September 19, 2024

Sunderlal Bahuguna Died of Covid: चिपको आंदोलन प्रणेता ने सतगुरु के अभाव में प्रकृति को मान लिया था उद्देश्य

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Sunderlal Bahuguna Death: पद्म विभूषण प्रसिद्ध पर्यावरणविद् सुन्दरलाल बहुगुणा का एम्स ऋषिकेश में निधन। प्रकृति दूत के रूप में पूरा जीवन वृक्षों को बचाने के लिए डटे रहे । लेकिन सतगुरु के अभाव में सतभक्ति करके मृत्यु उपरांत राम नाम रूपी धन कमाई से होने वाले लाभ से रह गए वंचित। आध्यात्मिक संत सतगुरु रामपाल जी महाराज की शरण में आकर ही जान सकते हैं सतज्ञान और सांसारिक इच्छाएं पूरी कर तत्पश्चात पूर्ण मोक्ष को प्राप्त हो सकते है। 

Table of Contents

Sunderlal Bahuguna Death: मुख्य बिंदु

  • चिपको आंदोलन के प्रणेता सुंदरलाल बहुगुणा का 21 मई को एम्स ऋषिकेश में निधन
  • देहरादून में उनकी कोरोना टेस्ट रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी
  • प्रदेश के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने व्यक्त किया दुख और उनके कार्यों की तारीफ की
  • पद्म विभूषण श्री सुन्दरलाल बहुगुणा जी को वृक्षों को बचाने को जीवन का उद्देश्य मानते थे
  • सुन्दरलाल बहुगुणा का जन्म 9 जनवरी सन 1927 को उत्तराखंड के मरोडा नामक स्थान पर हुआ
  • प्राथमिक शिक्षा के बाद बहुगुणा जी लाहौर से बी.ए. की डिग्री प्राप्त की
  • अपनी पत्नी श्रीमती विमला नौटियाल के सहयोग से इन्होंने सिलयारा में ही ‘पर्वतीय नवजीवन मण्डल’ की स्थापना की
  • आध्यात्मिक सतगुरु रामपाल जी की शरण में आकर ही पूरी कर सकते हैं इच्छाएं और तत्पश्चात पूर्ण मोक्ष

पर्यावरणविद् सुन्दरलाल बहुगुणा जिन्हें  चिपको आंदोलन का प्रणेता कहा जाता है  पिछले एक सप्ताह से उन्हें बुखार था। बुखार से पीड़ित होने पर उनका देहरादून में ही एक निजी लैब में टेस्ट करवाया गया था। जिसमें उनकी कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आई। उनके निधन पर न सिर्फ उत्तराखंड, बल्कि देशभर के जाने-माने पर्यावरण अधिकार कार्यकर्ताओं और नेताओं ने बहुगुणा के निधन पर शोक व्यक्त किया है। उनके चाहने वाले आज उन्हें बहुत याद कर रहें है। आइए विस्तार से जानते है आज की खबर :-

सुन्दरलाल बहुगुणा (Sunderlal Bahuguna) का जीवन परिचय

पद्म विभूषण सुन्दरलाल बहुगुणा का जन्म 9 जनवरी सन 1927 को देवों की भूमि उत्तराखंड के ‘मरोडा नामक स्थान पर हुआ था। उनकी मृत्यु 21 मई 2021 को हुई है। आपको बता दें जैसे ही उनकी प्राथमिक शिक्षा समाप्त हुई वे लाहौर चले गए और वहाँ से बी.ए. की डिग्री प्राप्त की। सुन्दरलाल बहुगुणा जी बहुत ही शुद्ध और सरल भाव के व्यक्ति थे। उन्होंने अपने जीवन में कभी भी किसी का अहित न सोचा – न किया, प्रत्येक क्षण पर्यावरण (वृक्ष, समाज) की सुरक्षा हेतु प्रयास करते रहे हैं। अपने जीवन में कभी बुरा न करने वाले बहुगुणा जी एक मुख्य कार्य सद्गुरु के सानिध्य में सतभक्ति से वंचित रह गए। बिना सतभक्ति के जीवन व्यर्थ ही कहा जाता है क्योंकि पूर्ण परमात्मा मानव जन्म भक्ति कमाई के लिए ही प्रदान करते हैं । 

Sunderlal Bahuguna ने वृक्षों को बचाने में समर्पित किया जीवन 

सुन्दरलाल बहुगुणा के अनुसार पेड़ों को काटने की अपेक्षा उन्हें लगाना अति महत्वपूर्ण है। बहुगुणा के कार्यों से प्रभावित होकर अमेरिका की फ्रेंड ऑफ नेचर नामक संस्था ने 1980 में इनको पुरस्कृत भी किया। इसके अलावा उन्हें और भी पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था। कितना प्यार था सुन्दरलाल बहुगुणा जी को पर्यावरण से कि उसको स्थाई संपत्ति मानने वाला यह शुभचिंतक आज ‘पर्यावरण गांधी’ बन गया है।

दलित वर्ग के विद्यार्थियों के उत्थान के लिए हुए प्रयासरत

उनके जीवन के महत्वपूर्ण प्रयासों की बात ही निराली है। सन 1949 में उनका सम्पर्क मीराबेन व ठक्कर बाप्पा जी से हुआ, इसके बाद वे दलित वर्ग के विद्यार्थियों के उत्थान के लिए प्रयासरत हो गए तथा उनके लिए टिहरी में ठक्कर बाप्पा होस्टल की स्थापना भी की। वे दलितों के इतने शुभचिंतक थे कि दलितों को मंदिर प्रवेश का अधिकार दिलाने के लिए उन्होंने आंदोलन छेड़ दिया था।

Sunderlal Bahuguna को मिली एक अच्छी धर्मपत्नी जिन्होंने आजीवन साथ दिया 

दूसरी ओर यदि देखा जाए तो भाग्यशाली थे सुन्दरलाल जी की उन्हें इतनी अच्छी धर्मपत्नी मिलीं। अपनी पत्नी श्रीमती विमला नौटियाल के सहयोग से इन्होंने सिलयारा में ही ‘पर्वतीय नवजीवन मण्डल’ की स्थापना भी की। वे प्रयास करते ही रहे, सन 1971 में शराब की दुकानों को खोलने से रोकने के लिए सुन्दरलाल बहुगुणा ने सोलह दिन तक अनशन किया था। चिपको आन्दोलन के कारण वे विश्व भर में वृक्षमित्र के नाम से प्रसिद्ध हो गए। बहुगुणा के ‘चिपको आन्दोलन’ का घोषवाक्य है-

क्या है जंगल के उपकार, मिट्टी, पानी और बयार।

मिट्टी, पानी और बयार, जिन्दा रहने के आधार।

पद्म विभूषण श्री सुन्दरलाल बहुगुणा (Sunderlal Bahuguna) का कोरोना से हुआ निधन

उन्हें बुखार के चलते टेस्ट करवाया गया जिसमें कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी। कोरोना समेत अन्‍य बीमारियों से ग्रसित होने के कारण उन्हें 8 मई को ऋषिकेश के एम्स में भर्ती कराया गया और उन्होंने एम्स में  ही 21 मई को अंतिम सांस ली । 

मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने उनके निधन पर व्यक्त किया दुख 

प्रदेश के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने उनके निधन पर बहुत दुख व्यक्त किया है। सीएम रावत ने कहा कि पहाड़ों में जल, जंगल और जमीन के मामलों को अपनी प्राथमिकता में रखने वाले और जनता को उनका हक दिलाने वाले बहुगुणा के प्रयास को सदैव याद रखा जाएगा। बहुगुणा जी बहुत ही सरल और प्रेम भाव के व्यक्ति रहे हैं।

मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने ट्वीट किया, जिसमें कहा “चिपको आंदोलन के प्रणेता, विश्व में वृक्षमित्र के नाम से प्रसिद्ध महान पर्यावरणविद् पद्म विभूषण श्री सुंदरलाल बहुगुणा जी के निधन का अत्यंत पीड़ादायक समाचार मिला। यह खबर सुनकर मन बेहद व्यथित हैं। यह सिर्फ उत्तराखंड के लिए नहीं बल्कि संपूर्ण देश के लिए अपूरणीय क्षति है।” 

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मुख्यमंत्री रावत जी ने अपने ट्वीट में और भी बातें कहीं “पहाड़ों में जल, जंगल और जमीन के मसलों को अपनी प्राथमिकता में रखने वाले और रियासतों में जनता को उनका हक दिलाने वाले श्री बहुगुणा जी के प्रयास सदैव याद रखे जाएंगे।” आगे कहा “पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में दिए गए महत्वपूर्ण योगदान के लिए उन्हें  1986 में जमनालाल बजाज पुरस्कार और 2009 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। पर्यावरण संरक्षण के मैदान में श्री सुंदरलाल बहुगुणा जी के कार्यों को इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखा जाएगा।”

केवल राम नाम रूपी धन ही दे सकता है इंसान का साथ 

जैसे किसान का खेत बिल्कुल साफ है। उसमें खरपतवार, अन्य हानिकारक चीजें कुछ भी नहीं है। यदि उस साफ खेत में हम बीज न डाले तो अनाज कैसे पैदा होगा, केवल खेत साफ होने से मनुष्य का पेट नहीं भर जाएगा। ठीक इसी प्रकार हमने हमेशा सबका हित किया, दिल साफ रखा, कोई पाप नहीं किया, हमेशा परोपकार किया, परंतु फिर भी बिना सतभक्ति जीवन व्यर्थ ही गया क्योंकि इंसान साथ केवल राम नाम का धन ही ले सकता है ।

सतगुरु रामपाल जी के अनुसार यह संसार काल ब्रह्म का जाल है

यह नाशवान लोक दुःख का सागर है, यहाँ बिना सतभक्ति के जीवन बर्बाद है। जिस संसार में हम रह रहे हैं यहाँ पर कहीं पर भी सुख नजर नहीं आता और न ही हैं। क्योंकि यह लोक नाशवान हैं, इस लोक की हर वस्तु भी नाशवान हैं और इस लोक का राजा काल ब्रह्म है जो एक लाख मानव के सूक्ष्म शरीर खाता है और सवा लाख पैदा करता है। 

उसने सब प्राणियों को कर्म भ्रम व पाप-पुण्य रूपी जाल में उलझा कर तीन लोक के पिंजरे में कैद कर रखा है। पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब और संत गरीबदास जी को उद्धृत करते हुए कहते हैं –

तीन लोक पिंजरा भया ,पाप पुण्य दो जल ।

सभी जीव भोजन भये , एक खाने वाला काल।।

गरीब ,एक पापी एक पुण्यी आया ,एक है सूम दलेल रे ।

बिना भजन कोई काम नहीं आवै ,सब है जम की जेल रे ।।

अर्थात काल ब्रह्म  नही चाहता कि कोई प्राणी इस पिंजरे रूपी कैद से बाहर निकल जाए। वह यह भी नहीं चाहता कि जीवात्मा को अपने निज घर सतलोक का पता चले। इसलिए वह अपनी त्रिगुणी माया से हर जीव को भ्रमित किए हुए है। फिर मानव को ये चाहत कहाँ से उत्पन्न हुई है कि मुझे कार, हवाई जहाज में घूमना है, कोठी बंगला बनाना है, कुछ काम न करना पड़े, कभी मौत न हो, जवान बने रहें, रोगी न हों वगेरह-वगेरह ? यहाँ ऐसा कुछ भी नहीं है। यहाँ हम सबको मरना है, सब दुखी व अशान्त है । जो स्थिति यहाँ पर हम प्राप्त करना चाहते है ऐसी स्थिति में हम अपने निज घर सतलोक में रहते थे। सतगुरु रामपाल जी के प्रवचनों द्वारा वह सब हमें याद आता है। काल ब्रह्म के लोक से स्वः इच्छा से आकर हम सब यहाँ फस गए और अपने निज घर का रास्ता भूल गए। कबीर साहेब जी कहते है –

इच्छा रूपी खेलन आया, ताते सुख सागर नहीं पाया।

वर्तमान में सतभक्ति केवल तत्वदर्शी सतगुरु रामपाल जी महाराज के पास है

वर्तमान में पूरे विश्व में एकमात्र केवल तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज ही हैं जो वास्तविक तत्वज्ञान करा कर पूर्ण परमात्मा की पूजा आराधना बताते है। समझदार को संकेत ही काफी होता है। वह पूर्ण परमात्मा ही है जो हमें धन वृद्धि कर सकता है, सुख शांति दे सकता है व रोग रहित कर सकता है। बिना मोक्ष के हम काल-चक्र में ही घूमते रहेंगे। यदि इससे छुटकारा चाहिए तो एक ही उपाय है तत्वदर्शी संत की शरण।

कैसे कर सकते हैं सतभक्ति 

तो सत्य को जानो और पहचान करो पूर्ण तत्वदर्शी की जो कि संत रामपाल जी महाराज है। संत रामपाल जी महाराज से मंत्र नाम दीक्षा लेकर अपना जीवन कल्याण करवाएं। अन्यथा जीवन का कार्य अधूरा रह जाएगा और अधिक जानकारी के हेतु सतलोक आश्रम यूट्यूब चैनल पर सत्संग श्रवण करें, जीने की राह पुस्तक पढ़ें और शाम 7:30 से साधना चैनल पर मंगल प्रवचन  सुने।

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