Last Updated on 3 May 2022, 2:30 PM IST | Akshaya Tritiya 2022 [Hindi]: वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया पर्व मनाते है जो 3 मई 2022 को है। पाठकों को यहां यह जानना आवश्यक है कि नव ग्रहों के चक्र में पड़ने से सीमित लाभ होते हैं जब कि असीमित हानि होती है अतः सतलोक में विराजमान सर्वोत्तम परमात्मा सतपुरूष की पूजा सतगुरु से नाम दीक्षा लेकर करना चाहिए जिससे कभी हानि नहीं होती और सतत लाभ होते हैं।
Akshaya Tritiya 2022 [Hindi]: मुख्य बिन्दु
- वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया पर्व मनाते है जो 3 मई 2022 को है
- अक्षय तृतीया को आखा तीज के नाम से भी जाना जाता है
- नव ग्रहों के चक्र में पड़ने से सीमित लाभ होते हैं जब कि असीमित हानि होती है
- इस दिन बिना कोई पंचांग देखे कोई भी मांगलिक कार्य किए जा सकते हैं
- अक्षय तृतीया को परशुराम जयंती के रूप में भी मनाया जाता है
- कोरोना के कारण फीका रहेगा यह त्यौहार भी
- सत्पुरुष की पूजा सतगुरु से नाम दीक्षा लेकर करना चाहिए जिससे कभी हानि नहीं होती और सतत लाभ होते हैं
क्या है अक्षय तृतीया (Akshaya Tritiya in Hindi) या आखा तीज?
हिंदू धर्म में अक्षय तृतीया का त्योहार मनाया जाता हैं। अक्षय तृतीया (Akshaya Tritiya in Hindi) को आखा तीज के नाम से भी जाना जाता है। हिन्दू कैलेंडर के द्वितीय मास वैशाख में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया कहते हैं। हिन्दू पौराणिक ग्रंथों की मान्यताओं के अनुसार जो भी कार्य इस दिन में किये जाते हैं, उनका फल सतत (अक्षय) मिलता रहता है। यही कारण है इसे अक्षय तृतीया के नाम से पुकारा जाता है। हिन्दी महीनों के बारह महीनों में शुक्ल पक्ष की तृतीया आती है, परंतु वैशाख मास की तृतीया तिथि स्वयंसिद्ध मानी जाती है। लेकिन क्या ये शास्त्र सम्मत हैं? नहीं ।
Akshaya Tritiya 2022 Date | कब है इस वर्ष अक्षय तृतीया पर्व?
इस वर्ष बार अक्षय तृतीया (Akshaya Tritiya in Hindi) का त्योहार 3 मई, 2022 मंगलवार के दिन है। भारतीय ज्योतिष शास्त्र के अनुसार वैशाख शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया मनाई जाती है।
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संध्या काल में चंद्रमा का मिथुन राशि में प्रवेश हो जाएगा जबकि मिथुन राशि में मंगल पहले से स्थापित हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार चंद्रमा के मिथुन राशि में आने से धन लाभ का योग होता है। पाठकों को यहां यह जानना आवश्यक है कि नव ग्रहों के चक्र में पड़ने से सीमित लाभ होते हैं जब कि असीमित हानि होती है अतः सतलोक में विराजमान सर्वोत्तम परमात्मा सत्पुरुष की पूजा सतगुरु से नाम दीक्षा लेकर करनी चाहिए जिससे कभी हानि नहीं होती और सतत लाभ होते हैं।
अक्षय तृतीया को परशुराम जयंती भी होती है
अक्षय तृतीया को परशुराम जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। परशुराम जयंती 3 मई 2022 दिन शुक्रवार को मनाई जाएगी। परशुराम जी को विष्णु जी का छठवां अवतार कहा जाता है। परशुराम जी का जन्म ऋषि जमदग्नि और माता रेणुका के पुत्र के रूप में हुआ था। हिंदू मान्यताओं के अनुसार राजाओं के अन्याय, अधर्म, और पापकर्मों बढ़ जाने पर उनका विनाश करने हेतु परशुराम अवतार हुआ था।
परशुराम से जुड़ी खास बातें
- परशुराम जी में भगवान शिव और विष्णु के साझा गुण थे।
- संहारक गुण भगवान शिव से और पालनहारा गुण भगवान विष्णु से मिला।
- भगवान परशुराम महर्षि जमदग्नि और माता रेणुका के पांच पुत्रों में से चौथे थे।
- परशुराम जी चिरंजीवी हैं कलयुग में आज भी धरती पर जीवित हैं।
- परशुराम जी का बचपन का नाम राम था, कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने इन्हें अस्त्र शस्त्र प्रदान किए जिसमें फरसा (परशु) मुख्य है। इसी कारण ये परशु धारण करने से परशुराम कहलाए।
- गुजरात से केरल तक बाण से समुद्र को पीछे धकेलकर गांवो को बसाने के कारण भार्गव कहलाए।
- भगवान परशुराम को अन्य नामों रामभद्र, भृगुवंशी, भृगुपति, जामदग्न्य से भी जानते हैं ।
किसने किया परशुराम का वध?
परशुराम जी ब्राह्मण थे। एक बार जब ब्राह्मणों और क्षत्रियों का युद्ध हुआ तब ब्राह्मण क्षत्रियों से हार गए। उसका बदला परशुराम जी ने लिया। उन्होंने लाखों क्षत्रियों को मार डाला। इसी से उनका गुणगान गाया जाने लगा। हनिवर द्वीप के राजा जिनका नाम चक्रवर्त था। उन्होंने परशुराम को युद्ध में हराया और उन्हें मार डाला। ये हनुमान जी के नाना थे।
कबीर साहेब बताते है कि:
परसुराम तब द्विज कुल होई। परम शत्रु क्षत्रीन का सोई।।
क्षत्री मार निक्षत्री कीन्हें। सब कर्म करें कमीने।।
ताके गुण ब्राह्मण गावैं। विष्णु अवतार बता सराहवैं।।
हनिवर द्वीप का राजा जोई। हनुमान का नाना सोई।।
क्षत्री चक्रवर्त नाम पदधारा। परसुराम को ताने मारा।।
परशुराम का सब गुण गावैं। ताका नाश नहीं बतावैं।।
Akshaya Tritiya 2022 [Hindi]: क्या करते हैं अक्षय तृतीया के दिन?
- अक्षय तृतीया के त्योहार पर सोना और सोने के आभूषण खरीदते हैं।
- भगवान विष्णु के अवतार परशुराम जी का जन्मदिन भी इसी दिन होता है। भगवान परशुराम जी के भक्त भी इसे धूमधाम से मनाते हैं ।
Akshaya Tritiya 2022 Muhurat: अक्षय तृतीया मुहूर्त
इस वर्ष अक्षय तृतीया तिथि 3 मई को प्रातः 05:38 बजे से प्रारंभ होकर 15 मई प्रातः 07:59 बजे होगी। वास्तव में किसी भी समय या दिन को दूसरे समय से अधिक पवित्र मानना गलत है। यदि पूर्ण परमात्मा की शरण हो तो हर समय लाभकारी है वरना किसी भी समय पर हानि हो सकती है। संत गरीब दास महाराज कहते है कि
राहु केतु रोकै नहीं घाटा, सतगुरु खोले बजर कपाटा।
नौ ग्रह नमन करे निर्बाना, अविगत नाम निरालंभ जाना
नौ ग्रह नाद समोये नासा, सहंस कमल दल कीन्हा बासा।।
संत गरीबदास जी ने बताया है कि सत्यनाम साधक के शुभ कर्म में राहु केतु राक्षस घाट अर्थात मार्ग नहीं रोक सकते सतगुरु तुरंत उस बाधाओं को समाप्त कर देते हैं। भावार्थ है कि सत्यनाम साधक पर किसी भी ग्रह तथा राहु केतु का कोई प्रभाव नहीं पड़ता तथा दसों दिशाओं की सर्व बाधाएं समाप्त हो जाती है। वर्तमान में सतगुरु को जानने के लिए पढ़े इसी लेख को आगे।
अक्षय तृतीया का महत्व (Importance of Akshaya Tritiya in Hindi)
- ऐसी मान्यता है कि अक्षय तृतीया की तिथि सर्वसिद्ध है अतः कोई मुहूर्त निकालने की जरूरत नहीं है।
- इस दिन बिना कोई पंचांग देखे कोई भी मांगलिक कार्य किए जा सकते हैं। नए घर, नए भूखंड और नए वाहन की खरीदारी कर सकते हैं। नई संस्था, नए समाज सेवा कार्य, नई स्थापना या उद्घाटन का कार्य कर सकते हैं ।
- इस पर्व के दिन पितृ तर्पण और पिंडदान या अन्य दान अक्षय फल देता है। लेकिन ये सब क्रियाएं शास्त्र विरुद्ध है। श्राद्ध आदि निकालने से साधक पितर योनि को प्राप्त होता है।
- इस पर्व पर गंगा स्नान और भागवत पूजन करने से पाप नष्ट होते हैं ऐसी मान्यता है लेकिन वास्तव में पाप नाश सिर्फ सतनाम से होते है।
- जाने-अनजाने अपराधों की सच्चे मन से क्षमा मांगने अपराध क्षम्य होते हैं। ये भी गलत है क्योंकि अपराध सिर्फ सतगुरु ही क्षमा कर सकता है।
अक्षय तृतीया मनाना शास्त्र विरुद्ध है
श्रीमद्भगवत गीता 16:23-24 में गीता ज्ञान दाता स्पष्ट रूप से निर्देशित करते हुए कहते हैं कि जो साधक शास्त्रों में वर्णित भक्ति की क्रियाओं के अतिरिक्त साधना व क्रियाएं करते हैं, उनको न सुख की प्राप्ति होती है, न सिद्धि अर्थात आध्यात्मिक लाभ भी नहीं होता है, न उनको गति यानी मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती है अर्थात व्यर्थ पूजा है। साधक को वे सभी क्रियाओं का परित्याग कर देना चाहिए जो गीता तथा वेदों अर्थात प्रभुदत्त शास्त्रों में वर्णित नहीं हैं।
तत्वज्ञान के अभाव में शास्त्र विरुद्ध साधना का प्रचलन है
विश्व में धार्मिक व्यक्तियों की भरमार है। प्रत्येक धर्म के अनुयायी अपनी साधना को सत्य मानकर पूर्ण श्रद्धा तथा लगन के साथ समर्पित भाव से कर रहे हैं। एक-दूसरे को देखकर या सुनकर धार्मिक क्रियाएँ करने लग जाते हैं। विशेष जांच नहीं करते हैं। यही कारण है कि आध्यात्मिक लाभ से वंचित रहते हैं।
व्रत करने से नहीं होगी पूर्ण परमेश्वर की प्राप्ति
गीता 6:16 में गीता ज्ञान दाता ने बताया है कि बिल्कुल न खाने वाले अर्थात व्रत रखने वाले का योग अर्थात पूर्ण परमात्मा कविर्देव जी से मिलने का उद्देश्य पूरा नहीं होता है।
एकै साधै सब सधै, सब साधै सब जाय।
माली सीचें मूल कूँ, फूलै फलै अघाय।।
एक मूल मालिक (कविर्देव जी) की पूजा करने से सर्व देवताओं की पूजा हो जाती है जो शास्त्रानुसार है। जो शास्त्र अनुकूल साधना न करके अन्य देवी-देवताओं की पूजा करते हैं वह गीता 13:10 में वर्णित अव्यभिचारिणी भक्ति न होने से व्यर्थ है। जैसे कोई स्त्री अपने पति के अतिरिक्त अन्य पुरुष से सम्बन्ध नहीं करती, वह अव्यभिचारिणी स्त्री है।
शास्त्र विरुद्ध साधना छोड़कर परमात्मा प्राप्ति के लिए शास्त्रानुकूल साधना करें
पूरे विश्व में संत रामपाल जी महाराज जी एकमात्र ऐसे तत्वदर्शी संत हैं जो सर्व शास्त्रों से प्रमाणित सत्य साधना की भक्ति विधि बताते हैं जिससे साधक को सर्व लाभ होते हैं तथा पूर्ण मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसलिए सत्य को पहचानें व शास्त्र विरुद्ध साधना का आज ही परित्याग कर संत रामपाल जी महाराज से शास्त्रानुकूल साधना प्राप्त करें। संत रामपाल जी महाराज जी द्वारा लिखित पवित्र पुस्तक अंधश्रद्धा भक्ति-खतरा-ये-जान का अध्ययन कर जानें शास्त्रानुकूल साधना का सार।
शास्त्रानुकूल साधना प्राप्त करने की सरल विधि
शास्त्र प्रमाणित भक्ति विधि प्राप्त करने के लिए संत रामपाल जी महाराज से निःशुल्क नाम दीक्षा प्राप्त करें। शास्त्रानुकूल साधना व शास्त्र विरुद्ध साधना में भिन्नता विस्तार से जानने के लिए सतलोक आश्रम यूट्यूब चैनल पर सत्संग श्रवण करें।