Last Updated on 4 March 2024 IST: महर्षि दयानंद सरस्वती जयंती 2024 (Dayanand Saraswati Jayanti in Hindi): महर्षि दयानंद सरस्वती को समाज सुधारक एवं वेदों के अनुगामी के रूप में जाना जाता है। इनका जन्म 12 फरवरी 1824 को गुजरात राज्य के टंकारा में हुआ था। महर्षि दयानंद सरस्वती के विषय में अनेकों लेख, आलेख, पुस्तकें उपलब्ध हैं किंतु आज हम जानेंगे वह महत्वपूर्ण तथ्य जो अब तक हम और आप दयानंद सरस्वती के बारे में नहीं जानते थे।
दयानंद सरस्वती जयंती (Dayanand Saraswati Jayanti in Hindi): मुख्य बिंदु
- सत्यार्थ प्रकाश में लिखी हैं शर्मनाक बातें
- वेदों में किये अर्थ के अनर्थ
- सन्त रामपाल जी महाराज ने खोली दयानंद सरस्वती जी की पोल
- सन्त के लक्षण नहीं दयानन्द सरस्वती में
महर्षि दयानंद जयंती पर जानिए महर्षि दयानंद सरस्वती का जीवन परिचय
महर्षि दयानंद सरस्वती का वास्तविक नाम मूलशंकर था। वे अपना गृहत्याग करके साधु बनने निकल गए थे और बाद में उनका नाम दयानंद सरस्वती हुआ। दयानंद सरस्वती जी ने आर्य समाज की स्थापना की थी। उन्होंने वेदों का अनुवाद किया एवं वेदों की ओर चलो नारा उनका ही दिया हुआ है। महर्षि दयानंद सरस्वती को समाजसुधारक के रूप में भी जाना जाता है जिन्होंने विधवा विवाह का समर्थन और सती प्रथा का विरोध किया था। हालांकि अपनी पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश में उन्होंने पुनर्विवाह को अनुचित ठहराया है।
Dayanand Saraswati Jayanti [Hindi]: सत्यार्थ प्रकाश में नहीं है सम्मानजनक तथ्य
महर्षि दयानंद जयंती 2024: महर्षि दयानन्द जी की पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश में अप्रायोगिक यानी व्यवहार में ना लाये जा सकने वाली बातें लिखी हैं।
- पुस्तक में पुनर्विवाह को नकारते हुए नियोग को समाधान बताया है।
- विधवा स्त्री का ग्यारह पुरुषों से नियोग उचित बताया गया है।
- किसी का पति अधिक समय बाहर हो तो अन्य पुरुष से नियोग व सन्तानोत्पत्ति तथा अन्य नियोग सम्बन्धी बातें पुस्तक में बताई गईं हैं।
- 24 वर्ष की कन्या का 49 वर्ष के पुरुष से विवाह उत्तम बताया है।
- पुस्तक में नानकदेव जी, कबीर साहेब, ईसा मसीह, हजरत मुहम्मद के लिए अपमान जनक शब्दों का प्रयोग किया है।
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सन्त रामपाल जी महाराज ने किया महर्षि दयानंद सरस्वती के अज्ञान का पर्दाफाश
(Dayanand Saraswati Jayanti in Hindi): सन्त रामपाल जी महाराज ने महर्षि दयानंद सरस्वती के विचारों, इनकी पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश में लिखी असामाजिक बातों एवं वेदों के घुमा फिराकर अनुवाद करने का पूरा खुलासा अपने सत्संगों में किया एवं भोली जनता को कुमार्ग पर जाने से बचाया। दयानंद सरस्वती ने सत्यार्थ प्रकाश में वेद विरुद्ध ज्ञान दिया है। जहाँ वेदों में वर्णन है कि परमात्मा साकार है, पापों को नष्ट कर सकता है, क्षमा कर सकता है। परमात्मा पाप कर्म से हमारा नाश करने वाले हर कष्ट को दूर कर विषाक्त रोग को काटकर हमारे नाक, कान, मुख, जिह्वा, शीर्ष, मस्तिष्क सभी अंग-प्रत्यंगों की रक्षा कर सकते हैं। वहीं सत्यार्थ प्रकाश में दयानंद सरस्वती ने लिखा है कि परमात्मा निराकार है और पापों का दंड भोगना ही पड़ता है।
इसका प्रमाण ऋग्वेद, मंडल १०, सूक्त १६३, मंत्र १
अक्षीभ्यां ते नासिकाभ्यां कर्णाभ्यां छुबुकादधि ।
यक्ष्मं शीर्षण्यं मस्तिष्काज्जिह्वाया वि वृहामि ते ॥१॥
■ Read in English: Reality Of Maharishi Dayanand And His Social Reforms On Swami Dayanand Saraswati Jayanti
इसके अतिरिक्त भी वेदों का अनुवाद करते समय परमात्मा को कहीं कहीं मित्र लिख दिया है। दयानंद सरस्वती ने समाज पर उपकार नहीं बल्कि अपकार किया है और सन्त रामपाल जी महाराज ने जब यह सबके सामने रखा तो आर्य समाजियों ने बौखलाकर करौंथा कांड करवा दिया एवं उन पर झूठे मुकदमे लगा दिए। सत्य एवं सूर्य देर तक नहीं छिपते। सन्त रामपाल जी महाराज निर्दोष हैं एवं यह धीरे धीरे साबित भी हो चला है। इसी केस के चलते सुप्रीम कोर्ट ने संत रामपाल जी महाराज जी को दिसंबर 2022 में बाइज्ज़त बरी कर दिया है।
एक सच्चे सन्त के क्या लक्षण होते हैं?
दयानंद सरवस्ती साधु बन गए थे। साधु के लक्षण हमारे उपनिषदों में वर्णित हैं। इनमें एक लक्षण है अपरिग्रह जिसका अर्थ होता है संग्रह न करना। किंतु दयानंद सरवस्ती जी धन संग्रह करते थे। पुस्तक “श्री मत दयानंद प्रकाश” जिसके लेखक हैं- श्री सत्यानंद जी महाराज, प्रकाशक हैं सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा ⅗ महर्षि दयानंद भवन दिल्ली। इस पुस्तक के पृष्ठ 436 पर लिखा हुआ है कि एक बार कल्लू नामक सेवक उनके छह सात सौ रुपये लेकर भाग गया था। जबकि तब तक दयानंद जी सारे तन पर भस्म रमाये हुए साधु बन गए थे। उस समय इतनी रकम आज के लगभग 5 लाख के बराबर थी।
Dayanand Saraswati Jayanti in Hindi: शूद्रों से बैर एवं धनी राजाओं से मित्रता रखते थे महर्षि दयानंद सरस्वती?
महर्षि दयानंद जयंती (Dayanand Saraswati Jayanti in Hindi): धन संचय करना निश्चित ही सन्त के लक्षणों में से नहीं है। दयानन्द सरस्वती शूद्रों को भक्ति योग्य नहीं समझते थे किन्तु राजाओं को अपने बराबर बिठाते और उन्हें सम्मान देते थे। वे राजाओं से भारी भरकम दक्षिणा भी स्वीकार करते थे। राजा यशवंत सिंह, जोधपुर ने सौ रुपये एवं पांच स्वर्ण मुद्रा इन्हें भेंट की थी। उपरोक्त पुस्तक के पृष्ठ 426-427 में इसका वर्णन है। स्वामी जी भांग खाते, तम्बाकू का नशा करते थे और चिलम भी पीते थे जबकि किसी भी प्रकार का नशा करना न केवल अशोभनीय है बल्कि यह मोक्ष मार्ग में बाधक भी है।
स्वामी दयानंद सरस्वती की मृत्यु कैसे हुई?
अपने जीवन के अंतिम वर्षों में स्वामी दयानंद सरस्वती अत्यंत पीड़ित हुए। पुस्तक ‘श्री मत दयानंद प्रकाश’ के अनुसार मृत्यु के एक माह पहले से ही दयानंद सरस्वती का स्वास्थ्य असहज था। प्रत्येक दवा उन पर विपरीत असर कर रही थी। स्वामी जी के पूरे शरीर, कंठ, जीभ एवं मुख में छाले हो गए थे। मल मूत्र भी असमय ही निकल रहा था। इस तरह की महापीड़ा को भोगकर दयानंद सरवस्ती का निधन संवत 1940 अश्विन वदी (कृष्णा) 14 से कार्तिक अमावस्या तक अत्यंत कष्ट भोगकर हुआ।
Dayanand Saraswati Jayanti in Hindi | क्या गृहत्याग से मोक्ष सम्भव है?
आदरणीय सन्त गरीबदास जी ने कहा है कि यदि गृहस्थ जीवन छोड़ने से मोक्ष होता तो सबसे पहले किन्नरों का मोक्ष होता। गृहत्याग करके भक्ति करने की परंपरा गलत है क्योंकि ध्रुव, प्रह्लाद आदि भक्तों ने गृहस्थ आश्रम में ही भक्ति की। गीता भी कर्म करते हुए भक्ति करने के लिये कहती है। महर्षि दयानंद सरस्वती ने गृहत्याग किया और अनेकों गुरु बनाए किन्तु अंततः दुर्गति हुई। वेदों का अनुवाद किया और वे ये नहीं समझ पाए कि तत्वदर्शी सन्त के क्या लक्षण हैं। परमात्मा के गुणों को ही वे सत्यार्थ प्रकाश में उलट देते हैं। वे नशा करना बुरा नहीं मानते जबकि यह मोक्ष प्राप्ति में बाधक है। गृहत्याग से मोक्ष सम्भव ही नहीं है। मोक्ष के लिए परम आवश्यक है तत्वदर्शी सन्त का मिलना और उनसे तत्वज्ञान प्राप्त करना।
कैसे ऐसे होगा मोक्ष?
मोक्ष के लिए न जंगल जाने की आवश्यकता है न हठयोग करने की, न गृहत्याग की आवश्यकता है न अनेकों गुरु धारण करने की। इसके लिए किसी भाषा विशेष का ज्ञान होना भी आवश्यक नहीं है। एक साधारण व्यक्ति अपने गृहस्थ आश्रम में रहते हुए भी मोक्ष पा सकता है। इसके लिए तत्वदर्शी सन्त की शरण ग्रहण करने की आवश्यकता होती है। केवल तत्वदर्शी संत ही शास्त्रों में लिखे गूढ़ अर्थों को सरल करके बता सकता है। गीता अध्याय 17 श्लोक 23 के अनुसार तीन सांकेतिक मन्त्रों से ही मोक्ष सम्भव है।
अतः सबसे पहले तत्वदर्शी सन्त की खोज करनी चाहिए तत्पश्चात उसके द्वारा बताई गई भक्ति विधि का पालन करना चाहिए। इस प्रकार किसी भी साधक का उसके लिंग, धर्म, जाति से परे मोक्ष सम्भव है।
वर्तमान में कौन कर रहा है आर्य समाज की स्थापना?
वर्तमान में एकमात्र पूर्ण तत्वदर्शी सन्त रामपाल जी महाराज हैं जो समस्त विश्व को शास्त्रों, वेदों और गीता के अनुसार ज्ञान देकर तथा समाज में व्याप्त बुराई जैसे कि बीड़ी, तंबाकू, शराब, नशा, दहेज प्रथा, भ्रूण हत्या, घरेलू हिंसा इत्यादि बुराइयों को समाप्त कर पूरे विश्व को आर्य समाजी (श्रेष्ठ सामाज) बना रहे हैं। संत रामपाल जी महाराज वास्तव में एक आर्य अर्थात श्रेष्ठ समाज की स्थापना कर रहे हैं। यथाशीघ्र उनसे नामदीक्षा लें और अपने जीवन का कल्याण कराएं। तत्वदर्शी संत को अपना गुरू बनाएं क्योंकि केवल तत्वदर्शी संत ही वेदों का पूर्ण ज्ञाता होता है। अधिक जानकारी के लिए देखें सतलोक आश्रम यूट्यूब चैनल।
FAQ दयानंद सरस्वती से जुड़ी प्रश्नोत्तरी
आर्य समाज का आदर्श वाक्य है: कृण्वन्तो विश्वमार्यम्, जिसका अर्थ है – विश्व को आर्य बनाते चलो। (विश्व को आर्य (श्रेष्ठ) बनाते चलो।)
दयानंद सरस्वती परमात्मा को निराकार मानते थे जबकि परमात्मा साकार है, नर स्वरुप है अर्थात् मनुष्य जैसे आकार का है।
दयानंद सरस्वती गुरु नानक देव तथा कबीर परमेश्वर जी के ज्ञान, पूजा भक्ति विधि को अच्छा नहीं मानते थे।
स्वामी दयानंद सरस्वती के अनुसार भक्ति करने से रोग नहीं कटते, हालांकि वेदों में लिखा है कि परमात्मा पाप और रोग नाशक है इसका प्रमाण ऋग्वेद, मंडल १०, सूक्त १६३, मंत्र १ में है।