Last Updated on 14 October 2024 IST: हिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima 2024) कहते हैं। इस पूर्णिमा को कौमादी पूर्णिमा, कोजागिरी पूर्णिमा तथा जागृत पूर्णिमा आदि नामों से भी जाना जाता है। इस वर्ष यह पर्व 16 अक्टूबर 2024, दिन बुधवार को मनाया जाएगा। मतान्तरों के चलते कुछ पंचांग शरद पूर्णिमा का व्रत 17 अक्टूबर दिन बृहस्पतिवार को मान रहें हैं। हिंदू धर्म में लोकवेद पर आधारित धार्मिक मान्यताओं के अनुसार हर पूर्णिमा तिथि का महत्व होता है लेकिन सभी पूर्णिमा तिथि में शरद पूर्णिमा तिथि का विशेष महत्व होता है यह त्योहार लक्ष्मी जी को समर्पित त्योहारों में से एक प्रमुख त्योहार है।
पाठकजनों को इस बात पर अवश्य विचार करना चाहिए कि भोले साधकजन जिस साधना को कर रहे हैं क्या वह शास्त्र प्रमाणित है? अगर यह भक्ति विधि शास्त्र प्रमाणित नहीं है तो शास्त्र प्रमाणित भक्ति विधि को कैसे प्राप्त किया जा सकता है, तो आइए जानते हैं ऐसे ही कुछ गूढ़ रहस्यों को जिनसे साधक समाज अब तक अनभिज्ञ है।
Sharad Purnima 2024: मुख्य बिंदु
- आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि, 16 अक्टूबर 2024, बुधवार को मनाया जाएगा शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima) का पर्व
- शरद पूर्णिमा को कोजागिरी पूर्णिमा (Kojagiri Purnima), कौमादी पूर्णिमा या जागृत पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। ‘कोजागिरी’ का शाब्दिक अर्थ है कौन जाग रहा है
- शरद पूर्णिमा की रात्रि में लोग खुले आसमान में खीर रखते हैं और ऐसा कहा जाता हैं कि चाँद की किरणों द्वारा वह ऊर्जा अवशोषित करती हैं
- मनुष्य यदि लोक मान्यताओं के पीछे चलता है तो वह पूर्ण परमात्मा से मिलने वाले लाभ प्राप्त करने से वंचित रह जाता है
- जगतगुरु संत रामपाल जी महाराज ही शास्त्र प्रमाणित भक्तिविधि प्रदत्त करने वाले एकमात्र पूर्ण संत हैं
शरद पूर्णिमा 2024, तिथि व समय (Sharad Purnima Date And Time)
Sharad Purnima 2024: हिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन मास की पूर्णिमा तिथि 16 अक्टूबर 2024, दिन बुधवार को है।
शरद पूर्णिमा को “कोजागरी पूर्णिमा” क्यों कहते हैं?
“कोजागरी” का अर्थ होता है “कौन जाग रहा है?” लोक मतानुसार इस रात माता लक्ष्मी पृथ्वी पर आती हैं और यह देखती हैं कि कौन जाग रहा है। जो भक्त इस रात जागते हुए पूजा-पाठ करते हैं, उन्हें लक्ष्मी जी का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है। ये पूरी तरह से मनमाना आचरण है।
शरद पूर्णिमा व्रत कथा (Sharad Purnima Vrat Katha)
पौराणिक कथा के अनुसार, शरद पूर्णिमा की एक प्रमुख कथा यह है कि इस रात भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रज की गोपियों के साथ महारास किया था। यह रात प्रेम और भक्ति का प्रतीक मानी जाती है। वहीं, एक अन्य कथा के अनुसार, माता लक्ष्मी इस रात को पृथ्वी पर विचरण करती हैं और उन भक्तों को आशीर्वाद देती हैं जो जागकर उनकी पूजा करते हैं। विचारणीय विषय यह है कि शास्त्रों में इस प्रकार से साधना करने का कोई वर्णन नहीं है। साधक समाज को पूर्ण संत के मार्गदर्शन में पवित्र शास्त्रों का अध्ययन कर जानना चाहिए कि शास्त्र किस साधना की ओर संकेत कर रहे हैं। हमें देवी-देवताओं को खुश करने के लिए ऐसी व्यर्थ की साधनाएं नहीं करनी चाहिएं।
शरद पूर्णिमा व्रत पूजा (Sharad Purnima Vrat And Puja)
वास्तविकता यह है कि पवित्र सद्ग्रन्थों में इस प्रकार की पूजा विधि का कोई वर्णन नहीं है यह सिर्फ लोकवेद पर आधारित मनमाना आचरण है जिससे न तो यथासमय लाभ सम्भव होगा और न ही पूर्ण मोक्ष। यह पूजा विधि शास्त्र विरुद्ध होने के कारण व्यर्थ है इससे सिर्फ मूल्यवान मनुष्य जीवन की बर्बादी होगी।
शरद पूर्णिमा के अन्य नाम (Sharad Purnima Name)
भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में शरद पूर्णिमा को भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता है और अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है
- गुजरात में शरद पूर्णिमा के दिन लोग गरबा एवं डांडिया रास करते है
- बंगाल में इसे लोक्खी पूजो कहते हैं तथा देवी लक्ष्मी के लिए स्पेशल भोग बनाया जाता है
- मिथिला में कोजगारह नाम से इस पर्व को मनाया जाता है
शरद पूर्णिमा का महत्व (Sharad Purnima Significance)
लोकवेद के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि यह व्रत सभी मनोकामना पूरी करता है। इसे कोजागरी व्रत पूर्णिमा एवं रास पूर्णिमा भी कहा जाता हैं। चन्द्रमा के प्रकाश को कुमुद कहा जाता हैं, इसलिए इसे कौमुदी व्रत की उपाधि भी दी गई है. आध्यात्मिक दृष्टि से शरद पूर्णिमा का कोई विशेष महत्व नही है, क्योंकि सतभक्ति करने वाले साधक के लिए वर्ष के 365 दिन ही विशेष होते हैं।
शरद पूर्णिमा के दिन खुले आसमान के नीचे खीर का कटोरा रखने का कारण?
- उत्तर भारत में शरद पूर्णिमा पर खीर बनाकर रात की चांदनी में रखने का प्रचलन बहुत ज़्यादा है। शरद पूर्णिमा की रात को अधिक मात्रा में औषधियों की स्पंदन क्षमता होती है। रसाकर्षण के कारण जब अंदर का पदार्थ सांद्र होने लगता है, तब रिक्तिकाओं से विशेष प्रकार की ध्वनि उत्पन्न होती है। रात्रि में खुले आसमान में रखी खीर को खाने से पित्त और मलेरिया का खतरा भी कम हो जाता है। श्वास संबंधी, हृदय संबंधी बीमारियों का खतरा कम हो जाता है साथ में लोगों का कहना है कि चर्म रोग और आंखों की रोशनी ठीक होती है।
- अन्य मान्यता के अनुसार शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima 2023) के दिन के बाद से आँवले के पेड़ से आँवले तोड़ना बहुत अच्छा इसलिए मानते हैं क्योंकि उनमें अधिक विटामिन C और अम्ल पाया जाता है जिसको खाने से अनेक लाभ प्राप्त होते हैं और शरद पूर्णिमा के पहले तोड़े गए आँवले खाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है।
- वैज्ञानिकों द्वारा अध्ययन के अनुसार दूध में लैक्टिक अम्ल और अमृत पाया जाता है। यह तत्व किरणों से अधिक मात्रा में ऊर्जा-शक्ति को अवशोषित करता है। यह भी एक मुख्य बात है कि चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया और भी आसान हो जाती है। ऋषि-मुनियों द्वारा शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima 2023) की रात्रि में खीर खुले आसमान में रखने का विधान बनाया हुआ है। यह परंपरा वैज्ञानिक पद्धति पर आधारित है, वेदों में खीर बनाकर चांद की रोशनी में रखनी चाहिए ऐसा कहीं नहीं लिखित है।
दंत कथाओं के आधार पर व्रत करना श्रेष्ठकर नहीं है
पाठकगण विचार करें यह कथाएं सिर्फ लोक प्रचलित हैं पवित्र शास्त्रों में इन कथाओं का कहीं भी कोई उल्लेख नहीं है। इसलिए इन कथाओं के आधार पर ही साधक समाज इस व्रत साधना को करने का विचार न करे, अपितु पूर्ण संत रामपाल जी महाराज के मार्गदर्शन में अध्ययन कर जानें कि पवित्र सद्ग्रन्थ किस साधना को करने का प्रमाण दे रहे हैं जिससे सर्व लाभ यथा समय प्राप्त होंगे तथा पूर्ण मोक्ष की प्राप्ति भी होगी।
क्या व्रत साधना विधि से मनवांछित फल प्राप्त होते हैं?
व्रत करना गीता में वर्जित है। गीता अध्याय 6 के श्लोक 16 में बताया है कि बहुत खाने वाले का और बिल्कुल न खाने वाले का, बहुत शयन करने वाले का और बिल्कुल न सोने वाले का उद्देश्य कभी सफल नहीं होता है। अतः ये शास्त्र विरुद्ध क्रियाएं होने से व्रत आदि क्रियाएं कभी लाभ नहीं दे सकती हैं। गीता अध्याय 6 श्लोक 16
न, अति, अश्नतः, तु, योगः, अस्ति, न, च, एकान्तम्, अनश्नतः,
न, च, अति, स्वप्नशीलस्य, जाग्रतः, न, एव, च, अर्जुन।।
गीता अध्याय 16:23 में ऐसी मनमानी भक्ति करने को व्यर्थ कहा गया है जिसे करने से भौतिक और आध्यात्मिक कोई लाभ नहीं मिलता है।
श्रीमद्भगवद गीता, अध्याय 16, श्लोक 23
श्लोक:
“य: शास्त्रविधिमुत्सृज्य, वर्तते कामकारतः।
न स सिद्धिमवाप्नोति, न सुखं न परां गतिम्॥”
जो व्यक्ति शास्त्रों में बताए गए नियमों को छोड़कर मनमाने ढंग से आचरण करता है, वह न तो सिद्धि (आध्यात्मिक पूर्णता) को प्राप्त कर सकता है, न ही उसे सच्चा सुख मिलता है और न ही वह परमगति (मोक्ष) को प्राप्त कर सकता है।
तत्वदर्शी संत रामपाल जी बताते हैं कि जो मनुष्य शास्त्रों में वर्णित विधि का पालन नहीं करता और अपनी इच्छानुसार पूजा-पद्धति अपनाता है, उसे आध्यात्मिक मार्ग पर कोई सफलता नहीं मिलती। ऐसी मनमानी पूजा न तो उसे संसार में वास्तविक सुख देती है और न ही उसे परमात्मा का साक्षात्कार कराती है।
शास्त्रों के अनुसार भक्ति और पूजा-पद्धति का पालन करना ही मोक्ष का मार्ग है। मनमानी पूजा, जैसे व्रत, लकड़ी जलाकर यज्ञ और हवन करना परमात्मा की सच्ची आज्ञा का उल्लंघन है। इसलिए, जो लोग शास्त्रानुकूल भक्ति नहीं करते, वे अपना जीवन व्यर्थ कर रहे हैं और उन्हें मोक्ष प्राप्त नहीं होगा। पूर्ण संत की शरण में जाकर शास्त्रानुकूल साधना करने से ही मोक्ष संभव है, और बिना शास्त्रों के अनुसार भक्ति करने वाले व्यक्ति को परमात्मा की कृपा नहीं मिल सकती।
‘लकीर के फकीर’ बन पुरानी परम्पराओं से मुक्त न हो पाने के कारण आज भी दुःखी हैं
यदि हम अपने प्राचीन धर्मग्रंथों, जैसे वेद-पुराणों, पर विश्वास न कर केवल समाज की मान्यताओं और लोकरीतियों के पीछे चलते हैं, तो इससे हमें कोई वास्तविक आध्यात्मिक लाभ नहीं प्राप्त होगा। ऐसी स्थिति में केवल भाग्य में लिखा हुआ ही हमें मिलेगा। हमारे वेद-पुराणों में कहीं भी यह नहीं कहा गया है कि व्रत आदि करने से ईश्वर की सच्ची आराधना होती है।
केवल शास्त्रसम्मत भक्ति ही सच्ची और सार्थक होती है और इसी से हमें ईश्वर की कृपा और मोक्ष का पूर्ण लाभ मिलता है। अगर हम शास्त्रों में वर्णित सही भक्ति-पद्धति का पालन करें, तो हम अपने मानव जीवन को सफल बनाकर पूर्ण मोक्ष की प्राप्ति कर सकते हैं।
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हमें पुरानी परंपराओं को जो वेदों-गीता से मेल नहीं खाती हैं उन्हें त्याग देना चाहिए क्योंकि यह मनमानी पूजाएं हैं। यह हमारे और आपके जैसे लोगों द्वारा ही बनाई गई हैं। यह पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी का आदेश नहीं हैं। यदि हम परमात्मा की आज्ञा के अनुसार नहीं चलते हैं तो हम पापी, चोर, बुद्धि हीन प्राणी हैं। फिर ऐसे प्राणी को घोर नरक में डाला जाता है, इससे बचने के लिए हमें जल्द से जल्द सतज्ञान (आध्यात्मिक ज्ञान) से परिचित होना होगा और पूर्ण संत की खोज कर उनकी शरण में जाकर भक्ति प्रारम्भ करनी होगी ।
इस शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima 2024) पर पाठक स्वयं विचार करें
जिस ईश्वर ने इस पूरे ब्रह्मांड की रचना की है हमें उसकी साधना करनी चाहिए या उसके बनाए हुए देवी-देवताओं की पूजा करनी चाहिए ? श्रीमद्भगवत गीता में बिल्कुल नहीं कहा गया है कि पूर्ण परमात्मा के अलावा अन्य देवी-देवताओं की पूजा-साधना करो, फिर हम क्यों अपना समय बर्बाद कर रहे हैं। परमात्मा, हमें यह मानव जन्म केवल सतभक्ति के लिए प्रदान करते हैं। हमारे लिए वेदों पुराणों को समझ कर, शास्त्रानुकूल भक्ति साधना करना ही हितकारी है। केवल पूर्ण परमात्मा ही मनुष्य को धन, अन्न, रोटी, कपड़ा और मकान दे सकता है अन्य कोई भी देवी देवता बिना पूर्ण परमात्मा की कृपा के हमें कुछ नहीं दे सकते। तत्वज्ञान के अनुसार विस्तार से जानते है कि किस पूजा विधि से पूर्ण लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
पवित्र सद्ग्रन्थ किस परमेश्वर की साधना की ओर संकेत कर रहे हैं?
- संख्या न. 359 सामवेद अध्याय न. 4 के खण्ड न. 25 का श्लोक न. 8
पुरां भिन्दुर्युवा कविरमितौजा अजायत। इन्द्रो विश्वस्य कर्मणो धर्ता वज्री पुरुष्टुतः ।।
पुराम्-भिन्दुः-युवा-कविर्-अमित-औजा-अजायत-इन्द्रः-विश्वस्य-कर्मणः-धर्ता-वज्री- पुरूष्टुतः।
भावार्थ है कि जो कविर्देव (कबीर परमेश्वर) तत्वज्ञान लेकर संसार में आता है, वह सर्वशक्तिमान है तथा काल (ब्रह्म) के कर्म रूपी किले को तोड़ने वाला है वह सर्व सुखदाता है तथा सर्व के पूजा करने योग्य है।
पवित्र सद्ग्रन्थ किस परमेश्वर की साधना करने की ओर संकेत कर रहे हैं?
केवल पूर्ण परमात्मा की भक्ति करने से ही प्राणी पूर्ण मुक्त (जन्म-मरण रहित) हो सकता है, वही परमात्मा वायु की तरह हर जीवात्मा के हृदय में और साथ रहता है। गीता अध्याय 18 के श्लोक 62,66 तथा अध्याय 8 के श्लोक 8,9,10,20,21,22 में गीता ज्ञानदाता ने अर्जुन को कहा है कि मेरी पूजा भी त्याग कर उस एक परमात्मा की शरण में जाने से ही तेरा पूर्ण छुटकारा अर्थात मोक्ष होगा और कहा मेरा भी पूज्य देव वही एक पूर्ण परमात्मा है।
- गीता अध्याय 8:16 व 9:7 ब्रह्म लोक से लेकर ब्रह्मा, विष्णु शिव आदि के लोक और ये स्वयं भी जन्म-मरण व प्रलय में है इसलिए ये अविनाशी नहीं हैं जिसके फलस्वरूप इनके उपासक (साधक) भी जन्म-मरण में ही हैं ।
- गीता अध्याय 7:12 से 15 तथा 20 से 23 में उस पूर्ण परमात्मा को छोड़कर अन्य देवी-देवताओं की, भूतों की, पितरों की पूजा मूर्खों की साधना है। ऐसा करने वालो को घोर नरक में डाला जाएगा।
- गीता अध्याय 3:12 जो शास्त्रनुकूल यज्ञ-हवन आदि (पूर्ण गुरु के माध्यम से ) नहीं करते हैं वे पापी और चोर प्राणी हैं ।
- गीता अध्याय 4:34 में बताया है कि तत्व ज्ञान को जानने के लिए तत्वदर्शी संतों की खोज करनी चाहिए।
कबीर साहेब जी ने कहा है कि सतगुरु से सतभक्ति पाए बिना हम कुछ भी पूजाएँ या साधनाएं करते रहे, उनसें न सुख होता है न समृद्धि और न ही परमगति। अतः जगत के नकली गुरुओं से बचें।
अविलंब शास्त्रानुकूल साधना प्रारंभ करें
सम्पूर्ण विश्व में संत रामपाल जी महाराज एकमात्र ऐसे तत्वदर्शी संत हैं जो सर्व शास्त्रों से प्रमाणित सत्य साधना की भक्ति विधि बताते हैं जिससे साधकों को सर्व लाभ होते हैं तथा पूर्ण मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसलिए सत्य को पहचानें व शास्त्र विरुद्ध साधना का आज ही परित्याग कर संत रामपाल जी महाराज से शास्त्रानुकूल साधना प्राप्त करें। उनके द्वारा लिखित पवित्र पुस्तक अंधश्रद्धा भक्ति-खतरा-ये-जान का अध्ययन कर जानें शास्त्रानुकूल साधना का सार।
शरद पूर्णिमा से जुड़े FAQs
शरद पूर्णिमा 2024 में 16 अक्टूबर, बुधवार को मनाई जाएगी।
शरद पूर्णिमा के दिन लोग रात को चंद्रमा की पूजा करते हैं, खीर बनाते हैं और इसे चंद्रमा की रोशनी में रखकर प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं। इस दिन भगवान लक्ष्मी और विष्णु की पूजा की जाती है। यह पूरी तरह से मनमाना आचरण है जिसका कोई लाभ नहीं है। अधिक जानकारी के लिए फ़ैक्टफ़ुल डिबेट यूट्यूब चैनल देखे।
शरद पूर्णिमा के दिन विभिन्न क्षेत्रों में कोजागरी व्रत, महारास का आयोजन (जिसे भगवान श्रीकृष्ण ने राधा और गोपियों के साथ किया था) और माता लक्ष्मी की पूजा प्रमुख रूप से की जाती है। यह पूरी तरह से मनमाना आचरण है जिसका कोई लाभ नहीं है। अधिक जानकारी के लिए फ़ैक्टफ़ुल डिबेट यूट्यूब चैनल देखे।
मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा की किरणें औषधीय गुणों से भरपूर होती हैं। जब खीर को रातभर चंद्रमा की रोशनी में रखा जाता है, तो उसमें चंद्रमा की सकारात्मक ऊर्जा और गुण समाहित होते हैं। यह पूरी तरह से मनमाना आचरण है जिसका कोई लाभ नहीं है। अधिक जानकारी के लिए फ़ैक्टफ़ुल डिबेट यूट्यूब चैनल देखे।
भगवद गीता में व्रत करना वर्जित है। गीता के अध्याय 6, श्लोक 16 में कहा गया है कि जो बहुत अधिक खाते हैं या बिल्कुल नहीं खाते, जो बहुत अधिक सोते हैं या बिल्कुल नहीं सोते, उनका उद्देश्य कभी सफल नहीं होता।
जी बिल्कुल नहीं, प्रत्येक सच्चे सनातनी को पौराणिक कथाओं पर आधारित व्रत और पूजाओं का परित्याग कर शास्त्र आधारित भक्ति आरंभ करनी चाहिए।