Last Updated on 16 September 2024 IST | Vishwakarma Puja in Hindi (विश्वकर्मा पूजा): भगवान विश्वकर्मा को दुनिया का पहला वास्तुकार माना जाता है। इस साल 2024 में 16 सितंबर को विश्वकर्मा जयंती है। विश्वकर्मा की पूजा हर वर्ष आश्विन माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को की जाती है। आज पाठक जानेंगे कौन है सृष्टि के असली रचयिता।
Vishwakarma Puja 2024 के मुख्य बिंदु
- इस वर्ष 16 सितंबर को विश्वकर्मा जंयती है।
- हर वर्ष विश्वकर्मा जी की पूजा आश्विन माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को की जाती है।
- मान्यताओं के अनुसार विश्वकर्मा जी ने देवी -देवताओं के अस्त्र-शस्त्र बनाए और मंदिरों का निर्माण किया था ।
- इस दिन कल- कारखानों में लगी मशीनों की पूजा की जाती है जो कि शास्त्र विरुद्ध है।
- श्रीमद्भगवत गीता जी के अनुसार शास्त्र विरुद्ध पूजाएं व्यर्थ हैं।
- विश्व के रचयिता पूर्ण ब्रह्म कबीर साहेब हैं, वे सबके जनक हैं जिन्होंने सारे ब्रह्मांड की रचना की है।
- पूर्ण परमात्मा को पाने की विधि तत्त्वदर्शी संत ही बता सकते हैं।
Vishwakarma Puja 2024 | विश्वकर्मा जी जयंती
विश्वकर्मा जी को विश्व रचयिता भी कहते हैं लोग, वे दुनिया के पहले इंजीनियर और शिल्पकार थे ऐसी भी मान्यतायें हैं। इन्होंने देवी देवताओं के अस्त्र शास्त्रों और मंदिरों का निर्माण किया था। हिन्दू मान्यता के अनुसार विश्वकर्मा जी ब्रह्मा जी के सातवें पुत्र थे। विश्वकर्मा ऐसे इंजीनियर थे जिन्होंने कारखानों में उपयोगी मशीनों और पुर्जों का निर्माण किया था और इसी कारण से उनकी जयंती पर सभी उद्योगों, फैक्ट्रियों में विश्वकर्मा की पूजा की जाती है। इस दिन सभी कलाकार, बुनकर, शिल्पकार भगवान विश्वकर्मा की पूजा करते हैं। पाठकगण आगे जानेंगे कि वास्तविकता में पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब सृष्टि रचयिता हैं।
भगवान विश्वकर्मा की जयंती पर विभिन्न कार्यों में प्रयुक्त होने वाले औजारों तथा कल-कारखानों में लगी मशीनों की पूजा की जाती है। परन्तु केवल मान्यताओं के पीछे ना जाकर, हमे अपने वेदों – पुराणों को समझना चाहिए। हमें केवल पूर्ण परमात्मा की सद्भक्ति करनी चाहिए न कि अपनी मनमानी साधनाएं। और केवल तत्त्वदर्शी संत ही वेदों में वर्णित तत्वज्ञान की जानकरी दे सकते हैं। क्योंकि वेदों में छुपे गूढ़ रहस्य केवल पूर्ण गुरु ही जानते हैं।
- सूक्ष्म वेद में लिखा है :-
गुरु बिन वेद पढ़े जो प्राणी, समझे न सार रहे अज्ञानी ।
वेद-कतेव झूठे न भाई ,झूठे वो है जो इनको समझे नाही | |
पूर्ण ब्रह्म कविर्देव हैं विश्व रचयिता
पूर्ण परमात्मा ने इस संसार को बनाया है, माँ के गर्भ में भी हमारा पालन-पोषण किया है, क्या उस परमात्मा की जगह हम अन्य देवी – देवताओं को विश्व रचयिता कह सकते है, बिल्कुल नहींं। केवल पूर्ण परमात्मा ही सबका जनक है, उसी से सारे ब्रह्मांड का संचार है ।
प्रमाण है पवित्र अथर्ववेद के काण्ड नं. 4 अनुवाक नं. 1 मंत्र नं 1 में कि – पवित्र वेदों में बोलने वाला ब्रह्म (काल) कह रहा है कि सनातन परमेश्वर ने स्वयं अनामय (अनामी) लोक से सत्यलोक में प्रकट होकर अपनी सूझ -बूझ से कपड़े की तरह बुन कर रचना करके ऊपर के सतलोक आदि को भिन्न -2 सीमा युक्त स्वप्रकाशित अजर -अमर अर्थात अविनाशी ठहराए तथा नीचे के परब्रह्म के सात संख ब्रह्मांड तथा ब्रह्म के 21 ब्रह्मांड व इनमें छोटी से छोटी रचना भी उसी परमात्मा ने की है ।
Vishwakarma Puja 2024 पर जानिए शास्त्रानुकूल भक्ति विधि
पाठकों को यह जानना जरूरी है कि जिस ईश्वर ने इस पूरे ब्रह्मांड की रचना की है उसकी साधना करनी चाहिए, न कि उसके बनाए हुए देवी – देवताओं की। श्रीमद्भगवत गीता में बिल्कुल नहीं कहा गया है कि पूर्ण परमात्मा के अलावा अन्य देवी -देवताओं की पूजा-साधना करो, फिर हम देवी -देवताओं की पूजा में व्यर्थ अपना समय बर्बाद कर रहे हैं। परमात्मा हमें मानव जन्म केवल सद्भक्ति के लिए प्रदान करते हैं।
हमारे लिए हमारे वेदों पुराणों को पढ़ कर उन्हें समझ कर शास्त्रानुकूल भक्ति साधना करना ही हितकारी है। यदि हम ऐसा नहीं करते है तो परमात्मा से हमें जो सुख शांति मिलनी चाहिए वो वह कैसे दे सकता है।
विश्वकर्मा पूजा पर हम किसकी पूजा करते हैं?
विश्वकर्मा पूजा के दिन शस्त्रों की, कारखानों के कलपुर्जों की, औजारों की पूजा की जाती है। आइए जानते हैं कि हमें विश्वकर्मा की पूजा करनी चाहिए या औजारों की। हमारे धार्मिक सद्ग्रन्थों में शस्त्र पूजा का कहीं भी वर्णन नहीं है। बल्कि पूरे विश्व को बनाने वाले पूर्ण परमात्मा की भक्ति का वर्णन, पवित्र वेदों और गीता जी में है।
विचार करने वाली बात है यदि कोई सैनिक अपने हथियार से दुश्मन को मारता है तो उस सैनिक का सम्मान पूरा देश करता है न कि उस हथियार का, जिससे उसने शत्रुओं को मारा। शस्त्र निर्जीव है, साधन है साध्य नहीं।
शास्त्रों का सही ज्ञान न होने के कारण हम ऐसी साधनाएं करने लग गए, आज हम सभी शिक्षित है, तो आइए जानते हैं हमारे शास्त्रों में किसकी पूजा बताई है? सृष्टि रचने वाला विश्वकर्मा कौन है?
पवित्र अथर्ववेद के काण्ड नं. 4 अनुवाक नं. 1 मंत्र नं. 1 में प्रमाण है कि – पवित्र वेदों को बोलने वाला ब्रह्म (काल) कह रहा है कि प्राचीन अर्थात सनातन परमात्मा ने प्रकट होकर अपनी सूझ-बूझ से शिखर में सत्यलोक आदि लोक की रचना स्वप्रकाशित व सीमा रहित की। तथा उसके मिलते जुलते अक्षरपुरुष अर्थात परब्रह्म के कुछ स्थाई लोक तथा क्षर पुरुष अर्थात् कालब्रह्म के 21 ब्रह्मांड की रचना परमात्मा ने अस्थाई की है।
पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में प्रमाण हैं कि कविरंघारिसी (कविर) कबीर परमेश्वर पापों के शत्रु है अर्थात् पाप विनाशक कबीर परमेश्वर जी है। बंधनों का शत्रु अर्थात बंदी छोड़ कबीर परमेश्वर जी है।
हम सब ब्रह्मलोक में निवासरत है हमारी जन्म मृत्यु होती है, यहां पापकर्मों की सजा सबको मिलती है इससे कबीर परमेश्वर ही छुटकारा दिलाते हैं। इसलिए पूजा के योग्य केवल कबीर परमेश्वर जी है।
विश्वकर्मा किसका अवतार हैं?
विश्वकर्मा जी के पांच अवतार है:
- विराट विश्वकर्मा
- धर्मवंशी विश्वकर्मा
- अंगिरावंशी विश्वकर्मा
- सुधन्वा विश्वकर्मा
- भृगुवंशी विश्वकर्मा
अभी हमने जाना विश्वकर्मा के अवतार के बारे में। आइए अब जानते हैं वास्तविक विश्वकर्मा पूर्ण परमात्मा के बारे में तथा उनके अवतारों के बारे में ऋग्वेद मण्डल नंबर 9 सुक्त 96 मंत्र 16 में कहा है कि आओ पूर्ण परमात्मा के वास्तविक नाम को जाने इसके मंत्र 17 में वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि पूर्ण परमात्मा कविर्देव विलक्षण मनुष्य के बच्चे के रूप में प्रकट होकर कबीर वाणी कविताओं लोकोक्तियों द्वारा तत्वज्ञान का प्रचार दृढ़ भक्तों को अच्छी आत्माओं को करते है।
कबीर परमेश्वर जी पृथ्वी पर प्रकट होते रहते हैं, परमात्मा चारों युगों में आते हैं। सतयुग में सत सुकृत नाम से, त्रेता में मुनींद्र, द्वापर में करुणामय और कलयुग में अपने वास्तविक नाम कबीर नाम से आते हैं इसके अलावा जिन आत्माओं को अपना ज्ञान और नाम उपदेश देने का आदेश देते हैं वे भी उन्हीं के अवतार माने जाते हैं।
Vishwakarma Puja 2024 पर जानिए भगवान विश्वकर्मा के पिता कौन है?
भगवान विश्वकर्मा के माता अंगिरसी तथा पिता का नाम वास्तुदेव है। आइए जानते हैं वास्तविक विश्वकर्मा तथा उनके जन्म के बारे में। विश्वकर्मा शब्द से स्पष्ट है पूरे विश्व को बनाने वाला जो सबका पालक उपत्तिकर्ता है। हमारे वेदों में प्रमाण है कि सर्व सृष्टि उत्पत्ति कर्ता कबीर परमेश्वर जी है वे स्वयंभू परमेश्वर है उनके कोई माता पिता नहीं हैं उनकी जन्म मृत्यु नहीं होती हैं। अथर्ववेद काण्ड नंबर 4 अनुवाक नंबर 1 के श्लोक 1 से 7 में स्पष्ट है कि सर्व ब्रह्माण्डों का रचनहार, कालब्रह्म तथा देवी दुर्गा को भी उत्पन्न करने वाला, सत्य भक्ति करने वाले भक्त को सत्यलोक ले जाने वाले स्वयं कविर्देव जी हैं।
विश्वकर्मा पूजा दिवाली के बाद भी क्यों मनाई जाती है?
मान्यताओं के अनुसार दिवाली के बाद विश्वकर्मा पूजन श्री कृष्ण जी के गोवर्धन पहाड़ उठाकर ब्रज को डूबने से बचाने की घटना को याद करने के लिए की जाती हैं। शास्त्रों में वर्णन है कि श्री कृष्ण जी ने एक पूर्ण परमात्मा की भक्ति करने के लिए व्रज वासियों को कहा था, देवी-देवताओं की पूजाएं बंद करवा दी थीं इससे नाराज होकर इंद्र ने ब्रज को डुबाने की कोशिश की थी। आखिर श्री कृष्ण जी किस एक परमात्मा की भक्ति के लिए ब्रज वासियों को उपदेशित कर रहे थे आइए जानते हैं, हमारे गीता और वेदों में प्रमाण हैं कि ब्रह्मा, विष्णु और शिव जी से ऊपर और शक्ति यानी भगवान है। पवित्र श्रीमद्भगवद्गीता जी के श्लोक 15 के श्लोक 16, 17 में लिखा है कि इस संसार में नाशवान (क्षर पुरुष काल ब्रह्म) और अविनाशी (अक्षर पुरुष परब्रह्म) दो प्रकार के पुरुष यानी प्रभु है। सर्वश्रेष्ठ प्रभु इनसे अलग है जिसे परम अक्षर पुरुष पूर्ण ब्रह्म कहते है वास्तव में वो ही परमात्मा है। उस परमात्मा की प्राप्ति के लिए श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में तत्वदर्शी संत की शरण में जाने को कहा गया हैं।
Vishwakarma Puja 2024 पर विश्वकर्मा को कैसे प्रसन्न करें?
विश्वकर्मा जी को प्रसन्न करने के लिए लोग तरह तरह से आदर भाव के साथ पूजा अर्चना करते हैं। फैक्ट्री, कारखाने, उद्योग आदि को सुंदर तरीके से सजाया जाता है। और जैसे कि विश्वकर्मा चालीसा पढ़ना, आरती करना, सभी मशीनरी वस्तु आदि को पूजा में शामिल करके हर्ष उल्लास के साथ विश्वकर्मा जी को प्रसन्न किया जाता है, परन्तु इस प्रकार की साधना से कोई लाभ नही है अपितु मूल्यवान समय की बर्बादी है, उस एक पूर्ण परमात्मा कविर्देव जी की साधना करने से हम सर्व देवी देवताओं को एक साथ प्रसन्न करके उनसे सर्व मिलने वाले लाभ और पूर्ण मोक्ष को पा सकते हैं।
विश्वकर्मा पूजा के पीछे क्या कहानी है?
हिंदू धर्म में विश्वकर्मा जी को दुनिया का सबसे पहला वास्तुकार माना जाता है। पुराणों में लेख आता है कि देवताओं के आग्रह करने पर ही विश्वकर्मा जी ने अस्त्र-शस्त्र का निर्माण किया था। हिंदू मान्यताओ के अनुसार विश्वकर्मा जी को सृजन का देवता माना जाता है। माना जाता है कि कन्या संक्रांति को उनका जन्म हुआ था इसलिए इस दिन विश्वकर्मा जयंती मनाई जाती है। इस बार भी 17 सितंबर, 2024 रविवार के दिन विश्वकर्मा जयंती मनाई जाएगी।
लेकिन ये सभी शास्त्र विरुद्ध पूजा होने की वजह से व्यर्थ है। वेद शास्त्रों में प्रमाण है कि पूर्ण ब्रह्म कविर्देव है यही सृष्टि के मालिक हैं। वेद ज्ञान दाता कहता है कि पूर्ण परमात्मा ने अपनी सूझ- बूझ से सभी की रचना की और परब्रह्म के सात संख ब्रह्मांड तथा ब्रह्म के 21 ब्रह्मांड व इनमें छोटी से छोटी रचना भी उसी परमात्मा ने की हैं। पवित्र अथर्ववेद के काण्ड नं. 4 अनुवाक नं. 1 मंत्र नं 1 में भी प्रमाण है जिससे सिद्ध होता है कि कुल के सृजनहार पूर्ण ब्रह्म कविर्देव हैं।
विश्वकर्मा पूजा के दिन क्या नहीं करना चाहिए?
इस अवसर पर कुछ चीजें करने और कुछ चीजें न करने की सलाह दी जाती है। जानें लोक कथाओं के अनुसार, विश्वकर्मा जी की पूजा करते समय उस दिन औजारों को साफ करके संभाल कर रखना, इधर उधर नही फेकना और किसी भी औजार का प्रयोग उस दिन नही करना चाहिए। मांस मदिरा का सेवन नही करना है इससे पूजा खंडित हो जाती है। किसी भी व्यक्ति को या जीव को नही सताना है ऐसा करने से विश्वकर्मा जी रूष्ट हो जाते हैं। हम पूर्व में ही प्रमाण देकर यह बता चुके हैं कि शस्त्र या किसी मशीन या किसी वस्तु की पूजा शास्त्र सम्मत नही है।
Vishwakarma Puja 2024 | आइए जानते है गीता जी के उन श्लोकों से परिचित करवाते हैं जिसमें मूर्ति पूजा का खंडन किया गया है। श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 16 का श्लोक 23/24 में गीता ज्ञानदाता अर्जुन को बता रहा है कि जो साधक शास्त्रों में वर्णित भक्ति की क्रियाओं के अतिरिक्त साधना व क्रियाएं करते हैं, उनको न सुख मिलता है न सिद्धि मिलती हैं न कोई गति प्राप्त होती है न कोई मोक्ष प्राप्त होता है व्यर्थ बताया है। पवित्र धर्म शास्त्रों में कोई प्रमाण नहीं है कि मूर्ति पूजा करने का।
कबीर साहेब जी बताते हैं:-
वेद पढ़ें पर भेद न जाने, ये बांचे पुराण अठारह।
पत्थर की पूजा करें, भूल गए सृजन हारा।।
कबीर, पत्थर पूजे हरि मिले, तो मैं पूजूँ पहाड़।
तातें तो चक्की भली, जो पीस खाये संसार।।
कुछ प्रमाण श्रीमद्भगवत गीता से
- केवल पूर्ण परमात्मा से ही प्राणी पूर्ण मुक्त (जन्म-मरण रहित) हो सकता है, वही परमात्मा वायु की तरह हर जीवात्मा के ह्रदय में साथ रहता है। गीता ज्ञान दाता ने अर्जुन को कहा है कि मेरी पूजा भी त्याग कर उस एक परमात्मा की शरण जा तेरा पूर्ण छुटकारा अर्थात मोक्ष हो जाएगा। यह भी कहा कि मेरा भी पूज्य देव वही पूर्ण परमात्मा है। गीता – 18:62 और 66
- ब्रह्म लोक से लेकर ब्रह्मा, विष्णु शिव आदि के लोक तक सभी जन्म- मरण व प्रलय में है। इसलिए ये अविनाशी नहीं हैं। जिसके फलस्वरूप इनके उपासक (साधक) भी जन्म – मरण में ही हैं। गीता 8:17 व 9:7
- उस पूर्ण परमात्मा को छोड़कर अन्य देवी-देवताओं की, भूतों की, पितरों की पूजा मूर्खों की साधना है। इन्हें करने वालो को घोर नरक में डाला जाएगा। गीता 7:12-15, 20-23; अध्याय 9 श्लोक 25
- व्रत करने से भी भक्ति असफल है। गीता अध्याय 6 श्लोक 16
- जो शास्त्रानुकूल यज्ञ-हवन आदि (पूर्ण गुरु के माध्यम से) नहीं करते है वे पापी और चोर प्राणी हैं। गीता 3:12
- तत्व ज्ञान को जानने के लिए तत्वदर्शी संतों की खोज करना चाहिए। गीता 4:34
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उपरोक्त प्रमाण सिद्ध करते हैं कि यदि हम मनमुखी पूजाएं करते हैं, शास्त्रानुकूल भक्ति नहीं करते हैं तो न हमें मोक्ष मिलता है, न अन्य लाभ मिलता है। आप स्वयं विचार करें और तत्वदर्शी संत रामपाल जी की शरण में जाकर अपने मनुष्य जीवन का कल्याण करवाएं क्योंकि बिना तत्वदर्शी संत के पूर्ण मुक्ति नहीं हो सकती है।
Vishwakarma Puja 2024 [Hindi]: केवल नाम आधार है कलयुग में मुक्ति साधन का
ध्यान दें और स्वयं निर्णय करें कि पूरी सृष्टि के रचनहार, परम पूज्य भगवान, जिनकी भक्ति साधना करनी चाहिए, जो हमें सर्व सुख देकर पूर्ण मुक्त कर सकता है वह यह देवी- देवता या विश्वकर्मा जी नहीं बल्कि पूर्ण ब्रह्म है जिनका नाम हमारे वेदों पुराणों, श्रीमद्भगवत गीता जी में कविर्देव हैं। वेद पुराण साक्षी हैं, जिनमें सर्व प्रमाण विद्यमान हैं ।
कबीर साहेब जी कहते हैं :-
कलयुग में जीवन थोड़ा है, कीजे बेग सम्भार ।
योग साधना बने नहीं, केवल नाम आधार। |
अर्थात, साहेब कबीर समझा रहे हैं कि पूर्व के युगों में मानव की आयु लम्बी होती थी ऋषि व साधक हठयोग करके हजारों वर्षों तक तप साधना करते रहते थे, अब कलयुग में मनुष्य की औसत आयु लगभग 75 -80 वर्ष रह गई इतने कम समय में पूर्व वाली हठयोग साधना नहीं कर सकोगे। इसलिए अतिशीघ्र पूर्ण गुरु जी से नाम दीक्षा लेकर अपने जीवन का शेष समय सम्भाल लें। भक्ति करके इसका सदुपयोग कर लें। यदि कोई व्यक्ति चारों वेदों को पढ़ता रहा और नाम जाप किया नहीं तो वह भक्ति की शक्ति से रहित होकर नरक में गिरेगा और जिसने विधिवत दीक्षा लेकर नाम का जाप किया तो समझ लो उसने सर्व वेदों का रहस्य जान लिया ।
इसलिए जो सर्व का सृजनहार है, उस परम पूज्य परमात्मा की सद्भक्ति करके मानव जीवन का कल्याण करवाना ही हितकारी है। सर्व मानव समाज को चाहिए कि वे वेदों पुराणों से समझें कि सर्व मनमुखी पूजाएं व्यर्थ हैं।
सद्भक्ति केवल तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के पास है
वर्तमान में पूरे विश्व में एकमात्र तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज ही हैं जो वास्तविक तत्वज्ञान करा कर पूर्ण परमात्मा की पूजा आराधना बताते है। समझदार को संकेत ही काफी होता है। वह पूर्ण परमात्मा ही है जो हमारे धन में वृद्धि कर सकता है, सुख शांति दे सकता है व रोगरहित कर मोक्ष दिला सकता है। सर्व सुख और मोक्ष केवल तत्वदर्शी संत की शरण में जाने से सम्भव है।
इसलिए सत्य को जाने और पहचान कर पूर्ण तत्वदर्शी सन्त रामपाल जी महाराज से नामदीक्षा लेकर अपने जीवन का कल्याण करवाएं। अधिक जानकारी के हेतु सतलोक आश्रम यूट्यूब चैनल पर सत्संग श्रवण करें, जीने की राह पुस्तक पढ़ें और शाम 7:30 से साधना चैनल पर मंगल प्रवचन सुने तथा जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी से मुफ्त नाम की दीक्षा लें।
Vishwakarma Puja Quotes 2024 [Hindi]
- विश्वकर्मा जयंती पर क्यों करें आन उपास, उसको क्यों न पूजें जिसने रचा सकल संसार।
- भगति मुक्ति के दाता सतगुरु भटकत प्राण फ़िरंदा, उस साहिब को पूजिये जिसके हुकुम बिना नहीं तरुवर पात हिलन्दा।
- स्तुति करते बारम्बार विश्वकर्मा जी की, कि औज़ार दिए, काम दिया, कर दिया हमे निहाल। उस करतार को भूल्या बैठा, जिसने तुझे गर्भ में भी सम्भाला, जिसका तू है असली लाल।।
FAQs about Vishwakarma Jayanti [Hindi]
उत्तर:- विश्वकर्मा जयंती 16 सितंबर को मनाई जाती है।
उत्तर:- विश्वकर्मा जी सर्वप्रथम इंजीनियर के रूप में जाने जाते हैं।
उत्तर:- विश्वकर्मा जी की जयंती के दिन लोग अपने औज़ारों को साफ कर विश्वकर्मा जी के तस्वीर के सामने रख कर उनकी पूजा करते हैं।
उत्तर:- विश्वकर्मा जी ने प्राचीन काल में अनगिनत शस्त्रों, औज़ारों तथा इमारतों का निर्माण किया था।
कथाओं के अनुसार विश्वकर्मा जी का विवाह कौषिक की पुत्री जयन्ती के साथ हुआ था।