शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती निधन (Swami Swaroopanand Saraswati Death) | द्वारका एवं शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का 99 वर्ष की आयु में निधन हो गया है। उन्होंने अपनी अंतिम सांसें मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर जिले में ली। हाल ही में उन्होंने अपना 99वाँ जन्मदिवस मनाया था जिस अवसर पर बड़े दिग्गज नेताओं ने उनसे भेंट की थी।
Swami Swaroopanand Saraswati Death [Hindi] | मुख्य बिंदु
● शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती का 99 वर्ष की आयु में निधन
● आज़ादी की लड़ाई के हिस्सेदार थे स्वरूपानंद सरस्वती जी
● सन्त रामपाल जी महाराज ने किया था ज्ञान चर्चा में आमंत्रित
● जिवना थोरा ही भला जो सत्य सुमिरन होय
स्वरूपानंद सरस्वती का जीवन परिचय
स्वरूपानंद सरस्वती का जन्म 2 सितंबर 1924 को मध्यप्रदेश के सिवनी जिले में हुआ था। उनका नाम पोथीराम उपाध्याय था। 9 वर्ष की आयु में ही स्वरूपानंद धर्मोन्मुखी हो गए एवं गृहत्याग दिया। उन्होंने उत्तरप्रदेश के काशी में वेद वेदांग एवं शास्त्रों की शिक्षा प्राप्त की थी। स्वरूपानंद सरस्वती 1950 में शारदा पीठ शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती से दंड सन्यास की दीक्षा लेकर दंड सन्यासी बन गए एवं स्वरूपानंद सरस्वती के नाम से प्रसिद्ध हुए। चार मठों में से एक मठ के शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती थे। 1981 में उन्हें शंकराचार्य का पद प्राप्त हुआ।
Swami Swaroopanand Saraswati Death [Hindi] | धर्मगुरु स्वरूपानंद सरस्वती का निधन
मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर जिले के झोतेश्वर परमहंसी गंगा आश्रम में स्वरूपानंद सरस्वती का देहांत रविवार दोपहर 3:30 पर हुआ। उनके मुख्य शिष्यों सदानंद सरस्वती, अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती, ब्रह्मचारी सुबुद्धानंद के अनुसार नरसिंहपुर के आश्रम में ही सोमवार दोपहर उनके मृत शरीर को भूसमाधि दी जाएगी। स्वरूपानंद सरस्वती लंबे समय से बीमार भी थे जिसके लिए वे बैंगलुरू से इलाज करवाकर आये थे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उनकी मृत्यु पर शोक जताते हुए संवेदनाएं व्यक्त की हैं। वहीं राहुल गांधी एवं प्रियंका गांधी ने इसे धार्मिक क्षति बताया है। प्रियंका गांधी ने 1990 में स्वामी जी द्वारा करवाये गए गृहप्रवेश को याद किया।
आज़ादी की लड़ाई के हिस्सेदार स्वरूपानंद
स्वरूपानंद सरस्वती ने देश की आज़ादी की लड़ाई में भी भाग लिया था। अपने इस देशप्रेम के चलते वे जेल भी गए थे। गांधी की अगुवाई में 1942 में देश मे चल रहे आंदोलनों में उन्होंने भाग लिया। उत्तरप्रदेश के वाराणसी में उन्होंने 9 महीने जेल की सजा काटी एवं मध्यप्रदेश में भी 6 महीने वे जेल में रहे थे। राम मंदिर के निर्माण में कानूनी लड़ाई में भी शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती सम्मिलित थे।
सन्त रामपाल जी महाराज ने किया था ज्ञानचर्चा के लिए आमंत्रित
Swami Swaroopanand Saraswati Death: जगतगुरु तत्वदर्शी सन्त रामपाल महाराज ने वर्ष 2009 में स्वामी भारतीतीरथ, निश्चलानंद सरस्वती समेत स्वामी शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती को भी आध्यत्मिक ज्ञानचर्चा के लिए आमंत्रित किया था। सन्त रामपाल के अनुसार हार जीत से परे जनता को सत्यज्ञान से अवगत कराने के लिए सभी धर्मगुरुओं को निमंत्रण भेजा था। सन्त रामपाल महाराज ने कहा था कि सभी शास्त्रों के आधार पर एक निर्णायक ज्ञान जनता को दें यदि सन्त रामपाल का ज्ञान सही है तो धर्मगुरु अपनी स्वीकृति दें अथवा गलत सिद्ध करें। किन्तु कोई भी धर्मगुरु ज्ञानचर्चा के लिए आगे नहीं आया था और न ही वे सन्त रामपाल महाराज के ज्ञान को असत्य सिद्ध कर पाए। सन्त रामपाल महाराज ने जनता को एक निर्णायक ज्ञान देने के लिए इन महापुरुषों को आमंत्रित किया था।
जिवना थोरा ही भला जो सत्य सुमिरन होय
वास्तव में शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती दंड सन्यासी रहे हैं किंतु गीता अध्याय 15 श्लोक 1-4 के अनुसार वे तत्वदर्शी सन्त से नामदीक्षा नहीं ले सके। शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती निश्चित रूप से आदरणीय रहे हैं। वेदों का सार कही जाने वाली श्रीमद्भगवद्गीता एक साधारण से बात कहती है कि सन्यास से उत्तम है कि गृहस्थ जीवन में रहकर भक्ति की जाए। यदि सन्यास ले भी लिया, ब्रह्मचर्य का पालन आजीवन किया, कठोर अनुशासन का जीवन जिया, सन्तों में आदरणीय एवं शिरोमणि कहलाए उसके बाद भी सत्यनाम का स्मरण नहीं किया तो जीवन कितना भी लंबा हो व्यर्थ ही गया।
गरीब, त्रिलोकी का राज सब, जै जीव कूं कोई देय |
लाख बधाई क्या करै, नहीं सतनाम सें नेह ||
अर्थात यदि कोई व्यक्ति सत्य साधना परम पिता परमेश्वर कबीर जी की नहीं करता है। यदि उस जीव को तीन लोक का राज्य मिल जाये और चाहे लाख बार बधाई दी जाए नरक में जाएगा। उसका भविष्य अंधकारमय है।
गरीब संख कल्प जुग जिवना, तत्त न दरस्या रिंच |
आन उपासा करते हैं, ज्ञान ध्यान परपंच ||
यदि कोई संख कल्प तक जीवित रहे। ज्ञान जरा सा भी नहीं है। तत्वज्ञान हीन है। सत्य भक्ति से वंचित है तो लंबा जीवन भी व्यर्थ है। (एक कल्प में एक हजार आठ चतुर्युग होते हैं, यानी ब्रह्मा का एक दिन) अधिक जानकारी के लिए देखें सतलोक आश्रम यूट्यूब चैनल और ज्ञान समझकर संत रामपाल जी महाराज से निशुल्क नाम दीक्षा ले।
FAQ | Swami Swaroopanand Saraswati Death [Hindi]
वे चार मठों में से एक मठ के शंकराचार्य थे। द्वारका एवं शारदापीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती थे।
स्वामी स्वरूपानंद जी का जन्म 2 सितंबर 1924 को हुआ था।
स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी का निधन 99 वर्ष की आयु में हुआ।
स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी का जन्मस्थान मध्यप्रदेश का सिवनी जिला है।
स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी को सन्त रामपाल जी महाराज ने 2009 में आध्यात्मिक ज्ञानचर्चा के लिए आमंत्रित किया।