October 9, 2025

Guru Purnima 2025 [Hindi]: गुरु पूर्णिमा पर जानिए क्या आपका गुरू सच्चा है? पूर्ण गुरु को कैसे करें प्रसन्न?

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Last Updated on 6 July 2025 IST | Guru Purnima in Hindi: प्रति वर्ष आषाढ़ की पूर्णिमा के दिन को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। गुरु पूर्णिमा इस माह 10 जुलाई को आषाढ़ माह की पूर्णिमा के दिन भारत में मनाई जाएगी। गुरु का स्थान मानव जीवन में सर्व प्रथम होता है। गुरु को विशेष महत्व देने के लिए गुरु पूर्णिमा को गुरु पूजन किया जाता है। गुरु मंत्र प्राप्त करने के लिए भी इस दिन को काफी महत्वपूर्ण माना जाता है।

गुरु पूर्णिमा के दिन विशेषरूप से अपने गुरू के प्रति सम्मान व्यक्त किया जाता है क्योंकि गुरू के ज्ञान के प्रकाश से मानव जीवन का अंधकार दूर होता है। सच्चे आध्यात्मिक गुरु के माध्यम से ही पूर्ण ब्रह्म परमात्मा की प्राप्ति संभव है। गुरु पूर्णिमा के अवसर पर हम अपने जीवन में गुरु के महत्व को जानेंगे। साथ ही सच्चे गुरु के बारे में भी जानेंगे जिनकी शरण में जाने से हमारा पूर्ण मोक्ष संभव है।

Table of Contents

गुरु शब्द का शाब्दिक अर्थ सार क्या है?

शास्त्रों में गु का अर्थ तिमिर बताया गया है और रू का अर्थ निरोधक बताया है अर्थात गुरु का अर्थ अज्ञान रूपी अंधकार से बाहर लाने वाला या अज्ञान का अंधकार खत्म करने वाला है। गुरु महिमा का बखान अनेकों सन्तों ने किया है। जीवन रूपी भवसागर को गुरु रूपी नौका के बिना पार करना असम्भव है। परम् आदरणीय कबीर साहेब जी ने गुरु महिमा का अद्वितीय बखान किया है।

कबीर, सात द्वीप नौ खण्ड में, गुरु से बड़ा न कोय |

करता करे न कर सकै, गुरु करे सो होय ||

गुरु पूर्णिमा पर वेदव्यास जी के बारे में संक्षिप्त जानकारी

Guru Purnima in Hindi: गुरु पूर्णिमा को व्‍यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है, इस दिन महर्षि वेद व्यास जी का जन्म दिवस भी होता है। लगभग 5000 साल पहले महर्षि वेद व्यास ने वेदों का संकलन किया था। उन्होंने मंत्रों को चार संहिताओं (संग्रह) में व्यवस्थित किया जो चार वेद हैं: पवित्र ऋग्वेद, पवित्र यजुर्वेद, पवित्र सामवेद और पवित्र अथर्ववेद। वे वैदिक संस्कृत में लिखे गए थे। लेकिन आज इन वेदों का हिंदी और कुछ अन्य भाषाओं में भी अनुवाद किया जा चुका है। वेद व्यास जी ने 18 पुराण और महाभारत को भी लिखा। 

ऋषि वेदव्यास का जन्म किस ऋषि से हुआ था?

ऋषि पराशर जो ऋषि वशिष्ठ जी के पौत्र और शक्ति ऋषि के पुत्र थे, का जब विवाह हुआ। तब उन्हें पता चला कि उसके पिता की दूसरी जाति के लोगों ने बेरहमी से हत्या कर दी थी। शादी करने के तुरंत बाद उन्होंने साधना करने और आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त करने के लिए घर छोड़ने का फैसला किया। उनकी पत्नी ने कहा ‘अभी हमारी शादी हुई है और आप साधना के लिए घर छोड़ रहे हो, कृप्या बच्चे पैदा करके जाओ’। वह नहीं माने और अपनी पत्नी से कहा कि मेरे साधना करने के बाद जो बच्चे पैदा होंगे, वह नेक प्रवृत्ति के होंगे। कुछ समय बाद मैं अपना वीर्य (आध्यात्मिक शक्ति से युक्त) एक कौए के द्वारा भेजूंगा, आप उसे स्वीकार करना।

इसके बाद वह घर छोड़कर जंगलों में चले गए। वहां उन्होंने एक वर्ष तक साधना की और सिद्धियाँ प्राप्त कीं, फिर अपना वीर्य निकालकर एक पीपल के पत्ते पर भस्म कर दिया, अपनी आध्यात्मिक शक्ति (मंत्रों) द्वारा वीर्य की रक्षा की और एक कौवे को अपनी पत्नी को देने के लिए दिया और एक ‘तारपत्र’ (ताड़ के पत्ते) पर विवरण लिखा। कौआ उसे ले गया और उड़ गया, नदी पार करने पर, दूसरे कौवे ने देखा और यह सोचकर उस कौवे पर हमला कर दिया कि वह अपनी चोंच में मांस का टुकड़ा लिए हुए है। इस हाथापाई में पत्ते में लिपटा वीर्य नदी में गिर गया और एक मछली ने उसे खा लिया, वह गर्भवती हो गई।

नौ महीने के बाद एक मछुआरे ने उस गर्भवती मछली को जाल में फँसा लिया, तथा उसके पेट को काट दिया जिसमें से एक सुंदर बच्ची निकली। उसने उसे अपनी बेटी की तरह पाला, पिता की तरह उसकी देखभाल की। वह लड़की बड़ी हुई, तेरह साल की उम्र में वह अपने पिता के लिए भोजन लाती थी और नाव में नदी के दूसरे किनारे पर आगंतुकों को ले जाने के काम में उनकी मदद करती थी। उसका नाम सत्यवती व मछोदरी था (क्योंकि वह एक मछली के पेट से पैदा हुई थी)।

चौदह वर्ष के बाद श्री पराशर जी साधना समाप्त कर लौटे। नदी के पास पहुँच कर उसने नाविक को बुलाया और कहा, ‘जल्दी से मुझे नदी के उस पार ले चलो’। उस समय नाविक भोजन कर रहा था, और बीच में भोजन छोड़ने से अन्न देव (अन्न देव) का अपमान होता है। नाविक अच्छी तरह से जानता था कि साधना करने के बाद इन संतों को आध्यात्मिक शक्तियाँ प्राप्त हो जाती हैं और यदि वांछित सेवाओं के लिए मना किया जाता है तो वे नाराज़ हो सकते हैं और श्राप दे सकते हैं और उनका सब कुछ नष्ट कर सकते हैं। इसलिए केवट ने यह जिम्मेदारी अपनी पुत्री मछोदरी को सौंप दी। मछोदरी भी जागरूक थी।

वह ऋषि पराशर जी को नाव में बिठाकर ले गई। वह तेरह साल की एक जवान लड़की थी। नदी के मध्य में पहुँचकर ऋषि पराशर जी के मन में मछली ( उनकी बीज शक्ति से उत्पन् पुत्री) से उत्पन्न कन्या के प्रति कुत्सित भाव जागृत हुआ। उसने अपनी इच्छा लड़की के सामने रखी। मछोदरी ने अपनी लाज बचाने के लिए ऋषि जी से कहा कि ‘आप ब्राह्मण हैं, मैं शूद्र हूं’ रजोगुण के प्रभाव से ऋषि जी बेबस हो गए और नहीं माने। उसने आगे कहा कि उसके शरीर से मछली की दुर्गंध आती है। ऋषि जी ने नदी से जल लेकर कन्या पर छिड़का और अपनी अलौकिक शक्ति से दुर्गंध को समाप्त कर दिया।

तब बालिका ने कहा ‘ऋषि जी, लोग दोनों तरफ देख रहे हैं, यह शर्मनाक होगा’, ऋषि जी ने आकाश में कुछ नदी का पानी फेंका और अपनी अलौकिक शक्तियों से चारों ओर धुंध पैदा कर दी। लड़की के यह कहने के बावजूद कि वह एक मछली से पैदा हुई है, उसने अपनी बेटी के साथ अपनी इच्छा पूरी की। ऋषि जी भली-भाँति जानते थे कि कौए द्वारा भेजे गए मंत्र द्वारा रक्षित उनका वीर्य नदी में गिर गया था और मछलियों ने खा लिया था, फिर भी उन्होंने सब कुछ अनसुना कर दिया।

घर वापस आकर लड़की ने अपनी पालक मां को पूरी घटना से अवगत कराया, उसकी मां ने अपने पति को सारी बात बताई। मछोदरी ने बताया कि ऋषि का नाम पराशर था जो ऋषि वशिष्ठ के पौत्र हैं। समय आने पर उस अविवाहित कन्या ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम व्यास रखा गया, जो ऋषि व्यास के नाम से प्रसिद्ध हुए। बाद में इन्हीं ऋषि वेदव्यास के पुत्र ऋषि सुखदेव/शुकदेव जी हुए। जो तीन गुणों ब्रह्मा, विष्णु और शिव से छिपकर वेदव्यास जी की पत्नी के गर्भ में बारह वर्ष तक रहे।

सुखदेव ऋषि और राजा जनक

सुखदेव का कोई गुरू नहीं था। सुखदेव को अपने ज्ञान पर अंहकार था जिस कारण वह उड़कर विष्णु लोक में पहुंच गए परंतु वहां के पहरेदारों ने उसे अंदर प्रवेश नहीं करने दिया। अंदर न जाने देने का कारण था गुरु का न होना। पहरेदारों से प्रार्थना करने पर भगवान विष्णु जी द्वार पर सुखदेव से आकर मिले और तब विष्णु जी ने सुखदेव को बिना आदर सत्कार दिए पुनः पृथ्वी पर जाकर राजा जनक को अपना गुरू बनाने के लिए कहा।

विष्णु जी का यह आदेश पाकर सुखदेव जी ने राजा जनक से नामदीक्षा प्राप्त की। (जानकारी के लिए बता दें राजा जनक पहले राजा अम्बरीष थे और कलयुग में गुरू नानक देव जी वाली आत्मा के रूप में उन्होंने जन्म लिया। उन्होंने काशी वाले धानक/जुलाहे कबीर जी (परमात्मा) को गुरू रूप में धारण किया। उनसे नामदीक्षा ली और अपना कल्याण करवाया।) नोट: संपूर्ण जानकारी के लिए प्रतिदिन शाम को देखें संत रामपाल जी महाराज के आध्यात्मिक सत्संग 7.30-8.30 बजे।

Guru Purnima in Hindi: बिना गुरु मुक्ति संभव नहीं

यदि गुरु धारण नहीं किया है तो आप कितना भी विवेक से कार्य करें सब निष्फल है। शास्त्रों में वर्णन है कि गुरु के बिना कोई कार्य सिद्ध नहीं होता है और इस बात को सन्तों ने भी अपनी वाणियों में दोहराया है। सभी कर्मों का फल अवश्य मिलता है। किन्तु बिना गुरु किये दान पुण्य एवं अन्य धार्मिक कार्यों का कोई फल नहीं मिलता। सभी चीजें या वस्तुएं समय आने पर ऋण की भाँति वापस लौटा दी जाती हैं। किन्तु पूर्ण गुरु यानी तत्वदर्शी संत से नामदीक्षा लेने के बाद मिलने वाले लाभ एवं फल अद्वितीय होते हैं। इहलोक एवं परलोक दोनों के लाभ व्यक्ति प्राप्त करता है। श्रीमद्भगवतगीता अध्याय 4 श्लोक 34 में तत्वदर्शी संत की खोज करने को कहा गया है।

■ Read in English | Guru Purnima: Enlightened Guru Is the Only One who is Giver of Salvation

Guru Poornima in Hindi: बिना गुरु धारण किया मनुष्य चौरासी लाख योनियों में जाता है एवं मनुष्य जन्म में किए धर्म (पुण्य-दान) को कुत्ते या अन्य योनियों में वह भोजन आदि सुविधाओं के रूप में प्राप्त कर लेता है। यदि उस प्राणी ने मानव शरीर में गुरु बनाकर धर्म (दान-पुण्य) यज्ञ की होती तो वह या तो मोक्ष प्राप्त कर लेता। यदि भक्ति पूरी नहीं हो पाती तो मानव जन्म अवश्य प्राप्त होता तथा मानव शरीर में वे सर्व सुविधाएं भी प्राप्त होती जो कुत्ते के जन्म में नही होती। मानव जन्म में यदि फिर कोई साधु सन्त-गुरु मिल जाता और वह अपनी भक्ति पूरी करके मोक्ष का अधिकारी बनता। इसलिए कहा है कि यज्ञों का वास्तविक लाभ प्राप्त करने के लिए पूर्ण गुरु धारण करना अनिवार्य है।

गुरु मानुष कर जानते, ते नर कहिए अंध |

होंय दुखी संसार में, आगे यम के फन्द ||

कबीर जी ने सांसारिक प्राणियों को ज्ञान का उपदेश देते हुए कहा है कि जो मनुष्य गुरु को सामान्य प्राणी (मनुष्य) समझते हैं उनसे बड़ा मूर्ख जगत में अन्य कोई नहीं है, वह आंखों के होते हुए भी अन्धे के समान हैं तथा जन्म-मरण के भव-बंधन से मुक्त नहीं हो पाते। विषय ज्ञान देने वाले गुरू से श्रेष्ठ आध्यात्मिक ज्ञान देने वाला गुरू होता है जो जगत का पालनहार होता है। (पढ़ें पवित्र पुस्तक ज्ञान गंगा)

वर्तमान में असली आध्यात्मिक गुरु कौन है?

असली गुरु वह होता है जो न केवल हमें तत्वज्ञान का उपदेश करे बल्कि हमें जन्म मरण से, बुढ़ापे, बीमारी, दुखों से पीछा छुड़ाने का रास्ता सुझाए। तत्वज्ञान से मनुष्य को यह ज्ञान होता है कि परमात्मा कौन है, कैसा है, कहां रहता है, पृथ्वी पर कब और क्यों आता है? मनुष्य और परमात्मा का क्या संबंध है? ब्रह्मा, विष्णु, महेश के पिता कौन हैं? इनकी आयु कितनी है? ऐसा उच्च कोटि का ज्ञान कोई साधारण गुरू नहीं दे सकता।

इसके लिए गीता अध्याय 4 श्लोक 34 के अनुसार पूर्ण तत्वदर्शी सन्त की तलाश करनी चाहिए और पूर्ण तत्वदर्शी सन्त के लक्षण अध्याय 15 श्लोक 1 से 4 में बताए गए है, जो उल्टे लटके हुए संसार रूपी वृक्ष के सभी भागों को विस्तार से बता दे वह तत्वदर्शी सन्त है।

Guru Purnima in Hindi: बौद्ध दर्शन से मोक्ष असंभव

गुरु पूर्णिमा 2025 (Guru Purnima in Hindi) बौद्धों के लिए एक महत्वपूर्ण त्योहार है। ऐसा माना जाता है कि भगवान बुद्ध, जिन्होंने ‘मोक्ष’ की तलाश में अपना राज्य और सिंहासन त्याग दिया था, इस दिन सारनाथ में अपने पांच शिष्यों को प्रथम उपदेश दिया था। इस उपलक्ष्य में बौद्ध धर्म में भी गुरु पूर्णिमा को मनाया जाता है। परंतु सनद रहे गौतम बुद्ध का अपना कोई गुरू नहीं था उनका ज्ञान व्यवहारिक और साधारण था तथा वह आत्म और परमात्म ज्ञान से कोसों दूर थे। गौतम बुद्ध के ज्ञान से न तो लाभ संभव है न मोक्ष। जब मोक्ष गौतम बुद्ध का ही नहीं हुआ तो बुद्ध धर्म को जीवित रखने वालों का कैसे संभव है? स्वप्न में भी नहीं।

गुरु अनेक हैं पर सच्चा गुरू कौन?

जो मिस्त्री का काम सिखाए वह भी गुरू,जो बाल काटने सिखाए, कपड़ा सिलना सिखाए, जो‌ खाना बनाना सिखाए वह भी गुरु है। माता पिता भी गुरु हैं, अध्यापक शिक्षा का महत्व बताते हैं वे भी गुरु हैं। लेकिन आध्यात्मिक गुरु अन्य ही है जिसका पूर्ण तत्त्वदर्शी सन्त होना पहली शर्त है। जो आपको आर्ट आफ लिविंग सिखाए, योगा सिखाए, कुण्डली साधना सिखाए, यहां वहां का ज्ञान बांचे, ब्रह्म तक की साधना बताएं, मुरली सुनाएं समाज में ऐसे व्यवहारिक गुरूओं की कमी नहीं है। लेकिन इनसे मोक्ष कतई संभव नहीं है।

Guru Purnima 2025 in Hindi: विश्व की वर्तमान जनसंख्या 7.61 अरब से अधिक हो रही है और हर व्यक्ति को अपनी ज़िंदगी में एक मसीहा या गुरू की आवश्यकता होती है। अक्षर ज्ञान कराने वाला गुरू सम्माननीय है परंतु तत्वदर्शी सन्त जो अध्यात्म ज्ञान दे दे उससे बड़ा दूसरा कोई और गुरु नहीं और आध्यात्मिक गुरु केवल तत्वदर्शी सन्त ही हो सकता है।

आत्म प्राण उद्धार ही, ऐसा धर्म नहीं और |

कोटि अश्वमेघ यज्ञ, सकल समाना भौर ||

गुरु गुरु में भेद

विद्यालय के गुरू, आपको स्कूल के बाद क्या करना है, क्या बनना है इसकी शिक्षा देंगे। माता पिता भी गुरू की तरह ही होते हैं। जो समय समय पर मार्ग दर्शन करते हैं। परंतु आध्यात्मिक गुरु एक ऐसा गुरू होता है जो न केवल मोक्ष की ओर अग्रसर करता है बल्कि सभी प्रकार से सुख समृद्धि के रास्ते खोलता है, जन्म मरण से छुटकारा दिलाता है।

वह तत्वज्ञान से परिचित करवाता है, भाग्य के कष्टों को दूर करता है और जो भाग्य में न हो वह देता है। ऐसा गुरु वास्तव में कामधेनु है और ऐसा गुरु कौन होता है? वह केवल तत्वदर्शी संत होता है और तत्वदर्शी सन्त कौन होता है? वह पूर्ण परमेश्वर स्वयं या पूर्ण परमेश्वर का नुमाइंदा होता है। तत्वदर्शी सन्त पूरी पृथ्वी पर एक होता है। उसे सभी क्यों नहीं पहचान पाते? उसे पूर्ण परमेश्वर के बच्चे पहचान लेते हैं ठीक वैसे ही जैसे कोयल की आवाज़ सुनकर कोयल के बच्चे उसके पास आ जाते हैं और काग के बच्चे उस बोली को समझ भी नहीं पाते।

कबीर, गुरु गोविंद कर जानिये, रहिये शब्द समाय |

मिलै तो दण्डवत बन्दगी, नहीं पलपल ध्यान लगाय ||

कबीर साहेब जी कहते हैं – हे मानव! गुरु और गोविंद को एक समान जानें। गुरु ने जो ज्ञान का उपदेश किया है उसका सिमरन/जाप करें। जब भी गुरु का दर्शन हो अथवा न हो तो सदैव उनका ध्यान करें जिसने तुम्हें गोविंद से मिलाप करने का सुगम मार्ग बताया है। गुरु को ईश्वर से भी ऊंचा स्थान दिया गया है। अभी तक हम केवल विद्या देने वाले और‌ व्यावसायिक, व्यावहारिक, ज्ञान देने वाले गुरू को ही सर्वश्रेष्ठ गुरू मानते रहे हैं। परंतु असली गुरू तो वह है जो आत्मा को परमात्मा से मिलवा दे उसे मोक्ष का रास्ता दिखा दे।

कबीर साहेब से बड़ा कोई गुरू नहीं

Guru Purnima 2025 in Hindi: परमेश्वर कबीर साहेब जो न केवल संत हैं बल्कि परमात्मा भी स्वयं हैं। परमात्मा ने स्वयं तत्वदर्शी सन्त की भूमिका निभाई। प्रत्येक युग में आए। यदि नानक देव जी, मीरा बाई, इंद्रमति, प्रहलाद, ध्रुव, रविदास जी, सिकंदर लोदी, धर्मदास जी, दादू जी, नल नील, गरीबदास जी को कबीर साहेब जी गुरू रूप में आकर न मिलते तो इनका उद्धार संभव नहीं था। इन सभी महानुभावों ने गुरु महिमा और उनके चरणों में अपना सर्वस्व न्यौछावर किया। समाज से उलाहने सुने परंतु अपना आत्म उद्धार करवाने का उद्देश्य कभी नहीं छोड़ा।

Guru Purnima Special Video by Satlok Ashram

हम सुल्तानी नानक तारे, दादू कूं उपदेश दिया |

जात जुलाहा भेद नहीं पाया, काशी माहे कबीर हुआ ||

अनंत कोटि ब्रम्हण्ड का, एक रति नहीं भार |

सतगुरु पुरुष कबीर हैं कुल के सिरजनहार ||

■ गुरु ग्रन्थ साहेब, राग आसावरी, महला 1 के कुछ अंश –

साहिब मेरा एको है। एको है भाई एको है।

आपे रूप करे बहु भांती नानक बपुड़ा एव कह।। (पृ. 350)

जो तिन कीआ सो सचु थीआ, अमृत नाम सतगुरु दीआ।। (पृ. 352)​

गुरु पुरे ते गति मति पाई। (पृ. 353)​

बूडत जगु देखिआ तउ डरि भागे।​

सतिगुरु राखे से बड़ भागे, नानक गुरु की चरणों लागे।। (पृ. 414)

मैं गुरु पूछिआ अपणा साचा बिचारी राम। (पृ. 439)

उपरोक्त वाणी में, गुरु नानक देव जी स्वयं स्वीकार कर रहे हैं कि साहिब (भगवान) केवल एक हैं और मेरे गुरु जी ने नाम जाप का उपदेश दिया। उनके अनेक रूप हैं। वो ही सत्यपुरुष हैं, वो जिंदा महात्मा के रूप में भी आते है, वो ही एक बुनकर (धानक) के रूप में बैठे हुए हैं, एक साधारण व्यक्ति यानी भक्त की भूमिका करने भी स्वयं आते हैं।

गुरु गोविन्द दोनों खड़े, काके लागूं पांय।

बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय॥

हिंदू धर्म में गुरु और ईश्वर दोनों को एक समान माना गया है। गुरु भगवान के समान है और भगवान ही गुरु हैं। गुरु ही ईश्वर को प्राप्त करने और इस संसार रूपी भव सागर से निकलने का रास्ता बताते हैं। गुरु के बताए मार्ग पर चलकर मानव परमात्मा और मोक्ष को प्राप्त करता है। शास्त्रों और पुराणों में कहा गया है कि अगर भक्त से परमात्मा नाराज़ हो जाते हैं तो गुरु ही उसकी रक्षा का उपाय बताते हैं। आज के समय में ऐसा गुरू एकमात्र संत रूप में संत रामपाल जी महाराज जी हैं जो मानव को परमात्मा से मिलवा कर मोक्ष प्रदान कर रहे हैं।

परमात्मा ही गुरु की भूमिका स्वयं निभाते हैं

Guru Purnima 2025 in Hindi: गुरु बनाने से पहले यह जानना भी ज़रूरी है कि गुरू का गुरू कौन है जैसे डाक्टर से इलाज करवाने से पहले उसकी डिग्री देखते हैं, अध्यापक को नौकरी पर रखने से पहले उसका शिक्षा संबंधी बैकग्राउंड चैक करते हैं उसी प्रकार गुरू बनाने से पहले यह जांचना ज़रूरी है कि गुरू, गुरू कहलाने लायक भी है या नहीं। कबीर साहेब जी 600 वर्ष पूर्व काशी में आए थे जब उन्होंने पांच वर्ष की आयु में 104 वर्षीय रामानंद जी को अपना गुरू बनाया। अति आधीन रहकर गुरू शिष्य परंपरा का निर्वाह किया व समाज को यह उदाहरण देकर दिखाया कि जब सृष्टि का पालनहार गुरू बनाकर नियम में रहकर भक्ति कर रहा है तो आप किस खेत की मूली हैं।

जब तक गुरू मिले न सांचा, तब तक गुरू करो दस पांचा ||

गुरु बनाना क्यों आवश्यक है?

जीवन मे आध्यात्मिक गुरु का होना अत्यंत आवश्यक है। श्री राम जी के गुरु थे, श्री कृष्ण जी के गुरु दुर्वासा ऋषि थे, ब्रह्मा विष्णु महेश के भी गुरु हैं, पृथ्वी पर आए सभी महान आत्माओं ने गुरु धारण किये चाहे वे ऋषि सुखदेव हों, ऋषि नारद हों अथवा तीनों देवताओं की शक्ति से युक्त माता अनुसुइया के पुत्र दत्तात्रेय हों या गोरखनाथ हों। राजाओं जैसे राजा जनक, राजा वीर सिंह बघेल, बिजली खान पठान, सुल्तान इब्राहिम अधम, राजा पीपा ने गुरु धारण किया। सभी पहुंचे हुए संतों जैसे आदरणीय गुरु नानक जी, आदरणीय सन्त दादू जी, आदरणीय सन्त गरीबदास जी महाराज, आदरणीय सन्त मलूक दास जी महाराज, ने गुरु महिमा गाई है।

Guru Purnima 2025 in Hindi: आज का भाग दौड़ का जीवन केवल भागते हुए ही निकल जाता है और आगे 84 लाख योनियों में आत्मा कष्ट उठाती है। जीवन मे गुरु की उपस्थिति अनिवार्य है। आध्यात्मिक गुरु के बिना जीवन असफल होता है क्योंकि उसके बिना मनुष्य जन्म के मूल उद्देश्य मोक्ष तक नहीं पहुंचा जा सकता। लेकिन यह याद अवश्य रहे कि गुरु पूर्ण हो। अयोग्य गुरु से केवल नरक का रास्ता खुलता है एवं पूर्ण तत्वदर्शी सन्त से नाम दीक्षा लेकर भक्ति करने से यह जीवन तो स्वर्ग बनता ही है बल्कि मोक्ष के बाद आत्मा सतलोक में चिरसुखी होती है।

संत रामपाल जी महाराज जी ही हैं पूर्ण तत्वदर्शी संत

Guru Purnima 2025 in Hindi: आज संत रामपाल जी महाराज पूर्ण तत्वदर्शी सन्त हैं। वे पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब के अवतार हैं। न केवल भविष्यवक्ताओं की भविष्यवाणियां बल्कि शास्त्रों में लिखे तत्वदर्शी सन्त के सभी लक्षण सन्त रामपाल जी महाराज पर खरे उतरते हैं। वेदों के अनुसार पूर्ण तत्वदर्शी सन्त शास्त्रों के गूढ़ रहस्य उजागर करता है।

सन्त रामपाल जी महाराज ने चारों वेदों, पुराणों, गीता, बाइबल, कुरान आदि को खोलकर बताया है एवं उनके गूढ़ रहस्य को समझाया है। गीता के ॐ, तत, सत और कुरान के एन, सीन, काफ से लेकर वेदों के तत्वदर्शी सन्त और कुरान के बाख़बर तक सब कुछ को सरलतापूर्वक सन्त रामपाल जी महाराज ने समझाया है। बाइबल, कुरान, गुरुग्रन्थ साहेब के कबीर और वेदों के कविर्देव का पता बताने वाले एकमात्र पूर्ण तत्वदर्शी सन्त बन्दीछोड़ सद्गुरु रामपाल जी महाराज हैं।

कबीर, नौ मन सूत उलझिया, ऋषि रहे झख मार |

सतगुरु ऐसा सुलझा दे, उलझे न दूजी बार ||सच्चा सतगुरु वही है जो हमारे सभी धर्मों के शास्त्रों से सिद्ध ज्ञान और सद्बुद्धि देकर मोक्ष देता है। आज वर्तमान पूरे विश्व में जगतगुरु संत रामपाल जी महाराज ही सच्चे व पूर्ण गुरु है, इसलिए संत रामपाल जी से नाम दीक्षा लें और अपना कल्याण करवाए.

Guru Purnima 2025 पर जानिए गुरु की महिमा से जुड़ी आवश्यक प्रश्नोत्तरी

प्रश्न: गुरु को गोविंद से भी बड़ा क्यों बताया गया है?

उत्तरः गुरु को गोविन्द से भी बड़ा इसलिए बताया गया है क्योंकि गुरु ही वह मार्गदर्शक है जो हमें गोविन्द (भगवान) से मिलने का रास्ता बताता है।

प्रश्नः मनुष्य जीवन का मूल उद्देश्य सतभक्ति करके मोक्ष प्राप्त करना है यह कौन समझाता है?

उत्तरः यह केवल जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी बताते है और प्रमाण सहित समझाते हैं।

प्रश्नः वर्तमान में एकमात्र आध्यात्मिक गुरु कौन है जिनकी सर्व मानव जाति को अति आवश्यकता है?

उत्तरः संपूर्ण मानव जाति को एकमात्र आध्यात्मिक गुरु जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी की अति आवश्यकता है।

प्रश्नः एक आध्यात्मिक गुरू के क्या लक्षण होते हैं?

उत्तरः सतगुरु या आध्यात्मिक गुरू सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान (तत्वज्ञान) प्रदान करते हैं। आध्यात्मिक गुरु वह होता है जो सभी धार्मिक ग्रंथों का पूर्ण ज्ञाता होता है। वह सब वेदों के अनुसार भक्ति (पूजा) अर्थात् शास्त्रविधि अनुसार साधना करते और कराते हैं।

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