Last Updated on 16 January 2024 IST | Pongal Festival in Hindi: भारतवर्ष में कई त्योहार साल भर मनाए जाते हैं। भारत एक कृषि प्रधान देश है और विशेष रूप से जब फसलों के कटने का समय आता है तो देश के विभिन्न स्थानों में अलग अलग नामों से त्योहार मनाए जाते हैं। भारत ऋतुओं के मामले में भी अग्रणी है तो बदलती ऋतुओं के साथ भी त्योहार मनाए जाते हैं। पोंगल (Pongal 2024) विशेष रूप से दक्षिण भर का त्योहार है। किंतु इसे मनाए जाने का समय लगभग वही है जो उत्तर भारत में मकर संक्रांति मनाए जाने का समय है। आइए जानें पोंगल के विषय में
Pongal Festival in Hindi: पोंगल कब और कहां मनाया जाता है?
लोकवेद यानी लोगों के अपने मन के अनुसार लंबे समय से पोंगल (Pongal Festival in Hindi) तमिलनाडु में विशेष रूप से मनाया जाता है। जिस तरह हिंदी के महीने होते हैं उसी प्रकार तमिल महीने (Telugu Calendar) भी होते हैं। जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रविष्ट होता है तब तमिल वर्ष की शुरुआत मानी जाती है। पोंगल तमिल महीने की पहली तारीख से शुरू होता है और चार दिन तक इस उत्सव को मनाया जाता है।
प्रति वर्ष की तरह इस वर्ष पोंगल 2024 की तारीख (Pongal 2024 Date) 15 जनवरी 2024से 18 जनवरी 2024 तक मनाया जाएगा। पहला दिन भोगी पोंगल (Bhogi Pongal), दूसरे दिन सूर्य पोंगल, तीसरे दिन मट्टू पोंगल और चौथे दिन कन्या पोंगल मनाया जाता है। केवल तमिलनाडु ही नहीं समूचे दक्षिण भारत में इस त्योहार को मनाया जाता है।
पोंगल का अर्थ क्या है? (Meaning of Pongal in Hindi)
पोंगल शब्द की उत्पत्ति ‘पोहि’ शब्द से मानी जाती है जिसका अर्थ उस प्रतिज्ञा से है जिसके अनुसार लोग बुराई को छोड़कर अच्छाई अपनाने के लिए पोंगल के ठीक पहले वाली अमावस्या पर करते है। पोंगल का अर्थ तमिल भाषा में उफान के लिए भी करते है साथ ही साथ इसका मतलब ‘जाने वाली’ भी होता है।
Pongal 2024: पोंगल में क्या करते हैं लोग?
Pongal Festival in Hindi: पोंगल में लोग विशेष रूप से इंद्र और सूर्य तथा मवेशियों की उपासना की जाती है, हालांकि यह किसी ग्रन्थ में वर्णित नहीं है। पूरे भारत में (अधिकांश उत्तर भारत) मकर संक्रांति और गुजरात मे उत्तरायण के रूप में यह त्योहार जाना जाता है। त्योहार मनाने की सभी जगह अलग अलग प्रथाएँ हैं लेकिन क्या इन त्योहारों से कुछ होता भी है? आखिर किसने मनाया पहला त्योहार?
Pongal Festival in Hindi: त्योहार मनाने की परंपरा
कोई भी त्योहार हो वह अवश्य ही किसी न किसी देवी देवता की उपासना से जुड़ा होता है। यह वेदों के विरुद्ध है। वेद सृष्टि के आरम्भ से हैं एवं क्या सही है क्या गलत है ये वेद बताते हैं। वेद सदैव एक पूर्ण परमेश्वर की उपासना पर बल देते हैं। विभिन्न देवताओं की उपासना या बहुदेववाद सनातन धर्म का लक्षण नहीं है। भक्तिकाल के एक प्रसिद्ध सन्त रविदास जी ने कहा था मन चंगा तो कठौती में गंगा। त्योहार आदि तो तिथियों तक सीमित हैं किन्तु जीवन, उसकी संभावनाएं और जीवन की क्षण भंगुरता, असीमित।
Read in English: Know About The Supreme God Who Is Having Supremacy Over All Gods On Pongal Festival
मृत्यु बिना बुलाए दबे पाँव आती है और यही एकमात्र अटल सत्य है। यदि त्योहार इतने ही आवश्यक होते तो यह त्योहार वेदों में अवश्य वर्णित होती। साल गुजरते हैं, फसलें कटती हैं और ये त्योहार मनाए जाते है लेकिन वास्तव में इन त्योहारों और इनसे जुड़ी मान्यताओं का वास्तविक धर्म से कोई लेना देना नहीं है। यहाँ यह प्रमाणित नहीं किया जा रहा है कि व्यक्ति प्रसन्न न हो किन्तु सच्चाई से अवगत कराने का प्रयत्न है।
क्या हम सुखमय स्थान पर रह रहे है?
आज हम जिस स्थान पर रह रहे है वास्तविकता में वो रहने लायक है ही नहीं फिर यहां त्योहार मनाकर क्या ही खुशी मनाना। आज जिस परिवार के लिए हम इतना संघर्ष करते है उस परिवार के किसी सदस्य को कब क्या हो जाए कोई भरोसा नहीं। यहां कोई भी कभी भी काल का ग्रास बन सकता है। यहां तो हमेशा डरकर रहना चाहिए और परमात्मा के विधान के अनुसार कुछ गलती ना हो जाए इस बात की खैर मनाना चाहिए। यदि हम पूर्ण परमात्मा पर आश्रित होकर रहेंगे तो वह हमे काल से बचा लेगा। पूर्ण परमात्मा ही हमे यहां काल रूपी कसाई के बाड़े से आजाद कर सकते है।
यो न देस तुम्हार
देश, घर, परिवार, रिश्ते कुछ भी हमारा नहीं है। हमारा शरीर भी हमारा नहीं है। फिर हमारा है क्या? हमारा घर है सतलोक, हमारा पिता है पूर्ण ब्रह्म कविर्देव। यह वही परमात्मा है जो सबसे ऊपर है, सर्वोच्च है। गीता अध्याय 7 श्लोक 14 से 15 में तीन गुणों यानी ब्रह्मा विष्णु महेश की भक्ति करने वाले नीच, मूर्ख ठहराए गए हैं। फिर इंद्र एवं अन्य देवताओं की क्या बात है। एक पूर्ण परमेश्वर की साधना करने से ब्रह्मांड के सभी देवी देवता अपने स्तर का लाभ साधक को दे देते हैं। इसलिए कबीर साहेब ने कहा है-
एकै साधे सब सधै, सब साधै सब जाय।
माली सींचे मूल को, फलै फूलै अघाय।
इस पोंगल सुख, सम्पदा और समृद्धि के लिए करें यह उपाय
कोई भी साधना या जीवनशैली का वह तरीका जो शास्त्रों में वर्णित न हो सदैव नकारात्मक होता है जिससे न तो कोई लाभ होता है और न ही सदगति होती है (गीता अध्याय 16, श्लोक 23) अतः हमें सुख सम्पदा एवं शांति के लिए वे साधनाएँ करनी चाहिए जो शास्त्रों में वर्णित हैं इससे हमें इस लोक का सुख तो मिलेगा ही बल्कि आध्यात्मिक लाभ के तौर पर पूर्ण मोक्ष भी मिलेगा एवं हम अपने निज घर सतलोक जा सकेंगे। शास्त्रों के अनुसार पूर्ण तत्वदर्शी सन्त से नामदीक्षा लेकर भक्ति करना ही मनुष्य जन्म का मुख्य उद्देश्य है। पूर्ण तत्वदर्शी सन्त पूरे विश्व में एक ही होता है। वर्तमान में सन्त रामपाल जी महाराज पूर्ण तत्वदर्शी सन्त हैं। अधिक जानकारी के लिए देखें सतलोक आश्रम यूट्यूब चैनल। सभी शास्त्रों को बारीकी से समझने के लिए मुफ्त ऑर्डर करें ज्ञान गंगा।