Last Updated on 23 July 2021, 10: 30 PM IST: Guru Purnima in Hindi: गुरु पूर्णिमा 23 जुलाई, शुक्रवार को आषाढ़ माह की पूर्णिमा के दिन भारत में मनाई जाएगी। गुरु पूर्णिमा के अवसर पर हम गुरु के जीवन में महत्व को जानेंगे साथ ही जानेंगे सच्चे गुरु के बारे में जिनकी शरण में जाने से हमारा पूर्ण मोक्ष संभव है।
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Guru Purnima in Hindi: गुरु पूर्णिमा की संक्षिप्त जानकारी
Guru Purnima in Hindi: गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है, इस दिन महर्षि वेद व्यास जी का जन्मदिवस भी होता है। लगभग 5000 साल पहले, महर्षि वेद व्यास ने वेदों का संकलन किया था। उन्होंने मंत्रों को चार संहिताओं (संग्रह) में व्यवस्थित किया जो चार वेद हैं: पवित्र ऋग्वेद, पवित्र यजुर्वेद, पवित्र सामवेद, पवित्र अथर्ववेद। वे वैदिक संस्कृत में लिखे गए थे। लेकिन आज इन वेदों का हिंदी और कुछ अन्य भाषाओं में भी अनुवाद किया जा चुका है। वेद व्यास जी ने 18 पुराण और महाभारत को भी लिखा। यह वही वेद व्यास जी हैं जिनके पुत्र शुकदेव/सुखदेव थे जो बारह वर्ष तक तीनों गुणों ब्रह्मा, विष्णु और शिव से बचकर मां के गर्भ में रहे थे।
शास्त्रों में गु का अर्थ तिमिर बताया गया है और रू का अर्थ निरोधक बताया है अर्थात गुरु का अर्थ अज्ञान रूपी अंधकार से बाहर लाने वाला या अज्ञान का अंधकार खत्म करने वाला है। गुरु महिमा का बखान अनेकों सन्तों ने किया है। जीवन रूपी भवसागर को गुरु रूपी नौका के बिना पार करना असम्भव है। परम् आदरणीय कबीर साहेब जी ने गुरु महिमा का अद्वितीय बखान किया है।
कबीर, सात द्वीप नौ खण्ड में, गुरु से बड़ा न कोय |
करता करे न कर सकै, गुरु करे सो होय ||
आज व्यास पूर्णिमा के अवसर पर इस लेख के माध्यम से महर्षि वेदव्यास के पुत्र सुखदेव के विषय में जानेंगे और पाएंगे कि किस प्रकार एक सिद्ध सन्त को भी गुरु के बिना कहीं जगह नहीं मिली और तब उन्होंने राजा जनक को गुरु धारण किया।
सुखदेव ऋषि और राजा जनक
सुखदेव का कोई गुरू नहीं था। सुखदेव को अपने ज्ञान पर अंहकार था जिस कारण वह उड़ कर विष्णु लोक में पहुंच गए परंतु वहां के पहरेदारों ने उसे अंदर प्रवेश नहीं करने दिया। अंदर न जाने देने का कारण था गुरु का न होना। पहरेदारों से प्रार्थना करने पर विष्णु जी द्वार पर सुखदेव से आकर मिले और तब विष्णु जी ने सुखदेव को बिना आदर सत्कार दिए पुनः पृथ्वी पर जाकर राजा जनक को अपना गुरू बनाने के लिए कहा। विष्णु जी का यह आदेश पाकर सुखदेव जी ने राजा जनक से नामदीक्षा प्राप्त की। (जानकारी के लिए बता दें राजा जनक पहले राजा अम्बरीष थे और कलयुग में गुरू नानक देव जी वाली आत्मा के रूप में उन्होंने जन्म लिया। उन्होंने काशी वाले धानक/जुलाहे कबीर जी (परमात्मा) को गुरू रूप में धारण किया। उनसे नामदीक्षा ली और अपना कल्याण करवाया।) नोट: संपूर्ण जानकारी के लिए प्रतिदिन शाम को देखें संत रामपाल जी महाराज के आध्यात्मिक सत्संग 7.30-8.30 बजे।
Guru Purnima in Hindi: बिना गुरु मुक्ति संभव नहीं
यदि गुरु धारण नहीं किया है तो आप कितना भी विवेक से कार्य करें सब निष्फल है। शास्त्रों में वर्णित है कि गुरु के बिना कोई कार्य सिद्ध नहीं होता है और इस बात को सन्तों ने भी अपनी वाणियों में दोहराया है। सभी कर्मों का फल अवश्य मिलता है। किन्तु बिना गुरु किये दान पुण्य एवं अन्य धार्मिक कार्यों का कोई फल नहीं मिलता। सभी चीजें या वस्तुएं समय आने पर ऋण की भाँति वापस लौटा दी जाती हैं। किन्तु पूर्ण गुरु यानी तत्वदर्शी संत से नामदीक्षा लेने के बाद मिलने वाले लाभ एवं फल अद्वितीय होते हैं। इहलोक एवं परलोक दोनों के लाभ व्यक्ति प्राप्त करता है। श्रीमद्भगवतगीता अध्याय 4 श्लोक 34 में
Guru Poornima in Hindi: बिना गुरु धारण किया मनुष्य चौरासी लाख योनियों में जाता है एवं मनुष्य जन्म में किए धर्म (पुण्य-दान) को कुत्ते या अन्य योनियों में वह भोजन आदि सुविधाओं के रूप में प्राप्त कर लेता है। यदि उस प्राणी ने मानव शरीर में गुरु बनाकर धर्म (दान-पुण्य) यज्ञ की होती तो वह या तो मोक्ष प्राप्त कर लेता। यदि भक्ति पूरी नहीं हो पाती तो मानव जन्म अवश्य प्राप्त होता तथा मानव शरीर में वे सर्व सुविधाएं भी प्राप्त होती जो कुत्ते के जन्म में नही होती। मानव जन्म में ydi फिर कोई साधु सन्त-गुरु मिल जाता और वह अपनी भक्ति पूरी करके मोक्ष का अधिकारी बनता। इसलिए कहा है कि यज्ञों का वास्तविक लाभ प्राप्त करने के लिए पूर्ण गुरु धारण करना अनिवार्य है।
गुरु मानुष कर जानते, ते नर कहिए अंध |
होंय दुखी संसार में, आगे यमका फन्द ||

कबीर जी ने सांसारिक प्राणियों को ज्ञान का उपदेश देते हुए कहा है की जो मनुष्य गुरु को सामान्य प्राणी (मनुष्य) समझते हैं उनसे बड़ा मूर्ख जगत में अन्य कोई नहीं है, वह आंखों के होते हुए भी अन्धे के समान हैं तथा जन्म-मरण के भव-बंधन से मुक्त नहीं हो पाते । विषय ज्ञान देने वाले गुरू से श्रेष्ठ आध्यात्मिक ज्ञान देने वाला गुरू होता है जो जगत का पालनहार होता है। (पढ़ें पवित्र पुस्तक ज्ञान गंगा)
असली गुरु कौन है?
असली गुरु वह होता है जो न केवल हमें तत्वज्ञान का उपदेश करे बल्कि हमें जन्म मरण से, बुढ़ापे, बीमारी, दुखों से पीछा छुड़ाने का रास्ता सुझाए। तत्वज्ञान से मनुष्य को यह ज्ञान होता है कि परमात्मा कौन है, कैसा है, कहां रहता है, पृथ्वी पर कब और क्यों आता है? मनुष्य और परमात्मा का क्या संबंध है? ब्रह्मा, विष्णु, महेश के पिता कौन हैं? इनकी आयु कितनी है? ऐसा उच्च कोटि का ज्ञान कोई साधारण गुरू नहीं दे सकता। इसके लिए गीता अध्याय 4 श्लोक 34 के अनुसार पूर्ण तत्वदर्शी सन्त की तलाश करनी चाहिए और पूर्ण तत्वदर्शी सन्त के लक्षण बताए हैं गीता अध्याय 15 श्लोक 1 से 4 में यानी जो उल्टे लटके हुए संसार रूपी वृक्ष के सभी भागों को विस्तार से बता व तत्वदर्शी सन्त है।
Guru Purnima: बौद्ध दर्शन से मोक्ष असंभव
गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima in Hindi) बौद्धों के लिए एक महत्वपूर्ण त्योहार है। ऐसा माना जाता है कि भगवान बुद्ध, जिन्होंने ‘मोक्ष’ की तलाश में अपना राज्य और सिंहासन त्याग दिया था, ने इस शुभ दिन पर अपना पहला उपदेश दिया था जिसे कुछ लोगों द्वारा बुद्ध पूर्णिमा के रूप में भी जाना जाता है। परंतु सनद रहे गौतम बुद्ध का अपना कोई गुरू नहीं था उनका ज्ञान व्यवहारिक और साधारण था तथा वह आत्म और परमात्म ज्ञान से कोसों दूर थे। गौतम बुद्ध के ज्ञान से न तो लाभ संभव है न मोक्ष। जब मोक्ष गौतम बुद्ध का ही नहीं हुआ तो बुद्ध धर्म को जीवित रखने वालों का कैसे संभव है? स्वप्न में भी नहीं।
गुरु अनेक हैं पर सच्चा गुरू कौन?
जो मिस्त्री का काम सिखाए वह भी गुरू,जो बाल काटने सिखाए, कपड़ा सिलना सिखाए, जो खाना बनाना सिखाए वह भी गुरु है। माता पिता भी गुरु हैं, अध्यापक शिक्षा का महत्व बताते हैं वे भी गुरु हैं। लेकिन आध्यात्मिक गुरु अन्य ही है जिसका पूर्ण तत्त्वदर्शी सन्त होना पहली शर्त है। जो आपको आर्ट आफ लिविंग सिखाए ,योगा सिखाने, कुण्डली साधना सिखाए, यहां वहां का ज्ञान बांचे, ब्रह्म तक की साधना बताएं, मुरली सुनाएं समाज में ऐसे व्यवहारिक गुरूओं की कमी नहीं है। लेकिन इनसे मोक्ष कतई संभव नहीं है।
Guru Purnima in Hindi: विश्व की वर्तमान जनसंख्या 7.61 अरब है और हर व्यक्ति को अपनी ज़िंदगी में एक मसीहा या गुरू की आवश्यकता होती है। अक्षर ज्ञान कराने वाला गुरू सम्माननीय है परंतु तत्वदर्शी सन्त जो अध्यात्म ज्ञान दे दे उससे बड़ा दूसरा कोई और गुरु नहीं और आध्यात्मिक गुरु केवल तत्वदर्शी सन्त ही हो सकता है।
आत्म प्राण उद्धार ही, ऐसा धर्म नहीं और |
कोटि अश्वमेघ यज्ञ, सकल समाना भौर ||
Guru Purnima in Hindi: गुरु गुरु में भेद
विद्यालय के गुरू, आपको स्कूल के बाद क्या करना है, क्या बनना है इसकी शिक्षा देंगे। माता पिता भी गुरू की तरह ही होते हैं। जो समय समय पर मार्ग दर्शन करते हैं। परंतु आध्यात्मिक गुरु एक ऐसा गुरू होता है जो न केवल मोक्ष की ओर अग्रसर करता है बल्कि सभी प्रकार से सुख समृद्धि के रास्ते खोलता है, जन्म मरण से छुटकारा दिलाता है। वह तत्वज्ञान से परिचित करवाता है, भाग्य के कष्टों को दूर करता है और जो भाग्य में न हो वह देता है। ऐसा गुरु वास्तव में कामधेनु है और ऐसा गुरु कौन होता है? वह केवल तत्वदर्शी संत होता है और तत्वदर्शी सन्त कौन होता है? वह पूर्ण परमेश्वर स्वयं या पूर्ण परमेश्वर का नुमाइंदा होता है। तत्वदर्शी सन्त पूरी पृथ्वी पर एक होता है। उसे सभी क्यों नहीं पहचान पाते? उसे पूर्ण परमेश्वर के बच्चे पहचान लेते हैं ठीक वैसे ही जैसे कोयल की आवाज़ सुनकर कोयल के बच्चे उसके पास आ जाते हैं और काग के बच्चे उस बोली को समझ भी नहीं पाते।
कबीर, गुरु गोविंद कर जानिये, रहिये शब्द समाय |
मिलै तो दण्डवत बन्दगी, नहीं पलपल ध्यान लगाय ||
कबीर साहेब जी कहते हैं – हे मानव! गुरु और गोविंद को एक समान जानें। गुरु ने जो ज्ञान का उपदेश किया है उसका सिमरन/जाप करें। जब भी गुरु का दर्शन हो अथवा न हो तो सदैव उनका ध्यान करें जिसने तुम्हें गोविंद से मिलाप करने का सुगम मार्ग बताया है। गुरु को ईश्वर से भी ऊंचा स्थान दिया गया है। अभी तक हम केवल विद्या देने वाले और व्यावसायिक, व्यावहारिक, ज्ञान देने वाले गुरू को ही सर्वश्रेष्ठ गुरू मानते रहे हैं। परंतु असली गुरू तो वह है जो आत्मा को परमात्मा से मिलवा दे उसे मोक्ष का रास्ता दिखा दे।
Guru Purnima in Hindi: कबीर साहेब से बड़ा कोई गुरू नहीं
Guru Purnima in Hindi: परमेश्वर कबीर साहेब जो न केवल संत हैं बल्कि परमात्मा भी स्वयं हैं। परमात्मा ने स्वयं तत्वदर्शी सन्त की भूमिका निभाई। प्रत्येक युग में आए। यदि नानक देव जी, मीरा बाई, इंद्रमति, प्रहलाद, ध्रुव, रविदास जी, सिकंदर लोदी, धर्मदास जी, दादू जी, नल नील, गरीबदास जी को कबीर साहेब जी गुरू रूप में आकर न मिलते तो इनका उद्धार संभव नहीं था। इन सभी महानुभावों ने गुरु महिमा और उनके चरणों में अपना सर्वस्व न्यौछावर किया। समाज से उलाहने सुने परंतु अपना आत्म उद्धार करवाने का उद्देश्य कभी नहीं छोड़ा।
हम सुल्तानी नानक तारे, दादू कूं उपदेश दिया |
जात जुलाहा भेद नहीं पाया, काशी माहे कबीर हुआ ||
अनंत कोटि ब्रम्हण्ड का, एक रति नहीं भार |
सतगुरु पुरुष कबीर हैं कुल के सिरजनहार ||
■ गुरु ग्रन्थ साहेब, राग आसावरी, महला 1 के कुछ अंश –
साहिब मेरा एको है। एको है भाई एको है।
आपे रूप करे बहु भांती नानक बपुड़ा एव कह।। (पृ. 350)
जो तिन कीआ सो सचु थीआ, अमृत नाम सतगुरु दीआ।। (पृ. 352)
गुरु पुरे ते गति मति पाई। (पृ. 353)
बूडत जगु देखिआ तउ डरि भागे।
सतिगुरु राखे से बड़ भागे, नानक गुरु की चरणों लागे।। (पृ. 414)
मैं गुरु पूछिआ अपणा साचा बिचारी राम। (पृ. 439)
उपरोक्त वाणी में, गुरु नानक देव जी स्वयं स्वीकार कर रहे हैं कि साहिब (भगवान) केवल एक हैं और मेरे गुरु जी ने नाम जाप का उपदेश दिया। उनके अनेक रूप हैं। वो ही सत्यपुरुष हैं, वो जिंदा महात्मा के रूप में भी आते है, वो ही एक बुनकर (धानक) के रूप में बैठे हुए हैं, एक साधारण व्यक्ति यानी भक्त की भूमिका करने भी स्वयं आते हैं।
गुरु गोविन्द दोनों खड़े, काके लागूं पांय।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय॥
हिंदू धर्म में गुरु और ईश्वर दोनों को एक समान माना गया है। गुरु भगवान के समान है और भगवान ही गुरु हैं। गुरु ही ईश्वर को प्राप्त करने और इस संसार रूपी भव सागर से निकलने का रास्ता बताते हैं। गुरु के बताए मार्ग पर चलकर मानव परमात्मा और मोक्ष को प्राप्त करता है। शास्त्रों और पुराणों में कहा गया है कि अगर भक्त से परमात्मा नाराज़ हो जाते हैं तो गुरु ही उसकी रक्षा का उपाय बताते हैं। आज के समय में ऐसा गुरू एकमात्र संत रूप में संत रामपाल जी महाराज जी हैं जो मानव को परमात्मा से मिलवा कर मोक्ष प्रदान कर रहे हैं।
परमात्मा ही गुरु की भूमिका स्वयं निभाते हैं
गुरु बनाने से पहले यह जानना भी ज़रूरी है कि गुरू का गुरू कौन है जैसे डाक्टर से इलाज करवाने से पहले उसकी डिग्री देखते हैं, अध्यापक को नौकरी पर रखने से पहले उसका शिक्षा संबंधी बैकग्राउंड चैक करते हैं उसी प्रकार गुरू बनाने से पहले यह जांचना ज़रूरी है कि गुरू, गुरू कहलाने लायक भी है या नहीं। कबीर साहेब जी 600 वर्ष पूर्व काशी में आए थे जब उन्होंने पांच वर्ष की आयु में 104 वर्षीय रामानंद जी को अपना गुरू बनाया। अति आधीन रहकर गुरू शिष्य परंपरा का निर्वाह किया व समाज को यह उदाहरण देकर दिखाया कि जब सृष्टि का पालनहार गुरू बनाकर नियम में रहकर भक्ति कर रहा है तो आप किस खेत की मूली हैं।
जब तक गुरू मिले न सांचा, तब तक गुरू करो दस पांचा ||
संत रामपाल जी महाराज जी ही हैं पूर्ण तत्वदर्शी संत
आज संत रामपाल जी महाराज पूर्ण तत्वदर्शी सन्त हैं। वे पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब के अवतार हैं। न केवल भविष्यवक्ताओं की भविष्यवाणियां बल्कि शास्त्रों में लिखे तत्वदर्शी सन्त के सभी लक्षण सन्त रामपाल जी महाराज पर खरे उतरते हैं। वेदों के अनुसार पूर्ण तत्वदर्शी सन्त शास्त्रों के गूढ़ रहस्य उजागर करता है। सन्त रामपाल जी महाराज ने चारों वेदों, पुराणों, गीता, बाइबल, कुरान आदि को खोलकर बताया है एवं उनके गूढ़ रहस्य को समझाया है। गीता के ॐ, तत, सत और कुरान के एन, सीन, काफ से लेकर वेदों के तत्वदर्शी सन्त और कुरान के बाख़बर तक सबकुछ सरलतापूर्वक सन्त रामपाल जी महाराज ने समझाया है। बाइबल, कुरान, गुरुग्रन्थ साहेब के कबीर और वेदों के कविर्देव का पता बताने वाले एकमात्र पूर्ण तत्वदर्शी सन्त बन्दीछोड़ सद्गुरु रामपाल जी महाराज हैं।
कबीर, नौ मन सूत उलझिया, ऋषि रहे झख मार |
सतगुरु ऐसा सुलझा दे, उलझे न दूजी बार ||
सच्चा सतगुरु वही है जो हमारे सभी धर्मों के शास्त्रों से सिद्ध ज्ञान और सद्बुद्धि देकर मोक्ष देता है। आज वर्तमान पूरे विश्व में जगतगुरु संत रामपाल जी महाराज ही सच्चे व पूर्ण गुरु है, इसलिए संत रामपाल जी से नाम दीक्षा लें और अपना कल्याण करवाए.
Yes guru is important in life
सच्रुचा गुरू वही है जो शास्त्रों के अनुसार भक्ति बताते हैं.
शास्त्रों के अनुसार जो साधना बताता है, वही केवल पूर्ण गुरु है, संत रामपाल जी महाराज जी पुरे विश्व मे मात्र एक संत है जो शास्त्रो के अनुसार भक्ति बताते है।
इस गुरु पूर्णिमा पर सच्चे गुरु जगतगुरु तत्वदर्शी संत संत रामपाल जी महाराज जी को कोटि-कोटि दंडवत प्रणाम।
The role of Guru in humans life is very necessary.
सच्चे गुरु केवल सन्त रामपाल जी महाराज ही है।
वे ही प्रमाणित ज्ञान देते हैं।
Very nice blog