हरियाली अमावस्या (Hariyali Amavasya) 8 अगस्त यानी सावन की अमावस्या को मनाई गई। इस लेख से जानेंगे त्योहार की सच्चाई, क्रियाकर्म एवं शास्त्र अनुकूल विधि।
Hariyali Amavasya 2021: मुख्य बिंदु
- हरियाली अमावस्या के विषय में शास्त्रों में आदेश।
- हरियाली अमावस्या पर जानें पितरों के तर्पण की सच्चाई
- श्रीमद्भगवतगीता है भक्ति मार्ग में पथप्रदर्शक
क्या है हरियाली अमावस्या (Hariyali Amavasya)?
हिन्दू पंचांग के अनुसार सावन के महीने में अनेकों त्यौहार मनाए जाते हैं। उन्हीं में से एक है हरियाली अमावस्या (Hariyali Amavasya)। सावन के मास की अमावस्या को हरियाली अमावस्या के रूप में मनाया जाता है। इस दिन मानसिक शांति के लिए पूजा पाठ, पितरों के लिये व्रत स्नान एवं दान लोकवेदानुसार की जाती है। ध्यान देने योग्य बात है कि इसका हमारे पवित्र वेदों एवं गीता में कहीं भी ज़िक्र नहीं है। श्रीमद्भगवतगीता वेदों का सार कही जाती है और इसमें कहीं भी ऐसा कोई उद्धरण नहीं है जिससे व्रत, स्नानादि कर्मकांडों की पुष्टि होती हो।
Hariyali Amavasya 2021: पितरों के पूजन से निष्कर्ष
विचार करें पितरों के तर्पण के लिए मृत्योपरांत कर्मकांड किये जाते हैं, तेरहवीं आदि मृत्यु भोज से लेकर, पिंडदान, श्राद्ध आदि के बाद भी पितर तृप्त नहीं हो पाते? मृत्योपरांत प्रत्येक जीव अपने कर्मानुसार स्वर्ग, नरक, अन्य योनियां प्राप्त कर लेता है। सर्प द्वारा केंचुली छोड़ी जाने के बाद केंचुली का आप कितना भी क्रियाकर्म करें उससे कोई फर्क नहीं पड़ता है ठीक उसी प्रकार यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उस शव के साथ या उस व्यक्ति के नाम से कितने भी क्रियाकर्म करें विफल है।
साथ ही पितरों की पूजा करके हम अपने मोक्ष के द्वारा स्वयं बंद करते हैं। श्रीमद्भगवतगीता अध्याय 9 श्लोक 25 के अनुसार भूतों को पूजने वाला भूतों को प्राप्त होता है पितरों को पूजने वाला पितरों को प्राप्त होता है और देवताओ को पूजने वाला देवताओं को प्राप्त होता है। पितरों की पूजा करने वाले एवं कर्मकांड करने वाले भी पितर योनि में ही जाएंगे। कबीर साहेब ने धर्मदास जी को उपदेश देते हुए कहा है-
तुम पिण्ड भरो और श्राद्ध कराओ। गीता पाठ सदा चित लाओ ।।
भूत पूजो बनोगे भूता। पितर पूजै पितर हुता।
देव पूज देव लोक जाओ। मम पूजा से मोकूं पाओ ।।
यह गीता में काल बतावै। जाकूं तुम आपन इष्ट बतावै।।
इष्ट कह करै नहीं जैसे। सेठ जी मुक्ति पाओ कैसे ।।
Hariyali Amavasya 2021: पितरों के तर्पण की सर्वोत्तम विधि
पितरों के तर्पण की सबसे अच्छी विधि है सतभक्ति। सतभक्ति से न केवल हमारा कल्याण होता है बल्कि हमारे पूर्वजों एवं अग्रजों का भी कल्याण होता है। भक्ति धन यों ही अनमोल और दुर्लभ नहीं कहा जाता है यह तो स्वर्ण से भी बहुमूल्य है। सतभक्ति क्या है? पूर्ण परमेश्वर कविर्देव की अव्याभिचारिणी भक्ति यानी केवल ईष्ट रूप में केवल पूर्ण परमेश्वर का पूजन एवं अन्य किसी में आस्था न होना ही अव्याभिचारिणी भक्ति है। श्रीमद्भगवतगीता में एवं वेदों में इस ज्ञान को तत्वज्ञान कहा है जिसका उपदेश केवल तत्वदर्शी सन्त ही दे सकते हैं। इसके लिए गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में पूर्ण तत्वदर्शी सन्त की शरण में जाने एवं उनसे आधीन होकर पूछने पर तत्वज्ञान का उपदेश सम्भव बताया है। स्वयं कविर्देव ने कहा है-
कबीर, भक्ति बीज जो होय हंसा |
तारूं तास के एक्कोतर बंशा ||
अर्थात परमात्मा सतभक्ति करने वाले साधक की एक सौ एक पीढ़ियों का उद्धार करते हैं। परमात्मा कबीर साहेब के लिए कुछ भी असंभव नहीं है। परमेश्वर सर्वसक्षम है। जो भाग्य में नहीं है वह भी परमात्मा दे सकते हैं ऐसा वेदों में लिखा है। यदि वास्तव में हम अपने पूर्वजों का तर्पण करवाना चाहते हैं तो हमें पूर्ण परमेश्वर की शरण में आना होगा जिससे हमे इस लोक के सुख एवं मृत्यु के बाद मोक्ष प्राप्त होगा।
उनकर सुमिरण जो तुम करिहौ | एकोतर सौ वंशा ले तरिहौ ||
वो प्रभु अविगत अविनाशी | दास कहाय प्रगट भे काशी ||
श्रीमद्भगवतगीता का आदेश हरियाली अमावस्या के विषय में
गीता के 18 अध्यायों में से एक भी अध्याय ऐसा नहीं है जिसमें स्नान, बिना गुरु के दान, पितर पूजा, तीन देवों (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) की भक्ति, व्रत, जागरण के विषय में अनुमति या आदेश दिए गए हों। यह अपने आप में आश्चर्यजनक विषय है कि आज शिक्षित होने के बाद भी जन समुदाय पुरानी बंधी बंधाई रीति का अनुगमन करता है किन्तु अपने शास्त्र खोलकर पढ़ना उसे पसन्द नही है। जीवन के अनेकों गलत एवं अन्धानुकरणीय पक्षों का विरोध नई पीढ़ी ने सीखा है किंतु शास्त्र अब भी उसके लिए गैर जरूरी विषय हैं।
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जिस प्रकार कोई सामग्री खरीदने पर हमें उसके साथ उसके उपयोग करने की जानकारी के लिए एक पुस्तिका प्राप्त होती है उसी प्रकार मनुष्य जन्म के उद्देश्य, कर्म, विधि और सतभक्ति के विषय में हमें शास्त्र ही बताते हैं। गीता अध्याय 6 के श्लोक 16 में व्रत एवं जागरण को व्यर्थ बताया है। तथा 16 श्लोक 23 में शास्त्र विधि त्यागकर मनमाना आचरण करने वाले को सुख एवं गति प्राप्त न होना बताया है वहीं अध्याय 7 के श्लोक 12-15 में तीन देवताओं (ब्रह्मा ,विष्णु, महेश) की भक्ति करने वाले गीता जी में मूढ़, नीच कहे गए हैं। लोकवेद यानी मनमाने ढंग से उपासना की पद्धति से सुख तो होता ही नहीं अपितु नरक के द्वार अवश्य खुल जाते हैं मनुष्य जन्म अति दुर्लभ और क्षणिक है। समय रहते सही निर्णय और विवेक, पतन से बचा सकता है।
शास्त्र और लोकवेद में अंतर है
शास्त्रों में और लोकवेद में अंतर यह है कि लोकवेद मनमाना आचरण है। लोकवेद के द्वारा किये आचरण से सुख तो नहीं होते और न ही गति होती है। श्राद्ध आदि क्रियाएं वेदों में वर्णित साधना नहीं है। भारतीय वाङ्मय प्रारम्भ से ही समृद्ध है और इसमें सभी समस्याओं के सारे उपाय हैं, कमी सदैव एक तत्वदर्शी सन्त की होती है जो कि पूरे विश्व में एक समय पर एक ही होता है।
तत्वदर्शी सन्त ही तत्वज्ञान और शास्त्रों के गूढ़ रहस्य बता सकता है। अनेकों ऋषि मुनि अपना शरीर तत्वज्ञान के अभाव में प्रचंड साधनाएँ करके त्याग चुके लेकिन मीराबाई, नानक जी, सन्त रविदास जी, सन्त रामानन्द जी, सन्त पीपा, सन्त धन्ना, कमाली, सन्त दादूजी, सन्त मलूकदास जी, सन्त गरीबदासजी महाराज, सुल्तान इब्राहिम अधम जैसे अनेकों साधक तत्वदर्शी सन्त को समय रहते पहचान कर अपना कल्याण करवा चुके हैं। आज हमें वही सत्यभक्ति और तत्वदर्शी सन्त की शरण सहज ही उपलब्ध है। सन्त रामपाल जी महाराज पूरे विश्व में एकमात्र तत्वदर्शी सन्त हैं जिनके तत्वाधान में भारत विश्वगुरु बनेगा। अपना जीवन बिल्कुल न गंवाते हुए आज ही ऑर्डर करें निशुल्क पुस्तक ज्ञान गंगा एवं तत्वदर्शी सन्त की शरण गहें अपना कल्याण करवाएं।