झालावाड़ जिले के अकलेरा उप कारागृह में जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज का एक दिवसीय सत्संग आयोजित हुआ। इस सत्संग में 100 से अधिक कैदियों ने शांति, भक्ति और सकारात्मक ऊर्जा का अनुभव किया। प्रवचनों ने कैदियों को जीवन की वास्तविकता से अवगत कराया और उन्हें समाज सुधार की दिशा में प्रेरित किया।
सत्संग में दी गई प्रेरणा
संत रामपाल जी महाराज ने अपने प्रवचनों में स्पष्ट किया कि मानव जीवन ईश्वर का अनुपम उपहार है, जो बार-बार नहीं मिलता। उन्होंने कहा कि यह जीवन केवल सांसारिक भोग-विलास और असत्य मार्गों में उलझकर व्यर्थ करने के लिए नहीं है, बल्कि इसका उद्देश्य आत्मा की मुक्ति और परमात्मा की प्राप्ति है। उन्होंने समझाया कि चोरी करना, रिश्वत लेना, दुष्कर्म करना और नशे की लत में पड़ना ऐसे पाप हैं, जो न केवल व्यक्ति को पतन की ओर ले जाते हैं बल्कि परिवार और समाज को भी अंधकार में धकेलते हैं। उन्होंने कैदियों से आह्वान किया कि वे इन बुराइयों से दूर होकर सत्कर्म अपनाएँ और जीवन को एक नई दिशा दें। संत जी ने कबीर साहेब के वचनों का उदाहरण देते हुए कहा –
“कबीर, मानुष जन्म दुर्लभ है, मिले न बारं-बार।
तरवर से पत्ता टूट गिरे, बहुर ना लागे डार।।”
अर्थात यह जीवन एक बार मिला है, इसे सही मार्ग पर उपयोग करना ही सबसे बड़ी बुद्धिमानी है।
कैदियों का अनुभव

करीब दो घंटे तक चले इस सत्संग ने कैदियों के मन-मस्तिष्क पर गहरी छाप छोड़ी। जिन कैदियों ने वर्षों से भीतर ही भीतर अपराधबोध और बेचैनी झेली थी, उन्होंने पहली बार वास्तविक शांति का अनुभव किया। कई कैदियों ने खुले दिल से स्वीकार किया कि यह उनके जीवन का अब तक का सबसे बड़ा आध्यात्मिक अनुभव रहा।
अमूल्य पुस्तकों ज्ञान गंगा और जीने की राह से भक्ति मार्ग की गहराई से पहचान कराई
सत्संग समाप्त होने के बाद सभी कैदी संत रामपाल जी महाराज की अमूल्य पुस्तकें ज्ञान गंगा और जीने की राह लेकर गए। इन पुस्तकों ने उन्हें भक्ति मार्ग की गहराई से पहचान कराई और उन्हें जीवन को सुधारने का नया संकल्प दिया। उस समय जेल परिसर का वातावरण भक्ति, शांति और सकारात्मक ऊर्जा से भर उठा था, मानो दीवारों के भीतर भी एक नई स्वतंत्रता का अनुभव हो रहा हो।
कैदियों का आत्ममंथन
सत्संग के दौरान कई कैदियों के मन में गहरा आत्ममंथन हुआ। उन्होंने माना कि वे अब तक गलत राह पर चलकर अपना और अपने परिवार का जीवन बर्बाद करते आए थे। अपराध और बुराइयों ने उन्हें समाज से अलग कर दिया था, लेकिन अब उन्हें सच्चाई का एहसास हुआ। संत रामपाल जी महाराज के तत्वज्ञान ने उनके भीतर सोई हुई मानवता को जगाया और उन्हें यह समझाया कि जीवन का वास्तविक उद्देश्य दूसरों की सेवा, सत्कर्म और सत्भक्ति है।
कैदियों ने इस बात का संकल्प लिया कि जेल से बाहर निकलने के बाद वे अपराध से पूरी तरह दूर रहेंगे और समाज में आदर्श नागरिक के रूप में जीवन बिताएँगे। उनके अनुसार, यह सत्संग उनके लिए केवल प्रवचन नहीं था, बल्कि आत्मा को झकझोर देने वाला अनुभव था जिसने उन्हें भीतर से बदल दिया।
सत्संग का व्यापक प्रभाव
यह आयोजन केवल कैदियों के लिए नहीं, बल्कि पूरे जेल वातावरण के लिए प्रेरणा बन गया। अधिकारियों ने भी महसूस किया कि ऐसे आध्यात्मिक कार्यक्रम कैदियों के मनोबल को बढ़ाते हैं और उनमें आत्मविश्वास तथा अनुशासन पैदा करते हैं। यह सत्संग कैदियों में सुधार और पुनर्वास की दिशा में एक बड़ा कदम साबित हुआ। जेल प्रशासन का मानना था कि यदि इस प्रकार के सत्संग देशभर की जेलों में नियमित रूप से आयोजित किए जाएँ, तो अपराध की पुनरावृत्ति में उल्लेखनीय कमी लाई जा सकती है। इससे न केवल अपराधियों का जीवन सुधरेगा, बल्कि समाज में भी स्थायी शांति और सुरक्षा का वातावरण स्थापित होगा।
जेल प्रशासन और अनुयायियों की भूमिका
अकलेरा उप कारागृह के सब-जेलर फारूक अली ने इस सत्संग की सराहना करते हुए कहा कि इतने कैदियों का अनुशासित और शांतिपूर्वक सत्संग सुनना अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है। उन्होंने माना कि ऐसे आयोजनों से जेल का वातावरण सकारात्मक और शांतिपूर्ण बनता है। संत जी के अनुयायी, जिनमें एडवोकेट कंवरलाल मीणा और सेवादार रामप्रसाद दास, दुर्गाशंकर दास, चिराक दास आदि शामिल थे, ने इसे अपने जीवन का अविस्मरणीय अनुभव बताया। उनके अनुसार, इस सत्संग ने यह साबित कर दिया कि सही ज्ञान और सच्ची भक्ति से मनुष्य किसी भी परिस्थिति में परिवर्तन ला सकता है।
समाज सुधार का संदेश
संत रामपाल जी महाराज ने अपने प्रवचनों में केवल कैदियों को ही नहीं, बल्कि पूरे समाज को एक संदेश दिया। उन्होंने कहा कि नशा, दहेज, भ्रष्टाचार और अंधविश्वास जैसी कुरीतियाँ समाज को खोखला कर रही हैं। जब तक व्यक्ति स्वयं को इन बुराइयों से मुक्त नहीं करेगा, तब तक समाज में वास्तविक सुधार संभव नहीं है। उन्होंने यह भी बताया कि समाज को बदलने की शुरुआत स्वयं से करनी होगी। उनके शब्द युवाओं, महिलाओं और आम नागरिकों के लिए एक नई दिशा और नई प्रेरणा लेकर आए।
क्यों सतज्ञान है आवश्यक
संत रामपाल जी महाराज का सत्संग यह संदेश लेकर आया कि सतज्ञान आज के समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है। सतज्ञान व्यक्ति को अंधविश्वास, ढोंग और कुरीतियों से मुक्त करता है और उसे सच्चे मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है।
सतज्ञान से मनुष्य का जीवन अनुशासित, नशा-मुक्त और सेवा-प्रधान बनता है। यह न केवल व्यक्ति के जीवन को सुधारता है, बल्कि पूरे समाज में भाईचारा, समानता और शांति का वातावरण स्थापित करता है। यही कारण है कि सतज्ञान को अपनाना हर व्यक्ति के लिए अनिवार्य है।
FAQs: झालावाड़ अकलेरा उप कारागृह में संत रामपाल जी महाराज का एक दिवसीय सत्संग
Q1. यह सत्संग कहाँ हुआ?
उत्तर: राजस्थान के झालावाड़ जिले के अकलेरा उप कारागृह में।
Q2. सत्संग में कितने कैदी शामिल हुए?
उत्तर: लगभग 105 कैदियों ने शांतिपूर्वक सत्संग सुना।
Q3. संत रामपाल जी महाराज ने क्या मुख्य संदेश दिया?
उत्तर: चोरी, रिश्वत, नशा और अन्य बुराइयों से दूर रहकर सत्भक्ति अपनाने और जीवन को सफल बनाने का आह्वान किया।
Q4. सत्संग के बाद कैदियों ने क्या किया?
उत्तर: कैदियों ने ज्ञान गंगा और जीने की राह पुस्तक प्राप्त की और सत्भक्ति का मार्ग अपनाने का संकल्प लिया।
Q5. सतज्ञान क्यों आवश्यक है?
उत्तर: सतज्ञान आत्मा को झकझोरकर मनुष्य को सच्चे मार्ग की ओर प्रेरित करता है और समाज सुधार की नींव रखता है।