कर्नाटक की मशहूर पर्यावरणविद् तुलसी गौड़ा (Tulsi Gowda) को सोमवार को पर्यावरण के संरक्षण में उनके अतुलनीय योगदान के लिए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने पद्म श्री (Padma Shri) पुरस्कार से सम्मानित किया।
Tulsi Gowda: मुख्य बिंदु
- कर्नाटक की मशहूर पर्यावरणविद् तुलसी गौड़ा को पर्यावरण के संरक्षण में उनके अतुलनीय योगदान के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया गया।
- ‘इनसाइक्लोपीडिया ऑफ फारेस्ट’ (जंगलों की इनसाइक्लोपीडिया) नाम से हैं मशहूर।
- बीते छह दशकों से कर रही हैं जंगलों की सेवा।
- 30,000 से अधिक पौधे लगाकर पर्यावरण संरक्षण में दिया अतुलनीय योगदान।
- साल 2020 के लिए 4 लोगों को पद्म विभूषण, 8 पद्म भूषण और 61 को पद्म श्री पुरस्कार प्रदान किए गए।
- प्रकृति प्रेम ठीक है, परन्तु मानव जीवन का मूल उद्देश्य पूर्ण मोक्ष की प्राप्ति करना है।
- जगतगुरू तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज हैं पूर्ण मोक्षदायिनी भक्तिविधि प्रदत्त करने वाले एकमात्र पूर्ण संत।
तुलसी गौड़ा (Tulsi Gowda) पद्म श्री (Padma Shri) से सम्मानित
जंगलों की इनसाइक्लोपीडिया नाम से मशहूर कर्नाटक की चर्चित पर्यावरणविद् तुलसी गौड़ा (Tulsi Gowda) को सोमवार को पर्यावरण के संरक्षण में उनके अतुलनीय योगदान के लिए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भारत के चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म श्री (Padma Shri) से सम्मानित किया।
तुलसी गौड़ा को 30,000 से अधिक पौधे लगाने और पिछले छह दशकों से पर्यावरण संरक्षण गतिविधियों में शामिल रहने के लिए पद्म श्री पुरस्कार दिया गया। सोशल मीडिया पर नंगे पांव और धोतीनुमा पारंपरिक सूती कपड़े पहने तुलसी गौड़ा की तस्वीरें जमकर वायरल हो रही हैं, जिसने लोगों का दिल जीत लिया है।
Biography Of Tulsi Gowda: जंगल की इनसाइक्लोपीडिया बनने से लेकर पद्म श्री अवार्ड प्राप्त करने तक की यात्रा
तुलसी गौड़ा का जन्म कर्नाटक के हलक्की जनजाति (Halakki Indigenous) के एक अत्यंत गरीब परिवार में हुआ था। तुलसी के जन्म के कुछ समय पश्चात ही उनके पिता का देहांत हो गया। इस कारण अपने परिवार की मदद करने के लिए तुलसी गौड़ा ने कम उम्र में ही काम करना शुरू कर दिया था। अल्पायु में ही अपने ऊपर आईं जिम्मेदारियों के चलते तुलसी गौड़ा कभी भी स्कूल नहीं जा पाई।
- 11 साल की अल्पायु में ही तुलसी गौड़ा की शादी हो गई थी, लेकिन उनके पति भी ज्यादा दिनों तक जीवित नहीं रह सके। ऐसे में अपनी जिंदगी के दुख और अकेलेपन को दूर करने के लिए तुलसी गौड़ा ने पेड़-पौधों का ख्याल रखना शुरू किया। धीरे-धीरे पर्यावरण की ओर तुलसी की दिलचस्पी बढ़ी। वनस्पति संरक्षण के लिए तुलसी राज्य के वनीकरण योजना में बतौर कार्यकर्ता शामिल हो गई। साल 2006 में तुलसी को वन विभाग में वृक्षारोपक की नौकरी मिल गई।
- तुलसी गौड़ा ने लगभग 14 साल तक वृक्षारोपक की जिम्मेदारी निभाई। इस दौरान तुलसी गौड़ा ने अनगिनत पेड़-पौधे लगाए। साथ ही उन्होंने जैविक विविधता संरक्षण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पेड़-पौधे लगाने और उन्हें बड़ा करने के अलावा तुलसी गौड़ा ने वन्य पशुओं का शिकार रोकने और जंगल की आग के निवारण के क्षेत्र में भी बहुत काम किया है। इसके अलावा उन्होंने पर्यावरण को नुकसान पहुँचाने वाली सरकारी गतिविधियों का भरपूर विरोध भी किया।
- तुलसी गौड़ा भले ही कभी स्कूल नहीं गई, लेकिन उनका ज्ञान किसी पर्यावरण वैज्ञानिक से कम नहीं है। तुलसी गौड़ा को हर तरह के पौधों के बारे में जानकारी है जैसे किस पौधे के लिए कैसी मिट्टी अनुकूल है, किस पौधे को कितना पानी देना है इत्यादि।
- सेवा-निवृत्त होने के बाद भी तुलसी गौड़ा ने पर्यावरण के प्रति अपने प्यार को कम नहीं होने दिया और वह वनों के संरक्षण के लिए काम करती रहीं। इसके अलावा तुलसी गौड़ा ने बच्चों को भी पेड़ों के महत्व के बारे में जागरूक किया। तुलसी गौड़ा का कहना है कि, ‘अगर जंगल बचेंगे, तो यह देश बचेगा। हमें और जंगल बनाने की आवश्यकता है’।
Tulsi Gowda: सादगी ऐसी कि प्रधानमंत्री व केंद्रीय गृहमंत्री ने भी किया हाथ जोड़कर नमन
कर्नाटक की पर्यावरणविद् तुलसी गौड़ा को 30,000 से अधिक पौधे लगाने और पिछले छह दशकों से पर्यावरण संरक्षण गतिविधियों में शामिल रहने के लिये पद्मश्री से सम्मानित किया गया। जब वह सम्मान लेने के लिए पहुंची तो उन्होंने बदन पर पारंपरिक आदिवासी वेशभूषा (Traditional Attire) पहनी हुई थी और पैरों के नीचे चप्पल (Barefoot) तक नहीं थी, पीएम मोदी (Narendra Modi) और अमित शाह से उनका सामना हुआ तो दोनों दिग्गज नेताओं ने उनकी उपलब्धि का सम्मान करते हुए उन्हें नमन किया।
क्यों पड़ा ‘जंगलों की इनसाइक्लोपीडिया’ नाम
72 वर्षीय तुलसी गौड़ा कर्नाटक में हलक्की आदिवासी जनजाति (Halakki Indigenous) से ताल्लुक रखती हैं। उन्हें पेड़-पौधों और जड़ी-बूटियों की विविध प्रजातियों के अपने विशाल ज्ञान और अनुभव के साथ प्रकृति की इतनी जानकारी हो गई कि उन्हें ‘जंगलों की इनसाइक्लोपीडिया’ (Encyclopedia of Forest) के रूप में भी जाना जाता है। करीब 10 साल की उम्र से वह पर्यावरण संरक्षण का काम कर रही हैं और अपना पूरा जीवन उन्होंने प्रकृति की रक्षा के लिए समर्पित कर दिया है।
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Tulsi Gowda को पद्म श्री से पूर्व भी मिल चुके हैं कई पुरस्कार
देश के चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म श्री से पूर्व भी तुलसी गौड़ा के द्वारा पर्यावरण को लेकर किए गए कामों को देखते हुए कर्नाटक सरकार ने उन्हें राज्योत्सव पुरस्कार से सम्मानित किया था। इसके अलावा तुलसी गौड़ा को इंदिरा प्रियदर्शिनी वृक्षमित्र पुरस्कार और श्रीमती कविता स्मारक पुरस्कार जैसे कई विशेष पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है।
अन्य कार्य करने के साथ मनुष्य जीवन के मूल उद्देश्य का भी रखें ध्यान
पवित्र गीता जी के अनुसार मनुष्य जीवन को मोक्ष का द्वार कहा गया है व मनुष्य जीवन पाने वाला व्यक्ति तत्वदर्शी संत से पूर्ण परमात्मा की जानकारी प्राप्त करके व उसकी भक्ति करके उसको पा सकता है अर्थात पूर्ण परमात्मा के लोक में जा सकता है जहां सर्व सुख हैं। यानी उस सुखमय स्थान पर जा सकता है जहां कभी किसी की मृत्यु नहीं होती और न ही कोई वृद्ध अवस्था होती है, न वहां पर कोई राग द्वेष है और ना ही किसी भी प्रकार का कोई विकार, ना वहां किसी चीज की कोई कमी है।
उस सुखमय स्थान को सतलोक कहा गया है जो शाश्वत स्थान है। इस स्थान को प्राप्त करना ही पूर्ण मोक्ष कहलाता है। इसलिये मनुष्य जीवन प्राप्त सभी पुण्यात्माओं को जन्म मरण का दीर्घ रोग समाप्त करवाने के लिए सतभक्ति करनी आवश्यक है। मनुष्य जीवन के प्रधान उद्देश्य अर्थात पूर्ण मोक्ष के विषय में विस्तृत जानकारी के लिए अवश्य पढ़ें संत रामपाल जी महाराज द्वारा लिखित पवित्र पुस्तक ज्ञान गंगा।
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