April 15, 2025

Swami Vivekananda Punyatithi पर जाने क्या था स्वामी विवेकानंद जी की मृत्यु का कारण?

Published on

spot_img

स्वामी विवेकानंद जी की पुण्यतिथि (Swami Vivekananda Punyatithi) पर जानें उनके जीवन से जुड़े कुछ तथ्य जो यह बताते है कि युवाओं के लिए प्रेरणा स्त्रोत कहे जाने वाले स्वामी विवेकानंद जी अपने जीवन के मूल कर्तव्य को पूरा नहीं कर सके।

Table of Contents

स्वामी विवेकानंद पुण्यतिथि (Swami Vivekananda Punyatithi): मुख्य बिंदु

  •  स्वामी विवेकानंद जी का वास्तविक नाम नरेन्द्र नाथ दत्त था। 
  • स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी, 1863 को कलकत्ता में हुआ था और 39 साल की आयु में 4 जुलाई 1902 को इनका निधन हुआ।
  • स्वामी विवेकानंद 31 गंभीर बीमारियों से जूझ रहे थे।
  • इन्होंने अमेरिका स्थित शिकागो में सन् 1893 में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था।
  • मेरे अमेरिकी भाइयों बहनों से भाषण की शुरुआत करने पर, तालियों की गड़गड़ाहट के साथ उनका ज़ोरदार स्वागत हुआ था।
  • उनके इस भाषण की वजह से विदेशी मीडिया ने उन्हें साइक्लॉनिक हिंदू नाम दिया था। 
  • स्वामी विवेकानंद एकाग्रता, बुद्धिमता, विवेक के धनी व्यक्तित्व थे। उनके भाषण लोगों को मोटिवेट करते थे उनका कहना था, “उठो और तब तक मत रुको, जब तक लक्ष्य तक न पहुंच जाओ”।
  • भारत में विवेकानन्द को एक देशभक्त सन्यासी के रूप में माना जाता है और उनके जन्मदिन को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है।
  • तत्वज्ञान और पूर्ण गुरु के अभाव में, नहीं हो पाया स्वामी विवेकानंद जी का  मोक्ष 

कौैन थे स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda)? 

स्वामी विवेकानंद का मूल नाम नरेंद्रनाथ दत्त था। इनका जन्म 12 जनवरी, 1863 को कलकत्ता (अब कोलकाता) में हुआ था। इनकी मृत्यु 4 जुलाई 1902 (उम्र 39) बेलूर मठ, बंगाल रियासत, ब्रिटिश राज (अब बेलूर, पश्चिम बंगाल में) में हुई। इनके गुरु का नाम रामकृष्ण परमहंस था जो मां काली की पूजा करते थे।  रामकृष्ण परमहंस जी ने स्वामी विवेकानंद को माँ काली से साक्षात्कार कराया था। स्वामी जी ने अपने गुरु की मृत्यु के बाद रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी। (मां काली व अन्य तैंतीस करोड़ देवी देवताओं से सर्वश्रेष्ठ प्रभु कोई और है जिसकी भक्ति से मनुष्य को सभी लाभ मिलते हैं)।

स्वामी विवेकानंद बचपन से ही परमात्मा को देखना चाहते थे

स्वामी विवेकानंद जब भी किसी संत या महात्मा से मिलते थे तो उनका एक ही प्रश्न होता, क्या अपने भगवान को देखा है? संत महात्मा ढे़र सारे तर्कों के माध्यम से उन्हें समझाने की कोशिश करते लेकिन वे तर्क स्वामी विवेकानंद की जिज्ञासा को शांत नहीं कर सके। ( परमात्मा कौन तथा कैसा है जानने के लिए अवश्य पढ़िए पुस्तक ज्ञान गंगा)

स्वामी जी पैदल यात्रा करते हुए पहुंचे थे शिकागो

स्वामी विवेकानंद ने 25 साल की आयु में गेरुआ वस्त्र धारण कर लिया था। इसके बाद उन्होंने पैदल ही पूरे भारत की यात्रा की। विवेकानंद ने 31 मई 1893 को मुंबई से अपनी विदेश यात्रा शुरू की। मुंबई से वह जापान पहुंचे। जापान में नागासाकी, कोबे, योकोहामा, ओसाका, क्योटो और टोक्यो का उन्होंने दौरा किया। इसके बाद वह चीन और कनाडा होते हुए अमेरिका के शिकागो शहर में पहुंचे थे।

स्वामी विवेकानंद कुशाग्र बुद्धि वाले अच्छे पाठक थे

स्वामी विवेकानंद जिज्ञासु पाठक थे। इसी से जुड़ा एक किस्सा है, जिन दिनों वे शिकागो प्रवास में थे, वे वहां की लाइब्रेरी में अक्सर आते-जाते रहते थे। वहां से वे काफी पुस्तकें उधार लेकर आते थे और अगले दिन वापस कर देते थे। इस तरह से वे बहुत सी पुस्तकें वापस कर देते थे। एक दिन लाइब्रेरियन ने स्वामी विवेकानंद से पूछा कि जिन पुस्तकों को वे पढ़ते नहीं हैं, उसे लेकर ही क्यों जाते हैं? प्रत्योत्तर में स्वामी जी ने कहा कि वह सारी पुस्तक पढ़ कर ही वापस करते हैं। लाइब्रेरियन को उन पर विश्वास नहीं हुआ। उसने कहा, अगर आप सच कह रहे हैं तो मैं आपकी परीक्षा लूंगा। स्वामी जी परीक्षा देने के लिए तुरंत तैयार हो गये।

Read in English: Swami Vivekananda Death Anniversary (Punya Tithi): Vivekananda Ji Read Vedas, Remained Ignorant

तब लाइब्रेरियन ने अपनी इच्छा से एक पुस्तक का एक अध्याय खोला और स्वामी जी से पूछा कि इस अध्याय में क्या लिखा है? स्वामी जी ने बिना पुस्तक की ओर देखे अक्षरशः पूरा अध्याय उन्हें जुबानी सुना दिया इसके बाद लाइब्रेरियन ने कुछ और पन्ने खोले, उसमें से कुछ जानकारियां मांगी। स्वामी जी ने इस बार भी उसके सारे सवालों का वैसा ही जवाब दिया, जैसा कि पुस्तक में छपा था। लाइब्रेरियन हैरान रह गया। उसने पहली बार ऐसा कोई व्यक्ति देखा, जिसके मस्तिष्क में पढ़ी हुई पुस्तकों के अंश ज्यौं के त्यौं अंकित हो जाते हों।

स्वामी विवेकानंद एक कुशल प्रवक्ता थे

स्वामी विवेकानन्द ने साल 1893 में शिकागो में सबसे पहले पूरी दुनिया को भारत के धर्म और आध्यात्म के सार से परिचित कराया था। उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत “मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनो” संबोधन के साथ की थी। स्वामी जी द्वारा यह वाक्य बोलते ही पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंजने लगा और वहां उपस्थित हर व्यक्ति उनके विचारों से प्रभावित हुआ। जिस वजह से विदेशी मीडिया ने उन्हें साइक्लॉनिक हिंदू नाम दिया था। वहां के अखबार ‘न्यूयॉर्क हेरॉल्ड’ ने विवेकानंद के लिए लिखा, ‘इसमें कोई संदेह नहीं कि धर्म संसद में स्वामी विवेकानंद सबसे महान व्यक्तित्व हैं। उन्हें सुनकर लगता है कि भारत जैसे ज्ञानी राष्ट्र में ईसाई धर्म प्रचारक भेजना मूर्खतापूर्ण है। वे यदि केवल मंच से गुजरते भी हैं तो तालियां बजने लगती हैं।’

स्वामी विवेकानंद जी की पुण्यतिथि (Swami Vivekananda Punyatithi) पर जानें कैसे हुई थी उनकी मृत्यु?

स्वामी विवेकानंद जी को कई बीमारियां थी किंतु उनके निधन की वजह तीसरी बार दिल का दौरा पड़ना था। मृत्यु के समय विवेकानंद की उम्र 39 वर्ष थी।

स्वामी विवेकानंद जी के गुरु तत्वदर्शी संत नहीं थे?

Swami Vivekananda Punyatithi: स्वामी विवेकानंद जी के गुरु तत्वदर्शी संत नहीं थे और ना ही उनकी भक्ति विधि शास्त्र के अनुसार ही थी जिसके कारण उन्हें कोई भी आध्यात्मिक लाभ प्राप्त नहीं हुए और ना ही पूर्ण मोक्ष प्राप्त हुआ और रोग ग्रसित होने के कारण उनकी मृत्यु हुई क्योंकि एकमात्र पूर्ण परमेश्वर कबीर जी ही हर तरीके के रोग को खत्म कर सकते हैं। 

Swami Vivekananda Punyatithi पर जाने क्या पूर्ण गुरु बिन मोक्ष संभव है?

कबीर परमात्मा ने अपनी वाणी में कहा है:-

गुरू बिन ज्ञान न उपजै, गुरू बिन मिलै न मोक्ष।

 गुरू बिन लखै न सत्य को गुरू बिन मिटै न दोष।।

कबीर परमात्मा कहते हैं – हे सांसरिक प्राणियों! बिना गुरू के ज्ञान का मिलना असम्भव है। तब तक मनुष्य अज्ञान रूपी अंधकार में भटकता हुआ मायारूपी सांसारिक बन्धनों में जकड़ा रहता है जब तक कि गुरू की कृपा प्राप्त नहीं होती। मोक्ष रूपी मार्ग दिखलाने वाले गुरू हैं। बिना गुरू के सत्य एवं असत्य का ज्ञान नहीं होता। उचित और अनुचित के भेद का ज्ञान नहीं होता फिर मोक्ष कैसे प्राप्त होगा? अतः गुरू की शरण में जाओ। गुरू ही सच्ची राह दिखाएंगे।

क्या किसी भी गुरु की शरण में जाने से मोक्ष संभव है या नहीं?

नहीं, किसी भी गुरु की शरण में जाने से मुक्ति संभव नहीं है। ‘मोक्ष’ केवल एक सच्चे / पूर्ण गुरु ‘तत्त्वदर्शी संत’ की शरण में जाने से संभव है। केवल एक सच्चा गुरु ही सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान और “सच्चा मंत्र” प्रदान कर सकता है जिसके द्वारा मोक्ष संभव है। 

श्रीमद्भगवदगीता के अध्याय 4 के, श्लोक 34 में “तत्त्वदर्शी संत” की शरण में जाने के लिए कहा गया है। इसी तरह, श्रीमद्भगवदगीता के ही अध्याय 18 श्लोक 62 से 66 में गीता ज्ञान दाता अन्य भगवान की शरण में जाने का संदेश देता है। पूर्ण संत से दीक्षा प्राप्त करने के बाद ही उनके द्वारा प्रदत्त सतभक्ति प्राप्त हो सकती है।

कौन तथा कैसा है पूर्ण परमात्मा? 

परमात्मा सशरीर यानि साकार है इस बारे में प्रमाण देखें

यजुर्वेद अध्याय 5, मंत्र 1, 6, 8, यजुर्वेद अध्याय 1, मंत्र 15, यजुर्वेद अध्याय 7 मंत्र 39, ऋग्वेद मण्डल 1, सूक्त 31, मंत्र 17, ऋग्वेद मण्डल 9, सूक्त 86, मंत्र 26, 27, ऋग्वेद मण्डल 9, सूक्त 82, मंत्र 1 – 3 (प्रभु राजा के समान दर्शनीय है)परमात्मा साकार है व सशरीर है – यजुर्वेद

स्वयं कबीर परमेश्वर जी ने कहा है:

कबीर, हम ही अलख अल्लाह हैं, मूल रूप करतार।

अनन्त कोटि ब्रह्मण्ड का, मैं ही सिरजनहार।।

पूर्ण संत की क्या पहचान है तथा कौन है वर्तमान में पूर्ण संत? 

सतगुरु गरीबदास जी महाराज ने अपनी वाणी में पूर्ण संत की पहचान बताई है कि वह चारो वेदों, छः शास्त्रों, अठारह पुराणों आदि अन्य सभी ग्रंथों का पूर्ण जानकार होगा।

सतगुरु के लक्षण कहूं, मधूरे बैन विनोद।

चार वेद षट शास्त्र, कहै अठारा बोध।।

यही प्रमाण वेदों में भी मिलता है ;

  • यजुर्वेद अध्याय 19 मन्त्र 25

सन्धिछेदः- अर्द्ध ऋचैः उक्थानाम् रूपम् पदैः आप्नोति निविदः।

प्रणवैः शस्त्राणाम् रूपम् पयसा सोमः आप्यते।

वह तीन मंत्रों के जाप की विधि, और त्रिकाल संध्या (अर्थात सुबह दोपहर और शाम की आरती) बतायेगा। इस समय पृथ्वी पर जगतगुरु संत रामपाल जी महाराज जी ही एकमात्र तत्वदर्शी संत हैं जो तीन मंत्रों के जाप की सच्ची विधि और त्रिकाल संध्या (अर्थात तीन वक्त की आरती) बताते हैं जिन से सभी धर्मों के लोग जुड़ कर सुख और मोक्ष प्राप्त कर रहे हैं।

वर्तमान में जो हिंदू समाज साधना कर रहा है वह सब गीता – वेदों में वर्णित न होने से शास्त्र विरुद्ध साधना है जो व्यर्थ है। इसलिए तत्वदर्शी गुरू जी से वेद-शास्त्रों का ज्ञान पढ़ना चाहिए जिससे सत्य भक्ति की शास्त्रानुकूल साधना करके मानव जीवन धन्य हो जाए। मोक्ष की प्राप्ति होगी और जन्म मरण से छुटकारा मिल जाएगा फिर वापस 84 लाख योनियों में नहीं आना पड़ेगा।

वर्तमान में वह सच्चे गुरु संत रामपाल जी महाराज है जिनके पास शास्त्रों में वर्णित सही सद्भक्ति है जिससे मनुष्य मोक्ष प्राप्त कर सकता है तो आप भी संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा लेकर अपना जीवन धन्य बनाएं।

Latest articles

International Mother Earth Day 2025: Know How To Empower Our Mother Earth

Last Updated on 13 April 2025 IST: International Mother Earth Day is an annual...

Preserving Our Past, Protecting Our Future: World Heritage Day 2025

Last Updated on 13 April 2025 IST: Every year on April 18, people commemorate...

Ambedkar Jayanti 2025 [Hindi]: सत्यभक्ति से ही दूर होगा सामाजिक भेद भाव

Last Updated on 13 April 2025 IST: Ambedkar Jayanti in Hindi: प्रत्येक वर्ष 14...

Vaisakhi (Baisakhi) Festival 2025: Know The Secret of Satnam Mantra by Guru Nanak Dev Ji

Last Updated on 13 April 2025 IST: Vaisakhi Festival 2025: Vaisakhi, a traditional harvest...
spot_img

More like this

International Mother Earth Day 2025: Know How To Empower Our Mother Earth

Last Updated on 13 April 2025 IST: International Mother Earth Day is an annual...

Preserving Our Past, Protecting Our Future: World Heritage Day 2025

Last Updated on 13 April 2025 IST: Every year on April 18, people commemorate...

Ambedkar Jayanti 2025 [Hindi]: सत्यभक्ति से ही दूर होगा सामाजिक भेद भाव

Last Updated on 13 April 2025 IST: Ambedkar Jayanti in Hindi: प्रत्येक वर्ष 14...