बीटिंग रिट्रीट 2021 (Beating Retreat in Hindi): गणतंत्र दिवस समारोह का समाप्त हुआ बीटिंग रिट्रीट समारोह में जिसमे राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुख्य अतिथि थे। चार दिन तक चलने वाले गणतंत्र दिवस के उत्सव का भी अंत होता है परंतु निज धाम सतलोक में पहुंच कर आनंद ,अनहद नाद , निरंतर जाप, साकार परमात्मा के दर्शन कभी समाप्त नहीं होंगे। सतलोक में बिना किसी वाद्य यंत्र के अपने आप ही अखंड धुन बजती रहती है ।
हर साल 26 जनवरी के बाद 29 जनवरी को बीटिंग रिट्रीट प्रोग्राम रखा जाता है जिसके अंतर्गत भारत की तीनों सेनाओं के बैंड भारतीय राष्ट्रीय गीतों की धुन बजाते हैं। यह 26 जनवरी, के बाद अंतिम प्रोग्राम होता है और इसी के साथ गणतंत्र दिवस के प्रोग्राम को अंतिम विदाई दी जाती है।
आइए जानते हैं बीटिंग रिट्रीट (Beating Retreat) सेरेमनी को कुछ खास बिंदुओं के माध्यम से
- इस बार विशेष नई रचना ‘स्वर्णिम विजय’ जो 1971 के युद्ध में पाकिस्तान पर भारत की जीत के 50 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में बनाया गया था।
- रचना का प्रदर्शन लेफ्टिनेंट कर्नल विमल जोशी और हवलदार जीवान रसाईकल ने किया था।
- ‘स्वर्णिम विजय’ के अलावा, वायु सेना बैंड की ‘तिरंगा सेनानी’ और ‘निदा योद्धा’, नौसेना बैंड की ‘भारत वंदना’ और सेना के सैन्य बैंड के ‘गरुड़ प्रहार’ और ‘संबोधन इको’ जैसी कई नई रचनाएँ थीं।
- समारोह का अंत “सारे जहां से अच्छा ’’ की रचना के साथ हुआ।
- सीएपीएफ के बैंड के सामूहिक गठन के साथ कुल 60 बग्लरस ( buglers), 17 ट्रम्पेट और सेना, नौसेना और वायु सेना के 60 ढोल वादकों ने बीटिंग रिट्रीट में भाग लिया।
- समारोह में पंजाब रेजिमेंट और राजपूताना राइफल्स के प्रत्येक बैंड ने राजपूत रेजिमेंट के 25 बैंड, बिहार रेजिमेंट के 19 बैंड और गोरखा रेजिमेंट के कम से कम सात बैंड के साथ समारोह में भाग लिया।
- कोरोना प्रोटोकॉल के कारण इस बार 5 हज़ार लोग ही कार्यक्रम में शामिल हुए।
29 जनवरी 2021 की बीटिंग रिट्रीट (Beating Retreat) सेरेमनी थी खास
शाम को दिल्ली के विजय चौक पर बीटिंग रिट्रीट कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस बार का बीटिंग रिट्रीट कार्यक्रम बेहद खास इसलिए था क्योंकि इस बार बीटिंग-रिट्रीट सेरेमनी की शुरुआत 1971 के युद्ध में पाकिस्तान पर मिली जीत के लिए तैयार की गई खास धुन से हुई थी। इस वर्ष हिंदुस्तानी वाद्य यंत्रों का काफी प्रयोग किया गया ।
Beating Retreat ceremony which marks the culmination of the four-day long Republic Day celebrations will be held at the historic Vijay Chowk in New Delhi today.
— All India Radio News (@airnewsalerts) January 29, 2021
Defence Ministry said, this year, Indian tunes will be the flavour of the ceremony. pic.twitter.com/ksipCxFICF
बीटिंग द रिट्रीट का अर्थ और महत्व क्या है?
बीटिंग द रिट्रीट भारत के गणतंत्र दिवस समारोह की समाप्ति का सूचक है। इस कार्यक्रम में थल सेना, वायु सेना और नौसेना के बैंड पारंपरिक धुन के साथ मार्च करते हैं। बीटिंग द रिट्रीट गणतंत्र दिवस आयोजनों का आधिकारिक रूप से समापन घोषित करता है। यह सेना की बैरक वापसी का प्रतीक है। गणतंत्र दिवस के पश्चात हर वर्ष 29 जनवरी को बीटिंग द रिट्रीट कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। समारोह का स्थल राजधानी दिल्ली स्थित रायसीना हिल्स और विजय चौक होता है जो की राजपथ के अंत में राष्ट्रपति भवन के उत्तर और दक्षिण ब्लॉक द्वारा घिरे हुए हैं।
गणतंत्र दिवस के अंतिम समारोह का सूचक है बीटिंग द रिट्रीट (Beating Retreat)
चार दिनों तक चलने वाले गणतंत्र दिवस समारोह का समापन बीटिंग रिट्रीट के साथ होता है। 26 जनवरी के गणतंत्र दिवस समारोह की तरह यह कार्यक्रम भी देखने लायक होता है। इसके लिए राष्ट्रपति भवन, विजय चौक, नॉर्थ ब्लॉक, साउथ ब्लॉक, को बेहद सुंदर रोशनी के साथ सजाया जाता है।
क्यों मनाई जाती है बीटिंग द रिट्रीट सेरेमनी?
प्रत्येक वर्ष गणतंत्र दिवस के बाद 29 जनवरी की शाम को ‘बीटिंग द रिट्रीट’ (Beating The Retreat) सेरेमनी का आयोजन किया जाता है। लड़ाई के दौरान सेनाएं सूर्यास्त के समय पर हथियार रखकर अपने कैंप में जाती थीं, तब एक संगीतमय समारोह होता था, इसे ही बीटिंग रिट्रीट कहा जाता था। भारत में इसकी शुरूआत 1950 के दशक में हुई थी। तब भारतीय सेना के मेजर रॉबर्ट ने इस सेरेमनी को सेनाओं के बैंड्स के डिस्प्ले के साथ पूरा किया था। इस समारोह में राष्ट्रपति बतौर चीफ गेस्ट के तौर पर शामिल होते हैं।
राष्ट्रपति के विजय चौक पर आते ही उन्हें नेशनल सैल्यूट दिया जाता है। इसके साथ साथ, थल सेना, वायु सेना और नौसेना, तीनों के बैंड मिलकर पारंपरिक धुन के साथ मार्च करते हैं। ठीक शाम 6 बजे बगलर्स रिट्रीट की धुन बजाते हैं और राष्ट्रीय ध्वज को उतार लिया जाता है तथा राष्ट्रगान गाया जाता है और इस प्रकार गणतंत्र दिवस के आयोजन का औपचारिक समापन होता हैं।
बैंड वादन के बाद रिट्रीट का बिगुल वादन होता है। और इस दौरान बैंड मास्टर राष्ट्रपति के पास जाते हैं और बैंड वापस ले जाने की इजाज़त मांगते हैं।
क्या आप जानते हैं कि सभी आत्माओं के निज घर सतलोक में अपने आप ही अखंड धुन बजती रहती है?
सतनाम के जाप से आता है सच्चा आनंद, भक्ति की कमाई से सुन सकते हैं सतलोक में बजने वाली अखंड धुन ।
अधर राग रंग होते हैं रे झूमकरा,
पंजाब से आए एक किसान सेठ को समझाते हुए संत गरीबदास जी महाराज जी ने कहा था कि सतलोक में पहुंच कर हम सच्ची धुन सुनेंगे और सच्ची खुशी मनाएंगे और वहां पर सच्ची धुन हमेशा बजती रहती है। सतलोक के अंदर बजने वाली धुन, यहां पर बजने वाली सभी धुनों से असंख्य गुना प्यारी और मीठी है।
हृदय को तृप्त करने वाली उस धुन को सतलोक में रहने वाली सभी हंस आत्माएं हर समय सुनते रहते हैं और आनंदित होते रहते हैं, सतलोक में बजने वाली धुन को अखंड धुन कहते हैं क्योंकि वह कभी भी रुकती नहीं है हमेशा बजती रहती है और आत्माओं को परमानंदित करती रहती है।
बिन ही मुख सारंग राग सुन, बिन ही तंती तार। बिना सुर अलगोजे बजैं, नगर नांच घुमार।।
घण्टा बाजै ताल नग, मंजीरे डफ झांझ। मूरली मधुर सुहावनी, निसबासर और सांझ।।
बीन बिहंगम बाजहिं, तरक तम्बूरे तीर। राग खण्ड नहीं होत है, बंध्या रहत समीर।।
तरक नहीं तोरा नहीं, नांही कशीस कबाब। अमृत प्याले मध पीवैं, ज्यों भाटी चवैं शराब।।
मतवाले मस्तानपुर, गली-गली गुलज़ार। संख शराबी फिरत हैं, चलो तास बाजार।।
संख-संख पत्नी नाचैं, गावैं शब्द सुभान। चंद्र बदन सूरजमुखी, नांही मान गुमान।।
संख हिंडोले नूर नग, झूलैं संत हजूर। तख्त धनी के पास कर, ऐसा मुलक जहूर।।
नदी नाव नाले बगैं, छूटैं फुहारे सुन्न। भरे होद सरवर सदा, नहीं पाप नहीं पुण्य।।
ना कोई भिक्षुक दान दे, ना कोई हार व्यवहार। ना कोई जन्मे मरे, ऐसा देश हमार।।
जहां संखों लहर मेहर की उपजैं, कहर जहां नहीं कोई।
दासगरीब अचल अविनाशी, सुख का सागर सोई।।
सतलोक में केवल एक रस परम शांति व सुख है। जब तक हम सतलोक में नहीं जाएंगे तब तक हम परमशांति, सुख व अमृत्व को प्राप्त नहीं कर सकते। सतलोक में जाना तभी संभव है जब हम पूर्ण संत से उपदेश लेकर पूर्ण परमात्मा की आजीवन भक्ति करते रहें। परमसंत जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी की संगत करने के लिए आप उनके सत्संग यूट्यूब सतलोक आश्रम चैनल को अवश्य देखें।
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