Gaj Laxmi Vrat 2025 (गजलक्ष्मी व्रत): त्रिलोकीनाथ भगवन विष्णु की संगिनी माता लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने के उद्देश्य से लोगों में 16 दिनों का व्रत करने का चलन है। अमूमन इंसान सुख, शांति, स्वास्थ्य की चाहत में भागता रहता है आइए इस अवसर पर जानें इसका सबसे सरल, सटीक, प्रभावी और एकमात्र उपाय।
गजलक्ष्मी व्रत (Gaj Laxmi Vrat 2025) के मुख्य बिंदु
- लोकवेद के अनुसार गजलक्ष्मी व्रत भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को होता है।
- लोकवेद के अनुसार 16 दिनों तक चलने वाले इस व्रत का प्रारम्भ 31 अगस्त से है एवं समापन तिथि 14 सितम्बर को लोगों ने मानी है।
- इस अवसर पर खोलें सुख समृद्धि के साथ साथ मोक्ष का रास्ता।
गजलक्ष्मी व्रत (Gaj Laxmi Vrat ) क्यों रखा जाता है?
गजलक्ष्मी की कथा महाभारत के काल से जुड़ी है। इस व्रत का किसी भी शास्त्र में प्रमाण नहीं है। पांडवों की माता कुंती एवं कौरवों की माता गांधारी ने किसी ऋषि के कहने पर 16 दिन इस व्रत को करने का संकल्प लिया था तथा अंत में उद्यापन के समय गांधारी ने कुंती का अपमान किया एवं उसे नहीं बुलाया तब पांडवों ने अपनी माता जी के लिए स्वर्ग से इंद्र का हाथी ऐरावत पूजा के लिए उतरवाया और तब पूरे नगर की स्त्रियां कुंती के पास आ गईं एवं पूजा की।
विचार करें जब यह व्रत किसी भी शास्त्र यानी वेदों और गीता में वर्णित नहीं है तो इसे करने के क्या लाभ? गीता में व्रत के लाभ नहीं हैं। गीता में व्रत वर्जित है (6:16), इसलिए व्रत करना शास्त्र विरुद्ध साधना है, जिसके करने से मोक्ष और सुख की प्राप्ति नहीं हो सकती। (16:23)
गीता में गजलक्ष्मी व्रत के लिए क्या कहा है?
गीता और वेदों में गजलक्ष्मी ही नहीं बल्कि ब्रह्मा विष्णु और महेश का भी नाम नहीं है। इन्हें मात्र त्रिगुणमयी माया कहा है। किसी भी व्रत का कोई भी आदेश गीता में नहीं है। मोक्षप्राप्ति के लिए अध्याय 18 के श्लोक 66 में गीता ज्ञानदाता ने उस परमेश्वर की शरण मे जाने के लिए कहा है जहाँ जाने के पश्चात पुनः संसार में आना नहीं होता है। वेदों का सार कही जाने वाली गीता में मुख्य रूप से व्रत करना अध्याय 6 श्लोक 16 में, तप करना अध्याय 17 श्लोक 5-6 में, तीन गुणों की उपासना करना अध्याय 7 श्लोक 14 से 17 में वर्जित बताया हैं।
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जो व्यक्ति शास्त्रविधि को त्यागकर मनमाना आचरण करते हैं जैसे व्रत, उपवास, जागरण आदि। उनकी भक्ति असफल है एवं अध्याय 16 श्लोक 23 के अनुसार वे न सुख को प्राप्त हो सकते हैं, और न मोक्ष को। अतः सत्य असत्य का निर्णय लेकर एवं यह विचार करके ही आध्यात्मिक मार्ग में कदम बढ़ाना चाहिए अन्यथा अनमोल मानव जन्म न केवल नष्ट होता है बल्कि गलत साधनाओं का दोष भी लगता है।
माता लक्ष्मी की साधना की विधि
सभी देवी देवताओं का एक विशेष मन्त्र होता है, लेकिन केवल उस मंत्र को जान लेना पर्याप्त नहीं होता, बल्कि उसे अधिकारी सन्त के द्वारा नाम उपदेश में प्राप्त करके उसका जाप करने से वे देवता अपने स्तर का लाभ साधक को आसानी से देने लगते हैं। आजकल अनेक नकली गुरु आधी हिंदी और आधी संस्कृत मिलाकर मनगढ़ंत मंत्र बना देते हैं, जो न तो प्रमाणिक हैं और न ही गीता में दिए हुए हैं। गीता में अध्याय 17 श्लोक 23 में ॐ, तत, सत ये तीन सांकेतिक मन्त्र हैं जिनसे साधक का पूर्ण मोक्ष तो होता ही है बल्कि इस लोक में भी सुख सुविधाएं न चाहते हुए भी प्राप्त होती हैं।
सुख, समृद्धि एवं पूर्ण मोक्ष प्राप्ति के लिए क्या करें?
कबीर, एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय |
माली सींचे मूल को, फले फूले अघाय ||
हर समय भिन्न भिन्न उपायों, ज्योतिषों, भिन्न तीर्थ स्थानों, मंदिरों, अलग अलग देवताओं के चक्कर लगाने से कुछ हासिल नहीं होता है। व्यक्ति का भाग्य जन्म से पहले ही निर्धारित होता है। विधि का लिखा पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब जी एवं उसके तत्वदर्शी सन्त के अतिरिक्त कोई नहीं बदल सकता है। यह जानने के बाद भी भागमभाग क्यों? आज मानव समाज की स्थिति ठीक उसी कथा जैसी हो गई है – “कौआ कान ले गया” – जिसे सुनकर बिना देखे ही लोग आंखें मूंदकर नकली धर्मगुरुओं और विभिन्न देवताओं के पीछे दौड़ पड़ते हैं। जबकि वास्तविक समाधान आज भी संभव है, यदि सत्य ज्ञान को अपनाया जाए।
गीता में तत्वज्ञान की प्राप्ति पर बल दिया है एवं अध्याय 4 श्लोक 34 में तत्वदर्शी सन्त की खोज करने और उसकी शरण मे जानें के लिए कहा है। वर्तमान समय मे तत्वदर्शी सन्त रामपाल जी महाराज हैं जिन्होंने वेदों, पुराणों, गीता, महाभारत, कुरान, बाइबल को खोलकर सारा तत्वज्ञान समझाया है। उनके द्वारा बताई साधना से इस लोक में जीवन सुलभ होता है और मृत्योपरांत पूर्ण मोक्ष प्राप्त कर सतलोक में स्थायी निवास प्राप्त होता है। केवल एक परम पिता परमेश्वर की भक्ति करने से अन्य सभी देवी देवता साधक को अपने स्तर का लाभ स्वतः ही दे देते हैं। भाग्य से अधिक भी इन्हीं मन्त्रों की साधना से प्राप्त हो सकता है। अतः देर न करते हुए तत्वज्ञान समझें। आज ही निःशुल्क पुस्तक जीने की राह ऑर्डर करें एवं देखें संत रामपाल जी महाराज यूट्यूब चैनल।
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गजलक्ष्मी व्रत 2025 पर FAQs
1. गजलक्ष्मी व्रत 2025 कब है?
गजलक्ष्मी व्रत 2025 की शुरुआत 31 अगस्त 2025 से होगी और इसका समापन 14 सितंबर 2025 को होगा। यह व्रत 16 दिनों तक चलता है।
2. गजलक्ष्मी व्रत का महत्व क्या है?
लोकमान्यताओं के अनुसार, गजलक्ष्मी व्रत से धन, सुख, समृद्धि और वैभव की प्राप्ति होती है, हालांकि शास्त्रों में इसका कोई प्रमाण नहीं है।
3. क्या गजलक्ष्मी व्रत से मोक्ष की प्राप्ति होती है?
गीता के अनुसार किसी भी व्रत या उपवास से मोक्ष नहीं मिलता। मोक्ष के लिए गीता अध्याय 18 श्लोक 66 के अनुसार तत्वदर्शी संत की शरण में जाकर सही भक्ति करनी चाहिए।
4. गजलक्ष्मी व्रत का सही आध्यात्मिक मार्ग क्या है?
गजलक्ष्मी व्रत की जगह, गीता और वेदों में बताए गए एकमात्र परमेश्वर की भक्ति अपनानी चाहिए, जैसा कि संत रामपाल जी महाराज ने तत्वज्ञान के माध्यम से समझाया है।