September 13, 2024

क्या है समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code in Hindi)?

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समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code in Hindi): एक देश या एक राज्य में विभिन्न संप्रदायों, धर्मों, जातियों के रीति रिवाजों से ऊपर उठकर हर नागरिक के लिए एक कानून होना ही समान नागरिक संहिता कहलाता है। समान नागरिक संहिता में शादी, तलाक, जमीन जायदाद के बंटवारे, तथा बच्चे की परवरिश इत्यादि में सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून होंगे। इस प्रकार निष्पक्ष कानून पूरे देश के लिए लागू होगा जिसका किसी भी धर्म रीति रिवाज विशेष से कोई ताल्लुक नहीं होगा।

Table of Contents

Uniform Civil Code: मुख्य बिंदु

  • समान नागरिक संहिता का तात्पर्य है एक निष्पक्ष कानून जो सभी नागरिकों पर एक समान रूप से लागू हो 
  • संप्रदायों, धर्मों के व्यक्तिगत मान्यताओं से हटकर हर नागरिक के लिए एक कानून होना
  • उत्तराखंड कैबिनेट समान नागरिक संहिता के कार्यान्वयन पर विशेषज्ञों की एक समिति गठित करेगी
  • उत्तरखंड में यह कानून नागरिकों के लिए विवाह, तलाक, भूमि, संपत्ति और विरासत के मुद्दों पर समान कानून प्रदान करेगा
  • पक्षकार मानते हैं इस कानून के बनने से महिलाओं और कमजोर वर्गों में भेदभाव कम होगा
  • दिल्ली उच्च न्यायालय ने भी सिफारिश की है इस कानून को बनाने की   
  • सतभक्ति से होगा समस्याओं का समाधान, पूरे विश्व में एक झंडे और एक भाषा का होगा विधान

समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) का इतिहास

इतिहास साक्षी है कि भारत में धर्म संप्रदाय, ऊंच-नीच छुआछूत, जात- पात के नाम पर काफी विवाद रहा है । उस समय जिसकी लाठी उसकी भैंस अर्थात जिसकी शक्ति ज्यादा थी उसी के आधार पर उनके नियम कानून मानने पड़ते थे। समय बदलता गया दुनिया बदलती गई। भारतवर्ष के लंबे गुलामी के इतिहास में आक्रमणकारियों, मुग़लों, ईस्ट इंडिया कंपनी, ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा समय समय पर भारतीय संस्कृति सभ्यता व रीति-रिवाजों में परिवर्तन और धर्मांतरण कराकर अपनी परंपराओं को भारतीय लोगों पर थोपा गया। 

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सन 1835 में ब्रिटिश सरकार ने एकरूपता की जरूरत को समझते हुए समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत की। लेकिन इसने सिफारिश की कि हिंदुओं और मुसलमानों के पर्सनल लॉ को बाहर रखा जाए। सन् 1941 में सामान्य हिंदू कानूनों की आवश्यकता के प्रश्न की जांच करने के लिए बी एन राव समिति बनाई गई थी। इस समिति ने महिलाओं को समान अधिकार देने वाले एक संहिताबद्ध हिंदू कानून की सिफारिश की। 1937 के अधिनियम की समीक्षा की गई और समिति ने हिंदुओं के लिए विवाह और उत्तराधिकार की एक समान नागरिक संहिता की सिफारिश की।

Uniform Civil Code: वर्तमान में क्या स्थिति है? 

वर्ष 1956 में हिंदुओं, बौद्धों, जैनों और सिखों के लिए हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम नया कानून बनाया गया। इस कानून में इन सभी के उत्तराधिकार, संपत्ति और तलाक से संबंधित कानून को संशोधित किया गया। स्मरण रहे कि मुस्लिम, ईसाई और पारसी धर्मों के लिए व्यक्तिगत कानूनों को नहीं छेड़ा गया। ऐसा करने पर हिन्दू लोगों को हमेशा ऐसा लगता रहा कि उनके अपने देश में अन्य धर्मों की अपेक्षा उनसे भेदभाव किया गया है।      

समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) से फायदा है या नुकसान?

समान नागरिक संहिता लागू होने से देश के सभी लोगों पर समान नियम व कानून का लागू होना है। इस नियम कानून का मतलब शादी विवाह, तलाक, पैतृक संपत्ति के बंटवारे या बच्चे के गोद लेने इत्यादि से है। प्रायः देखा जाता है कि अपने अपने धर्मों में अपनी परंपराओं और रीति-रिवाजों के अनुसार शादी- विवाह, तलाक, पितृ संपत्ति का बंटवारा अलग-अलग होता है लेकिन समान नागरिक संहिता लागू होने पर ये सभी धर्मों में समान रूप से होगा जैसे कि 

  • मुस्लिम महिलाओं का तीन तलाक होता था और अन्यों को तलाक से पहले 1 वर्ष या 2 वर्ष अलग रहना पड़ता है।
  • सभी धर्मों में अलग-अलग नियम और कानून होने से न्याय मिलने में बहुत देरी होती है जिससे जनता को राहत मिल सकेगी।
  • न्याय प्रणाली को धर्मों के अलग-अलग नियमों के कारण उसकी सुनवाई करने में अधिक विलंब होता है, समान अधिकार संहिता के चलते विवादों का निपटारा जल्दी होगा।
  • समान नागरिक संहिता लागू होने पर राजनैतिक गुटबाजी करने का मुद्दा खत्म हो जाएगा।
  • यदि देश में एकता होगी तो देश का विकास भी अच्छा हो सकता है।

Uniform Civil Code: अगर फायदा है तो इसका विरोध क्यों किया जा रहा है?

वर्तमान में भाजपा एवं समान विचार धारा के लोगों द्वारा इस मुद्दे को उठाया गया और इस पर काफी वाद विवाद भी हुआ जो काफी सुर्खियों में रहा। 

  • केन्द्रीय विधि आयोग का कहना है कि समान नागरिक संहिता ना तो आवश्यक है, ना ही वांछनीय है। उनका कहना है कि देश में अगर 17 -18 करोड़ मुस्लिम इसके विरोध में है तो इसे लागू करने में अराजकता ही फैलेगी। 
  • संविधान ने मेघालय, नागालैंड और मणिपुर जैसे राज्य की स्थानीय परंपराओं को मान्यता दे रखी है तो उसका क्या होगा। 
  • राज्य सरकारों ने आदिवासियों को विवाह, जमीन जायदाद को लेकर विशेष रियायत दी हुई हैं नए कानून से उनका क्या होगा? 
  • हिंदुओं में अलग-अलग जातियों में भी अलग अलग मान्यताएं हैं। 
  • बौद्ध, जैन की भी अपनी विशेष मान्यताएं है ऐसे में उसे हटाने का विरोध होगा। 
  • विधि आयोग का यह भी कहना है कि समान नागरिक संहिता को लागू ना कर इसे राज्य स्तर पर अलग-अलग चरणों में सुधार करने की आवश्यकता है। अगर कड़ाई से इस पर सुधारीकरण किया जाए तो समान नागरिक संहिता नियम बनाने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।
  • प्रश्न उठाया जा रहा है कि कई इस कानून की मांग केवल सांप्रदायिक राजनीति तो नही है।
  • कुछ लोग मानते हैं कि इस कानून की आड़ में बहुसंख्यक हिंदुओं का भला होगा
  • भारतीय संविधान के कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि अनुच्छेद 25 किसी भी धर्म को मानने और प्रचार की आजादी को संरक्षित करता है दूसरी ओर अनुच्छेद 14 में निहित समानता की अवधारणा के विरुद्ध है। 

समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) की आवश्यकता है: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली उच्च न्यायालय की न्यायाधीश प्रतिभा एम सिंह ने एक तलाक के मामले में कहा कि आज के भारत में धर्म, जाति की बाधाएं टूटकर अंतरधार्मिक और अंतर्जातीय विवाह या फिर तलाक हो रहे है। आज के युवा वर्ग को इन परेशानियों से नहीं जूझना पड़े इसका निवारण करने के लिए समान नागरिक संहिता लागू होनी चाहिए। संविधान के आर्टिकल 44 में इसके लिए जो आशा जाहिर की गई थी उसे वास्तविकता में बदलना जरूरी है।  

https://twitter.com/IAMCouncil/status/1507224464769134613

एक मामले में पति हिंदू मैरिज एक्ट के अनुसार तलाक की गुहार लगा रहा था जिसमे पत्नी अपनी मीणा जनजाति का  हवाला देकर यह एक्ट लागू नहीं होने का दावा कर तलाक की अर्जी खारिज करने की प्रार्थना कर रही थी। इस मामले के दिल्ली हाईकोर्ट ने पति की अपील को स्वीकार करते हुए समान नागरिक संहिता लागू करने की आवश्यकता महसूस की। उच्च न्यायालय ने इस फैसले को कानून मंत्रालय के पास भेजने का आदेश भी दिया जिससे कानून मंत्रालय विचार कर कानून बनाने की सोच सके।  

1985 में, शाह बानो मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि समान नागरिक संहिता देश को एक सूत्र में रखेगा। 1995 में, कोर्ट ने सरकार को संविधान के अनुच्छेद 44 को देश में लागू करने का निर्देश दिया था। 2019 में भारत में मुस्लिम समुदाय के बीच ट्रिपल तालक की प्रथा को गैरकानूनी घोषित करने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद, समान नागरिक संहिता पर बहस फिर से सतह पर आ गई। तब सरकार ने संसद को बताया था कि वह समान नागरिक संहिता लाने के लिए प्रतिबद्ध है।

Uniform Civil Code: हिंदू कोड बिल क्या है?

भारत में हिन्दुओं के लिए हिंदू कोड बिल लाया गया। देश में इसके विरोध के बाद इस बिल को चार हिस्सों में बांट दिया गया था। हिंदू मैरिज एक्ट, हिंदू सक्सेशन एक्ट, हिंदू एडॉप्शन एंड मैनेजमेंट ऐक्ट, और हिंदू माइनॉरिटी एंड गार्जियनशिप एक्ट बनाए गए थे। इस कानून ने महिलाओं को सीधे तौर पर सशक्त बनाया। इसके तहत महिलाओं को पिता और पति के पैतृक संपत्ति पर अधिकार मिलता है। इसके अलावा अलग-अलग जातियों के लोगों को एक दूसरे से शादी करने का अधिकार है। लेकिन कोई व्यक्ति एक शादी के रहते दूसरी शादी नहीं कर सकता है।

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 में पैतृक संपत्ति में पुत्रियों को विरासत का अधिकार नहीं दिया गया था। पुत्रियां केवल एक संयुक्त हिंदू परिवार से भरण-पोषण का अधिकार मांग सकती थी। भारतीय संसद ने 9 सितंबर, 2005 को अधिनियम में संशोधन द्वारा पुत्रियों के इस असमानता के अधिकार को हटा दिया था।

मुस्लिम पर्सनल लॉ क्या है?

भारत में मुसलमानों के लिए मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) आवेदन अधिनियम, 1937 के अंतर्गत विशेष प्रयोजन किया गया हैं। इस कानून के द्वारा मुसलमानों के बीच विवाह, उत्तराधिकार, विरासत और दान से संबंधित मसले शासित किए जाते हैं। द डिसॉल्विंग ऑफ मुस्लिम मैरिजेज एक्ट 1939, मुस्लिम महिलाओं को तलाक और उन मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों को प्रदान करने के लिए हैं। तीन तलाक रोकने के लिए मुस्लिम महिला (विवाह संरक्षण) अधिनियम-2019 मुसलमानों के निजी क़ानूनों (Muslim Personal Law) में सुधार की दिशा में एक क़दम है। 

इन देशों में पहले से लागू है समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code):

एक तरफ भारत में समान नागरिक संहिता ( Uniform Civil Code) को लेकर काफी चर्चा चल रही है और वहीं दूसरी तरफ ऑस्ट्रेलिया, यूरोपियन यूनियन, ब्रिटेन, अमेरिका, मलेशिया, इंडोनेशिया, तुर्की, सूडान, मिस्र और बांग्लादेश जैसे देशों में समान नागरिक संहिता पहले से लागू है।

Uniform Civil Code: क्यों हो रही है समान नागरिक संहिता की मांग?

  • एक रूप कानून से पूरे देश में एक राष्ट्रवादी भावना बलवती होगी।
  • वर्तमान कानून क्लिष्ट है उनका सरलीकरण आवश्यक है।
  • भारत के एक बड़े संवेदनशील वर्ग को संरक्षण मिले।
  • महिलाओं को सामाजिक सुरक्षा मिल सकेगी।
  • विरासत और उत्तराधिकार समेत विभिन्न मुद्दों के लिए एक जैसा कानून बन सकेगा।

क्या भारत के संविधान के अनुसार यह कानून बनाया जा सकता है?

भारतीय संविधान अनुच्छेद 44 (Article 44) नागरिकों के लिए एक समान सिविल संहिता को निर्देशित करता है। इसके अनुसार राज्य, भारत के समस्त राज्यक्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान सिविल संहिता प्राप्त कराने का प्रयास करेगा। भारत पूरे क्षेत्र में अपने नागरिकों के लिये एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करे और राज्य इसे कानूनी जामा पहनाकर लागू कर सकते हैं । राज्य सरकारों के साथ केंद्र सरकार को भी अधिकार दिया गया है कि वे इसे लागू करें। कुल मिलाकर अनुच्छेद 44 का उद्देश्य कमजोर वर्गों से भेदभाव की समस्या को खत्म करके देशभर में विभिन्न सांस्कृतिक समूहों के बीच तालमेल बढ़ाना है। दूसरी ओर संविधान में धार्मिक आजादी को देने का भी प्रावधान है। अनुच्छेद-37 के अनुसार राज्य के नीति निदेशक प्रावधानों को न्यायालय में नहीं बदला जा सकता परंतु यह सुशासन व्यवस्था की प्रवृत्ति के सिद्धांत के अनुरूप रहे। 

Uniform Civil Code: गोवा में यह कानून पहले से लागू है

पाठकों की जानकारी के लिए बता दें कि गोवा की आजादी से पूर्व वहाँ पुर्तगाली सिविल कोड सन् 1867 से लागू था। गोवा की स्वतंत्रता के बाद ये यूनिफॉर्म सिविल कोड का ऐक्ट जारी रहा। गोवा का समान नागरिक संहिता कानून आसान बना हुआ है। यह कानून हिंदुओं को कुछ स्थितियों में बहुविवाह करने की आज्ञा देता है। इस प्रावधान में गोवा में पैदा हुए हिंदु आते है और इसके प्रावधान है:

  • पत्नी से 25 साल की उम्र तक संतान नहीं होने पर पति को दूसरी शादी का अधिकार है। 
  • पत्नी 30 साल की उम्र तक यदि पुत्र को यदि जन्म नहीं दे पाए इस स्थिति में पति दूसरी शादी का अधिकारी है। 

Uniform Civil Code: उत्तराखंड ने उठाया कानून बनाने की ओर कदम 

उत्तराखंड के नव निर्वाचित मुख्यमंत्री पुष्‍कर सिंह धामी ने अपने चुनाव पूर्व वायदे को पूरा करने की बात अपनी कैबिनेट की पहली बैठक में दोहराई। सरकार गठन के उपरांत पहली कैबिनेट ने सर्वसम्मति से समान नागरिक संहिता के कार्यान्वयन पर जल्द से जल्द विशेषज्ञों की एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति के गठन को मंजूरी दे दी। उन्होंने कहा न्यायविदों, सेवानिवृत प्रबुद्ध जनों, समाजिक कार्यकर्ताओं और अन्य विद्वानों की एक उच्च स्तरीय कमेटी गठित होगी। यह कमेटी उत्तराखंड राज्य के लोगों के लिए समान नागरिक संहिता कानून का मसौदा बनाकर सरकार को पेश करेगी। इस समान नागरिक संहिता कानून का दायरा विवाह, तलाक, जमीन-जायदाद और उत्तराधिकार जैसे विषयों पर लागू होगा। भारतीय जनता पार्टी द्वारा शासित अन्य प्रदेश भी शीघ्र ही इस ओर अपने कदम बढ़ा सकते हैं।   

https://twitter.com/pushkardhami/status/1507052536762490892?s=08

सद्भक्ति से होगा सभी समस्याओं का समाधान

जैसे कि हम सब जानते हैं कि आज संसार में सभी लोग अनेक धर्मों और मजहबों में बट गए हैं। सभी धर्म के मानने वाले अपने अपने धर्म को श्रेष्ठ बताते हैं तथा अपने धर्म के अनुसार ही भक्ति क्रिया करते है। यदि एक धर्म के व्यक्ति दूसरे धर्म के व्यक्ति को कुछ बोल दे तो लोग एक दूसरे को मार काटने के लिए तैयार हो जाते हैं। ऐसी अवस्था में परमात्मा संत रूप में आकर अपने तत्वज्ञान का संदेश सभी धर्मों के लोगों को बताते हैं। परमात्मा स्वयं या अपने स्वरूप तत्वदर्शी संत को भेजकर समाज में फैली कुरीतियां, पाखंडवाद, भेदभाव तथा बुराइयों को समाप्त कर शांति स्थापित करते हैं। 

इस समय वर्तमान में जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज इस पृथ्वी पर अवतरित हुए हैं जिन्होंने पूरे विश्व में तत्वज्ञान का संदेश पहुंचाया है तथा सभी मानव समाज को सद्भक्ति कर अपने निज लोक अर्थात सतलोक में जाने का रास्ता दिखाया है। तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज कहते हैं-

 जीव हमारी जाति है, मानव धर्म हमारा।

 हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई, धर्म नहीं कोई न्यारा।।

तत्वदर्शी संत द्वारा पूरे विश्व में एक झंडे और एक भाषा का विधान होगा

अतः आप सभी भाइयों एवं बहनों से प्रार्थना है कि तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज एप्प डाउनलोड करके सत्संग सुने तथा पवित्र जीने की राहपवित्र ज्ञान गंगा पुस्तक पढ़ें और ज्ञान को समझ कर शीघ्र नाम दीक्षा लेकर अपने और अपने परिवार का कल्याण करवाएं।

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