HomeBlogsChaitra Navratri 2020-चैत्र नवरात्रि पर जानिए व्रत करना कितना उचित?

Chaitra Navratri 2020-चैत्र नवरात्रि पर जानिए व्रत करना कितना उचित?

Date:

आज हम आप को chaitra navratri 2020 (चैत्र नवरात्रि) पर बताएंगे की कैसे आप चैत्र नवरात्रि पर मां दुर्गा को प्रसन्न कर सकते हैं? क्या वाकई नवरात्रि पर व्रत (vrata) करना उचित हैं? आखिर वह कौन सी Pooja Vidhi व मंत्र (mantra) है, जिससे मां दुर्गा (Mata Durga) प्रसन्न होती हैं? आइये जानते है विस्तार से.

Chaitra Navratri 2020 (चैत्र नवरात्रि) क्या है?

चैत्र नवरात्रि (Chaitra Navratri) एक हिन्दू पर्व है। साल में दो बार आने वाले नवरात्रि में से चैत्र के नवरात्रि विशेष माने जाते हैं । हिन्दू मान्यताओं के अनुसार पहले नवरात्रि के दिन से हिन्दू नव वर्ष की शुरुआत मानी जाती है। हिन्दू इन नौ दिनों में माँ दुर्गा (mata durga) के नौ अलग -अलग रूपों की पूजा व अर्चना करते हैं।

Chaitra Navratri (चैत्र नवरात्रि) 2020 कब है?

चैत्र नवरात्रि (Chaitra Navratri) 25 मार्च से शुरू हो चुके हैं और 2 अप्रैल रामनवमी 2020 के साथ इनका समापन होगा। इन दिनों का दुर्गा देवी की पूजा करने वाले बहुत ही श्रद्धा के साथ पालन करते हैं। हिन्दू धर्म के लोगों का मानना है कि माँ दुर्गा इन नौ दिनों में उनके घर में आशीर्वाद देने के लिए विराजमान होती हैं। जबकि परमात्मा तो सब जगह और प्रत्येक आत्मा के साथ रहता है। देवी-देवताओं का आह्वान नौ दिन के लिए करना और वर्ष के अन्य दिन न करना सही नहीं है। पूर्ण परमात्मा की भक्ति साफ दिल से हर रोज़ करनी चाहिए ऐसा न करने वाले नौ दिन देवी पूजन करके कुछ प्राप्त नहीं कर पाएंगे।

“यो हरहट का कुंआ लोई,
या गल बंधा है सब कोई”।।

Chaitra Navratri 2020 पर जानिए चैत्र नवरात्रि का महत्व (importance)

भारत को महान ऋषियों की भूमि भी कहा जाता है। यहां महान ऋषि मुनिओं, साधु- संतों आदि ने जन्म लिया। भारत में सभी धर्मों का विशेष आदर किया जाता है।

■ Chaitra Navratri 2020 importance in Hindi: अगर हिन्दू मान्यताओं की मानें तो उनके अनुसार नवरात्रि हमारी जिंदगी में नई खुशियाँ और नई उमंग लेकर आते हैं। हिंदू माँ दुर्गा की पूजा, उन्हें खुश कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए करते हैं।

क्या माँ दुर्गा (Mata Durga) संकट मोचन है?

दुर्गा जी को जगत जननी, प्रकृति देवी, अष्टंगी, मां भवानी आदि नामों से भी पुकारा जाता है। हिन्दू धर्म के लोगों का मानना है कि अगर नवरात्रि में पूरे नौ दिन व्रत रखे जाएं तो उनके जीवन में आ रही हर तरह की समस्या खत्म हो जाती है। जबकि वर्तमान स्थिति को देखकर ऐसा नहीं लगता कि वाकई में दुर्गा जी (Mata Durga) ऐसा करने में समर्थ हैं। यदि वह समर्थ देवी होती तो भारत देश में उनकी पूजा करने वाले यूं काल के सताए न होते। प्रत्येक स्थिति में हमारी रक्षा करने में केवल पूर्ण परमात्मा ही समर्थ हैं।

श्री भगवत गीता अध्याय 6 के श्लोक 16 में किसी भी प्रकार के व्रत की मनाही है.

पूर्ण परमात्मा पाप नष्ट कर सकता है – यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13

कबीर साहिब कहते हैं –

कबीर,जबही सत्यनाम हृदय धरयो,भयो पाप को नास।
मानौं चिनगी अग्निकी, परी पुराने घास।।

■ सत्यनाम जो मोक्षदायक मंत्र है , का जाप करने से साधक सभी तरह के पाप कर्मों की मार से बच सकता है।

कीड़ी कुजंर और अवतारा, हरहट डोरी बंधे कई बारा। अरब अलील इन्द्र हैं भाई, हरहट डोरी बंधे सब आई।।
कोटिक कर्ता फिरता देख्या, हरहट डोरी कहूँ सुन लेखा।

क्या सच में नवरात्रि पर्व (Chaitra Navratri) मनाने से सर्व संकट दूर हो जाते हैं?

अगर हम हिन्दू धर्म शास्त्रों को गहराई से पढ़ें तो यह प्रमाण मिलता है कि किसी भी प्रकार का तीर्थ भ्रमण, गंगा स्नान, दुर्गा पूजन और व्रत करना मना किया गया है। गीता ज्ञान दाता कहता है जो मनुष्य तीर्थ, व्रत आदि क्रियाएं करते हैं वो विवेकहीन, दुष्ट, श्रद्धाहीन प्राणी विनाश को प्राप्त हो जायेंगे तथा वह अपना अनमोल मनुष्य जीवन शास्त्र विरुद्ध साधना में बर्बाद कर जायेंगे।

व्रत करे से मुक्ति हो तो अकाल पड़े क्यों मरते है।
पाखंड पूजा ये सालिग सेवा अनजाने में करते हैैं।

■ पवित्र श्रीमद देवी महापुराण तीसरा स्कंद अध्याय 3 ( गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित, अनुवादकर्ता श्री हनुमान प्रसाद तथा चिमन लाल गोस्वामी जी , तीसरा स्कंद पृष्ठ नं 123) पर श्री विष्णु जी ने दुर्गा जी की स्तुति करते हुए कहा है:- तुम शुद्ध स्वरूपा हो, यह सारा संसार तुम्हीं से उद्भासित हो रहा है, मैं (विष्णु), ब्रह्मा और शंकर हम सभी तुम्हारी कृपा से ही विद्यमान हैं। हमारा आविर्भाव (जन्म) और तिरोभाव (मृत्यु) हुआ करता है अर्थात् हम तीनों देव नाशवान हैं, केवल तुम ही नित्य (अविनाशी) हो, जगत जननी हो, प्रकृति देवी हो।

इस से यह सिद्ध होता है कि श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी और श्री शिव जी नाशवान हैं, दुर्गा उनकी माता है तथा ब्रह्म (काल-सदाशिव) इनका पिता है। संपूर्ण सृष्टि के अंतर्गत आने वाले देवतागण पूर्ण ब्रह्म परमात्मा के आधीन हैं परंतु यह काल बल पूर्वक देवी-देवताओं और दुर्गा को अपने वश किए हुए है। यह स्वतंत्र नहीं हैं। दुर्गा भी काल के आधीन है। ( अधिक जानकारी हेतु पढ़ें पुस्तक ज्ञान गंगा)।

चतुर्भुजी भगवान कहावैं, हरहट डोरी बंधे सब आवैं।। यो है खोखापुर का कुंआ, या में पड़ा सो निश्चय मुवा।

कौन है असली सुखदायी परमात्मा?

विश्वभर में लोग अपनी मनमुखी साधना करने को श्रेष्ठ मानकर उसी को करने में लगे हुए हैं परंतु क्या हम इन साधनाओं को करने से वो सुख और शांति प्राप्त कर रहे हैं, जिसकी तलाश हमेशा से हमारी आत्मा को रही है। हम सभी यहां अपने अपने परिवार के साथ मौज-मस्ती, संपन्नता और स्वस्थ जीवनशैली जीना चाहते हैं। सच आपके समक्ष है कि कितने ही परिवार गलत साधना करते हुए प्रतिदिन विभिन्न कारणों से मृत्यु को प्राप्त होते हैं। वह भगवान या देवता जिसकी वह पूजा करते हैं उनके जीवन की रक्षा नहीं कर पाता।

कारण है कि वह देवी- देवता समर्थ भगवान नहीं है जो व्यक्ति के प्राणों की रक्षा कर सकें। यहां व्यक्ति को केवल कर्म आधार पर ही उसका फल मिलता है। यदि दुर्घटना के बाद जान बचती है तो कारण यह नहीं कि फलां देवी देवता की भक्ति करने के कारण जान बची बल्कि कारण यह है कि अभी उसके श्वांस शेष थे।

कबीर, कर्म फांस छूटे नहीं, केतो करो उपाय।
सद्गुरू मिले तो उबरै, नहीं तो प्रलय जाय।।

■ परमेश्वर कबीर साहेब जी कहते हैं, अन्य प्रभु तो केवल किए कर्म का फल ही दे सकते हैं। जैसे प्राणी को दुःख तो पाप से होता है तथा सुख पुण्य से। आपको पाप कर्म के कारण कष्ट था। यह आपके प्रारब्ध में लिखा था। यह किसी भी अन्य भगवान से ठीक नहीं हो सकता था। पाप केवल पूर्ण ब्रह्म परमात्मा ही काट सकता है।

केवल पूर्ण परमात्मा ही रोग काट कर जीवन बढ़ा सकता है

मनीषिभिः पवते पूव्र्यः कविर् नृभिः यतः परि कोशान् सिष्यदत् त्रि तस्य नाम जनयन् मधु क्षरनः न इन्द्रस्य वायुम् सख्याय वर्धयन्।

इस मन्त्र में स्पष्ट किया है कि पूर्ण परमात्मा कविर अर्थात् कबीर मानव शरीर में गुरु रूप में प्रकट होकर प्रभु प्रेमीयों को तीन नाम का जाप देकर सत्य भक्ति कराता है तथा उस मित्र भक्त को पवित्र करके अपने आर्शीवाद से पूर्ण परमात्मा प्राप्ति करवाता है और पूर्ण सुख प्राप्त कराता है। साधक की आयु भी बढ़ाता है।

■ पूर्ण परमात्मा आयु बढ़ा सकता है और कोई भी रोग को नष्ट कर सकता है। ऋग्वेद मण्डल 10 सुक्त 161 मंत्र 2, 5, सुक्त 162 मंत्र 5, सुक्त 163 मंत्र 1 – 3

हिंदू इन दिनों मांस,अंडा, बीड़ी, सिगरेट,शराब, लहसुन व प्याज़ खाने से परहेज़ करते हैं। जबकि शराब ,सिगरेट, गुटका पान मसाला,बीड़ी और किसी भी प्रकार का नशा तो कभी किसी मनुष्य को करना भी नहीं चाहिए क्योंकि हमारे शरीर में परमात्मा वास करते हैं और नशे का प्रयोग शरीर में धुंआ और अवरोध उत्पन्न कर देवी-देवताओं और परमात्मा पाने के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है।

यह भी पढें: Navratri 2019 Puja in Hindi

रही बात प्याज़ और लहसुन खाने की वह तो पृक्रति द्वारा उत्पन्न सब्ज़ी है जिसे खाने से हाज़मा सही बना रहता है और किसी वेद आदि धर्म ग्रंथ में इसे खाने की मनाही नहीं है। सभी धर्म ग्रंथों में जीव हत्या निषेध बताई गई है जो किसी भी मनुष्य को नहीं करनी चाहिए न ही मांस को भोजन रूप में खाना चाहिए।

■ जानिए हमारे शरीर में कौन से कमल कहां बसते हैं और इनमें बसे देवी-देवता हमें कैसे लाभ प्रदान करते हैं?

  1. मूल कमल में गणेश जी
  2. स्वाद कमल में सावित्री-ब्रह्मा जी
  3. नाभि कमल में लक्ष्मी तथा विष्णु जी
  4. हृदय कमल में पार्वती और शिव जी
  5. कण्ठ कमल में दुर्गा (अष्टंगी)

इन कमलों से हम लाभ तब ही प्राप्त कर सकेंगे जब हम इनका ऋण अदा कर देंगे। इनको जागृत करने के लिए सही मंत्रों का जाप करना आवश्यक होता है जो केवल तत्वदर्शी संत के द्वारा दिया जाता है। वह मंत्र 3 चरणों में देते हैं। प्रथम उपदेश से आप के सर्व कमल खिल जायेंगे अर्थात् आप ऋण मुक्त हो जाओगे। जब आप अन्त समय में शरीर छोड़कर चलोगे तो आप का रास्ता साफ मिलेगा अर्थात् आप के सर्व ऋण मुक्त प्रमाण-पत्र तैयार मिलेगा। दूसरे चरण में सतनाम प्रदान किया जाता है। जो दो मंत्र का है। एक ॐ (ओ3म्) + दूसरा तत् जो सांकेतिक है, केवल साधक को ही बताया जाता है।

तीसरे चरण में सार नाम दिया जाता है जो तीन मंत्र का है। ओ3म्-तत्-सत् (तत्-सत् सांकेतिक हैं जो साधक को ही बताए जायेंगे)।
इस प्रकार सारनाम (जो तीन मंत्र का बन जाएगा) के स्मरण अभ्यास से साधक परम दिव्य पुरुष अर्थात् पूर्ण परमात्मा को प्राप्त होगा तथा सतलोक में परम शान्ति अर्थात् पूर्णमोक्ष को प्राप्त हो जायेगा।

वर्तमान में यह वास्तविक साधना तत्त्वदर्शी संत के अतिरिक्त किसी के पास नहीं है। वर्तमान में पृथ्वी पर एक ही तत्त्वदर्शी संत हैं जिनका नाम संत रामपाल महाराज जी है। गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में भी गीता ज्ञान दाता ने अर्जुन को तत्त्वदर्शी संत की तलाश करने को कहा है वो अपने से अन्य ‘परम अक्षर ब्रह्म’ की शरण में जाने के लिए कह रहा है।

ब्रह्मा, विष्णु, शिव, सदाशिव और‌ दुर्गा की स्थिति

■ श्री शिव महापुराण विद्येश्वर संहिता अध्याय 6 से 9 में (अनुवाद कर्ता विद्यावारिधि पं. ज्वाला प्रसाद जी मिश्र, प्रकाशक=खेमराज श्री कृष्ण दास प्रकाशन बम्बई- 400004 पृष्ठ 11.13-14‘‘:- शिव पुराण से प्रमाण

  • सदाशिव अर्थात् काल रूपी ब्रह्म, श्री ब्रह्मा, श्री विष्णु तथा श्री महेश जी का जनक (पिता) है।
  • प्रकृति अर्थात् दुर्गा जिसकी आठ भुजाएें हैं यह श्री ब्रह्मा, श्री विष्णु तथा श्री शंकर (रूद्र) जी की जननी (माता) है।
  • दुर्गा को प्रधान, प्रकृति, शिवा भी कहा जाता है।
  • श्री ब्रह्मा, श्री विष्णु तथा श्री महेश ईश (भगवान) नहीं हैं क्योंकि खेमराज श्री कृष्णदास प्रकाशन बम्बई वाली श्री शिवपुराण में श्री शिव अर्थात् काल ब्रह्म ने कहा है कि हे ब्रह्मा तथा विष्णु तुमने अपने आप को ईश (भगवान) माना है यह ठीक नहीं है अर्थात् तुम प्रभु नहीं हो।
  • श्री शिव अर्थात् काल ब्रह्म से भिन्न तथा इसी के आधीन तीनों देवता (ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश/रूद्र) हैं।
  • श्री ब्रह्मा, विष्णु ने जो उपाधी प्राप्त की है यह तप करके प्राप्त की है। जो ब्रह्म काल अर्थात् सदाशिव द्वारा तप के प्रतिफल में प्रदान की गई है।
  • सदाशिव अर्थात् महाशिव ही ब्रह्म है यही काल रूपी ब्रह्म है। दुर्गा ने अपनी शब्द (वचन) शक्ति से सावित्री, लक्ष्मी, पार्वती को उत्पन्न किया।
  • श्री ब्रह्मा जी से सावित्री, श्री विष्णु जी से लक्ष्मी तथा श्री महेश/रूद्र से पार्वती/काली का विवाह किया गया।
  • श्री ब्रह्मा, श्री विष्णु तथा श्री महेश को क्षमा करने का अधिकार नहीं है। केवल कर्म फल ही प्रदान कर सकते हैं।
  • श्री ब्रह्मा रजगुण, श्री विष्णु सतगुण तथा श्री महेश/रूद्र तमगुण युक्त हैं।
  • ब्रह्मा, विष्णु ,शिव जीव को कर्म बंधन में बांधने रखते हैं

■ गीता अध्याय नं. 15 का श्लोक नं. 2:

अधः, च, ऊर्ध्वम्, प्रसृताः, तस्य, शाखाः, गुणप्रवृद्धाः, विषयप्रवालाः, अधः, च, मूलानि, अनुसन्ततानि, कर्मानुबन्धीनि, मनुष्यलोके।।

अनुवाद : (तस्य) उस वृक्षकी (अधः) नीचे (च) और (ऊर्ध्वम्) ऊपर (गुणप्रवृद्धाः) तीनों गुणों ब्रह्मा-रजगुण, विष्णु-सतगुण, शिव-तमगुण रूपी (प्रसृता) फैली हुई (विषयप्रवालाः) विकार- काम क्रोध, मोह, लोभ अहंकार रूपी कोपल (शाखाः) डाली ब्रह्मा, विष्णु, शिव (कर्मानुबन्धीनि) जीवको कर्मोमें बाँधने की (अपि) भी (मूलानि) जड़ें मुख्य कारण हैं (च) तथा (मनुष्यलोके) मनुष्यलोक अर्थात् पृथ्वी लोक में (अधः) नीचे – नरक, चौरासी लाख जूनियों में (ऊर्ध्वम्) ऊपर स्वर्ग लोक आदि में (अनुसन्ततानि) व्यवस्थित किए हुए हैं।

■ सन्त गरीबदास जी महाराज की वाणी में दुर्गा के परिवार का विस्तृत वर्णन (सत ग्रन्थ साहिब पृृष्ठ नं. 690 से सहाभार)

माया आदि निरंजन भाई, अपने जाऐ आपै खाई।
ब्रह्मा विष्णु महेश्वर चेला, ऊँ सोहं का है खेला।।
सिखर सुन्न में धर्म अन्यायी, जिन शक्ति डायन महल पठाई।।
लाख ग्रास नित उठ दूती, माया आदि तख्त की कुती।।
सवा लाख घडि़ये नित भांडे, हंसा उतपति परलय डांडे।
ये तीनों चेला बटपारी, सिरजे पुरुषा सिरजी नारी।। खोखापुर में जीव भुलाये, स्वपन बहिस्त वैकुंठ बनाये।

भावार्थ :- ज्योति निरंजन (कालबलि) के वश होकर के ये तीनों देवता (रजगुण-ब्रह्मा, सतगुण-विष्णु, तमगुण-शिव) अपनी महिमा दिखाकर जीवों को स्वर्ग नरक तथा भवसागर में (लख चौरासी योनियों में) भटकाते रहते हैं। ज्योति निरंजन अपनी पत्नी दुर्गा अर्थात् माया के संयोग से नागिनी की तरह जीवों को पैदा करता है और फिर मार देता है। जिस प्रकार नागिनी अपनी कुण्डली बनाती है तथा उसमें अण्डे देती है और फिर उन अण्डों पर अपना फन मारती है।

जिससे अण्डा फूट जाता है और उसमें से बच्चा निकल जाता है। उसको नागिनी खा जाती है। फन मारते समय कई अण्डे फूट जाते हैं क्योंकि नागिनी के काफी अण्डे होते हैं। जो अण्डे फूटते हैं उनमें से बच्चे निकलते हैं यदि कोई बच्चा कुण्डली (सर्पनी की दुम का घेरा) से बाहर निकल जाता है तो वह बच्चा बच जाता है नहीं तो कुण्डली में वह (नागिनी) छोड़ती नहीं। जितने बच्चे उस कुण्डली के अन्दर होते हैं उन सबको खा जाती है।

इसी प्रकार यह कालबली का जाल है। निरंजन तक की भक्ति संत से नाम लेकर करेगें तो भी इस निरंजन की कुण्डली (इक्कीस ब्रह्मण्डों) से बाहर नहीं निकल सकते। स्वयं ब्रह्मा, विष्णु, महेश, आदि माया शेराँवाली भी निरंजन की कुण्डली में है। ये बेचारे अवतार धार कर आते हैं और जन्म-मृत्यु का चक्कर काटते रहते हैं। इसलिए विचार करें सोहं जाप जो कि ध्रूव व प्रहलाद व शुकदेव ऋषि ने जपा।

वह भी पार नहीं हुए। काल लोक में ही रहे तथा ‘ऊँ नमः भगवते वासुदेवायः’ मन्त्र जाप करने वाले भक्त भी कृष्ण तक की भक्ति कर रहे हैं, वे भी चौरासी लाख योनियों के चक्कर काटने से नहीं बच सकते। यह परम पूज्य कबीर साहिब जी व आदरणीय गरीबदास साहेब जी महाराज की वाणी प्रत्यक्ष प्रमाण देती है. सत्य तो यह है कि सतपुरुष कबीर साहिब जी की भक्ति से ही जीव मुक्त हो सकता है।

Chaitra Navaratri Quotes in Hindi

माता-माता सब कहें
भेद न जाने कोई
ये ऐसी माता आपे जाए
आप ही खाई।।

व्रत करे से मुक्ति हो तो अकाल पड़े क्यों मरते है।
पाखंड पूजा ये सालिग सेवा अनजाने में करते हैैं।

माया काली नागिनी, अपने जाय खात।
कुंडली में छोड़े नहीं, सौ बातो की बात।

Chaitra Navaratri 2020-तत्त्वदर्शी संत की पहचान क्या है?

ऊर्ध्वमूलम्, अधःशाखम्, अश्वत्थम्, प्राहुः, अव्ययम्, छन्दांसि, यस्य, पर्णानि, यः, तम्, वेद, सः, वेदवित्।।1।।

भावार्थ : गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में जिस तत्वदर्शी संत के विषय में कहा है उसकी पहचान अध्याय 15 श्लोक 1 में बतायी है कि वह तत्वदर्शी संत कैसा होगा जो संसार रूपी वृक्ष का पूर्ण विवरण बता देगा कि मूल तो पूर्ण परमात्मा है, तना अक्षर पुरुष अर्थात् परब्रह्म है, डार ब्रह्म अर्थात् क्षर पुरुष है तथा शाखा तीनों गुण (रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी, तमगुण शिव जी) है तथा पात रूप संसार अर्थात् सर्व ब्रह्मण्ड़ों का विवरण बताएगा वह तत्वदर्शी संत है।

आप सभी से विनम्र निवेदन है कि कबीर परमेश्वर अवतार रूप में संत रामपाल महाराज जी के चोले में धरती पर विराजमान हैं। उन्हें पहचान कर , मनमानी शास्त्र विरुद्ध साधना छोड़कर अपने मनुष्य जन्म को सफल बनाएं। परमेश्वर तत्वदर्शी संत रामपाल महाराज जी के मुखकमल से प्रतिदिन शाम साधना चैनल पर सत्संग देखिए 7.30-8.30 बजे और अवश्य पढ़ें पुस्तक ज्ञान गंगा। अगर आप  संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा लेना चाहते है तो कृपया यह नाम दीक्षा फ़ार्म भरे.

SA NEWS
SA NEWShttps://news.jagatgururampalji.org
SA News Channel is one of the most popular News channels on social media that provides Factual News updates. Tagline: Truth that you want to know

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

spot_img
spot_imgspot_img

Popular

More like this
Related

World Water Day 2023: Eternal Abode Satlok Has Everlasting Resources

Last Updated on 22 March 2023, 4:17 PM IST:...

World Forestry Day 2023: Know about the Best Way to Make the Planet Green

Last Updated on 21 March 2023, 3:47 PM IST:...

Why God Kabir is Also Known as Kabir Das? [Facts Revealed]

In this era of modern technology, everyone is aware about Kabir Saheb and His contributions in the field of spiritualism. And every other religious sect (for example, Radha Saomi sect, Jai Gurudev Sect, etc) firmly believes in the sacred verses of Kabir Saheb and often uses them in their spiritual discourses as well. Amidst such a strong base and belief in the verses of Kabir Saheb, we are still not known to His exact identity. Let us unfold some of these mysteries about the identity of Kabir Saheb (kabir Das) one by one.

Know the Right Way to Attain Supreme Almighty on Chaitra Navratri 2023

Last Updated on 20 March 2023, 3:18 PM IST:...