February 5, 2025

कबीर साहेब जी के अद्भुत रहस्य जिनसे आप आज भी अनजान हैं | क्या कहते हैं वेद कबीर साहेब जी के बारे में?

Published on

spot_img

सृष्टि की रचना पूर्ण ब्रह्म परमेश्वर ने छः दिनों में की थी और फिर सातवें दिन तख्त पर बैठ कर विश्राम किया। वे समय समय पर हम भूली भटकी आत्माओं को सतज्ञान देने इस धरा पर आते हैं। इसका प्रमाण पवित्र वेदों व कुछ सुप्रसिद्ध संतों की अमृतवाणियों में भी विद्यमान है। पवित्र वेदों में प्रमाण है कि कबीर साहेब प्रत्येक युग में आते हैं। परमेश्वर कबीर का माता के गर्भ से जन्म नहीं होता है तथा उनका पोषण कुंवारी गायों के दूध से होता है। अपने तत्वज्ञान को अपनी प्यारी आत्माओं तक वाणियों के माध्यम से कहने के कारण परमात्मा एक कवि की उपाधि भी धारण करता है। कबीर परमेश्वर जी की जीवन लीला से संबंधित सभी घटनाओं के प्रमाण आज भी ज्यों के त्यों सुरक्षित हैं। 

जैसे कबीर साहेब जी कवि क्यों कहलाते हैं, वे कहाँ प्रकट हुए, उनके प्राकाट्य का साक्षी कौन है, कैसे उनका पालन पोषण हुआ, उन्होंने झूठे ज्ञान का खंडन क्यों किया, कहाँ से उन्होंने सतलोक के लिए सशरीर प्रस्थान किया और क्या आज भी कबीर जी धरती पर आए हुए हैं इन सभी के प्रमाण देखें कुछ वेद मंत्रों में-

  • यजुर्वेद अध्याय 29 मन्त्र 25,
  • ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 96 मन्त्र 17 

ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 96 मन्त्र 18 , ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9, यजुर्वेद अध्याय 29 मन्त्र 25 में स्पष्ट प्रमाण है कि कबीर परमेश्वर अपने तत्वज्ञान के प्रचार के लिए पृथ्वी पर स्वयं अवतरित होते हैं। वेदों में परमेश्वर कबीर का नाम कविर्देव वर्णित है।

परमात्मा कवि की भूमिका भी करता है

लोगों को तत्व ज्ञान से अवगत कराने के लिए परमात्मा कविताओं और लोकोक्तियों का उपयोग करते हैं और एक प्रसिद्ध कवि की उपमा प्राप्त करते हैं।

  • ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 16 मंत्र 18

“ऋषिमना य ऋषिकृत् स्वर्षाः सहत्राणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयम् धाम महिषः सिषा सन्त् सोमः विराजमानु राजति स्टुप्।।

परमात्मा विलक्षण बालक  का रूप लेकर आता है

ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 96 मंत्र 17 में है:

“शिशुम् जज्ञानम् हर्य तम् मृजन्ति शुम्भन्ति वहिन मरूतः गणेन।

कविर्गीर्भि काव्येना कविर् सन्त् सोमः पवित्रम् अत्येति रेभन्।।17।।

अनुवाद: सर्व सृष्टी रचनहार (हर्य शिशुम्) सर्व कष्ट हरण पूर्ण परमात्मा मनुष्य के विलक्षण बच्चे के रूप में (जज्ञानम्) जान बूझ कर प्रकट होता है तथा अपने तत्वज्ञान को (तम्) उस समय (मृजन्ति) निर्मलता के साथ (शुम्भन्ति) उच्चारण करता है। (वुिः) प्रभु प्राप्ति की लगी विरह अग्नि वाले (मरुतः) भक्त (गणेन) समूह के लिए (काव्येना) कविताओं द्वारा कवित्व से (पवित्रम् अत्येति) अत्यधिक निर्मलता के साथ (कविर् गीर्भि) कविर् वाणी अर्थात् कबीर वाणी द्वारा (रेभन्) ऊंचे स्वर से सम्बोधन करके बोलता है, हुआ वर्णन करता (कविर् सन्त् सोमः) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष ही संत अर्थात् ऋषि रूप में स्वयं कविर्देव ही होता है। परन्तु उस परमात्मा को न पहचान कर कवि कहने लग जाते हैं। परन्तु वह पूर्ण परमात्मा ही होता है। उसका वास्तविक नाम कविर्देव है। 

कबीर साहेब जी कहां प्रकट हुए और कौन उनके माता पिता कहलाए?

कबीर साहेब के परिवार की वास्तविक जानकारी

परमेश्वर कबीर साहेब जी का जन्म माता पिता के संयोग से नहीं हुआ बल्कि वह हर युग में अपने निज धाम सतलोक से चलकर पृथ्वी पर अवतरित होते हैं। कबीर साहेब जी लीलामय शरीर में बालक रूप में नीरु और नीमा नाम के मुस्लिम दंपत्ति को काशी के लहरतारा तालाब में एक कमल के पुष्प पर मिले थे।

परमेश्वर ने कंवारी गाय का दूध पिया

परमेश्वर जब बालक रूप में आते हैं तो कंवारी गाय के दूध से उनका पोषण होता है। सन्त गरीबदास जी ने परमेश्वर कबीर जी की महिमा यथार्थ रूप में कही है जो सदग्रंथ में पारख के अंग में इस प्रकार लिखी है,

“दूध न पीवत न अन्न भखत न पालने  झूलंत। 

दास गरीब कबीर पुरूष कमल कला फूलंत।। 

शिव उतरे शिव पुरी से अवगति बदन विनोद। 

नजर नजर से मिल गई लिया ईश कूं गोद।।

सात बार चर्चा करी बोले बालक बैन। 

शिव कूं कर मस्तिक धरा ला मौमिन एक धेनू।। 

अनब्यावर (कंवारी) गाय को दूहत है दूध दिया तत्काल। 

पीव कबीर ब्रह्मगति तहां शिव भया दयाल।।

कुंवारी गाय के दूध से परवरिश लीला का प्रमाण ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9 में है। जब परमात्मा दूसरी प्रकार का शरीर धारण करके अर्थात शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर प्रकट होता है उस समय उनके पालन की लीला कुंवारी गौवों द्वारा होती है। कृपया पढ़ें ऋग्वेद मण्डल 9 सुक्त 1 मंत्र 9 में जो निम्न है-

अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।। अभी इमम् अध्रया उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे।

भावार्थ– पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआ बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है। जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात उस समय कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है। 

इससे स्पष्ट है कि परमेश्वर कबीर जी ने वही लीला की थी जिसकी वेद गवाही दे रहे हैं कि परमात्मा ऐसी लीला करता है। 

किस किस को मिले कबीर परमात्मा?

कबीर साहेब के वास्तविक रूप से वैसे तो सभी अनजान थे लेकिन कुछ ऐसे महापुरुष है जिन्हें कबीर साहेब ने स्वयं दर्शन दिए और अपनी वास्तविक स्थिति से परिचित कराया जिनमें सिख धर्म के प्रवर्तक गुरु नानक देव जी (तलवंडी, पंजाब), आदरणीय धर्मदास जी (बांधवगढ़, मध्यप्रदेश), संत दादू साहेब जी (गुजरात), मलूकदास जी, स्वामी रामानंद जी आदि शामिल हैं। (ऋग्वेद मंडल 10 सूक्त 4 मन्त्र 6)। इस मंत्र में परमेश्वर कबीर जी को “तस्कर” अर्थात छिप कर कार्य करने वाला कहा है। नानक जी ने भी परमेश्वर कबीर साहेब जी की वास्तविक स्थिति से परिचित होने पर उन्हें “ठग” (गुरु ग्रंथ साहेब, राग सिरी, महला पहला, पृष्ठ 24) कहा है।

श्री नानक जी को भी परमेश्वर कबीर जी धाणक रूप में मिले थे। नानक जी को तीन दिन तीन रात ऊपर अपने सच्चखंड में रखा फिर छोड़ा था। उन्होंने भी यही बताया कि यह धाणक, जुलाहा रूप में काशी में विराजमान कून करतार परवरदिगार स्वयं है। परमेश्वर कबीर जी तथा श्री नानक देव, सिख धर्म प्रवर्तक कुछ समय समकालीन थे। श्री नानक जी का जन्म सन् 1469 में तथा परलोक गमन सन् 1539 तथा परमेश्वर कबीर जी सन् 1398 में सशरीर प्रकट हुए तथा सन् 1518 में सशरीर सतलोक गए। इस प्रकार दोनो 49 वर्ष साथ साथ संसार में रहे। इसी का प्रमाण कुछ वाणियों में मिलता है

  1. तेरा एक नाम तारे संसार मैं येही आश ये ही आधार। फाई सुरति मलूकी वेश ये ठगवाड़ा ठग्गी देश। खरा सियाणा बहुता भार ये धाणक रूप रहा करतार।। 

गुरू ग्रंथ साहेब पृष्ठ 24

  1. हक्का कबीर करीम तू बे एब परवरदिगार।  

गुरू ग्रंथ साहेब पृष्ठ 721

  1. अंधुला नीच जाति परदेशी मेरा खिन आवै तिल जावै,

जाकि संगति नानक रहंदा,क्योंकर मोंहडा पावै।। गुरू ग्रंथ साहेब पृष्ठ 731

काशी में करौंत की स्थापना की कथा

आज से 600 वर्ष पहले काशी में धर्मगुरुओं द्वारा मोक्ष प्राप्ति के लिए गंगा दरिया के किनारे एकांत स्थान पर एक नया घाट बनाया गया और वहां पर एक करौंत लगाई, जो कि शास्त्रों के विरुद्ध थी। धर्मगुरूओं ने एक योजना बनाई जिसके अनुसार उन्होंने ये अफवाह फैलाई कि भगवान शिव का आदेश हुआ है कि जो काशी नगर में प्राण त्यागेगा, उसके लिए स्वर्ग का द्वार खुल जाएगा। वह बिना रोक-टोक के स्वर्ग चला जाएगा। जो शीघ्र ही स्वर्ग जाना चाहता है, वह करौंत से मुक्ति ले सकता है। उसकी दक्षिणा भी बता दी।

जब पंडितों ने फैलाया झूठ

उन्होंने ये बात भी फैलाई कि जो मगहर नगर (गोरखपुर के पास उत्तरप्रदेश में) वर्तमान में जिला-संत कबीर नगर (उत्तर प्रदेश) में है, उसमें मरेगा, वह नरक जाएगा या गधे का शरीर प्राप्त करेगा। गुरूजनों की प्रत्येक आज्ञा का पालन करना अनुयाईयों का परम धर्म माना गया है। इसलिए हिन्दु लोग अपने-अपने माता-पिता को आयु के अंतिम समय में काशी (बनारस) शहर में किराए पर मकान लेकर छोड़ने लगे। अपनी जिंदगी से परेशान वृद्ध व्यक्ति अपने पुत्रों से कह देते थे कि एक दिन तो भगवान के घर जाना ही है हमारा उद्धार शीघ्र करवा दो।

करौंत से हजारों व्यक्तियों को मृत्यु के घाट उतारा जाने लगा

इस प्रकार धर्मगुरुओं द्वारा शास्त्रों के विरुद्ध विधि बता कर मोक्ष के नाम पर काशी में करौंत से हजारों व्यक्तियों को मृत्यु के घाट उतारा जाने लगा। शास्त्रों में लिखी भक्ति विधि अनुसार साधना न करने के विषय में गीता अध्याय 16 श्लोक 23 में लिखा है कि उस साधक को न तो सुख की प्राप्ति होती है, न भक्ति की शक्ति (सिद्धि) प्राप्त होती है, न उसकी गति (मुक्ति) होती है अर्थात व्यर्थ प्रयत्न है।

कबीर जी ने कहा, धरती के भरोसे ना रहें 

इस गलत धारणा को कबीर परमेश्वर लोगों के दिमाग से निकालना चाहते थे। वह लोगों को बताना चाहते थे कि धरती के भरोसे ना रहें क्योंकि मथुरा में रहने से भी कृष्ण जी की मुक्ति नहीं हुई। उसी धरती पर कंस जैसे राजा भी डावांडोल रहे।

मुक्ति खेत मथुरा पूरी जहां किन्हा कृष्ण किलोल,

और कंस केस चानौर से, वहां फिरते डावांडोल।।

इसी प्रकार हर किसी को अपने कर्मों के आधार पर स्वर्ग या नरक मिलता है चाहे वह कहीं भी रहें। अच्छे कर्म करने वाला स्वर्ग प्राप्त करता है और बुरे-नीच काम करने वाला नरक भोगता है, चाहे वह कहीं भी प्राण त्यागे, वह दुर्गति को ही प्राप्त होगा।

कबीर साहेब जी के शरीर की जगह मिले थे फूल

जब कबीर साहेब की काशी लीला पूर्ण होने को आई और वे मगहर पहुंच गए तो उन्होंने 2 चादर मंगवाई। परमेश्वर कबीर साहिब ने सबको आदेश दिया कि इन दो चादरों के बीच जो मिले उसको दोनों आधा-आधा बांट लेना और मेरे जाने के बाद कोई किसी से लड़ाई नहीं करेगा। सब चुप थे पर मन ही मन सब ने सोच रखा था कि एक बार परमेश्वर जी को अंतिम यात्रा पर विदा हो जाने दो फिर वही करेंगे जो हम चाहेंगे। एक चादर नीचे बिछाई गई जिस पर कुछ फूल भी बिछाए गए। परमेश्वर चादर पर लेट गए। दूसरी चादर ऊपर ओढ़ी और सन 1518 में परमेश्वर कबीर साहिब सशरीर सतलोक गमन कर गए। थोड़ी देर बाद आकाशवाणी हुई:

“उठा लो पर्दा, इसमें नहीं है मुर्दा”

वैसा ही हुआ कबीर परमात्मा का शरीर नहीं बल्कि वहां सुगन्धित फूल मिले, जिसको बनारस और मगहर के राजाओं ने आधा आधा बांट लिया जो वहा कबीर साहेब के शरीर के लिए युद्ध करने को उत्सुक थे। दोनों धर्मों के लोग आपस में गले लग कर खूब रोए। परमात्मा कबीर जी ने इस लीला से दोनों धर्मों का वैरभाव समाप्त किया। मगहर (Maghar) में आज भी हिंदू मुस्लिम धर्म के लोग प्रेम से रहते हैं।

इस पर परमात्मा कबीर जी ने अपनी वाणी में भी लिखा है:-

सत् कबीर नहीं नर देही, जारै जरत ना गाड़े गड़ही।

पठयो दूत पुनि जहाँ पठाना, सुनिके खान अचंभौ माना।

दोई दल आई सलाहा अजबही, बने गुरु नहीं भेंटे तबही।

दोनों देख तबै पछतावा, ऐसे गुरु चिन्ह नहीं पावा।

दोऊ दीन कीन्ह बड़ शोगा, चकित भए सबै पुनि लोंगा।

क्या परमेश्वर कबीर अभी भी धरती पर है?

परमेश्वर कबीर जी आज भी इस धरती पर मौजूद हैं संत रामपाल जी महाराज जी के रूप में। यदि आपको इस बात को गहराई से समझना है तो कृपया करके संत रामपाल जी महाराज जी द्वारा लिखित पुस्तक ‘ज्ञान गंगाको एक बार अवश्य पढ़ें और संत रामपाल जी महाराज जी के सत्संग सतलोक आश्रम यूट्यूब चैनल पर देखें। 

कबीर परमात्मा जब 600 वर्ष पहले आए थे तब लोग अशिक्षित थे और नकली धर्म गुरूओं ने गलत ज्ञान देकर समाज को ‘एक परमात्मा’ और ‘सबका मालिक एक’ के सिद्धांत से भटका दिया था और हम आज भी भटके रहते यदि संत रामपाल जी हमें हमारे वेद और गीता न पढ़ाते। परंतु संत रामपाल जी महाराज बताते हैं, आज के समय में शिक्षा का सबसे महत्वपूर्ण लाभ यह है कि अब हम अपना भगवान पहचान सकते हैं। अब हम खुद धार्मिक किताबें पढ़कर यह देख सकते हैं कि हमारे पवित्र सदग्रंथों में क्या लिखा है। तो अब अपने परमात्मा को पहचानने में बिल्कुल भी देर न करें।

Latest articles

World Cancer Day 2025: सतभक्ति रूपी अचूक दवा है, कैंसर जैसी लाईलाज बीमारी का इलाज

Last Updated on 3 February 2025 IST: विश्व कैंसर दिवस (World Cancer Day in...

Top 20 Spiritual & Religious Leaders of India and World

Last Updated on 30 April 2024 IST: Top 20 Spiritual & Religious Leaders of...

Shab-e-Barat 2025: Only True Way of Worship Can Bestow Fortune and Forgiveness

Last Updated on 3 February 2025 IST | Shab-e-Barat 2025: A large section of...

Maghar Story: Kabir Saheb’s Maghar Leela of Departing to Satlok

Last Updated on 3 Feb 2025 IST | Maghar Story: The Supreme God appears...
spot_img

More like this

World Cancer Day 2025: सतभक्ति रूपी अचूक दवा है, कैंसर जैसी लाईलाज बीमारी का इलाज

Last Updated on 3 February 2025 IST: विश्व कैंसर दिवस (World Cancer Day in...

Top 20 Spiritual & Religious Leaders of India and World

Last Updated on 30 April 2024 IST: Top 20 Spiritual & Religious Leaders of...

Shab-e-Barat 2025: Only True Way of Worship Can Bestow Fortune and Forgiveness

Last Updated on 3 February 2025 IST | Shab-e-Barat 2025: A large section of...