Chitragupta Puja (Hindi): जानें कौन है वह सतगुरु जो चित्रगुप्त के कागज़ भी फाड़ सकता हैं?

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भारत में बहुतायत में मनाये जाने वाले प्रमुख त्योहार दीपावली या दिवाली के दो दिन बाद ही चित्रगुप्त पूजा (Chitragupta Puja) लोकवेद के अनुसार की जाती है। आज इस आज इस लेख में हम जानेंगे कि चित्रगुप्त कौन हैं? उनका क्या कार्य है? कौन है वह सतगुरु जो चित्रगुप्त के कागज़ भी फाड़ सकता हैं? उनकी पूजा क्यों की जाती है एवं कहां तक सही है। 

Chitragupta Puja 2021: मुख्य बिंदु

  • 6 नवंबर 2021, शनिवार को मनाई गई चित्रगुप्त पूजा
  • जाने कौन है चित्र और गुप्त
  • धर्मराय लेगा लेखा
  • भक्ति गृहस्थ आश्रम में करें

कौन हैं चित्रगुप्त?

चित्रगुप्त वास्तव में धर्मराय के दो पुत्र चित्र और गुप्त हैं जिनके पास प्रत्येक जीव के प्रत्येक कर्म का लेखा-जोखा होता है। इस जानकारी को वे सदैव आपने पास रखते हैं एवं इससे अंत समय जीवात्मा के प्रत्येक कर्म का हिसाब होता है। चित्रगुप्त के पास पूरी सृष्टि के जीवों का हिसाब होता है। आइए विस्तार से जानें।

क्या है चित्रगुप्त पूजा (Chitragupta Puja)

दीपावली के दो दिन बाद यानी भाईदूज के दिन चित्रगुप्त पूजा (Chitragupta Puja) लोग विशेषकर कायस्थ समाज के लोग करते हैं। लोकवेद के अनुसार यमराज ने अपनी बहन यमुना को ये आशीर्वाद दिया था कि जो भाई अपनी बहन के घर जाकर इस दिन तिलक लगवायेगा एवं भोजन करेगा उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं होगा। भगवान यम के सहायक हैं चित्रगुप्त अतः इस दिन उनकी पूजा करने का विधान भी चल पड़ा। लोग चित्रगुप्त के मंदिरों जो कि हैदराबाद का स्वामी चित्रगुप्त मंदिर, उत्तर प्रदेश का फैज़ाबाद सिहिती धर्महरि चित्रगुप्त मंदिर और तमिलनाडु के कांचीपुरम में स्थित चित्रगुप्त मंदिर भी जाते हैं। चित्रगुप्त का कार्य लेखा-जोखा रखने का है इस कारण इसे लोग लेखन से जोड़कर भी देखने लगे। लेखन से जुड़ा कार्य होने के कारण लेखनी और दवात की पूजा इस अवसर पर प्रारम्भ कर दी गई। इतिहास में लेखन कार्य अधिकांशतः कायस्थ समाज करता था इस कारण उन्होंने स्वयं को चित्रगुप्त का वंशज माना। बहुत ही सरलता से समझा जा सकता है कि सभी चरित्र एवं घटनाएं आपस में एक दूसरे से जोड़ दिए गए हैं।

अकाल मृत्यु, भाई दूज और चित्रगुप्त

देश भर में लगभग सभी भाई अपनी बहनों से तिलक लगवाकर भाईदूज या यम द्वितीया मनाते हैं। यदि यह सत्य है कि अकाल मृत्यु ऐसा करने से टलती तो दुर्घटनाओं में, सीमा पर, सड़क दुर्घटनाओं में, अचानक बीमारियों से कोई भी व्यक्ति नहीं मरता। वेदों में लिखा है कि वास्तव में विधि का विधान कोई नहीं टाल सकता सिवाय पूर्ण परमात्मा के। प्रत्येक व्यक्ति का भाग्य जन्म से पहले निर्धारित होता है जिसमें फेर बदल करना स्वयं ब्रह्मा विष्णु और महेश के पिता ज्योति निरजंन के वश का भी नहीं है। भाग्य का लिखा केवल पूर्ण परमेश्वर कविर्देव ही टाल सकते हैं। 

सतगुरु जो चाहें सो करही ,चोदह कोट दूत जम डरही।
उत भूत यम त्रास निवारे, चित्रगुप्त के कागज फाड़े।।

व्यक्ति के कर्मों के हिसाब से ही उसके भाग्य का निर्णय किया जाता है और इन कर्मों का हिसाब रखते हैं चित्र और गुप्त। पृथ्वी पर कदम रखने मात्र से ही करोड़ों जीव नष्ट हो जाते हैं। इन अनजाने में किये कार्यों का लेखा जोखा भी लिखा जाता है। वे सभी पाप जो अनजाने में होते हैं उन्हें भी जीव के खाते में लिखा जाता है। अनजाने में हुए कर्मों एवं अन्य कर्मबन्धन से केवल पूर्ण परमेश्वर कविर्देव की भक्ति कर रहे सत्य साधक ही बच सकते हैं।

Chitragupta Puja पर जाने कैसे धर्मराय लेगा लेखा?

इतिहास बेशक गौरवशाली है और हमारे पूर्वज निश्चित ही विद्वान थे। किंतु हर एक परंपरा को आंखें मूंदकर स्वीकार करने के चक्कर मे हमने हमारे वेदों को दरकिनार कर दिया है। हमने यह जानने की चेष्टा नहीं की कि चित्रगुप्त जी क्या करते हैं? उनकी उपासना क्यों की जाती है तथा वेदों में उपरोक्त विषयों में क्या वर्णन है?

चित्रगुप्त पूजा (Chitragupta Puja) मृत्यु के तुरंत बाद यमदूत आत्मा को धर्मराय के दरबार मे पेश करते हैं जहाँ चित्रगुप्त द्वारा संग्रहित लेखा-जोखा पहुँच चुका होता है। उन कर्मों के हिसाब से आत्मा को स्वर्ग या नरक भेजा जाता है जहाँ वे अपना किया हुआ भोगकर पुनः चौरासी लाख योनियों में आते हैं। आत्मा का चौरासी लाख योनियों में अगला जन्म गधे, सुअर, कुत्ते या अन्य का होना भी उसके कर्मों के हिसाब से ही तय होता है। 

जीवात्मा का सूक्ष्म रूप होता है किन्तु उस शरीर मे कष्ट भी अत्यधिक होता है। सर्वप्रथम तो शरीर न छोड़ पाने की स्थिति में यमदूत बुरी तरह पीटते हुए बांधकर यमराज के समक्ष पेश करते हैं और उसके बाद धर्म, कर्म, भक्ति, पाप पुण्य का हिसाब होता है जिसके लिए सजाएँ भी निर्धारित हैं। शास्त्रों में पहले ही चेताया गया है कि तत्वदर्शी सन्त से नामदीक्षा लेकर सच्चिदानंद घनब्रह्म की भक्ति करनी चाहिए (गीता अध्याय 17:23)। 

आदरणीय सन्त गरीबदास जी महाराज ने समझाया है-

गरीब, नर से फिर पशुवा कीजै, गधा-बैल बनाय |

छप्पन भोग कहाँ मन बोरे, कुरड़ी चरने जाय ||

गरीब, तुमने उस दरगाह का महल न देखा |

धर्मराज कै तिल-तिल का लेखा ||

भक्ति गृहस्थ आश्रम में करें

लोग यह सोचते हैं कि जो हमारे माता पिता या पूर्वज करते आ रहे हैं हम भी वही करें। दो चार गलत साधनाएँ जैसे व्रत, मूर्तिपूजा, जागरण आदि जो गीता में वर्जित हैं उन्हें करके स्वयं का उद्धार समझने वाले भोले प्राणियों यदि व्रत करने से आयु बढ़ती तो लोगों की मृत्यु न होती, लोग अकाल पड़ने से भूखे नहीं मरते, यदि ऐसी साधनाओं से मोक्ष होता तो वेदों को लिखने की क्या आवश्यकता थी। आज अधिकांश मानव समाज द्वारा की जा रही साधनाएँ वेद विरुद्ध हैं। ब्रह्मा, विष्णु, महेश, आदिशक्ति सभी गृहस्थी हैं फिर भला आम समाज क्यों भक्ति के नाम से वन गमन की कामना करता है? आदरणीय सन्त गरीबदास जी ने समझाया है कि

गरीब, गाड़ी बाहो घर रहो, खेती करो खुशहाल |

सांई सिर और राखिये, सही भगत हरलाल ||

भावार्थ है कि गरीबदास जी महाराज कहते हैं, परमात्मा प्राप्ति के किये घर त्यागने की आवश्यकता नहीं है। अपना खेती का कार्य तथा गाड़ी बहाने (ट्रांसपोर्ट) का कार्य खुशी-खुशी करो। घर पर रहो और परमात्मा की भक्ति जो मैं बताऊँ, वह करते रहो। आप सही भक्त कहलाओगे। यही आदेश गीता में है और यही प्रमाण यजुर्वेद अध्याय 40 मन्त्र 15 में है।

तत्वदर्शी सन्त धारण करके होगा पूर्ण मोक्ष

समय रहते तत्वदर्शी सन्त धारण करके मनुष्य जन्म का सदुपयोग किया जा सकता है जिससे इस जन्म के कष्टों, दुखों से निजात मिलेगी और पूर्ण मोक्ष होगा।

परमात्मा की सत्य साधना करने वाले भक्तों को यमदूत नहीं ले जा सकते क्योंकि बन्दीछोड़ यानी बन्धनों के शत्रु (यजुर्वेद अध्याय 5 मन्त्र 32) के भक्त तो अमरलोक की तैयारियां कर रहे होते हैं एवं चौरासी लाख योनियों के फेर में नहीं आते क्योंकि उनके सभी कर्म बन्धनों को पूर्ण परमेश्वर सदा के लिए खत्म कर देते हैं।

सन्त रामपाल जी महाराज से लें नामदीक्षा

अतः सन्त रामपाल जी महाराज का तत्वज्ञान समझें, उनसे नामदीक्षा लेकर  ना कल्याण करवाएं एवं पूर्व पाप कर्मबन्धन से छुटकारा पाएं। अधिक जानकारी के लिए देखें सतलोक आश्रम यूट्यूब चैनल।

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