Last Updated on 28 October 2023 IST: हिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima 2023) कहते हैं। इस पूर्णिमा को कौमादी पूर्णिमा, कोजागिरी पूर्णिमा तथा जागृत पूर्णिमा आदि नामों से भी जाना जाता है। इस वर्ष यह पर्व 28 अक्टूबर 2023, बुधवार को मनाया जाएगा। मतान्तरों के चलते कुछ पंचांग शरद पूर्णिमा का व्रत 19 अक्टूबर दिन मंगलवार को मान रहें हैं। हिंदू धर्म में लोकवेद पर आधारित धार्मिक मान्यताओं के अनुसार हर पूर्णिमा तिथि का महत्व होता है लेकिन सभी पूर्णिमा तिथि में शरद पूर्णिमा तिथि का विशेष महत्व होता है यह त्योहार लक्ष्मी जी को समर्पित त्योहारों में से एक प्रमुख त्योहार है। पाठकजनों को इन बात पर अवश्य विचार करना चाहिए कि भोले साधक जन जिस साधना को कर रहे हैं क्या वह शास्त्र प्रमाणित है? अगर यह भक्तिविधि शास्त्र प्रमाणित नहीं है तो शास्त्र प्रमाणित भक्तिविधि को कैसे प्राप्त किया जा सकता है, तो आइए जानते हैं ऐसे ही कुछ गूढ़ रहस्यों को जिनसे साधक समाज अब तक अनभिज्ञ है।
Sharad Purnima 2023: मुख्य बिंदु
- आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि, 28 अक्टूबर 2023, बुधवार को मनाया जाएगा शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima) का यह पर्व
- शरद पूर्णिमा को कोजागिरी पूर्णिमा (Kojagiri Purnima), कौमादी पूर्णिमा या जागृत पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। ‘कोजागिरी’ का शाब्दिक अर्थ है कौन जाग रहा है
- शरद पूर्णिमा की रात्रि में लोग खुले आसमान में खीर रखते हैं और ऐसा कहा जाता हैं कि चाँद की किरणों द्वारा वह ऊर्जा अवशोषित करती हैं
- मनुष्य यदि लोक मान्यताओं के पीछे चलता है तो वह पूर्ण परमात्मा से मिलने वाले लाभ प्राप्त करने से वंचित रह जाता है
- जगतगुरु संत रामपाल जी महाराज ही शास्त्र प्रमाणित भक्तिविधि प्रदत्त करने वाले एकमात्र पूर्ण संत हैं
शरद पूर्णिमा 2023, तिथि व समय (Sharad Purnima 2023 Date And Time)
Sharad Purnima 2023: हिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन मास की पूर्णिमा तिथि 28 अक्टूबर 2023 है।
शरद पूर्णिमा व्रत कथा (Sharad Purnima Vrat Katha)
पौराणिक कथा के अनुसार, एक साहूकार की दो बेटियां थीं। दोनों बेटियां विधि विधान पूर्वक पूर्णिमा का व्रत रखती थीं। एक बार छोटी बेटी ने शरद पूर्णिमा का व्रत छोड़ दिया। जिसके कारण छोटी लड़की के बच्चे जन्म लेते ही मर जाते हैं। इसके कारण वह दुखी रहती है। वहीं एक बार साहूकार की बड़ी बेटी के पुण्य स्पर्श से छोटी बेटी का लड़का जीवित हो गया। कहते हैं कि उसी दिन से यह व्रत विधिपूर्वक मनाया जाने लगा।विचारणीय विषय यह है कि शास्त्रों में इस प्रकार की साधना का कोई वर्णन नहीं है साधक समाज को पूर्ण संत के मार्गदर्शन में पवित्र शास्त्रों का अध्ययन कर जानना चाहिए कि शास्त्र किस साधना की ओर संकेत कर रहे हैं तथा साधक समाज लाभार्थ हेतु किस साधना को कर रहा है।
शरद पूर्णिमा व्रत पूजा (Sharad Purnima Vrat And Puja)
वास्तविकता यह है कि पवित्र सद्ग्रन्थों में इस प्रकार की पूजा विधि का कोई वर्णन नहीं है यह सिर्फ लोकवेद पर आधारित मनमाना आचरण है जिससे न तो यथासमय लाभ सम्भव होगा और न ही पूर्ण मोक्ष। यह पूजा विधि शास्त्र विरुद्ध होने के कारण व्यर्थ है इससे सिर्फ मूल्यवान मनुष्य जीवन की बर्बादी होगी।
शरद पूर्णिमा के अन्य नाम (Sharad Purnima Name)
भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में शरद पूर्णिमा को भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता है और अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है
- गुजरात में शरद पूर्णिमा के दिन लोग गरबा एवं डांडिया रास करते है
- बंगाल में इसे लोक्खी पूजो कहते हैं तथा देवी लक्ष्मी के लिए स्पेशल भोग बनाया जाता है
- मिथिला में कोजगारह नाम से इस पर्व को मनाया जाता है
शरद पूर्णिमा का महत्व (Sharad Purnima Significance)
लोकवेद के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि यह व्रत सभी मनोकामना पूरी करता है। इसे कोजागरी व्रत पूर्णिमा एवं रास पूर्णिमा भी कहा जाता हैं। चन्द्रमा के प्रकाश को कुमुद कहा जाता हैं, इसलिए इसे कौमुदी व्रत की उपाधि भी दी गई है. आध्यात्मिक दृष्टि से शरद पूर्णिमा का कोई विशेष महत्व नही है, क्योंकि सतभक्ति करने वाले साधक के लिए वर्ष के 365 दिन ही विशेष होते हैं।
शरद पूर्णिमा के दिन खुले आसमान के नीचे खीर का कटोरा रखने का कारण?
- उत्तर भारत में शरद पूर्णिमा पर खीर बनाकर रात की चांदनी में रखने का प्रचलन बहुत ज़्यादा है। शरद पूर्णिमा की रात को अधिक मात्रा में औषधियों की स्पंदन क्षमता होती है। रसाकर्षण के कारण जब अंदर का पदार्थ सांद्र होने लगता है, तब रिक्तिकाओं से विशेष प्रकार की ध्वनि उत्पन्न होती है। रात्रि में खुले आसमान में रखी खीर को खाने से पित्त और मलेरिया का खतरा भी कम हो जाता है। श्वास संबंधी, हृदय संबंधी बीमारियों का खतरा कम हो जाता है साथ में लोगों का कहना है कि चर्म रोग और आंखों की रोशनी ठीक होती है।
- अन्य मान्यता के अनुसार शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima 2023) के दिन के बाद से आँवले के पेड़ से आँवले तोड़ना बहुत अच्छा इसलिए मानते हैं क्योंकि उनमें अधिक विटामिन C और अम्ल पाया जाता है जिसको खाने से अनेक लाभ प्राप्त होते हैं और शरद पूर्णिमा के पहले तोड़े गए आँवले खाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है।
- वैज्ञानिकों द्वारा अध्ययन के अनुसार दूध में लैक्टिक अम्ल और अमृत पाया जाता है। यह तत्व किरणों से अधिक मात्रा में ऊर्जा-शक्ति को अवशोषित करता है। यह भी एक मुख्य बात है कि चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया और भी आसान हो जाती है। ऋषि-मुनियों द्वारा शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima 2023) की रात्रि में खीर खुले आसमान में रखने का विधान बनाया हुआ है। यह परंपरा वैज्ञानिक पद्धति पर आधारित है, वेदों में खीर बनाकर चांद की रोशनी में रखनी चाहिए ऐसा कहीं नहीं लिखित है।
दंत कथाओं के आधार पर व्रत करना श्रेष्ठकर नहीं है
पाठकगण विचार करें यह कथाएं सिर्फ लोक प्रचलित हैं पवित्र शास्त्रों में इन कथाओं का कहीं भी कोई उल्लेख नहीं है। इसलिए इन कथाओं के आधार पर ही साधक समाज इस व्रत साधना को करने का विचार न करे, अपितु पूर्ण संत रामपाल जी महाराज के मार्गदर्शन में अध्ययन कर जानें कि पवित्र सद्ग्रन्थ किस साधना को करने का प्रमाण दे रहे हैं जिससे सर्व लाभ यथा समय प्राप्त होंगे तथा पूर्ण मोक्ष की प्राप्ति भी होगी।
क्या व्रत साधना विधि से मनवांछित फल प्राप्त होते हैं?
व्रत करना गीता में वर्जित है। गीता अध्याय 6 के श्लोक 16 में बताया है कि बहुत खाने वाले का और बिल्कुल न खाने वाले का, बहुत शयन करने वाले का और बिल्कुल न सोने वाले का उद्देश्य कभी सफल नहीं होता है। अतः ये शास्त्र विरुद्ध क्रियाएं होने से व्रत आदि क्रियाएं कभी लाभ नहीं दे सकती हैं। गीता अध्याय 6 श्लोक 16
न, अति, अश्नतः, तु, योगः, अस्ति, न, च, एकान्तम्, अनश्नतः,
न, च, अति, स्वप्नशीलस्य, जाग्रतः, न, एव, च, अर्जुन।।
‘लकीर के फकीर’ बन पुरानी परम्पराओं से मुक्त न हो पाने के कारण आज भी दुःखी हैं
यदि हम हमारे वेदों -पुराणों, सद्ग्रन्थों पर विश्वास न करके केवल मान्यताओं के पीछे चलते हैं तो हमें कोई लाभ प्राप्त नहीं होगा, केवल उतना ही मिलेगा जितना भाग्य में लिखा होता है। हमारे वेदों पुराणों में नहीं लिखा है कि हम इस तरह व्रत, हवन, यज्ञ आदि कर भगवान की पूजा अर्चना करें। शास्त्रानुकूल भक्ति विधि ही केवल सफल होती है और उसी से पूर्ण लाभ मिलता है। यदि हम मोक्षदायिनी सदभक्ति करते हैं तो हम हमारे मानव जीवन को सफल बनाकर पूर्ण मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं।
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हमें पुरानी परंपराओं को जो वेदों-गीता से मेल नहीं खाती हैं उन्हें त्याग देना चाहिए क्योंकि यह मनमानी पूजाएं हैं। यह हमारे और आपके जैसे लोगों द्वारा ही बनाई गई हैं। यह पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी का आदेश नहीं हैं। यदि हम परमात्मा की आज्ञा के अनुसार नहीं चलते हैं तो हम पापी, चोर, बुद्धि हीन प्राणी हैं। फिर ऐसे प्राणी को घोर नरक में डाला जाता है, इससे बचने के लिए हमें जल्द से जल्द सतज्ञान (आध्यात्मिक ज्ञान) से परिचित होना होगा और पूर्ण संत की खोज कर उनकी शरण में जाकर भक्ति प्रारम्भ करनी होगी ।
इस शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima 2023) पर पाठक स्वयं विचार करें
जिस ईश्वर ने इस पूरे ब्रह्मांड की रचना की है हमें उसकी साधना करनी चाहिए या उसके बनाए हुए देवी-देवताओं की पूजा करनी चाहिए ? श्रीमद्भगवत गीता में बिल्कुल नहीं कहा गया है कि पूर्ण परमात्मा के अलावा अन्य देवी-देवताओं की पूजा-साधना करो, फिर हम क्यों अपना समय बर्बाद कर रहे हैं। परमात्मा, हमें यह मानव जन्म केवल सतभक्ति के लिए प्रदान करते हैं। हमारे लिए वेदों पुराणों को समझ कर, शास्त्रानुकूल भक्ति साधना करना ही हितकारी है। केवल पूर्ण परमात्मा ही मनुष्य को धन, अन्न, रोटी, कपड़ा और मकान दे सकता है अन्य कोई भी देवी देवता बिना पूर्ण परमात्मा की कृपा के हमें कुछ नहीं दे सकते। तत्वज्ञान के अनुसार विस्तार से जानते है कि किस पूजा विधि से पूर्ण लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
पवित्र सद्ग्रन्थ किस परमेश्वर की साधना की ओर संकेत कर रहे हैं?
- संख्या न. 359 सामवेद अध्याय न. 4 के खण्ड न. 25 का श्लोक न. 8
पुरां भिन्दुर्युवा कविरमितौजा अजायत। इन्द्रो विश्वस्य कर्मणो धर्ता वज्री पुरुष्टुतः ।।
पुराम्-भिन्दुः-युवा-कविर्-अमित-औजा-अजायत-इन्द्रः-विश्वस्य-कर्मणः-धर्ता-वज्री- पुरूष्टुतः।
भावार्थ है कि जो कविर्देव (कबीर परमेश्वर) तत्वज्ञान लेकर संसार में आता है, वह सर्वशक्तिमान है तथा काल (ब्रह्म) के कर्म रूपी किले को तोड़ने वाला है वह सर्व सुखदाता है तथा सर्व के पूजा करने योग्य है।
श्रीमद्भगवत गीता जी से अनमोल ज्ञान का मंथन
केवल पूर्ण परमात्मा की भक्ति करने से ही प्राणी पूर्ण मुक्त (जन्म-मरण रहित) हो सकता है, वही परमात्मा वायु की तरह हर जीवात्मा के हृदय में और साथ रहता है। गीता अध्याय 18 के श्लोक 62,66 तथा अध्याय 8 के श्लोक 8,9,10,20,21,22 में गीता ज्ञानदाता ने अर्जुन को कहा है कि मेरी पूजा भी त्याग कर उस एक परमात्मा की शरण में जाने से ही तेरा पूर्ण छुटकारा अर्थात मोक्ष होगा और कहा मेरा भी पूज्य देव वही एक पूर्ण परमात्मा है।
- गीता अध्याय 8:16 व 9:7 ब्रह्म लोक से लेकर ब्रह्मा, विष्णु शिव आदि के लोक और ये स्वयं भी जन्म-मरण व प्रलय में है इसलिए ये अविनाशी नहीं हैं जिसके फलस्वरूप इनके उपासक (साधक) भी जन्म-मरण में ही हैं ।
- गीता अध्याय 7:12 से 15 तथा 20 से 23 में उस पूर्ण परमात्मा को छोड़कर अन्य देवी-देवताओं की, भूतों की, पितरों की पूजा मूर्खों की साधना है। ऐसा करने वालो को घोर नरक में डाला जाएगा।
- गीता अध्याय 3:12 जो शास्त्रनुकूल यज्ञ-हवन आदि (पूर्ण गुरु के माध्यम से ) नहीं करते हैं वे पापी और चोर प्राणी हैं ।
- गीता अध्याय 4:34 में बताया है कि तत्व ज्ञान को जानने के लिए तत्वदर्शी संतों की खोज करनी चाहिए।
कबीर साहेब जी ने कहा है कि सतगुरु से सतभक्ति पाए बिना हम कुछ भी पूजाएँ या साधनाएं करते रहे, उनसें न सुख होता है न समृद्धि और न ही परमगति। अतः जगत के नकली गुरुओं से बचें।
परमात्मा प्राप्ति के लिए अविलंब शास्त्रानुकूल साधना शुरू करें
सम्पूर्ण विश्व में संत रामपाल जी महाराज एकमात्र ऐसे तत्वदर्शी संत हैं जो सर्व शास्त्रों से प्रमाणित सत्य साधना की भक्ति विधि बताते हैं जिससे साधकों को सर्व लाभ होते हैं तथा पूर्ण मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसलिए सत्य को पहचानें व शास्त्र विरुद्ध साधना का आज ही परित्याग कर संत रामपाल जी महाराज से शास्त्रानुकूल साधना प्राप्त करें। उनके द्वारा लिखित पवित्र पुस्तक अंधश्रद्धा भक्ति-खतरा-ये-जान का अध्ययन कर जानें शास्त्रानुकूल साधना का सार।
जानें शास्त्रानुकूल साधना प्राप्त करने की सरल विधि
शास्त्र प्रमाणित भक्ति विधि प्राप्त करने के लिए संत रामपाल जी महाराज से निःशुल्क नाम दीक्षा प्राप्त करें। शास्त्रानुकूल साधना व शास्त्र विरुद्ध साधना में भिन्नता विस्तार से जानने के लिए सतलोक आश्रम यूट्यूब चैनल पर सत्संग श्रवण करें।