तो और हिंदू मुसलमान को एक करके चले गए। 

उनके शरीर के स्थान पर सुगंधित फूल मिले क्योंकि उनका तो नूरी शरीर था, वह तो सशरीर सतलोक चले गए थे। वही हिंदू मुस्लिम जो आपस में लड़ने के लिए तैयार थे आपस में गले लिपट लिपट कर रोने लगे और जो हिंदू मुसलमान का गृह युद्ध होना था उसे परमात्मा कबीर साहेब ने अपनी शक्ति से टाल दिया।

हिंदू-मुसलमान दोनों के लिए कबीर साहेब का संदेश

जीव हमारी जाति है मानव धर्म हमारा।।

हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई धर्म नहीं कोई न्यारा।।

अर्थात हम सब की जाति जीव है और मानव ही हमारा धर्म है, हिंदू मुस्लिम सिख इसाई धर्म कोई अलग अलग नहीं है सब एक ही है सब मानव धर्म से हैं।

हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमाना।

आपस में दोउ लड़ी-लड़ी मुए, मरम न कोउ जाना।।

अर्थात हिंदू कहते हैं कि हमारे राम बड़े हैं मुस्लिम कहता है कि हमारा रहमान अल्लाह बड़ा है कबीर साहिब जी कहते हैं कि वह एक ही है तुमको अलग इसलिए लगते हैं क्योंकि तुम को तत्व ज्ञान नहीं है।

अबकी बार पंडित भया, फेर बनेगा मुल्ल।

आपस में कोई ना लड़ियो, कर लो सुल्ल सुल्ल।।

कबीर परमेश्वर जी कहते हैं कि जो अबकी बार में पंडित है वह कल अर्थात अगले जन्म में मुस्लिम भी बन सकते हैं और जो मुस्लिम है वह अगले जन्म में पंडित भी बन सकते हैं इसलिए आपस में कोई ना लड़ो, तत्वज्ञान समझ के प्यार से रहो। आप सभी भाई बहनों से हाथ जोड़कर प्रार्थना है कि तत्वज्ञान को जीवन और परमात्मा को समझने का आधार बनाओ जिसके लिए आप बाखबर संत रामपाल जी महाराज जी के सत्संग प्रवचनों को सुनिए और उनसे नामदीक्षा लीजिए और इस लिंक पर क्लिक कीजिए।

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