September 14, 2025

क्यों है कबीर साहेब जी का ज्ञान सबसे अलग और अद्भुत?

Published on

spot_img

Last Updated on 23 May 2024 IST: कबीर साहेब जी को आज कौन नहीं जानता। कोई उन्हें कवि या संत रूप में जानता है तो कोई उन्हें दास रूप में जानता है। लेकिन वास्तविकता यह है कि कबीर साहेब परमात्मा हैं। परमेश्वर कबीर जी का नीतिगत ज्ञान तो हमने बहुत सुना है लेकिन कबीर परमेश्वर ने नीतिगत ज्ञान के अलावा अध्यात्म पर भी विशेष दबाव दिया है। सर्वप्रथम उन्होंने ही काल(शैतान) का भेद दिया, सतलोक के सुख से परिचित किया, तप्तशिला के कष्ट से अवगत किया, हमें सतगुरु बनाना क्यों जरूरी है यह भी कबीर जी ने ही बताया, साथ ही उन्होंने ऐसे मंत्र (नाम) के बारे में भी बताया जिससे हमारे सभी पाप कर्म समाप्त हो जाते हैं और उस मंत्र के जाप से जन्म मृत्यु के कष्ट से भी मुक्ति मिलती है। कबीर साहेब का ज्ञान सबसे अलग तो है ही लेकिन धर्म ग्रंथों से प्रमाणित है। तो आइये जानते हैं कबीर साहेब जी के ज्ञान को विस्तार से।

कबीर साहेब ने बताया काल (ब्रह्म) का भेद

काल केवल 21 ब्रह्मांडो का स्वामी है। इसे ही क्षर पुरूष, क्षर ब्रह्म, ज्योति निरंजन, काल, ब्रह्म आदि उपमात्मक नामों से जाना जाता है। काल और इसके अंतर्गत सर्व 21 ब्रह्मांड नाशवान हैं। श्रीमद्भागवत गीता अध्याय 8 श्लोक 16 में यह काल ब्रह्म स्वयं कहता है कि ब्रह्मलोक तक सभी लोक पुनरावृत्ति में हैं। गीता अध्याय 2 श्लोक 12, अध्याय 4 श्लोक 5, 9 व अध्याय 10 श्लोक 2 में यह स्वयं बताता है कि मेरा जन्म मृत्यु तो होती है लेकिन ये ऋषि, देवता नहीं जानते। इस काल को प्रतिदिन एक लाख मनुष्य धारी प्राणियों के सूक्ष्म शरीर से निकलने वाली गंध को खाने और प्रतिदिन सवा लाख मनुष्य धारी प्राणी उत्पन्न करने का श्राप लगा हुआ है। यहीं वह प्रभु है जो हमें कष्ट पर कष्ट देता है, इसके अंदर दयालुता नाम की कोई चीज नहीं है। यह सर्व ज्ञान कबीर साहेब ने ही बताया।

पुरुष शॉप मोकहं दीन्हा। लख जीव नित ग्रासन कीन्हा।।

– कबीर सागर, अध्याय “अनुराग सागर” पृष्ठ 63 से

सवा लाख उपजें नित हंसा। एक लाख विनशें नित अंसा।।

– सद्ग्रन्थ (अमर ग्रन्थ), अध्याय “आदि रमैणी” से वाणी

लाख ग्रास नित उठ दूती, माया आदि तख्त की कुती।।

सवा लाख घड़िये नित भांडे, हंसा उतपति परलय डांडे। 

– सद्ग्रन्थ (अमर ग्रन्थ), अध्याय “हंस परमहंस की कथा” से वाणी

काल के एक ब्रह्मांड का ज्ञान

कबीर साहेब ने काल के एक ब्रह्मांड की सर्व व्यवस्था बताई कि काल के एक ब्रह्मांड में स्वर्ग लोक, पृथ्वी लोक, पाताल लोक के अतिरिक्त ब्रह्मा का लोक, विष्णु लोक (बैकुण्ठ), शिवलोक, ब्रह्मलोक (महास्वर्ग), देवी दुर्गा का लोक, धर्मराज का लोक, इंद्र का लोक, सप्तपुरी, गोलोक, चाँद, सूर्य, नौ ग्रह, 9 लाख तारे, 88 हजार ऋषि मंडल, 33 करोड़ देव स्थान, 96 करोड़ मेघमाला आदि विद्यमान हैं। ऐसे ही 21 ब्रह्मांडो का स्वामी काल भगवान है। काल ने प्रत्येक ब्रह्माण्ड में बने ब्रह्मलोक में एक महास्वर्ग बनाया है। महास्वर्ग में एक स्थान पर नकली सतलोक, नकली अलख लोक, नकली अगम लोक तथा नकली अनामी लोक की रचना प्राणियों को धोखा देने के लिए प्रकृति (दुर्गा/आदि माया) द्वारा की हुई है। कबीर साहेब का एक शब्द है “कर नैनों दीदार महल में प्यारा है” में वाणी है कि

काया भेद किया निरुवारा, यह सब रचना पिंड मँझारा।

माया अविगत जाल पसारा, सो कारीगर भारा है।।

आदि माया कीन्ही चतूराई, झूठी बाजी पिंड दिखाई।

अवगति रचना रची अँड माहीं, ताका प्रतिबिंब डारा है।।

काल के 21 ब्रह्मांडो का ज्ञान

काल (ब्रह्म) ने अपने 20 ब्रह्माण्डों को चार महाब्रह्माण्डों में बांट रखा है। एक महाब्रह्माण्ड में पाँच ब्रह्माण्डों का समूह बना रखा है तथा चारों ओर से अण्डाकार गोलाई में रोका है तथा चारों महाब्रह्माण्डों को भी फिर अण्डाकार गोलाई में रोका है तथा इक्कीसवें ब्रह्माण्ड की रचना एक महाब्रह्माण्ड जितना स्थान लेकर की है। काल ने 21वें ब्रह्माण्ड में प्रवेश होते ही तीन रास्ते बनाए हैं। इक्कीसवें ब्रह्माण्ड में भी बाई तरफ नकली सतलोक, नकली अलख लोक, नकली अगम लोक, नकली अनामी लोक की रचना प्राणियों को धोखे में रखने के लिए आदि माया (दुर्गा) से करवाई गई है जोकि काल ब्रह्म की पत्नी है तथा दाई तरफ 12 सर्वश्रेष्ठ ब्रह्म साधकों (भक्तों) को रखता है। 

■ Read in English | The Exceptional Spiritual Knowledge of Kabir Saheb Ji: Revealed in Detail

फिर प्रत्येक युग में उन्हें अपने संदेश वाहक (सन्त, गुरु) बनाकर पृथ्वी पर भेजता है, जो शास्त्र विरुद्ध साधना व ज्ञान बताते हैं तथा स्वयं भी भक्तिहीन हो जाते हैं तथा अनुयायियों को भी काल जाल में फंसा जाते हैं। फिर वे गुरु तथा अनुयायी दोनों ही नरक में जाते हैं। फिर सामने एक ताला (कुलुफ) लगा रखा है। वह रास्ता काल (ब्रह्म) के निज लोक में जाता है। जहाँ पर यह ब्रह्म (काल) अपने वास्तविक मानव सदृश काल रूप में रहता है। इसी स्थान पर एक पत्थर की टुकड़ी जिसे तप्तशिला कहते हैं मौजूद है।

तप्तशिला क्या है ?

काल के इक्कीसवें ब्रह्मांड में काल के निज लोक के एक स्थान पर एक पत्थर की टुकड़ी है जिसे तप्तशिला कहते हैं जोकि तवे के आकार की होती है (चपाती पकाने की लोहे की गोल प्लेट सी होती है)। यह स्वतः गर्म रहती है। जिस पर एक लाख मानव शरीर धारी प्राणियों के सूक्ष्म शरीर को भूनकर उनमें से गंदगी निकाल कर काल (ब्रह्म) खाता है। जो जितना अधिक नशे, चटपटे आहार आदि करता है काल उन्हें उतना अधिक तप्तशिला पर भूनकर सारा गंध निकालता है। तप्तशिला में बहुत ही अधिक कष्ट होता है।

कबीर सागर, अध्याय “स्वसमवेद बोध” पृष्ठ 111 :- 

तप्त शिला यक नाम पुकारा। सब जिव पकरि ताहि परजारा।।

तप्त शिलापर जो जिव परही। हाय हाय करि चटपट करही।।

तड़फ तड़फ जिव तहँ रहिजाही। भूनि भूनि सब यमधारिखाही।।

जीवन में सतगुरु बनाना क्यों जरूरी है ?

वर्तमान समय में अनेक नकली संत, गुरु हो गए हैं जिससे पूर्णगुरु को पहचानना कठिन हो गया है इसलिए सतगुरु कहना पड़ता है अन्यथा गुरु शब्द पर्याप्त है। इसलिए गुरु कहें या सतगुरु बात एक ही है। जैसा कि हम अपने बच्चों को शिक्षक के पास विद्यालय भेजते हैं जिससे उसे ज्ञान हो सके क्योंकि बच्चा स्वयं पुस्तकों में लिखी बातों को नहीं समझ सकता। इसी प्रकार आध्यात्मिक मार्ग में भी गुरु धारण करना अतिआवश्यक है क्योंकि कबीर परमेश्वर ने बताया है कि गुरु के बिना दान, धर्म आदि कोई भी धार्मिक क्रियाओं को करना व्यर्थ होता है उससे लाभ नहीं होता।

परमात्मा कबीर जी ने कहा है :-

कबीर, गुरू बिन माला फेरते, गुरू बिन देते दान।

गुरू बिन दोनों निष्फल हैं, चाहे पूछो बेद पुराण।।

अर्थात् साधक को चाहिए कि पहले पूर्ण गुरू से दीक्षा ले। फिर उनको दान करे। उनके बताए मंत्रों का जाप (स्मरण) करे। गुरूजी से दीक्षा लिए बिना भक्ति के मंत्रों के जाप की माला फेरना तथा दान करना व्यर्थ है। गुरू बनाना अति आवश्यक है।

कबीर, राम कृष्ण से को बड़ा, तिन्हूं भी गुरु कीन्ह। 

तीन लोक के वे धनी, गुरु आगै आधीन।।

अर्थात् पृथ्वी के मानव (स्त्री-पुरूष) श्री राम तथा श्री कृष्ण से बड़ा देवता किसी को नहीं मानते। उन दोनों ने भी गुरू जी से दीक्षा ली। तीन लोक के (धनी) मालिक होते हुए भी उन्होंने गुरू बनाए। श्री कृष्ण जी ने ऋषि दुर्वासा जी को अध्यात्म गुरू बनाया (ऋषि संदीपनी उनके शिक्षक गुरू थे)। श्री रामचन्द्र जी ने ऋषि वशिष्ठ जी को गुरू बनाया। वे दोनों त्रिलोक नाथ होते हुए भी अपने-अपने गुरूजी के आगे आधीन भाव से पेश होते थे। फिर हम बिना गुरु बनाए पार हो जायेंगे या सुखी हो पाएंगे ऐसा हम कैसे सोच सकते है।

कबीर, गर्भयोगेश्वर गुरू बिना, करते हरि की सेव।

कहैं कबीर बैकुंठ से, फेर दिया सुखदेव।।

राजा जनक गुरू किया, फिर किन्ही हर की सेव।

कहैं कबीर बैंकुठ में, चले गए सुखदेव।।

भावार्थ:- ऋषि वेदव्यास जी के पुत्र सुखदेव जी अपने पूर्व जन्म की भक्ति की शक्ति से उड़कर स्वर्ग में चले जाते थे। एक दिन वे श्री विष्णु जी के लोक में बने स्वर्ग में प्रवेश करने लगे। वहाँ के कर्मचारियों ने ऋषि सुखदेव जी से स्वर्ग द्वार पर पूछा कि ऋषि जी अपने पुज्य गुरूजी का नाम बताओ। सुखदेव जी ने कहा कि गुरू की क्या आवश्यकता है? अन्य गुरू धारण करके यहाँ आए हैं, मेरे में स्वयं इतनी शक्ति है कि मैं बिना गुरू के आ गया हूँ। द्वारपालों ने बताया ऋषि जी यह आपकी पूर्व जन्म में संग्रह की हुई भक्ति की शक्ति है। यदि इस जीवन में गुरू धारण करके भक्ति नहीं करेंगे तो पूर्व की भक्ति कुछ दिन ही चलेगी। आपका मानव जीवन नष्ट हो जाएगा। यह पर्याप्त है हमें समझने के लिए की गुरु की अहमियत कहाँ तक साथ चलती है।

सतगुरु की पहचान

परमेश्वर कबीर जी ने सतगुरु अर्थात पूर्णगुरु की पहचान बताई है जोकि कबीर सागर के अध्याय ‘‘जीव धर्म बोध‘‘ पृष्ठ 1960 पर दी है :-

गुरू के लक्षण चार बखाना, प्रथम वेद शास्त्र को ज्ञाना।।

दुजे हरि भक्ति मन कर्म बानि, तीजे समदृष्टि करि जानी।।

चौथे वेद विधि सब कर्मा, ये चार गुरू गुण जानों मर्मा।।

सरलार्थ:- कबीर परमेश्वर जी ने कहा है कि जो सच्चा गुरू (सतगुरु) होगा, उसके चार मुख्य लक्षण होते हैं:-

1. सब वेद तथा शास्त्रों को वह ठीक से जानता है।

2. दूसरे वह स्वयं भी भक्ति मन-कर्म-वचन से करता है अर्थात् उसकी कथनी और करनी में कोई अन्तर नहीं होता।

3. तीसरा लक्षण यह है कि वह सर्व अनुयाईयों से समान व्यवहार करता है, भेदभाव नहीं रखता।

4. चौथा लक्षण यह है कि वह सर्व भक्ति कर्म वेदों (चार वेद तो सर्व जानते हैं 1. ऋग्वेद, 2. यजुर्वेद, 3. सामवेद, 4. अथर्ववेद तथा पाँचवां वेद सूक्ष्मवेद है, इन सर्व वेदों) के अनुसार करता और कराता है।

सत्यनाम से होते हैं पाप नाश

कबीर साहेब जी बताते है कि एक ऐसा सच्चा मंत्र है जिससे हमारे सर्व पाप समाप्त हो जाते हैं। उसे सत्यनाम कहा जाता है। यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32, अध्याय 8 मंत्र 13 भी यही बताता है कि कविर्देव अर्थात् कबीर परमात्मा जी घोर से घोर पाप भी समाप्त कर देता।

कबीर, जब ही सत्यनाम हृदय धर्यो, भयो पाप को नाश।

मानो चिंगारी अग्नि की, पड़ी पुराणे घास।।

सरलार्थ :- कबीर परमेश्वर ने कहा है कि जिस समय साधक को सत्यनाम अर्थात् वास्तविक नाम मंत्र मिल जाता है और साधक हृदय से सत्यनाम मंत्र का स्मरण करता है तो उसके पाप ऐसे नष्ट हो जाते हैं जैसे हजारों टन सूखे पुराने घास में अग्नि की एक छोटी सी चिंगारी लगा देने से वह भस्म हो जाता है। उसी प्रकार सत्यनाम के स्मरण से साधक के पाप नाश हो जाते है जो दुःखों का मूल है। पाप नाश हुआ तो साधक सुखी हो जाता है।

सत्यलोक यानि सुख का सागर

सत्यलोक (सतलोक) एक ऐसा लोक है जहाँ सब कुछ अमर है, वहाँ पर हम जो इच्छा करते हैं परमेश्वर की कृपा से सेकंड से भी कम समय में वह वस्तु हमारे सामने होती है। सतलोक को अमरलोक भी कहते हैं क्योंकि वह अमर है, अविनाशी है। जिसे संत भाषा में सच्चखंड भी कहा जाता है। सत्यलोक में सर्व व्यक्तियों (स्त्री या पुरूष) का शरीर अमर है। परमेश्वर का शरीर भी अमर है। परमेश्वर कबीर जी का सत्यपुरुष रूप में दर्शन सदा होता रहता है। 

सत्यलोक में जन्म-मृत्यु, वृध्दावस्था का दुःख नहीं है, न ही अन्य कोई कहर (आपदा) है। सत्यलोक में सभी आत्माएं स्त्री पुरुष हमेशा युवा (जवान) रहते हैं। इस अमरलोक में सभी आत्माएं एक ही भंडार से अमृत फल खाते हैं, अमृत पीते हैं। सत्यलोक की कोई वस्तु नाशवान नहीं है। सभी आत्मायें एक दूसरे के साथ प्रेम से रहती हैं। कोई भी एक दूसरे को कटु वचन नहीं बोलते। अर्थात सत्यलोक में सर्व सुख है। सतलोक सुख का सागर है। सत्यलोक का वर्णन करते हुए संत गरीबदास जी महाराज ने कहा है कि –

शंखों लहर मेहर की ऊपजैं, कहर नहीं जहाँ कोई।

दास गरीब अचल अविनाशी, सुख का सागर सोई।।

गरीब, अजब नगर में ले गया, हम कुं सतगुरु आन।

झिलके बिम्ब अगाध गति, सूते चादर तान।।

सरलार्थ: गरीबदास जी महाराज इस वाणी में बताते है कि सतगुरु जो पूर्ण ब्रह्म जी हैं, वे जिन्दा बाबा के रुप में सत्यलोक से (आन) पृथ्वी पर आकर मुझे अजब नगर (अद्भुत नगर अर्थात्‌ सत्यलोक) में ले गए। वहाँ पर अनोखी झिलमिल हो रही थी। वहाँ जाकर पता चला कि यह स्थान पूर्ण सुखमय है, यह परमात्मा अविनाशी है। इनका दिया ज्ञान तथा भक्ति की साधना सत्य (शास्त्रानुकूल) है। अब मुझे पूर्ण विश्वास हो गया कि मेरा कल्याण निश्चित है। इसलिए “सूते चादर तान” अर्थात्‌ चादर तानकर सोने का भावार्थ है जिस व्यक्ति ने उस दिन का सारा कार्य समाप्त कर लिया हो तो वह चादर ओढ़कर सो रहा हो तो अन्य व्यक्ति आता है और पूछता है कि सारा कार्य कर लिया, लगता है कोई कार्य शेष नहीं रहा, इसलिए तो चादर तानकर सो रहा है। चादर तान कर सोना = निश्चिंत होकर रहना।

कबीर साहेब हैं असंख्य ब्रह्मांडों के स्वामी

कबीर साहेब हैं असंख्य ब्रह्मांडों के स्वामी

काल तो केवल 21 ब्रह्मांडो का स्वामी है और कबीर परमात्मा असंख्य ब्रह्मांडों के स्वामी है जिन्होंने सर्व ब्रह्मांडो की रचना की है अर्थात् कबीर जी अनंत कोटि ब्रह्मांडों के सिरजनहार हैं, सृष्टि कर्ता हैं। कुल के मालिक यही है। कबीर साहेब ही पूर्ण परमात्मा है। कबीर जी ने यह जानकारी स्वयं भी बताई है कि मैं ही वह मूल रूप परमात्मा हूँ, मैंने ही अनंत कोटि ब्रह्मांड अर्थात् असंख्य ब्रह्मांडों को रचा है। कबीर साहेब की वाणी – 

कबीर, हम ही अलख अल्लाह हैं, मूल रूप करतार। 

अनन्त कोटि ब्रह्मण्ड का, मैं ही सिरजनहार।।

इसका प्रमाण संत गरीबदास जी महाराज ने भी दिया है कि सर्व ब्रह्मांडो की रचना कबीर परमेश्वर ने की है जोकि मुझे सतगुरु रूप में मिले थे। संत गरीबदास जी की वाणी – 

अनन्त कोटि ब्रह्मण्ड का एक रति नहीं भार।

सतगुरु पुरुष कबीर हैं कुल के सृजन हार।।

कबीर परमेश्वर के दिये गए अद्भुत, अलौकिक, अद्वितीय आध्यात्मिक ज्ञान को जानने के लिए गूगल प्ले स्टोर से Sant Rampal Ji Maharaj App डाऊनलोड करें या संत रामपाल जी महाराज द्वारा लिखित पुस्तक “कबीर परमेश्वर” पुस्तक पढ़ें या आप कबीर परमेश्वर का दिया गया सम्पूर्ण ज्ञान जानने के लिए संत रामपाल जी महाराज के सत्संग सुनिये प्रतिदिन साधना टीवी चैनल पर रात्रि 7:30 – 8:30 PM और श्रद्धा mh1 चैनल दोपहर 2:00 – 3:00 PM

Latest articles

Shradh 2025 (Pitru Paksha): Shradh Karma Is Against Our Holy Scriptures!

From dates, ceremonies, and rituals to meaning and significance, know all about Shradh (Pitru Paksha).

Charlie Kirk Assassinated: Conservative Leader Shot Dead at Utah Valley University

Conservative activist Charlie Kirk, one of the most prominent voices of the U.S. right...

Engineers Day 2025: Know About The Principal Engineer Who Has Engineered This Entire Universe?

Engineers Day is about appreciating the efforts and the contributions of the engineers in building up the nation and the entire globe.
spot_img

More like this

Shradh 2025 (Pitru Paksha): Shradh Karma Is Against Our Holy Scriptures!

From dates, ceremonies, and rituals to meaning and significance, know all about Shradh (Pitru Paksha).

Charlie Kirk Assassinated: Conservative Leader Shot Dead at Utah Valley University

Conservative activist Charlie Kirk, one of the most prominent voices of the U.S. right...