कहते हैं जब धरती पर पाप बढ़ जाता है तो परमात्मा धरती पर आते हैं, क्योंकि जिसका काम उसी को साजे। सिर्फ पूर्ण परमात्मा ही विश्व में शांति प्रदान कर सकता है। वो परमात्मा सर्व ब्रह्माण्डो का रचयिता है और सर्व पाप हरने वाला है, वह कोई और नहीं बल्कि कबीर साहेब हैं जो चारों युगो में आते हैं। वैसे तो कहा जाता है परमात्मा सर्व व्यापक है, उसे हर जगह महसूस किया जा सकता है, लेकिन जब उनके चाहने वाले उन्हें पुकारते हैं तो वह रूप धारण करके पृथ्वी लोक में आता है। तो चलिए जानते हैं कबीर भगवान कौन हैं?
कबीर साहेब का जन्म कब हुआ था?
वास्तव में कबीर साहेब का जन्म नहीं हुआ था। कबीर साहेब(कविर्देव) वि.सं. 1455(सन् 1398) ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को लहर तारा तालाब काशी(बनारस) में एक कमल के फूल पर ब्रह्ममहूर्त में एक नवजात शिशु के रूप में प्रकट हुए। जिनको नीरू-नीमा नामक जुलाहा दम्पति उठाकर अपने घर ले गए।
जिंदगी की मुश्किल सीख आसान शब्दों में
वैसे तो हमें कबीर साहेब के दोहे कहीं न कहीं लिखे मिल ही जाते हैं जैसे कि स्कूल, कॉलेज आदि की दीवारों पर। इसकी एक वजह यह भी है कि कबीर साहेब के दोहों में ज़िंदगी के हर पहलू को बहुत खुबसूरती से पेश किया गया है। उनमे से कुछ दोहे:-
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।।
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।।
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।।
अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप,
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।।
क्या कबीर साहेब भगवान हैं ?
वैसे तो भारत में बहुत ऋषियों, मुनियों, साधु ,संतों आदि का जन्म हुआ लेकिन कबीर साहेब ने जो लीलाएं की वह तो सिर्फ भगवान ही कर सकता है, जी हाँ वही कबीर साहेब जो काशी में धानक रूप में काम करते थे। कबीर साहेब के दोहे तो आपने पढ़े ही होंगे, लेकिन आज हम आपको कबीर साहेब जी के जीवन और लीलाएं के बारे में बतायेंगे। गरीबदास जी की बाणी भी है:-
सतयुग में सतसुकृत कह टेरा, त्रेता नाम मुनिन्द्र मेरा।
द्वापर में करूणामय कहलाया, कलियुग में नाम कबीर धराया।।
सतयुग में कबीर साहेब का प्राकट्य
जैसे कि सबको पता है परमात्मा तो हर जगह मौजूद है अपनी मौजूदगी का एहसास करवाने के लिए ही परमेश्वर धरती पर प्रकट होते हैं। सतयुग में वह सत सुकृत नाम से अवतरित हुए। जैसे कि शास्त्रों में प्रमाण है कि पूर्ण परमात्मा कमल के फूल पर प्रकट होते हैं वैसे ही कबीर साहेब सतयुग में सत सुकृत नाम से कमल के फूल पर प्रकट हुए थे। फिर वहाँ से विद्याधर नाम के ब्राह्मण और उनकी पत्नी दीपिका उन्हे उठा लाई, फिर उनकी पालन की लीला कुवारी गाय के दूध से हुई। परमात्मा ने छोटी उम्र से ही ज्ञान प्रचार करना शुरू कर दिया था, उन्होंने ज्ञान चर्चा में सभी को हरा दिया था। उन्ही में से एक है मनु ऋषि, जिनको सत सुकृत नाम से लीला कर रहे कबीर परमेश्वर ने ज्ञान चर्चा में हराया था।
मनु ऋषि को ज्ञान चर्चा में हराना
जब कबीर साहेब सत सुकृत नाम से लीला कर रहे थे तो उनकी ज्ञान चर्चा मनु ऋषि से हुई उन्होंने मनु ऋषि से पूछा आप परमात्मा को साकार मानते हो या निराकार? इस पर मनु ऋषि ने कहा वैसे तो परमात्मा निराकार है लेकिन जो यह सूरज, चाँद, तारे आदि हैं परमात्मा के साकार होने का प्रमाण है। इस पर परमात्मा ने कहा कि हमारे सदग्रंथों में परमात्मा के साकार होने का प्रमाण है। इसी तरह ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 1 में बताया गया है कि परमात्मा शिशु रूप धारण करके भी लीला करता है, इसका मतलब वह आकार में है और यह लीला प्रत्येक युग में करते हैं। मनु ने ज्ञान चर्चा में विफलता के बाद परमेश्वर का नाम वामदेव रख दिया अर्थात उल्टा ज्ञान बताने वाला।
त्रेता युग में कबीर साहेब का प्राकट्य
त्रेता युग में परमात्मा मुनिन्द्र नाम से प्रसिद्ध होते हैं, उनकी लीलाएं देखकर सभी बहुत खुश होते हैं। सतयुग में जो विद्याधर नाम का ब्राह्मण और उनकी पत्नी दीपिका थी वही आत्मा त्रेता युग में वेदविज्ञ नाम का ब्राह्मण हुए और उनकी पत्नी ने सूर्या नाम से जन्म लिया और त्रेता युग में भी परमेश्वर उनको कमल के फूल पर मिले। इस युग में भी परमेश्वर की परवरिश की लीला कुवारी गाय के दूध से हुई।
त्रेता युग में कबीर साहेब की लीला
त्रेता युग में मुनींद्र नाम से आए हुए परमात्मा ने वैसे तो बहुत चमत्कार दिखाये जिनको देखकर लोगों की आँखे फटी की फटी रह गई थी, लेकिन क्या आपको पता है जब श्री राम चंद्र जी ने लंका पर आक्रमण किया था तब समुंदर पर पुल भी मुनींद्र नाम से लीला कर रहे परमेश्वर ने ही बनवाया था तो चलिए जानते है विस्तार से राम सेतु बनने की लीला-
समुंदर पर पुल बनवाना
कहा जाता है कि श्री राम चंद्र जी को जब पता चला कि सीता जी को लंकापति रावण ने कैद कर रखा है तो उन्होंने पहले तो उससे सीता जी को आजाद करने को बोला जब नहीं माना तो उन्होंने युद्ध करने की ठानी लेकिन बीच में समुद्र होने के कारण समस्या आ रही थी। कहते हैं श्री राम चंद्र जी तीन दिन तक घुटनों पानी में खड़े रहे लेकिन समुद्र ने रास्ता नहीं दिया, फ़िर नल नील नामक दो ऐसे भक्त थे जिनको मुनींद्र जी ने वर दे रखा था कि उनके हाथों से कोई चीज़ नहीं डूबेगी।
लेकिन नल और नील ने पुल के लिए पत्थर डालते वक्त अपने गुरु को याद नहीं किया और उनके मन में दोष आ गया कि आज हमारा नाम सबके सामने हो जाएगा जिस कारण पत्थर नही तैरे। उसके बाद परमात्मा मुनींद्र ऋषि के रूप में आये और श्री राम चंद्र जी की प्रार्थना करने पर उन्होंने पत्थर हल्के कर दिये, इसके बारे में वाणी भी है कि
रहे नल नील जतन कर हार, तब सतगुरू से करी पुकार।
जा सत रेखा लिखी अपार, सिन्धु पर शिला तिराने वाले।
धन-धन सतगुरु सत कबीर, भक्त की पीर मिटाने वाले।
इसके बाद कबीर साहेब हनुमान जी को मुनींद्र नाम से मिले और उन्हें तत्व ज्ञान दिया। उन्होंने तीनों देवों की स्थिति हनुमान जी को बताई। कबीर जी की वाणी भी है कि:-
कबीर- तीन देव को सब कोई ध्यावै, चौथे देव का मरम न पावै।
चौथा छाड़ पंचम को ध्यावै, कहै कबीर सो हम पर आवै।।
द्वापरयुग में कबीर साहेब का प्राकट्य
द्वापर युग में कबीर परमेश्वर करूणामय नाम से आये थे, जैसे कि ऊपर बताया ही जा चुका है वो अपनी लीला कमल के फूल पर प्रकट होकर करते हैं और वहाँ से उनको निसंतान दम्पति उठा ले जाते हैं। क्योंकि इस युग में जो उनको उठाकर लेकर गए वो बालमिक थे तो परमात्मा भी बालमिक कहलाए। इस युग में भी परमात्मा के ज्ञान से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके लोग। उन्हीं में से एक थे सुपच सुदर्शन, जिनका रूप धारण करके परमात्मा ने पांडवों का यज्ञ संपूर्ण किया था। यहां मन में सवाल उठता है कि पांडवो का यज्ञ एक साधारण सा व्यक्ति कैसे पूर्ण कर सकता है तो चलिए जानते हैं।
कबीर सागर में सुपच सुदर्शन के द्वारा पांडवों का यज्ञ संपूर्ण करने का प्रमाण:-
जैसे कि सबको पता है कि महाभारत के यज्ञ में कितना खून खराबा हुआ था, उसके पाप के कारण युधिष्ठिर को प्रेत बाधा हो गई। श्री कृष्ण जी ने उनको अश्वमेघ यज्ञ करने को कहा और कहा उसमे पंच मुख का शंख रखना अगर वो शंख बज गया तो समझना यज्ञ सम्पूर्ण हो गया। उस यज्ञ में तैतीस करोड़ देवी देवताओं ने भी भोजन किया लेकिन शंख नहीं बजा अंत में जब सुपच सुदर्शन ने खाना खाया तब शंख बजा और उस शंख की आवाज़ पूरे ब्रह्मांड में सुनाई दी।
इसी के लिए वाणी भी है:-
प्रेम पंचायन भूख है, अन्न जग का खाजा। ऊँच नीच द्रोपदी कहा, शंख कण कण यूँ नहीं बाजा।।
बाल्मिक के चरणों की, लई द्रोपदी धारा। शंख पंचायन बाजीया, कण-कण झनकारा।।
इसी के बारे में अन्य सदग्रंथ में भी प्रमाण है:-
तेतीस कोटि यज्ञ में आए, सहंस अठासी सारे |
द्वादश कोटि वेद के वक्ता, सुपच का शंख बज्या रे।।
कबीर साहेब का कलयुग में प्रकट होना
जैसे कि ऊपर बताया गया है कि कलयुग में कबीर साहेब अपने असली नाम कबीर से ही प्रकट होते हैं और बचपन से ही वो नकली ऋषियों मुनियों के छक्के छुड़ा देते हैं। सभी उन्हे कबीर दास, एक कवि के नाम से जानते हैं। कबीर साहेब ने जुलाहा जाति में लीला की इसीलिए वो कबीर जुलाहा भी कहलाए।
लहरतारा तालाब पर प्रकट होना
सबसे पहले तो उनका लहरतारा तालाब में कमल के फूल पर प्रकट होना ही अपने आप में एक हैरानी की बात है। क्योंकि हम सभी जानते हैं कमल इतना मजबूत नही होता कि उस पर बालक लेट सके। लेकिन हाँ यह भी सच है कि कबीर साहेब कमल के फूल पर प्रकट हुए थे। जब कबीर साहेब कमल के फूल पर प्रकट हुए तो उनको नीरू और नीमा नाम के निसंतान दम्पति उठाकर ले गए थे। कुवारी गाय के दूध से उनका पालन- पोषण हुआ।
दिल्ली के राजा सिकन्दर लोदी के जलन का रोग ठीक करना
एक बार दिल्ली के राजा सिकन्दर लोदी को जलन का रोग हो गया, सभी काजी मुल्लाओ ने कोशिश की लेकिन नहीँ ठीक हुआ। फिर सिकन्दर लोदी को किसी ने बताया कि काशी में एक संत है जो हर तरह के दुख दूर कर सकते हैं। उसके बाद सिकन्दर लोदी काशी के नरेश वीर सिंह बघेल को साथ लेकर कबीर जी से मिलने पहुँच गए। कबीर साहेब को देखते ही वीर सिंह वघेल उनको दंडवत प्रणाम करने लगा तो उसको देखकर सिकंदर लोदी ने भी मुकुट समेत प्रणाम किया, जब कबीर साहेब ने दोनों के सिर पर आशीर्वाद के लिए हाथ रखा तो सिकन्दर लोदी का जलन रोग खत्म हो गया।
रामानंद को जीवित करना
अपने अपमान के कारण रामानंद जी का सिर सिकंदर लोदी ने काट दिया था जब कबीर साहेब कुटिया के अंदर गए, रामानंद जी का शव देखा तो सिर्फ इतना ही कहा था गुरुदेव उठिए आरती का टाइम हो गया। कबीर साहेब के इतना कहते ही रामानंद जी का धड़ सर से जुड़ गया और रामानंद जी जीवित हो गए। इस चमत्कार को देखकर सभी हैरान हो गए, सिकंदर लोदी ने कबीर साहेब से नाम-दीक्षा ले ली।

कमाल को जीवित करना
जब सिकंदर लोदी दिल्ली पहुंचा तो उसने काशी में हुए चमत्कार के बारे में अपने धर्म गुरु शेखतकी को बताया तो वह ईर्ष्या की आग में जल उठा। उसने यह शर्त रख दी कि यदि वह सच में अल्लाह का रसूल है तो किसी मुर्दे को जिंदा करके दिखाये। जब यह बात कबीर साहेब को पता चली तो उन्होंने कहा कि उन्हें मंजूर है। सभी नदी किनारे पहुँच गए, अभी थोड़ा ही समय हुआ था कि सबने देखा किसी लड़के का मृतक शव पानी में बहता हुआ आ रहा था। कबीर साहेब ने पहले शेखतकी को बोला कि आप कोशिश करो, ताकि बाद में आप यह ना कह दो कि यह तो मै भी कर देता। लेकिन उससे वह जीवित नहीं हुआ, फिर कबीर साहेब ने वहाँ किनारे पर खड़े होकर सिर्फ अपने वचन से ही उस लड़के को जीवित कर दिया। सबने कहा जी कमाल कर दिया तो लड़के का नाम भी कमाल रख दिया गया।

कमाली को जीवित करना
कमाल को जीवित करने से भी शेखतकी को संतुष्टि नहीं हुई, उसने दूसरी शर्त रख दी कि अगर कबीर सच में अल्लाह की जात है तो मेरी कब्र में दफन बेटी को जिंदा करके दिखाये। कबीर साहेब ने निर्धारित समय पर लड़की को अपनी वचन शक्ति से जिंदा कर दिया। सबने कबीर परमात्मा की जय जय कार की और उस लडकी का नाम कमाली रख दिया गया।
उबलते कड़ाहे में संत कबीर साहेब को डालना
कबीर जी की लोकप्रियता को देखकर शेखतकी ईर्ष्या की आग में जलने लगा। उसने फिर कहा कि कबीर साहेब को उबलते तेल के कढ़ाए में डाल दो, अगर बच गए तो मैं मान लूंगा कि यह अल्लाह है। कबीर साहेब सबके सामने उसमे बैठ गए यह देखकर शेख तकी ने कहा कि कबीर ने इसको अपनी शक्ति से ठंडा कर दिया है। इसकी जांच करने के लिए सिकंदर ने तेल के कढ़ाहे में उंगली दी। इसके बाद राजा बेहोश हो गया, बाद में कबीर जी ने उस उंगली को ठीक किया। सभी श्रोता बैठे यह सब देख रहे थे, सभी ने कबीर साहेब की जय जय कार की। उस वक़्त बहुत से लोगों ने कबीर भगवान से दीक्षा ग्रहण की।
परमेश्वर कबीर जी द्वारा काशी शहर में भोजन-भण्डारा
शेखतकी तो कबीर साहेब से पहले ही खार खाता था, ऊपर से मुल्लाओ और काजियों ने शेखतकी के साथ मिलकर यह साजिश रच दी कि हम झूठी चिट्ठी कबीर जी के नाम से डालेंगे कि कबीर जी काशी में बहुत बड़ा भंडारा करेंगे। यह उन सब ने इसी लिए किया क्योंकि उन्हे पता था कि कबीर जी गरीब हैं वह भंडारा नही कर सकते और उनकी बदनामी होगी। वहाँ पर लगभग 18 लाख लोग इकट्ठा हो गए, संत रविदास जी ने जब कबीर जी को सब जाकर बताया तो कबीर जी ने कहा परमात्मा खुद ही अपने भगतों की लाज रखेगा और वहा सभी को प्रत्येक भोजन के पश्चात् एक दोहर तथा एक मोहर (10 ग्राम) सोने की (ळवसक) दक्षिणा में दी जा रही थी। कई बेईमान संत तो दिन में चार-चार बार भोजन करके चारों बार दोहर तथा मोहर ले रहे थे। कुछ सूखा सीधा (चावल, खाण्ड, घी, दाल, आटा) भी ले रहे थे।

जब कबीर जी बाहर भंडारे में पहुंचे तो सभी देखते रह गए कि यह वह कबीर सेठ है जिसने इतना बड़ा भंडारा किया है। सिकंदर लोदी ने सबसे कबीर सेठ का परिचय कराया तथा केशव रूप में स्वयं डबल रोल करके उपस्थित संतों-भक्तों को प्रश्न-उत्तर करके सत्संग सुनाया जो 24 घण्टे तक चला। कई लाख सन्तों ने अपनी गलत भक्ति त्यागकर कबीर जी से दीक्षा ली, अपना कल्याण कराया। जब शेखतकी ने यह सुना तो वह ईर्ष्या की आग में जल उठा और कहने लगा ऐसे- ऐसे तो हम सौ भंडारे कर दें, इसने क्या भण्डारा किया है? महौछा किय है। संत गरीबदास जी ने कहा है कि :-
गरीब, कोई कह जग जौनार करी है, कोई कहे महौछा।
बड़े बड़ाई किया करें, गाली काढे़ औछा।।
कबीर साहेब ही पूर्ण परमात्मा है
कबीर साहेब पूर्ण परमात्मा हैं, इसका प्रमाण हमारे सभी सदग्रंथो में है और साथ ही ऊपर लिखे बहुत सारे चमत्कार भी यहीं साबित करते हैं। ऐसे ही और अनेक चमत्कारों को पढ़ने के लिए आप ज्ञान गंगा पुस्तक पढ़ें।
True spiritual knowledge