Last Updated on 19 September 2024 IST | Jitiya Jivitputrika Vrat: हिंदू धर्म में जीवित्पुत्रिका व्रत का विशेष महत्व है। इस व्रत को जितिया या जिउतिया व्रत के नाम से भी जानते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार, आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि से नवमी तिथि तक जीवित्पुत्रिका व्रत मनाया जाता है। अष्टमी तिथि के दिन सुहागिनें अपनी संतान की लंबी आयु व सुख-समृद्धि की कामना के लिए व्रत करती हैं। लोक वेद अर्थात लोक मान्यताओं या सुनी सुनाई बातों के अनुसार, इस व्रत को संतान प्राप्ति, उनकी लंबी आयु और सुखी निरोग जीवन की कामना के साथ किया जाता है। कहते हैं इस व्रत को करने से संतान के ऊपर आने वाले कष्ट दूर होते हैं। पर ऐसा मानना मनमाना आचरण है क्योंकि हमारे शास्त्र किसी भी तरह के व्रत करने की गवाही नही देते।
जितिया व्रत (Jitiya Jivitputrika Vrat 2024) पूजा कब है?
लोकवेद आधारित सोच से प्रेरित, संतान के उज्ज्वल भविष्य और लंबी आयु के लिए हर साल अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत रखा जाता है। इस साल जीवित्पुत्रिका व्रत 25 सितंबर, 2024 को है। जीवित्पुत्रिका व्रत का नहाय-खाय 24 सितंबर को होगा, जबकि 25 सितंबर को माताएं निर्जला व्रत रखेंगी। इसके बाद 26 सितंबर को व्रत का पारण किया जाएगा। जीवित्पुत्रिका व्रत को जितिया (Jitiya Vrat 2024), जिउतिया व्रत भी कहते हैं।
जीवित्पुत्रिका व्रत का महत्व क्या है?
Jitiya Jivitputrika Vrat 2024 [Hindi] | जीवित्पुत्रिका व्रत का संबंध महाभारत काल यानि द्वापरयुग से है। मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से संतान को लंबी उम्र का वरदान प्राप्त होता है। कहते हैं कि जो महिलाएं इस दिन निर्जला व्रत करती हैं और कथा पढ़ती हैं उनकी संतान को परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ता। संतान की रक्षा और उसकी उन्नति के लिए यह बहुत लाभकारी व्रत माना जाता है। ये व्रत “छठ” की तरह तीन दिन तक किया जाता है। पहले दिन महिलाएं नहाय खाय करती हैं। दूसरे दिन निर्जला व्रत रखा जाता है और तीसरे दिन व्रत का पारण करते हैं। जीवित्पुत्रिका व्रत का शास्त्रों में कोई वर्णन नहीं है और न ही इसे करने से किसी के पुत्र की आयु बढ़ती है। यह पूर्ण रूप से शास्त्र विरुद्ध मनमाना व्रत है।
Jitiya Jivitputrika Vrat 2024 | जीवित्पुत्रिका व्रत से जुड़ी पौराणिक कथा क्या है?
पौराणिक कथा के अनुसार, महाभारत के युद्ध में जब द्रोणाचार्य का वध कर दिया गया तो उनके पुत्र अश्वत्थामा ने पांडवों के मूल विनाश के लिए क्रोध में आकर ब्रह्मास्त्र चला दिया, जिसकी वजह से अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहा परीक्षित नाम का शिशु नष्ट हो गया। तब भगवान कृष्ण ने उस शिशु का शरीर बना दिया, लोगों का मानना था कि उस दिन श्री कृष्ण जी ने उस नष्ट हुए बालक को जीवनदान दिया है। इस कारण इस व्रत का नाम जीवित्पुत्रिका रखा गया। तभी से माताएं इस व्रत को पुत्र के लंबी उम्र की कामना से करने लगीं।
तब यहां यह भी प्रश्न उठता है कि जब अर्जुन और सुभद्रा के इकलौते पुत्र अभिमन्यु की महाभारत के युद्ध में चक्रव्यूह में फंसाकर हत्या कर दी गई तब श्री कृष्ण जी उसे जीवित क्यों नहीं कर पाए? वहां अर्जुन और चारों पांडव रो रहे थे। क्या श्री कृष्ण जी ने अभिमन्यु को जीवित करना उचित नहीं समझा। वह तो उनकी स्वयं की बहन का बेटा था। यहां विचार करने योग्य बात यह है कि गर्भ में पल रहे परिक्षित की आयु शेष थी परंतु अभिमन्यु की नहीं। तीन लोक के स्वामी श्री कृष्ण जी किसी की भी आयु न ही बढ़ा सकते हैं और न ही घटा सकते हैं।
जीवित्पुत्रिका व्रत से जुड़ी एक और अन्य कथा जो शिवजी ने पार्वती को बताई
इस व्रत के संबंध में भगवान शंकर ने माता पार्वती को बताया था कि यह व्रत संतान की सुरक्षा के लिए किया जाता है। इस व्रत से जुड़ी एक पौराणिक कथा है, जो जिमूतवाहन से जुड़ी है। सतयुग में गंधर्वों के एक राजकुमार थे, जिनका नाम जिमूतवाहन था। वे सद् आचरण, सत्यवादी, बडे उदार और परोपकारी थे। जिमूतवाहन को राजसिंहासन पर बिठाकर उनके पिता वन में वानप्रस्थी का जीवन बिताने चले गए। जिमूतवाहन का राज-पाट में मन नहीं लगता था। वे राज-पाट की जिम्मेदारी अपने भाइयों को सौंप पिता की सेवा करने के उद्देश्य से वन में चल दिए। वन में ही उनका विवाह मलयवती नाम की कन्या के साथ हो गया।
■ Also Read | Vat Savitri Vrat: वट सावित्री व्रत | किसी व्रत से नहीं बल्कि सत साधना से होगी रक्षा!
एक दिन भ्रमण करते हुए उन्हें नागमाता मिली, जब जीमूतवाहन ने उनके विलाप करने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि नागवंश गरुड़ से काफी परेशान है, वंश की रक्षा करने के लिए वंश ने गरुड़ से समझौता किया है कि वे प्रतिदिन उसे एक नाग खाने के लिए देंगे और इसके बदले वो हमारा सामूहिक शिकार नहीं करेगा। इस प्रक्रिया में आज उसके पुत्र को गरुड़ के सामने जाना है। नागमाता की पूरी बात सुनकर जीमूतवाहन ने उन्हें वचन दिया कि वे उनके पुत्र को कुछ नहीं होने देंगे और उसकी जगह कपड़े में लिपटकर खुद गरुड़ के सामने उस शिला पर लेट जाएंगे, जहां से गरुड़ अपना आहार उठाता है और उन्होंने ऐसा ही किया।
Jitiya Jivitputrika Vrat 2024 | गरुड़ जीमूतवाहन को अपने पंजों में दबाकर पहाड़ की तरफ उड़ चला। जब गरुड़ ने देखा कि हमेशा की तरह नाग चिल्लाने और रोने की जगह शांत है, तो उसने कपड़ा हटाकर जीमूतवाहन को पाया। जीमूतवाहन ने सारी कहानी गरुड़ को बता दी, जिसके बाद उसने जीमूतवाहन को छोड़ दिया और नागों को ना खाने का भी वचन दिया।
क्या कोई माता, पुत्र की आयु को बढ़ा कर उसकी जीवन विघ्नहर्ता बन सकती है?
यदि ऐसा होता तो मंदिरों में भगवान की जगह केवल माताओं की मूर्ति स्थापित होती। मां के पेट से लेकर शिशु के बाहर आने तक केवल पूर्ण परमात्मा ही उसकी पल-पल रक्षा करता है। यदि मां और पुत्र तथा सभी नर नारी एकमात्र पूर्ण परमात्मा की भक्ति सच्ची निष्ठा और मर्यादा में रहकर करें तो परमात्मा उनके पग-पग में आने वाले कांटों रूपी कष्टों को हटाकर उनकी रक्षा करते हैं। परमात्मा से लंबी आयु वाला जीवन मांगने के लिए किसी पांखड, अंधविश्वास या गलत साधना को करने से उत्तम है सच्ची और शास्त्र आधारित साधना करना। परमात्मा अपने भक्त की आयु 100 वर्ष तक बढ़ा सकते हैं। पूर्ण परमात्मा आयु बढ़ा सकता है और कोई भी रोग को नष्ट कर सकता है। – ऋग्वेद मण्डल 10 सुक्त 161 मंत्र 2, 5, सुक्त 162 मंत्र 5, सुक्त 163 मंत्र 1 – 3.
क्या किसी भी प्रकार के व्रत रखना श्रीमद भगवत गीता के अनुसार उचित हैं?
महाभारत युद्ध में जब अभिमन्यु की मृत्यु हो गई तो सभी पांडव बहुत दुखी हुए और शोक में चले गए। वहां पर कृष्ण जी अभिमन्यु को जीवनदान नहीं दे सके, क्योंकि अभिमन्यु की आयु शेष नहीं थी, किसी व्यक्ति को काटकर दोबारा से जोड़ देना त्रिलोकीनाथ श्रीकृष्ण जी कर सकते हैं और ऐसा ही ब्रह्मा और शिवजी भी कर सकते हैं किंतु किसी को उम्र प्रदान करना उसे जीवित करना इन तीनों की शक्तियों से बाहर की बात है। यही कारण है कि कृष्ण जी ने अभिमन्यु के पुत्र जो उत्तरा के गर्भ में पल रहा था के शरीर को पुनः बना दिया था किंतु अभिमन्यु को वे जिंदा नहीं कर सके।
जितिया व्रत/ उजितिया व्रत या किसी भी प्रकार के अन्य व्रत रखना सही है या गलत?
Jitiya Jivitputrika Vrat 2024 | श्रीमद्भगवत् गीता अध्याय 6 श्लोक 16 में गीताज्ञान दाता कह रहा है कि हे अर्जुन! यह योग (भक्ति) न तो अधिक खाने वाले की और न ही बिल्कुल न खाने वाले की अर्थात् व्रत रखने वाले, न अधिक सोने वाले की तथा न अधिक जागने वाले की सफल होती है। इस श्लोक में व्रत रखना पूर्ण रुप से मना किया गया है। व्रत आदि रखना शास्त्र विरुद्ध और मनमाना आचरण है। आइए आगे जानते हैं कि शास्त्र विरुद्ध साधना के बारे में श्रीमद्भगवद्गीता जी अध्याय 16:23 में क्या बताया गया है?
श्रीमद्भगवद्गीता में मनमाने आचरण के बारे में बताया गया है
यः शास्त्रविधिमुत्सृज्य वर्तते कामकारतः ।
न स सिद्धिमवाप्नोति न सुखं न परां गतिम्।।
जो शास्त्रों के आदेशों की अवहेलना करता है अर्थात शास्त्र विधि छोड़कर मनमाना आचरण करता है और मनमाने ढंग से कार्य करता है, उसे न तो सिद्धि, न सुख, न ही परम गति की प्राप्ति हो पाती है अर्थात उसकी सभी पूजा व्यर्थ हैं।
क्या है शास्त्र अनुकूल साधना?
श्रीमद् भागवत गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में बताए गए तत्वदर्शी संत से नाम दीक्षा लेकर तथा अध्याय 17 श्लोक 23 में बताए गए गुप्तमंत्र ‘ओम तत् सत्’ इन तीन मंत्रों के विधिवत जाप से तथा अध्याय 15 श्लोक 17 में वर्णित उत्तम पुरुष अर्थात पूर्ण परमेश्वर और अध्याय 15 श्लोक 4 में आदि पुरुष नारायण (जल पर अवतरित होने के कारण कबीर परमेश्वर को आदि पुरुष नारायण भी कहा जाता है) तथा अध्याय 18 श्लोक 62 के अनुसार उस एक पूर्ण परमात्मा की शरण में जाना चाहिए उसी की कृपा से हम सनातन परमधाम (सतलोक) तथा परमात्मा को प्राप्त होंगे। यही शास्त्र अनुकूल साधना है।
क्या अन्य देवी देवताओं की पूजा के बारे में श्रीमद्भगवद्गीता के प्रमाण है?
पवित्र गीता अध्याय 9 के श्लोक 23, 24 में कहा गया है कि जो व्यक्ति अन्य देवताओं को पूजते हैं वे भी मेरी (काल जाल में रहने वाली) पूजा ही कर रहे हैं। परंतु उनकी यह पूजा अविधिपूर्वक है (अर्थात् शास्त्रविरूद्ध है भावार्थ है कि अन्य देवताओं को नहीं पूजना चाहिए) क्योंकि सम्पूर्ण यज्ञों का भोक्ता व स्वामी मैं ही हूँ। वे भक्त मुझे अच्छी तरह नहीं जानते। इसलिए पतन को प्राप्त होते हैं। नरक व चौरासी लाख जूनियों का कष्ट उठाते हैं जैसे गीता अध्याय 3 श्लोक 14-15 में कहा है कि सर्व यज्ञों में प्रतिष्ठित अर्थात् सम्मानित, जिसको यज्ञ समर्पण की जाती है वह परमात्मा (सर्वगतम् ब्रह्म) पूर्ण ब्रह्म है। वही कर्माधार बना कर सर्व प्राणियों को सुख प्रदान करता है। परन्तु पूर्ण सन्त न मिलने तक सर्व यज्ञों का भोग (आनन्द) काल (मन रूप में) ही भोगता है, इसलिए कह रहा है कि मैं सर्व यज्ञों का भोक्ता व स्वामी हूँ।
वह परम संत कौन हैं जो बता रहे हैं शास्त्र अनुकूल साधना?
वर्तमान में इस पृथ्वी पर तत्वदर्शी और एकमात्र पूर्ण संत रामपाल जी महाराज जी हैं जो पवित्र चारों वेद, पवित्र श्रीमद्भगवद्गीता, पवित्र बाइबल, पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब तथा पवित्र कुरान शरीफ से प्रमाणित ज्ञान बताते हैं और शास्त्र अनुकूल साधना दे रहे हैं जिससे उनसे जुड़ रहे भक्तों को विभिन्न आध्यात्मिक और भौतिक लाभ प्राप्त होते हैं, उनकी जीवन रक्षा होती है, भक्ति करने के लिए आयु बढ़ती है। इसी कारण संत रामपाल जी महाराज जी के अनुयायियों के गृह क्लेश समाप्त हो गए, घर की तंगी समाप्त हो गई और घर के सदस्यों ने नशा करना छोड़ दिया, बच्चे, बूढ़े और जवान जो सतभक्ति करते हैं सभी की पल पल रक्षा होती है।
सतभक्ति करने वालों पर आने वाली विघ्न बाधाओं, दुर्घटनाओं, तकलीफों से परमात्मा उनकी रक्षा करते हैं जिसके लिए किसी को भी किसी भी तरह का कोई व्रत रखने की आवश्यकता नहीं होती। पृथ्वी पर संत रामपाल जी महाराज जी एकमात्र ऐसे संत हैं जिन्होंने बेटा-बेटी में भेदभाव करने की भावना को समाप्त किया है। उन्होंने अपने शिष्यों को समझाया है कि बेटा और बेटी दोनों परमात्मा के बच्चे हैं इनमें भेदभाव करके हम परमात्मा के सामने दोषी हो जाएंगे। आप अपने पुत्र की आयु लंबी करने के लिए व्रत कर रहे हो यदि उसकी मृत्यु होनी निश्चित है तो, अवश्य होगी परंतु यदि वही बेटा स्वयं कबीर साहेब जी की भक्ति करेगा तो परमात्मा उसकी रक्षा स्वयं करेंगे।
प्रत्येक माता को, पिता को व्रत रखने की नहीं बल्कि सतभक्ति करने और अपने बच्चों को भी परमात्मा की शरण में रखने की आवश्यकता है। संत रामपाल जी महाराज जी से नाम दीक्षा प्राप्त करने के लिए यह फार्म भरें।
जितिया पूजा (Jitiya Vrat 2024) FAQ
जितिया व्रत पितृ पक्ष के बाद, आमतौर पर अश्वयुज मास की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। यह व्रत प्रमुख रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड में रखा जाता है।
व्रति (व्रत करने वाली महिला) सूरज उगने से पहले स्नान करती है और उपवासी रहती है। पूजा के दौरान जिति माता की पूजा की जाती है, विशेष भोग अर्पित किए जाते हैं और मनमाने मंत्रों का जाप किया जाता है।
जितिया व्रत का मुख्य उद्देश्य बच्चों की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य की कामना करना है। इसे माताओं द्वारा अपने बच्चों के सुख और सुरक्षा के लिए मनाया जाता है।
पारंपरिक रूप से, जितिया व्रत महिलाओं द्वारा किया जाता है। हालांकि, कुछ जगहों पर पुरुष भी इसे श्रद्धा और सम्मान के साथ कर सकते हैं, लेकिन यह मुख्य रूप से माताओं का व्रत होता है। जितिया व्रत शास्त्र विरुद्ध साधना है। इसे रखना निष्फल है, सही आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के सत्संग सतलोक आश्रम यूट्यूब चैनल पर सुनिए।