कबीर साहेब जी की शिक्षाएं: कबीर साहेब जी 600 वर्ष पहले इस पृथ्वी लोक पर प्रकट हुए थे। वह बचपन से ही अपने तत्वज्ञान के माध्यम से बड़े-बड़े विद्वान महापुरुषों को भी पराजित कर दिया करते थे। वैसे तो कुछ लोग कबीर साहेब जी को एक महान कवि, संत के रूप में देखते है लेकिन वह कोई साधारण महापुरुष नहीं थे कबीर साहेब जी पूर्ण परमेश्वर थे। उनके ज्ञान को देखा जाए तो उनके जैसा ज्ञान किसी ने नहीं दिया और ना ही दे सकता है। उनकी वाणियों को देखा जाए तो उनमें बहुत ही गहरा और गुप्त रहस्यमय ज्ञान छुपा हुआ है।
कबीर साहेब जी अपनी अमृतमय वाणियों के माध्यम से लोगों को संदेश दिया करते थे। हिंदू मुस्लिम की एकता को लेकर, समाज में व्याप्त कुरीतियों, भक्ति-भाव के बारे में, मंदिर-मस्जिद के बारे में, भगवान एक हैं के बारे में, कबीर साहेब जी ने अपने दोहों, कविताओं के माध्यम से लोगों को संदेश दिया है। उन्होंने बताया कि हमे आपस में किस तरह रहना चाहिए, भक्ति किस प्रकार करनी चाहिए, हमारा आचरण व्यवहार किस प्रकार होना चाहिए। हम “कबीर साहेब जी की शिक्षाएं” इस ब्लॉग के माध्यम से जानेंगे कि कबीर साहेब ने लोगों को क्या क्या संदेश दिए हैं।
कबीर साहेब जी का हिन्दू-मुसलमान समाज को संदेश
कबीर साहेब जी जाति धर्म का खंडन करते हुए अपनी वाणियों के माध्यम से लोगों को बताते हैं कि
जीव हमारी जाति है,मानव धर्म हमारा।
हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई, धर्म नहीं कोई न्यारा।।
कबीर, हिंदू-मुस्लिम, सिक्ख-ईसाई, आपस में सब भाई-भाई।
आर्य-जैनी और बिश्नोई, एक प्रभू के बच्चे सोई।।
कबीर परमेश्वर जी ने सभी धर्मों के लोगों को संदेश दिया कि सब मानव एक परमात्मा की संतान हैं। सभी आपस में भाई-भाई हैं। हमें आपस में मिल जुल कर रहना चाहिए। अज्ञानता वश हम अलग-अलग जाति धर्मों में बंट गये है।
कबीर साहेब जी का मंदिर-मस्जिद को लेकर मत
कबीर साहिब जी ने मंदिर और मस्जिद के विषय में अपनी वाणियों के माध्यम से लोगों को यह संदेश दिया हैं कि परमात्मा मंदिर मस्जिद में नहीं है बल्कि अपने शरीर के अंदर ही निवास करते है इसलिए अगर परमात्मा को खोजना है तो अपने अंदर ही खोजो। मंदिर मस्जिद में जाकर व्यर्थ प्रयास करते है।
कबीर, हिन्दू कहूं तो हूँ नहीं, मुसलमान भी नाही।
गैबी दोनों बीच में, खेलूं दोनों माही ।।
कबीर परमात्मा कहते हैं कि मैं न तो हिन्दू हूँ और न ही मुसलमान। मैं तो दोनों के बीच में छिपा हुआ हूँ। इसलिए हिन्दू-मुस्लिम दोनों को ही अपने धर्म में सुधार करने का संदेश दिया। कबीर साहेब ने मंदिर और मस्जिद दोनों ही बनाने का विरोध किया क्योंकि उनके अनुसार मानव तन ही असली मंदिर-मस्जिद है, जिसमें परमात्मा का साक्षात निवास है।
कबीर, हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमाना।
आपस में दोउ लड़ी-लड़ी मुए, मरम न कोउ जाना।।
परमेश्वर कबीर जी कहते हैं कि हिन्दू राम के भक्त हैं और तुर्क (मुस्लिम) को रहमान प्यारा है। इसी बात पर दोनों लड़-लड़ कर मौत के मुंह में जा पहुंचे, तब भी दोनों में से कोई सच को न जान पाया। सच तो यह है कि सबका मालिक एक है परमात्मा एक है। हम सभी जीवात्मा एक परमात्मा के बच्चे हैं।
कबीर साहेब जी की शिक्षाएं: कबीर साहेब ने माँस भक्षण को निषेध बताया
कबीर साहेब जी अपनी वाणियों के माध्यम से लोगों को यह बताते हैं कि मांस खाना महापाप है। हमें निर्दोष जीवों की हत्या नहीं करनी चाहिए। अपनी जीभ के स्वाद के लालच में आकर लोग यह महापाप करते है। चींटी से लेकर हाथी तक सभी उसी परमात्मा के बच्चे हैं अगर हम उसके बच्चे को भोजन के लिए मारते है तो परमात्मा कैसे खुश हो सकता है? यह बिल्कुल ग़लत है। मांस खाने को पवित्र शास्त्रों ने भी नकारा है। मांस खाने और जीव हत्या करने के विषय में कबीर साहेब जी ने हिंदू मुस्लिम दोनों को संदेश दिया है :-
कबीर, दिन को रोजा रहत है, रात हनत है गाय।
यह खून, वह बंदगी, क्यों खुशी खुदाय।।
कबीर परमेश्वर ने मुसलमानों को समझया है कि आप दिन में रोजा रखते हो और रात को गाय-बकरे आदि का खून करके मांस खाते हो। एक तरफ तो खुदा की इबादत और दूसरी तरफ अल्लाह के बनाए बेजुबान जानवरों की हत्या करते हो तो अल्लाह कैसे खुश होगा। कुछ तो विचार करो।
कबीर, दोनूं दीन दया करौ, मानौं बचन हमार। गरीबदास गऊ सूर में, एकै बोलन हार।।
कबीर परमात्मा ने कहा कि दोनों (हिन्दु तथा मुसलमान) धर्म, दया भाव रखो। मेरा वचन मानो कि सूअर तथा गाय में एक ही बोलनहार है यानि एक ही जीव है। न गाय खाओ, न सूअर खाओ।
हिन्दू झटके मारही, मुस्लिम करे हलाल ।
गरीब दास दोऊ दीन का, वहां होगा हाल बेहाल ।।
कबीर परमेश्वर ने हिन्दू और मुस्लिम धर्म के पाखण्डियों को समझाया है कि चाहे झटके से मारो चाहे प्रेम से मारो जीव हत्या पाप है और तुम दोनों(हिन्दू मुस्लिम) नरक/दोजक में जाओगे।
कबीर, दया कौन पर कीजिए, का पर निर्दय होय।
साई के सब जीव हैं, कीड़ी कुंजर दोय।।
दिल में सभी के लिए दया रखो, निर्दयी न बनो क्योंकि सब ईश्वर के जीव हैं, चाहे चींटी हो या हाथी।
कबीर, मांस मांस सब एक हैं, मुरगी हिरनी गाय।
आंखि देखि नर खात है, ते नर नरकहि जाय।।
जो व्यक्ति अपनी जिह्वा के क्षणिक स्वाद के लिए ही किसी जीव की हत्या कर सकता है, उसकी मानसिकता क्रूर और हिंसक हो जाती है क्योंकि मनुष्य के आहार का सीधा संबंध उसकी भावनाओं और विचारों से होता है।
कबीर, तिल भर मछली खायके, कोटि गऊ दे दान।
काशी करौंत ले मरै, तो भी नरक निदान।।
कबीर साहेब जी ने इस वाणी से समझाया है की जरा-सा (तिल के समान) भी माँस खाकर जो व्यक्ति भक्ति करता है, वह चाहे करोड़ गाय दान भी करता है, उस साधक की साधना भी व्यर्थ है। माँस आहारी व्यक्ति चाहे काशी में करौंत से गर्दन छेदन भी करवा ले वह नरक ही जायेगा।
■ Read in English | Hidden and Unheard Teachings of Kabir Saheb Ji (Revealed)
कबीर, मांस अहारी मानवा, प्रत्यक्ष राक्षस जानि।
ताकी संगति मति करै, होइ भक्ति में हानि।।
अर्थात्– मांसाहारी को साक्षात् राक्षस मान लेना चाहिए। उनकी तो संगति से भी भक्ति में हानि होती है।
कबीर, मांस खाय ते ढेढ़ सब, मद पीवे सो नीच।
कुल की दुर्मति पर हरै, राम कहे सो ऊंच।।
कबीर परमेश्वर ने मांस खाने वाले को ढेढ़ एवं शराब का सेवन करने वाले को नीच कहकर सम्बोधित किया है। तथा राम/अल्लाह की भक्ति करने वाले को श्रेष्ठ बताया है चाहे किसी भी जाति या धर्म का व्यक्ति हो।
कबीर, हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमाना।
आपस में दोउ लड़ी-लड़ी मुए, मरम न कोउ जाना ।।
परमेश्वर कबीर जी कहते हैं कि हिन्दू राम के भक्त हैं और तुर्क (मुस्लिम) को रहमान प्यारा है। इसी बात पर दोनों लड़-लड़ कर मौत के मुंह में जा पहुंचे, तब भी दोनों में से कोई सच को न जान पाया।
कबीर, कहता हूं कहि जात हूं, कहा जू मान हमार।
जाका गला तुम काटि हो, सो फिर काटि तुम्हार।।
मांस भक्षण का विरोध करते हुए कबीर साहेब जी कहते हैं कि मेरी बात मान लो जिसका गला तुम काटते हो वह भी समय आने पर अगले जन्म में तुम्हारा गला काटेगा।
कबीर, गला काटि कलमा भरे, किया कहै हलाल।
साहेब लेखा मांगसी, तब होसी कौन हवाल।।
कबीर साहेब कहते है जो लोग बेजुबान जानवरों का गला काटकर कहते हैं कि हलाल किया है पर कभी यह नहीं सोचते कि जब वह साहेब (अल्लाहु अकबर) मृत्यु के बाद लेखा जोखा करेगा तब वहां क्या कहेंगे।
जो गल काटै और का, अपना रहै कटाय।
साईं के दरबार में, बदला कहीं न जाय॥
भावार्थ: जो व्यक्ति किसी जीव का गला काटता है उसे आगे चलकर अपना गला कटवाना पड़ेगा। परमात्मा के दरबार में करनी का फल अवश्य मिलता है। आज यदि हम किसी को मारकर खाते हैं तो अगले जन्म में वह प्राणी हमें मारकर खाएगा।
कलमा रोजा बंग नमाज, कद नबी मोहम्मद कीन्हया,
कद मोहम्मद ने मुर्गी मारी, कर्द गले कद दीन्हया॥
भावार्थ: परमात्मा कबीर कह रहे हैं कि कब मोहम्मद जी ने कलमा, रोजा, बंग पढ़ा और कब मोहम्मद जी ने मुर्गी मारी। जब नबी मोहम्मद जी ने कभी भी ऐसा जुल्म करने की सलाह नहीं दी फिर क्यों तुम निर्दोष जीवो की हत्या कर रहे हो?
कबीर साहेब जी की शिक्षाएं: कबीर साहेब की हमारे व्यवहार को अच्छा बनाने की शिक्षा
कबीर साहेब जी अपनी वाणियों के माध्यम से लोगों को यह संदेश देते हैं कि संसार में लोगों का व्यवहार एक दूसरे के साथ किस प्रकार का होना चाहिए जिससे खुद भी शांति महसूस करें और औरों को भी शांति प्राप्त हो।
कबीर, ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोए।
औरन को शीतल करे, आप भी शीतल होय।।
कबीर जी ने समझाया है कि नम्रतापूर्वक बोलना चाहिए, अपने आपको बड़ा सिद्ध नहीं करना चाहिए। ऐसी भाषा बोलिए जिससे अन्य भी सुख महसूस करे और स्वयं को भी शांति रहे।
जो तोकूं काँटा बोवै, ताको बो तू फूल।
तोहे फूल के फूल है, वाको है त्रिशूल।।
यदि कोई आपको कष्ट देता है तो आप उसका उपकार करने की धारणा बनाऐं, उसका भला करें। आपको तो सुख रूपी फूल प्राप्त होंगे और जो आपको कष्ट रूपी काँटे दे रहा था, उसको तीन गुणा कष्ट रूपी काँटे प्राप्त होंगे।
कबीर, भक्ति-भक्ति सब कोई कहै, भक्ति न जाने भेव।
परण भक्ति जब मिलै, कृपा करै गुरुदेव।।
भक्ति की बात तो सब कोई कहते रहते हैं, परंतु इसको करना बहुत ही कठिन है। कोई भी इसके भेद को नहीं जानता। पूर्ण-भक्ति तो तभी मिलती है, जब सद्गुरुदेव प्रसन्न हों, आशीर्वाद दें और कृपा करके सत्यज्ञान प्रदान करें ताकि मन के सभी संदेह-मलिन वासनाएं दूर हों और अंतर्मन में भक्ति का प्रकाश फैल जाए।
जहां दया तहा धर्म है, जहां लोभ वहां पाप ।
जहां क्रोध तहा काल है, जहां क्षमा वहां आप।।
जहां दया होती है, वहीं धर्म होता है। जहां लालच होता है, वहां पाप का वास रहता है। जहां क्रोध है, वहां काल है। जिन लोगों के मन में क्षमा है, वहां ईश्वर का वास होता है।
कबीर, कुष्टी होवे, संत बंदगी कीजिए।
हो वैश्या के विश्वास चरण चित दीजिए।।
यदि किसी को कुष्ट रोग है और वह भक्ति करने लगा है तो भक्त समाज को चाहिए कि उससे घृणा न करें। इसी प्रकार किसी वैश्या बेटी-बहन को प्रेरणा बनी है भक्ति करने की, सत्संग में आने की, उसको परमात्मा पर विश्वास हुआ है। वह सत्संग विचार सुनेगी तो बुराई भी छूट जाएगी। उसका कल्याण हो जाएगा।
कबीर, कुटिल बचन सबसे बुरा, जासे होत न हार।
साधू बचन जल रूप है, बरसे अमृत धार।।
कबीर जी ने कहा हैं कुटिल वचन बोलने से सदैव बचना चाहिए। कुटिल वचन बोलकर कोई व्यक्ति कभी हार – जीत नहीं सकता। व्यक्ति को साधु वचन अर्थात मीठे वचन बोलने चाहिए।
सांच बराबर तप नही, झूठ बराबर पाप।
जाके हृदय सांच है, ताके हृदय आप।।
सत्य का पालन सबसे बड़ी तपस्या है। झूठ से बढ़ कर कोई पाप नहीं। जिसके हृदय में सत्य का वास है-कबीरप्रभु उसके हृदय में निवास करते हैं।
कबीर, मद अभिमान न कीजिए, कहैं कबीर समुझाय ।
जा सिर अहं जु संचरे, पडै चौरासी जाय ।।
कबीर साहिब जी कहते है कि मद का अभिमान कभी मत करो, मद का त्याग करना ही उचित है जिसके मास्तिक में अहंकार प्रविष्ट हो जाता है वह अपने को ही सर्वस्व समझने लगता हैं और ‘लख चौरासी’ के चक्कर में पड़कर भटकता है ।
कबीर सबसे हम बुरे, हमसे भला सब कोय ।
जिन ऐसा करि बुझिया, मीत हमारा सोय ।।
कबीर साहेब जी कहते है कि ‘सबसे बुरे हम स्वयं है बाकी सभी लोग हमसे अच्छे भले है।’ जिसके मन में ऐसा विचार उत्पन्न हो गया हो, वही हमारा सच्चा मित्र है।
कबीर साहेब की भक्ति को लेकर शिक्षाएं
कबीर साहेब जी अपनी वाणियों के माध्यम से भक्ति के विषय में बताते हैं कि भक्ति हम किस प्रकार कर सकते हैं। एक भक्त के अंदर किस प्रकार का गुण होना चाहिए? किस प्रकार आचरण होना चाहिए? भक्त का लक्षण क्या होना चाहिए? भगवान प्राप्ति के लिए उसका व्यवहार किस प्रकार होना चाहिए? उसकी श्रद्धा कैसी होनी चाहिए? इन विषय में कबीर परमात्मा जी अपने वाणियों के माध्यम से हिंदू और मुस्लिम दोनों के लिए संदेश दिया हैं कि:-
हांसी खेल हराम है, जो जन रमते राम।
माया मंदिर इस्तरी, नहिं साधु का काम॥
भावार्थ : जो सज्जन सदा राम में रमते हैं अर्थात आत्म-ज्ञान में स्थित रहते हुए ध्यान भजन में लीन रहते हैं, उनके लिए सांसारिक हास्य-मजाक तथा खेल हराम है। इसी प्रकार संसार में माया-मोह, मन रिझाने के महल-मंदिर, आश्रम और विषय-वासना से लिप्त स्त्री से साधुजनों का कोई संबंध नहीं।
कबीर, वेद पढ़ें पर भेद ना जानें, बांचें पुराण अठारा।
पत्थर की पूजा करें, भूले सिरजनहारा।।
भावार्थ– वेदों व पुराणों का यथार्थ ज्ञान न होने के कारण हिन्दू धर्म के धर्मगुरुओं को सृजनहार अर्थात परम अक्षर ब्रह्म का ज्ञान भी नहीं हैं इसलिए वे पत्थर पूजा में लगे हुए है। सतगुरु के अभाव में वे वेदों को पढ़ने के बाद भी उनके सही ज्ञान से परिचित नहीं हो सके।
माला मुद्रा तिलक छापा, तीरथ बरत में रिया भटकी।
गावे बजावे लोक रिझावे, खबर नहीं अपने तन की।।
भावार्थ: कबीर साहेब जी कहते हैं माला पहनने, तिलक लगाने, व्रत रखने और तीर्थ करने से जीव का आध्यात्मिक कल्याण नहीं होगा। इसी तरह से जो लोग धार्मिक कथाएं सुनाते हैं, भजन गाकर, नाच कर लोगों को रिझाते हैं, वो भी आम जनता को आत्म कल्याण का उचित मार्ग नहीं दिखाते हैं। कबीर साहेब कहते हैं कि ज्ञानी और सच्चे साधू वे हैं, जो शरीर को ही मंदिर-मस्जिद मानते हैं और अपने शरीर के भीतर ही परमात्मा को ढूंढने की कोशिश करते हैं। जो अपनी देह के भीतर ईश्वर का दर्शन कर लेता है, उसका जीवन सफल हो जाता है
हिन्दू मुस्लिम दोनों भुलाने, खटपट मांय रिया अटकी।
जोगी जंगम शेख सेवड़ा, लालच मांय रिया भटकी।।
भावार्थ: हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही आज ईश्वर-पथ से भटक गए हैं, क्योंकि इन्हें कोई सही रास्ता बताने वाला नहीं है। पंडित, मौलवी, योगी और फ़क़ीर सब सांसारिक मोहमाया और धन के लालच में फंसे हुए हैं। वास्तविक ईश्वर-पथ का ज्ञान जब उन्हें खुद ही नहीं है तो वो आम लोंगो को क्या कराएंगे ?
कबीर, पत्थर पूजें हरि मिले तो मैं पूजूँ पहार।
तातें तो चक्की भली, पीस खाये संसार।।
भावार्थ: कबीर साहेब जी ने कहा हैं कि किसी भी देवी-देवता की आप पत्थर की मूर्ति बनाकर उसकी पूजा करते हैं जो कि शास्त्र विरुद्ध है। जो कि हमें कुछ नहीं दे सकती। इनकी पूजा से अच्छा चक्की की पूजा करना है जिससे हमें खाने के लिए आटा मिलता है।
कबीर, कामी क्रोधी लालची, इनसे भक्ति ना होए।
भक्ति करे कोई सूरमा, जाती वरण कुल खोय।।
कबीर जी ने कहा हैं कि भक्ति करना सभी व्यक्ति के वश की बात नहीं है। विशेषकर जो सदैव मन में गंदे विचार रखता है और स्वभाव का क्रोधी हो तथा लालच करता है। भक्ति करने के लिए कोई विरला व्यक्ति ही होता है जो अपने जाति, कुल, धर्म आदि की चिंता नहीं करता।
कबीर, पाँच पहर धन्धे गया, तीन पहर गया सोय ।
एक पहर हरि नाम बिनु, मुक्ति कैसे होय ॥
भावार्थ: प्रतिदिन के आठ पहर में से पाँच पहर तो काम धन्धे में खो दिये और तीन पहर सो गया। इस प्रकार तूने एक भी पहर हरि भजन के लिए नहीं रखा, फिर मोक्ष कैसे पा सकेगा ।
कबीर, गुरू बिना माला फेरते, गुरू बिना देते दान।
गुरू बिन दोनों निष्फल है, भावें देखो वेद पुराण।।
अर्थात् साधक को चाहिए कि पहले पूर्ण गुरू से दीक्षा ले। फिर उनको दान करे। उनके बताए मंत्रों का जाप (स्मरण) करे। गुरूजी से दीक्षा लिए बिना भक्ति के मंत्रों के जाप की माला फेरना तथा दान करना व्यर्थ है। गुरू बनाना अति आवश्यक है।
वर्तमान में कबीर साहेब जी के संदेशवाहक
कबीर साहेब जी के और भी ऐसे अनेकों दोहे वाणियां हैं जिसके माध्यम से कबीर साहेब जी सभी धर्मों के लोगों को अनेकों संदेश दिया है। वर्तमान समय में इस पृथ्वी लोक पर कबीर साहेब संत रामपाल जी महाराज के रूप में उपस्थित हैं जो कि सभी धर्मों के सतग्रंथों से प्रमाणित सतज्ञान व सतभक्ति विधि जगत समाज को बता रहे हैं और कबीर साहेब जी के तत्वज्ञान को पुनः उजागर कर रहे हैं।
संत रामपाल जी महाराज जी पूर्ण संत है और पूर्ण संत से ही हमारा मोक्ष हो सकता है। इसलिए संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा लेने के लिए आप हमारे इस लिंक पर क्लिक करें। अधिक जानकारी के लिए अवश्य पढ़ें “ज्ञान गंगा” और “मुसलमान नहीं समझे ज्ञान कुरान” पुस्तक।
Ans:- हां, कबीर साहेब जी पूर्ण परमात्मा है। इसका प्रमाण हमारे सभी पवित्र सद्ग्रंथ देते हैं।
Ans:- कबीर साहेब जी को सिर्फ एक संत और कवि माना जाता है पर वास्तविकता में वे पूर्ण परमात्मा है।
Ans:- हां, कबीर साहेब जी पूर्ण परमात्मा है।
Ans:- पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी सतलोक में रहते हैं। वे वहां रहते हुए भी सभी जगह पर अपनी सत्ता बनाए हुए है जैसे कि सूर्य एक जगह मौजूद होकर भी अपनी रोशनी को लाखो किलोमीटर दूर तक पहुंचा देता है।
Ans:- कबीर साहेब जी का जन्म नहीं होता है वह कभी मां के गर्भ से जन्म नहीं लेते हैं। कबीर परमात्मा स्वयं सहशरीर प्रकट होते हैं। और अपने तत्वज्ञान को जगत को बताने के उद्देश्य से एक कवि की भूमिका भी निभाते हैं।
Ans:- कबीर साहेब जी की मृत्यु नहीं हुई थी। वह मगहर से सहशरीर सतलोक चले गए थे