Last Updated on 21 July 2024: 8 सितंबर 2024 संत रामपाल जी महाराज जी का 74 वां अवतरण दिवस: जब भी कोई महापुरुष समाज में व्याप्त बुराईयों को दूर करने (समाज सुधार) का बीड़ा उठाते हैं तो वह समाज के तथाकथित ठेकेदारों की आँखों में चुभने लगते हैं। ऐसे ही एक संत हैं सतगुरु रामपाल जी महाराज जिन्होंने धर्म के नाम पर हो रहे धंधे को उजागर किया। धर्मग्रंथों के यथार्थ ज्ञान के आधार पर प्रमाण देकर नकली गुरुओं की पोल खोलकर पाखंड पर चोट की। व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार को सार्वजनिक कर उसे समूल उखाड़ फेकने का कठिन कार्य प्रारंभ किया। नशावृत्ति, दहेज जैसी कई सामाजिक कुरीतियों को बंद कराने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए। रक्तदान, अन्नदान परमार्थ करने के लिए प्रेरित किया।
समाज सुधार: सतगुरु रामपाल जी कुरीतियों को समाप्त करने में सफल रहे हैं
सतगुरु रामपाल जी महाराज बताते हैं कि मनमानी परंपराऐं, मान-बड़ाई, लोक दिखावा भक्ति मार्ग में बाधक हैं। सामाजिक अव्यवस्थाएं जैसे – वधुओं को दहेज की बलि-वेदी पर चढ़ा देने वाली दहेज-प्रथा, विवाह में बैंड-बाजे-डीजे बजाना, बेशर्मी से नाचना, नारी के प्रति असमानता और उपेक्षा पूर्ण भाव, जादू, टोना, मन्त्र-तंत्र, मनोकामना पूर्ति के लिए बलि जैसे अंधविश्वास, शारीरिक और मानसिक विकास को विक्षिप्त करने वाली बाल-विवाह प्रथा, चार वर्णों के भेदभाव की अन्यायवादी वर्णव्यवस्था, मृत्यु भोज, जन्मोंत्सव, पटाखे आदि फिजूलखर्ची त्याज्य हैं। नशा चाहे तंबाकू, बीड़ी, सिगरेट, खैनी, गुटखा, गुड़ाखू का हो या गांजा, चरस, अफीम और उनसे निर्मित उत्पाद, मदिरा शराब या फिर नशीली दवाइयों का ये सभी समाज की बर्बादी का कारण बन रहे हैं। इनके साथ समाज को बांटने वाले जातिवाद, सम्प्रदायवाद, क्षेत्रवाद, भाषावाद, प्रांतवाद आदि कुरीतियों को जड़ से समाप्त करना आवश्यक है। संत रामपाल जी की प्रेरणा से उनके भक्त सभी कुरीतियों से पूरी तरह से रहित हैं और इन्हें समूल समाप्त करने के लिए तत्पर हैं।
जाति, धर्म, लिंग के आधार पर होने वाले भेदभाव का केवल सन्त रामपाल जी ही सफल रूप से उन्मूलन कर सके हैं। सन्त रामपाल जी से दीक्षित उनके किसी भी अनुयायी में इस प्रकार का कोई भेदभाव नहीं पाया जाता है। यह देखकर भारत के इतिहास के भक्तियुग का स्मरण हो आता है जब कबीर साहेब ने सभी के लिए अर्थात धर्म, जाति और लिंग से परे भक्ति के द्वार खुलवाए थे। ऐसे अनमोल समाज का गठन केवल सन्त रामपाल जी महाराज ही कर सके हैं।
संत रामपाल जी ने बताई तम्बाकू की उत्पत्ति कथा
संत रामपाल जी महाराज तम्बाकू की उत्पत्ति के बारे में एक कथा सुनाते हैं। एक ऋषि जी ने अपने पुण्य तथा भक्ति के बल पर स्वर्ग लोक के राजा इन्द्र से सर्व कामना पूर्ति करने वाली कामधेनु गाय प्राप्त की। उन्हीं ऋषि को नीचा दिखाने की दृष्टि से एक राजा पूरी सेना के साथ भोजन करने ऋषि के आश्रम में पहुंच गया। ऋषि ने चांदी की थालियों में भोजन पेश किए। आश्चर्यचकित राजा के पूछने पर ऋषि ने कामधेनु का राज उजागर किया कि ये गाय जितना मांगे उतना भोजन उपलब्ध करा देती है। राजा ने ऋषि से चमत्कारी गाय मांग ली। ऋषि ने दुहाई दी “मैंने स्वर्ग से यह गऊ माता उधार ली है, अतः मैं इसका मालिक नहीं हूँ इसलिए मैं आपको ये नहीं दे सकता”।
क्रोधित राजा ने सैनिकों को आदेश दिया “इस गाय को अपने साथ राजभवन में ले चलो”। हताश ऋषि ने गऊ माता से निवेदन किया “हे गऊ माता! आप स्वर्गलोक में अपने राजा इन्द्र के पास लौट जाइए।“ कामधेनु तुरंत ऊपर को उड़ चली। राजा ने गाय को गिराने के प्रयास में उसके पैर पर तीर मारा। गाय के पैर से खून बहकर पृथ्वी पर गिरने लगा। लेकिन घायल अवस्था में गाय स्वर्ग चली गई। जहाँ-जहाँ गाय का रक्त गिरा था, वहाँ वहाँ तम्बाकू उग गया। फिर बीज बनकर अनेकों पौधे बनने लगे। संत गरीबदास जी की वाणी में बताया गया है कि
खू नाम खून का, तमा नाम गाय।
सौ बार सौगंध, इसे न पीयें-खाय।।
फारसी में ‘‘तमा’’ गाय को कहते हैं और “खू” खून अर्थात तमाखू गाय के रक्त से उपजा है जिसके ऊपर गाय के बाल जैसे रूंग (रोम) होते हैं। हे मानव! तेरे को सौ बार सौगंध है कि इस तमाखू का सेवन किसी रूप में भी मत कर। तमाखू सेवन से गाय के रक्त पीने के समान पाप लगता है। यह भेद जानकर मुसलमानों ने गाय का खून समझकर तमाखू खाना तथा हुक्के में पीना शुरू कर दिया। ऐसे ही गलत ज्ञान के आधार पर मुसलमान गाय के माँस को खाना धर्म का प्रसाद मानते हैं।
समाज सुधार: व्यसन और चरित्र हनन युगों तक हानि पहुंचाता है
व्यसन और चरित्र हनन करना अज्ञानता का पर्दा है, इसे भूलकर भी नहीं करना चाहिए। संत रामपाल जी महाराज संत गरीबदास जी की वाणी को उद्घृत करते हुए बताते हैं –
गरीब, परद्वारा स्त्री का खोलै। सत्तर जन्म अंधा हो डोलै।।
मदिरा पीवै कड़वा पानी। सत्तर जन्म श्वान के जानी।।
मांस आहारी मानवा, प्रत्यक्ष राक्षस जान।
मुख देखो न तास का, वो फिरै चैरासी खान।।
सुरापान मद्य मांसाहारी। गमन करै भोगै पर नारी।।
सत्तर जन्म कटत है शीशं। साक्षी साहेब है जगदीशं।।
सौ नारी जारी करै, सुरापान सौ बार।
एक चिलम हुक्का भरै, डूबै काली धार।।
हुक्का हरदम पीवते, लाल मिलांवे धूर।
इसमें संशय है नहीं, जन्म पीछले सूअर।।
भावार्थ: जो व्यक्ति अन्य स्त्री से अवैध सम्बन्ध बनाता है, उस पाप के कारण वह अंधा गधा-गधी, अंधा बैल, अंधा मनुष्य या अंधी स्त्री के लगातार सत्तर जन्मों में कष्ट भोगता है। कड़वी शराब रूपी पानी जो पीता है, वह उस पाप के कारण सत्तर जन्म तक कुत्ते के जन्म प्राप्त करके कष्ट उठाता है।
जो व्यक्ति माँस खाते हैं, वे तो स्पष्ट राक्षस हैं। उनका तो मुख भी नहीं देखना चाहिए यानी उनके साथ रहने से अन्य भी माँस खाने के आदी हो सकते है। इसलिए उनसे बचें। वह तो चौरासी लाख योनियों में भटकेगा। शराब पीने वाले तथा परस्त्री को भोगने वाले, माँस खाने वालों को अन्य पाप कर्म भी भोगना होता है। सत्तर जन्म तक मानव या बकरा-बकरी, भैंस या मुर्गे आदि योनियों में उनके सिर कटते हैं। इस बात को मैं परमात्मा को साक्षी रखकर कह रहा हूँ, सत्य मानना।
एक चिलम भरकर हुक्का पीने वाले को देने से भरने वाले को जो पाप लगता है, वह सुनो। एक बार परस्त्री गमन करने वाला, एक बार शराब पीने वाला, एक बार माँस खाने वाला पाप के कारण उपरोक्त कष्ट भोगता है। सौ स्त्रियों से भोग करे और सौ बार शराब पीऐ, उसे जो पाप लगता है, वह पाप एक चिलम भरकर हुक्का पीने वाले को देने वाले को लगता है। सत्संग सुनकर जो बुराई त्याग देते हैं तो वे जीव पिछले जन्म में भी मनुष्य थे। उनके अंदर नशे की गहरी लत नहीं बनती। परंतु जो बार-बार सत्संग सुनकर भी नशे का त्याग नहीं कर पाते, वे पिछले जन्म में सूअर के शरीर में थे। सूअर के शरीर में बदबू सूंघने से तम्बाकू की बदबू पीने-सूंघने की गहरी आदत होती है। जो शीघ्र हुक्का व अन्य नशा नहीं त्याग पाते, वे अधिक सत्संग सुनें। निराश न हों, सच्चे मन से परमात्मा कबीर जी से नशा छुड़वाने की पुकार प्रार्थना करने से सब नशा छूट जाता है।
नशा करता है शारीरिक और मानसिक नाश
संत रामपाल जी द्वारा समाज सुधार: नशा सर्वप्रथम तो इंसान को शैतान बनाता है। फिर शरीर का नाश करता है। शराब चारों अंगों फेफड़े, जिगर (लीवर), गुर्दे, हृदय को खराब करती है। सुल्फा (चरस) दिमाग को पूरी तरह नष्ट कर देता है। हेरोईन शराब से भी अधिक शरीर को खोखला करती है। अफीम से शरीर कमजोर हो जाता है और अपनी कार्यशैली छोड़ देता है। केवल अफीम से ही चार्ज होकर चलने लगता है। रक्त दूषित हो जाता है। जो व्यक्ति नशा करता हो उसे सुख दुख एवं हर परिस्थिति में नशा चाहिए। सामान्य जीवन शैली से उसे कोई सरोकार नहीं यहाँ तक कि नशा प्राप्त न होने की स्थिति में उसे बेचैनी होती है और उसकी मानसिक स्थिति खराब होने लगती है। एक बहुत बड़ी विडंबना है कि आज का युवावर्ग भी इसमें लिप्त है।
संत रामपाल जी महाराज के शिष्यों में अटूट ईमानदारी
विश्व के सबसे बड़े समाज सुधारक संत रामपाल जी महाराज जी के ज्ञान का ही यह असर है कि उनके शिष्यों में ईमानदारी, मानवता जैसे गुण मौजूद हैं। अन्यथा आज के व्यक्ति की वृत्ति इतनी गिर गई है कि वह लूट खसोट करने से भी परहेज नहीं करता, पैसे से भरा बैग लौटाना तो दूर रहा। जिससे यह स्पष्ट है कि यदि संत रामपाल जी महाराज के ज्ञान को प्रत्येक व्यक्ति सुने तो एक बार फिर समाज से लूट खसौट, चोरी, रिश्वत खोरी, भ्रष्टाचार आदि बुराइयां समाप्त हो सकती हैं।
5 मई को ही दीपक दास नामक संत रामपाल जी महाराज का शिष्य अपने कुछ साथियों के साथ अपने गुरु संत रामपाल जी महाराज जी का ज्ञान प्रचार साउथ दिल्ली के साकेत मेट्रो स्टेशन के पास कर रहा था। तभी उसका ध्यान महिला ज्वैलरी बैग पर पड़ा जो सड़क पर गिरा हुआ था। उस बैग को दीपक ने उठाया तो उसके अंदर पैसों के अलावा एयरफोर्स के कुछ डॉक्यूमेंट थे। प्रयास करके बैग के मालिक को ढूंढकर उसका खोया समान वापस लौटाया। ऐसे कई उदाहरण हैं जिसमे संत रामपाल जी महाराज के शिष्यों ने खोए हुए रुपये, जेवरात, मोबाईल फोन वापस पहुंचाए।
बाढ़ पीड़ितों को पहुंचाते है खाद्य व राहत सामग्री
प्राकृतिक आपदा के कारण मुसीबत में फंसे लोगों को संत रामपाल जी महाराज के अनुयायियों द्वारा खाद्य व अन्य राहत सामग्री पहुंचाने का कार्य बड़ी तत्परता से किया जाता हैं। जुलाई 2023 में हरियाणा के 12 जिले बाढ़ की चपेट में आ गए। लोगों को खाने-पीने की समस्या उत्पन्न हो गई और जलभराव के कारण बीमारियों का भी खतरा इन इलाकों में मंडराने लगा। ऐसी विषम परिस्थिति में बाढ़ पीड़ितों तक खाद्य व अन्य राहत सामग्री पहुंचाने के लिए संत रामपाल जी महाराज के अनुयायी अपनी जान को जोखिम में डालकर अलग-अलग जिलों, ब्लॉक आदि में यह मानवीय सेवा करते नजर आए।
देहदान महादान
संत रामपाल जी महाराज जी हमें सत्संगों में बताते हैं कि जब तक हम जीवित हैं, तब तक दूसरों की सेवा करें और परोपकार करें और मरने के बाद भी देहदान करके इस शरीर से लोगों की सेवा करने की कोशिश करें।
जबलपुर मेडिकल कॉलेज के एनाटॉमी विभाग के डॉ एन एल अग्रवाल जी ने बताया कि संत रामपाल जी महाराज जी के अनुयाई बहुत ही अच्छा कार्य कर रहे हैं और उनके अनुयायियों ने कई बार देहदान से जुड़े कार्य किए हैं। संत रामपाल जी महाराज जी के शिष्य उनके आध्यात्मिक ज्ञान से प्रभावित हो कर देहदान कर रहे हैं जिस तरफ अन्य लोग अभी इतने जागरूक नहीं हुए हैं। अभी तक सुभाषचंद्र बोस मेडिकल कॉलेज जबलपुर में जितनी भी देहदान द्वारा बॉडी आई हैं वे संत रामपाल जी महाराज जी के अनुयायियों की ही आई हैं। मृत्यु उपरांत देहदान करने का फैसला करना यह बहुत ही अच्छा कार्य है जिसे संत रामपाल जी महाराज जी के अनुयाई कर रहे हैं।
मृत्युभोज पर रोक
किसी परिजन की मृत्यु होने पर आयोजित किये जाने वाले भोज को मृत्युभोज कहते है। संत रामपाल जी महाराज ने अपने अनुयायियों को समझाया है कि कोई भी व्यक्ति अपने किसी परिजन की मृत्यु के उपरांत धार्मिक संस्कार या परम्परा के नाम पर मृत्यु-भोज नहीं करे।
ओड़िसा के सम्बलपुर जिले के एक गाँव में रहने वाले संत रामपाल जी महाराज के एक भक्त अक्षय दास ने मृत्युभोज की कुरीति को दूर करने का बीड़ा उठाया। भक्त अक्षय दास ने बताया, “मालिक सतगुरु ने इस निज आत्मा पर इतनी दया की और दास को गुरुजी से इतनी प्रेरणा मिली कि मृत्यु के अगले दिन से दास ने अपने गांव के पास प्रमाणपुर (सम्बलपुर) में मृत्युभोज के स्थान पर 11 दिन तक अत्यंत निर्धन व गरीब, असहाय तथा दिव्यांग लोगों के लिए फ्री इलाज और साथ में फ्री दवाइयां भी उपलब्ध करना शुरू किया।“
संत रामपाल जी महाराज के शिष्यों द्वारा वृक्षारोपण अभियान
संत रामपाल जी महाराज के शिष्यों द्वारा वृक्षारोपण अभियान जैसी एक महत्वपूर्ण पहल संत रामपाल जी महाराज की शिक्षाओं के साथ संरेखित है, जो प्रकृति के संरक्षण और सभी जीवित प्राणियों के साथ सद्भाव में रहने के महत्व पर जोर देती है। ये वृक्षारोपण अभियान न केवल पर्यावरण के भौतिक कल्याण में योगदान करते हैं, बल्कि पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने, जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने और समाज को विभिन्न लाभ प्रदान करने में पेड़ों की महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में जागरूकता भी बढ़ाते हैं। ऐसा ही एक अनोखा कार्य मध्यप्रदेश के जिला विदिशा में बने न्यू कलेक्ट्रेट परिसर में बीते रविवार 6 अगस्त को संत रामपाल जी महाराज के समर्थकों द्वारा वृक्षारोपण अभियान के तहत वट (बरगद) के वृक्ष का वृक्षारोपण कर किया गया तथा लोगों को पर्यावरण संरक्षित रखने के लिए वृक्षारोपण करते रहने का संदेश दिया।
73 वें अवतरण दिवस के उपलक्ष्य में विशेष कार्यक्रम
जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी के 74 वें अवतरण दिवस के उपलक्ष्य में 6-8 सितंबर 2024 को अवश्य देखिए विशेष कार्यक्रम साधना टीवी पर सुबह 9:15 बजे से।
नशा करने से होती है आध्यात्मिक हानि
भक्ति मार्ग में तम्बाकू सबसे अधिक बाधा करता है। हमारे शरीर में दो नाड़ियों इला और पिंगला के बीचों बीच एक छोटा छिद्र है जिसे सुषुम्ना कहते हैं। यह दोनों नाकों के मध्य में एक तीसरा रास्ता है जो छोटी सूई के छिद्र जितना है। मोक्ष प्राप्ति के लिए इस रास्ते का खुला होना अनिवार्य है क्योंकि जीव शरीर रूपी ब्रह्मांड के प्रत्येक कमल से जाता हुआ इस छिद्र के माध्यम से ही ऊपर त्रिकुटी पहुँचता है। वही रास्ता ऊपर त्रिकुटी की ओर जाता है जहाँ परमात्मा का निवास है। जिस रास्ते से आत्मा को परमात्मा से मिलना है। तम्बाकू का धुँआ उस रास्ते को बंद कर देता है। सुषुम्ना छिद्र बंद होने से जीव मोक्ष का अधिकरी नहीं रह जाता एवं मोक्षप्राप्ति उसके लिए असम्भव हो जाती है। इस प्रकार तम्बाकू इस लोक में इस शरीर को नष्ट करती है किंतु हमारे मृत्यु के बाद के समय को भी प्रभावित करती है। अन्य सभी व्यसन जीव को इस योग्य नहीं छोड़ते कि वह अपनी गलती सुधार सके और पुनः मानव जन्म प्रारम्भ कर सके। इस प्रकार नशा इस लोक और परलोक दोनो के लिए महा हानिकारक है।
भारत व विश्व के सबसे बड़े समाज सुधारक कौन है?
संत रामपाल जी महाराज भारत व विश्व के सबसे बड़े समाज सुधारक है जिन्होंने देश को दहेज, भ्रूण हत्या, जातिवाद, रिश्वतखोरी आदि समस्याओं से निजात दिलाई है।
समाज सुधार: भक्ति मार्ग की यात्रा ही बचा सकती है कुमार्ग से
जब तक आध्यात्मिक ज्ञान नहीं, तब तक तो जीव माया के नशे में अपना उद्देश्य भूल जाता है जैसे कि शराबी नशे में ज्येष्ठ महीने की गर्मी में भी कहता है कि मौज हो रही है और किसी भी स्थान पर चाहे वहाँ धूप ही क्यों न हो पड़ा रहता है।
संत रामपाल जी द्वारा समाज सुधार: अध्यात्म ज्ञान रूपी औषधि सेवन करने से जीव का हर प्रकार का नशा उतर जाता है। फिर वह भक्ति के सफर पर चलता है क्योंकि उसे परमात्मा के पास पहुँचना है जो उसका अपना पिता है तथा वह सतलोक जीव का अपना घर है। कुछ उदाहरण हैं जिसमें नशे में धुत लोगों ने सतगुरु रामपाल जी महाराज से नामदीक्षा लेकर अपना कल्याण कराया –
दिल्ली के बरवाला गाँव निवासी राकेश 3-4 बंडल बीड़ी हर रोज पीते थे, सिगरेट पीने व मांस भक्षण की भी आदत थी। नशा छोड़ने के लिए बेटी और पत्नी की कसमें खाता था लेकिन नहीं छूटा नशा। संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा ली और सब व्यसन छूटे और तरक्की हुई, तनख्वाह बढ़ी, आर्थिक हालात अच्छे हुए बच्चों की पढ़ाई अच्छी होने लगी।
महेंद्रगढ़ हरियाणा निवासी जय सिंह शराब के ठेके पर नौकरी करता था और एक बार में ही एक बोतल पी जाता था, दस पैकेट सिगरेट पी जाता था सभी परेशान थे। संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा लेने के बाद सब कुछ छूट गया, सब सुख मिले और समाज में मान्यता मिली।
हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला के पास गाँव पपान पंचायत निवासी धूम सिंह शिवजी, पार्वती और गणेश जी की पूजा करते थे, तीर्थ यात्रा भी करते थे। रोज दो बोतल दारू और एक किलो चिकन के बिना काम नहीं चलता था। नशा इतना करता था कि मोहल्ले वाले भी परेशान थे। स्वयं बीमार हुए पत्नी बीमार हुई, बच्चे की बाजू टूट गई। देवी देवताओं ने परेशान किया। आर्थिक हालत बिगड़ गई। साधना चैनल पर संत रामपाल जी महाराज का कार्यक्रम देखकर उनसे नाम दीक्षा लेने के बाद दारू-चिकन सब कुछ छूट गया, सब पड़ोसी उनके बदले व्यवहार से खुश हुए।
हरसूद तहसील जिला खंडवा मध्यप्रदेश निवासी कुसुम मध्यप्रदेश स्वास्थ्य विभाग में लेडी हेल्थ विज़िटर (Lady Health Visitor) के पद पर नौकरी करती हैं। नशा, शराब, मांस भक्षण करती थी। संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा लेने के बाद सब कुछ व्यसन छूट गये, आज सुपारी तक नहीं खाती हैं।
संत रामपाल जी द्वारा समाज सुधार: संत रामपाल जी महाराज जी के सान्निध्य में देहदान जैसा अनमोल दान
संत रामपाल जी महाराज जी ने अपने अनुयायियों को सत्संगों के माध्यम से बताया है कि दान सिर्फ पैसे का ही नहीं होता अपितु अन्य कई और भी महत्वपूर्ण दान हैं जो अति लोक कल्याणकारी हैं उन्हीं में से एक है देहदान। अपने गुरु जी द्वारा बताये गए इस अनमोल ज्ञान से प्रेरित होकर संत रामपाल जी महाराज जी के अनुयायियों ने देहदान का संकल्प लिया। इन्हीं में से कई अनुयायियों के निधन के बाद उनके परिवार जनों ने इस संकल्प को पूरा भी किया है।
संत रामपाल जी महाराज जी की प्रेरणा से कई रक्तदान शिविर हुए सम्पन्न
संत रामपाल जी द्वारा समाज सुधार: संत रामपाल जी महाराज जी के अनुयायियों के द्वारा अपने गुरु जी द्वारा बताए अद्वितीय ज्ञान से प्रेरित होकर संत रामपाल जी महाराज जी के सत्संगों के माध्यम से कई रक्तदान शिविर आयोजित हुए हैं, क्योंकि संत रामपाल जी महाराज बताते हैं कि साधक अर्थात भक्त या संत जन को हमेशा परमार्थी होना चाहिए। सेवा और परदुखकातरता मानवता का लक्षण है। सदैव दूसरों की मदद के लिए तत्पर रहना साधक के लिए श्रेयस्कर है।
वृक्ष कबहुं न फल भखै, नदी न संचै नीर।
परमारथ के कारने साधुन धरा शरीर।।
2023 में 02 जून को ओडिशा में भीषण रेल दुर्घटना हुई थी जिसमें लगभग 300 लोगों की मौत की पुष्टि हुई थी, वहीं 1000 के आसपास घायल थे। विश्व प्रसिद्ध समाज सुधारक संत रामपाल जी महाराज घायलों की सहायता के लिए मसीहा के रूप में सामने आए थे। संत रामपाल जी के अनुयायियों द्वारा 16 जून को संबलपुर, ओडिशा में 278 युनिट रक्तदान किया गया था और दुख की घड़ी में घायलों के साथ नजर आए थे।
‘दहेज मुक्त विवाह’ की पहल कर संत रामपाल जी महाराज ने समाज सुधार किया
संत रामपाल जी महाराज जी द्वारा चलाये जा रहे दहेज मुक्त विवाह अभियान से प्रेरित होकर संत रामपाल जी महाराज के अनुयायियों के द्वारा बिना किसी दान-दहेज के अद्भुत, अद्वितीय विवाह सम्पन्न किये जाते हैं जिनसे दहेज नामक राक्षस से छुटकारा तो मिला ही है, साथ ही में फिजूलखर्ची व दिखावे पर विराम चिन्ह लगा है, क्योंकि संत रामपाल जी महाराज बताते हैं कि जब विवाह महज संयोग है तो फिर व्यर्थ की फिजूलखर्ची क्यों, इस धन का दुरूपयोग न करते हुए इसे सही जगह पर दान-धर्म पर लगाया जाए जिससे वह धन अवश्य फलीभूत होगा और उसका कई गुना लाभ मिलेगा। इस तर्ज पर सन्त रामपाल जी महाराज ने अद्भुत रमैनी के माध्यम से विवाह आरम्भ करवाये। जिसमें विश्व के सभी देवी देवताओं के आव्हान के साथ पूर्ण परमेश्वर की प्रार्थना से रमैनी मात्र 17 मिनट में सम्पन्न हो जाती हैं। रमैनी के माध्यम से लाखों जोड़े विवाह बंधन में बंध चुके हैं एवं सुखी जीवन जी रहे हैं।
समाज सुधार: कोरोना महामारी के दौरान सरकार का भरपूर सहयोग किया
जब देश वैश्विक महामारी कोरोना के कारण उत्पन्न विषम परिस्थितियों से जूझ रहा था तब कोई भी धर्मावलम्बी चाहे वह किसी भी धर्म का पीर, फकीर, गुरु, पादरी इत्यादि हो आगे नहीं आया। सभी छिपे घूम रहे थे। सामान्य परिस्थितियों में ज्ञान बाँटने वाले देश की मदद के लिए आगे नहीं आए। किंतु इन कठिन परिस्थितियों में संत रामपाल जी महाराज जी ने खुद आगे आकर सरकार को अपने आश्रम सौंपकर उन्हें कोविड सेंटर बनाने का आग्रह किया और कोविड सेंटर में आने वाले सभी खर्चों को चाहे वह दवाई, खाना-पीना, शौचालय, पंखा, बिस्तर, पलंग इत्यादि का खर्च खुद ही वहन करने का वादा किया। साथ ही यह बात भूलने योग्य नहीं है कि जब अनेकों प्रवासी मजदूर अपने अपने राज्य पैदल जा रहे थे तब सन्त रामपाल जी महाराज ने अनेकों मजदूरों के लिए आश्रम के दरवाजे खोले।
समय-समय पर अन्नदान कर, निभाया सच्चे साधुजन होने का कर्तव्य
संत रामपाल जी महाराज जी द्वारा समाज सुधार: संत रामपाल जी महाराज जी द्वारा बताए गए ज्ञान से प्रेरणा लेकर संत रामपाल जी महाराज जी के सान्निध्य में संचालित मुनीन्द्र धर्मार्थ ट्रस्ट द्वारा कोरोना जैसे कठिन दौर में जब देश का निम्न वर्ग भुखमरी जैसे तंग हालातों से जूझ रहा था, जब लोगों के पास आय का कोई साधन नहीं था और दो जून की रोटी के लिए भी लोग आस लगाए बैठे थे। तब संत रामपाल जी महाराज जी अनुयायियों ने घर-घर जाकर लोगों को निःशुल्क भोजन सामग्री प्रदान की।
सन्त रामपाल जी ने किया आव्हान पाखंड मुक्त भारत का
सन्त रामपाल जी महाराज एकमात्र ऐसे सन्त हैं जिन्होंने पाखण्डवाद का सफलतापूर्वक सही तर्कों के साथ खंडन किया है। उन्होंने धर्म के नाम पर अंधाधुंध फैले व्यापार को उजागर किया, शास्त्रों का नाम लेकर मनमानी क्रियाओं का खंडन किया। इतना ही नहीं बल्कि सन्त रामपाल जी ने सभी शास्त्रों को खोला और पढ़कर सुनाया। जनता को तत्वज्ञान से परिचित करवाया। सन्त रामपाल जी महाराज पूरे विश्व में एकमात्र तत्वदर्शी सन्त हैं। व्रत, उपवास, जीवहत्या, मांसाहार, सुरापान, मूर्तिपूजा के विषय में शास्त्र क्या कहते हैं इस विषय में केवल सन्त रामपाल जी महाराज ने शास्त्र खोलकर प्रमाण दिया।
गुरु बनाना क्यों आवश्यक है और एक पूर्ण गुरु के क्या लक्षण होते हैं यह प्रमाण सहित बताकर सन्त रामपाल जी ने समाज पर उपकार किया है। इतिहास गवाह है कि आज तक किसी धर्मगुरु ने शास्त्रों के वास्तविक अर्थ से हमारा परिचय नहीं करवाया था। साथ ही यह भी सर्वविदित है कि कुरान और बाइबल खोलकर सही अर्थ बताने वाले सन्त केवल सन्त रामपाल जी महाराज ही हुए हैं। सन्त रामपाल जी महाराज ने गुरु के महत्व, नामदीक्षा और नाम स्मरण के महत्व को बताकर मानव जीवन सफल बनाने का अवसर दिया है।
तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के विरोध में नकली गुरुओं का एकजुट होना
धर्म ग्रंथों के आधार पर सतज्ञान को समाज में प्रसारित करने के कारण नकली धर्म गुरुओं के सिंहासन हिलने लगे। तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के विरोध में नकली गुरु एकजुट खड़े हो गए। दहेज, भ्रष्टाचार, नशावृत्ति जैसी कुप्रथाओं को समाप्त करने वाले ऐसे महान संत पर देशद्रोह जैसे कपोलकल्पित आरोपों को मंढकर भारतीय दंड संहिता की कई धाराओं के अंतर्गत मुकदमे दर्ज कर दिए गए। कबीर साहेब ने इस बारे में पहले ही कहा है कि मेरे संत जो सतज्ञान उपदेश करेंगे, नकली गुरु उनके साथ लड़ाई करेंगे –
जो मम संत सत उपदेश दृढ़ावै (बतावै), वाके संग सभि राड़ बढ़ावै।
सदग्रंथों में उल्लेखित प्रमाणों के आधार पर उन्हें गुरु पदवी प्राप्त हुई और वे बन्दीछोड़ तत्वदर्शी जगतगुरु संत रामपाल जी महाराज के रूप में जाने गए। पवित्र श्रीमदभगवतगीता के अध्याय 15 श्लोक 1 से 4 में तत्वदर्शी संत की पहचान दी गई है जिसे पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबीर साहेब) के वचनों से भी स्पष्ट समझा जा सकता है।
सतगुरु के लक्षण कहूं, मधूरे बैन विनोद।
चार वेद षट शास्त्र, कहै अठारा बोध।।